क्षितिज के उस पार: भाग -2

‘‘शालू…चाय बनाना अच्छी सी…’’ अभय ने कुछ जोर से कहा था. मैं सहसा चौंकी थी.

‘‘अरे, शालिनी है न…पड़ोस ही में तो रहती है. वही आ जाती है मां को संभालने…बीच में तो ये काफी बीमार हो गई थीं…मुझे दिन भर बाहर रहना पड़ता है, शालिनी ने ही इन्हें संभाला था.’’

तभी मुझे कुछ ध्यान आया. पिछली बार आई थी, तब मांजी ने ही कहा था, ‘पड़ोस में रामबाबू हैं न…रिटायर्ड हैडमास्टर साहब, उन की बेटी यहीं स्कूल में पढ़ाती है. बापबेटी ही हैं. बड़ी समझदार बिटिया है. मां नहीं है उस की, दिन में 2 बार पूछ जाती है.’

‘‘दीदी, चाय लीजिए,’’ शालिनी चाय के साथ बिस्कुटनमकीन भी ले आई थी. दुबलीपतली, सुंदर, घरेलू सी लड़की लगी थी. फिर वह बोली, ‘‘आप जल्दी से नहाधो लीजिए. मैं ने खाना बना लिया है. आप तो थकी होंगी, मैं अभी गरमागरम फुलके सेंक देती हूं.’’

मैं कुछ कह न पाई थी. मुझे लगा कि अपने ही घर में जैसे मेहमान बन कर आई हूं. मैं सोचने लगी कि यह शालिनी घर की इतनी जिम्मेदार सदस्या कब से हो गई?

अटैची से कपड़े निकाल कर मैं नहाने चली गई थी.

‘‘वह बहादुर कहां गया है?’’ बाथरूम से निकल कर मैं ने पूछा.

‘‘छुट्टी पर है. आजकल तो शालू सुबहशाम खाना बना देती है, इसलिए घर चल रहा है. वाह, कोफ्ते…और मटर पुलाव…वाह, शालूजी, दिल खुश कर दिया आप ने,’’ अभय चटखारे ले कर खा रहे थे.

मेरे मन में कुछ चुभा था. रसोई का काम छोड़े मुझे काफी समय हो गया था. नौकरी और फिर घर पर बच्चों की संभाल के कारण आया ही सब कर लेती थी. यहां पर बहादुर था ही.

‘रितु, तुम्हारे हाथ का खाना खाए अरसा हो गया. कहीं खाना पकाना भूल तो नहीं गईं,’ अभय कभी कह भी देते थे.

‘यह भी कोई भूलने की चीज है. फिर ये लोग ठीक ही बना लेते हैं.’

‘पर गृहिणी की तो बात ही और होती है.’

मैं समझ जाती थी कि अभय चाहते हैं कि मैं खुद उन के लिए कुछ बनाऊं पर फिर बात आईगई हो जाती.

अचानक अभय बोले, ‘‘तुम्हें पता है, शालू बहुत अच्छा सितार बजाती है?’’

अभय ने कहा तो मुझे लगा कि जैसे मैं यहां शालू के ही बारे में सबकुछ जानने आई हूं. मन खिन्न हो उठा था. खाना खातेखाते ही फिर अभय ने कहा, ‘‘शालू, तुम्हें बाजार जाना था न. दफ्तर जाते समय तुम्हें छोड़ता जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ शालिनी भी मुसकराई थी.

मैं सोच रही थी कि इतने दिनों बाद मैं यहां आई हूं, अभय को न तो मेरे बारे में कुछ जानने की इच्छा है, न घर के बारे में और न ही बच्चियों के बारे में. बस, एक ‘शालू…शालू’ की रट लगा रखी थी.

‘‘अच्छा, मैं चलूंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ मैं ने अंदर से ही कह दिया था. तभी खिड़की से देखा, शालिनी कार में अगली सीट पर अभय के बिलकुल पास बैठी थी. पता नहीं अभय ने क्या कहा था, उस के मंद स्वर में हंसने की आवाज यहां तक आई थी.

मन हुआ कि अभी इसी क्षण लौट जाऊं. सोचने लगी कि आखिर मैं यहां आई ही क्यों थी?

मांजी खाना खा कर शायद सो गई थीं. मेज पर रखा अखबार उठाया, पर मन पढ़ने में नहीं लगा था.

अभय शायद 2 घंटे बाद लौटे थे. मैं ने उठ कर चाय बनाई.

‘‘रितु, रात का खाना हमारा शालू के यहां है,’’ अभय ने कहा था.

