देश के 7 शहरों में छापे मार कर जिन 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की रजामंदी से गिरफ्तार किया है उन का गुनाह बस इतना है कि वे देश के गरीब, कुचले हुए, सताए हुए दलितों, अछूतों, पिछड़ों, शूद्रों के साथ हमदर्दी रखते हैं. मुख्यमंत्री नहीं चाहते कि कोई दलितों की बात करे या गौरक्षकों की तरह दंगा करने वाले भगवा दुपट्टियों की तरह दलितों को अपने हक मांगने के लिए रास्ता भी सुझाए. हमारे समाज में यह बात तो तय है कि जो भी दुख आज ये लोग भोग रहे हैं वह उन के पिछले जन्मों का पाप है.
जो समाज बारबार यही दोहराता है कि जातियां विराट ईश्वररूपी मानव ने बनाई थीं जिस में शूद्र पैर थे और दलित पैरों की धूल या पैरों के नीचे की बदबूदार कीचड़, वह इन के साथ जरा सी भी आदमीयत का सा बरताव करने वाले को हिंदू धर्म का विरोधी मानेगा ही. आजकल जो हिंदू समाज की पुरातन परंपरा का विरोध करता है, वह समाज सुधारक नहीं देशद्रोही बन गया है .जैसे हिटलर के जमाने में जर्मनी और जर्मनी द्वारा काबिज देशों में नाजी पार्टी का विरोध करने वालों को बनाया गया था. माओवादी देश के एक बड़े हिस्से में हिंसा कर रहे हैं और अपना अलग कामकाज चला रहे हैं. यह सरासर गलत है पर इसका हल गोली नहीं, वहां के लोगों को बराबर की जगह देना है.
आज की सरकारें ही नहीं पिछली सरकारें भी इन्हें दबा कर वैसे ही रखना चाहती रही हैं जैसे धर्मग्रंथों के हवाले से दस्युओं और शूद्रों को दबाया गया था. अगर समाज को आगे बढ़ना है, हर आदमी को रोटी, कपड़ा, मकान देना है, देश का नाम ऊंचा करना है, गरीबी के जंजाल से निकलना है तो जरूरी है कि हर हाथ को हर तरह का काम करना आए. रोजगार इतने हों कि किसी को न डंडा उठाने की फुरसत रहे न झंडा. अगर भुखमरी और बेगारी यूंही बनी रहेगी तो ये हाथ उठेंगे ही और उन हाथों के साथ हमदर्दी करने वालों को तानाशाही में बेरहमी से गिरफ्तार किया जाता है. पक्का है जिन सामाजिक नेताओं को पकड़ा गया है उन्होंने क्रूर राजाओं, हूणों, तैमूरों, नादिरशाहों, स्टालिनों, हिटलरों, रूसी केजीबी, कोरियाई किमों का इतिहास खूब पढ़ रखा है. उन्हें मालूम है कि लोकतंत्र की बखिया कैसे उधड़ रही है. इंदिरा गांधी के आपातकाल की तरह देश को बचाने के नाम पर अपनी गद्दी या अपनी पार्टी बचाने का काम कोई नया नहीं है.