पिछले साल 1 मई को पटना के पूर्वी इंदिरानगर महल्ले में रहने वाले बिमल कुमार के  9 साल के बेटे ऋषभ का अपहरण हुआ और बाद में अपराधियों ने उस की हत्या कर दी. पुलिस ने छानबीन की, तो पता चला कि ऋषभ का अपहरण उस के पड़ोस में रहने वाले बिट्टू नाम के नौजवान ने किया था. रातोंरात पैसा कमाने की चाह में बिट्टू ने ऋषभ का अपहरण कर लिया और फिरौती के रूप में 10 लाख रुपए की मांग की. बच्चे को ज्यादा समय तक साथ रखने के खतरे को भांप कर बिट्टू ने कुएं में धकेल कर ऋषभ की हत्या कर दी. उस के बाद भी ऋषभ के पिता को फोन कर वह फिरौती की मांग करता रहा.

बिट्टू के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उसे दबोच लिया, पर मासूम ऋषभ अपने पड़ोसी की सनक का शिकार बन चुका था. पिछले कुछ समय से इस तरह के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ज्यादातर बच्चों को उन के  करीबी रिश्तेदार या पड़ोसी ही गायब करते रहे हैं.

भारतनेपाल सरहद पर मानव तस्करी की रोकथाम को ले कर काम कर रहे एक स्वयंसेवी संगठन ‘भूमिका विहार’ की डायरैक्टर शिल्पी सिंह बताती हैं कि मानव तस्करी के मामले में बिहार का सीमांचल इलाका ट्रांजिट पौइंट बनता जा रहा है.

इस संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 सालों में 519 बच्चे गायब हुए, जिन में लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं. शादी और नौकरी का लालच दे कर लड़कियों की तस्करी की जाती है. बच्चों खासकर लड़कियों को गायब करने के बाद उन्हें कोठों में पहुंचा कर देह धंधे में झोंक दिया जाता है.

पुलिस अफसर अशोक सिन्हा कहते हैं कि अपने आसपास खेलतेकूदते, स्कूल आतेजाते और छोटीमोटी चीज खरीदने के लिए महल्ले की दुकानों पर जाने वाले बच्चों को उठाना अपराधियों के लिए काफी आसान होता है.

परिवार और पड़ोस के लोगों की आपराधिक सोच और साजिश का पता लगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. पता नहीं, कब किस के अंदर का शैतान जाग उठे और वह किसी मासूम बच्चे को अपनी खतरनाक साजिश का निशाना बना डाले. ऐसे में हर मांबाप को अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है.

पुलिस हैडक्वार्टर के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में पटना से लापता हुए 575 बच्चों में से 299 बच्चों का ही पता चल सका है. ऐंटीह्यूमन ट्रैफिकिंग सैल में दर्ज मामलों से यह खुलासा हुआ है. अगस्त, 2016 में सब से ज्यादा 73 बच्चे गायब हुए थे. उन में से 40 बच्चों को ही पुलिस बरामद कर सकी.

सैल में दर्ज मामलों से पता चला है कि सब से ज्यादा बच्चे पटना के कदमकुआं और पटना सिटी इलाके से गायब हुए हैं. गायब हुए बच्चों की उम्र 2 से 10 साल के बीच की है.

बच्चों की गुमशुदगी के बढ़ते आंकड़ों पर काबू पाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर साल 2014 में देशभर में ‘आपरेशन स्माइल’ शुरू किया गया. मार्च, 2017 में इस आपरेशन के तहत बिहार में 185 बच्चों को उन के घर पहुंचाया गया.

सीआईडी के एडीजी आलोक राज का दावा है कि ‘आपरेशन स्माइल’ के तहत एक महीने के अंदर 185 बच्चों को बरामद किया गया. पटना में 53, पूर्णिया में 46, किशनगंज में 28, औरंगाबाद में 21, मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी में

8-8, लखीसराय में 7, गया और अरवल में 6-6 व बक्सर और बेगुसराय में

1-1 बच्चे को बरामद किया गया.

