जनता को बेहतर डाक्टरी इलाज मुहैया कराने की तमाम सरकारी योजनाओं के बड़ेबड़े होर्डिंग भले ही लोगों का ध्यान खींचते हों, पर इन योजनाओं को असरदार तरीके से लागू न करने के चलते मरीजों का हाल बेहाल है.

अगस्त, 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मैडिकल कालेज में औक्सिजन की कमी से हुई सैकड़ों बच्चों की मौतें सरकारी अस्पतालों के बुरे हालात को उजागर करती हैं.

गौरतलब है कि गोरखपुर और फर्रुखाबाद के जिला अस्पताल में मरने वाले बच्चे उन गरीब परिवारों के थे, जो इलाज के लिए केवल सरकारी अस्पतालों की ओर ताकते हैं.

इसी तरह राजस्थान के बांसवाड़ा में महात्मा गांधी चिकित्सालय में 51 दिनों में 81 बच्चों की मौतें कुपोषण की वजह से हो गईं.

वहीं दूसरी ओर जमशेदपुर के महात्मा गांधी मैमोरियल अस्पताल में बीते चंद महीनों में 164 मौतें हुईं तो झारखंड के 2 अस्पतालों में इस साल अब तक 800 से ज्यादा बच्चों की मौतें हो गईं. इन में से ज्यादातर मौतें मैनेजमैंट की कमी की वजह से हुईं.

स्वास्थ्य सेवाएं वैंटीलेटर पर

मध्य प्रदेश के 51 जिलों में 8,764 प्राथमिक उपस्वास्थ्य केंद्र, 1,157 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 334 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 63 सिविल अस्पताल और 51 जिला अस्पताल हैं, पर स्वास्थ्य सेवाएं वैंटीलेटर पर हैं.

सरकार नई स्वास्थ्य योजनाएं लागू कर रही है, लेकिन हकीकत में इस के नतीजे निराशाजनक ही रहे हैं.

सरकारी योजनाओं में फैला भ्रष्टाचार भी इस में अहम रोल निभा रहा है. गांवों में ठेके पर बहाल किए गए स्वास्थ्य कार्यकर्ता हफ्ते में एक दिन जा कर पंचायत भवन या स्कूल में थोड़ी देर बैठ कर बच्चों को टीके लगा कर या मरीजों को नीलीपीली गोलियां बांट कर अपने फर्ज को पूरा करना समझ लेते हैं.

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