कहानी- डा. अरुणा कपूर
अपने त्रिलोकीनाथ मामाजी परेशान हैं. उन से भी ज्यादा परेशान मामी त्रिदेवी हैं, जो अपनेआप को श्रीदेवी से कभी कम नहीं समझतीं. हां, तो मामामामी दोनों इसलिए परेशान हैं कि उन के भांजे की धर्मपत्नी बबली परेशान है और इस समय रात के 10 बजे उन के घर बिना भांजे को साथ लिए आ पहुंची है.
मामी की परेशानी बढ़ती जा रही है क्योंकि ‘बबली रात को यहीं रुकेगी’ का डर उन के बदन में कंपकंपी पैदा कर रहा है. वैसे मामामामी दोनों बबली और बब्बन से दो हाथ दूर रहने में ही अपनी सलामती समझते हैं पर आफत कभी फोन कर के तो आती नहीं.
मामी को आज तसल्ली इस बात की है कि हमेशा मामाजी के गले लग कर हंसने वाली बबली मामी के गले लग कर रो रही है.
रोती हुईर् बबली की तरफ देख कर मामाजी दहाड़े, ‘‘तो बब्बन की यह हिम्मत? अपनी सोने जैसी बीवी को छोड़ कर कोयले जैसी काम वाली का हाथ पकड़ता है?’’
‘‘हां मामाजी, सिर्फ हाथ ही नहीं पकड़ता बल्कि चोटी भी पकड़ता है और उसे पे्रमा कह कर बुलाता है. और भी बहुत कुछ कहता है...’’ कहतेकहते बबली रुक गई.
‘‘क्या कहता है वह भूतनीका?’’ मामी ने बब्बन के बहाने अपनी ननद को भी लपेटा. ननदभाभी के बीच होगी कोई पुरानी रंजिश.
‘‘देवी,’’ मामाजी बोले, ‘‘दीदी का इस में क्या दोष? बब्बन के घर तो होलीदीवाली के सिवा आती भी नहीं और हमारे घर आए तो 2-3 साल हो ही गए.’’
वह बहन के बारे में और कुछ कह डालें इस से पहले मामी फिर बोल उठीं, ‘‘अरे वाह, वह कितनी चटोरी हैं ये तो मैं ही जानती हूं. सारी कढ़ी चट कर जाती थीं और नाम मेरा आता था.’’