मसला: ‘‘पंच परमेश्वर’ पर भाजपा का ‘फंदा’

यह आज का कड़वा सच है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी और उन की सरकार का एक ही मकसद है सभी ‘संवैधानिक संस्थाओं’ को अपनी जेब में रख लेना और अपने हिसाब से देश को चलाना. किसी भी तरह के विरोध को नेस्तनाबूद कर देना.देश के संविधान की शपथ ले कर  सत्ता में आए भारतीय जनता पार्टी के ये चेहरे? ऐसा लगता है कि शायद संविधान पर आस्था नहीं रखते, जिस तरह इन्होंने अपने भाजपा के संगठन में उदार चेहरों को हाशिए पर डाल दिया है, वही हालात यहां भी कायम करना चाहते हैं. ये देश को उस दिशा में ले जाना चाहते हैं,

जो बहुतकुछ पाकिस्तान और अफगानिस्तान की है. यही वजह है कि अब कार्यपालिका, विधायिका के साथ चुनाव आयोग, सूचना आयोग को तकरीबन अपने कब्जे में लेने के बाद यह सुप्रीम कोर्ट यानी न्यायपालिका को भी अपने मनमुताबिक बनाने के लिए बड़े ही उद्दंड रूप में सामने आ चुकी है.

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी होती है, जो देश की आजादी और देश को संजोने के लिए अपने प्राण देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, भगत सिंह, डाक्टर बाबा साहेब अंबेडकर जैसे नायकों की विचारधारा से बिलकुल उलट है.

और जब कोई विपरीत विचारधारा सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होती है, तो वह लोकतंत्र पर विश्वास नहीं करती, बल्कि तानाशाही को अपना आदर्श मान कर आम लोगों की भावनाओं को कुचल देना चाहती है और अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद कर देना चाहती है.कोलेजियम से कष्ट हैआज सब से ज्यादा कष्ट केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम सिस्टम से है. भाजपा के नेता यह भूल जाते हैं कि जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी या दूसरे दल देश चला रहे थे, तब भी यही सिस्टम काम कर रहा था, क्योंकि यही आज के हालात में सर्वोत्तम है. इसे बदल कर अपने मुताबिक करने की कोशिश देशहित या लोकतंत्र के हित में नहीं है.

कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर न्यायपालिका पर कब्जा करने के लिए उसे डराने और धमकाने का आरोप लगाया है. कांग्रेस पार्टी ने यह आरोप केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की ओर से प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे उस पत्र के मद्देनजर लगाया, जिस में किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कोलेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है.किरण रिजिजू ने प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग करते हुए कहा है कि इस से जस्टिसों की नियुक्ति में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही लाने में मदद मिलेगी.

इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘उपराष्ट्रपति ने हमला बोला. कानून मंत्री ने हमला किया. यह न्यायपालिका के साथ सुनियोजित टकराव है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उस के बाद उस पर पूरी तरह से कब्जा किया जा सके.’ उन्होंने आगे कहा कि कोलेजियम में सुधार की जरूरत है, लेकिन यह सरकार उसे पूरी तरह से अधीन करना चाहती है. यह उपचार न्यायपालिका के लिए विष की गोली है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मांग को बेहद खतरनाक करार दिया. उन्होंने ट्वीट किया, ‘यह खतरनाक है. न्यायिक  नियुक्तियों में सरकार का निश्चित तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.’भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा इतनी अलोकतांत्रिक है कि वह न तो विपक्ष चाहती है और न ही कहीं कोई विरोधअवरोध.

यही वजह है कि सत्ता में आने के बाद वह सारे राष्ट्रीय चिह्न और धरोहर, जो स्वाधीनता की लड़ाई से जुड़ी हुई हैं या कांग्रेस पार्टी से, उन्हें धीरेधीरे खत्म किया जा रहा है. इस के साथ ही सब से खतरनाक हालात ये हैं कि आज सत्ता बैठे हुए देश के जनप्रतिनिधि देश की संवैधानिक संस्थाओं को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं और चाहते हैं कि यह संस्था उन की जेब में रहे और वे जो चाहें वही होना चाहिए.हम ने देखा है कि किस तरह चाहे वह राष्ट्रपति हो या उपराष्ट्रपति या फिर राज्यपालों की नियुक्तियां, भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सरकार ऐसे चेहरों को इन कुरसियों पर बैठा रही है, जो पूरी तरह से उन के लिए मुफीद हैं, जो एक गलत चलन है.

एक बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष उतना ही जरूरी है, जितना देश को गति देने के लिए सत्ता, मगर अब यह कोशिश की जा रही है कि विपक्ष खत्म कर दिया जाए और संवैधानिक संस्थाओं को अपनी जेब में रख कर देश को एक अंधेरे युग में धकेल दिया जाए, जहां वे जो चाहें वही अंतिम सत्य हो. पर ऐसा होना बड़ा मुश्किल है.

राजनीति में अकेली ताकतवर नहीं मोदी सरकार

गुजरात व हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं केदिल्ली की म्यूनिसिपल कमेटी केउत्तर प्रदेशबिहार व ओडिशा के उपचुनावों से एक बात साफ है कि न तो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कोई बड़ा माहौल बना है और न ही भारतीय जनता पार्टी इस देश की अकेली राजनीतिक ताकत है. जो सोचते हैं कि मोदी है तो जहां है वे भी गलत हैं और जो सोचते हैं कि धर्म से ज्यादा महंगाईबेरोजगारीहिंदूमुसलिम खाई से जनता परेशान हैवे भी गलत हैं.

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सीटें बढ़ा लीं क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में वोट बंट गए. गुजरात की जनता का बड़ा हिस्सा अगर भाजपा से नाराज है तो भी उसे सुस्त कांग्रेस औैर बड़बोली आम आदमी पार्टी में पूरी तरह भरोसा नहीं हुआ. गुजरात में वोट बंटने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को जम कर हुआ और उम्मीद करनी चाहिए कि नरेंद्र मोदी की दिल्ली की सरकार अब तोहफे की शक्ल में अरविंद केजरीवाल को दिल्ली राज्य सरकार और म्यूनिसिपल कमेटी चलाने में रोकटोक कम कर देगी. उपराज्यपाल के मारफत केंद्र सरकार लगातार अरविंद केजरीवाल को कीलें चुभाती रहती है.

कांग्रेस का कुछ होगायह नहीं कहा जा सकता. गुजरात में हार धक्का है पर हिमाचल प्रदेश की अच्छी जीत एक मैडल है. हांयह जरूर लग रहा है कि जो लोग भारत को धर्मजाति और बोली पर तोड़ने में लगे हैंवे अभी चुप नहीं हुए हैं और राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा’ में मिलते प्यार और साथ से उन्हें कोईर् फर्क नहीं पड़ता.

