देसी चुनावों में जीत पा जाना कोई कमाल की बात नहीं है खासतौर पर जब यह पैसा देने को भी तैयार हो और भक्तों का चलाया जा रहा मीडिया लोगों को पाखंडी और अंधविश्वासी के साथ राज्य की भक्ति भी सिखा रहा. नेता की ताकत तो तब दिखती है जब दूसरे देश उस की सुनते हों, उसे नाराज करने की हिम्मत न करते हों.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने की वजह से बारीबारी से मिलने वाली जी-20, बड़े 20 देशों की संस्था के अध्यक्ष बने हैं पर उन के अध्यक्ष की कुर्सी लेने के कुछ दिन बाद ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ शुरू कर दी यही नहीं, मुसलिम देशों के संगठन औगैंनाइजेशन औफ इस्लामिक कंट्रीज के महासचिव ने भारत के कश्मीर के उस हिस्से का दौरा कर लिया जो पाकिस्तान ने 1947 से जबरन दबोच रखा है.

अच्छा नेता वह होता है जिस का खौफ न हो तो कम से कम इज्जत हो कि उसे अपने देश में नीचा देखने की जरूरत न पड़े. पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर घूमने जाने से या अरुणाचल प्रदेश में घुस जाने से भारत टूटने नहीं वाला, न उसे.....है पर यह सवाल जरूर कर सकता है कि जब केंद्र में दिल्ली में बैठी सरकार इतनी मजबूत है तो ऐसा हो ही क्यों रहा है.

अपने देश में अपने बलबूते पर चुनाव जीतना किसी देश के नेता के लिए काफी नहीं है. हर देश का नेता चुनाव जीत कर या लड़ कर जीत कर ही नेता बनता है. बड़ा नेता वह होता है जिस की सब की इज्जत करें. जवाहरलाल नेहरू ने 1962 में धोखा खाया था. उन्हें लगा कि महात्मा गांधी के शिष्य होने की वजह से उन्हें दुनिया भर में इज्जत मिलेगी और चाहे चुनाव उन्होंने जीते हो, बेहद लोकप्रिय रहे हो. कानून मानने वाले रहे हों, माओ त्से तुंग के चीन ने. 1862 में हमला कर के मोहभंग कर दिया.

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