देशभर में गौ रक्षकों के लट्ठमार गैंग पैदा हो गए हैं, जो दूध देने वाले जानवरों को बचाने के नाम पर खुल्लमखुल्ला कानून हाथ में ले कर मारपीट व हत्याएं कर रहे हैं. पशु पालन, जो खेतीकिसानी और गांवों का एक बड़ा रोजगार है, अब इन गौ गैंगों का शिकार होने लगा है और लाखों परिवार रातदिन डर में रहते हैं कि न जाने कब क्या हो जाए.

जानवर दूध ही नहीं देते, उन का मांस, चमड़ी, हड्डियां सब आमदनी का हिस्सा हैं और फिर भी जानवर पालने वाले बेहद गरीब और दानेदाने को मुहताज रहते हैं. इन पर गौ गैंगों का काला साया इन की थोड़ी सी आमदनी को भी रोक कर इन घरों को भूखा मारने को उतारू है.

अफसोस इस बात का है कि इन गौ गैंगों की नेतागीरी कोई ब्राह्मणबनिया नहीं करते. वे तो केवल पीछे से इन्हें बचाव का वादा कर के मनमानी करने की छूट दे रहे हैं, ताकि इन गौ गैंगों की लगीबंधी आमदनी बन जाए और जानवरों के व्यापार में जानवरों के इंस्पैक्टरों के साथसाथ घंटी लगाए लोगों को भी हिस्सा मिलने लगे.

गौ गैंग पहले तो गायों के नाम पर ही वसूली करते थे, पर अब चूंकि गायों का लेनदेन बंद सा हो गया है, वे दूसरे जानवरों के कारोबार पर भी मांसरहित देश बनाने की जुगत में रोकटोक करने लगे हैं. जानवर खेतीबारी और गांवों के जिंदा रहने के लिए जरूरी हैं, पर इन जानवरों की सिर्फ सेवा करी जाए या इन्हें पूजा ही जाए, इस से गांवों का काम नहीं चल सकता. सिर्फ दूध बेचने से जो आमदनी होगी, वह किसानों और गांवों के व्यापार को जिंदा रखने के लिए काफी नहीं है. जानवर का आखिर तक इस्तेमाल जरूरी है.

सदियों से कुछ जानवरों की पूजा की जाती रही है, पर यह पूजा सिर्फ ऊंची जातियां करती थीं और नीची जातियां इन्हीं पूजने वाले जानवरों के साथ मनमाना और जरूरी इस्तेमाल करने को आजाद थीं. अगर सदियों पहले कुछ जानवरों को मारने या दूसरे इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई होती, तो इन की प्रजाति खत्म हो चुकी होती, क्योंकि इन्हें कोई नहीं पालता.

आज भी गाय को दान में लेने वाले गायों को दुहते हैं, पर पहले और बाद में उन का कोई खयाल नहीं रखते. पिंजरापोल बना कर नाटक करा जाता है कि गायों की सेवा करी जा रही है, पर असल में वे कमाई के साधन हैं. जानवर गांवों और कसबों के ही नहीं, शहरों की भी अर्थव्यवस्था के अहम हिस्से हैं और इन की चाबी गौ गैंगों को दे देना एक नया माफिया पैदा करता है.

अगर इरादा ही गौ गैंगों के नाम पर पार्टी के कार्यकर्ताओं की फौज तैयार करना है तो बात दूसरी है, पर यह देश के विनाश का काम करेगा, विकास का नहीं. कुछ दिन लोग डर कर या धर्म के नाम पर अंधे हो कर पेट काट कर इस नौटंकी को तालियां पीट कर सराहेंगे, पर जल्दी ही असलियत सामने आ जाएगी कि यह स्कीम कितनी महंगी है.

जैसे पहले लाल सलाम वालों ने कारखानों की घेराबंदी की थी, जिस का नतीजा देश के कारखानों के इलाकों के मरघटों में तबदील हो जाने पर हुआ, वैसे ही गौ गैंग सब से निचले स्तर के छोटे गरीब व असहाय चार पैसे कमाने वालों के भूखे पेटों को भुखमरी की कगार पर खड़ा कर देंगे.

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