देशों को चलाने के लिए आज ऐसे लोग चाहिए जो हर जने को सही मौका दें और हर नागरिक को बराबर का सम?ों. जो सरकार हर काम में भेदभाव करे और हर फैसले में धर्म या जाति का पहलू छिपा होवह चुनाव भले जीत जाएअपने लोगों का भला नहीं कर सकती. धर्म पर टिकी सरकारें मंदिरोंचर्चों को बनवा सकती हैं पर नौकरियां नहीं दे सकतीं. आज भारत के लाखों युवा पढ़ने और नौकरी करने दूसरे देशों में जा रहे हैं और विश्वगुरु का दावा करने वाली सरकार के दौरान यह गिनती बढ़ती जा रही है. यहां विश्वगुरु नहींविश्वसेवक बनाए जा रहे हैं. भारतीय युवा दूसरे देशों में जा कर वे काम करते हैं जो यहां करने पर उन्हें धर्म और जाति से बाहर निकाल दिया जाए.

अफसोस यह है कि भाजपा सरकार का यह चुनावी मुद्दा था ही नहीं. सरकार तो मानअपमानधर्मजातिमंदिर की बात करती रही और कम से कम गुजरात में तो जीत गई.

देश में तरक्की हो रही है तो उन मेहनती लोगों की वजह से जो खेतों और कारखानों में काम कर रहे हैं और गंदी बस्तियों में जानवरों की तरह रह रहे हैं. देश में किसानों के मकान और जीवन स्तर हो या मजदूरों का उस की चिंता किसी को नहींक्योंकि ऐसी सरकारें चुनी जा रही हैं जो इन बातों को नजरअंदाज कर के धर्म का ढोल पीट कर वोट पा जाती हैं.

ये चुनाव आगे सरकारों को कोई सबक सिखाएंगेइस की कोई उम्मीद न करें. हर पार्टी अपनी सरकार वैसे ही चलाएगीजैसी उस से चलती है. मुश्किल है कि आम आदमी को सरकार पर कुछ ज्यादा भरोसा है कि वह अपने टूटफूट के फैसलों से सब ठीक कर देगी. उसे लगता है कि तोड़जोड़ कर बनाई गई महाराष्ट्रकर्नाटकगोवामध्य प्रदेश जैसी सरकारें भी ठीक हैं. चुनावों में तोड़फोड़ की कोई सजा पार्टी को नहीं मिलती. नतीजा साफ है. जनता को सुनहरे दिनों को भूल जाना चाहिए. यहां तो हमेशा धुंधला माहौल रहेगा.

अंधविश्वास की राजनीति आखिर कबतक

देसी चुनावों में जीत पा जाना कोई कमाल की बात नहीं है खासतौर पर जब यह पैसा देने को भी तैयार हो और भक्तों का चलाया जा रहा मीडिया लोगों को पाखंडी और अंधविश्वासी के साथ राज्य की भक्ति भी सिखा रहा. नेता की ताकत तो तब दिखती है जब दूसरे देश उस की सुनते हों, उसे नाराज करने की हिम्मत न करते हों.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने की वजह से बारीबारी से मिलने वाली जी-20, बड़े 20 देशों की संस्था के अध्यक्ष बने हैं पर उन के अध्यक्ष की कुर्सी लेने के कुछ दिन बाद ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ शुरू कर दी यही नहीं, मुसलिम देशों के संगठन औगैंनाइजेशन औफ इस्लामिक कंट्रीज के महासचिव ने भारत के कश्मीर के उस हिस्से का दौरा कर लिया जो पाकिस्तान ने 1947 से जबरन दबोच रखा है.

अच्छा नेता वह होता है जिस का खौफ न हो तो कम से कम इज्जत हो कि उसे अपने देश में नीचा देखने की जरूरत न पड़े. पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर घूमने जाने से या अरुणाचल प्रदेश में घुस जाने से भारत टूटने नहीं वाला, न उसे…..है पर यह सवाल जरूर कर सकता है कि जब केंद्र में दिल्ली में बैठी सरकार इतनी मजबूत है तो ऐसा हो ही क्यों रहा है.

अपने देश में अपने बलबूते पर चुनाव जीतना किसी देश के नेता के लिए काफी नहीं है. हर देश का नेता चुनाव जीत कर या लड़ कर जीत कर ही नेता बनता है. बड़ा नेता वह होता है जिस की सब की इज्जत करें. जवाहरलाल नेहरू ने 1962 में धोखा खाया था. उन्हें लगा कि महात्मा गांधी के शिष्य होने की वजह से उन्हें दुनिया भर में इज्जत मिलेगी और चाहे चुनाव उन्होंने जीते हो, बेहद लोकप्रिय रहे हो. कानून मानने वाले रहे हों, माओ त्से तुंग के चीन ने. 1862 में हमला कर के मोहभंग कर दिया.

आज भारत ऐसे मोड़ पर बैठा है जहां अपनी गिनती की वजह से, सस्ती मजदूरी की वजह से, बड़ा देश होने की वजह से, सडक़ों, हवाई अड्डों, रेलों के जाल की वजह से वह दुनिया के किसी भी देश से बढ़ कर बन सकता है. पर हो क्या हो रहा है. एक चीन और इस्लामिक देश अपने तेवर दिखा रहे है और दूसरी तरफ भारतीय मजदूर कोठियों में नौकरियां करने के लिए खुद को गुलाम बना कर दुनिया भर में घटिया काम करने के लिए जा रहे हैं. हमारा हाल तो यह है कि हमारे पढ़ेलिखे ही पढऩे के लिए बाहर जा रहे हैं. देश में अमनचैन की बात की जाती है पर हर साल 2 लाख ङ्क्षहदुस्तानी अपनी नागरिकता छोड़ कर दूसरे देश की नागरिकता अपना लेते हैं.

देश को चलाने के बैलेट या बुलेट की नहीं, सही बैल्ट वाली नीतियों की जरूरत है जो हमारी खिसकती फटी पैंट को रोक सके. देश बाहरी खतरों से ज्यादा तो अदरुनी खतरों से परेशान है और इसीलिए बाहर वाले शेर हो रहे हैं.

कांग्रेसी एकजुटता के सुरीले सुर

यह दर्द था हिमाचल प्रदेश के एक आम आदमी और प्रतिभा सिंह खेमे के कार्यकर्ता का. पर सवाल उठता है कि आखिर जिन वीरभद्र सिंह के नाम पर कांग्रेस ने खूब चुनाव प्रसार किया, उन के परिवार में से किसी को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया?

कांग्रेस के लिहाज से हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर काबिज होना देश की राजनीति के लिए सुखद संकेत है. भले ही हम राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का फिलहाल कोई सीधा असर नहीं देख रहे हैं, पर उन की मेहनत अब कदम दर कदम रफ्तार पकड़ रही है. साथ ही, कांग्रेस अब एकजुट होती दिखाई दे रही है.

यही वजह है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू के हिमाचल प्रदेश के नए मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सचिन पायलट, राजीव शुक्ला समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता शामिल हुए.

इस एकता के कई सियासी माने हैं, जैसे कांग्रेस पहले की तुलना में भले ही कमजोर दिखती है, पर जनता ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सिरे से खारिज कर के बता दिया है कि कांग्रेसी तिलों में अभी काफी तेल बाकी है.

इसी एकता का नतीजा है कि दिल्ली कांग्रेस इकाई के उपाध्यक्ष अली मेहंदी, जो हाल ही में 2 नवनिर्वाचित पार्षदों के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे, कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस से माफी मांगते हुए वापस पार्टी में शामिल होने की जानकारी दी.

अली मेहंदी ने इस दौरान कहा, ‘‘मैं कांग्रेस में था, कांग्रेस में हूं और रहूंगा… मैं हमेशा राहुल गांधी का कार्यकर्ता बन कर रहूंगा.’’

