पहले त्योहार मनाने का मकसद यह होता था कि जब आदमी मेहनत कर के थक जाए, तो इस बहाने खुशियां मना ले. भारत के गांवों की बात करें, तो त्योहार ही ऐसा मौका होता था, जब वहां रहने वाले खुशियां मनाने के लिए समय निकाल पाते थे. उन के आसपास ऐसा माहौल बन जाता था और तब वे नए कपड़े पहनने और लजीज पकवान का स्वाद लेते थे.

भारत में दीवाली का त्योहार अपनी अलग पहचान लिए हुए है. इसे रोशनी का त्योहार कहा जाता है, पर आज के दौर में माहौल बदल गया है. धर्म की दुकानदारी त्योहार की खुशियों पर भारी पड़ रही है.

समाज को इस तरह से बहका दिया गया है कि त्योहार पर पूजापाठ का खर्च ही उसे मनोरंजन लगने लगा है. इस में मंदिर सजाने वालों और पूजापाठ का सामान बेचने वालों की मौज हो रही है. गांवदेहात में तो त्योहारों के बहाने पैसा और समय दोनों खर्च होता है.

कोरोना काल में बेरोजगारी के चलते बहुत से लोग शहर छोड़ कर गांव आए थे. उन के पास पैसा नहीं था. खाने के लिए मुफ्त अनाज की राह देख रहे थे. बच्चों को पढ़ाने के लिए फीस और कौपीकिताबें नहीं थीं. बीमारी के इलाज के लिए पैसा नहीं था. इस दौर के खत्म होते ही भंडारे लगने लगे. मेले में लोगों की भीड़ जुटने लगी. मंदिरों में चढ़ावा चढ़ने लगा. कहीं से कोई आर्थिक संकट नहीं दिख रहा था.

पहले हर त्योहार एक क्षेत्र तक सीमित रहता था, पर अब सोशल मीडिया पर धर्म के प्रचार, टैलीविजन और फिल्मों को देख कर पूरे देश में हर त्योहार मनाया जाने लगा है.

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