इसी साल जुलाई के महीने में दिल्ली के मोतीनगर इलाके में एक कार जरा सी छू जाने पर कांवडि़यों ने कार को बीच सड़क पर लोहे की छड़ों और डंडों से तहसनहस कर डाला.
वारदात के वक्त पुलिस तमाशबीन बनी रही. कार में सवार शख्स को किसी तरह अपनी जान बचानी पड़ी.
ऐसे ही शाहजहांपुर के मोहम्मदी मार्ग पर बना रेलवे गेट बंद होने पर कांवडि़यों ने जम कर उत्पात मचाया. गेट खुलवाने के लिए वे गेटमैन के केबिन में घुस गए और जबरन गेट खुलवाने की कोशिश करने लगे.
गेट न खोलने पर कांवडि़यों ने गेट को तोड़ दिया और पथराव किया. इस बवाल के चलते कई घंटे तक यातायात बंद करना पड़ा.
बुलंदशहर में भी कांवडि़यों ने जम कर कहर बरपाया. एक कार चालक के साथ झगड़े के बाद कांवडि़यों ने कार में तोड़फोड़ की, कार सवार को मारापीटा और जब पुलिस आई तो पुलिस वालों के साथ हाथापाई करने लगे और पुलिस की गाड़ी में भी तोड़फोड़ की.
मुजफ्फरनगर में कांवडि़यों ने कार के छू जाने पर कार को तोड़ दिया. कार सवार को घायल कर दिया. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में दिखाया गया कि भगवा कच्छाबनियान पहने तकरीबन 15 कांवडि़यों ने कार को घेर रखा था और वे लाठीडंडों से तोड़फोड़ कर रहे थे.
दिल्ली से हरिद्वार मार्ग पर शराब पी रहे कांवडि़यों में से एक ने बोतल तोड़ कर दूसरे के पेट में घोंप दी. कांवडि़यों द्वारा रास्ते में शराब पीते हुए कई वीडियो वायरल हुए.
कांवडि़यों की गुंडागर्दी की ये घटनाएं एक ही हिस्से की हैं. देश के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह के हंगामों की खबरें भरी हुई हैं.
इस तरह की घटनाएं ऐसे वक्त
पर होती हैं जब सरकार, प्रशासन और सामाजिक व धार्मिक संगठन कांवडि़यों के लिए पलकपांवड़े बिछाए बैठा रहा और उन के लिए बेहतर से बेहतर इंतजाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
इस बार तो उत्तर प्रदेश की भगवा सरकार के डीजीपी प्रशांत कुमार द्वारा हैलीकौप्टर में सवार हो कर कांवडि़यों पर फूल बरसाए गए उसी तरह जैसे धर्मग्रंथों में देवताओं द्वारा ऋषियोंमुनियों पर बातबात में पुष्प वर्षा करने का जिक्र किया गया है.
वैसे, ज्यादातर पुष्प वर्षा दूसरों को सताने, पीड़ा देने की सलाह जैसी बातों पर की जाती थीं. कांवडि़यों के स्वागतसत्कार के लिए सड़कों पर जबरन कब्जा करने और चंदा वसूलना आम बात है. स्वागत वाले पंडालों में कांवडि़यों के मनोरंजन के लिए कानफोड़ू डीजे पर फूहड़ गीतसंगीत के रातभर बजने से आसपास के लोगों की नींद हराम होती है. मरीजों और बच्चों की पढ़ाई पर चाहे बुरा असर पड़े, धर्म के कारनामे जारी रहने चाहिए.
हर साल दिल्लीदेहरादून हाईवे कांवडि़यों की वजह से बंद करना पड़ता है. कांवड़ यात्रा के दौरान कांवडि़यों द्वारा इस रास्ते पर छेड़छाड़, बलात्कार, नशाखोरी, मारपीट, तोड़फोड़ करना आम बात है. आम लोगों को कांवडि़यों के चलते बड़ी परेशानी झेलनी पड़ती है.
