कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

   वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

सपना की शादी को 8 साल बीत चुके हैं. जब वह मायके से ब्याह कर पहली बार अपनी ससुराल आई थी, तो नईनवेली दुलहन का खूब स्वागत हुआ था. मंडप के नीचे मुंहदिखाई की रस्म में जो भी सपना को देखता, उस की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकता था. उसे याद है कि दिनभर शादी की रस्मों के चलते कब शाम हो गई थी, उसे पता ही नहीं चला. खाने के बाद रात को सपना की ननद प्रीति जब उसे सुहागरात वाले कमरे में ले गई तो फूलों से सजी सेज और कमरे की खुशबू से सपना की खुशी दोगुनी हो गई थी. सुहागरात को ले कर जो डर सपना के मन में था, उस की ननद की हंसीठिठोली ने दूर कर दिया था.

सपना पूरी रात के एकएक पल को इसी तरह रोमांटिक तरीके से जीना चाहती थी, पर सुभाष का उतावलापन भी वह साफ महसूस कर रही थी. वह चाहती थी कि वे एकदूसरे के नाजुक अंगों को चूमतेसहलाते आगे बढ़ें कि तभी अचानक सुभाष उस के जिस्म से कपड़े एकएक कर के हटाने लगा था. उन दोनों की सांसों की गरमाहट तेज होती जा रही थी.

अगले कुछ पलों में ही सुभाष के अंदर उठा तूफान एक झटके में ही शांत हो गया था और सपना की चाह अधूरी रह गई थी. सुभाष मुंह फेर कर दूसरी तरफ खर्राटे भर रहा था और सपना के अंदर लगी आग उसे बेचैन कर रही थी. शादी का एक साल बीतते ही सपना की सास उस की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगी थीं कि कब उन की बहू की गोद भरे और आंगन में बच्चे की किलकारियां गूंजें, मगर सपना सुभाष की कमजोरी जान गई थी. इसी के चलते साल दर साल बीतते गए, लेकिन सपना का मां बनने का सपना अधूरा ही रह गया.

घरपरिवार और रिश्तेदारों की चहेती सपना अब सब की नजरों में खटकने लगी थी. कोई तीजत्योहार हो या शादीब्याह का मौका औरतें उस की सूनी कोख को ले कर ताने देने लगी थीं. एक बार तो सपना अपने पति के साथ  सैक्सोलौजिस्ट के पास भी गई थी. वहां पर हुई जांच रिपोर्ट से उसे पता चल गया था कि वह तो मां बन सकती है, पर सुभाष के पिता बनने के कोई चांस नहीं थे. सपना इसी वजह से न जाने कितने मंदिरों और संतमहात्माओं के दरबार में मन्नत मांग चुकी थी, मगर फिर भी उस की गोद नहीं भर पाई.

सपना वैसे तो नए जमाने के खयालों की हिमायती लड़की थी, जो किसी तरह के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं रखती थी, पर समाज के तानों की वजह से वह अपनी सूनी गोद भरने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी. रातदिन, सोतेजागते इसी चिंता में वह सूख कर कांटा हुए जा रही थी. सुभाष की किराना दुकान आज भी इस छोटे से शहर में खूब चलती है. सुभाष दिनभर दुकानदारी में लगा रहता और रात को ही घर पहुंचता. सपना की सास रातदिन औलाद के लिए उसे भलाबुरा कहती, मगर सपना किसी से अपना दर्द नहीं बांट पाती थी.

ऐसा नहीं था कि औलाद न होने के तानों से अकेले सपना ही परेशान थी, बल्कि सुभाष भी दिनरात इसी चिंता में डूबा रहता. उस के यारदोस्त भी उसे ताने देने लगे थे. एक बार तो सुभाष के खास दोस्त ने उस की मर्दानगी का भी मजाक उड़ाया था. अपनी मर्दाना कमजोरी के चलते औलाद न होने के दुख ने उन दोनों की हंसीखुशी से भरी जिंदगी को बोझिल बना दिया था.

पिछले साल जब पास के गांव में रहने वाली सुभाष की बूआ उस के घर आई थी तो उसी दौरान बूआ ने बताया कि उस के गांव के पास ही एक मंदिर है, जहां पर धर्मराज स्वामी का दरबार लगता है. उन के दरबार में मंगलवार को हाजिरी लगाने से मन की हर मुराद पूरी हो जाती है. वैसे तो धर्मराज स्वामी के बारे में सपना ने भी सुन रखा था, लेकिन जब से बाबाओं द्वारा धर्म के नाम पर औरतों के साथ यौन शोषण की घटनाएं हुई हैं, उस का तो बाबाओं से भरोसा ही उठ गया है.

एक दिन अखबार में सपना ने उसी धर्मराज स्वामी का एक परचा देखा था, जिस में लिखा था कि केवल एक नारियल द्वारा सभी समस्याओं का समाधान किया जाता है. परचे में बताया गया था कि पतिपत्नी को एकदूसरे के वश में करने के अलावा औलाद भी पा सकते हैं. वह परचा देख कर सपना के मां बनने की उम्मीद एक बार फिर से जिंदा हो उठी. उस ने आसपड़ोस की औरतों से जब इस की चर्चा की तो कुछ औरतों ने तो इतना तक भरोसा दिलाया कि एक बार उन बाबा के दरबार में जा कर तो देख, तुझे औलाद जरूर होगी.

सपना ने जब सुभाष को धर्मराज स्वामी के दरबार के बारे में बताया और वहां चलने को कहा, तो सुभाष ने साफ मना कर दिया, ‘‘मैं इस तरह के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं करता.’’ सपना ने उसे समझने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘इतने सालों में हम ने औलाद के लिए कहांकहां की खाक नहीं छानी, तो इतने पास बूआ के गांव जाने में हर्ज क्या है.’’

सुभाष सपना का दर्द समझता था. वह उसे दुखी नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने यह सोच कर हां कर दी कि इसी बहाने बूआ के घर घूमना भी हो जाएगा.

सुभाष और सपना मंगलवार को बूआ के गांव पहुंचे, तो बुआ उन्हें शाम के समय मंदिर ले गई. मंदिर के बड़े दरवाजे से अंदर जाते ही उन दोनों ने देखा कि गले में लाल गमछा डाल कर घूम रहे सेवादार, जिन में औरतें भी शामिल थीं, हर आनेजाने वाले से पूछताछ कर रही थीं. लोगों के सामने वे धर्मराज की तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रही थीं. सपना और सुभाष ने भी धर्मराज स्वामी से मिलने की इच्छा जताई तो सेवादारों ने उन्हें अंदर भेज दिया.

अंदर एक बड़े से हाल में एक चबूतरे पर बिछे आसन पर पीले कपड़ों से सजेधजे तकरीबन 45-50 साल की उम्र के धर्मराज स्वामी के सामने लोगों का हुजूम लगा हुआ था. लाइन में खड़े लोगों में नारियल दे कर उन के पैर छूने की होड़ सी मची थी. लोग उन के पैर छू कर अपनी परेशानी बताते और धर्मराज स्वामी उन्हें 5 से 7 मंगलवार को दरबार में हाजिरी लगाने की सलाह देते.

देखतेदेखते सपना का नंबर भी आ गया. बूआ के साथ सपना और सुभाष ने धर्मराज के पैर छूते हुए नारियल दे कर अपनी परेशानी बताई.

आगे पढ़ें

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...