यों तो लड़कियों की घटती तादाद और बढ़ता लिंगानुपात एक अलग मुद्दा है, लेकिन देश के करोड़ों युवाओं को शादी के लिए लड़कियां क्यों नहीं मिल रही हैं, जान कर हैरान रह जाएंगे आप…
23 दिसंबर, 2023 को देव उठानी के दिन विष्णु सहित दूसरे देवीदेवता पांवड़े चटकाना तो दूर की बात है ढंग से अंगड़ाई भी नहीं ले पाए थे कि नीचे धरती पर कुंआरों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि अब यदि सचमुच में उठ गए हो तो हमारी शादी कराओ. बस, यह उन्होंने नहीं कहा कि अगर नहीं करवा सकते तो नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दो.
ताजा हल्ला भारत भूमि के राज्य महाराष्ट्र के सोलापुर से मचा जहां सुबहसुबह कोई 50 कुंआरे सजधज कर लकदक दूल्हा बने घोड़ी पर बैठे बैंडबाजा, बरात के साथ डीएम औफिस की तरफ कूच कर रहे थे.
आजकल ऊपर विष्णुजी के पास सृष्टि के दीगर कामकाज जिन में अधिकतर प्रोटोकाल वाले हैं, कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं इसलिए वे शादी जैसे तुच्छ मसले पर कम ही ध्यान दे पाते हैं जबकि उन्हें भजन, आरती गागा कर उठाया इसी बाबत जाता है कि हे प्रभु, उठो और सृष्टि के शुभ कार्यों के साथसाथ विवाह भी संपन्न कराओ जो रोजगार के बाद हर कुंआरे का दूसरा बड़ा टास्क है. इन युवाओं ने समझदारी दिखाते हुए शादी कराने का अपना ज्ञापन कलैक्टर को दिया, जो सही मानों में विष्णु का सजीव प्रतिनिधि धरती पर कलयुग में होता है.
ज्ञापन के बजाय विज्ञापन जरूरी
उम्मीद कम ही है कि ऊपर वाले देवता तक इन कुंआरों की करुण पुकार और रोनाधोना पहुंचा होगा. रही बात नीचे के देवता कि तो वह बेचारा मन ही मन हंसते हुए ज्ञापन ही ले सकता है. अगर थोड़ा भी संवेदनशील हुआ तो इन्हें इशारा कर सकता है कि भाइयो, ज्ञापन के बजाय विज्ञापन का सहारा लो और मेरे या ऊपर वाले के भरोसे मत रहो नहीं तो जिंदगी एक अदद दुलहन ढूंढ़ने में जाया हो जाएगी और इस नश्वर संसार से तुम कुंआरे ही टैं बोल जाओगे.
यह मशवरा भी उन के मन में ही कहीं दब कर रह गया होगा कि मर्द हो तो पृथ्वीराज बनो और अपनी संयोगिता को उठा कर ले जाओ. तुम ने सुना नहीं कि वीर भोग्या वसुंधरा चर्चा में बैचलर मार्च सोलापुर के इन दूल्हों की फौज को राह चलते लोगों ने दिलचस्पी और हैरानी से देखा.
कुछ को इन कुंआरे दूल्हों से तात्कालिक सहानुभूति भी हुई लेकिन सब मनमसोस कर रह गए कि जब ऊपर वाला ही इन बदनसीबों की नहीं सुन रहा तो हमारी क्या बिसात. हम तो खुद की जैसेतैसे कर पाए थे और अभी तक उसी को झांक रहे हैं. यह बात इन दीवानों को कौन सम?ाए कि भैया, मत पड़ो घरगृहस्थी के झमेले में, पछताना ही है तो बिना लड्डू खाए पछता लो. न समझ सकते न बचा सकते मगर यह भी मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है कि जो आदमी खुदकुशी और शादी पर उतारु हो ही आए उसे ब्रह्माजी भी नहीं समझ और बचा सकते क्योंकि यह भाग्य की बात है. रही बात इन दीवानों की तो इन के बारे में तो तुलसीदास बहुत पहले उजागर कर गए हैं कि जाको प्रभु दारुण दुख देई, ताकी मति पहले हर लेई.
राहगीरों ने दर्शनशास्त्र के ये कुछ चौराहे क्रौस किए और इन दूल्हों में दिलचस्पी ली तो पता चला कि इन बेचारों को लड़कियां ही नहीं मिल रहीं और जिन को जैसेतैसे मिल जाती हैं वे इन्हें सड़े आम जैसे बेरहमी से रिजैक्ट कर देती हैं क्योंकि इन के पास रोजगार नहीं है.
जागरूक होती लड़कियां मुमकिन है कि यह नजारा देख कर कुछकुछ लोगों को वह प्राचीन काल स्मरण हो आया हो जब लड़कियां चूं भी नहीं कर पाती थीं और मांबाप जिस के गले बांध देते थे वे सावित्री की तरह उस के साथ जिंदगी गुजार देती थीं. फिर बेरोजगार तो दूर की बात है लड़का लूला, लंगड़ा, अंधा, काना हो तो भी वे उसे ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है…’ वाले गाने की तर्ज पर उसी के लिए तीज और करवाचौथ जैसे व्रत करती रहती थीं. और तो और अगले जन्म के लिए भी उसी लंगूर को बुक कर लेती थीं.
