यह अंधविश्वास की हद ही है कि इनसान अपना भविष्य बेहतर बनाने के लिए तरहतरह के खटकरम, कर्मकांड, धार्मिकतांत्रिक अनुष्ठान करता रहता है. अपने फायदे के लिए लोग पशुपक्षियों की तो बलि चढ़ाते ही हैं, पेड़पौधों को भी बलि का बकरा बनाने से बाज नहीं आते हैं.

ऐसे अंधविश्वासी लोग मंदिरों में देवीदेवताओं से मन्नत मांगते हैं और इसी के बहाने पेड़पौधों पर जोरजुल्म करते हैं. उन्हें चारों ओर से धागों से लपेट कर उन के बढ़ने में बाधा डालते हैं, यह जानते हुए भी कि पेड़पौधे हमारी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा हैं. अगर वे नहीं रहेंगे तो इनसान का जिंदा रहना भी काफी मुश्किल हो जाएगा.

पेड़पौधे वायुमंडल में ज्यादा मात्रा में कार्बन डाईऔक्साइड यानी गंदी हवा सोखते हैं और ताजा हवा औक्सिजन के रूप में छोड़ते हैं जिस से हम सांस ले कर जीवित रहते हैं. पेड़पौधों से हमें और भी तरह का फायदा मिलता है. जहां पेड़पौधे ज्यादा होते हैं वहां की आबोहवा ताजा होती है. जल्दी बादल बनते हैं और हमें पानी मिलता है.

आज हम अंधविश्वास में जकड़ कर उन का सर्वनाश करने पर तुले हुए हैं. जिधर भी नजरें घुमा कर देखा जाए तो आज सब से ज्यादा जुल्म पेड़पौधों पर ही हो रहा है.

बताते चलें कि पहले के लोग खासकर नीम, पीपल और बरगद इन 3 पेड़ों को जरूर लगाते थे. इन से सब से ज्यादा मात्रा में औक्सिजन मिलती है और आबोहवा भी ठीक रहती है लेकिन आज धार्मिक अनुष्ठान के नाम पर सब से ज्यादा जुल्म इन्हीं तीनों पेड़ों के साथ हुआ है. नतीजा यह है कि अब ये पेड़ मिटने के कगार पर हैं.

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