दूसरी ओर अगर हिमाचल प्रदेश के कांग्रेसी घमासान पर नजर डालें, तो प्रदेश के 6 बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह और उन के समर्थकों द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए होहल्ला मचाने के बावजूद अगर आलाकमान ने अपना कड़ा रुख बनाए रखा, तो इस की सब से बड़ी वजह यह रही कि कांग्रेस परिवारवाद के आरोप से उबरना चाहती है.

प्रतिभा सिंह के पति वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे. उन के बेटे भी विधायक हैं और खुद प्रतिभा सिंह सांसद हैं. ऐसे में अगर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री या विक्रमादित्य को उपमुख्यमंत्री बनाया जाता तो एक बार फिर से कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता. पर मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी

ने सख्ती दिखाई और प्रतिभा सिंह के बागी तेवरों के बावजूद उन की दाल नहीं गलने दी.

अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो मैनपुरी लोकसभा सीट पर पिछले दिनों हुए उपचुनाव में पार्टी की उम्मीदवार डिंपल यादव ने अपने भारतीय जनता पार्टी के रघुराज सिंह शाक्य को 2 लाख, 88 हजार, 461 वोटों के फर्क से हरा दिया था. जब डिंपल यादव ने लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ली, तब उन्होंने सोनिया गांधी के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.

इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उसी दौरान पत्रकारों से बात करते हुए इशारा किया कि साल 2024 के चुनाव के लिए विपक्ष एकजुट होगा. विपक्षी दल साल 2024 से पहले साथ आएंगे. नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर सभी इस की कोशिश कर रहे हैं. विपक्ष की एकता और डिंपल यादव का सोनिया गांधी के पैर छूना भारतीय राजनीति के लिए नया संकेत है.

हाल के दिनों में कांग्रेस की बांछें खिलने की एक अहम वजह यह भी है कि इन दिनों पार्टी सोशल प्लेटफार्म पर बदलीबदली नजर आ रही है. राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के ट्वीट और हैशटैग चुटीले हो चले हैं और अकसर ट्रैंड भी करते हैं. इस का असर पार्टी और राहुल गांधी के फौलोअर्स की तादाद पर भी साफ देखा जा सकता है.

अगर ऐसा ही रहा, तो साल 2023 में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एकजुटता को नया बल मिल सकता है और यह भारतीय जनता पार्टी के साथसाथ तमाम छोटे क्षेत्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी है.

राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी “भारत जोड़ो यात्रा” में अगर साथ साथ होते

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आज देश के सबसे चर्चित राजनीतिक शख्सियत बन चुके राहुल गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” की जिस तरह भारतीय जनता पार्टी उसके छोटे से लेकर बड़े नेता आलोचना करते रहे हैं विशेष तौर पर बड़े चेहरे इससे हुआ यह है कि उल्टे बांस बरेली कहावत की तर्ज पर भारत जोड़ो यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए ही भारी पड़ गई है.

इसीलिए कहा जाता है कि बिना सोचे समझे कोई बात नहीं कही जानी चाहिए. यहां उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा का एलान किया था भारतीय जनता पार्टी और उसका दस्ता मानो राहुल गांधी के पीछे पड़ गया था और ऐन केन प्रकारेण राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिसके पीछे का मकसद अब धीरे-धीरे देश की जनता समझ रही है की कितना पवित्र है को भाजपा और उसके नेता माहौल को खराब करके इस यात्रा पर प्रश्न चिन्ह लगा देने की जुगत में थे. मगर देश की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पूरे दबाव प्रभाव और चिल्लपौं के बाद भी भारत जोड़ो यात्रा आगे बढ़ते रही और धीरे-धीरे उसकी लोकप्रियता में इजाफा होता ही चला गया. अब भाजपा के यह नेता बगले झांक रहे हैं और मुंह से शब्द नहीं फुट रहें है.

लोकतंत्र और नरेंद्र मोदी

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश के लोकतंत्र पर शायद आस्था नहीं है. इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विपक्ष अर्थात सबसे बड़ी पार्टी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को विपक्ष के रूप में मान्यता नहीं देने की भावना. और यह बार-बार कहना कि हम तो देश से कांग्रेस का नामोनिशान मिटा देंगे हम तो देश को कांग्रेस मुक्त बना देंगे.

भाजपा का यह उद्घोष, यह सब कहना लोकतंत्र में आस्था की कमी को दर्शाता है और इस सब के कारण भारतीय जनता पार्टी की छवि को लोकतंत्र को बहुत क्षति हुई है. भारतीय जनता पार्टी की साख में भी गिरावट आई है. अगर मोदी जिस तरह कांग्रेस ने अपनी सरकार के समय विपक्ष को हमेशा महत्व दिया वैसा ही माहौल बनाकर रखते तो नरेंद्र मोदी की छवि देश में और भी ज्यादा लोकप्रिय हो सकती थी.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी अपनी इसी अराजक छवि और सोच के कारण भाजपा को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं .जो अभी दिखाई नहीं दे रही मगर आने वाले समय में भाजपा को इसका खामियाजा तो भुगतना ही होगा. जैसे यह तथ्य भी सामने है कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस के एक बड़े चेहरे हैं भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे थे नरेंद्र दामोदरदास मोदी इस यात्रा में सम्मिलित हो जाते और अपनी शुभकामनाएं दे देते तो देश में हमारे लोकतंत्र में यह एक नजीर बन जाता और सद्भावना का एक मिसाल रूपी उदाहरण बन जाता. मगर नरेंद्र मोदी के समय काल में भारत में जिस तरह जाति संप्रदाय हिंदू मुस्लिम से लेकर के अनेक मसलों को बेवजह उभार दिया जा रहा है वह देश को विकास की और नहीं बल्कि विनाश की ओर ले जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी अब इस यात्रा को लेकर रक्षात्मक है वही कांग्रेस और राहुल गांधी आगे और आगे निकलते चले जा रहे हैं.

क्या इस खुलासे के बाद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं?

विरोधियों के निशाने पर रहने वाले केजरीवाल ने यों तो दिल्ली में कई साहसिक घोषणाएं की हैं और उसे लागू भी कराया है. स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली और पानी की मुफ्त योजनाओं को लागू कर वाहवाही बटोरने वाली केजरीवाल सरकार अब अपने ही स्वास्थ्य मंत्री द्वारा जारी एक रिपोर्ट में घिरती नजर आ रही है.
दरअसल, मुख्य विपक्षी पार्टी के एक विधायक ने केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री से एक रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी. इस रिपोर्ट के अनुसार जो हकीकत सामने आया है वह काफी चौंकाने वाला है.

सिर्फ घोषणा ही बन कर रह गई

दरअसल, 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के वाद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि दिल्ली के अस्पतालों में बेड की क्षमता 10 हजार से बढा कर 20 हजार करेंगे. मगर रिपोर्ट के अनुसार केजरीवाल सरकार इस लक्ष्य को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रही है.
दिल्ली विधानसभा में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सत्ता में आने से पहले दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में 10,969 स्वीकृत बेड थे जबकि 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट में 11,353 बेड ही सरकारी अस्पतालों में हैं. यानी इस दौरान महज 394 बेड ही सरकार बढा पाई.