‘‘शालू…शालू…शालू…मैं क्या खाना भी नहीं बना सकती. समझ में नहीं आता कि तुम लोग क्यों उस के इतने गुलाम बने हुए हो. बहादुर छुट्टी पर क्या गया, लगता है, उस छोकरी ने इस घर पर आधिपत्य ही जमा लिया है.’’

‘‘रितु, क्या हो गया है तुम्हें? इस तरह तो तुम कभी नहीं बोलती थीं. घर का कितना ध्यान रखती है शालिनी…तुम्हें कुछ पता भी है? तुम्हें तो अपनी नौकरी… अपने कैरियर के सिवा…’’

‘‘हां, सारी अच्छाइयां उसी में हैं…मैं अभद्र हूं…बहुत बुरी हूं…कह लो जो कुछ कहना है…मैं क्या जानती नहीं कि उस का जादू तुम्हारे सिर पर चढ़ कर बोल रहा है. उसे घुमानेफिराने के लिए समय है तुम्हारे पास…और बीवी, जो इतने दिनों बाद मिली है, उस के पास दो घड़ी बैठ कर बात भी नहीं कर सकते.’’

‘‘वह बात करने लायक भी तो हो…’’ अभय भी चीखे थे…और चाय का प्याला परे सरका दिया था. फिर मेरी ओर देखते हुए बोले, ‘‘क्यों बात का बतंगड़ बनाने पर तुली हो?’’

‘‘बतंगड़ मैं बना रही हूं कि तुम? क्या देख नहीं रही कि जब से आई हूं तब से शालू…शालू की रट लगा रखी है…यह सब तो मेरे सामने हो रहा है…पता नहीं पीठ पीछे क्याक्या गुल…’’

‘‘रितु…’’ अभय का एक जोर का तमाचा मेरे गाल पर पड़ा. मैं सचमुच अवाक् थी. अभय कभी मुझ पर हाथ भी उठा सकते हैं, मैं तो ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती थी. मेरा इतना अपमान…वह भी इस लड़की की खातिर…

तकिए में मुंह छिपा कर मैं सिसक पड़ी थी…अभय चुपचाप बाहर चले गए थे. शायद उन्होंने महरी से कहा था कि शालिनी के यहां खाने के लिए मना कर दे. मांजी तो शाम को खाना खाती नहीं थीं. उन्हें दूध दे दिया था. मैं सोच रही थी कि अभय कुछ तो कहेंगे, माफी मांगेंगे फिर मैं रसोई में जा कर कुछ बना दूंगी…पर वे तो बैठक में बैठे सिगरेट पर सिगरेट पीते जा रहे थे. मन फिर जल उठा कि आखिर ऐसा क्या कर दिया मैं ने. शायद इस तरह बिना किसी पूर्व सूचना के आ कर उन के कार्यक्रम को चौपट कर दिया था, उसी का इतना गम होगा. गुस्से में आ कर मैं ने फिर अटैची में कपड़े ठूंस लिए थे.

‘‘मैं जा रही हूं…अहमदाबाद…’’ मैं ने ठंडे स्वर में कहा था.

‘‘अभी…इस समय?’’

‘‘हां…अभी बस मिल जाएगी…’’

‘‘कल चली जाना, अभी तो रात काफी हो गई है.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है,’’ मैं भी जिद पर आमादा थी. शायद अभय के थप्पड़ की कसक अब तक गालों पर थी.

‘‘ठीक है, मैं छोड़ आता हूं…’’

अभय चुपचाप कार निकालने चले गए थे. मैं और भी जलभुन गई थी कि कितने आतुर हैं मुझे वापस छोड़ आने को. मैं चुप थी…और अभय भी चुपचाप गाड़ी चला रहे थे. मेरी आंखें छलछला आईं कि कभी यह रास्ता कितना खुशनुमा हुआ करता था.

‘‘रितु, मैं ने बहुत सोचविचार कर देख लिया है…तुम्हें अब यह नौकरी छोड़नी पड़ेगी…और कोई चारा नहीं है…’’ अभय ने जैसे एक हुक्म सा सुना डाला था.

‘‘क्यों, क्या कोई लौंडीबांदी हूं मैं आप की, कि आप ने फरमान दे दिया, नौकरी करो तो मैं नौकरी करने लगूं…आप कहें नौकरी छोड़ दो…तो मैं नौकरी छोड़ दूं?’’

