साल 2013 में एक फिल्म आई थी ‘ये जवानी है दीवानी’. रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की इस फिल्म में 4 जवान दोस्तों की जिंदगी पर फोकस किया गया था, जिस में महंगी डैस्टिनेशन शादी को बड़े जोरशोर से दिखाया गया था.
साथ ही, उस शादी में शराब पानी से ज्यादा परोसी गई थी.फिल्म के हर दूसरे सीन में कोई न कोई शराब का गिलास हाथ में लिए खड़ा होता है और किसी को इस बात से परहेज नहीं था कि मर्द शराब पी रहा है या औरत. बूआ, चाचा, मामा और भानजेभतीजी सब नशे के आगोश में थे.
ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी शराब कंपनी ने फिल्म में पैसा लगाया हो.साल 1984 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘शराबी’ में तो एक गाना ही था कि जहां ‘चार यार मिल जाएं वहीं रात हो गुलजार…’ इस फिल्म का हीरो शराबी का किरदार निभा रहा था.
जब वही ऐसा गाना गाएगा, तो समझ जाइए कि शराब ही रात गुलजार करने का एकलौता सहारा होगी. उस की कार की डिक्की में ही बार बना हुआ था, जिस में शराब की बोतलें सजी थीं.और तो और, फिल्म ‘दबंग’ में पुलिस चुलबुल पांडे का किरदार निभा रहे सलमान खान ‘हम का पीनी है, पीनी है, पीनी…’ कहते हुए जरा भी नहीं झिझकते हैं.
खाकी वरदीधारी सिर पर बोतल धर कर बेहूदगी से मटक रहे होते हैं.शराब के गाने पर तो हनी सिंह ने हद ही कर दी. ‘चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज का…’ गा कर उन्होंने नई पीढ़ी को जता दिया कि शराब किस तरह हमारी जिंदगी में घुस चुकी है.
कव्वाली हो या गजल, रैप हो या दुख भरा गीत या फिर शादी के डीजे पर बजने वाले गाना, शराब का गुणगान इस तरह करते नजर आ रहे हैं, जैसे किसी ने अगर शराब नहीं पी है तो उसे जीने का सलीका ही नहीं आया है.
फिल्मों में काम करने वाले सैलेब्रिटी असल जिंदगी में भी शराब के चसके से दूर नहीं रह पाते हैं. इन की पार्टियों में शराब की खूब खपत होती है. रात को बहुत से फिल्म कलाकार नशे में झूमते कैमरे में कैद होते देखे गए हैं.
अब तो उन के बच्चे भी ऐसी स्टार पार्टियों में शराब के शौकीन होते जा रहे हैं. संजय दत्त, रणबीर कपूर, मनीषा कोइराला, सुष्मिता सेन ने तो कबूल किया हुआ है कि एक समय वे सब शराब की गिरफ्त में रह चुके हैं.
शराब को इस तरह ग्लैमराइज कर के फिल्म वाले तो करोड़ों रुपए कमा लेते हैं, पर ऐसी फिल्में देख कर शराब पीने वाले आम लोगों खासकर नई पीढ़ी का जिस तरह बेड़ा गर्क हो रहा है, वह चिंता की बात है. हमारे देश में शराब की खपत इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि इस तस्करी हद पर है. एक बानगी देखिए :
* अगस्त, 2023. पंजाब से गुजरात शराब ले जाते एक ट्रक को अहमदाबाद हाईवे पर पकड़ा गया. ट्रक से 940 कार्टन शराब जब्त करने के साथसाथ 2 लोगों को भी गिरफ्तार किया गया. उस शराब की कीमत तकरीबन एक करोड़ रुपए आंकी गई. ट्रक में बुरादा भर कर उस के भीतर शराब छिपाई गई थी.
* अगस्त, 2023. बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की पुलिस ने भारी मात्रा में विदेशी शराब से लदे एक ट्रक को जब्त किया. इस दौरान ट्रक का मालिक और ड्राइवर भी गिरफ्तार हुआ. जब्त ट्रक समेत शराब की कीमत सवा करोड़ रुपए बताई गई.
* जुलाई, 2023. पुलिस और स्पैशल टास्क फोर्स ने हरियाणा से तस्करी कर बिहार जा रहे एक ट्रक से गैरकानूनी शराब पकड़ी. पुलिस ने तस्करों को भी गिरफ्तार किया. कीटनाशक दवाओं के नीचे शराब की पेटियां भरी हुई थीं. इन चंद खबरों से अंदाजा हो जाता है कि भारत में शराब की इतनी ज्यादा खपत है कि यहां शराब की तस्करी धड़ल्ले से होती है.
