बदले पे बदला

नए साल का पहला दिन हर किसी के लिए खास होता है. तरुण के लिए इस साल का पहला दिन
कुछ ज्यादा ही खास था, क्योंकि इस दिन उस की प्रेमिका मेघा उसे अपना सब कुछ सौंप देने वाली थी. मेघा के बारे में सोचसोच कर तरुण पर तरुणाई सवार होती जा रही थी. दिसंबर 2018 के आखिरी दिन उस ने गिनगिन कर कैसे काटे थे, यह वही जानता था.

जवानी की दहलीज की सीढि़यां चढ़ रही मेघा बेहद खूबसूरत और छरहरी थी. साथ ही इतनी सैक्सी भी कि उस से अपने यौवन का भार उठाए नहीं उठता था. यही हाल 24 वर्षीय तरुण का भी था, जिस के लबों पर बरबस ही यह गाना रहरह कर आ जाता था, ‘उम्र ही ऐसी है कुछ ये तुम किसी से पूछ लो, एक साथी की जरूरत होती है हर एक को…’

पहली जनवरी को तरुण पर्वतों से टकराने नहीं बल्कि एक ऐसा पर्वत चढ़ने जा रहा था, जिस की ख्वाहिश हरेक युवा को होती है. फिर उसे तो बगैर कोई खास कोशिश किए अपनी प्रेमिका से सब कुछ मिलने जा रहा था. उस के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

सुबह जब दुनिया भर के लोग नए साल के जश्न की तैयारियों में लगे थे, तब तरुण खासतौर से सजसंवर कर घर से निकला. उस दिन मोबाइल पर मेघा से उस की कई बार बात हुई थी.

उस से मिलने को बेचैन तरुण हर बार घुमाफिरा कर यह जरूर कंफर्म कर लेता था कि मेघा का सैक्सी पार्टी देने का मूड कहीं बदल तो नहीं गया. हर बार जवाब उम्मीद के मुताबिक मिलता तो उस का हलक सूखने लगता और सीने में दिल की धड़कन बढ़ जाती.

तरुण खुद भी कम हैंडसम नहीं था. लंबे चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी और सिर पर घने घुंघराले बालों वाले तरुण के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. अपने मातापिता का एकलौता और लाडला बेटा था वह, जिसे काम भी अच्छा मिल गया था. वह बिलासपुर की ट्रैफिक पुलिस के लिए सीसीटीवी कैमरे ठेके पर चलाता था, जिस से उसे खासी आमदनी हो जाती थी.

सुबह ही सजसंवर कर तैयार हो गए तरुण ने मां राजकुमारी को पहले ही बता दिया था कि साल का पहला दिन होने के चलते काम ज्यादा है, इसलिए वह आज थोड़ी देर से आएगा.

राजकुमारी ने अपने पति शांतनु के साथ दोपहर तक तरुण का इंतजार किया, लेकिन खाने के तयशुदा वक्त पर वह नहीं आया तो उन्होंने उस के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन हर बार उन के हाथ निराशा ही लगी. क्योंकि तरुण का फोन बंद था. पतिपत्नी दोनों ने बेटे को हरसंभव जगह पर देखा, लेकिन वह नहीं मिला तो वे चिंतित हो उठे.

बात थी भी कुछ ऐसी कि उन का चिंतित होना स्वाभाविक था, इसलिए सूरज ढलने से पहले तक दोनों ने तरुण को ढूंढा और जब उस की कोई खबर नहीं मिली तो दोनों रात 10 बजे सरकंडा थाने जा पहुंचे और बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

यहां तक बात सामान्य थी, लेकिन जब राजकुमारी ने प्रभात चौक निवासी अपनी ही पड़ोसन बेबी और उस के पति बालाराम मांडले पर तरुण के अपहरण का शक जताया तो पुलिस वालों का माथा ठनका.

पुलिस वालों का माथा ठनकने के पीछे ठोस वजह भी थी, जो शुरुआती जांच और पूछताछ में ही सामने आ गई थी. यह वजह तरुण के अपहरण से ज्यादा महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प थी, साथ ही चिंताजनक भी.

हुआ यूं था कि कुछ साल पहले बेबी प्रभात चौक चिंगराजपुरा में रहने आई थी. उस का घर शांतनु रातड़े के घर से लगा हुआ था. 40 साल की बेबी 3 जवान होते बेटों की मां थी. उस के भरेपूरे और गदराए बदन को देख शायद ही कोई मानता कि वह 40 साल की है. लेकिन यह मीठा सच था.

एक प्राइवेट अस्पताल में काम करने वाली बेबी मांडले की खूबसूरती और जिस्मानी कसावट किसी सबूत की मोहताज नहीं थी.

अपनी इस नई पड़ोसन पर शांतनु खुद को मर मिटने से रोक नहीं पाया और जल्द ही दोनों में शारीरिक संबंध बन गए. यह सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि दोनों परिवारों में पहले निकटता बढ़ी और फिर सभी सदस्य एकदूसरे के यहां आनेजाने लगे.

शांतनु बेबी के चिकने जिस्म की ढलान पर फिसला तो शुरुआती मौज के बाद जल्दी ही दुश्वारियां भी पेश आने लगीं. शांतनु और बेबी का वक्तबेवक्त मिलना दोनों के घर वालों खासतौर से बेटों को रास नहीं आया तो निकटता की जगह कलह ने ले ली.

अधेड़ उम्र के शांतनु और बेबी के रोमांस के किस्से चिंगराजपुरा में चटखारे ले कर कहे सुने जाने लगे. लेकिन उन दोनों पर जगहंसाई और कलह का कोई खास फर्क नहीं पड़ा. दोनों एकदूसरे में समा जाने का मौका कब कैसे निकाल लेते थे, इस की हवा भी किसी को नहीं लगती थी.

घर वालों का ऐतराज बढ़ने लगा तो इन अधेड़ प्रेमियों ने सब को चौंकाते हुए साथ रहने का फैसला ले लिया. पत्नी बेबी का यह रूप देख उस का पति बालाराम अपने बेटों को ले कर राजकिशोर यानी आर.के. नगर में जा कर रहने लगा. राजकुमारी भी तरुण को ले कर पति से अलग रहने लगी.

उधर शांतनु और बेबी बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे, जिन की मौजमस्ती के सारे बैरियर खुद उन के रास्ते से हट गए थे.

हालांकि जब भी राजकुमारी और बेबी मोहल्ले में आमनेसामने पड़ जातीं तो उन में खूब कलह होती थी. दोनों बीवियों की इस लड़ाई से शांतनु कोई वास्ता नहीं रखता था, उस का मकसद तो बेबी का शरीर था, जिस पर अब उस का पूरी तरह मालिकाना हक था.

इसी दौरान तरुण को सिविललाइंस थाने में यातायात पुलिस के सीसीटीवी का काम मिल गया तो उस की इमेज भी एक पुलिस वाले की बन गई. यह दीगर बात थी कि वह सिर्फ डाटा रिकौर्ड करने का काम करता था.

तरुण की गुमशुदगी से इस कहानी का गहरा ताल्लुक है, यह पुलिस वालों को उस वक्त और समझ आ गया जब उन की जानकारी में यह बात भी आई कि बेबी और शांतनु कुछ दिनों तक साथसाथ रहे थे. बाद में दोनों अपनेअपने घरों को लौट आए थे.

दरअसल, दोनों का जी एकदूसरे से भर गया था या कोई और वजह थी, यह तो किसी को नहीं पता. लेकिन बात तब गंभीर लगी जब पिछले साल सितंबर में बेबी के बड़े बेटे नीलेश मांडले की लाश संदिग्ध अवस्था में बिलासपुर कोटा रेलवे लाइन पर मिली.

बेबी को शक था कि कहीं तरुण ने उस से बदला लेने के लिए नीलेश की हत्या कर या करवा न दी हो. जबकि पुलिस की जांच में इसे खुदकुशी माना गया था. इस से बेबी को लगा कि नीलेश के पुलिस से नजदीकी संबंध होने के चलते पुलिस वाले मामले को खुदकुशी करार दे कर दबा रहे हैं.

इस बारे में उस ने शांतनु से बात की तो शांतनु ने अपने बेटे तरुण का पक्ष लिया. इस से बेबी और ज्यादा तिलमिला उठी. उसे लगा कि बापबेटे दोनों उसे बेवकूफ बना रहे हैं. शांतनु की चाहत उस के शरीर तक ही सीमित है, उसे नीलेश की मौत से कोई लेनादेना नहीं है. नीलेश की जगह अगर तरुण मरा होता तो उसे समझ आता कि जवान बेटे को खो देने का दर्द क्या होता है.

जिस तरह दोनों अपनेअपने परिवार से अलग हुए थे, इस मसले पर विवाद होने के बाद अपनेअपने घरों को कुछ इस तरह लौट गए, मानो कुछ हुआ ही न हो. शांतनु राजकुमारी और तरुण के पास अपने घर चला गया और बेबी बालाराम और दोनों बेटों के पास चली गई.

तरुण के गायब होने का इस कहानी से संबंध जोड़ते हुए पुलिस ने तफ्तीश शुरू की और दूसरे दिन सुबह को बेबी और बालाराम को थाने बुला लिया. जब दोनों से तरुण के बाबत पूछताछ की गई तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता. चूंकि दोनों सच बोलते लग रहे थे, इसलिए पुलिस वालों ने उन्हें जाने दिया.

लेकिन तरुण का अभी तक कहीं अतापता नहीं था. अब तक किसी को उस के और मेघा के प्रेम प्रसंग के बारे में कुछ मालूम भी नहीं था. अगर वह किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो अब तक उस का पता चल जाता, लेकिन पूछताछ और जांच में ऐसी कोई बात या घटना सामने नहीं आई थी, जो तरुण से ताल्लुक रखती हो.

लेकिन जांच के दौरान पुलिस वालों को पता चला कि तरुण आखिरी बार मेघा गोयल के साथ दिखा था, जो लिंगियाडीह की रहने वाली थी. पूजा और इमरान नाम के 2 गवाहों ने इस बात की पुष्टि की थी कि मेघा 1 जनवरी की दोपहर तरुण की बाइक पर सवार हो कर उस के साथ आर.के. नगर की तरफ जाती हुई दिखी थी.

मेघा तक पहुंचने के लिए पुलिस ने मोबाइल फोनों का सहारा लिया. तरुण के फोन की काल डिटेल्स निकालने पर पता चला कि पहली जनवरी को उस की एक खास नंबर पर ज्यादा और काफी लंबी बातें हुई थीं. लेकिन यह नंबर उस ने सेव नहीं किया था.

तरुण का मोबाइल नंबर ट्रेस करने पर पता चला कि उस की लोकेशन दोपहर 2 बजे से ले कर शाम 6 बजे तक आर.के. नगर में थी. बाद में उस की लोकेशन कोटा की मिली जो बिलासपुर से 30 किलोमीटर दूर है.

पुलिस वालों ने बेबी और बालाराम को पूछताछ के बाद जाने तो दिया, लेकिन दोनों पर शक बरकरार था. तरुण के फोन के इस अज्ञात नंबर और बेबी के फोन की लोकेशन एक साथ मिल रही थी. यह बात इस लिहाज से खटके की थी कि कहीं यह नंबर बेबी का ही तो नहीं है. इधर तरुण की गुमशुदगी की चर्चा पूरे बिलासपुर और छत्तीसगढ़ में होने लगी थी.

अब तक यह भी साफ हो गया था कि तरुण आखिरी बार कोटा में था. लेकिन किस हालत में, यह पता नहीं चल पा रहा था. मेघा के फोन के सहारे पुलिस ने उसे धर दबोचा तो एक नई सनसनीखेज और रोमांचक कहानी इस तरह सामने आई.

