सामंती सोच की शिकार वसुंधरा राजे सरकार पानी नाक तक आने के बाद ही जागती है. हालात को समय रहते नहीं भांपने का खमियाजा आज राजस्थान के आमजन को भुगतना पड़ रहा है.

थोड़ा सा पीछे चलते हैं. समूचे प्रदेश में तकरीबन 3 महीने चली डाक्टरों की हड़ताल आखिरकार खत्म हो गई. सरकार की ओर से सभी मांगें माने जाने के बाद वे काम पर लौट आए.

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब सरकार को डाक्टरों की मांगें माननी ही थीं तो 3 महीने तक प्रदेश के मैडिकल इंतजाम को किस के भरोसे छोड़ा गया?

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब वसुंधरा सरकार की सुस्ती की वजह से बेवजह आंदोलन लंबा खिंचा हो. बीते एक साल का यह तीसरा बड़ा आंदोलन था, जिस ने सरकार की सुस्ती की वजह से तूल पकड़ा और आखिर में वह उस के लिए सिरदर्द बन गया.

बेवजह की हठ

राज्य के सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे डाक्टरों का संगठन अपनी 33 मांगों को ले कर 3 महीने तक काम छोड़ कर बैठा था. इस बीच सरकार ने 4 नवंबर, 2017 को संगठन के पदाधिकारियों को बातचीत के लिए बुलाया.

इस बैठक में चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ और चिकित्सा सचिव की मौजूदगी में चिकित्सा महकमे के अतिरिक्त निदेशक के डाक्टरों के खिलाफ टिप्पणी करने से माहौल बिगड़ गया. संगठन के पदाधिकारी न सिर्फ बैठक बीच में ही छोड़ कर आ गए, बल्कि प्रदेश के सभी डाक्टरों ने अपने इस्तीफे भी सरकार को भेज दिए.

अगले दिन चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ ने डाक्टरों को बातचीत के लिए तो बुलाया लेकिन संगठन के पदाधिकारियों के बजाय अपने चहेते डाक्टरों को न्योता दिया.

इस बैठक के बाद सराफ ने बयान दिया कि सरकार ने डाक्टरों की सभी मांगें मान ली हैं, लेकिन उन के संगठन के पदाधिकारी समझौते पर दस्तखत करने नहीं आ रहे.

दरअसल, डाक्टरों के संगठन के पदाधिकारियों को यह डर हो गया कि सरकार समझौता करने के बजाय ‘फूट डालो और राज करो’ की चाल पर काम कर रही है. इस में उलझने के बजाय वे 6 नवंबर, 2017 से हड़ताल पर चले गए.

इस से समूचे प्रदेश की मैडिकल व्यवस्था चरमरा गई. इस दौरान सरकार पूरी तरह से भरम में नजर आई. कभी डाक्टरों को बातचीत के लिए बुलाया गया तो कभी उन्हें राजस्थान आवश्यक सेवा कानून यानी रेसमा का डर दिखाया गया.

इस बीच सरकार ने प्रदेश के लड़खड़ाते मैडिकल इंतजाम को सुधारने के लिए कोई दूसरे फौरी इंतजाम भी नहीं किए. सरकार ने हड़ताल कर रहे डाक्टरों के खिलाफ सख्ती अपनाई. दर्जनभर डाक्टरों को आवश्यक सेवा कानून के तहत गिरफ्तार किया.

कुछ डाक्टरों पर दबाव बना कर उन्हें अस्पतालों में भी भेजा, लेकिन इस से हालात नहीं सुधरे. समय पर इलाज न मिलने से 125 लोगों की मौतें हो गईं और हजारों मरीज दरदर भटकते रहे. सरकार पर इतना दबाव आ गया कि आखिरकार उसे झुकना पड़ा.

चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ ने डाक्टरों के संगठन के पदाधिकारियों को बातचीत के लिए न सिर्फ बुलाया, बल्कि उन्हें रेसमा के तहत गिरफ्तार नहीं करने का आश्वासन भी दिया. तब समझौता हो गया.

इसी तरह सीकर में हुए किसान आंदोलन और गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के ऐनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग को ले कर हुए आंदोलन से भी सरकार समय रहते नहीं निबट पाई.

इन तीनों आंदोलनों की गंभीरता को न तो सरकार का खुफिया तंत्र भांप पाया और न ही इन को खत्म करने के लिए सरकार समय रहते कारगर नीति बना पाई. इस का अंजाम यह हुआ कि ये आंदोलन बड़े पैमाने पर फैल गए और इन से आम जनजीवन पर भी असर पड़ा. आखिरकार सरकार को आंदोलनकारियों की मांगों के सामने झुकते हुए समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

सितंबर, 2017 में सीकर में हुए किसान आंदोलन के समय भी सरकार का लचर रवैया सामने आया था. अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले कर्जमाफी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने सरीखी मांगों को ले कर शुरू हुआ यह आंदोलन 13 दिन तक चला, लेकिन इस की तैयारी 6 महीने से चल रही थी.

