पाकिस्तान अब लगभग ढहने लगा है और बड़ी बात है कि इस ढहने में भारत का कोई हाथ नहीं है. पाकिस्तान जो एक समय-अभी 20 साल पहले-भारत से थोड़ा ज्यादा अमीर था, आज कंगाल हो गया है. डौलर के मुकाबले उस का रुपया 250-300 के पास पहुंच गया है और उस के पास न तेल खरीदने के पैसे हैं, न बिजली बनाने लायक कोयला खरीदने के. भारत के दबाव ने नहीं, पाकिस्तान के धर्म के दुकानदारों ने उसे तहसनहस कर दिया है.

पाकिस्तानी अमीर उमराव इस का पैसा ले कर कब के निकल चुके हैं और दूसरे देशों में बस गए हैं जहां उन्हें इसी धर्म की कट्टरता के कारण शक से देखा जाता है. पाकिस्तान ने पश्चिमी देशों में फैली आतंकवादी घटनाओं को अपने यहां पनपने दिया था, यह दुनिया भूली नहीं है और उस का आज सब से करीबी दोस्त चीन भी अब पाकिस्तानी कट्टरता की वजह से नाराज सा चल रहा है.

कट्टरता को हरदम अपनी हथेलियों पर रखने की वजह से पाकिस्तानी जनता पर एक जुनून चढ़ा रहता है. वहां की पसमांदा जनता को लगातार धर्म की अफीम की गोलियां खिलाई जाती हैं, ताकि वे लोग भारत में फैली जाति व्यवस्था से डरे रहें. इसी जाति व्यवस्था की वजह से इन्होंने इसलाम अपनाया था और ईरान, तुर्की, अरब देशों, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान से आए ऊंचे कद के लंबेगोरे, आज पंजाबी बोलने वालों के हवाले अपने को कर दिया था. पर इन्हें मिला क्या?

जहां ऊंची जगहों पर बैठे लोग ऐयाशी की जिंदगी जी रहे हैं, आम पसमांदा मुसलमान गंदीमैली गलियों में बसे हैं और इसलाम का ढोल बजा रहे हैं. उन्हें देश की तरक्की की नहीं, इसलाम के आज बेमतलब हो चुके तौरतरीकों को लकीर का फकीर बन कर पीटने की आदत बन चुकी है.

भारत को इस का बड़ा सबक सीखना चाहिए. हम ने 1947 में धर्म की जगह संविधान, बराबरी, उदारता, धर्म को पीछे रखने का फार्मूला अपनाया और एक बेहद गरीब देश से खासे ठीकठाक पर गरीब लेकिन कंगले देश की तरह बन गए. पिछले 30 सालों में यहां जो लहरें उठाई जा रही हैं, वे हमें पाकिस्तान की राह पर ले जा रही हैं. हमारे यहां रातदिन हिंदूमुसलिम होता रहता है. कभी यूनिफौर्म सिविल कोड की बात होती है, तो कभी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन्स की, जिस का निशाना भारत के मुसलमान ही हैं.

मुसलमानों को हिंदू गुंडों को ताकत दे कर बस्तियों में बंद कर दिया गया. गुजरात में 2002 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में नमूना दिखा दिया गया. आज भारत के मुसलमानों को न आजादी से व्यापार करने को मिल रहा है, न अपनी बात कहने का. हिंदू बस्तियों में उन्हें जगह नहीं मिलती. हिंदू कंपनियों में नौकरियां नहीं मिलतीं.

हिंदी के न्यूज चैनल लगातार मुसलिम अपराधियों पर घंटों बरबाद करते रहते हैं और हिंदू गुंडों के कारनामे डिजिटल कारपेटों के नीचे छिपा देते हैं. यह पाकिस्तान की तरह बनने की कोशिश है जिस में मंदिरमठ चलाने वाले शामिल हैं ही, उन्होंने आम हिंदू को भी कायल कर दिया है कि देश की मुसीबतों की वजह इसलाम है. पाकिस्तान ने यही काम कश्मीर का नाम ले कर किया था जिस का खमियाजा आज चौथी पीढ़ी बुरी तरह सह रही है.

हमारे यहां अभी तो दूसरी पीढ़ी ही हिंदू मूर्तियों को फैला रही है पर पाकिस्तान बनने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. इस के निशान दिखने लगे हैं. हिमालय विशाल है पर उस में भी दरारें पड़ती हैं, यह जोशीमठ याद दिला रहा है. भारत को पाकिस्तान या श्रीलंका न बनने दो.

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