हरियाणा के रोहतक से झज्जर की तरफ जाते हुए पहला गांव मायना आता है. सितंबर महीने के पहले हफ्ते में वहां उत्सव का माहौल था. गांव तो गांव आसपास के इलाकों के बहुत सारे लोग गरीब किसान विजेंदर सिंह पंघाल के छोटे से घर के सामने जमा थे. हों भी क्यों न, विजेंदर सिंह के छोटे बेटे महज 22 साल के अमित पंघाल ने कारनामा ही ऐसा किया था कि पूरा देश उस पर फख्र महसूस कर रहा था.

साल 2017 से मुक्केबाजी जगत की सुर्खियां बने अमित पंघाल ने इस बार जकार्ता, इंडोनेशिया में हुए 18वें एशियाई खेलों में लाइट फ्लाइवेट 49 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मैडल जीता था. अमित पंघाल से उन के अब तक के मुक्केबाजी के कैरियर, संघर्ष और निजी जिंदगी पर उन के पुश्तैनी घर पर बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश:

इस खेल की तरफ आप का रुझान कैसे हुआ?

मैं एक साधारण परिवार से हूं. मेरे पिता विजेंदर सिंह 10वीं जमात पास छोटे से किसान हैं. हमारी एक एकड़ जमीन है जिस पर गुजारे लायक अनाज हो जाता है. पिता की कोई और अतिरिक्त आमदनी नहीं है. अब तो वे थोड़े बीमार भी रहते हैं इसलिए इतना ज्यादा काम नहीं कर पाते हैं.

मेरी मां उषा रानी गृहिणी हैं. वे भी 10वीं जमात पास हैं. पर वे घर का कामकाज ही संभालती हैं.

जहां तक इस खेल की तरफ मेरे रुझान की बात है तो मेरे बड़े भाई अजय मुक्केबाजी सीखने कोच अनिल धनखड़ के पास जाते थे. मेरी उम्र उस समय 11-12 साल की रही होगी. मैं चूंकि बचपन में कमजोर शरीर का था तो भाई मुझे भी अपने साथ ले जाते थे कि थोड़ी मेहनत करूंगा तो भूख लगेगी, और जब भूख लगेगी तो खाना भी ढंग से खा लूंगा.

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