‘‘हां, यही समझ लो…क्योंकि और किसी तरह से तो तुम समझना ही नहीं चाहती हो और ध्यान से सुन लो, अगर तुम अब अपनी जिद पर अड़ी रहीं तो मैं भी मजबूर हो कर…’’

‘‘क्या? क्या करोगे मजबूर हो कर, मुझे तलाक दे दोगे? दूसरी शादी कर लोगे उस…अपनी चहेती…क्या नाम है, उस छोकरी का…शालू के साथ?’’ गुस्से में मेरा स्वर कांपने लगा था.

‘‘बंद करो यह बकवास…’’ अभय का कंपकंपाता बदन निढाल सा हो गया था. गाड़ी डगमगाई थी. मैं कुछ समझ नहीं पाई थी. सामने से एक ट्रक आता दिखा था और गाड़ी काबू से बाहर थी.

‘‘अभय…’’ मैं ने चीख कर अभय को खींचा था और तभी एक जोरदार धमाका हुआ था. गाड़ी किसी बड़े से पत्थर से टकराई थी.

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क्षितिज के उस पार: भाग -3

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ?’’ 2-3 साइकिल सवार उतर कर पूछने लगे थे. ट्रक ड्राइवर भी आ गया था, ‘‘बाबूजी, क्या मरने का इरादा है? भला ऐसे गाड़ी चलाई जाती है…मैं ट्रक न रोक पाता तो… वह तो अच्छा हुआ कि गाड़ी पत्थर से ही टकरा कर रुक गई, मामूली ही नुकसान हुआ है.’’

मैं ने अचेत से पड़े अभय को संभालना चाहा था, डर के मारे दिल अभी तक धड़क रहा था.

‘‘अभय, तुम ठीक तो हो न…?’’ मेरा स्वर भीगने लगा था.

‘‘यह तो अच्छा हुआ बहनजी…आप ने इन्हें खींच लिया वरना स्टियरिंग पेट में घुस जाता तो…’’ ट्रक ड्राइवर कह रहा था. अभय ने मेरी तरफ देखा तो मैं ने आंखें झुका ली थीं.

‘‘बाबूजी, इस समय गाड़ी चलाना ठीक नहीं है, आगे की पुलिया भी टूटी हुई है. आप पास के डाकबंगले में रुक जाइए, सुबह जाना ठीक होगा…गाड़ी की मरम्मत भी हो जाएगी,’’ ड्राइवर ने राय दी.

‘‘हां…हां, यही ठीक है…’’ मैं सचमुच अब तक डरी हुई थी.

डाकबंगला पास ही था. मैं तो निढाल सी बाहर बरामदे में पड़ी कुरसी पर ही बैठ गई थी. अभय शायद चौकीदार से कमरा खोलने के लिए कह रहे थे.

‘‘बाबूजी, खाना खाना चाहें तो अभी पास के ढाबे से मिल जाएगा…फिर तो वह भी बंद हो जाएगा,’’ चौकीदार ने कहा था.

‘‘रितु, तुम अंदर कमरे में बैठो, मैं खाना ले कर आता हूं,’’ कहते हुए अभय बाहर चले गए थे.

साधारण सा ही कमरा था. एक पलंग बिछा था. कुछ सोच कर मैं ने बैग से चादर, कंबल निकाल कर बिछा दिए थे. फिर मुंह धो कर गाउन पहन लिया. अभय को बड़ी देर हो गई थी खाना लाने में. सोचने लगी कि पल भर में ही क्या हो जाता है.

एकाएक मेरा ध्यान भंग हुआ था. अभय शायद खाना ले कर लौट आए थे. अभय ने साथ आए लड़के से प्लेटें मेज पर रखने को कहा था. खाना खाने के बाद अभय ने एक के बाद दूसरी और फिर तीसरी सिगरेट सुलगानी चाही थी.

‘‘बहुत सिगरेट पीने लगे हो…’’ मैं ने धीरे से उन के हाथ से लाइटर ले लिया था और पास ही बैठ गई थी, ‘‘इतनी सिगरेट क्यों पीने लगे हो?’’

‘‘दूर रहोगी तो कुछ तो करूंगा ही…’’ पहली बार अभय का स्वर मुझे स्वाभाविक लगा था, ‘‘थक गया हूं रितु, ठीक है तुम नौकरी मत छोड़ना, मैं ही समय से पहले सेवानिवृत्त हो जाऊंगा, बस, अब तो खुश हो,’’ उन्होंने और सहज होने का प्रयास किया था…और मुझे पास खींच लिया था. फिर धीरे से मेरे उस गाल को सहला दिया था जहां शाम को थप्पड़ लगा था.

