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‘यह बताइए कि आप ने जिंदगी के 55वें साल में दूसरी शादी क्यों की? आप की पहली पत्नी भी एक सवर्ण राजपूत परिवार से थीं और दूसरी पत्नी, जो अभी महज 30 साल की हैं, भी सवर्ण हैं... क्या यह आप का सवर्णों से शादी करने का कोई खास एजेंडा है?’’ एक पत्रकार ने बातचीत के दौरान अजीत कुमार से सवाल पूछा. ‘‘देखिए, जहां तक मेरी पहली पत्नी की बात है, तो वह एक खास मकसद से मेरे पास आई और रही... दूसरी पत्नी ने भी मुझे खुद ही प्रपोज किया...

मैं खुद किसी के पास नहीं गया था,’’ अजीत कुमार ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘पर, चाकू तरबूज पर गिरे या तरबूज चाकू पर, कटेगा तो तरबूज ही न,’’ एक महिला पत्रकार ने सवाल दागा, तो अजीत कुमार ने कहा, ‘‘हां वह तो है... किसी भी हालत में तरबूज को ही कटना होगा, चाकू तो कटने से रहा...’’ कुछ और सवालजवाब के बाद पत्रकार की बातचीत खत्म हो चुकी थी और अजीत कुमार अपनी कुरसी से उठ चुका था. अजीत कुमार एक समाजसेवी और लेखक था और लगातार दलितों के उत्थान के लिए काम कर रहा था. अजीत कुमार का लखनऊ के एक शानदार इलाके गोमती नगर में बंगला था. अपने घर के दालान में लगे हुए झूले में अजीत कुमार बैठा तो उस की पत्नी सुबोही चाय ले आई.

‘‘एक निचली जाति वाले से शादी कर के तुम्हें पछतावा तो जरूर हो रहा होगा सुबोही?’’ अजीत कुमार ने सुबोही का हाथ पकड़ते हुए पूछा. ‘‘निचली जाति नहीं, निचली समझी जाने वाली जाति कहिए,’’ सुबोही ने कहा. हाल में ही अजीत कुमार ने अपनी आत्मकथा प्रकाशित की थी और उस में बहुत सी ऐसी बातें थीं, जो बहुत से लोगों को अखर रही थीं और उन्होंने इस आत्मकथा को एक खास तबके के खिलाफ गुस्सा और जहर उगलने वाली बताया था. बहुत से लोगों ने इसे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का तरीका बताया था, पर सच तो यह था कि अजीत कुमार ने इस में कड़वे सच को उजागर करने वाली बातें लिखी थीं, जो लोगों को बुरी लग रही थीं.

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