जमाना बदल गया मगर अब जमाना और लड़कियां दोनों बदल गए हैं. लड़कियां शिक्षित, सम?ादार और स्वाभिमानी तथा जागरूक हो चली हैं. लिहाजा, उन्हें किसी ऐरेगिरे, तिरछेआड़े के गले नही बांधा जा सकता. पहले की लड़कियों को गऊ कहा जाता था. वे जिंदगीभर उसी खूंटे से बंधी रहती थीं जिस से पेरैंट्स बांध देते थे. मगर अब लड़कियां खुद खूंटा ढूंढ़ने लगी हैं यानी अपने लिए सुयोग्य वर तलाशने लगी हैं क्योंकि वे किसी की मुहताज नहीं हैं. अपने पैरों पर खड़ी हैं.
बेरोजगार जीवनसाथी उन की आखिरी प्राथमिकता भी नहीं है इसलिए समझ यह जाना चाहिए कि सोलापुर जैसे बैचलर मार्च दरअसल, बेरोजगारी के खिलाफ एक मुहिम है जिस के तहत दुलहन की आड़ में सरकार से रोजगार या नौकरी मांगी जा रही होती है. ऐसे मार्च देश के हर इलाके में देखने को मिल जाते हैं जहां इन कुंआरों का दर्द फूटफूट कर रिस रहा होता है.
कोई सस्ता तमाशा नहीं कर्नाटक की ब्रह्मचारीगलु पद्यात्रा ऐसा ही दर्द मार्च के महीने में कर्नाटक के मांड्या जिले से एक लड़के का फूटा था. सोलापुर में जिसे बैचलर मार्च कहा गया वह वहां ब्रह्मचारीगलु पद्यात्रा के खिताब से नवाजा गया था. इस यात्रा में करीब 60 कुंआरे लड़के 120 किलोमीटर की पद्यात्रा कर चामराजनगर जिले में स्थित महादेश्वर मंदिर पहुंचे थे. तब मानने वालों ने मान लिया था कि यह कोई सस्ता तमाशा या पब्लिसिटी स्टंट नहीं है बल्कि हकीकत में इन लड़कों के पास कोई नौकरी नहीं है. कुछकुछ जानकारों ने इस पद्यात्रा का आर्थिक पहलू उजागर करते हुए यह निष्कर्ष दिया था कि शादी योग्य इन लड़कों के पास कोई सलीके की नौकरी नहीं है और मूलतया ये पद्यात्री किसान परिवारों से हैं.
समस्या का दूसरा पहलू यह समझ आया था कि नए दौर की युवतियां शादी के बाद गांवों में नहीं रहना चाहतीं और खेतीकिसानी अब घाटे का धंधा हो चला है जिस में आर्थिक निश्चिंतता नहीं है इसलिए लड़की तो लड़की उस के पेरैंट्स भी रिस्क नहीं उठाते.
कर्नाटक ही नहीं बल्कि हर इलाके के किसानपुत्र इस से परेशान हैं और खेतखलिहान छोड़ कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं. जितना वे गांव में अपने नौकरों को देते हैं उस से भी कम पैसे में खुद शहर में छोटीमोटी नौकरी कर लेते हैं ताकि शादी में कोई अड़चन पेश न आए.
लड़कियों को नहीं भाते ये लड़के इस बात की पुष्टि करते मांड्या के एक किसानपुत्र कृष्णा ने मीडिया को बताया भी था कि मुझे अब तक लगभग 30 लड़कियां रिजैक्ट कर चुकी हैं. वजह मेरे पास खेती कम है जिस से कमाई भी ज्यादा नहीं होती. यह एक गंभीर समस्या है जिस के बारे में खुलासा करते सोलापुर के ज्योति क्रांति परिषद जिस के बैनर तले बैचलर मार्च निकाला गया था के मुखिया रमेश बरास्कार बताते हैं कि महाराष्ट्र के हर गांव में 25 से 30 साल की उम्र के 100 से 150 लड़के कुंआरे बैठे हैं.
संगठित हो रहे कुंआरे हरियाणा के कुंआरे भी यह और इस से मिलतीजुलती मांगें उठाते रहे हैं लेकिन कोई हल कहीं से निकलता नहीं दिख रहा और न आगे इस की संभावना दिख रही. अब अच्छी बात यह है कि जगहजगह कुंआरे इकट्ठा हो कर सड़कों पर आ रहे हैं. अपने कुंआरेपन को ले कर उन में कोई हीनभावना या शर्मिंदगी नहीं दिखती तो लगता है कि समस्या बहुत गंभीर होती जा रही है लेकिन उस के प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखा रहा.
एक अंदाजे के मुताबिक देश में करीब 5 करोड़, 63 लाख अविवाहित युवा हैं लेकिन उन पर युवतियों की संख्या महज 2 करोड़, 7 लाख है. लड़कियों की घटती तादाद और बढ़ता लिंगानुपात एक अलग बहस का मुद्दा है लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा और मध्य प्रदेश के जो युवा संगठित हो कर प्रदर्शन कर रहे हैं वे बेरोजगार, अर्धबेरोजगार और किसान परिवारों के हैं जिन का मानना है कि अगर अच्छी नौकरी या रोजगार हो तो छोकरी भी मिल जाएगी. ऊपर वाला तो सुनता नहीं इसलिए ये लोग नीचे वाले से आएदिन गुहार लगाते रहते हैं.