‘जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ लगाए गए राजद्रोह के आरोप को साबित करने में दिल्ली पुलिस नाकाम रही है.’ पिछली 3 मार्च को अखबारों में छपा यह समाचार गुरमेहर कौर को राष्ट्रद्रोही और बेइज्जत करने के बवाल में भले ही दब गया हो, पर कई बातें एकसाथ उजागर कर गया. मसलन, यह इस बार एक 20 वर्षीय छात्रा गुरमेहर कौर कथित राष्ट्रप्रेमियों के निशाने पर है और देश के शिक्षण संस्थानों में बोलने पर तो पता नहीं, लेकिन सच बोलने पर लगी पाबंदी बरकरार है.
जो आवाज तथाकथित भक्तों को पसंद नहीं आती उसे दबाने हेतु पुलिस, कानून और मीडिया के अलावा कारगर हथियार हैं हल्ला, हिंसा, मारपीट, धरना, प्रदर्शन. यदि यह आवाज एक युवती की हो तो बलात्कार तक की धमकी देने से कट्टरवादी चूक नहीं रहे. अभिव्यक्ति की आजादी का ढिंढोरा बीते 3 साल से खूब पीटा जा रहा है, लेकिन यह आजादी दरअसल किसे है और कैसे है यह गुरमेहर के मामले से एक बार फिर उजागर हुआ.
आज देश के विश्वविद्यालय राजनीति के अड्डे बने हैं, वहां खुलेआम छात्र शराब पीते हैं, ड्रग्स लेते हैं, सैक्स कर संस्कृति और धर्म को विकृत करते हैं, जैसी बातें अब चौंकाना तो दूर की बात है कुछ सोचने पर भी विवश नहीं करतीं. इस की खास वजह यह है कि किसी भी दौर में युवाओं को मनमानी करने से न तो पहले रोका जा सका था और न आज रोक पा रहे हैं. युवा खूब ऐश और मौजमस्ती करें, यह हर्ज की बात नहीं लेकिन वे कहीं सोचने न लगें यह जरूर चिंता की बात है, क्योंकि युवापीढ़ी का सोचना राजनीति के साथसाथ धर्म को भी एक बहुत बड़ा खतरा लगता है. ये लोग हिप्पी पीढ़ी चाहते हैं जो दिमागी तौर पर अपाहिज और ऐयाश हो, लेकिन बदकिस्मती से कई युवा गंभीरतापूर्वक सोचते हैं और कहते भी हैं तो तकलीफ होना स्वाभाविक है.
तकलीफ का इलाज बेइज्जती
फरवरी के तीसरे सप्ताह में राजधानी दिल्ली के रामजस कालेज में हुई हिंसा की खबर दब कर रह जाती, यदि यह हिंसा 2 छात्र संगठनों आईसा और एबीवीपी के बीच न हुई होती.
कौन है गुरमेहर और कैसे वह रातोंरात कन्हैया की तरह चमकी, इसे जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि आरएसएस और भाजपा समर्थक एबीवीपी की इमेज लगातार बिगड़ रही है. पहली मार्च को ही दिल्ली पुलिस ने उस के 2 सदस्यों को गिरफ्तार किया था. इस पर तुरंत ऐक्शन लेते एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक साकेत बहुगुणा ने 2 सदस्यों प्रशांत मिश्रा और विनायक शर्मा को निलंबित कर दिया था. इन दोनों पर आईसा के सदस्यों को मारनेपीटने का आरोप था, जिस की पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज की थी.
यह बात आम नहीं थी बल्कि इस के पीछे गुरमेहर नाम की एक छात्रा थी जिसे ले कर कन्हैया जितना ही बवाल मचा था.
पंजाब के जालंधर में जन्मी गुरमेहर के पिता कैप्टन मंदीप सिंह 1999 में चर्चित कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे तब उस की उम्र महज 2 साल थी. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद गुरमेहर दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज से साहित्य से एमए कर रही थी.
गुरमेहर आम लड़कियों जैसी ही है पर एक बात उसे हमेशा कचोटती रही कि उस के पिता नहीं हैं. वे शहीद हुए थे. यह गर्व की बात उस के लिए थी पर शहादत की नौबत किन वजहों के चलते आई यह बात गंभीरता से उस ने दिल्ली आ कर सोचनी शुरू की. हालांकि उस के सोचने पर कोई बंदिश पहले भी नहीं थी. उस की मां राजविंदर कौर ने उस की परवरिश लड़कों की तरह और बेहतर तरीके से की थी.
