मरीजों की शारीरिक और मानसिक कमजोरी का फायदा उठा कर जेबें कैसे भरनी हैं, यह सफेद कोट वाले डाक्टर जानते हैं. अपने उपचार की सही जानकारी ले कर मरीज ऐसी धांधली से बच सकते हैं. बुखार से पीडि़त संदेशा इलाज के लिए नजदीकी प्राइवेट दफ्तर के पास गई. कुछ दिनों तक वहां उस का इलाज चला. इसी बीच उस के खून की जांच से ले कर कई दूसरी महंगी जांचें डाक्टर ने करा लीं. हफ्तेभर बाद भी संदेशा की सेहत में कोई सुधार नहीं आया,

बल्कि हालत और भी गंभीर हो गई. तब डाक्टर ने उसे अपने पहचान के माहिर के पास जाने की सलाह दी. वहां भी डाक्टर ने सारी जांचें कराईं, पर हफ्तेभर बाद भी संदेशा की हालत में कोई सुधार नजर नहीं आया. बिगड़ती हालत को देख हुए उस डाक्टर ने संदेशा को अस्पताल में भरती करने की सलाह दी और झट से एक अस्पताल का नाम लिख कर दे दिया. संदेशा की बिगड़ती हालत को देख कर पहले से ही उस के मातापिता की चिंता बढ़ी हुई थी और अस्पताल में भरती कराने की बात सुन कर वे और भी घबरा गए. उन्होंने तुरंत ही बिना सोचविचार किए संदेशा को अस्पताल में भरती करा दिया. जैसेतैसे अस्पताल में डिपौजिट जमा कर संदेशा के पिता राजनाथ बेटी को बैड पर लिटा ही रहे थे कि नर्स ने राजनाथ के हाथ में एक लंबा सा परचा थमा कर सामान लाने को कहा. वे तुरंत जा कर एक बौक्स भर सामान ले आए. इस के बाद कई दिनों तक यही सब चला.

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