शुरू में मेघा ने यह तो मान लिया कि तरुण उस के साथ था, लेकिन उस ने यह कहते पुलिस को गुमराह करने की कोशिश भी की कि वह अपने घर चला गया था. लेकिन जल्दी ही वह पुलिस वालों के सामने टूट गई और तरुण की हत्या की बात स्वीकार ली. उस ने हैरतंगेज बात यह बताई कि कत्ल की इस वारदात में उस का साथ बेबी और बालाराम सहित उन के 2 बेटों योगेश और अभिषेक ने भी दिया था.

तरुण की हत्या की योजना बेबी ने ही बनाई थी, जो शांतनु से अलग होने के बाद से ही बदले की आग में जल रही थी. इसी दौरान उसे पता चला कि उस के बड़े बेटे नीलेश का प्रेम प्रसंग मेघा गोयल से था. दोनों साथसाथ पढ़ते थे.
बेबी जब मेघा से मिली तो उस की चंचलता देख उस की बांछें खिल उठीं. बातों ही बातों में उसे पता चला कि मेघा भी नीलेश की मौत के बाद से खार खाए बैठी है और उस के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

बेबी उसे यह विश्वास दिलाने में सफल हो गई कि तरुण ही नीलेश का हत्यारा है और वह भी उस से बदला लेना चाहती है. मेघा जब इस बाबत तैयार होती दिखी तो बेबी ने उस से वादा किया कि तरुण की मौत के बाद वह उसे घर की बहू जरूर बनाएगी.
पर हत्या कैसे की जाए, इस की योजना बेबी ने मेघा को बता दी. साथ ही उसे एक सिम भी खरीद कर दे दिया. योजना के मुताबिक मेघा ने तरुण को फोन करने शुरू किए. लेकिन बात करने के बजाय वह हर बार रौंग नंबर कह कर फोन काट देती थी.
आवाज सुन कर ही तरुण ने अंदाज लगा लिया कि जिस की आवाज इतनी खनक भरी है, वह लड़की जरूर सुंदर होगी. धीरेधीरे यह रौंग नंबर राइट नंबर में तब्दील हो गया और मेघा व तरुण लंबीलंबी बातें करने लगे.
जब तरुण जाल में फंसने लगा तो बेबी ने मेघा को समझाया कि लोहा गरम हो चुका है, अब चोट करने का वक्त आ गया है. चूंकि मिलने के लिए एकांत की जरूरत थी, इसलिए बेबी ने आर.के. नगर में 4 हजार रुपए महीने पर एक मकान किराए पर ले लिया.
किसी गुरु की तरह मेघा को समझाते हुए बेबी ने मंत्र दिया कि सैक्स हर मर्द की कमजोरी होती है, इसलिए तुम अकेले में तरुण को अपने हुस्न की पूरी झलक दिखा देना. इस से उस की प्यास और भड़केगी, लेकिन भूल कर भी उस की प्यास बुझा मत देना. इस के बाद हम उसे जब, जहां, जैसे बुलाएंगे, वह सिर के बल दौड़ा चला आएगा.

मेघा पहले एक होटल में तरुण से मिली तो वह अपनी खूबसूरत और सैक्सी टेलीफोनिक प्रेमिका को देखते ही पागल सा हो उठा. मेघा ने जब यह खबर बेबी को बताई तो उस ने उस से कहा कि पहली जनवरी को तरुण को अकेले में मिलने के लिए बुलाए.
इधर मेघा के हुस्न और इश्क के समंदर में खयाली गोते लगा रहे तरुण को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि वह उस के सौतेले भाई नीलेश की प्रेमिका है, जो उस की मौत की स्क्रिप्ट लिख रही है और जिस की डायरैक्टर बेबी है.
कुछ दिन बातों में और बीते तो तरुण खुल कर मेघा से कहने लगा कि एक बार मेरी प्यास बुझा दो. इस पर मेघा ने उसे बताया कि वह इस के लिए तैयार है.
उस ने यह भी कहा कि इस के लिए नए साल का पहला दिन ठीक रहेगा. इशारों में नहीं बल्कि उस ने खुल कर तरुण को यह भी बता दिया कि वह किस्मत वाला है, क्योंकि इस दिन उसे तोहफे में कुंवारापन मिलेगा.
इतना सुनना भर था कि तरुण की नींद, भूखप्यास सब गायब हो गई और वह बेसब्री से 1 जनवरी का इंतजार करने लगा. उस दिन वह मां राजकुमारी से झूठ बोल कर मेघा से मिलने आर.के. नगर के सूने मकान में गया तो मेघा ने उसे सब्र रखने की बात कह कर कौफी पिलाई, जिस में उस ने ढेर सारी नींद की गोलियां मिला दी थीं.
तरुण यह सोचसोच कर खुश था कि जल्द ही मेघा का नग्न संगमरमरी जिस्म उस की बांहों में मचल रहा होगा. दूसरी तरफ मेघा यह सोचसोच कर खुश हो रही थी कि आज वह अपने प्रेमी नीलेश की मौत का बदला लेगी.
कौफी पीने के बाद भी तरुण पर नींद की गोलियों का उतना असर नहीं हुआ, जितना उस की हत्या के लिए चाहिए था. बेकाबू हो आया तरुण अब शराफत भूल कर सैक्स करने पर आमादा हो गया था, इसलिए मेघा ने चालाकी से उसे क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश कर दिया. तरुण को तो पता भी नहीं चला होगा कि वह मेघा के नहीं बल्कि मौत के आगोश में है.
तरुण की बेहोशी की खबर मेघा ने बेबी को दी तो वह पति बालाराम और दोनों बेटों योगेश व अभिषेक को ले कर आ गई. इन पांचों ने मिल कर बेहोश तरुण के हाथपैर रस्सी से कस कर बांधे और मुंह पर टेप चिपका दी.

बेहोश तरुण को अपनी कार में डाल कर बेबी कोटा ले आई. कोटा के नजदीक बेबी का गांव अमने था. वहां 5 दिन पहले ही तरुण की कब्र खोदी जा चुकी थी. नए साल के पहले दिन लगभग शाम 7 बजे इन पांचों ने मिल कर बेहोश तरुण को उस कब्र में जिंदा दफन कर दिया.
इतना जानने के बाद पुलिस वालों के पास कानूनी खानापूर्तियां करना ही बाकी रह गया था. सभी को गिरफ्तार कर जब विस्तार से पूछताछ की गई तो इन्होंने बताया कि तरुण की चप्पलें, बाइक और मोबाइल फोन इन्होंने बिलासपुर से कोटा के रास्ते में अलगअलग जगहों पर फेंक दिए थे, जिन्हें पुलिस ने बाद में बरामद भी कर लिया. मेघा ने क्लोरोफार्म एक कैमिस्ट की दुकान से खुद को बीफार्मा की छात्रा बता कर खरीदा था और मांगने पर अपना आइडेंटिटी कार्ड भी दिखाया था.

3 जनवरी को पुलिस पांचों को ले कर अपने गांव गई, जहां उन की बताई जगह को खोदा गया. पुलिस ने एसडीएम और तहसीलदार की मौजूदगी में तरुण की लाश बाहर निकाली जो करीब 4 फुट के गड्ढे में दफनाई गई थी.
गड्ढा खोद कर तरुण की लाश निकालने में करीब 2 घंटे लग गए. इस दौरान आसपास के गांवों के लोग भी इस सनसनीखेज और अजीबोगरीब हत्याकांड की खबर सुन कर वहां इकट्ठा हो गए थे.
पंचनामा बनाने और दूसरी खानापूर्ति करने के बाद तरुण की लाश राजकुमारी और शांतनु को सौंप दी गई. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई बेबी की मारुति कार भी जब्त कर ली.
इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को सुलझाने में सरकंडा थाना इंचार्ज संतोष जैन, एसआई आर.ए. यादव और विनोद वर्मा सहित हैडकांस्टेबल निमोली ठाकुर, आर. मुरली भार्गव, अतुल सिंह, अनूप मिश्रा, रीना सिंह सहित साइबर सैल के सबइंसपेक्टर प्रभाकर तिवारी, हेमंत आदित्य, नवीन एक्का और शकुंतला साहू का उल्लेखनीय योगदान रहा.

4 जनवरी को एक प्रैस कौन्फ्रैंस में बिलासपुर की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अर्चना झा और साइबर सैल के डीएसपी प्रवीण चंद्र राय जब तरुण हत्याकांड का खुलासा कर रहे थे, तब मीडिया वाले इस कहानी को किसी जासूसी उपन्यास की तरह सुन रहे थे.
मामला था भी कुछ ऐसा, जिस में एक व्यभिचारी पिता की दूसरी बीवी एकलौते बेटे की मौत की वजह बनी थी.
साथ ही एक लड़की द्वारा फिल्मी स्टाइल में अपने प्रेमी की कथित हत्या का बदला लेने पर उतारू हो गई थी. लेकिन अब वह बजाय ससुराल के ससुराल वालों के संग ही जेल में है.

(यह घटना 2018 की है. अपने पाठकों को जागरूक करने के उद्देश्य से इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है)

अशिकी मे गई जान

बात 4 नवंबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के जिला मीरजापुर के गांव कनकसराय के लोग

सुबह के समय अपने खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्होंने ईंट भट्ठे के पास वाले खेत में एक युवक की लाश पड़ी देखी. उस का सिर फटा हुआ था. कुछ ही देर में लाश मिलने की खबर आसपास के गांवों में फैल गई. किसी ने फोन द्वारा इस की सूचना थाना कछवां को दे दी.

सूचना पा कर एसओ वियजप्रताप सिंह टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मौके का निरीक्षण करने पर उन्हें लगा कि युवक की हत्या कहीं और कर के लाश यहां फेंकी गई है. उस का सिर फटा हुआ था. चेहरे पर भी खून लगा हुआ था. वह सलेटी रंग की पैंट, काली टी शर्ट और उस के ऊपर सफेद रंग की शर्ट पहने था. उस के गले में सफेद रंग का गमछा भी था.

उन्होंने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करने को कहा तो कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. विजय प्रताप सिंह ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को हत्या की सूचना दे कर मौके की जरूरी काररवाई पूरी की और लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस से पहले उन्होंने अपने मोबाइल से लाश के फोटो खींच लिए थे.

ह काररवाई करतेकरते दोपहर हो चुकी थी. एसओ विजय प्रताप सिंह थाने पहुंच गए थे. सीओ (सदर) बी.के. त्रिपाठी भी थाने आ गए थे. लाश की शिनाख्त को ले कर दोनों पुलिस अधिकारी आपस में चर्चा कर ही रहे थे कि तभी थाना क्षेत्र के गांव मझवां के रहने वाले हाकिम अंसारी वहां पहुंच गए. उन्होंने बताया कि उन का बेटा सद्दाम अंसारी कल शाम से लापता है.

हाकिम अंसारी अपने बेटे का जो हुलिया बता रहे थे. वह हुलिया खेत से बरामद हुई अज्ञात लाश से मिल रहा था. एसओ ने अपने मोबाइल से खींचे गए बरामद लाश के फोटो हाकिम अंसारी को दिखाए. फोटो देख कर हाकिम अंसारी रोने लगे. वह उन का बेटा सद्दाम ही था.

लाश की शिनाख्त होने पर दोनों पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. एसओ विजय प्रताप सिंह ने हाकिम अंसारी को सांत्वना देते हुए कहा कि आप चिंता न करें, हत्यारे को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

इस के बाद एसओ ने हाकिम अंसारी को मोर्चरी ले जा कर लाश दिखाई तो उन्होंने अपने बेटे सद्दाम अंसारी के रूप में उस की पुष्टि कर दी.

पुलिस ने हाकिम अंसारी की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. मीरजापुर की एसपी शालिनी ने इस केस को खोलने के लिए सीओ (सदर) बी.के. त्रिपाठी के निर्देशन में एक टीम गठित की.

टीम में एसओ विजय प्रताप सिंह, एसआई श्यामजी यादव, धनंजय पांडेय, कांस्टेबल शशिकांत, अभिषेक सिंह आदि को शामिल किया गया. पुलिस टीम जांच में जुट गई. शक के आधार पर पुलिस ने कुछ लोगों को पूछताछ के लिए उठाया.

