सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार पर फैसला देते हुए भगवा ब्रिगेड की ज्यादतियों का पूरा ध्यान रखा है, यह स्पष्ट है. जिन शब्दों में उस ने निजता के अधिकार को न केवल मौलिक अधिकार बताया है बल्कि उस को किसी भी संशोधन से कम करने के सरकार, तानाशाही संसद, कट्टरपंथी शासक, पार्टी के अधिकारों से परे रखा है, वे बेहद सख्त और स्पष्ट हैं.
सरकार के प्रधानमंत्री और उन के वित्त मंत्री, जो अपने को सार्वभौमिक मंत्री मानते हैं, आम नागरिक को अपनी कठपुतली मानने लगे हैं और उन के अनुसार, उन महापंडितों के आगे भक्तजनता केवल गुलाम सी है जिसे इसलामी देशों की तरह कायदों में ही रहना पड़ेगा. उन के शब्दों का लहजा और शब्द ऐसे हैं मानो कि वे इस भारत भूमि के शहंशाह हैं.
अटौर्नी जनरल ने तो निजता के अधिकार के मामले पर बहस में यह तक कह डाला था कि नागरिक का अपने शरीर पर कोई अधिकार नहीं है और सरकार ही उस की मालिक है.
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 19 ही नहीं, अन्य सभी अनुच्छेद जो मौलिक अधिकारों के संविधान के भाग 3 में हैं, कम नहीं किए जा सकते हैं. इन में निजता महत्त्वपूर्ण है और वह छाई हुई है.
सर्वोच्च न्यायालय की 9 जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से माना कि निजता का अधिकार मौलिक है और चाहे ये शब्द संविधान में लिखे न हों, कोई कानून इन का हनन सीमा से ज्यादा नहीं कर सकता.
सरकार की योजना है कि वह हर नागरिक को हर समय अपनी आंखों के सामने रखे और इसीलिए वह बारबार उसे अपना पैननंबर, आधारनंबर, राशनकार्ड, पते का पू्रफ, फोटो, वरिष्ठ अधिकारियों से पहचान आदि बताने के आदेश देती रहती है. कोई कैसे रहता है, क्या पहनता है, क्या खाता है, किस के साथ सोता है, कहां पैसे खर्च करता है, कहां जमा करता है, इन सब का ब्योरा सुरक्षा, आतंकवाद, कर चोरी, व्यवस्था, बेईमानी के नाम पर मांगा जा रहा है और हर रोज सरकार की मांग बढ़ रही है. नोटबंदी और गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स की विवरणियां इस का सुबूत हैं जिन में व्यापारी से सिर्फ शौचालय जाने के अलावा हर चीज की जानकारी मांग ली गई है.