आंदोलन की शुरुआत में किसानों ने सीकर में महापड़ाव डाला तो भी सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी. सरकार ने इस आंदोलन को इस कदर नजरअंदाज किया कि कई दिनों तक आंदोलनकारियों से बातचीत करना भी जरूरी नहीं समझा. सरकार से किसानों का ही नहीं, सीकर के कारोबार व दूसरे संगठनों का गुस्सा बढ़ गया.

इस का नतीजा यह हुआ कि आंदोलन पूरे जिले में फैल गया. सड़क, बाजार, मंडी… सब बंद हो गए. बाकी जिलों में भी यह आंदोलन पैर पसारने लगा. विपक्ष के नेता भी आंदोलन के समर्थन में उतर आए.

इतना सब होने के बाद सरकार को आंदोलनकारी किसानों से बातचीत की सूझी. आखिरकार समझौता हुआ और आंदोलन खत्म हुआ.

ऐनकाउंटर से बवाल

आनंदपाल सिंह के ऐनकाउंटर की सीबीआई जांच के लिए हुए आंदोलन से निबटने में भी सरकार की लेटलतीफी सामने आई थी. इस कुख्यात गैंगस्टर का ऐनकाउंटर 24 जून, 2017 को हुआ था.

आनंदपाल के परिवार वालों और राजपूत समाज के नेताओं ने ऐनकाउंटर को फर्जी बताते हुए सीबीआई जांच की मांग की. परिवार वालों ने सीबीआई जांच के आदेश नहीं होने तक अंतिम संस्कार नहीं करने की जिद पकड़ ली. इस के बावजूद सरकार टस से मस नहीं हुई.

गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने तो यहां तक कह दिया कि पुलिस ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए अपराधी का ऐनकाउंटर किया है.

उन का कहना था, ‘‘अगर हम इस की सीबीआई जांच कराते हैं तो उन के मनोबल पर असर पड़ेगा और पुलिस काम नहीं करेगी. अगर लोग ऐनकाउंटर की सीबीआई जांच कराना चाहते हैं तो कोर्ट का दरवाजा खुला है. वे कोर्ट जाएं.’’

सरकार के इस रुख से राजपूतों का गुस्सा बढ़ता गया. 12 जुलाई, 2017 को आनंदपाल के गांव सांवराद में एक सभा हुई. सभा खत्म होने के बाद भीड़ हिंसक हो गई. इस में एक आदमी की मौत हुई और कई पुलिस वाले घायल हो गए. सरकार ने सख्ती दिखाते हुए इलाके में कर्फ्यू लगा दिया.

इस बीच मानवाधिकार आयोग ने अंतिम संस्कार के आदेश दे दिए. पुलिस ने अंतिम संस्कार भी करा दिया, लेकिन राजपूतों का गुस्सा शांत नहीं हुआ.

बवाल थमता न देख कर सरकार ने 17 जुलाई, 2017 को सीबीआई जांच की मांग मान ली. अगर सरकार शुरू में ही इस मांग को मान लेती तो इतना बवाल नहीं होता.

काले कानून से फजीहत

सरकारी मुलाजिमों को बचाने वाले बिल सीआरपीसी संशोधन विधेयक, 2017 को ले कर भी वसुंधरा राजे सरकार को मुंह की खानी पड़ी. विधानसभा के अंदर और बाहर भारी विरोध के बावजूद राजस्थान सरकार ने इस बिल को विधानसभा में पेश किया था.

गौरतलब है कि राजस्थान सरकार के इस विवादित अध्यादेश को कांग्रेस ने काला कानून बताते हुए जोरदार विरोध किया था. इस बिल के खिलाफ कांग्रेस ने जहां सदन से वाकआउट किया, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की अगुआई में विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया गया.

प्रशासन ने कांग्रेस के विरोध मार्च की इजाजत नहीं दी तो कांग्रेस ने गिरफ्तारियां दीं. सचिन पायलट ने इसे काला कानून बताते हुए कहा कि जब तक यह बिल वापस नहीं होगा तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे.

इस बिल को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. एडवोकेट एके जैन ने याचिका दायर कर दंड विधि राजस्थान संशोधन अध्यादेश, 2017 में अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताते हुए इस की वैधता को चुनौती दी.

नीति और नीयत में खोट

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने राज्य की भाजपा सरकार पर चुनावी वादे पूरे नहीं करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि इस के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए. सरकार हर मोरचे पर नाकाम रही है.

प्रदेश में लगातार बिगड़ती कानून व्यवस्था के चलते बलात्कार, हत्या, अपहरण और दलितों पर जोरजुल्म करने के मामले भी बढ़ रहे हैं.

सचिन पायलट ने कहा कि दलितों के शोषण के मामले में देश में राजस्थान पहले नंबर पर आ गया है जबकि महिला शोषण और बलात्कार में तीसरे नंबर पर आ गया है. इसी तरह हत्या व अपहरण के मामलों में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

राज्य में कई कर्मचारी संगठन अपनी मांगों को ले कर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन सरकार को उन की समस्याओं के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है. यही वजह है कि सरकार संगठनों के साथ किसी तरह की बातचीत भी नहीं कर रही है.

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