कुछ दिन पहले जब हमारे बाथरूम के वाशबेसिन में कुछ समस्या आई, तो नलसाज को बुलाया गया. नलसाज मतलब प्लंबर. उस ने आते ही कुछ मिनटों में वाशबेसिन ठीक कर दिया और अपने मेहनताने के तौर पर 100 रुपए ले लिए. सामान का खर्च अलग से था.

मैं ने उस प्लंबर से दिनभर की कमाई पूछी, तो वह हंसते हुए बोला कि अच्छाखासा कमा लेता है.मूल रूप से ओडिशा के रहने वाले उस प्लंबर कृपाशंकर ने मुझे एक और हैरानी से भरी बात बताई कि ओडिशा का केंद्रपाड़ा जिला नलसाजी यानी प्लंबिंग का हब है और वहां से देश के

70 फीसदी प्लंबर आते हैं. इतना ही नहीं, इस जिले के एक गांव पट्टामुंडाई में हर दूसरे घर में एक प्लंबर है. इस की वजह गांव पट्टामुंडाई में बना ‘स्टेट इंस्टीट्यूट औफ प्लंबिंग टैक्नोलौजी’ है.केंद्रपाड़ा के पट्टामुंडाई, औल, राजकनिका और राजनगर गांवों और उन के आसपास के कसबों में शानदार घर बने हुए हैं, जो प्लंबिंग की ही देन हैं. इन

गांवों के तकरीबन 1,00,000 लोग (यह तादाद ज्यादा भी हो सकती है) देशविदेश में बतौर प्लंबर का काम करते हैं.जहां एक तरफ देश के ज्यादातर नौजवान डाक्टर या इंजीनियर बनने के सपने देखते हैं, इस इलाके के नौजवान उम्दा प्लंबर बनने की सोचते हैं. पर ऐसा क्यों है? दरअसल, यहां के लोगों ने यह काम साल 1930 से सीखना शुरू किया था. तब कोलकाता में ब्रिटिश कंपनियों को प्लंबरों की जरूरत थी. केंद्रपाड़ा के कुछ नौजवानों को वहां नौकरी मिली.

1947 में देश के बंटवारे के समय जब कोलकाता के ज्यादातर प्लंबर पाकिस्तान चले गए, तो केंद्रपाड़ा के प्लंबरों के लिए यह एक सुनहरा मौका बन गया. इस के बाद दूसरे लोग भी काफी तादाद में यह काम सीखने लगे. आज हालात ये हैं कि अकेले पट्टामुंडाई गांव में 14 बैंकों की ब्रांच हैं.

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