Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
‘‘महुआ…’’ अपने पिता की जोरदार आवाज सुन कर घरभर के कपड़े धोती
16 साल की महुआ अपने काले गरारे से हाथ पोंछते हुए झुग्गी के बाहरी दरवाजे तक दौड़ी चली गई.
महुआ घर में अकेली थी, इसलिए उसे अपनी उधड़ी हुई चोली से झांकते उभारों का भी कोई खयाल नहीं था. उसे बस यह पता था कि पिता के दूसरी बार आवाज लगाने से पहले वह न पहुंची तो फिर उस की खैर नहीं.
महुआ जब तक पिता की आवाज सुन कर दौड़ी हुई आई, तब तक वह अंदर आ कर पलंग पर बैठ चुका था.
काले लहंगे के घेर को घुटने से ऊपर उठा कर अपने हाथ पोंछते हुए महुआ बोली, ‘‘जी पिताजी, कुछ भूल गए थे क्या?’’
बांके ने शायद बहुत दिनों के बाद अकेले में गौर से अपनी बेटी को देखा था… हाथ पोंछने के चलते लहंगा उठने पर उस की जांघों ने और फिर फटी हुई चोली से झांकते उभारों ने उस में अजीब सा जोश भर दिया.
बांके बाहरी दरवाजा खुला रखने पर उसे जबरदस्त डांट लगाना चाहता था, पर अपने भीतर उपजी हवस के चलते उस ने तुरंत अपने गुस्से को काबू में किया.
आवाज में एक खास नरमी और प्यार भरते हुए उस ने महुआ को अपने पास बुलाया, ‘‘इधर आओ.’’
पिता के पास पहुंच कर महुआ सामने खड़ी हो गई और बोली, ‘‘पीने का पानी लाऊं?’’
‘‘नहीं… पानी नहीं चाहिए… तू तो मेरे पास बैठ…’’
महुआ बांके के बगल में कुछ दूरी पर बैठने लगी, तो उस ने पकड़ कर उसे अपनी गोद में बिठा लिया. अपनी बांहों में भींचते हुए उस के गालों पर प्यार करते हुए वह बोला, ‘‘क्या कर रही थी मेरी प्यारी बच्ची?’’
‘‘कपड़े धो रही थी…’’ महुआ ने कहा, फिर जब बांके ने उसे अपनी बांहों में कस कर भींच लिया, तो वह बोली, ‘‘अरे, मेरा दम घुट रहा है. अभी बहुत काम पड़ा है. मुझे छोडि़ए… अब मैं बड़ी हो गई हूं.’’
‘‘बड़ी हो गई है, तो क्या मैं तुझे गोद में नहीं बिठा सकता?’’
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‘‘लेकिन, इस समय आप के मुंह से शराब की बदबू आ रही है और मेरा दम घुट रहा है… मुझे आप से डर लग रहा है.’’
‘‘मुझ से डर? अपने पिता से डर?’’
‘‘हां, मुझे छोड़ दो, वरना मैं चिल्लाने लगूंगी,’’ महुआ ने पूरा दम लगा कर खुद को पिता के चंगुल से छुड़ाया और छिटक कर दूर जा कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘आज मैं मां से आप की यह हरकत बतलाऊंगी…’’
‘‘मैं कोई तेरी मां से डरता हूं? वह तो मेरे पैर की जूती है… जूती. अरे, तू मां से क्या, बाहर निकल कर सारी बस्ती में ढिंढोरा पीट दे, मैं अपनी पर आ जाऊंगा तो तुझे मुझ से कोई नहीं बचा सकता,’’ कहते हुए बांके उठ कर लड़खड़ाते कदमों से फिर महुआ की तरफ लपका.
तभी बाहर से किसी ने आवाज लगाई, ‘‘बांके…’’
जानीपहचानी आवाज सुन कर बांके महुआ की तरफ बढ़तेबढ़ते रुक गया. वह मुड़ा और चल कर बाहर आया, ‘‘अरे, ठेकेदार साहब आप? इस बस्ती में… आइए बैठिए…’’ बाहर बरामदे में पड़े तखत की तरफ इशारा करते हुए बांके ने उन्हें बिठाया.
तभी बाहर सामने थोड़ी दूर, ऊंचाई पर बने रेलवे ट्रैक से किसी ट्रेन के गुजरने की आवाज माहौल में गूंज गई. इंजन जब सीटी बजाता हुआ दूर निकल गया.