‘‘नहीं अभय, मैं नौकरी छोड़ दूंगी… आखिर मेरी सब से बड़ी जरूरत तो तुम्हीं हो,’’ कहते हुए मेरा गला रुंध गया था.

‘‘सच…क्या सच कह रही हो रितु?’’ अभय ने मेरी आंखों में झांका.

‘‘हां सच, बिलकुल सच,’’ मैं ने धीरे से कहते हुए अपना सिर अभय के कंधे पर टिका दिया था.

एक बार फिर से : लॉकडाउन के बाद कैसे एक बार फिर क़रीब आए प्रिया और प्रकाश

“हैलो कैसी हो प्रिया ?”

मेरी आवाज में बीते दिनों की कसैली यादों से उपजी नाराजगी के साथसाथ प्रिया के लिए फिक्र भी झलक रही थी. सालों तक खुद को रोकने के बाद आज आखिर मैं ने प्रिया को फोन कर ही लिया था.

दूसरी तरफ से प्रिया ने सिर्फ इतना ही कहा,” ठीक ही हूं प्रकाश.”

हमेशा की तरह हमदोनों के बीच एक अनकही खामोशी पसर गई. मैं ने ही बात आगे बढ़ाई, “सब कैसा चल रहा है ?”

” बस ठीक ही चल रहा है .”

एक बार फिर से खामोशी पसर गई थी.

“तुम मुझ से बात करना नहीं चाहती हो तो बता दो?”

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“ऐसा मैं ने कब कहा? तुम ने फोन किया है तो तुम बात करो. मैं जवाब दे रही हूं न .”

“हां जवाब दे कर अहसान तो कर ही रही हो मुझ पर.” मेरा धैर्य जवाब देने लगा था.

“हां प्रकाश, अहसान ही कर रही हूं. वरना जिस तरह तुम ने मुझे बीच रास्ते छोड़ दिया था उस के बाद तो तुम्हारी आवाज से भी चिढ़ हो जाना स्वाभाविक ही है .”

“चिढ़ तो मुझे भी तुम्हारी बहुत सी बातों से है प्रिया, मगर मैं कह नहीं रहा. और हां, यह जो तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो न कि मैं ने तुम्हें बीच रास्ते छोड़ दिया तो याद रखना, पहले इल्जाम तुमने लगाए थे मुझ पर. तुम ने कहा था कि मैं अपनी ऑफिस कुलीग के साथ…. जब कि तुम जानती हो यह सच नहीं था. ”

“सच क्या है और झूठ क्या इन बातों की चर्चा न ही करो तो अच्छा है. वरना तुम्हारे ऐसेऐसे चिट्ठे खोल सकती हूं जिन्हें मैं ने कभी कोर्ट में भी नहीं कहा.”

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“कैसे चिट्ठों की बात कर रही हो? कहना क्या चाहती हो?”

“वही जो शायद तुम्हें याद भी न हो. याद करो वह रात जब मुझे अधूरा छोड़ कर तुम अपनी प्रेयसी के एक फोन पर दौड़े चले गए थे. यह भी परवाह नहीं की कि इस तरह मेरे प्यार का तिरस्कार कर तुम्हारा जाना मुझे कितना तोड़ देगा.”

“मैं गया था यह सच है मगर अपनी प्रेयसी के फोन पर नहीं बल्कि उस की मां की कॉल पर. तुम्हें मालूम भी है कि उस दिन अनु की तबीयत खराब थी. उस का भाई भी शहर में नहीं था. तभी तो उस की मां ने मुझे बुला लिया. जानकारी के लिए बता दूं कि मैं वहां मस्ती करने नहीं गया था. अनु को तुरंत अस्पताल ले कर भागा था.”

“हां पूरी दुनिया में अनु के लिए एक तुम ही तो थे. यदि उस का भाई नहीं था तो मैं पूछती हूं ऑफिस के बाकी लोग मर गए थे क्या ? उस के पड़ोस में कोई नहीं था क्या?

“ये बेकार की बातें जिन पर हजारों बार बहस हो चुकी है इन्हें फिर से क्यों निकाल रही हो? तुम जानती हो न वह मेरी दोस्त है .”

“मिस्टर प्रकाश बात दरअसल प्राथमिकता की होती है. तुम्हारी जिंदगी में अपनी बीवी से ज्यादा अहमियत दोस्त की है. बीवी को तो कभी अहमियत दी ही नहीं तुम ने. कभी तुम्हारी मां तुम्हारी प्राथमिकता बन जाती हैं, कभी दोस्त और कभी तुम्हारी बहन जिस ने खुद तो शादी की नहीं लेकिन मेरी गृहस्थी में आग लगाने जरूर आ जाती है.”

