‘‘यह क्या सुन रहा हूं शाहनवाज...’’ मौलाना शराफत मियां ने आ कर जब कहा, तब शाहनवाज बोला, ‘‘क्या सुना है मौलाना साहब?’’
‘‘तुम ने नसबंदी करा ली है?’’
‘‘हां मौलाना साहब, सही सुना आप ने,’’ शाहनवाज ने मुसकराते हुए जवाब दिया.
‘‘तुम ने इसलाम की तौहीन की है,’’ मौलाना साहब झल्ला कर बोले.
‘‘अरे मौलानाजी, अगर नहीं कराऊं तो क्या बच्चे पैदा करता रहूं? बेगम को मशीन समझता रहूं?’’ जब शाहनवाज ने नाराजगी से यह बात कही, तब मौलाना शराफत मियां भी उसी गुस्से के लहजे में बोले, ‘‘शाहनवाज, तुम ने मुसलिमों की बेइज्जती की है. यह जानते हुए भी कि नसबंदी इसलाम में कबूल नहीं है, तुम ने यह कदम उठा कर अच्छा नहीं किया.’’
‘‘मौलाना साहब, मैं ने जोकुछ किया?है, अच्छा किया है.’’
‘‘अरे, तुम्हें तो किसी हिंदू के घर में पैदा होना था. तुम ने तो मुसलिम घराने में पैदा हो कर मुसलमानों का नाम डुबा दिया.’’
‘‘आप जैसे कट्टरवादी मौलानाओं ने हम जैसे मुसलमानों का जीना हराम कर दिया है. बारबार मजहब की घुट्टी पिला कर हम को कभी ऊपर उठने नहीं दिया. हम सब को कुएं की घिर्री बना कर रख दिया. हर बात में मजहब को आड़े ले आते हो,’’ शाहनवाज जब बोलता गया.
तब मौलाना शराफत मियां बोले, ‘‘अब चुप हो जाओ, बहुत बोल लिए.’’
‘‘क्यों मौलाना साहब, कड़वी बात कह दी तो कांटे की तरह चुभ गई?’’
‘‘चुभी नहीं. मैं तुम्हारी बात का जवाब दे सकता हूं, पर अभी नमाज कराने का वक्त हो गया है, इसलिए मसजिद में जा रहा हूं. नमाज के बाद मसजिद में आना, वहीं पंचायत के सामने तुम्हें जलील कर के फैसला दूंगा,’’ मौलाना ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा.