इस फिल्म का हीरो एक दफ्तर में क्लर्क था जिस की शादी तय हो जाती है तो वह सेक्स की जानकारियों के लिए कामसूत्र जैसी किताबें पढ़ने लगता है.

फिल्म ‘अनुभव’ का वह सीन बड़े दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है जिस में हीरो निरोध खरीदने दुकान पर जाता है, तो बेहद घबराया हुआ रहता है और रास्तेभर इस बात की प्रैक्टिस करता हुआ जाता है कि दुकानदार से निरोध मांगना कैसे है.

इस फिल्म की हीरोइन पद्मिनी कोल्हापुरे सयानी हो जाने के बाद भी बच्चों की तरह शरारत करती खेलती रहती है. वह शादी और सैक्स का मतलब ही नहीं समझती है.

फिल्म का एक और सीन दर्शकों को खूब हंसा गया जिस में पद्मिनी कोल्हापुरे अपने छोटे भाई के साथ मिल कर शेखर सुमन के सूटकेस से निरोध निकाल कर उन्हें गुब्बारों की तरह फुला कर आंगन में टांग देती है.

ऐसे आती है जागरूकता

इस एक फिल्म के कुछ सीन देख कर नौजवानों में कंडोम को ले कर न केवल जागरूकता आई थी, बल्कि वे छोटे परिवार की अहमियत भी समझने लगे थे. उस दौर में सरकार ने छोटे परिवार, परिवार नियोजन और निरोध का जम कर प्रचार किया था लेकिन उसे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली थी.

कंडोम बनाने वाली प्राइवेट कंपनियां जब मैदान में आईं तो उन्होंने सब से पहले प्रचार करने का तरीका बदला और तरह-तरह के लुभावने कंडोल बनाना शुरू किए, तो देखते ही देखते कंडोम के बाजार और कारोबार ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि अब लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं रह गई है कि कंडोम से आप न केवल परिवार छोटा रख सकते हैं, बल्कि कई सैक्स रोगों से भी खुद को बचा कर रख सकते हैं.

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