20 वर्षीय युवती से कोई गहरी सोच की उम्मीद नहीं करता, लेकिन गुरमेहर ने पिता की कमी महसूस की और लगातार सोचने के बाद उस ने एक निष्कर्ष निकाला कि उस के पिता की मौत की वजह पाकिस्तान नहीं था बल्कि युद्ध था.
यह निष्कर्ष एकदम दार्शनिकों जैसा था जिस में बुद्ध की करुणा और महावीर की अहिंसा दोनों थी. जिस युवती से पिता की बांहों में झूलने जैसे सैकड़ों सुख 2 देशों की हिंसा ने छीने थे, उस ने अगर उन की वजह युद्ध बता दिया तो देखते ही देखते देश भर में खासा बवाल मच गया.
गुरमेहर उत्साहित थी कि उस ने एक विश्वव्यापी गुत्थी सुलझा ली है और इसे पुष्टि के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों खासतौर से दोस्तों और छात्रों के साथ शेयर करना चाहिए. उस ने ऐसा किया भी. यही उस का गुनाह था जिस के चलते वह अपमान और दुख के उस दौर से गुजरी जिसे कोई सामान्य युवती बरदाश्त ही नहीं कर सकती.
राजनीति और लैफ्टराइट के चिंतन से अनजान गुरमेहर जब इन चीजों से टकराई तो उसे एहसास हुआ कि उस ने कोई भारी गलती कर दी है, जिस से देशभर में हंगामा बरपा हुआ है. हुआ यों कि उस ने अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए सोशल मीडिया को जरिया बनाया और फेसबुक पर सिलसिलेवार 34 प्ले कार्ड्स पर अपने निष्कर्ष को पोस्ट करते हुए मन की बात कही थी. इन कार्ड्स के जरिए उस ने बताया था कि मैं बचपन में मुसलमानों से नफरत करती थी और हर मुसलमान को पाकिस्तानी समझती थी, पर मां के बारबार समझाने पर मेरे दिल से नफरत निकल पाई.
देखा जाए तो बात साधारण होते हुए भी असाधारण थी यह एक युवती की आपबीती, पर उस के अपने मौलिक विचार थे जो एबीवीपी को नागवार गुजरे. पूर्वार्द्ध में कहे गए गुरमेहर के वाक्य ‘पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा’ के माने एबीवीपी ने अपने हिसाब से राष्ट्रद्रोह के निकाले और उसे प्रताडि़त करना शुरू कर दिया. 18 साल पहले जिस के पिता की शहादत के चर्चे देश भर में थे, उन की बेटी पलभर में राष्ट्रद्रोही करार दे दी गई. गुरमेहर हैरत और सकते में थी कि आखिरकार ये सब हो क्या रहा है.
इसी बवंडर में यह बात भी उभर कर सामने आई कि दिल्ली के रामजस कालेज में आयोजित एक संगोष्ठी में 2 छात्र नेताओं उमर खालिद और शेहला राशिद को भी न्योता दिया गया था. इस पर एबीवीपी बिफर उठी और उसे ये सब राष्ट्रद्रोह की साजिश लगा. उस ने इस संगोष्ठी का खुल कर विरोध किया और संगोष्ठी नहीं होने दी.
गुरमेहर एबीवीपी की इस हरकत से आहत हुई और उस ने सोशल मीडिया पर उस का विरोध किया. जल्द ही लोग उस से सहमत हो कर जुड़ने लगे और उस का वीडियो शेयरिंग के साथ हैशटेग भी करने लगे.
विवाद बढ़ा तो वामपंथी छात्र संगठन ने एक मार्च निकालने का फैसला ले लिया. यह मार्च पहली मार्च को ही निकाला जाना था. छात्र संघों की ताकत और पहुंच की बात करें तो हर कोई जानता है कि वामपंथी, हिंदूवादियों पर भारी पड़ते हैं क्योंकि वे किसी दायरे या फिर धार्मिकसांस्कृतिक बंधनों में जकड़े नहीं हैं और खुले दिमाग वाले हैं.
