10 साल पहले नएनए तरह के उत्पादों के समाचार आते थे, अब पुराने उत्पादों को बनाने वाली कंपनियों की खरीद और बिक्री के आ रहे हैं. एयर इंडिया और जेट एयरवेज जैसी बड़ी एयरलाइंस कंपनियों की बिक्री के समाचार यह साफ करते हैं कि बड़ा बिजनैस चलाना अब आसान नहीं रह गया है.

डीएलएफ, जेपी, यूनिटैक, आम्रपाली जैसे नामी बिल्डरों का पत्ता साफ सा होने लगा है. रुइया, धूत जैसे बड़े उद्योगपति अपनी जायदादें बेच रहे हैं. स्टील कंपनियां बिक रही हैं.

इस सब का एक बड़ा छिपा कारण वह कंप्यूटर टैक्नोलौजी है जिस ने सब को आकर्षित करतेकरते सम्मोहित कर डाला है. दुनिया की हवा यदि कार्बन डाईऔक्साइड, सल्फर, प्लास्टिक, मीथेन से प्रभावित हुई है तो व्यापार व उद्योगजगत कंप्यूटर क्रांति का शिकार हुआ है.

कंप्यूटरों ने निर्माण में अद्भुत क्रांति की है, इस में संदेह नहीं. न केवल उत्पादन का तरीका बदला है, रोजमर्रा का प्रबंधन व वित्तीय सहायता पाने का तरीका भी बदला है. दूसरा पक्ष यह है कि कंप्यूटरों की हर बात की बारीकी से परख करने की क्षमता ने बहुत से दोष पैदा किए हैं. जिन बातों को छोटा समझ कर आगे चला जा सकता था, अब उन्हें ढोना पड़ता है.

हर कंपनी में एक ऐसी बड़ी फौज खड़ी हो गई है जो कंप्यूटर स्क्रीनों पर तथ्यों को तोड़तीमरोड़ती रहती है. उद्योगपतियों और उन के मैनेजरों की छठी इंद्रिय को जंग लग गया और कंप्यूटर रिपोर्ट सर्वोपरि हो गई है.

नई तकनीक का विरोध करने का मतलब एक तरह से राम और कृष्ण की पोल खोलने जैसा हो गया. ‘कंप्यूटर ने कहा है तो सही ही होगा’ का सिद्धांत चलने लगा है और मालिकों के अपने गुण, अनुभव, दूरदृष्टि, सामाजिक उद्देश्य नष्ट हो गए.

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