धर्म के ठेकेदार, भ्रष्ट नेता व घूसखोर अफसर भले ही हर दिन अंधी कमाई करते हों, लेकिन मेहनतकश व ईमानदार लोग गुजारे लायक पैसा भी कड़ी मशक्कत कर के कमा पाते हैं. इस के बावजूद बहुत से कौए, गिद्ध, चील, घुन व दीमक जैसे लोग गाढ़े पसीने की उन की कमाई नोचने में लग जाते हैं. मसलन, धर्म की आड़ में दाढ़ीचोटी वाले, रिश्वत के नाम पर सरकारी अफसर और मुलाजिम व सहूलियतों के नाम पर सरकारें जनता की जेबें हलकी करती रहती हैं.
हालांकि टैक्स के रूप में वसूले गए जनता के पैसे का पूरा व सही इस्तेमाल बेशक जनता को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए होना चाहिए, लेकिन अफसोस यह है कि ऐसा नहीं होता.
कुरसी पर काबिज नेता व अफसर जनता के पैसे को अपना समझते हैं व मनमाने तरीकों से खूब अनापशनाप खर्च करते हैं. दौरों व बैठकों की आड़ में सैरसपाटे, मौजमस्ती करने का चलन कोई नया नहीं है, लेकिन सरकारी फुजूलखर्ची रोकना जरूरी है.
माले मुफ्त दिले बेरहम
जनता का पैसा सरकारी दफ्तरों और महंगी गाडि़यों वगैरह पर बड़ी बेरहमी से खर्च किया जाता है. सरकारी इमारतों को आलीशान बनाया जाता है. सरकारी महकमे व उन के दफ्तर जनता को काबू करने, उन्हें सहूलियतें देने, नियमकानून चलाने के लिए हैं. उन्हें कामचलाऊ किफायती व सादा होना चाहिए, लेकिन वे सरकारी मंदिर बन रहे हैं. जनता की पीठ पर बेहिसाब बोझ डाल कर मजे लूटना कहां की अक्लमंदी है
जनता के पैसे से तो जनता को ही सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता, इसलिए पैसे की कमी से वक्त पर काम नहीं होता. टूटी सड़कें व पुरानी रेल पटरियां चटकी पड़ी रहती हैं. नदियों व रेलवे स्टेशनों पर पुराने, छोटे व कमजोर पुलों पर अकसर जानलेवा हादसे होते रहते हैं.