पाकिस्तान के आम चुनाव का नतीजा अप्रत्याशित नहीं है. और न ही इसे लेकर होने वाली प्रतिक्रियाएं. इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ यानी पीटीआई की इस जीत को कोई दूसरा दल मानने को तैयार नहीं दिख रहा. 2013 के आम चुनाव में इमरान खान एकमात्र ऐसे शख्स थे, जिन्होंने चुनावी नतीजों को खारिज किया था. इस बार भी वह एकमात्र ऐसे नेता है, जो इस नतीजे को स्वीकार कर रहे हैं. जब तक यह सरकार रहेगी, उनकी वैधता पर सवाल उठते रहेंगे.

इमरान खान के नए वजीर-ए-आजम बनने के कयास चुनाव के पहले से ही लगाए जा रहे थे. उनके लिए पाकिस्तानी फौज ने पिच तैयार की थी. जाहिर है, जीत इमरान की पीटीआई की ही होनी थी. हां, देखने वाली बात अब यह होगी कि इस ‘डीप स्टेट’ की अंपायरिंग में इमरान खान कब तक खेल पाते हैं? डीप स्टेट वहां की फौज व खुफिया एजेंसी आईएसआई के हुक्मरानों का वह गुट है, जो हुकूमत पर हावी रहता है. इमरान खान तुनक मिजाज किस्म के शख्स हैं, लिहाजा खतरा है कि अगले कुछ महीनों में वह ‘हिट विकेट’ भी हो सकते हैं.

इमरान खान जितनी आसानी से वजीर-ए-आजम की कुर्सी हासिल करते दिख रहे हैं, उनके लिए सरकार चलाना उतना ही मुश्किल जान पड़ता है. सबसे बड़ी चुनौती उन्हें अपनी स्वीकार्यता को लेकर आने वाली है. कानून बनाने में भी इमरान खान को दुश्वारियों का सामना करना पड़ेगा. यह तय है कि सीनेट (ऊपरी सदन) में कम से कम तीन वर्षों तक पीटीआई को बहुमत नहीं मिलने वाला. चुनाव के दरम्यान चले इमरान के जुबानी तीर इतने तीखे थे कि दूसरे दलों के लिए उसका दर्द भुला पाना आसान नहीं होगा. ऐसे में, शायद ही सभी पार्टियां मिलकर काम कर पाएंगी.

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