उन से पूछताछ की गई लेकिन सद्दाम की हत्या से संबंधित कोई सुराग न मिलने पर उन्हें इस हिदायत के साथ घर भेज दिया कि पुलिस को सूचना दिए बगैर कहीं न जाएं.

2 दिन बाद 6 नवंबर को एक मुखबिर ने एसओ विजय प्रताप सिंह को हत्यारों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. एसओ तुरंत ही टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई गई जगह भैंसा रेलवे स्टेशन के पास पहुंच गए.

उस समय सुबह के सवा 7 बज रहे थे. स्टेशन के मुख्य गेट के पास ही उन्होंने कुछ दूर खड़े मुखबिर के इशारे पर गेट के पास से 2 व्यक्तियों को दबोच लिया, जो बैग ले कर कहीं जाने की तैयारी में थे.

पुलिस उन्हें ले कर थाने लौट आई. उन के नाम अवधेश चौरसिया व शिवकुमार चौरसिया थे. दोनों रामपुर पडेरी, मीरजापुर के रहने वाले थे. पूछताछ में दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे. लेकिन जब पुलिस ने उन से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में उन्होंने बताया कि सद्दाम उन के घर की दहलीज को कलंकित करने के साथ उन की इज्जत को तारतार करने पर तुला हुआ था. इसलिए उसे मारने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था. उन्होंने उस की हत्या की जो कहानी बताई इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जनपद का कछवां थाना क्षेत्र वाराणसी और भदोही (संत रविदास नगर) से लगा होने के साथ गंगा नदी से सटा हुआ है. कछवां थाना क्षेत्र में ही एक गांव है रामपुर पडेरी. इसी गांव के रहने वाले अवधेश चौरसिया का गांव में अच्छाभला मकान होने के साथ भरापूरा परिवार भी है. परिवार में पत्नी के अलावा 2 बच्चे भी हैं, जिन में बड़ी बेटी मानसी (काल्पनिक) क्षेत्र के ही एक कालेज में बीकौम तृतीय वर्ष की छात्रा थी.

कह सकते हैं कि उन का हंसताखेलता परिवार था. खेती की जमीन के अलावा उन का अपना कारोबार भी था, जिस से होने वाली आय से उन का घरपरिवार चल रहा था. अवधेश गांव में सभी लोग से मिलजुल कर रहते थे.

अचानक एक दिन उन के हंसतेखेलते परिवार में ग्रहण लग गया. 3 नवंबर की रात परिवार के सब लोग खापी कर सो गए थे. देर रात अवधेश चौरसिया बाथरूम जाने के लिए उठे. उन के कमरे के बगल में उन की 20 वर्षीय बेटी मानसी का कमरा था.

अवधेश को बेटी के कमरे से किसी आदमी की आवाज आती सुनाई दी. पहले तो उन्होंने इसे अपना भ्रम समझा लेकिन बेटी बड़ी थी और देर रात तक जाग कर पढ़ाई करती थी इसलिए न चाहते हुए भी उन्होंने अपने कमरे में जा कर सोना ठीक समझा.

अभी कुछ देर ही हुई थी कि फिर वही आहट और आवाज सुनाई दी. इस से उन के कान खड़े हो गए. वह अपने कमरे से दबे पांव निकले और बेटी के कमरे के दरवाजे की ओट ले कर कुछ सुनने की कोशिश करने लगे. कुछ देर वहां खड़े रहने के बाद इस बात की पुष्टि हो गई कि बेटी के कमरे में कोई मर्द है. बस फिर क्या था, उन का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

उन्होंने बेटी के कमरे का दरवाजा थपथपाया तो अंदर से आहट आनी बंद हो गई. अंदर जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उन्होंने बेटी को आवाज लगा कर दरवाजा खोलने को कहा.

जैसे ही बेटी के कमरे का दरवाजा खुला वह कमरे में घुस गए. तभी कमरे से निकल कर एक युवक भागने लगा. अवधेश चौरसिया ने उस युवक को दबोच लिया.

बेटी को कमरे से बाहर कर के उन्होंने उस युवक से पूछताछ करनी चाही तो वह उलटे उन पर आक्रामक हो कर टूट पड़ा. यह देख अवधेश ने अपने छोटे भाई शिवकुमार को भी आवाज दे कर बुला लिया.

दोनों भाइयों ने उस युवक से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम सद्दाम अंसारी बताया. इस के बाद दोनों भाइयों ने सद्दाम की पिटाई शुरू कर दी. एक भाई ने कमरे में रखी ईंट उठा कर उस के सिर पर मारनी शुरू कर दी. जिस से सद्दाम का सिर फट गया और वह लहूलुहान हो कर नीचे गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

फिर दोनों भाइयों ने मिल कर युवक की लाश ठिकाने लगाने की सोची. वह घर में खड़ी अपनी मोपेड पर उसे बीच में बैठा कर घर से चल निकले और उस की लाश कनकसराय ईंट भट्ठे के पास फेंक कर वापस लौट आए.

बाद में जब उन्हें पता चला कि पुलिस उन्हें तलाश रही है तो पकड़े जाने के डर से दोनों भागने की फिराक में लग गए. लेकिन वे भाग पाते इस से पहले ही पुलिस ने उन्हें स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अवधेश और शिवकुमार की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त ईंट, मृतक का मोबाइल फोन व लाश छिपाने के लिए इस्तेमाल की गई मोपेड बरामद कर ली.

मारा गया युवक सद्दाम अंसारी मझवां गांव का रहने वाला था. वह भी उसी कालेज में पढ़ रहा था, जिस में मानसी पढ़ती थी. साथसाथ पढ़ाई करने की वजह से दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया था. कुछ दिनों से सद्दाम बीमार होने की वजह से मानसी से मिल नहीं पाया था.

3 नवंबर, 2018 की रात को मानसी के बुलावे पर वह उस से मिलने उस के घर चला गया था. जब दोनों कमरे में बैठे बातचीत कर रहे थे तभी इस की आहट मानसी के पिता को लग गई थी. जिस के बाद मानसी के पिता अवधेश चौरसिया ने अपने छोटे भाई शिवकुमार चौरसिया के साथ मिल कर सद्दाम की हत्या कर दी थी.

पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों भाइयों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(यह घटना 2018 की है. अपने पाठकों को जागरूक करने के उद्देश्य से इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है)

ससुर ने बहू का बनाया गंदा वीडियो और किया ब्लैकमेल

बड़े ही धूमधाम से शादी की गई. जब वह ससुराल आई तो उसे ही घर संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई. बहू ने सलीके से घर संभाल लिया. पर ससुर की नीयत में खोट आ गया और बन गया बहू की जवानी का प्यासा. यों कहें कि ससुर का दिल बहू की मचलती जवानी पर आ गया और कर बैठा ऐसी हरकत कि बहू का ही नहाते समय का वीडियो बना लिया और करने लगा जिस्मानी संबंध बनाने के लिए ब्लैकमेल. वहीं पति ने भी ससुराल से फोन कर दिया और तलाक दे कर पीछा छुड़ाने में भलाई समझी. अब बहू मायके में रह कर अपना इलाज करा रही है.

यह घटना अलीगढ़ की है जबकि पीड़िता संगम विहार, दिल्ली की है. अलीगढ़ में ससुर ने अपनी बहू से छेड़छाड़ की. बाथरूम में नहाते समय उस का वीडियो बना लिया और उसे ब्लैकमेल करने लगा.

पीड़िता के पुरजोर विरोध करने पर पति व घर के दूसरे सदस्य उसे परेशान करने लगे. सिजेरियन आपरेशन के बाद टांके भी नहीं कटे थे कि उसे बीमार हालत में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ (ससुराल) से संगम विहार, नई दिल्ली (मायके) भिजवा दिया गया.

मायके संगम विहार, दिल्ली में कुछ दिन ही बीते थे कि पति ने फोन कर उसे तलाक दे दिया. इस पर पीड़िता ने संगम विहार थाने में शिकायत दी है और कार्यवाही करने की मांग की है. वहीं वूमन सैल के एसीपी ने बताया कि ससुराल पक्ष को जल्दी ही नोटिस भेज कर बुलाया जाएगा और पुलिस भी कानून सम्मत कार्यवाही करेगी.

पुलिस को दी शिकायत में पीड़िता ने अपना दर्द बयां किया है कि 10 सितंबर, 2017 को उस का निकाह अलीगढ़ के मौलाना आजाद नगर निवासी 23 साला युवक से हुआ था. एक दिन वह घर में खाना बना रही थी. अकेला पा कर ससुर रसोई में घुस आया और छेड़छाड़ करने लगा. जब इस का पुरजोर विरोध किया गया तो ससुर व घर के दूसरे लोगों ने उस की पिटाई की.

7 नवंबर, 2018 को ससुराल वालों ने मच्छर मारने की दवा पिला कर उसे व पेट में पल रहे बच्चे को मारने की कोशिश की. मामला पुलिस तक पहुंचा तो ससुराल वालों ने मौखिक समझौता करा दिया. 23 दिसंबर, 2018 को पीड़िता के कपड़ों में आग लगा दी गई, लेकिन वह किसी तरह बच गई. पुलिस को भी इस की सूचना दी गई थी.

पीड़िता का आरोप है कि 23 दिसंबर, 2018 को वह बाथरूम में नहा रही थी, तभी उस के ससुर ने छिप कर उस का वीडियो बना लिया. फिर वीडियो को इंटरनैट पर वायरल करने की धमकी दे कर संबंध बनाने की कहने लगा.

21 फरवरी, 2019 को पीड़िता ने सिजेरियन आपरेशन से एक बच्चे को जन्म दिया, जिस का खर्च पीड़िता के पिता ने उठाया. उस के टांके कटे भी नहीं थे कि उसे ससुराल अलीगढ़ से बीमार हालत में मायके संगम विहार, दिल्ली भिजवा दिया गया.

पिता ने सफदरजंग अस्पताल में उस का इलाज कराया. 3 अप्रैल की रात 10 बजे पति का फोन आया तो महिला यह सोच कर खुश हो गई कि शायद वह उसे ले जाएगा. लेकिन पति ने कहा कि वह उसे अब नहीं रख सकता, इसलिए उस ने 3 बार तलाक, तलाक, तलाक बोल कर फोन काट दिया. पीड़िता हैरान है कि पति ने भी उसे छोड़ दिया है.

ससुर ने तो रिश्ता तारतार कर ही दिया और पति ने भी आग में घी डालने का काम किया और तलाक दे कर पीछा छुड़ा लिया. ऐसे रिश्ते कितने दिनों तक महफूज रहेंगे और अदालतें भी इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं करती हैं. ससुर तो अपनी करतूतों से बाज नहीं आएगा वहीं पति भी पल्ला झाड़ कर चुप हो गया. पुलिस मामले को सुलझाने के बजाय उलझा ज्यादा देती है. समझौता कराना आसान है पर उसे घर में रह कर निभाना पीड़िता के लिए ज्यादा ही दुखदायी लगा. ऐसे घर में लौटना अब असंभव है.

(यह घटना 2018 की है. अपने पाठकों को जागरूक करने के उद्देश्य से इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है)

पढेलिखे इंजीनियर ने मिटा दिया अपना हंसताखेलता परिवार

हत्या करने की वजह बेरोजगारी ही काल बन कर मौत ले आई. माली तंगी से जूझ रहे सुमित को यही ठीक लगा कि सभी की हत्या कर दी जाए और माली तंगी से निजात मिले. परिवार की अच्छी तरह परवरिश न कर पाने के चलते ही उस ने हत्या करने की ठानी. वजह कुछ भी हो, पर एक हंसता-खेलता परिवार मौत के आगोश में चला गया.