वैंटिलेटर्स भी पर्याप्त नहीं

एक सवाल का जवाब देते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने दिल्ली में वैंटिलेटर की वर्तमान स्थिति पर भी स्थिति साफ की और कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में 440 वैंटिलेटर्स हैं जिन में से मात्र 396 वैंटिलेटर्स ही ऐक्टिव हैं. आश्चर्य की बात तो यह कि पूरी दिल्ली में सिर्फ लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में ही एमआरआई की सुविधा है.

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घिरती नजर आ रही है सरकार

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के इस खुलासे से दिल्ली सरकार खुद ही घिरती नजर आ रही है.
प्रमुख विपक्षी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की स्वास्थ्य योजनाओं को जनता के साथ छलावा बताया और कहा कि जिस सरकार की महात्वाकांक्षी योजना स्वास्थ्य सेवाओं को ले कर थी और जिन्होंने स्वास्थ्य सेवा को ले कर बङीबङी घोषणाएं की थीं, उस का पोल खुद सरकार के मंत्री ने खोल दी हैं.

नए प्रोजैक्ट की रफ्तार भी बेहद धीमी

उधर, दिल्ली सरकार द्वारा 3 नए सरकारी अस्पतालों के निर्माण की वर्तमान स्थिति पर भी सरकार ने जो रिपोर्ट दी है वह भी काफी निराशाजनक है. दिल्ली सरकार ने जानकारी दी कि दिल्ली में 3 नए सरकारी अस्पतालों के प्रोजैक्ट पर काम चल रहा है.
जबकि हकीकत तो यह है कि अंबेडकर नगर अस्पताल का निर्माण कार्य फरवरी, 2019 में होना था, जिस का लक्ष्य अब नवंबर, 2019 रखा गया है.
बुराङी अस्पताल प्रोजैक्ट पूरा होने का समय मार्च, 2019 था जो नवंबर, 2019 कर दिया गया है.
इंदिरा गांधी अस्पताल का प्रोजैक्ट तो इतना सुस्त है कि इसे मार्च 2019 में ही पूरा होना था, जिसे बढा कर मार्च, 2020 कर दिया गया है.
जाहिर है, इस मुद्दे को ले कर अब विपक्षी पार्टियां केजरीवाल सरकार को घेरने का काम करेगी जिस का जवाब खुद दिल्ली सरकार को देना भी भारी पङेगा.

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वाहवाही बटोर चुकी है सरकार

मगर सचाई यह भी है कि कुछ योजनाओं को लागू कर दिल्ली सरकार ने न सिर्फ दिल्ली में बल्कि विदेशों में भी वाहवाही बटोर चुकी है. सरकार की महात्वाकांक्षी योजनाएं मोहल्ला क्लीनिक और महिलाओं को मुफ्त मैट्रो में यात्रा कराने को ले कर सरकार की प्रशंसा पहले ही की जा चुकी है.

 

‘बिग बौस’ फेम अर्शी खान ने 6 महीने में छोड़ी राजनीति, जानें क्यों

बिग बौस की एक्स कंटेस्टेंट अर्शी खान हमेशा किसी न किसी वजह से सुर्खियों में रहती हैं. फरवरी के महीने में अर्शी ने ऐलान किया था कि वे भारतीय नेशनल कांग्रेस ज्वाइन कर रही हैं और 2019 के जनरल इलेक्शंस में भाग लेंगी. लेकिन 6 महीने बाद अर्शी ने राजनीति को छोड़ने का फैसला किया है. अर्शी ने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी है.

अर्शी ने ट्वीट किया, मेरे एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बढ़ते हुए काम को देखते हुए मेरे लिए राजनीति में सक्रिय रहना मुश्किल हो गया है. मैं भारतीय नेशनल कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देती हूँ। मैं पार्टी को मुझपर विश्वास करने और मुझे समाज की देखभाल करने का मौक़ा देने के लिए शुक्रिया करती हूँ. आप सभी के प्यार और सपोर्ट के लिए शुक्रिया.

 

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बता दें कि बिग बॉस के घर में अर्शी की दोस्ती शिल्पा शिंदे और उसके बाद विकास गुप्ता से थी.

बिग बॉस से बाहर आने के बाद भी अर्शी काफी सुर्खियों में रही है। इतना ही नहीं साल 2017 की गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च की गई एंटरटेनर बनी थीं. शो से बाहर आने के बाद अर्शी एक गाने की म्यूजिक वीडियो प्रोड्यूसर बन गई थीं.

अर्शी सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं और अपनी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

सोनभद्र नरसंहार चुप है सरकार

हत्या का आरोप भले ही ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के ऊपर लगा हो, पर सही माने में इस हत्याकांड में तहसील और थाना लैवल से ले कर जिला प्रशासन तक का हर अमला जिम्मेदार है.

जमीन से जुड़े मसलों में थाना और तहसील एकदूसरे पर मामले को टालते रहते हैं. ऐसे में नेताओं और दबंगों की पौबारह रहती है. कमजोर आदमी अपनी ही जमीन पर कब्जा लेने के लिए यहां से वहां भटकता रहता है.

सोनभद्र में हुए जमीनी झगड़े में भी उत्तर प्रदेश की सरकार तब जागी, जब दिल्ली से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोनभद्र में डेरा डाला और आदिवासी परिवारों से मिलने की बात पर अड़ गईं.

शुरुआत में प्रदेश सरकार ने मरने वालों के परिवार को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने की बात कही, पर प्रियंका गांधी के संघर्ष के बाद मुआवजे की रकम बढ़ा कर 20 लाख रुपए करने और जमीन को वे लोग ही जोतेबोते रहेंगे, यह भरोसा भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देना पड़ा. बाद में मुख्यमंत्री खुद पीडि़त लोगों से मिलने गए.

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यह था मामला

17 जुलाई, 2019 को सोनभद्र जिले के घोरावल इलाके के उभ्भा गांव में दर्जनों की तादाद में ट्रैक्टर 148 बीघा जमीन को घेरे खड़े थे. उन पर तकरीबन 300 लोग सवार थे.

यह देख कर गांव के लोग दबंगों को खेत जोतने से रोकने के लिए आगे बढ़े. थोड़ी ही देर में झगड़ा बढ़ गया. ग्राम प्रधान की तरफ से गांव वालों पर हमला बोल दिया गया.

लाठीडंडे से हुए इस हमले के बीचबीच में गोली चलने की आवाजें भी आने लगीं. गांव वाले एकदूसरे से बचने के लिए भागने की जुगत करने लगे. पर जो लोग भाग नहीं पाए, वे वहीं जमीन पर गिर गए.

सोनभद्र घोरावल कोतवाली क्षेत्र में ग्राम पंचायत मूर्तिया के उभ्भा पुरवा में 148 बीघा खेत जोतने के लिए गांव का प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर 32 ट्रैक्टर ले कर पहुंचा था. इन ट्रैक्टरों पर तकरीबन

300 लोग सवार थे. ये लोग अपने साथ लाठीडंडा, भालाबल्लम, राइफल, बंदूक वगैरह ले कर आए थे.