आंकड़ों की बात मानें, तो एक स्वैच्छिक संगठन कंज्यूमर वौइस के मुताबिक, भारत में प्रति व्यक्ति शराब (42 फीसदी से ज्यादा अलकोहल) की खपत 13.5 लिटर सालाना है, जो दुनिया में सब से ज्यादा है.एक और रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में तकरीबन 16 करोड़ लोग अलकोहल का सेवन करते हैं. इन में 95 फीसदी मर्द हैं, जिन की उम्र 18 से 49 साल के बीच है.
एक सर्वे कंपनी क्रिसिल द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में 5 राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के लोग देश में बिकी कुल शराब का तकरीबन 45 फीसदी सेवन कर गए थे.सरकार को टैक्स से मतलबदिक्कत यह है कि ‘शराब है खराब’ की बात तो हर कोई जानता है, इस के बावजूद भारत में इस सामाजिक बुराई की खपत में पिछले कुछ साल में (साल 2010 और साल 2017 के बीच) 38 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई थी.
एक तरफ शराब से मिलने वाले मुनाफे से सरकार अपना खजाना भरने में बिजी है, वहीं दूसरी तरफ घर नशे की इस आफत से टूट रहे हैं, खत्म हो रहे हैं, पर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है.सरकार के रेवैन्यू कलैक्शन में 10 से 15 फीसदी तक की हिस्सेदारी शराब की बिक्री से मिलने वाले टैक्स की होती है.
उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों के टैक्स रेवैन्यू में तो 20 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी शराब की है.मार्चअप्रैल, 2020 में कोरोना की वजह से जब लौकडाउन लगा तो शराब की दुकानें भी बंद कर दी गई थीं.
इस से सरकारों को बहुत नुकसान हुआ था. लेकिन जब शराब की दुकानें फिर खुलीं तो एक दिन में ही सरकारों ने खूब कमाई की.‘आज तक’ की एक खबर के मुताबिक, अकेले उत्तर प्रदेश में एक दिन में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की शराब बिकी थी.
वहीं, महाराष्ट्र सरकार को भी एक दिन में 11 करोड़ रुपए से ज्यादा का रेवैन्यू मिला, जबकि दिल्ली सरकार ने हफ्तेभर में 235 करोड़ रुपए की शराब बेच दी थी.परिवार होते बरबाद‘शराब की लत’ ये 3 ऐसे भयावह शब्द हैं, जो हर तीसरे घर को लीलते दिख रहे हैं.
चूंकि शराब पीने का चसका कम उम्र में लग जाता है और चढ़ती जवानी में ही यह लोगों को अपनी चपेट में ले लेती है. लिहाजा, यह शराबी के साथसाथ उस के परिवार को भी तबाह कर देती है.‘अमर उजाला’ अखबार में साल 2020 में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में शराब के कहर पर एक रिपोर्ट छपी थी.
उस में बड़ी गंभीर जानकारी दी गई थी कि एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल यूनिवर्सिटी के शिक्षा संकाय ने 2 साल पहले उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के एक इलाके में शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक दशा पर एक रिसर्च कराई थी.
इस में बेहद चौंकाने वाली बात यह थी कि पुरुषों की औसतन मृत्यु आयु 37.5 साल (सामान्य मृत्यु आयु 50 साल से ऊपर को छोड़ कर) आई थी.इस की वजह शराब से बीमारी लगना थी. यूनिवर्सिटी के गैस्ट टीचर आशु रौलेट ने चमोली के जोशीमठ इलाके में परिवारों के सामाजिक लैवल की स्टडी की थी, जिस में पिछले 25 सालों में 50 फीसदी लोगों की मौत घर में बनाए जाने वाली कच्ची शराब से हुई थी.किसी घर में शराब के सेवन से 35 साल में, तो किसी घर में 40 साल में घर के कमाऊ सदस्य की मौत हो गई थी.
इस वर्ग में सिर्फ 3 फीसदी ही ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं. 21 फीसदी ने प्राइमरी और 18 फीसदी ने मिडिल के बाद पढ़ाई छोड़ दी. शराब पीने से कमाऊ सदस्य की अचानक मौत ने इन की पढ़ाई छुड़ा दी. माली हालत बिगड़ने पर बच्चों को पढ़ाई छोड़ कर मजबूरन कोई रोजगार करना पड़ा.ये हालात सिर्फ तथाकथित ‘देवभूमि उत्तराखंड’ के ही नहीं हैं, कमोबेश भारत के हर राज्य में शराब ने अपनी जानलेवा जड़ें जमाई हुई हैं.
शर्म और दुख की बात तो यह है कि देश की तमाम सरकारें इस दानव की ‘होम डिलीवरी’ कराने पर आमादा दिखती हैं, जबकि शराब की लत एक ऐसी बुराई है, जो न सिर्फ पीने वाले पर ही असर डालती है, बल्कि हत्या, रेप, खुदकुशी या मोटरगाड़ी हादसों की एक बड़ी वजह है. इस ‘बेहया नशे’ की खासीयत यह है कि यह हर तबके को अपने में डुबो कर उस का दम घोंट देने की ताकत रखती है.