यह वारदात गाजियाबाद के इंदिरापुरम के ज्ञानखंड 4 इलाके में हुई. यहां एक साफ्टवेयर इंजीनियर सुमित ने अपनी 30 साला पत्नी अंशु बाला और 3 बच्चों की गला रेत कर हत्या कर दी. बच्चों में 7 साला प्रथमेश, 4 साला आरव और 4 साला बेटी आकृति शामिल हैं. आरव और आकृति जुड़वां हैं.

हत्या को अंजाम देने के बाद सुमित फरार हो गया. वहां मौजूद सुरक्षा गार्ड ने बताया कि  सुमित शनिवार देर रात 3 बजे बैग ले कर बाहर गया था.

हत्या करने के 16 घंटे बाद यानी रविवार शाम 6 बजे व्हाट्सएप ग्रुप पर सुमित ने यह वीडियो लोड किया. सुमित की बहन ने सब से पहले इस वारदार वाले व्हाट्सएप को देखा. साले पंकज को भी यह वीडियो भेजा और फोन कर कहा कि वह परिवार की जिम्मेदारी नहीं उठा सकता और उस ने सब की हत्या कर दी है. जाओ, शव को फ्लैट से ले आओ. अब मैं भी मरने जा रहा हूं. यह मेरा अंतिम वीडियो है.

पंकज ने ही पुलिस को खबर दी. मौके पर पहुंची पुलिस फ्लैट का दरवाजा तोड़ कर अंदर घुसी. अंदर सभी का गला धारदार हथियार से रेता गया था. शुरुआती जांच में पता चला कि सुमित ने सब से पहले पत्नी का गला रेता, इस के बाद बेड पर सो रहे जुड़वां बच्चों की हत्या की और अंत में बाहर वाले कमरे में बेटे प्रथमेश का धारदार हथियार से गला रेत दिया.

20 अप्रैल की रात को डिनर करने के बाद से ही आरोपित सुमित ने परिजनों की हत्या का मन बना लिया था. पुलिस ने घर के अंदर रखे खाने के बरतन के भी सैंपल लिए हैं. माना जा रहा है कि आरोपित ने खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था, ताकि हत्या के समय किसी तरह का शोर न हो.

आरोपित की पत्नी अंशु बाला ने नींद की हालत में विरोध करने की कोशिश की तभी कमरे की दीवार पर खून के निशान भी फोरैंसिक टीम को मिले हैं. इस के अलावा पत्नी के गले के साथसाथ शरीर के दूसरे हिस्सों पर भी चोट के निशान हैं.

पुलिस की मानें तो घटना वाली जगह पर पुलिस को वारदात में चापड़ मिला है. चापड़ से हत्या करने के बाद पानी या कपड़े से साफ हुआ पाया है. हत्या के करीब 16 घंटे बाद आरोपित सुमित ने वीडियो वायरल कर पत्नी के परिवार को घटना की जानकारी दी.

बता दें कि जमशेदपुर के रहने वाले सुमित बेंगलुरु स्थित लैपटौप कंपनी में इंजीनियर थे. वे 2 साल से गाजियाबाद के ज्ञानखंड 4, इंदिरापुरम में किराए के फ्लैट में रहते थे. कैंसर के कारण जनवरी माह में सुमित ने नौकरी छोड़ दी थी. अंशु बाला मदर प्राइड स्कूल में टीचर थी.

सुमित की नौकरी कैंसर बीमारी के चलते छूट गई थी. बेंगलुरु में सुमित ने जांच कराई तो डाक्टरों ने उसे ब्लड कैंसर बताया था. परिवार की रजामंदी से ही उस ने बेंगलुरु की कंपनी छोड़ दी. इंदिरापुरम, गाजियाबाद में आ कर उस ने जांच कराई तो ब्लड में इंफैक्शन पाया.

(यह घटना 2019 की है. अपने पाठकों को जागरूक करने के उद्देश्य से इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है)

मोबाइल लूटने वाली दिलकश हसीना

पहली अक्तूबर, 2016 की बात है. उस दिन भी शाम के वक्त कालेज बस ने लवलीन को माडलटाउन-1 के बसस्टैंड पर उतारा. वहां से कुछ दूरी पर स्थित परमानंद कालोनी में उस का घर था. बस से उतरने के बाद वह पैदल ही अपने घर जा रही थी. जब वह टैगोर पार्क के नजदीक पहुंची, तभी किसी ने अचानक ठीक उस के पीछे पहुंच कर उस की पीठ पर कोई सख्त चीज सटा कर सख्त लहजे में धमकी दी, ‘‘ऐ लड़की, तेरे पास जो कुछ नकदी और मोबाइल है, उसे फौरन मेरे हवाले कर दे वरना अपनी जान से हाथ धो बैठेगी.’’

वह आवाज किसी युवती की थी. लेकिन उस ने जिस तरह धमकी में उस से बात की थी, उस से लवलीन बुरी तरह सहम गई. उस की इतनी भी हिम्मत नहीं हुई कि वह एक बार पीछे मुड़ कर उस युवती या अपनी पीठ पर सटाई गई कठोर वस्तु को एक नजर देख ले. वह जस की तस खड़ी रह गई. लवलीन के ठिठक कर खड़े होते ही पीछे खड़ी युवती ने झट से उस की जेब में अपना दूसरा हाथ डाल दिया और उस की जेब में रखा एचटीसी का महंगा मोबाइल निकाल लिया.

उसी दौरान एक सफेद रंग की कार तेजी से उस के पास आ कर रुकी, उस की ड्राइविंग सीट पर एक युवक था. जिस युवती ने उस की जेब से मोबाइल फोन निकाला था, वह उसी कार में उस युवक के बराबर में जा कर बैठ गई. उस के सीट पर बैठते ही कार माडलटाउन के प्रिंस रोड की ओर बढ़ गई. उस कार के नजरों से ओझल हो जाने के बाद जैसे लवलीन को होश आया.

महंगा मोबाइल फोन लुट जाने पर लवलीन बहुत परेशान हुई. जिस जगह पर उस के साथ वारदात हुई थी, वहां से थोड़ी ही दूरी पर माडलटाउन पुलिस स्टेशन था. वह सोचने लगी कि जिस तरह उस के साथ वारदात हुई थी, वैसे में तो वे लोग अगर उस का अपहरण भी कर लेते तो वह क्या कर सकती थी.

बहरहाल, इस वारदात की रिपोर्ट लिखवाने के लिए वह माडनटाउन थाने पहुंच गई. ड्यूटी अफसर को उस ने अपने साथ घटी घटना की जानकारी दी तो ड्यूटी अफसर ने इस बारे में थानाप्रभारी प्रदीप पालीवाल से बात की. उन के निर्देश पर अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 382 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली गई और जांच एसआई देवेंद्र कुमार को सौंप दी गई.

एसआई देवेंद्र कुमार ने लवलीन से बदमाश युवक और युवती के कदकाठी और कार के बारे में पूछा तो लवलीन ने बताया कि उस लड़की की उम्र कोई 25 से 30 साल थी. जो युवक सफेद रंग की होंडा ब्रियो कार से आया था, उस का चेहरा वह ठीक से नहीं देख पाई थी. लेकिन उस कार के पीछे की नंबर प्लेट पर कोई नंबर नहीं लिखा था. लवलीन से घटना के बारे में पूछताछ करने के बाद देवेंद्र कुमार ने उसे अपने घर जाने की इजाजत दे दी.

लवलीन से पुलिस को केवल उस लड़की की उम्र आदि के बारे में ही जानकारी मिली थी. यदि उन की कार का नंबर मिल जाता तो उस के सहारे उन दोनों तक पहुंचा जा सकता था. आगे की कारवाई के संबंध में एसआई देवेंद्र कुमार ने थानाप्रभारी प्रदीप पालीवाल से बात की. थानाप्रभारी ने देवेंद्र कुमार को कुछ जरूरी हिदायतें देने के बाद इस वारदात की सूचना उत्तरपश्चिमी दिल्ली के डीसीपी मिलिंद दुबड़े को दी.

डीसीपी मिलिंद दुबड़े ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया. बात सिर्फ एक मोबाइल फोन के लूटे जाने भर तक सीमित नहीं थी, बल्कि इस से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि यह घटना दिल्ली के बेहद पौश कहे जाने वाले इलाके माडलटाउन थाने के नजदीक घटी थी. वैसे भी यह घटना इस प्रकार की पहली घटना नहीं थी.

माडलटाउन, मुखर्जीनगर, मौरिसनगर और रूपनगर थानाक्षेत्र में इस तरह की अनेक वारदातें सितंबर, 2016 के बाद हो चुकी थीं. सभी वारदातों में युवक और युवती वारदात कर के कार से ही भागे थे. उन वारदातों में युवक और युवती बात करने के बहाने किसी लड़की का फोन लेते थे और बात करते करते कार में बैठ कर फरार हो जाते थे.

जानकारी में यह बात भी सामने आई थी कि युवती फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी. इसलिए डीसीपी ने वारदात करने वाले युवक युवती की तलाश के लिए माडलटाउन के एसीपी रविंद्र कुमार त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी प्रदीप पालीवाल, अतिरिक्त थानाप्रभारी सुधीर कुमार, एसआई देवेंद्र कुमार, हैडकांस्टेबल जितेंद्र, कांस्टेबल सतीश आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम में शामिल सभी सदस्य अपनेअपने स्तर से युवकयुवती को तलाशने लगे. 22 अक्तूबर की रात 8 बजे माडलटाउन थाने के हैडकांस्टेबल जितेंद्र और कांस्टेबल सतीश मैकडोनाल्ड्स की तरफ जाने वाले रास्ते पर बैरिकेड लगा कर उधर से आनेजाने वाले वाहनों को रोक कर रूटीन चैकिंग कर रहे थे. उन की नजरें खासतौर पर उस सफेद रंग की कार को तलाश रही थीं. उसी दौरान होंडा ब्रियो कार आ कर रुकी. वह भी सफेद रंग की थी. कार की अगली सीट पर एक युवती और युवक बैठे थे. हैडकांस्टेबल जितेंद्र ने कार की नंबर प्लेट की ओर नजर डाली तो वह चौंके, क्योंकि उस कार के आगे कोई नंबर प्लेट नहीं लगी थी.

जब उन से पूछताछ की गई तो वे दोनों पहले इधरउधर की बातें करने लगे. शक होने पर हैडकांस्टेबल जितेंद्र ने एसआई देवेंद्र कुमार को फोन कर के उन्हें इन दोनों के बारे में बताया. कुछ ही देर में देवेंद्र कुमार भी वहां पहुंच गए. उन्होंने उन दोनों से कार के कागजात दिखाने के लिए कहा. युवक ने कार के कागज दिखाए तो आरसी में कार नंबर दर्ज था, जबकि कार के आगेपीछे नंबर प्लेट नहीं लगी थी. कार पर नंबर प्लेट लगी न होने के बारे में उस से पूछा गया तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका.

मामला संदिग्ध देख कर पुलिस ने कार की तलाशी ली तो कार के अंदर से 10 महंगे मोबाइल फोन के अलावा ब्रांडेड लेडीज कपड़े और एक बुर्का मिला. पूछताछ के लिए उन्हें थाने ले जाया गया. दोनों से गाड़ी में मिले मोबाइल फोन और बिना नंबर की होंडा ब्रियो कार के बारे में सघन पूछताछ की गई तो दोनों ने स्वीकार कर लिया कि ये मोबाइल अलगअलग जगहों से लूटे गए हैं. युवती ने अपना नाम सोनम और युवक ने नीरज बताया.

दोनों ही शादीशुदा थे. लेकिन अपनेअपने जीवनसाथी को छोड़ कर दोनों लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. इस प्रेमी जोड़े ने मोबाइल लूटने की जो कहानी बताई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. सोनम के पिता एक पुलिस अधिकारी थे और मजलिस पार्क के एक फ्लैट में रहते थे. मजलिस पार्क में ही नीरज के पिता पत्नी और बड़े बेटे के साथ रहते थे. वह भी पुलिस की नौकरी में थे. एक ही महकमे में कार्यरत होने की वजह से उन के घरों में एकदूसरे का आनाजाना एक सामान्य सी बात थी.