गांव में पहुंचते ही इन लोगों ने ट्रैक्टरों से खेत जोतना शुरू कर दिया. जब गांव वालों ने इस की खिलाफत

की तो प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर और उन के लोगों ने उन पर लाठीडंडे, भालाबल्लम के साथ ही राइफल और बंदूक से भी गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

उभ्भा पुरवा गांव सोनभद्र के जिला हैडक्वार्टर राबर्ट्सगंज से 55-56 किलोमीटर दूर है. ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने तकरीबन 80 बीघा जमीन

2 साल पहले खरीदी थी. वह उसी जमीन का कब्जा लेने पहुंचा था.

संघर्ष के दौरान असलहा से ले कर गंड़ासे तक चलने लगे. आदिवासियों के विरोध के बाद बाहरी लोगों ने आधे घंटे तक उन पर गोलीबारी की.

फायरिंग तकरीबन आधा घंटे तक चलती रही. इस में 10 लोगों की मौत हुई और 25 लोग घायल हो गए थे. मारे गए लोगों में 3 औरतें और 7 मर्द शामिल थे.

प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर का दावा है कि उस ने इस इलाके में 80 बीघा जमीन खरीदी थी. इस जमीन पर गांव वालों ने कब्जा किया हुआ था और वे इसे खाली नहीं कर रहे थे. इसी जमीन का कब्जा लेने के लिए वह 32 ट्रैक्टरों में 300 लोगों को भर कर लाया था.

इस इलाके में गोंड और गुर्जर समुदाय के लोग रहते हैं. गुर्जर दूध बेचने का काम करते हैं. यह इलाका जंगलों से घिरा है. यहां सिंचाई का कोई साधन नहीं है, इसलिए लोकल लोग बारिश के पानी से वनभूमि पर खरीफ के मौसम में मक्का और अरहर की खेती करते हैं. इस इलाके में वनभूमि पर कब्जे को ले कर अकसर झगड़ा होता रहता है.

देर से पहुंची पुलिस

जमीन का झगड़ा गुर्जर व गोड जाति के बीच शुरू हुआ था, जो देखते ही देखते खूनी खेल में बदल गया. गांव में लाशें बिछ गईं. इस वारदात से पूरे जिले में हड़कंप मच गया. सोनभद्र और मिर्जापुर इलाके ही नहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और देश की राजधानी दिल्ली तक हिल गई.

गांव वाले कहते हैं कि पुलिस को बुलाने के लिए 100 नंबर डायल करने के बाद भी पुलिस वहां बहुत देर से पहुंची. प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के साथ आए लोगों ने 32 ट्रैक्टरों का घेरा बना कर गांव वालों को उस के अंदर कैद कर लिया था. इस के बाद उन की पिटाई शुरू कर दी थी.

वारदात के बाद पहुंची पुलिस ने घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, घोरावल में भरती कराया. गंभीर रूप से घायल आधा दर्जन लोगों को जिला अस्पताल भेजा गया और लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में जमीन पर कब्जे को ले कर हुए इस हत्याकांड में पुलिस ने मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर, उन के भाई और भतीजे समेत 26 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

इस मामले में पुलिस ने 28 लोगों को नामजद किया है जबकि 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है.

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पुलिस ने बताया कि इस हत्याकांड में इस्तेमाल किए गए 2 हथियार भी बरामद कर लिए गए हैं. पुलिस ने गांव के लल्लू सिंह की तहरीर पर मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर और उन के भाइयों समेत सभी पर हत्या और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अधिनियम ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह को हर मामले पर नजर बनाए रखने का निर्देश दिया है. उन्होंने घटना का संज्ञान लेते हुए मिर्जापुर के मंडलायुक्त व वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक को घटना के कारणों की संयुक्त रूप से जांच करने के निर्देश दिए हैं.

खूनी जमीन की कहानी

घोरावल के उभ्भा गांव में खूनी जमीन की कहानी बहुत लंबी है. इस की शुरुआत साल 1900 से हुई थी. इस के पहले यहां की जमीन पर आदिवासी काबिज थे. इस जमीन पर वे बोआई  और जुताई करते थे.

17 दिसंबर, 1955 में बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी बना कर तकरीबन 639 बीघा जमीन उस के नाम करा दी.

इस के बाद महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर के 148 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्रा पत्नी प्रभात कुमार मिश्रा, पटना के नाम करा दी.

महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा के दामाद आईएएस अफसर थे. ऐसे में राबर्ट्सगंज के तहसीलदार ने दबाव में आ कर काम किया. यही जमीन बाद में आशा मिश्रा की बेटी विनीता शर्मा उर्फ किरन कुमार पत्नी भानु प्रसाद आईएएस निवासी भागलपुर के नाम कर दी.

जमीन परिवार के लोगों के नाम होती रही, पर उस पर खेती का काम आदिवासी लोग करते थे. जमीन से जो पैदा होता था, उस का पैसा आदिवासी आईएएस परिवार को देते रहते थे.

17 अक्तूबर, 2017 को विनीता शर्मा ने जमीन को गांव के ही प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर को बेच दिया. तब से ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर जमीन पर कब्जा करने की फिराक में था.

इस जमीन के विवाद की जानकारी सभी जिम्मेदार लोगों को थी. यहां तक कि इस की शिकायत आईजीआरएस पोर्टल पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार से की गई थी. बिना किसी तरह से निस्तारण किए इस को निस्तारित बता कर मामले को रफादफा कर दिया था.

मूर्तिया के रहने वाले रामराज की शिकायत पर मार्च, 2018 में अपर मुख्य सचिव, सचिव, राजस्व एवं आपदा विभाग और जुलाई, 2018 में जिलाधिकारी सोनभद्र को नियमानुसार कार्यवाही के लिए भेजा गया.

अगस्त, 2018 में तहसीलदार की जांच आख्या प्रकरण के बाबत वाद न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन सोनभद्र के यहां विचाराधीन है. वर्तमान में प्रशासनिक आधार पर किसी तरह की कार्यवाही की जानी मुमकिन नहीं है. इस के बाद इसे निस्तारित दिखा दिया गया.

7 अप्रैल, 2019 को राजकुमार ने शिकायत दर्ज कराई कि उन की अरहर की फसल आदिवासियों ने काट ली. इस के बाद घोरावल थाने में 30 आदिवासियों के नाम मुकदमा लिख दिया गया, जबकि आदिवासियों की शिकायत पर दूसरे पक्ष पर कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई.

नरसंहार के बाद अब ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के बारे में छानबीन की जा रही है. उस के द्वारा कराए गए कामों की गहनता से जांचपड़ताल की जा रही है.

दबाव में जागी सरकार

तकरीबन 12,000 की आबादी वाले उभ्भा गांव के 125 घरों की बस्ती में टूटी सड़कें, तार के इंतजार में खड़े बिजली के खंभे बदहाली की कहानी बताते हैं. इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं के पहुंचने का सालोंसाल से इंतजार करते थे, लेकिन 17 जुलाई को हुई नरसंहार की वारदात के बाद यहां पहली बार शासन की योजनाएं पहुंचने लगी है.

63 साल से भी ज्यादा उम्र की कमलावती कहती हैं, ‘‘हमारी उम्र के लोगों को वृद्धावस्था पैंशन मिलती है, लेकिन हमारा नाम काट दिया गया. हमें आज तक पैंशन का फायदा नहीं मिला, न ही किसी दूसरी सरकारी योजना का फायदा मिला है.