रेल के डब्बों की धड़धड़ाहट बंद हुई, तो तखत पर बैठते हुए ठेकेदार श्याम सुंदर ने कहा, ‘‘बांके, यह मेरी बनाई और बसाई गई बस्ती है. कभी मैं भी एक साधारण मिस्त्री था. पर बाजुओं में दम हो और तिकड़म आती हो तो इस देश में कुछ भी हासिल किया जा सकता है.
‘‘ये जो गरीबों की बस्ती को पक्का बनाने के सरकारी टैंडर मुझे मिलते हैं, ये भी मेरे जैसा आदमी ही हासिल कर सकता?है. अब आजकल जो शौचालय बनाने का ठेका मुझे मिला है और जिस में तुम काम कर रहे हो, इस के लिए भी मुझे बड़ी मशक्कत और पैसा खर्च करना पड़ा है.
‘‘यह तो हुई मेरी बात, अब तुम यह बताओ कि आज काम पर से चले क्यों आए? तुम जानते हो कि मुझे इस महीने में ही हर गंदी बस्ती और दलितों के मकानों में शौचालय बना कर देने हैं, वरना मेरा लाखों रुपयों का अगला टैंडर फंस जाएगा.
‘‘यह महीना खत्म होने में केवल 3 दिन बचे हैं और 22 शौचालय अभी और बनने हैं. कल मजिस्ट्रेट साहब दौरे पर भी आने वाले हैं और तुम हो कि बद्री मिस्त्री से लड़ कर चले आए. मेरा तो इंतजार किया होता.’’
ठेकेदार के चुप होते ही बांके बोला, ‘‘मैं बद्री के साथ काम नहीं करूंगा.’’
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‘‘पर क्यों?’’
‘‘सारी औरतें क्या उसी के लिए रखी हैं? आज मैं ने जब बिंदा को अपने साथ काम पर लिया, तो बद्री अड़ गया और बोला, ‘बिंदा तुम्हारे साथ काम नहीं करेगी, तुम राजा को ले लो.’
‘‘इस का मतलब तो यह हुआ कि सारी रानियां वह रखेगा और मेरे हिस्से में राजा जैसे घटिया लेबर आएंगे,’’ बांके गुस्से में अपनी बात कहे जा रहा था.
बांके चुप हुआ तो श्याम सुंदर बोला, ‘‘बांके, तुम समझते क्यों नहीं कि बद्री मेरा बहुत पुराना मिस्त्री है. किस लेबर को किस मिस्त्री के साथ रखना है, यह जिम्मेदारी भी मैं ने उसे ही दे रखी है.
‘‘तुम उस के साथ काम नहीं करना चाहते हो तो मत करना, पर इस समय मेरी इज्जत का सवाल है. समय से ठेका पूरा कर के देना है, इसलिए तुम मेरे साथ चलो.’’
बांके ने कुछ देर सोच कर कहा, ‘‘ठीक है, पर मुझे बिंदा चाहिए.’’
‘‘वह मैं देख लूंगा, अभी तो साथ चलो.’’
‘‘ठीक है, मैं आप के साथ ही चलता हूं, पर आज से जब तक यह ठेके का काम खत्म नहीं होता, तब तक बिंदा मेरे साथ ही काम पर लगेगी.’’
‘‘अच्छा बाबा, मैं बद्री को समझा लूंगा, तुम चलो तो सही.’’
‘‘चलता हूं,’’ कहते हुए बांके ने अंदर की ओर अपना मुंह कर के आवाज लगाई, ‘‘महुआ.’’
महुआ अंदर चली गई थी. दोबारा आवाज सुनी तो सहम गई. आवाज सुन कर पहुंचना तो था ही, पर इस बार उस ने अपने सीने पर दुपट्टा डाल लिया था.
महुआ सामने आई, तो श्याम सुंदर भी महुआ के बदन से अपनी नजरें नहीं हटा पाया. उसे देख कर पूछा, ‘‘यह तुम्हारी बेटी है?’’
‘‘हां,’’ बांके बोला.
‘‘घर का कामकाज कर लेती है?’’
‘‘बिलकुल कर लेती है.’’
‘‘तुम ने कभी बताया नहीं, तुम्हारी मालकिन ऐसी ही किसी लड़की की तलाश में है. तुम चाहो तो कल से इसे काम पर भेज सकते हो. अपने साथ ही ले आना.
‘‘इस के काम करने के 5,000 रुपए महीना मैं तुम्हें अभी एडवांस में देता हूं,’’ कह कर उस ने अपनी सदरी की जेब से 5,000 रुपए निकाल कर बांके को पकड़ा दिए.