सोनम और नीरज बचपन से ले कर जवानी तक साथसाथ पलेबढ़े. जवानी की दहलीज पर पांव रखते ही सोनम और नीरज की दोस्ती प्यार में बदल गई. कुछ ही दिनों में उन की हरकतों को देख कर उन के घर वाले समझ गए कि वे एकदूसरे से प्यार करते हैं. बात आगे बढ़ी तो नीरज ने कह दिया कि वह सोनम से ही शादी करेगा. लेकिन सोनम के मातापिता उस का हाथ नीरज के हाथ में नहीं देना चाहते थे.

बेटी जवान थी, कहीं वह गुस्से में कोई गलत कदम न उठा बैठे, इसलिए पिता ने सोनम के ग्रैजुएट होते ही उस की शादी शालीमारबाग में रहने वाले विक्रम से कर दी. विक्रम एक खातेपीते घर का लड़का था. वह वजीरपुर  स्थित नेताजी सुभाष पैलेस में किसी निजी कंपनी में अच्छे पद पर नौकरी करता था. सोनम और विक्रम शादी के बाद कुछ सालों तक एकदूसरे को बेहद प्यार करते रहे. 2 साल हंसीखुशी के साथ गुजारने के बाद सोनम ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म पर विक्रम बेहद खुश हुआ. वह सोनम को पहले से भी ज्यादा प्यार करने लगा, लेकिन सोनम नीरज को अपने दिल से कभी नहीं निकाल सकी और एक बार जब उस का आमनासामना नीरज से हुआ तो नीरज ने बताया कि वैसे तो उस की भी शादी हो चुकी है, लेकिन वह अब भी उसे प्यार करता है.

वह नीरज से किनारा नहीं कर सकी. कुछ सालों के अंतराल के बाद उन का सोया प्यार फिर जाग उठा और वे लोगों की नजरों से बच कर एकदूसरे से फिर मिलने लगे. कुछ समय तक तो विक्रम को सोनम की बेवफाई का कुछ पता नहीं चला, लेकिन सोनम के बारबार घर से गायब रहने से उसे उस पर शक हो गया. तब उस ने सोनम के घर से बाहर जाने पर बंदिश लगा दी. लेकिन इश्क पर आज तक किसी का कोई जोर चला है, जो इन पर चलता. लिहाजा इन का मिलनाजुलना लगातार जारी रहा. नीरज और सोनम एकदूसरे से बदस्तूर प्यार करते रहे.

आखिरकार पत्नी की बेवफाई से तंग आ कर विक्रम अपने से 14 साल छोटी युवती नीरजा को अपना दिल दे बैठा. नीरजा भी उसी के औफिस में काम करती थी. नीरजा बेहद हसीन युवती थी और रंगरूप के मामले में सोनम से कहीं ज्यादा सुंदर थी. विक्रम न केवल नीरजा के साथ ज्यादा वक्त बिताता, बल्कि उसे महंगे तोहफे भी देता. नीरजा से नजदीकी बढ़ने के बाद विक्रम ने सोनम की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया. सोनम को जब यह जानकारी मिली तो उस ने सारी बात प्रेमी नीरज को बताई. इस समस्या से निजात दिलाने में नीरज ने उस का हर तरह से सहयोग करने का वायदा किया. लेकिन ऐसा करने में नीरज के साथ एक अहम समस्या आड़े आ रही थी.

नीरज एक बेटी का पिता था. कुछ दिनों बाद नीरज की पत्नी शैफाली को जब पता चला कि नीरज के संबंध सोनम से हैं तो उस ने नीरज से नाराजगी जाहिर करते हुए सोनम से संबंध खत्म करने को कहा. जबकि नीरज को पत्नी शैफाली से ज्यादा सोनम की फिक्र रहती थी, इसलिए उस ने शैफाली की बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

पति की तरफ से हो रही उपेक्षा से आहत हो कर शैफाली ने अपना रास्ता अलग कर लिया और फिर वह भी अपने बौयफ्रैंड के साथ मजलिस पार्क में अलग मकान ले कर रहने लगी. पत्नी के अलग रहने पर नीरज को दुख नहीं हुआ, बल्कि उस ने सोचा कि अच्छा हुआ. क्योंकि अब उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. उस ने आव देखा न ताव, सोनम को अपने साथ रहने के  लिए राजी कर लिया. सोनम भी इस अवसर की ताक में थी. वह अपने बेटे को ले कर नीरज के पास मजलिस पार्क में रहने लगी. नीरज दुकानों में खिलौने वगैरह सप्लाई करने लगा. इस से उसे ठीकठाक आमदनी होने लगी.

उधर विक्रम को जब पता चला कि उस की पत्नी सोनम नीरज के साथ रह रही है तो उसे बड़ा बुरा लगा. वह पहले से ही नीरज को अपना दुश्मन समझता था. वह नीरज को सबक सिखाना चाहता था.

10 अक्तूबर, 2016 को उसे इस का मौका मिल गया. उस ने नीरज को भाडे़ के गुंडों से पिटवा दिया. इस में नीरज को काफी चोटें भी लगीं. काफी दिनों तक सोनम ने उस की सेवा की तब जा कर वह ठीक हुआ. नीरज के ठीक होने के बाद उस ने अपने पति से बदला लेने का निश्चय किया.

उधर विक्रम की प्रेमिका नीरजा ने 8 अक्तूबर, 2016 को नीरज के खिलाफ मारपीट और पीछा करने की रिपोर्ट थाना आदर्शनगर में दर्ज करा दी. महंगे लाइफस्टाइल को अपनाने तथा विक्रम से नीरज का बदला लेने के लिए उसे एक बड़ी रकम की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थी. इसलिए दोनों ने मिल कर मोबाइल लूटने की योजना बनाई. नीरज अपने पिता की होंडा ब्रियो कार का उपयोग करता था. वारदात को अंजाम देने के लिए उस ने कार की नंबर प्लेटें हटा दीं, जिस से किसी को कार का नंबर पता न चल सके. होंडा ब्रियो कार में सवार हो कर सोनम और नीरज शिकार को तलाशते, इन्हें कोई अकेली युवती सड़क पर चलती मिल जाती तो सोनम फर्राटेदार अंगरेजी बोल कर उस से यह कह कर उस का फोन मांग लेती कि उस के फोन की बैटरी डाउन हो चुकी है और उसे किसी से जरूरी बात करनी है. उस का फोन ले कर बात करतेकरते वह कार में बैठ कर प्रेमी नीरज के साथ फरार हो जाती. अक्तूबर, 2016 से उन्होंने वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया था.

अब तक की तहकीकात के बाद एसआई देवेंद्र कुमार को सोनम और नीरज के खिलाफ दिल्ली में दर्ज 13 मुकदमों की जानकारी मिली है. यह मामले यहां के माडलटाउन, मुखर्जीनगर, मौरिसनगर और रूपनगर थानों में दर्ज हैं.  दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 अक्तूबर को रोहिणी कोर्ट के ड्यूटी मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया. जहां से दोनों को एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. देवेंद्र कुमार ने 24 अक्तूबर को दोनों को फिर से मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट सुनील कुमार की अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन से 6 आईफोन तथा एक एचटीसी का फोन बरामद किया. 26 अक्तूबर को दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. नीरजा परिवर्तित नाम है.

आश्चर्य! पुलिस अधिकारी होते हैं “ठगी का शिकार”

सुरेशचंद्र रोहरा

सौ बात की एक बात लालच बुरी बला. यह बात बचपन में ही घुट्टी की तरफ पिलायी जाती है. मगर आमतौर पर साधारण और खास दोनों ही प्रकार के लोग कहावत मुहावरे को भुला कर  आंख बंद करके लालच करते हैं और जिंदगी में कई दफा ठगे जाते हैं लूट जाते हैं.

आज आपको हम बता रहे हैं कि एक पुलिस का उच्च अधिकारी जो जिंदगी भर लोगों को अपने वर्दी के बूते, शिक्षा के दम पर जांच पड़ताल करके न्याय दिलाता रहा रिटायरमेंट के कुछ समय बाद कैस लाखों रुपए की ठगी का शिकार हो जाता है.

कितने आश्चर्य की बात है, अगरचे कोई आम आदमी अशिक्षित व्यक्ति, गांव का आदमी ठगा जाता है तो हम कहते हैं कि इसे कानून का ज्ञान नहीं है नियमों का पता नहीं है. यह संसार के बारे में ज्यादा नहीं जानता, बेचारा इसीलिए ठगा गया है. मगर जब यही बात इसी शिक्षित और कानून के जानकार के साथ घटित हो तो फिर क्या कहा जाए.

आज हम इस रिपोर्ट में यही सच आपको बता रहे हैं कि आज के इस संक्रमण काल में अगर आप चौक्कना  नहीं रहेंगे तो कभी भी ठगे जा सकते हैं. अत: एक बार फिर याद कर लें-” लालच बुरी बला है.”

पच्चीस लाख का चुग्गा

कथित सीबीआई अधिकारी बन कर आईजी कार्यालय से सेवामुक्त हुए एडिशनल एसपी को 25 लाख की लॉटरी लगने का झांसा दिया गया और बैंक खाते से साढ़े छह लाख की धोखाधड़ी को अंजाम दे दिया गया.

कुछ समय बाद ठगी का एहसास होने पर पीड़ित रिटायर्ड अधिकारी ने बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के सिविल लाइन थाने पहुंच कर मामले की शिकायत दर्ज कराई है. अप पुलिस मामले को अपने हाथों में लेकर के छानबीन शुरू कर चुकी है यह रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई आरोपी पुलिस के हाथ नहीं चढ़ा है जैसा कि होता है पुलिस मामले में जांच कर आगे की कार्रवाई कर रही है.

दरअसल हुआ यह कि‌ रिटायर्ड एएसपी को 25 लाख की लॉटरी लगने का झांसा दिया गया और साढ़े छह लाख का चूना लगा दिया गया.

अब आपको हम उक्त पुलिस अधिकारी से आप परिचय कराते हैं आप हैं -रवीन्द्र कुमार मिश्रा पिता हरिनारायण मिश्रा (66) वर्ष 2017 में पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय से रिटायर्ड हुए हैं. आपके मोबाइल नम्बर पर 13 जनवरी को फोन कर एक महिला ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताते हुए मैसेज किया कि उन्हें कौन बनेगा करोड़पति  केबीसी कंपनी की 25 लाख की लॉटरी लगी है.

उसके बाद एक और मैसेज आया की रुपए कैश करवा कर सीबीआई आफिसर अजय कुमार देंगे. 25 लाख मिलने के लालच में आए रिटायर्ड एएसपी ने खाता नम्बर, एटीएम का नंबर पासबुक की फोटोकॉपी व अन्य दस्तावेज वाट्सएप के माध्यम से दे दी.

अजय कुमार ने रविन्द्र कुमार मिश्रा को झांसे में लेने के लिए अपना सीबीआई का आई कार्ड भी भेज दिया.और लाखों रुपए रुपए की लाटरी जल्द से जल्द मिल सके इसके लिए कथित अधिकारी अरविंद कुमार से भी बात कराई व उनका भी आईकार्ड भेजा. रविन्द्र कुमार मिश्रा को दोनों शातिर ठगों ने बताया – लाटरी का पैसा मुंबई मुख्यालय एवं दिल्ली से कुल राशि 29 लाख रुपए मिलेगा.

यह सुनते ही पुलिस अधिकारी महोदय ठगों के जाल में फंसते चले गए और अंततः ठग लिए गए और अब आप पछता रहे हैं मगर इस घटना से यह संदेश दूध चला गया है कि जब पुलिस अधिकारी वह भी रिटायर्ड पुलिस अधिकारी जो जिंदगी भर जाने कितने ठगी के प्रकरणों का विवेचना करके अपराधियों को जेल भेजते हैं भी ठगी का शिकार हो सकते हैं तो फिर आम आदमी की बिसात क्या है अतः हमें अपने आसपास के तौर से सावधान रहने की आवश्यकता है.