‘‘इस घटना के बाद लगे कैंप में अब फार्म भरवाया गया है. इतने दिन तक तो हमें पता भी नहीं था कि सरकार की कौनकौन सी योजनाएं चलती हैं. राशनकार्ड तो बना था, लेकिन राशन नहीं मिलता था. इस नरसंहार में हम ने अपना बेटा खोया है, तब जा कर आवास के लिए फार्म भरवाया गया है.’’

इसी गांव की रहने वाली लालती देवी कहती हैं, ‘‘पहले न तो गांव में बिजली थी और न ही किसी के पास पक्का मकान था. इतनी बड़ी बस्ती में महज एक पक्का मकान था. घटना के बाद आवास के लिए फार्म भरवाया गया है. राशनकार्ड भी बन गया है. इलाज के लिए आयुष्मान भारत योजना का कार्ड भी बना दिया गया.’’

लालदेई कहती हैं, ‘‘इस घटना के बाद गांव में अधिकारियों का आना शुरू हुआ है. अब पूछपूछ कर योजनाओं का फायदा दे रहे हैं. नया बिजली कनैक्शन दे रहे हैं. आवास के लिए आवेदन हो रहा है. सरकार की योजनाएं तो इतनी चलती हैं, पर इस घटना के पहले बिजली कनैक्शन, आवास, शौचालय कुछ भी नहीं था.’’

खेल कब्जे का

सोनभद्र में एक लाख हैक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर गैरकानूनी तरीके से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं. जिले में तैनात हुए ज्यादातर अफसरों ने करोड़ों की जमीन वन और राजस्व विभाग के मुलाजिमों की मिलीभगत से अपने नाम पर ली है.

पीढि़यों से जमीन जोत रहे वनवासियों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है.

5 साल पहले यानी साल 2014 में वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भूअभिलेख एवं बंदोबस्त) एके जैन ने एक रिपोर्ट दी थी और पूरे मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश भी की थी. यह रिपोर्ट फाइलों में दब गई थी.

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इस रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है. अब तक एक लाख हैक्टेयर से ज्यादा जमीन गैरकानूनी तरीके से बाहर से आए ‘रसूखदारों’ या उन की संस्थाओं के नाम की जा चुकी है. यह प्रदेश की कुल वन भूमि का 6 फीसदी हिस्सा है.

इस पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की थी. रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में 1987 से ले कर अब तक एक लाख हैक्टेयर जमीन को गैरकानूनी तरीके से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है, जबकि भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा के तहत यह जमीन ‘वन भूमि’ घोषित की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बिना इसे किसी शख्स या प्रोजैक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता. वन भूमि को ले कर होने वाला खेल यहीं नहीं रुका है, बल्कि धीरेधीरे अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एकदूसरे को बेचने के अधिकार भी लगातार दिए जा रहे हैं.

यह वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का सरासर उल्लंघन है. साल 2009 में राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. इस में कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर के अनियमितता की है.

हालात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 40 साल पहले सोनभद्र के रेनूकूट इलाके में 1,75,896.490 हैक्टेयर भूमि को धारा 4 के तहत लाया गया था. लेकिन इस में महज 49,044,89 हैक्टेयर भूमि ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा-20 के तहत) मिल सकी.

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यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र में है. वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भूअभिलेख एवं बंदोबस्त) एके जैन की यह रिपोर्ट बताती है कि सोनभद्र ही नहीं, बल्कि ऐसे तमाम जिलों में वन भूमि से वहां के रहने वालों को बेदखल किया जा रहा है.          द्य

शौचालय में चढ़ा चूल्हा

इस मामले में और ज्यादा विवाद तो तब बढ़ा जब 23 जुलाई को राज्य की महिला विकास मंत्री इमरती देवी ने कहा, ‘‘आप को समझना चाहिए कि शौचालय के अंदर एक दीवार है. उस के एक तरफ सीट रखी है और दूसरी तरफ खाना पक रहा है. इस में क्या समस्या है?

‘‘हमारे घरों के कमरों में भी अटैच्ड लैट्रिनबाथरूम होते हैं. क्या हम लोग या हमारे घर आने वाले मेहमान हमारे घर का खाना खाने से इनकार कर देते हैं कि आप के घर में अटैच्ड लैट्रिनबाथरूम है?’’

गहलोत की खरीखरी

जयपुर. 23 जुलाई को कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर्नाटक के नाटक पर कहा, ‘‘यह घटनाक्रम लंबे समय से चल रहा है. पूरा देश देख रहा है कि किस तरह मोदीजी को भारी बहुमत मिला लेकिन

आम जनता को उम्मीद नहीं थी कि जीतने के बावजूद राजग सरकार इस तरह की हरकत करेगी…

‘‘कर्नाटक में आप तमाशा देख ही रहे हैं. जोकुछ हो रहा है वह जनता के जेहन में बैठ रहा है और आने वाले वक्त में उन्हें यह भारी पड़ेगा. इन की खुद की पार्टी में बगावत होगी, यह मैं कह सकता हूं…

‘‘ये लोग लोकतंत्र को खत्म करने का खेल खेल रहे हैं. इन का बस चले तो हिंदुस्तान भर में यही काम करेंगे. और कोई काम तो है नहीं इन के पास. देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है, नौजवानों में गुस्सा पैदा हो रहा है, किसान खुदकुशी कर रहे हैं, इन्हें उस की चिंता नहीं है.’’

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नेता के भाई की धोखाधड़ी

देहरादून. 23 जुलाई को उत्तराखंड के बड़े कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय के छोटे भाई

सचिन पर ब्लैकमेलिंग और धोखाधड़ी के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाया गया.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस संबंध में जून महीने में एक बिल्डर द्वारा की गई शिकायत पर जांच के आदेश दिए थे. बिल्डर मुकेश जोशी ने मुख्यमंत्री से मिल कर अपने बिजनैस पार्टनर रह चुके सचिन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने एसएम होस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड नाम के बिजनैस जौइंट वैंचर में उन के 50 फीसदी शेयर उन के फर्जी दस्तखत कर अपनी पत्नी के नाम कर दिए थे.

मुकेश जोशी ने सचिन पर ब्लैकमेल करने का भी आरोप लगाते हुए उन के बड़े भाई किशोर उपाध्याय की राजनीतिक हैसियत को देखते हुए अपनी जान के खतरे का डर भी जताया था. किशोर उपाध्याय उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं.

दिल्ली की मोदी से नई मांग

नई दिल्ली. अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग को ले कर शहर के विकास के लिए केंद्र सरकार से पैसे से मदद मांगी है.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 25 जुलाई को 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह से मुलाकात की, उन्हें एक ज्ञापन सौंपा और कहा कि जिस तरह से केंद्र सरकार बाकी राज्यों को पैसा देती है, उसी तरह से केंद्रीय करों में दिल्ली को उस की वाजिब हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.

मीडिया के साथ बातचीत में अरविंद केजरीवाल ने बताया कि केंद्र सरकार को दिल्ली तकरीबन पौने

2 लाख करोड़ रुपए इनकम टैक्स जमा कर के देती है, उस में से दिल्ली को यहां के विकास के लिए केवल 325 करोड़ रुपए ही वापस मिलते हैं. सालों से इतना ही पैसा दिया जाता रहा है. बाकी राज्यों की तरह दिल्ली के नगरनिगमों को भी पैसा दिया जाना चाहिए.