सभी बच्चों की उम्र 10-11 साल की थी और उन में से ज्यादातर रेलवे स्टेशनों पर लावारिश जिंदगी जी रहे थे. बच्चों के गायब होने के मामलों में पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती है, बल्कि सनहा दर्ज कर के छोड़ देती है. सुप्रीम कोर्ट में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ द्वारा दायर पीआईएल पर राज्य सरकार को दिशानिर्देश जारी किया गया है कि बच्चों के गायब होने की सनहा को 24 घंटे के अंदर एफआईआर में बदल दिया जाए.

अपहरण कर बच्चों के मांबाप से फिरौती वसूलने, बच्चों के गुरदे, लिवर, आंख वगैरह अंगों को बेचने, उन्हें गुलाम की तरह घर और फार्महाउस में काम कराने, शीशा, सीमेंट, कालीन जैसे कारखानों में मजदूर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए गायब किया जाता रहा है.

साथ ही, घर से भटके हुए बच्चों को दलाल बहलाफुसला कर मानव तस्करी करते हैं. इसी वजह से गायब हुए बच्चों का पता नहीं चल पाता है.

गायब किए गए बच्चों को मुंबई, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और जयपुर की चूड़ी फैक्टरियों में काम पर लगा दिया जाता है. इस के पीछे अपराधियों का बहुत बड़ा नैटवर्क काम करता है.

बिहार के किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जिलों के जरीए नेपाल से मानव तस्करी का धंधा फलफूल रहा है. ज्यादातर बच्चे गरीब और अनपढ़ परिवार के ही गायब होते हैं और ऐसे बच्चों के मांबाप अपने बच्चे के गायब होने की शिकायत थानों में दर्ज करने से घबराते हैं. उधर पुलिस महकमा भी मानव तस्करी को ले कर लापरवाह बना हुआ है.

पुलिस हैडक्वार्टर ने सीमांचल के सभी जिलों के एसपी को निर्देश दिया था कि मानव तस्करी के शिकार हुए बच्चों के फोटो, नाम और पता समेत पूरी जानकारी को महकमे की वैबसाइट पर अपलोड किया जाए. इस निर्देश को दिए सालभर से ज्यादा का समय बीत गया है, पर वैबसाइट को अपडेट नहीं किया जाता है. वैबसाइट पर कटिहार जिले के 18 बच्चों के गायब होने की जानकारी दर्ज है, पर 74 बच्चे गायब हुए हैं.

मगध यूनिवर्सिटी के प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि बच्चों के स्कूल, कालेज या कोचिंग, खेलनेकूदने, बाजार वगैरह जाने पर हर समय, हर जगह उन के मांबाप का नजर रखना मुमकिन नहीं है. अकसर ऐसा होता है कि किसी बच्चे के पिता दफ्तर में हैं, तो मां बाजार में. इस बीच उन का बच्चा स्कूल से घर आ जाता है और पड़ोस के ही अंकल या आंटी के पास मजे में रहता है. वे ही बच्चे को खाना भी खिला देते हैं. इस सब के पीछे इनसानी भरोसा ही काम करता रहा है. अब कुछ खुराफाती सोच वाले लोगों की वजह से यह भरोसा ही कठघरे में खड़ा हो चुका है.

मासूमों को बचाने के लिए उन के मांबाप को खासतौर पर सावधान रहने की जरूरत है. वे अपने बच्चों को यह बताते और समझाते रहें कि उन्हें किस के साथ कहीं जाना है या नहीं जाना है. आंखें मूंद कर किसी पर भी यकीन नहीं करना है, चाहे आप का उस से कितना भी करीबी या गहरा रिश्ता हो.

बच्चों को बताएं कि स्कूल आनेजाने के दौरान कोई आदमी अपने साथ चलने को कहे, तो न जाएं. बच्चों के दोस्तों और उन के मातापिता के मोबाइल फोन नंबर और घर के पते अपने पास जरूर रखें.

परिवार या पड़ोस के ऐसे लोगों के पास बच्चों को न जाने दें, जिन का आपराधिक रिकौर्ड रहा हो. किसी अनहोनी का डर होने पर तुरंत पुलिस को सूचना दें.

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