Crime Story: धोखाधड़ी- फ्रैंडशिप क्लब सैक्स और ठगी का धंधा

लेखक- बृहस्पति कुमार पांडेय

इन इश्तिहारों में बिना पता लिखे कुछ मोबाइल नंबर भी दिए होते हैं जिन में कुछ घंटों में ही हजारों रुपए कमाने के दावे भी किए जाते हैं.

मैं ने भी इस तरह के तमाम इश्तिहार कई बार अखबारों में देखे हैं, लेकिन एक दिन मेरी नजर उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के रेलवे स्टेशन रोड के कुछ मकानों पर चिपके पोस्टरों पर पड़ी. उन पोस्टरों पर मेरा ध्यान इसलिए चला गया क्योंकि उन में भी अखबारों में छपने वाले फ्रैंडशिप क्लब जैसा ही कुछ लिखा था.

मैं ने जब नजदीक जा कर उन पोस्टरों को देखा तो उन में ‘सौम्या फ्रैंडशिप क्लब’ के बारे में लिखा था और उन में उन बेरोजगार नौजवानों को रिझाने वाली कुछ लाइनें भी लिखी थीं जो बिना कुछ किएधरे अमीर बनने के सपने देखते हैं.

पोस्टरों में कुछ इस तरह से लिखा था कि हाई प्रोफाइल लड़कियों के साथ दोस्ती और मीटिंग कर के कुछ ही घंटों में कमाएं 1,500 से ले कर 3,500 रुपए रोजाना.

मैं ने इस क्लब की असलियत जानने के लिए अपने मोबाइल फोन का काल रिकौर्डर औन कर उन में से एक नंबर पर फोन मिला दिया. कुछ देर घंटी बजने के बाद जब उधर से फोन उठा तो एक मर्दाना आवाज आई और बोला गया कि ‘सौम्या फ्रैंडशिप क्लब’ में आप का स्वागत है. बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?

मैं ने उस शख्स से कहा कि मैं ने उस के पोस्टर में से यह नंबर देख कर उसे फोन किया है और मैं भी हाई प्रोफाइल लड़कियों से दोस्ती गांठ कर ढेर सारे पैसे कमाना चाहता हूं तो उधर से उस शख्स ने बड़े ही खुले शब्दों में कहा कि मुझे इस के लिए 800 रुपए जमा करा कर इस क्लब की मैंबरशिप लेनी होगी. इस के बाद मुझे एक कोड दिया जाएगा और फिर मेरे पास बड़े घरों की लड़कियों और औरतों के फोन आने शुरू हो जाएंगे.

ये वे लड़कियां और औरतें होंगी जो अकेली रहती हैं या जिन के पति बिजनैस के सिलसिले में अकसर घर से बाहर टूर पर रहते हैं या फिर वे औरतें होंगी जो विधवा हैं.

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उस आदमी ने आगे कहा कि मुझे ऐसी औरतों के फोन भी आएंगे जो एक से ज्यादा मर्दों के साथ संबंध रखती हैं. उस के बाद उधर से सैक्स से जुड़ी ऐसी बातें बताई जाने लगीं कि मेरे अंगअंग में जोश आने लगा.

मैं उस शख्स की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था और जब वह अपने क्लब के बारे में बहुतकुछ बता चुका था तो मैं ने उस से कहा कि क्या उसे फोन पर ऐसी बातें बताते हुए पुलिस में पकड़े जाने का डर नहीं है?

यह सुन कर उस शख्स ने बिना वजह पूछे कहा कि इस में जो भी नौजवान औरतें, लड़कियां या लड़के शामिल होते हैं, वे सब अपनी मरजी से आते हैं. ऐसे में पुलिस का डर किस बात का?

मैं ने उस से कहा कि उस ने इतनी सैक्सी बातें फोन पर की हैं, क्या उसे काल रिकौर्ड होने का डर नहीं है? तो उस आदमी ने जो बताया उस से मेरा चौंकना लाजिमी था, क्योंकि उस ने कहा कि उस ने ऐसा सौफ्टवेयर लगा रखा

है कि उस के मोबाइल पर होने वाली कोई भी बातचीत रिकौर्ड नहीं की जा सकती है.

इस के बाद उस आदमी ने मुझ से कहा कि वह मैंबरशिप के लिए कुछ देर में एक बैंक अकाउंट नंबर सैंड करेगा, फिर उधर से फोन कट गया.

फोन कटने के बाद मैं ने जब अपनी रिकौर्डिंग लिस्ट देखी तो सचमुच उस नंबर से हुई बातचीत का कोई भी अंश रिकौर्ड नहीं हुआ था.

मैं ने दोबारा जांचने के लिए अपने परिचित के मोबाइल पर हालचाल लेने के बहाने फोन किया और बाद में उस काल की रिकौर्डिंग चैक की, तो उस बातचीत की रिकौर्डिंग मौजूद थी.

फैल रहा कारोबार

फ्रैंडशिप के नाम पर नौजवानों को फांसने का धंधा पूरे देश में फैला हुआ है. आप किसी भी शहर में चले जाएं वहां के लोकल अखबारों से ले कर दीवारों तक पर इन के इश्तिहार मिल जाएंगे. फ्रैंडशिप क्लब का धंधा करने वालों में औरतें और मर्द दोनों शामिल हैं.

फ्रैंडशिप के नाम पर सैक्स और ठगी का धंधा करने वाले अकसर पुलिस से बचने के लिए एक शहर से दूसरे शहर में ठिकाने बदलते रहते हैं, जिस से अगर कोई शिकायत भी करे तो फंसने के चांस कम हो जाएं.

इसी तरह के एक गिरोह का परदाफाश नागपुर पुलिस ने एक आदमी की शिकायत पर तब किया था, जब उसे इस गिरोह के लोगों ने सवा लाख रुपए का चूना लगा दिया था. इस के बाद पुलिस ने इस गिरोह के लोगों को दबिश डाल कर गिरफ्तार किया था.

इन गिरफ्तार लोगों में ‘निशा फ्रैंडशिप क्लब’ चलाने वाले गिरोह में मुखिया रितेश उर्फ भैरूलाल भगवानलाल, सुवर्णा मिनेश निकम, पल्लवी, विनायक पाटिल, शिल्पा समीर साखरे और निशा सचिन साठे शामिल थे. ये लोग महाराष्ट्र के ठाणे से राजस्थान तक अपना जाल फैलाए हुए थे. ये लोग सैकड़ों सिम रखते थे और जिस सिम से ये लोग ग्राहक को फांसते थे उसे ठगी के बाद बंद कर देते थे.

पुलिस गिरफ्त में आने के बाद इन के अलगअलग बैंकों में 20 खातों की जांच की गई तो उन में हर रोज बड़ेबड़े ट्रांजैक्शन सामने आने के बाद बीसियों खातों को सीज कर दिया गया.

दोस्ती के नाम पर ठगी

जो लोग इस तरह के गिरोह के चक्कर में पड़ते हैं उन से पहले क्लब की मैंबरशिप फीस के नाम पर अमूमन 1000 रुपए से ले कर 10,000 रुपए तक ऐंठ लिए जाते हैं. फिर इन से मैडिकल जांच और एचआईवी जांच के नाम पर 10,000 रुपए तक अलग से जमा कराए जाते हैं.

इन के चक्कर में फंसे नौजवान इस भरम में पैसे जमा करा देते हैं कि उन्हें तो हाई प्रोफाइल लोगों से दोस्ती के साथ ही कुछ घंटों के मजे के एवज में मोटी रकम हर रोज मिलनी ही है, पर जैसे

ही इन अकाउंट पैसे जमा करने की जानकारी दी जाती है उस के बाद क्लब के जिस मोबाइल नंबर से बात होती है, वह स्विच औफ हो जाता है.

इन क्लबों के शिकार नौजवान शर्मिंदगी के चलते अपने ठगे जाने की बात न तो परिवार वालों को बताते हैं और न ही पुलिस के पास जाते हैं, इसलिए इन क्लबों का यह धंधा फलताफूलता रहता है.

सैक्स और ब्लैकमेलिंग

फ्रैंडशिप क्लब में मैंबरशिप लेने के बाद क्लब की तरफ से एक कोड दिया जाता है. उस के बाद कुछ मोबाइल नंबर दिए जाते हैं.

मैंबरशिप लेने वाले को यह बताया जाता है कि ये नंबर उन के हैं जो नएनए लोगों के साथ बिस्तर गरम करने की चाहत रखते हैं. कुछ मामलों में तो फ्रैंडशिप क्लब की मैंबरशिप लेने वाले लोगों को आपस में ही फ्रैंड बना कर उन्हें सैक्स करने के लिए उकसाया जाता है और फिर जब बात संबंध बनने तक पहुंचती है तो ये लोग सैक्स के लिए महफूज जगह के नाम पर कमरे भी मुहैया कराते हैं, जहां इन के जाल में फंसे लोगों के सैक्स के दौरान के वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है.

कई बार इस गिरोह की औरतें सैक्स के शौकीन लोगों से किसी अमीर घर की औरत बन कर बातें करती हैं. जब मैंबर को पूरी तरह से यकीन हो जाता है तो वह उन के साथ बिस्तर गरम करने की इच्छा रख देता है.

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गिरोह की लड़कियां इन लोगों को ऐसी जगह पर बुलाती हैं जहां इन के साथ आसानी से वीडियो बनाया जा सके. इस के बाद ऐसे वीडियो के जरीए इस गिरोह के लोग मैंबर को लूटने लगते हैं. जब तक लुटने वाले लोगों को बात समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

कोड के जरीए धंधा

ये लोग अपने इश्तिहार के जरीए बड़े घरों की औरतों को फांसते हैं और फिर मैंबर बने नौजवानों को दिए गए कोड से उन औरतों से बात कराते हैं. फिर तय रकम में से 70 से 80 फीसदी कमीशन इस गिरोह वाले खुद ले लेते हैं, बाकी पैसा उस नौजवान को मिल जाता है.

लेकिन इस तरह के क्लबों के चक्कर में पड़ कर अकसर बड़े घरों की औरतें अपने पतियों की गाढ़ी कमाई तो लुटाती ही हैं साथ ही अपनी इज्जत भी गंवाती हैं. जो नौजवान

इन क्लबों के चक्कर में पड़ते हैं वे अपना कैरियर और अपने मांबाप के सपनों को दांव पर लगा देते हैं.

इन क्लबों की शिकार बड़े घरों की औरतें ज्यादा होती है, क्योंकि खुला जीवन जीने की चाहत इन्हें इस तरह से अपनी गिरफ्त में लेती है कि जल्दी ये उस से उबर नहीं पाती हैं. जो औरतें हिम्मत दिखाती हैं उन के चलते कई बार ऐसे गिरोह के लोग जेल भी गए हैं.

इस के साथसाथ आम लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा खासकर नौजवान तबके को, क्योंकि ऐसे क्लब उन की दुखती रग पर हाथ रखते हैं. वे जानते हैं कि नौजवान पीढ़ी को सैक्स के नाम पर भरमाया जा सकता है. मीठीमीठी बातों से उस से पैसे ऐंठे जा सकते हैं.

क्या कहते हैं जानकार

फ्रैंडशिप क्लबों द्वारा की जाने वाली ठगी से बचने के मामले को ले कर सामाजिक कार्यकर्ता विशाल पांडेय का कहना है कि आज के नौजवान शौर्टकट से अमीर बनने के सपने देखते हैं. साथ ही नईनई औरतों के साथ हमबिस्तरी की चाहत रखने वाले भी इस तरह के गिरोहों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं, जिस के चलते ये नौजवान लंबे समय तक ब्लैकमेलिंग और ठगी के शिकार होते हैं.