दिखाया संस्कृति का सच
2 अलगअलग विचारधाराओं में टकराव स्वाभाविक बात है, पर एबीवीपी के कार्यकताओं ने अपने धार्मिक संस्कार जल्द ही दिखा दिए और गुरमेहर के साथ खुलेआम अभद्रता की, गुरमेहर को गालियां दी गईं और उस की कुरती की एक बांह भी फाड़ दी गई. इस सब का मकसद एक युवती की बेइज्जती कर उस का मनोबल तोड़ना था. इस पर भी बात नहीं बनी थी तो उस को बलात्कार की भी धमकी दी गई.
इतने घिनौने और घटिया स्तर पर बात आ जाएगी यह बात इस लिहाज से उम्मीद के बाहर नहीं थी कि हिंदूवादियों का यह पुराना हथियार है कि औरतों से जीत न पाओ तो उन को बेइज्जत करने में हिचको मत. कोई खूबसूरत महिला प्रणय निवेदन करे तो उस की नाक काट डालो, मामला जायदाद का हो तो विरोधी पक्ष की महिला को भरी सभा में नग्न कर दो और तो और चारित्रिक शक जाहिर करते सीता जैसी पत्नी भी त्याग दो.
गुरमेहर के मामले में भी ये पौराणिक दांव खेले गए हालांकि वह जानतीसमझती थी कि उस का समर्थन कर रहे लोग कहीं ज्यादा सशक्त हैं, पर वह हिंसा की हिमायती नहीं थी. इसलिए पलायन कर गई, लेकिन बलात्कार की धमकी की रिपोर्ट उस ने लिखाई जिस पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने संज्ञान लिया और उसे सुरक्षा भी मुहैया कराई.
निश्चित रूप से गुरमेहर को आभास था कि एबीवीपी के संस्कार ही युद्ध के हैं, जिस धर्म और संस्कृति का वह पालन करती है वह मारकाट चीरहरण, अंगभंग और छलकपट से भरी पड़ी है. इसलिए इन से नारी सम्मान या दूसरे किसी लिहाज की उम्मीद न करने की उस ने समझदारी दिखाई और वापस जालंधर चली गई. जातेजाते उस ने कहा कि वह मार्च में शामिल नहीं होगी और शांति से रहना चाहती है.
उस ने दोहराया कि वह किसी से डरती नहीं है, लेकिन तय है कि एक शहीद देशभक्त की बेटी कभी यह बरदाश्त नहीं कर सकती कि वे लोग उसे राष्ट्रद्रोही का खिताब दें जिन्हें धर्म और राष्ट्र में फर्क करने की भी तमीज नहीं है. जालंधर जा कर उस ने सहयोगियों का शुक्रिया अदा किया और खुद को फसाद से दूर कर लिया.
मचता रहा बवाल
यह महज इत्तफाक नहीं है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही वैचारिक टकराव छात्रों के बीच हिंसा की हद तक बढ़ा है. हिंदूवादियों के हौसले बुलंद हैं और वे किसी भी विरोधी का मुंह बंद करने को उसे राष्ट्रोही और गद्दार करार दे देते हैं.
गुरमेहर ने एबीवीपी की छीछालेदार करा दी थी इसलिए जल्द ही भगवा खेमा शीर्ष स्तर पर सक्रिय हो गया. मैसूर से भाजपा सांसद प्रताप सिन्हा ने गुरमेहर की तुलना अंडरवर्ल्ड सरगना दाउद इब्राहिम से करते हुए कहा कि 1993 के बम धमाकों के मास्टरमाइंड दाउद ने देश विरोधी काम के बाद यह नहीं कहा था कि वह पुलिस वाले का बेटा है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने भी गुरमेहर को देशद्रोही कह डाला.
वीरेंद्र सहवाग जैसे क्रिकेटर भी जबानी जंग में कूदे और रेसलर फोगाट बहनें गीता और बबीता भी बगैर सोचेसमझे बोलीं. बकौल सहवाग 300 रन उस ने नहीं, उस के बल्ले ने बनाए थे जैसी बात गुरमेहर ने कही है. इसे सहवाग की नादानी ही कहा जाएगा जो वह यह नहीं समझ पाया कि गुरमेहर कर्म और क्रिया का संबंध नहीं बता रही बल्कि एक विश्वव्यापी समस्या की बात करते अहिंसा के पक्ष में उदाहरण भी दे रही है.