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बैकफुट पर आजम खां

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और सांसद आजम खां ने 24 जुलाई को लोकसभा में भाजपा की

एक सांसद रमा देवी पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी, जिस के बाद उन्हें लेने के देने पड़ गए. उन की इतनी किरकिरी हुई कि रमा देवी को अपनी बहन जैसा बताना पड़ा.

लेकिन देश की महिला नेताओं को आजम खां का ऐसा कहना रास नहीं आया. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, भाजपा नेता जया प्रदा समेत कई दिग्गज नेताओं द्वारा आजम खां के कथन की निंदा की गई.

इतना ही नहीं, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी आजम खां की टिप्पणी को अशोभनीय बताते हुए उन्हें सभी औरतों से माफी मांगने को कहा. बाद में आजम खां ने माफी भी मांगी.

झटके पर लगा झटका

मुंबई. लगता है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. 24 जुलाई को उस की मुंबई इकाई के प्रमुख और महाराष्ट्र के मंत्री रह चुके सचिन अहिर शिव सेना में शामिल हो गए थे और बाद में सुनने में आया कि इस दल की महाराष्ट्र महिला विंग की अध्यक्ष चित्रा वाघ ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं नैशनलिस्ट महिला महाराष्ट्र प्रदेश के अध्यक्ष पद और एनसीपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देती हूं.’’

लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ने से राकांपा का महाराष्ट्र में जनाधार खतरे में दिखाई पड़ने लगा है. नेता पार्टी न छोड़ें, इस के लिए ठाणे में राकांपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हवन कराया, पर लगता है, वह भी काम नहीं आया.

रिकौर्ड घंटे चली बैठक

गांधीनगर. गुजरात की 14वीं विधानसभा ने एक दिन की सब से लंबी बैठक के साल 1993 के अपने ही रिकौर्ड को तोड़ दिया. 26 और 27 जुलाई को विधानसभा की कार्यवाही 17 घंटे और 40 मिनट तक चली थी. यह 26 जुलाई की सुबह 10 बजे शुरू हुई थी और अगले दिन के तड़के 3 बज कर 40 मिनट पर खत्म हुई थी.

शनिवार, 27 जुलाई को जारी की गई एक प्रैस रिलीज के मुताबिक, ‘चौथे सैशन का आखिरी दिन गुजरात विधानसभा के लिए ऐतिहासिक रहा क्योंकि इस की कार्यवाही 17 घंटे और 40 मिनट तक चली और इस से 6 जनवरी, 1993 का रिकौर्ड टूट गया.’

6 जनवरी, 1993 को विधानसभा की कार्यवाही

12 घंटे और 8 मिनट तक चली थी. इस सिलसिले में विधानसभा अध्यक्ष के ऐलान के बाद विधायकों और अफसरों ने इस ‘ऐतिहासिक घटना’ पर खुशी मनाई.

पूर्व विधायक की चिंता

श्रीनगर. जम्मूकश्मीर के विधायक रह चुके शेख अब्दुल राशिद ने रविवार, 28 जुलाई को केंद्र सरकार पर लोगों के बीच डर पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाया और यह अपील की कि केंद्र कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाए.

अवामी इत्तेहाद पार्टी के प्रमुख शेख अब्दुल राशिद ने कहा कि भाजपा वाली केंद्र सरकार को राज्य में ‘प्रयोग’ करना बंद करना चाहिए और यहां अतिरिक्त बलों की तैनाती को ले कर अफवाहों पर जवाब देना चाहिए. उन्होंने केंद्र को अनुच्छेद 35ए या अनुच्छेद 350 के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ आगाह भी किया.

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राजद में फिर टूट

पटना. केंद्रीय मंत्री रह चुके मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने रविवार, 28 जुलाई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) की सदस्यता ले ली.

राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के बड़े नेता माने जाने वाले मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने हालिया लोकसभा चुनावों में टिकट नहीं मिलने से नाराज हो कर राजद से नाता तोड़ लिया था.

मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने कहा कि जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में हो रहे न्याय के साथ विकास, खासकर बिहार के अल्पसंख्यकों के लिए सरकार द्वारा जितनी भी जनोपयोगी योजनाएं बनाई और चलाई गई हैं, इस से पहले किसी भी पार्टी की सरकार द्वारा ऐसा नहीं हुआ है.

‘दो भैसों की लड़ाई में पूरा देश चौपट हो गया’- हीरा सिंह मरकाम

साक्षात्कार – हीरा सिंह मरकाम राष्ट्रीय अध्यक्ष गोंडवाना गणतंत्र पार्टी

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सुप्रीमो हीरा सिंह छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की राजनीति के एक बड़े स्तंभ कहे जाते हैं. हीरा सिंह ने शिक्षक से विधायक और अपनी पार्टी गठन करने के पश्चात समाज को एकजुट करने का अथक प्रयास किया है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इनकी गहरी पकड़ है यही कारण है कि राहुल गांधी हो या अखिलेश यादव अथवा अजीत जोगी आप से गठबंधन की अपेक्षा रखते हैं. प्रस्तुत है विश्व आदिवासी दिवस पर उनसे हुई एक विशेष बातचीत…

दादा, 80 वर्ष की उम्र में जीवन का क्या निचोड़ है, आपका क्या संदेश है…?
मेरा जन्म प्रकृति के बीच गांव में हुआ. जब हम ऊपर देखते थे तो पेड़ से फल मिल जाते थे नीचे कोरहाई के जंगल में एक घंटे मे टोकरी भर कर भरपूर कांदा- फल मिल जाता था .कहां गया सब….मैं तो कहूंगा सरकार जिसको छुती है छूत लग जाती है, कहीं कोई सफलता नहीं है . सब कुछ निजीकरण करते चले जाते हैं क्योंकि राजा की नियत न हो राजा का चरित्र न हो तो देश और अवाम का भला कैसे होगा. मै ठीक बाकी दुनिया खराब है आज का फलसफा यही है चाहे सत्ता में कोई बैठे.
हम कर रहे हैं वहीं ठीक है एक साधु ने लिखा था न ! दो भैसा की लड़ाई में चिरकुट होगे नाव ! गांव के सुम्मत के गांधी बाबा के सुम्मत के… दो भैसा के लड़ाई में…. तो दो भैसा की लड़ाई में पूरा देश चौपट हो गया .

अर्थात आपका इशारा भाजपा और कांग्रेस पार्टियों की तरफ है और राजनीतिक दल अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे…

हां इनको देश से कोई लेना देना नहीं है आप अच्छी तरह जानते हैं जिनका सिर्फ देश सेवा का लक्ष्य नहीं वह नेता रातों रात अरबपति हो जाते हैं. अमित शाह का बेटा 80 हजार से 12 हजार करोड़ रुपए कमा लेता है . आखिर कौन सा यंत्र है इनके पास. रातों-रात… और भी तो भाई हैं 80 हजार वाले जो पैसा लगा पसीना बहाते हैं तब भी उनका पैसा बढ़ता नहीं है . बाबू, अफसरों के चक्कर में ठेकेदारी कर फंस जाता है, हाथ जोड़ गिङगिडाता है.

