आग में फंसे छात्रछात्राओं को बचाने के बजाय उन के वीडियो बनाने वालों को पानी पीपी कर शर्मिंदा किया गया. प्रशासन और सरकार की लापरवाही की खूब खिल्ली उड़ाई गई.

इतना ही नहीं, गुजरात और केंद्र सरकार को इस बात पर आड़े हाथ लिया गया कि जब राज्य में लोगों की हिफाजत के लिए आप कोई कड़े कदम नहीं उठा सकते हैं तो फिर अरबों रुपए की सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बनवाने के क्या माने हुए?

बात कुछ हद तक सही भी थी कि जब लोग ऐसे हादसों में सरकार और प्रशासन की ढील और भ्रष्टाचार की वजह से समय से पहले मौत के मुंह में चले जाते हैं तो फिर किसी भी तरह की तरक्की दिखावटी और बेमानी है.

24 मई, 2019 को नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के सूरत शहर में एक चारमंजिला इमारत में आग क्या लगी, वहां बने एक कोचिंग सैंटर में पढ़ने गए बच्चे मौत की लपटों में स्वाहा हो गए. आग और धुएं का इतना जबरदस्त कहर था कि डरेसहमे बच्चे चौथी मंजिल से बाहर आने की हड़बड़ाहट में खिड़कियों से नीचे कूदने लगे, पर यह कोशिश जानलेवा साबित हुई.

तक्षशिला आर्केड नाम के कमर्शियल कौंप्लैक्स में दोपहर के साढ़े 3 बजे आग लगी थी जिस की खबर मिलने के बाद वहां आग बुझाने की 19 गाडि़यों को भेजा गया. उन्होंने 2 हाइड्रोलिक प्लेटफार्म भी बनाए लेकिन वे इमारत की ऊपरी मंजिल तक नहीं पहुंच पाए.

जानकारी के मुताबिक, यह आग बिजली में हुए शौर्ट सर्किट की वजह से लगी थी. कोचिंग सैंटर में पहुंचने के लिए बनी सीढि़यां लकड़ी की बनी थीं इसलिए आग बड़ी तेजी से फैली. यही वजह थी कि ऊपर फंसे छात्र सीढि़यों से नीचे नहीं जा पाए और उन्होंने खिड़की से कई फुट नीचे कूदना ही मुनासिब समझा.

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