यकीन नहीं होता कि यह वही बबलू है जिस ने तकरीबन 14 साल पहले अपनी माशूका पार्वती (बदला हुआ नाम) और उस के घर वालों को खुलेतौर पर धौंस दी थी कि अगर उस की शादी पार्वती से न हुई तो वह खुदकुशी कर लेगा.
बबलू पर मरमिटने वाली पार्वती को तो अपने आशिक की यह अदा पसंद आई थी. साथ ही, उस के घर वाले भी बबलू का जुनून देख कर झुक गए थे और उन्होंने इन दोनों की शादी के बाबत ज्यादा नानुकर नहीं की.
तब बबलू भोपाल के बरखेड़ा में शराब की एक दुकान पर काम करता था और बांका जवान था. पार्वती के घर वालों को इसी बात पर एतराज था कि शराब की दुकान पर काम करने वाला मुलाजिम अच्छा आदमी नहीं हो सकता. वह कोई और गलत काम करे न करे, पर खुद तो जरूर शराबी होगा.
लेकिन बबलू उम्मीद से परे औरों से बेहतर शौहर साबित हुआ. अपनी बीवी का वह पूरा खयाल रखता था और अपने भीतर के आशिक को उस ने मरने नहीं दिया था.
पार्वती भी खुद को खुशकिस्मत समझती थी जो उसे इतना प्यार करने वाला शौहर मिला. दोनों खुश थे. यह खुशी उस वक्त और दोगुनी हो गई जब उन के यहां शादी के 3 साल बाद बेटा और फिर उस के भी 2 साल बाद एक प्यारी सी बेटी हुई.
शादी के बाद ही बबलू को भोपाल के नजदीक बैरसिया की एक शराब की दुकान में काम मिल गया था जिसे शराब बनाने वाली एक नामी कंपनी चलाती थी. बबलू चूंकि मेहनती और ईमानदार सेल्समैन था इसलिए उस की खासी पूछपरख थी. कंपनी के अफसरों की निगाह में वह जल्द ही चढ़ गया था. लिहाजा उसे तरक्की भी मिलने लगी थी और तनख्वाह बढ़ने के साथसाथ दूसरी सहूलियतें भी मिलने लगी थीं.