सेना ही क्यों जज्बा और हिम्मत कहीं भी काम आ सकते हैं मैंसुबह कसरत करने अपने लोकल पार्क में जाता हूं. वहां कुछ लड़के दौड़ लगाने आते हैं. उन में से ज्यादातर गरीब घर के नौजवान होते हैं और वे बनियान, निक्कर और ‘सैगा’ ब्रांड के जूते पहने हुए होते हैं. पंजाब की इस कंपनी के जूते इसलिए, क्योंकि इतने सस्ते और टिकाऊ रनिंग जूते शायद ही कोई कंपनी बना कर देती होगी. भार में भले ही ये जूते बहुत हलके होते हैं, पर इन्हें पहनने वाले गरीब घरों के लड़कों पर रोजगार पाने का बोझ बहुत ज्यादा होता है. कम जमीन, आमदनी न के बराबर, पर फिर भी ऐसे लड़कों की मेहनत में कोई कमी नहीं होती है और इस बात की गवाही उन के बदन से बहता पसीना दे देता है.

पर चूंकि एक तो भारत में सरकारी नौकरियां वैसे ही कम हैं, ऊपर से बेरोजगारी की हद. लिहाजा, 1-1 सरकारी नौकरी पाने में कंपीटिशन काफी तगड़ा हो जाता है. और जब कोई नौजवान इस कंपीटिशन में लास्ट स्टेज पर चूक जाता है, तो वह कई बार इतने कड़े और दुखदायी कदम उठा लेता है कि देशभर में सुर्खियां बन जाता है. हाल ही में एक 23 साल के लड़के ने इस बात के चलते तनाव में आ कर अपनी जान दे दी कि चूंकि अब वह ओवर एज हो गया है तो सेना में नहीं जा पाएगा, तो फिर जीने से क्या फायदा और उस ने फांसी लगा ली.

यह घटना हरियाणा के भिवानी जिले की है, जहां गांव तालु का रहने वाला 23 साल का नौजवान पवन कुमार पिछले 9 साल से भारतीय सेना में भरती होने के लिए तैयारी कर रहा था, पर सरकार द्वारा भरतियां न निकालने से हताश हो कर उस ने अपनी जान दे दी. पवन कुमार ने खुदकुशी करने से पहले एक हैरान कर देने वाला सुसाइड नोट लिखा, जो किसी कागज पर नहीं, बल्कि रनिंग ट्रैक पर लिखा था. उस सुसाइड नोट में पवन कुमार ने अपने पिताजी से कहा कि इस बार सेना में भरती नहीं हुआ, लेकिन पिताजी अगले जन्म में मैं फौजी जरूर बनूंगा, क्योंकि सेना में भरती न निकलने पर मेरी उम्र भी निकल गई... फिर अपने प्रैक्टिस वाले मैदान में एक पेड़ पर रस्सी का फंदा लगा कर उस ने जान दे दी.

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