भारतीय जनता पार्टी सरकार को हार कर दलित अत्याचार कानून को फिर से ठीक करने पर मजबूर होना पड़ा है. इस कानून के अनुसार दलितों को गालियां देने या उन को सताने पर पुलिस को शिकायत मिलने पर तुरंत जेल भेज कर मुकदमा चलाने का हक था. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था कि यह कानून गलत है और जब तक पुलिस अधीक्षक इजाजत न दें गिरफ्तारी नहीं हो सकती. अगर जिस के खिलाफ शिकायत है वह सरकारी कर्मचारी है तो उस के डिपार्टमैंट के हैड की इजाजत भी होनी चाहिए थी.

इन इजाजतों को लेने में महीनों लग जाने लाजिमी होने हैं और अगर इजाजत देनी भी हो तो अदालत जैसी सुनवाई पुलिस अधीक्षक या डिपार्टमैंट हैड को भी करनी होगी. एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को खटाई में डाल दिया था. दलितों को इस पर गुस्सा आया हुआ है.

इसे असल में ऊंची जातियों की पार्टी भारतीय जनता पार्टी का एजेंडा समझा जाता है जो दलितों को अछूत बने रहना देना चाहती है और पिछड़ों को शूद्र. जो पार्टी हर 4 वाक्यों में

2 वाक्य पुराने कल की महिमा के गाए उस से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? 2014 में दलितों और पिछड़ों ने अपने वोट बंटने दिए थे और काफी वोट भाजपा को भी दे दिए थे.

भाजपा के आका संघ के लोग बरसों से इन लोगों को मंदिरों की सेवाओं में आने का मौका तो दे रहे थे और अपने देवताओं के दासों या गंवई देवीदेवताओं को पूजने के लिए उकसा भी रहे थे. उन्होंने भगवा दलितों और पिछड़ों की कई फौजें बना रखी हैं. इन के बल पर 2014 और बाद के चुनाव जीते गए थे.

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