गोरी... इसी नाम से सभी पुकारते थे उसे. जो कभी ज्यादा प्यार दिखाए तो ‘गोरिया’ कह कर बुला ले.

वैसे तो इस चेहरे के लिए गोरी नाम से ज्यादा सटीक नाम कोई न था. लोहारों के परिवार में अकेली गोरी ही थी, जो इतनी खूबसूरत थी, नहीं तो लोहार के परिवार में जन्म लेने का मतलब ही था लोहे और आग में तपना, जिस से किसी की भी रंगत काली हो जाना लाजिम ही था.

इस तपिश के बीच में भी 20 साल की गोरी पर सुनहरी आभा बिखरी रहती. गोरी की अम्मां कहती, ‘‘अरे, जब लड़की जवान होए तो उस के चेहरे पर नूर बरसे है और उस की जवानी की खुशबू 7-7 गांव तक जाए है...’’

और गोरी की अम्मां सही कहती थी. गोरी की खूबसूरती के किस्से 7 गांव तक भले न गए हों, पर उस के अपने गांव में सभी कुंआरे लड़के गोरी को देख कर आहें भरते थे.

रोज सुबह जब गोरी अपने खेत पर काम के लिए जाती तो गांव के लड़के उसे मन भर कर घूरते और छेड़ते थे, ‘गोरे रंग पे न इतना गुमान कर, गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा...’

पर गोरी उन सभी की बातों को अनसुना कर के आगे बढ़ जाती.

गांव के इन्हीं मनचलों में था, ठाकुर का एकलौता बेटा केवल सिंह. उस के पिता के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी.

अगर इनसान अपने आचरण पर लगाम न लगाए, तो पैसे की अति का मद सिर चढ़ कर बोलता है और ऐसा ही कुछ हो रहा था केवल सिंह के साथ भी. वह पूरे दिन अपने कुछ चमचों से घिरा रहता और वे लड़के भी उस के साथ गाड़ी में घूमने और मुफ्त का खानेपीने के चक्कर में केवल सिंह की जम कर तारीफ करते रहते.

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