देश में फिल्म ‘दंगल’ को लड़कियों को चूल्हेचौके से निकाल कर अपने बल पर एक संकीर्ण समाज से निकालने का संदेश देती फिल्म माना गया है पर जब इसे चीन में रिलीज किया गया तो वहां वैसे तो यह फिल्म चली पर दर्शकों में बहुतों ने पिता के रोल में आमिर खान को अपनी इच्छा बच्चों पर थोपते माना है. उन के अनुसार फिल्म पितृसत्तात्मक संदेश देती है जिस में लड़कियों की नहीं, पिता की मरजी और उस का अनुशासन हावी है.
अगर यह राय कुछ हद तक ठीक है तो भी हरियाणा जैसे राज्य में लड़कियों को इतनी आजादी नहीं है कि वे खुली कुश्ती जैसे खेलों में भाग ले सकें. फिल्म की जो शुरुआत लड़कीलड़के के बीच कुश्ती से हुई है, वह फिल्म का मुख्य संदेश है. महिला कुश्ती में विजय नहीं.
चीनी समाज भी आज भारतीय समाज की तरह ही है हालांकि वह तेजी से बंदिशों से निकला है. माओ त्से तुंग ने कल्चरल रैवोल्यूशन के समय चीन के पूरे समाज को हिला दिया था पर फिर भी सदियों की परतें अभी भी टूटी नहीं हैं.
‘दंगल’ की खूबी यह थी कि बेटियों को प्रोत्साहन देने वाला पिता है. आमतौर पर इस तरह की खिलाड़ी अपनेआप जिद कर के सामाजिक बंधनों को तोड़ती हैं. पिता नई सोच के आड़े आता है. यहां उलटा है, लड़कियां पारंपरिक तरीके से जीना चाहती हैं और पिता अपने सपनों को नहीं, लड़कियों को कमतर न आंकने की जिद पर उन्हें सोच के काले कमरे से जरूर निकालता है.
‘दंगल’ का हीरो पितृसत्तात्मक नहीं, सुधारक है जो पानी के बहाव में बहने वाले तिनकों को अपनी राह चुनने की प्रेरणा ही नहीं देता, उन का मार्गदर्शन भी करता है. आज ऐसे पिता की जरूरत है जो आम लड़कियों से अलग जीने की प्रेरणा लड़कियों को दे सकें और साबित कर सकें कि सही अवसर मिलने पर लड़कियां खुद सही फैसले कर खुद ही अपनी राह चुन सकती हैं.