शौर्टकट से पैसे कमाने के ऐसे सपने देखना सलाखों के पीछे पहुंचने की वजह बन जाता है, इसलिए अपनी काबिलीयत से पैसे कमाएं और अपने जीवनसाथी के प्रति ईमानदार रहें, नहीं तो इज्जत तो जाएगी ही, यह लत आप को कंगाल भी कर देगी.

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सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका उर्मिला वर्मा का कहना है कि अगर आप फ्रैंडशिप क्लबों के जाल में गलती से भी फंस जाएं तो हिम्मत दिखाएं और अपने परिवार वालों के साथ ही पुलिस में रिपोर्ट जरूर दर्ज कराएं. इस से दूसरे लोग ऐसे गिरोहों के चक्कर में पड़ने से बचेंगे, साथ ही इन का परदाफाश होने से लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी.

Best of Crime Stories : 5 सालों का रहस्या

लेखक- हरमिंदर खोजी

मनप्रीत कौर सालों के बाद मामा के घर आई थी. गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी ने मनप्रीत की खूब खातिरदारी की. मामामामी और मनप्रीत के बीच खूब बातें हुईं. बातोंबातों में मनप्रीत ने गुरप्रीत से पूछा, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हालचाल हैं. उन से मुलाकात होती है या नहीं?’’

‘‘नहीं, हम 5 साल पहले मिले थे अनाजमंडी में. जागीर उस समय परेशान भी था और दुखी भी. गले लग कर खूब रोया. उस ने बताया कि भाभी (मंजीत कौर) के किसी कुलवंत सिंह से संबंध हैं और दोनों मिल कर उस की हत्या भी कर सकते हैं.’’

गुरप्रीत ने यह भी बताया कि उस ने जागीर सिंह से कहा था कि वह भाभी का साथ छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर में रहे. लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वजह वह भी जानता था और मैं भी. उस ने मुझे समझाने के लिए कहा कि वह भाभी को अपने ढंग से संभाल लेगा. बस उस के बाद जागीर सिंह मुझे नहीं मिला.

‘‘वाह मामा वाह, बड़े मामा ने तुम से अपनी हत्या की आशंका जताई और आप ने 5 साल से उन की खबर तक नहीं ली?’’

‘‘खबर कैसे लेता, भाभी ने तो लड़झगड़ कर घर से निकाल दिया था. मैं उस के घर कैसे जाता? जाता तो गालियां सुननी पड़तीं.’’ गुरमीत ने अपनी स्थिति साफ कर दी.

बात चिंता वाली थी. मनप्रीत ने खुद ही बड़े मामा जागीर सिंह का पता लगाने का निश्चय किया. उस ने मामा के पैतृक गांव से ले कर गुरमीत द्वारा बताई गई संभावित जगह रेलवे बस्ती, गुरु हरसहाय नगर तक पता लगाया. उस की इस छानबीन में जागीर सिंह का तो कोई पता नहीं लगा, पर यह जानकारी जरूर मिल गई कि जागीर सिंह की पत्नी मंजीत कौर रेलवे बस्ती में किसी कुलवंत सिंह नाम के व्यक्ति के साथ रह रही है.

सवाल यह था कि मंजीत कौर अगर किसी दूसरे आदमी के साथ रह रही थी तो जागीर सिंह कहां था? मंजीत ने ये सारी बातें छोटे मामा गुरमीत को बताईं. इन बातों से साफ लग रहा था कि जागीर सिंह के साथ कोई दुखद घटना घट गई थी. सोचविचार कर गुरमीत और मंजीत ने थाना गुरसहाय नगर जा कर इस बारे में पूरी जानकारी थानाप्रभारी रमन कुमार को दी.

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बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले गुरदेव सिंह के 2 बेटे थे जागीर सिंह और गुरमीत सिंह. उन के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस से जैसेतैसे घर का खर्च चलता था. सालों पहले उन के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. पत्नी के बीमार होने पर उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. इस के बावजूद वह उसे बचा नहीं पाए थे.

पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.

मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.

इसी बीच जागीर सिंह ने जैसेतैसे अपने छोटे भाई गुरमीत की भी शादी कर दी थी. गुरमीत की शादी के बाद मंजीत कौर और गुरमीत की पत्नी के बीच आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे थे. रोज के क्लेश से दुखी हो कर गुरमीत सिंह अपनी पत्नी को ले कर अलग हो गया. उस के अलग होने के बाद दोनों भाइयों का आपस में मिलना कभीकभार ही हो पाता था. ऐसे ही दोनों भाइयों का जीवनयापन हो रहा था.

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा. इस बीच जागीर सिंह और मंजीत कौर के बीच की दूरियां बढ़ती गईं. उन के घर में हर समय क्लेश रहने लगा था.

जागीर सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मंजीत कौर घर में टेंशन क्यों करती है. पहले तो उस के भाई गुरमीत की पत्नी की वजह से वह घर में झगड़ा करती थी, पर अब उसे भी घर से अलग हुए कई साल हो गए थे. फिर एक दिन जागीर सिंह को पत्नी द्वारा घर में कलह रखने का कारण समझ आ गया था.

दरअसल, मंजीत कौर के पड़ोसी गांव जुवाए सिंघवाला निवासी कुलवंत सिंह के साथ गलत संबंध थे. दोनों के बीच के संबंधों के बारे में उसे कई लोगों ने बताया था. लेकिन उसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. जब एक दिन उस ने दोनों को अपनी आंखों से देखा और रंगेहाथों पकड़ लिया तो अविश्वास की कोई वजह नहीं बची.

उस दिन वह सिरदर्द होने की वजह से समय से पहले ही काम से घर लौट आया था. तभी उसे पत्नी की सच्चाई पता चली थी. पत्नी की यह करतूत देख कर उसे गहरा आघात लगा.

शोर मचाने पर उस के घर की ही बदनामी होती, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना उचित समझा. उस ने उस से कहा, ‘‘मंजीत, तुम जो कर रही हो उस से बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. समझदारी से काम लो. अब तक जो हुआ, उसे मैं भी भूल जाता हूं और तुम भी यह सब भूल कर आगे से एक नया जीवन शुरू करो.’’

उस समय तो मंजीत कौर ने अपनी गलती मान कर पति से माफी मांग ली, पर उस ने अपने प्रेमी कुलवंत से मिलनाजुलना बंद नहीं किया. बल्कि कुछ समय बाद ही उस ने कुलवंत के साथ मिल कर जागीर सिंह को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

मंजीत कौर ने घर में क्लेश कर पति जागीर सिंह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह गांव वाला घर छोड़ कर गुरुसहाय नगर की रेलवे बस्ती में किराए का मकान ले कर रहे.

मकान बदलने की योजना कुलवंत ने बनाई थी. उसी के कहने पर मंजीत कौर ने यह फैसला लिया था. उस ने जानबूझ कर पति को मकान बदलने के लिए मजबूर किया था. पत्नी की बातों और हावभाव से जागीर सिंह को इस बात की आशंका होने लगी थी कि कहीं जागीर कौर उस की हत्या न करा दे. अचानक उन्हीं दिनों अनाजमंडी में जागीर सिंह की मुलाकात अपने छोटे भाई गुरमीत सिंह से हुई.

दोनों भाई आपस में गले मिल कर बहुत रोए. अपनेअपने मन का गुबार शांत करने के बाद जागीर सिंह ने अपने और मंजीत कौर के रिश्तों के बारे में उसे बताते हुए यह भी शक जताया था कि मंजीत कौर किसी दिन उस की हत्या करा सकती है.

गुरमीत सिंह ने बड़े भाई से कहा कि घर का माहौल ऐसा है तो उस का मंजीत कौर के साथ रहना ठीक नहीं है. उस ने जागीर सिंह को यह सलाह भी दी कि वह मंजीत कौर को छोड़ दे और बाकी जिंदगी उस के घर आ कर गुजारे. लेकिन जागीर सिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मंजीत को समझा कर उसे सीधे रास्ते पर ले आऊंगा.’’

इस बातचीत के बाद दोनों भाई अपनेअपने रास्ते चले गए थे. उस दिन के बाद वे दोनों आपस में फिर कभी नहीं मिले. यह बात सन 2013 के आसपास की है.

गुरमीत सिंह 5 वर्ष पहले अपने भाई से हुई मुलाकात को भूल गया था. एक दिन उस के घर उस के साले बलदेव सिंह की बड़ी बेटी मनप्रीत कौर मिलने के लिए आई और बातोंबातों में उस ने पूछ लिया, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हाल हैं और आजकल वह कहां रह रहे हैं?’’

गुरमीत सिंह ने उसे बताया कि करीब 5 साल पहले अनाजमंडी में मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने बताया था कि वह गुरु हरसहाय नगर में रह रहे हैं. उस दिन के बाद फिर कभी उन से नहीं मिला.

बहरहाल, 20 सितंबर 2018 को गुरमीत सिंह की तहरीर पर एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जरूरी जांच के बाद उन्होंने अगले दिन ही मंजीत कौर और कुलवंत को हिरासत में ले लिया.

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थाने ला कर जब दोनों से जागीर सिंह के बारे में पूछताछ की तो मंजीत कौर ने बताया कि उस के पति के किसी महिला के साथ नाजायज संबंध थे. उस महिला की वजह से वह उससे मारपीट किया करता था. फिर 5 साल पहले एक दिन वह उस से झगड़ा और मारपीट करने के बाद घर से निकल गया. इस के बाद वह कहां गया, पता नहीं.

रमन कुमार समझ गए कि मंजीत झूठ बोल रही है. इसलिए उन्होंने उस से और उस के प्रेमी से सख्ती से पूछताछ की. आखिर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि 5 साल पहले 23 अप्रैल, 2013 को उन्होंने जागीर सिंह की हत्या कर उस की लाश घर के सीवर में डाल दी थी.

मंजीत कौर ने बताया कि पिछले लगभग 12 सालों से कुलवंत के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिन का जागीर सिंह को पता लग गया था और वह इस बात को ले कर उस से झगड़ा किया करता था. इसीलिए उस ने अपने प्रेमी कुलवंत के साथ मिल कर पति को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल, 2013 को जागीर सिंह को चाय में नशे की गोलियां मिला कर पिला दीं. जब वह बेहोश हो गया तो गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश सीवर में डाल दी.

एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को 21 सितंबर, 2018 को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों की निशानदेही पर गांव वालों, गांव के सरपंच और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में उस के घर के सीवर से हड्डियां बरामद कीं.

उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारियों के साथ एफएसएल टीम भी मौजूद थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद हड्डियां एफएसएल टीम के सुपुर्द कर दीं.

दोनों हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 सितंबर, 2018 को मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक हत्या ऐसी भी

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमीखबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था. मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.  मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

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अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

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2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया.

मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था.

न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तोंयारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौनकौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरनेमारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गालीगलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरीशराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

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आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा मंजूरे, ‘‘मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलगअलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

 

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

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उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेनादेना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

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रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई. मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है.

मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सचसच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारीबारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सचसच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यारमोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

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कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

 

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

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मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था.

कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.  द्य

 

संबंधों की टेढ़ी लकीर

उत्तर प्रदेश का शहर फिरोजाबाद चूड़ी उद्योग के रूप में पूरे विश्व में जाना जाता है. इस शहर के
लाइनपार इलाके की लेबर कालोनी में 42 वर्षीय दिलीप शर्मा अपनी पत्नी आरती और बेटी के साथ रहता था. निहायत सीधासादा और मेहनती दिलीप एक चूड़ी कारखाने में काम करता था. इस से उस के परिवार की ठीक से गुजरबसर हो जाती थी.

