लेखक- पंकज कुमार यादव

कोरोना महामारी भले ही देश पर दुनिया के लिए त्रासदी बन कर आई है, पर कुछ धूर्त लोगों के लिए यह मौका बन कर आई है और हमेशा से ही ये गिद्ध रूपी पोंगापंथी इसी मौके की तलाश में रहते हैं.

जैसे गिद्ध मरते हुए जानवर के इर्दगिर्द मंडराने लगते हैं, वैसे ही भूखे, नंगे, लाचार लोगों के बीच ये पोंगापंथी उन्हें नोचने को मंडराने लगते हैं. फिर मरता क्या नहीं करता की कहावत को सच करते हुए भूखे लोग, डरे हुए लोग कर्ज ले कर भी पोंगापंथियों का पेट भरने के लिए उतावले हो जाते हैं.

उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन का बीमार बेटा बीमारी से मुक्त हो जाएगा. उन का पति जो पिछले 5 दिनों से किसी तरह आधे पेट खा कर, पुलिस से डंडे खा कर नंगे पैर चला आ रहा है, वह सहीसलामत घर पहुंच जाएगा. फिर भी उन के साथ ऐसा कुछ नहीं होता है. पर कर्मकांड के नाम पर, लिए गए कर्ज का बोझ बढ़ना शुरू हो जाता है.

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कुछ ऐसी ही घटना कोरोना काल में झारखंड के गढ़वा जिले में घटी है. सैकड़ों औरतों के बीच यह अफवाह फैलाई गई कि मायके से साड़ी और पूजन सामग्री मंगा कर अपने आधारकार्ड और पासबुक के साथ सूर्य को अर्घ्य देने से उन के खाते में पैसे आ जाएंगे और कोरोना से मुक्ति भी मिल जाएगी.

यकीनन, इस तरह की अफवाह को बल वही देगा, जिसे अफवाह फैलाने से फायदा हो. इस पूरे मामले में साड़ी बेचने वाले, पूजन सामग्री, मिठाई बेचने वाले और पूजा कराने वाले पोंगापंथी की मिलीभगत है, क्योंकि इस अफवाह से सीधेसीधे इन लोगों को ही फायदा मिल रहा है.

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