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लखनऊ शहर की इस गंदी बस्ती में आज जश्न था, क्योंकि आज उन के महल्ले के एक लड़के की शादी एक अमीर और सवर्ण लड़की से जो हो गई थी. अगले दिन से ही अंजलि घर पर मेहंदी रचा कर नहीं बैठी, बल्कि चुनाव प्रचार में बिजी हो गई. पूरे शहर में अंजलि ने अपनेआप को ‘दलित समाज की बहू’ कह कर चुनाव प्रचार करवाया और अजीत कुमार के साथ दलित बस्तियों का दौरा भी किया और दोपहर का खाना भी लखनऊ शहर के ही राजाजीपुरम इलाके में रह रहे एक दलित परिवार के यहां खाया.

लोकल न्यूज चैनल पर इस खबर का खूब प्रचारप्रसार भी करवाया. चुनाव नतीजा तो आया, पर अंजलि की सोच के मुताबिक नहीं. वह अपने विरोधी से बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी. पूरे 2 दिन तक वह घर से बाहर रही. अजीत कुमार ने उस का मोबाइल भी मिलाया, पर मोबाइल ‘नौट रीचेबल’ ही बताता रहा. फिर एक दिन अंजलि अचानक नाटकीय रूप से प्रकट हो गई. उस ने घर के किसी शख्स से बात तक नहीं की और न ही किसी की तरफ देखा भी. वह सीधा अपने कमरे में चली गई. अजीत कुमार उस के पीछेपीछे गया, तो अंजलि उस से कहने लगी, ‘‘देखो अजीत, मैं ने तुम से इसलिए शादी की थी, क्योंकि सोशल मीडिया पर तुम्हारे दलित फैंस को देख कर मुझे ऐसा लगा कि अगर मैं तुम से शादी कर के दलितों के वोट अपनी ओर कर लूंगी,

तो इलैक्शन जीत जाऊंगी, पर अफसोस, यह नहीं हो सका और मैं चुनाव हार गई...’’ सांस लेने के लिए अंजलि रुकी और फिर आगे कहना शुरू किया, ‘‘पर, अब मेरा इस गंदी बस्ती और तुम्हारे साथ दम घुट रहा है, इसलिए मैं यहां से जा रही हूं और अपने आदमियों से तलाक के कागज भी भिजवा दूंगी... साइन कर देना.’’ अजीत कुमार अवाक रह गया. अपनी जिंदगी में इतना बड़ा धोखा उस ने कभी नहीं खाया था. अंजलि जा चुकी थी और कुछ घंटे बाद ही उस के आदमी तलाक के कागज ले कर आए और अजीत कुमार से दस्तखत लेने लगे.

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