बांके ने वे रुपए महुआ को देते हुए कहा, ‘‘ले, ये रुपए रख ले. कल से तुझे ठेकेदार के घर पर काम करने जाना है.’’
जब बांके ठेकेदार के साथ चला गया, तो महुआ ने तेजी से दरवाजा बंद कर लिया और उन रुपयों को अपनी हथेली में दबा कर घसीटा को याद करने लगी. उसे रोज की तरह सामने से गुजरने वाले घसीटे की साइकिल की घंटी बजने का इंतजार था.
जैसे ही महुआ को घंटी की आवाज सुनाई देनी शुरू हुई, वह दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. उसे खड़ी देख कर घसीटा अपनी साइकिल एक तरफ खड़ी कर के अंदर आ गया.
महुआ हमेशा की तरह उसे अपने कमरे में ले गई. वहां दोनों ने एकदूसरे को जीभर कर प्यार किया, फिर महुआ उसे आज रात की योजना बताने लगी.
उस की पूरी बात सुन कर घसीटा बाहर की तरफ बढ़ते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तैयार रहूंगा.’’
घसीटा के जाते ही महुआ दरवाजा बंद कर के अंदर आ कर पलंग पर बैठ कर बीते हुए दिनों की बातें सोचने लगी…
बचपन में अपनी जिद पर जब महुआ ने स्कूल जाना शुरू किया था, तो बांके को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था कि वह पढ़ेलिखे. जब वह पढ़ालिखा नहीं है और चमकी भी केवल तीसरी जमात पास?है, तो महुआ पढ़ कर क्या करेगी.
बांके को लगता था कि ज्यादा पढ़लिख कर महुआ हाथ से निकल जाएगी, ठीक उसी तरह जिस तरह चमकी को उस के बाप के हाथ से निकाल कर वह ले आया था.
वजह, 5वीं जमात पास करने के बाद बांके को लगा कि जिस तरह महुआ के शरीर का तेजी से विकास हो रहा है और वह 10 साल की उम्र में ही
13 साल की लगती है, तो 8वीं जमात पास करतेकरते वह 16 साल की दिखने लगेगी, इसलिए जब महुआ ने 5वीं जमात के आगे पढ़ने की बात की तो उस ने आगे पढ़ाने से साफ मना कर दिया.
चमकी ने जब महुआ का पक्ष लिया और महुआ भी जब जिद पर आ गई तो उस दिन बांके का दिमाग खराब हो गया. उस ने दोनों को ऐसा धुना कि चमकी तो कांप कर रह गई और महुआ रोती ही रही.
महुआ स्कूल तो नहीं गई, पर उसे अपने बाप से बहुत नफरत हो गई थी. 5वीं जमात पास करने के बाद आगे के साल उस के उस बस्ती के बाहर सब तरह की दलित जातियों के बच्चों के साथ खेलतेकूदते बीते.
कोई भी ट्रेन जब सामने से गुजरती, तो महुआ भी उन बच्चों के साथ शरारत करती. अंदर से झांकते मुसाफिरों को चिढ़ाती और ट्रेन रुक जाती तो ट्रेन के पास जा कर उसे छू कर देखती.
उस का मन करता कि वह उस ट्रेन में बैठ कर दूर चली जाए… बहुत दूर, जहां उस का पिता न पहुंच सके.
यह सब 2-3 साल चला, फिर जब फिरोजा महुआ की सहेली बनी, तो वह भी फिरोजा की तरह थोड़ा गंभीर रहने लगी. फिरोजा उस से 2 साल बड़ी थी.
एक दिन जब महुआ फिरोजा के घर में उस से बैठी बातें कर रही थी, तो अचानक घबरा के टाट से घिरे बाथरूम की तरफ उठ कर भागी.
उस की परेशानी जानते ही फिरोजा ने उसे सैनेटरी पैड और नया अंडरवियर दिया और बिठा कर समझाया कि ऐसा हर लड़की के साथ होता है.
बाहर म्यूनिसिपैलिटी के नल से पानी भरते समय भी फिरोजा और महुआ एकदूसरे की मदद करतीं. उन की इस दोस्ती के बस्ती में बहुत चर्चे थे.
उस बस्ती के जवान लड़के भी मौका पा कर इन दोनों पर लाइन मारा करते. 1-2 तो बहुत करीब तक उन से चिपट जाना चाहते.
इन दोनों का मन भी करता कि उन में से जो 1-2 बहुत स्मार्ट से दिखते हैं, उन से अकेले में बात करें. ये उन्हीं सब शैतान बच्चों में से कुछ थे, जिन के साथ खेलते हुए इन दोनों का बचपन बीता था.