पूरे रास्ते राहगीरों को धमकाते, कानून की धज्जियां उड़ाते, औरतों को देख कर बेहूदा फब्तियां कसते, लाठीडंडे से तोड़फोड़ करते इन की गुंडागर्दी जारी रहती है. बेकुसूर लोगों को जाम मेें फंसे रहना पड़ता है.
हर साल शिव की पूजा और शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने के नाम पर भारत में यह संगठित सनातन धार्मिक उन्माद देखा जा सकता है. पिछले कुछ समय से कांवडि़यों का सैलाब ज्यादा बढ़ रहा है जिन की अंधभक्ति का शिकार आम जनता को होना पड़ रहा है.
कौन हैं ये लोग
सदियों से धर्म के सताए ये वे लोग हैं जिन के साथ हिंदू धर्म ज्यादती करता रहा है. धर्मगं्रथों ने जिन्हें अछूत करार दिया. दूसरों की सेवा करना, जूठन खाना, उतरे हुए कपड़े पहनना और बस्तियों के बाहरी हिस्से में रिहायश करने का इन लोगों को ईश्वरीय आदेश मिला था. पढ़नेलिखने की इन को इजाजत नहीं थी. फिर भी किसी ने पढ़ने की हिम्मत दिखाई तो उस के कानों में पिघलता हुआ सीसा उड़ेल देने की सजा मुकर्रर थी.
ज्यादातर कांवडि़ए शूद्र, दलित होते हैं जिन्हें अब भाजपा ने भगवा पहनने की इजाजत तो दे दी है, पर उन का काम वही कहार बन कर बोझा ढोने का है. गंगा का कीचड़ भर कांवड़ ढो कर मंदिरों तक पहुंचाने का काम सौंप दिया गया है. यानी अब भी शूद्रों को ऊंची जाति के देवीदेवताओं की पूजा करने की इजाजत नहीं है.
सदियों से धार्मिक कर्मकांडों से दूर रखे गए ये लोग अब अपनी दबी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अराजकता का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं. इन में से ज्यादातर गरीब, अनपढ़ या कम पढ़ेलिखे बेरोजगार हैं.
आधे से ज्यादा कांवडि़ए नशाखोरी और छोटेमोटे अपराधों में लिप्त रहते हैं. दिल्ली के मोतीनगर इलाके की घटना में पकड़ा गया राहुल उर्फ बिल्ला अनपढ़ बेरोजगार है और पुलिस के मुताबिक वह चोरी के मामले में जेल भी जा चुका है.
कौन भेजता है
गंगा जैसे पवित्र तीर्थ स्थल से सावन के महीने में कांवड़ से जल ला कर शिव पर चढ़ाने से पाप कटने, पुण्य मिलने और इच्छाओं का पूरा होने का झांसा दे कर मंदिरों में बैठे पंडेपुजारी, धर्म के नाम पर मोटा चंदा वसूलने वाले धार्मिक संगठन निचली, पिछड़ी जातियों को धर्म के ऐसे पाखंडों की ओर धकेल रहे हैं.
पंडों की सलाह मान कर बड़ी तादाद में नौजवान कांवड़ ढोने चल पड़ते हैं, पर इन लोगों को अपनी जातीय सीमा के अंदर ही रखने की कोशिश की गई है कि तुम कहार बन कर ही रहोगे यानी सेवक हो तो दास की तरह ही रहोगे. निचले व पिछड़े भगवा पहन कर धार्मिक कर्मकांड करने से ही खुश हो रहे हैं. भाजपा, संघ यही तो चाहता है.
देश का तकरीबन 50 फीसदी पिछड़ा शूद्र नौजवान अब धर्म के ठेकेदारों के इस्तेमाल का हथियार बन रहा है. वह सोच रहा है कि धर्म उस का कल्याण करेगा. धर्म और राजनीति बिना दिमाग लेकिन शारीरिक बल वाले नौजवानों को अपने सियासी और धार्मिक मकसद के लिए उपयोग करने में माहिर है. उसे इस में कामयाबी भी मिल रही है क्योंकि जब तक लोग बेवकूफ बने रहेंगे, तब तक धर्म के धंधेबाजों की दुकानें चमकती रहेंगी.