30 दिसंबर, 2018 को वह रोजाना की तरह खाना खाने के बाद रात करीब 10 बजे टहलने के लिए घर से निकला. पति के जाते समय आरती ने कहा कि सर्दी हो रही है जल्दी घर आ जाना. इस बीच आरती लिहाफ ओढ़ कर बिस्तर पर लेट गई. लिहाफ की गर्माहट में उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.
अचानक आरती की आंखें खुलीं तो देखा पति बिस्तर पर नहीं है. दिलीप को टहलने गए हुए काफी देर हो चुकी थी. उस के घर न लौटने पर उसे चिंता हुई. उस ने फोन कर यह बात अपने जेठ अनिल शर्मा को बता दी. अनिल भाजपा का यूथ अध्यक्ष था. वह शहर की ही नई बस्ती में रहता था.

देर रात तक दिलीप के घर नहीं लौटने पर भाई व उस के परिवार के लोग चिंतित हो गए. उन्होंने मिल कर रात में ही दिलीप की तलाश शुरू कर दी. रात ढाई बजे तक वे उसे इधरउधर खोजते रहे. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

अगले दिन सुबह लगभग साढे़ 7 बजे कुछ लोगों ने लेबर कालोनी के पीछे रेलवे लाइन के किनारे एक युवक की खून से सनी लाश पड़ी देखी. उन्होंने इस की सूचना जीआरपी और थाना लाइनपार को दे दी. सूचना मिलने पर फिरोजाबाद रेलवे स्टेशन से जीआरपी पुलिस वहां पहुंच गई. कुछ देर बाद थाना लाइन पार के थानाप्रभारी संजय सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने रेलवे लाइनों के पास पड़ी युवक की लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर किसी नुकीले हथियार के घाव मिले. हत्यारों ने उस के गुप्तांग के साथ हाथ की उंगली भी काट दी थी. पुलिस ने जब मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब से उस का आधार कार्ड मिला. इस से उस की पहचान दिलीप शर्मा पुत्र रामप्रकाश शर्मा, निवासी लेबर कालोनी फिरोजाबाद के रूप में हुई.

पुलिस ने यह सूचना दिलीप के घर भिजवाई तो रोतेबिलखते उस के घर वाले लाइन किनारे पहुंच गए. घर वालों ने उस की शिनाख्त दिलीप शर्मा के रूप में की. चूंकि मामला भाजपा कार्यकर्ता के भाई की हत्या का था. इसलिए स्थानीय विधायक से ले कर पार्टी के कई पदाधिकारी वहां पहुंच गए.

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सूचना मिलने पर एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, सीओ (सदर) अजय सिंह चौहान भी वहां आ गए. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया.

पुलिस ने जब मृतक के घर वालों से बातचीत की तो भाई ललित शर्मा ने पुरानी रंजिश के चलते 5 लोगों राजू, पवन, हरिओम निवासी नई बस्ती, फिरोजाबाद, डब्बू उर्फ दीनदयाल और गोपाल निवासी बीमलपुर, जनपद इटावा पर शक जताया. पुलिस ने ललित शर्मा की तरफ से इन 5 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 148, 149, 302 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. ललित शर्मा ने भाई की हत्या की वजह रंजिश बताई थी. जबकि लाश का मुआयना कर पुलिस को मामला अवैध संबंधों का लग रहा था. नामजद आरोपियों के बारे में कोई सूचना नहीं मिल रही थी, इसलिए पुलिस ने दूसरे एंगल से केस की जांच शुरू कर दी.

सदर विधायक मनीष असीजा ने केस का जल्द खुलासा करने के लिए एसएसपी सचिंद्र पटेल से भी मुलाकात की. दिलीप की हत्या का मामला पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गया था. एसएसपी ने केस खोलने के लिए तेजतर्रार पुलिस कर्मियों के अलावा सर्विलांस टीम को भी लगा दिया था. एसएसपी सचिंद्र पटेल खुद इस केस का सुपरविजन कर रहे थे.

पुलिस ने दिलीप की पत्नी आरती के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स से एक नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. जब पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो हैरानी और बढ़ गई.

जांच में वह नंबर जिला मैनपुरी के गांव रामपुरा कुर्रा निवासी गौरव का निकला. पुलिस ने गौरव की जांच की तो जानकारी मिली कि गौरव आरती की मैनपुरी में रहने वाली बुआ की ननद का बेटा है, जो रिश्ते में आरती का भाई लगता है.

पुलिस को यह भी पता चला कि गौरव का दिलीप के घर काफी आनाजाना था. लेकिन रिश्ता भाईबहन का होने के चलते पुलिस पूरी तरह संतुष्ट होना चाहती थी. इस के लिए पुलिस ने आरती की निगरानी बढ़ा दी. साथ ही वह आरती और गौरव की गहराई से जांच करने लगी. जांच में पुलिस को पता चला कि मृतक दिलीप की पत्नी आरती के गौरव से अवैध संबंध थे.

थानाप्रभारी (लाइनपार) संजय सिंह को 15 जनवरी, 2019 की सुबह मुखबिर से सूचना मिली कि आरती और उस का प्रेमी गौरव कहीं भागने की फिराक में रेलवे स्टेशन पर खड़े हैं.

इस सूचना पर थानाप्रभारी संजय सिंह कांस्टेबल प्रदीप कुमार, शिवप्रकाश व महिला कांस्टेबल प्रभादेवी को ले कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए. मुखबिर की सूचना सही निकली. आरती व गौरव रेलवे स्टेशन पर बुकिंग विंडो के पास मिल गए.

पुलिस दोनों को ले कर थाने आ गई. थानाप्रभारी ने आरती व गौरव से पूछताछ की. दोनों पुलिस को कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे. चूंकि पुलिस के पास इन के खिलाफ ठोस सबूत थे, इसलिए उन से सख्ती से पूछताछ की. साथ ही उन्हें कालडिटेल्स भी दिखाई.

अंतत: गौरव ने स्वीकार कर लिया कि उस के आरती से अवैध संबंध हैं. दिलीप की हत्या क्यों की गई, इस बारे में दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने हत्या की जो कहानी बताई इस प्रकार निकली—

करीब 9 साल पहले दिलीप शर्मा की शादी फिरोजाबाद जनपद के कस्बा आसफावाद की रहने वाली आरती के साथ हुई थी. दिलीप और आरती की उम्र में काफी अंतर था. दूसरी ओर शादी से पहले से ही गौरव के साथ आरती के शारीरिक संबंध बन गए थे, जो शादी के बाद भी बने रहे.

आरती ने पति को बता रखा था कि गौरव उस का भाई है, इस के बावजूद दिलीप यही सोचता था कि आखिर वह उस के घर डेरा क्यों डाले रहता है. उस ने बातों ही बातों में कई बार गौरव को टोका भी था पर गौरव पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा था.

पति के ज्यादा टोकाटाकी करने पर आरती समझ गई कि अब दिलीप को उन पर शक हो गया है. इस बात को ले कर दिलीप ने एक दिन घर में काफी हंगामा भी किया.

तब आरती ने अपनी सफाई में कहा, ‘‘यह मेरा भाई है, कभीकभी घर आ जाता है तो इस में गलत क्या है?’’ इस पर दिलीप शांत हो गया. उस ने सोचा कि आरती जो कह रही है हो सकता है सच हो और वह जो सोच रहा है, वह गलत हो.

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अब आरती कोई ऐसा उपाय खोजने लगी कि किसी न किसी बहाने से गौरव वहां रहता रहे. लिहाजा उस ने एक दिन गौरव से कहा, ‘‘देखो गौरव तुम्हारे बिना मेरा यहां बिलकुल भी मन नहीं लगता. ऐसा करो कि तुम अपने जीजा से कह कर यहीं कोई नौकरी कर लो. इस से हमें मिलने में भी आसानी रहेगी.’’

एक दिन बातोंबातों में गौरव ने दिलीप से कह दिया, ‘‘जीजाजी, मेरे लायक कोई काम हो तो दिलवा दो.’’
दिलीप ने कहा कि वह कोशिश करेगा. दिलीप के सामने ही गौरव कई बार आरती से हंसीमजाक करता था. भाईबहन होने के नाते दिलीप ने इस पर ध्यान नहीं दिया.

लेकिन एक दिन किसी काम से दिलीप अचानक घर आ गया. उस समय गौरव और आरती दुनिया से बेखबर एकदूसरे में समाए हुए थे. उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख कर दिलीप सन्न रह गया.

उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि भाईबहन के बीच ऐसा नाजायज रिश्ता भी होगा. उस का खून खौल उठा. वह चीखा तो दोनों के होश उड़ गए. इस बीच गौरव तेजी से वहां से भाग गया.

दिलीप ने गुस्से में पत्नी की पिटाई कर दी और हिदायत दी कि यदि उस ने गौरव को दोबारा घर में देख लिया तो परिणाम अच्छा नहीं होगा. आरती ने माफी मांग कर बात खत्म कर दी.

अब दिलीप पत्नी पर निगाह रखने लगा. वह बिना बताए कभी भी घर आ जाता था. इस से आरती परेशान हो उठी. क्योंकि अब उसे गौरव से मिलने का मौका नहीं मिल पा रहा था. एक दिन पति के शहर से बाहर जाने पर आरती ने गौरव को फोन कर बुला लिया.

आरती ने गौरव को बताया, ‘‘गौरव, अब दिलीप हम लोगों को कभी मिलने नहीं देगा. लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. वह जबतब मेरी पिटाई कर देता है. अब हमें कुछ करना पड़ेगा, नहीं तो यह पीटपीट कर मेरी जान ही ले लेगा.’’

गौरव कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘बताओ, इस का उपाय क्या है?’’

‘‘करना क्या है, इसे रास्ते से हटाना पड़ेगा, नहीं तो वह हम दोनों को जुदा कर देगा.’’ आरती ने कहा.

‘‘ठीक है इस का इंतजाम कर लेंगे.’’ गौरव ने भरोसा दिया.

इस के बाद आरती और गौरव ने दिलीप को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना के अनुसार 30 दिसंबर, 2018 को आरती ने फोन पर गौरव को बुला लिया.

दिलीप खाना खाने के बाद करीब 10 बजे रोज की तरह टहलने के लिए निकला. योजना के अनुसार गौरव उसे वहीं मिल गया.

दिलीप गौरव से खुंदक खाए हुए था, लिहाजा उस ने दिलीप के पैर पकड़ कर उस से माफी मांग ली. दिलीप शांत हो गया. गौरव उसे अपनी बातों में उलझा कर लेबर कालोनी के पीछे रेलवे ट्रैक के पास ले गया. इस बीच योजना के अनुसार दिलीप के पीछेपीछे आरती भी वहां पहुंच गई.

मौका देखते ही गौरव ने आरती के सामने ही दिलीप पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए. जान बचने के लिए दिलीप ने जब भागने की कोशिश की तो आरती ने उस के बाल पकड़ कर गिरा दिया. ट्रेनों की आवाजाही में दिलीप की चीख गुम हो गई.

हत्या के बाद घटना को दूसरा रूप देने के लिए गौरव ने उस का लिंग और हाथ की अंगुली भी काट ली. उस की लाश वहीं रेलवे लाइन के पास डालने के बाद गौरव मैनपुरी भाग गया जबकि आरती अपने घर चली गई.

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आरती और गौरव से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल छुरी और हत्या के वक्त पहने हुए दस्ताने बरामद कर लिए.उन से पूछताछ के बाद पुलिस जब उन्हें जेल ले कर जा रही थी तो आरती रोने लगी. वह बोली, ‘‘हम दोनों को जेल में साथसाथ ही रखना. हम अलग नहीं रह पाएंगे.’’
आरती ने जिस के साथ सात फेरे लिए साजिश के तहत उसे ही अपने प्रेमी के साथ मिल कर मौत की नींद सुला दिया. एक सीधासादा पति अपनी पत्नी के अवैध संबंधों की भेंट चढ़ गया. आरती और गौरव ने भाईबहन के रिश्ते को कलंकित कर दिया.

साथ ही अपना बसाबसाया घर भी उजाड़ लिया. आरती के इस कृत्य से उस की बेटी को मांबाप का प्यार नहीं मिल सकेगा. फिलहाल ननिहाल वाले उसे अपने साथ ले गए.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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