आप राजनीति में आने से पूर्व शिक्षक थे, नौकरी की थी?
हां, मैं आठ डिपार्टमेंट संभालता था. बोरों में नोट होते थे . दस दस चपरासी होते थे. मैं कभी तनख्वाह नहीं बाटंता था, चपरासी बाटंते थे . बाबू कहते थे,- दादा! फंस जाओगे किसी दिन. मैं कहता,- मैं तो रखवार हूं पैसा तो उन्हीं का है. बेईमानी करेंगे तो फिर दूसरे दिन 11 से 4 बजे पढ़ाऊंगा. 5 बजे के बाद तनख्वाह बाटूंगा तो आधी रात को घर जाएंगे . सब समझ में आ जाएगा . तब एक नोट भी ज्यादा चला जाता तो लेकर वापिस आ जाते और कहते- ‘दादा! यह ज्यादा ले गए थे . ऐसी इमानदारी का युग था, शिक्षक बच्चों को अपने बेटे से ज्यादा चाहता था .आज तो अगर आपने बच्चों को ट्यूशन नहीं पढ़ाई तो वह बच्चा गया.

आगामी चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की क्या रणनीति होगी ?
देखो! हमने मेहनत से अपने वोटर तैयार किए हैं हम उन्हें भटकने नहीं देंगे…. आने वाले समय में जैसे ही स्वस्थ होऊंगा मैं चुनावी सभाओ मैं पहुंचूगा . मैं वोटर को अन्नदाता और श्रमवीर मानता हूं उनके सम्मान के लिए काम करूंगा.

आपने किसान की बात की… क्या आप भी खेती किसानी से जुड़े रहे हैं ?
हां,मैं सुबह 4 बजे उठ जाया करता था विधायक बनने के बाद भी मैं खेती करता था. 4 बजे सुबह नागर फांद देता था. सब्जियां लगी हुई है जिसको चाहिए ले जाए… देख कर सीखे यह आशा थी. आज तो वह स्थिति नहीं रही स्वास्थ्य साथ नहीं देता.

आप की पार्टी और आप का विजन क्या है ?
0 जल, जंगल, जमीन है गोंडवाना के अधीन . हमारा ग्रह ग्राम तिवरता (जिला कोरबा ) कोयला खदान द्वारा अधिग्रहित नहीं है मगर सबसे ज्यादा भोग रहा है पूरी सड़क पेड़ नाले खेत रास्ते दमा के पेशेंट है क्या दे रही कोयला कंपनी आवाम को. सामाजिक सहभागिता यानी सीएसआर की राशि जिलाधीश अपने पास मंगा लेता है.डिस्टिक माइनिंग फंड ( ङीएमएफ ) को मनमाना खर्च किया जा रहा…है लोग दमा, ह्रदय रोग से बीमार हो रहे हैं आसपास के सभी गांव प्रभावित हो रहे हैं. सामाजिक,राजनीतिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रभावित हो रहे ,युवा शराब की लत से पीड़ित हो गए, परिवार नष्ट हो रहे .

विश्व आदिवासी दिवस पर आपका आदिवासी समाज को क्या संदेश है?

पहली बात है हमअपना ‘वोट’ का महत्व समझ जाए .वोट बिके नहीं,अगर बिकेगा तो यही कहा जाएगा कि तुमने वोट दिया थोड़ी है,हमने तो तुम्हारा वोट खरीदा है इस अपमान से बच जाओ.यह शिक्षा गोंडवाना दे रही है .जहां तक केंद्र की बात है चुनाव की … क्षेत्रीय दलों का भी बड़ा महत्व है…. नरबलि नहीं होत है समय होत बलवान अर्जुन लुटे भिलनी वहीं अर्जुन वही बाण …. यही भवितव्य है.

क्षेत्रीय दलों की क्या भूमिका देखते हैं आप वर्तमान चुनावी समर में ?
देखिए ममता, नवीन,लालू,अखिलेश यादव जी मायावती सभी अपने अपने दृष्टिकोण बदले हुए हैं और चाह रहे हैं कि अरस्तू ने कहा था अगर जनता में घोर असंतोष हो जाए तो पड़ोसी देश पर हमला कर दो…जनता देश भक्ति के धारा में बह जाएगी और तुम चुनाव जीत जाओगे यही आज देश की स्थिति बनी हुई है तो 358 ईसवी पूर्व अरस्तू ने यह बता दिया था जो अभी नजर आ रहा है .

 नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों की कार्यप्रणाली आप देख रहे हैं कुछ कहेंगे…?
0 नरेंद्र मोदी जो बाण चला रहे हैं वह हृदयगाही नहीं है दरअसल दोनों के दोनों के पास प्रधानमंत्री पद की समझ, योग्यता में कमी दिखाई दे रही है. मुखिया मुख सो चाहिए खान पान को एक पाले पोसे अंग तुलसी सहित विवेक. आपको, सबको समान मानकर चलना चाहिए क्या मुसलमानों ने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी उन्हें कहां बसाओगे ? देश में गृह युद्ध शुरू हो जाएगा उनमें भी देश प्रेम है या फिर सविधान बदल दो धर्मनिरपेक्षता खत्म कर दो.यह धार्मिक सोचनीय स्थिति है.

कोरबा संसदीय क्षेत्र आपका गृह जिला है यहां गोंडवाना क्या करने जा रही है ?

सांपनाथ और नागनाथ वाली स्थिति है. इसमें कुछ फर्क नहीं नाग धार्मिक भाव है. आज नरवा, गरवा, धुरवा,बाड़ी की बात हो रही है यह कहां शुरू हुआ.

भूपेश सरकार ने किसानों के लिए ऐतिहासिक काम प्रारंभ किया है कर्जा मुक्ति…
(बीच में ही कटाते हुए) … क्या किसानों को स्वावलंबी बनाया आपने ?
जो कर्ज माफ किया, 2500 रुपए क्विंटल धान का ले रहे हो, जब आगे चावल ₹70 किलो बिकेगा तब किसके ऊपर आएगा?यह प्रत्यक्ष रूप से जनता का शोषण है, हाथी के दांत दिखाने के और खाने के अलग… किसान आगे फिर लाठी गोली खाएगा… कर्मचारी तो हड़ताल करके अपना वेतन बढ़वा लेगा कर्ज़ माफी का लालीपाप है . खेत स्मार्ट हो, किसान स्मार्ट हो जाएगा गांव और देश स्मार्ट हो जाएगा.

गोंडवाना की सरकार बनती है तो वह सरकार कैसी होगी क्या कल्पना है आपकी?
0 हमारी सरकार गांव की सरकार होगी. हम आदर्श के रूप में एक गांव को मॉडल के रूप में विकसित करके दिखाएंगे की क्या जब यह गांव माडल बन सकता है तो बाकी गांव क्यों नहीं… भ्रष्टाचार. शोषणविहीन, ऋणमुक्त प्रगतिधर्मी समाज व्यवस्था यह हमारा मूल मंत्र है.जल जंगल जमीन गांव की प्रभुसत्ता होगी गांव स्वावलंबी होगा सब कुछ गांव का आज की तरह नहीं की रेत ,नाला, सड़क सब कुछ सरकार का और हम किसके हैं भई…!

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