मेरे एक गुरु हैं. उन से मैं विद्यालय में कई वर्ष पढ़ा. बहुत ही शांत स्वभाव के. गुस्सा कभी पास न फटका होगा. हर एक विद्यार्थी पर ध्यान दिया करते थे. विद्यालय के बाद भी घर बुला कर निशुल्क पढ़ाया करते थे. अन्य अध्यापकों की तरह ट्यूशन का लालच उन्हें न था. गरीब विद्यार्थी की आर्थिक सहायता भी वह कर दिया करते थे. मुझे कुछ कुछ याद है, उन के मातापिता भी उन के आज्ञाकारी होने की बहुत प्रशंसा किया करते थे. अन्याय भी न सहते थे. बलशाली भी थे. मैं आज उन्हीं की बदौलत चिकित्सक हूं. जब भी मिलते बहुत ही प्यार से मिलते. मैं उन का बहुत आदर करता था, परंतु अब उन का देहांत हो गया है. मेरे पास उन का चित्र है, सोचता हूं, उस को बड़ा करवा कर अपने घर में लगा लूं ताकि उन की विशेषताएं मुझे याद रहें और मैं उन को अपने जीवन में अभ्यास में लाऊं तभी उन का चित्र लगाने का लाभ है वरना खाली चित्र टांगने से उन की विशेषताएं मेरे में नहीं आएंगी. इसलिए मैं अभी उन का चित्र टांगने के बारे में असमंजस में हूं.

परंतु मैं समाज में तो  कुछ और ही देखता हूं. लोगों ने अपने घरों में कुछ महान लोगों के चित्र टांग रखे हैं तथा उन की पूजा करते हैं. यहां तक तो ठीक है कि वे महान पुरुष आदरणीय तथा पूजनीय हो सकते हैं. उन का चित्र टांग कर उन की पूजा का तभी लाभ है जब वे उन के अच्छे कर्मों का अनुसरण करें. परंतु मैं तो यह देखता हूं कि कोई भी पूजक उन का अनुसरण नहीं करता और उन की पूजा उस महान व्यक्ति के आगे कुछ मांगने, अपनी समस्याओं का समाधान करने, अपनी तरक्की, अपना प्रमोशन, गलतियों के लिए माफी, ब्याह, बीमारी के लिए प्रार्थना और आरती के रूप में उस व्यक्ति की चापलूसी बारबार माला फेर कर उस का नाम ले कर उस की प्रशंसा करना है.

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