मेरा नाम आयशा राउत है और मैं एक गरीब परिवार से हूं. 17 साल की उम्र में मेरे साथ जो घटना घटी, मैं उसे आप सब से शेयर करना चाहती हूं. मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ जो कुछ हुआ, वह किसी और के साथ हो. फरेबी और धोखेबाज लोगों से आप सावधान रहें. फरेबी लोग आप के अपने या पड़ोसी भी हो सकते हैं, जिन पर आप आंखें बंद कर के विश्वास करते हैं. मेरा परिवार उड़ीसा के जिला सुंदरगढ़ के एक छोटे से गांव रानी बगीचा में रहता है. परिवार में मांबाप के अलावा मैं और मेरी बड़ी बहन पिंकी थी. मांबाप बड़े किसानों के खेतों में दिन भर काम करते थे, उस के बदले में जो अनाज मिलता, उस से ही जैसेतैसे घर का गुजारा हो पाता था. जब घर में खाने तक के लाले पड़े हों तो ऐसे में पढ़ाई के बारे में सोचना हास्यास्पद था. गांव के जब कुछ बच्चे स्कूल जाते तो मैं भी सोचा करती थी कि काश मैं भी स्कूल जाती. पर मेरी यह इच्छा दबी रह गई.
मेरी मां और बाप दोनों ही शराबी थे. जब वे मजदूरी पर नहीं जाते तो चावल के मांड से बनाई शराब पी कर नशे में धुत पड़े रहते थे. हम दोनों बहनें उन्हें शराब पीने को मना भी करती थीं, पर हमारी बात माननी तो दूर, वे हमें डांट देते थे. हम लड़कियां थीं, इसलिए हमारी सही बात पर भी तवज्जो नहीं दी जाती थी.
बड़ी बहन जवान हुई तो उस की शादी रानी बगीचा के ही सुनील कुल्लू से कर दी. बहन के ससुराल जाने के बाद घर में मेरा मन नहीं लगता था. उस से बातचीत कर के मेरा दिन कट जाता था. मैं जब घर पर अकेली होती तो गांव के लड़के मेरे घर के आसपास जुटे रहते. मेरी उम्र यही कोई 17 साल हो चुकी थी. उन लड़कों के वहां मंडराने का मतलब मैं अच्छी तरह जान गई थी. मैं समझ गई थी कि वे मेरी गरीबी और मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं. इसलिए जब तक वे घर के बाहर खड़े रहते, मैं अपने घर से बाहर नहीं निकलती थी.