हालांकि गुरमेहर के पक्ष में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी आगे आए और भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भी उस का समर्थन किया. बातबात पर भाजपा और नरेंद्र मोदी का समर्थन करें वाले गीतकार जावेद अख्तर को भी पहली दफा ज्ञान प्राप्त हुआ कि गुरमेहर के साथ गलत हो रहा है, इस के बाद बहस और आरोपप्रत्यारोप राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रद्रोह की नई परिभाषाओं के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए. शायद गुरमेहर को निशाने पर लेने का मकसद भी यही था.
उधर, गुरमेहर की मां राजविंदर कौर कहती ही रह गईं कि मेरी बेटी पर राजनीति मत करो वह एक बच्ची है, जिस की भावनाएं सच्ची हैं लेकिन गुरमेहर पर राजनीति बहुत जरूरी भी हो गई थी हालांकि इस से इस पूरे मामले का धार्मिक पहलू ढक गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह कहना बेवजह नहीं था कि देश विरोधी नारे भाजपा और एबीवीपी वाले खुद लगाते हैं.
यह बात कितनी सच कितनी झूठ है, यह तो वही जानें, पर यह जरूर सच है कि आरएसएस की छत्रछाया में पलेबढ़े एबीवीपी की नजर में छात्रशक्ति का इकलौता मतलब हिंदुत्व होता है. इस पर बोलने वाले को चुप कराने के लिए किया गया हर काम वे जायज मानते हैं. यहां तक कि एक युवती की इज्जत लूटने या बलात्कार की धमकी देना भी हर्ज की या पाप की बात नहीं समझते.
हिंदू या भारतीय
गुरमेहर तो हमेशा की तरह बहाना थी, एबीवीपी का असल मकसद तो कुछ और था जिसे 28 फरवरी को दिल्ली में निकाले गए वामपंथी शिक्षक छात्र संगठनों के मार्च में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और माकपा नेता डी राजा ने खुल कर बताया.
इन के मुताबिक हमारा राष्ट्रवाद ‘हम भारतीय हैं’ पर आधारित है न कि हिंदू कौन है, पर आधारित है. एबीवीपी के गुंडे तर्क से नहीं जीत पा रहे हैं, इसलिए हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं.
पर आम लोगों की बड़ी चिंता जो गुरमेहर के पूरे सच से नावाकिफ थे, यह थी कि शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रवाद पर चर्चा नहीं होनी चाहिए और कहीं भी राष्ट्रविरोधी नारे नहीं लगाए जाने चाहिए. युवाओं को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए और इस तरह की नेतागीरी से दूर रहना चाहिए.
कालेजों या यूनिवर्सिटी में इस पर एतराज क्यों, क्या युवाओं को अपने विचार रखने का हक नहीं? क्या यह अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ षड्यंत्र नहीं? युवा आक्रोश ही देश का भविष्य बनता है. साल 1975 में जयप्रकाश नारायण ने युवाओं को इकट्ठा करना शुरू किया था और इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फेंकने में कामयाबी हासिल की थी.
एबीवीपी की बातें समझ से परे हैं. यह लोकतंत्र है जो सभी को अपनी बात कहने की आजादी देता है पर कोई गुरमेहर बोले तो उसे बजाय सीधे धर्म विरोधी करने के राष्ट्रद्रोही कह कर बहिष्कृत करने का षड्यंत्र, मुंह बंद करने जैसी बात नहीं तो क्या है. इस संवेदनशील मुद्दे का दिलचस्प ऐतिहासिक सच यह है कि न तो एबीवीपी को मालूम है कि हिंदू कौन हैं न ही भाजपा और आरएसएस को मालूम है और मालूम भी है तो वे इस सच से डरते और कतराते रहते हैं कि दरअसल, आदिवासी ही इस देश का मूल निवासी हैं बाकी सब बाहरी लोग हैं जिन्हें आर्य कहा जाता है शायद यही डर सत्ता पर काबिज रहने को उन्हें और हिंसक व आक्रामक बनाता है.