साइकोलौजिस्ट तबके ने अपनी स्टडी में पाया है कि शराबी के खून में अलकोहल की मात्रा एक फीसदी हो जाती है, तो उसे मदहोश समझा जाता है. 12 फीसदी मात्रा होने पर शराबी की चालढाल बदल या बिगड़ जाती है, जबकि यही मात्रा 15 फीसदी होने के बाद हद से ज्यादा मदहोश हो जाता है. ऐसे लोग अपनी जिंदगी की बाजी हार चुके होते हैं.
उन की सामाजिक इज्जत की धज्जियां उड़ चुकी होती हैं और उन पर हमेशा डर हावी रहता है.सरकार मंदिरों में उलझी हैपिछले 10 साल से इस देश में एक ही समस्या रह गई है कि किस तरह यह हिंदू राष्ट्र बन जाए. इस के लिए हर गलीमहल्ले में मंदिरों की बाढ़ सी आ गई है, जहां औरतों का जमावड़ा लगा रहता है.
दावा किया जाता है कि मंदिर लोगों की जिंदगी सुधार रहे हैं, पर जो औरतें उन में सिर नवाती फिरती हैं, उन्हीं के घर शराब से बरबाद हो रहे हैं, पर मजाल है कि कहीं कोई सुनवाई हो रही हो. पंडेपुजारी इन्हीं औरतों से व्रतउपवास के नाम पर पैसे तो बटोर लेते हैं, पर शराब से जुड़ी उन की समस्या पर मुंह से दो कड़े बोल नहीं फूटते हैं.
सरकार अगर यह मानती है कि पंडे समाजसुधारक होते हैं, तो वह क्यों नहीं उन्हें शराबबंदी के काम में लगाती है? क्यों नहीं पुजारी घरघर जाएं और शराबियों को शराब से दूर रहने की बात कहें? फिर देखते हैं कि ऊपर वाले के इन नुमाइंदों की शराबी कितनी सुनते हैं.याद रखिए कि शराब ऐसा नशा है, जो लोगों को धीरेधीरे अपनी चपेट में लेता है.
यह पैसे, सेहत, सामाजिक इज्जत के साथसाथ जिंदगी पर भी वार करता है. इस सब के बावजूद इस ‘डायन’ से पीछा छुड़ाया जा सकता है, बस कुछ बातों को गांठ बांध कर रखना होता है, जैसे :* आप अपने शराब छोड़ने के फैसले के बारे में अपने परिवार और दोस्तों को जरूर बताएं और उन से यह कहने में कतई न झिझकें कि वे आप पर नजर रखें.
कभी शराब पीने की ललक उठे तो वे आप को सपोर्ट करें कि इस से बचा जाए.* अपनेआप को बिजी रखें. ऐसे काम करें, जिन में आप को शारीरिक मेहनत करनी पड़े. ऐसा करने से आप तंदुरुस्त रहेंगे. आप को अच्छी नींद भी आएगी.
* अपने शराबी दोस्तों की संगत से बचें. उन के शराब पीने के समय उन के पास कतई न जाएं.* शराब छोड़ने के पहले 2-3 हफ्ते के दौरान आप को शराब के आकर्षण से बचना होगा. आप घर पर रखी बोतलें फेंक दें और उन जगहों पर न जाएं, जहां आप बैठ कर शराब पीते थे.
* आप उन सारी बातों की लिस्ट बनाएं, जो आप को शराब पीने के लिए उकसाती हैं. उन्हें करने से बचें.
* अपनी सेहत सुधारने के साथसाथ परिवार को भी देखें कि आप के इस बुराई से दूर होने पर उन्हें कितनी दिमागी राहत मिलती है.शराब सेहत से ज्यादा गरीब के पैसे को चूसती है. इस तबके में इतना सोचनेसमझने की ताकत नहीं होती है कि जिस फिल्म को वह मनोरंजन के नजरिए से देखता है, वहां कोई हीरो शराब को हीरो बना कर पेश करे, तो वह गरीब भी यह मान लेता है कि ‘अंगूर की बेटी’ इतनी भी नुकसानदेह नहीं है.
धीरेधीरे वह शराब पीता है और फिर बाद में शराब उसे पीती है. उसे तन, मन और धन से कंगाल कर देती है.रहीसही कसर वर्तमान सरकार के नएनए बनते मंदिर पूरी कर रहे हैं. वहां से मोक्ष का रास्ता तो मिलने की गारंटी है, पर किसी शराबी का नशा छुड़ाने का कोई उपाय नहीं बताया जाता है.