हमारे देश में सरकारी संस्थाओं के नियमों, कानूनों पर सब का बहुत विश्वास होता है. कुछ लोग किसी तरह की बेईमानी करें, सरकारी संस्थाएं तुरंत सभी पर नियमकानून लाद कर कह देंगी कि हम ने तो सुधार ला दिए. रैस्तरांओं में खराब खाना परोसे जाने की शिकायतों पर फूड सिक्योरिटी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथौरिटी औफ इंडिया (एफएसएसआई) ने सुरक्षा कानून के नियमों में खासा बदलाव का काम किया है कि हर रैस्तरां को बोर्ड लगाना होगा कि खाने में कौन सा तेलमसाला इस्तेमाल हो रहा है.
यह कोरी मूर्खता है. लोग कहीं भी खाना दुकान के नाम से जा कर खाते हैं, बोर्ड पढ़ कर जाने वालों की संख्या कम ही होती है. महंगे रैस्तरांओं में सामान ठीकठाक ही होता है पर सस्तों में तो घटिया होगा ही. नए नियम के सहारे इंस्पैक्टरों को एक और बंदूक मिल जाएगी जिसे मालिक की कनपटी पर रख कर कुछ और वसूली करेंगे.
भोपाल जैसे शहर में 1,500 रजिस्टर्ड रैस्तरां हैं. अब नियम कहते हैं कि हर सप्ताह बदले नियमों से जांच होगी यानी कि रिश्वत के भरपूर मौके. ग्राहकों को निबटाने की जगह मालिक का ध्यान इंस्पैक्टरों को खुश करने में लगा रहेगा जो दलबल सहित रैस्तरां आएंगे.
जिस देश में सीबीआई पर भरोसा न हो, प्रधानमंत्री पर भरोसा न हो, वित्त मंत्री पर भरोसा न हो, वहां फूड इंस्पैक्टर पर भरोसा करना तो असंभव सा है. वैसे भी, खाना ऐसी चीज है जो जरा सा ध्यान बंटे, जरा सा मौसम खराब हो, जरा सा कारीगर का हाथ कमजोर हो, कच्चा सामान जरा सा ढीला हो, तो वह खराब हो सकता है. फूड इंस्पैक्टर खाना सुधारेगा नहीं, वह तो फाइन चार्ज करने, जेल भेजने की धमकी देगा.
सरकार को अगर ग्राहकों की बहुत चिंता है तो क्यों नहीं वह अपने रैस्तरांओं की लंबी चेन खोल देती? रेलों का खाना कैसा है, हम सब देख चुके हैं. सरकारी होटल बंद हो चुके हैं. वहां तो इंस्पैक्टर फटक भी नहीं सकते और पैसा बचाने की जल्दबाजी भी नहीं होती. तो फिर, खाना खराब क्यों? हर राज्य के भवन दूसरे राज्यों में बने हैं जहां कैंटीनें चलती हैं पर कहीं भी सरकार कैंटीन नहीं चलाती. फूड डिपार्टमैंट जांच करने की जगह खुद फूड सप्लाई कर के देखे, नानीदादी याद आ जाएंगी.
फूड एक बड़े व्यवसाय की तरह उभर रहा है, क्योंकि कामकाजी औरतों को सुविधा और छुआछूत की बंदिशों के हटने से बाहर खाने में ज्यादा आनंद आता है. सो, इन्हें सरकारी नियमों में न बांधें. मोटेतौर पर स्टार रेटिंग दे दो. जनता को बाकी काम खुद करने दो. हां, अगर हो सके तो शिकायतों के लिए दफ्तर खोल दो जहां कोई भी शिकायत दर्ज करा सके और दूसरों द्वारा की गई शिकायतों को देख सके. धंधे को काबू करने के लिए यही काफी होगा.