सरकारें अब एक नया रास्ता अपना रही हैं, दिल्ली की केंद्र सरकार भी और राज्यों की सरकारें भी. अब गरीबों की कोई बात नहीं हो रही है. अब नौकरियों की बात नहीं हो रही है. अब ऊंचनीच के भेदभाव को खत्म करने की बात परदों के पीछे चली गई है. किसानों के लिए नहरों को बनवाने की योजनाओं को शुरू करने के पत्थर नहीं रखे जा रहे हैं. औरतों को मर्दों के जुल्मों से बचाने की बातें सरकारें नहीं कर रही हैं, महिला आयोग की 5-10 औरतों पर यह जिम्मेदारी छोड़ दी गई है.

अब तो हल्ला मच रहा है देशभक्ति का. वंदेमातरम गाओ, शायद पेट भर जाए. योग करो, ताकि टूटी झुग्गी बन जाए. तिरंगा लहराओगे तो नहर में पानी आ जाएगा. गंगा में डुबकी लगाओगे, तो नौकरी लग जाएगी. गाय को लाने व ले जाने वालों की जीभर के पिटाई कर दो, तो भूखे नहीं रहना पड़ेगा.

अब बड़ेबड़े इश्तिहार छप रहे हैं कि देखो धर्म की जगह को पांचसितारा होटल की तरह का बना दिया गया है. अब गरीब बीमार ही नहीं पड़ेंगे. अब मंचों से पिछली सरकारों को कोसा जाता है कि शायद इस से चमत्कार हो जाएगा और बस्ती की बदबू भी विरोधी दलों की तरह गायब हो जाएगी.

इस बदलती तसवीर से देश की 49 फीसदी भूखी जनता के पेट भरेंगे. दुनिया के सब से ज्यादा गरीब यहीं हैं और इसी देश में आजादी के 70 साल बाद भी वैसे से ही हालात हैं और बातें हो रही हैं देशभक्ति की, मंदिर की, मसजिद की. विकास की बातें हो रही हैं, पर उस में बड़े हवाईअड्डों की बातें होती हैं. रेल में भी ह्वाट्सऐप से खाना बुक करने की बात करते हैं. गंगा मंत्री नदियों के घाटों को बनवाने की बातें करती हैं. वित्त मंत्री टैक्स का फंदा हर गले में डालने के नए कानून की बात करते हैं.

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