“खबरदार प्रिया जो फिर से मेरी बहन को ताने देने शुरू किए तो. तुम्हें पता है न कि वह एक डॉक्टर है और डॉक्टर का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रही है. शादी करे न करे तुम्हें कमेंट करने का कोई हक नहीं.”

“हां हां मुझे कभी कोई हक दिया ही कहां था तुम ने. न कभी पत्नी का हक दिया और न बहू का. बस घर के काम करते रहो और घुटघुट कर जीते रहो. मेरी जिंदगी की कैसी दुर्गति बना दी तुम ने…”

कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी. एक बार फिर से दोनों के बीच खामोशी पसर गई थी.

“प्रिया रो कर क्या जताना चाहती हो? तुम्हें दर्द मिले हैं तो क्या मैं खुश हूं? देख लो इतने बड़े घर में अकेला बैठा हुआ हूं. तुम्हारे पास तो हमारी दोनों बच्चियां हैं मगर मेरे पास वे भी नहीं हैं.” मेरी आवाज में दर्द उभर आया था.

“लेकिन मैं ने तुम्हें कभी बच्चों से मिलने से  रोका तो नहीं न.” प्रिया ने सफाई दी.

“हां तुम ने कभी रोका नहीं और दोनों मुझ से मिलने आ भी जाती थीं. मगर अब लॉकडाउन के चक्कर में उन का चेहरा देखे भी कितने दिन बीत गए.”

चाय बनाते हुए मैं ने माहौल को हल्का करने के गरज से प्रिया को सुनाया, “कामवाली भी नहीं आ रही. बर्तनकपड़े धोना, झाड़ूपोछा लगाना यह सब तो आराम से कर लेता हूं. मगर खाना बनाना मुश्किल हो जाता है. तुम जानती हो न खाना बनाना नहीं जानता मैं. एक चाय और मैगी के सिवा कुछ भी बनाना नहीं आता मुझे. तभी तो ख़ाना बनाने वाली रखी हुई थी. अब हालात ये हैं कि एक तरफ पतीले में चावल चढ़ाता हूं और दूसरी तरफ अपनी गुड़िया से फोन पर सीखसीख कर दाल चढ़ा लेता हूं. सुबह मैगी, दोपहर में दालचावल और रात में फिर से मैगी. यही खुराक खा कर गुजारा कर रहा हूं. ऊपर से आलम यह है कि कभी चावल जल जाते हैं तो कभी दाल कच्ची रह जाती है. ऐसे में तीनों वक्त मेगी का ही सहारा रह जाता है.”

मेरी बातें सुन कर अचानक ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

“कितनी दफा कहा था तुम्हें कि कुछ किचन का काम भी सीख लो पर नहीं. उस वक्त तो मियां जी के भाव ही अलग थे. अब भोगो. मुझे क्या सुना रहे हो?”

मैं ने अपनी बात जारी रखी,” लॉकडाउन से पहले तो गुड़िया और मिनी को मुझ पर तरस आ जाता था. मेरे पीछे से डुप्लीकेट चाबी से घर में घुस कर हलवा, खीर, कढ़ी जैसी स्वादिष्ट चीजें रख जाया करती थीं. मगर अब केवल व्हाट्सएप पर ही इन चीजों का दर्शन कराती हैं.”

“वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे घर हलवापूरी, खीर वगैरह मैं ही भिजवाती थी. तरस मुझे भी आता है तुम पर.”

“सच प्रिया?”

एक बार फिर हमारे बीच खामोशी की पतली चादर बिछ गई .दोनों की आंखें नम हो रही थीं.

“वैसे सोचने बैठती हूं तो कभीकभी तुम्हारी बहुत सी बातें याद भी आती हैं. तुम्हारा सरप्राइज़ देने का अंदाज, तुम्हारा बच्चों की तरह जिद करना, मचलना, तुम्हारा रात में देर से आना और अपनी बाहों में भर कर सॉरी कहना, तुम्हारा वह मदमस्त सा प्यार, तुम्हारा मुस्कुराना… पर क्या फायदा ? सब खत्म हो गया. तुम ने सब खत्म कर दिया.”

“खत्म मैं ने नहीं तुम ने किया है प्रिया. मैं तो सब कुछ सहेजना चाहता था मगर तुम्हारी शक की कोई दवा नहीं थी. मेरे साथ हर बात पर झगड़ने लगी थी तुम.” मैं ने अपनी बात रखी.

“झगड़े और शक की बात छोड़ो, जिस तरह छोटीछोटी बातों पर तुम मेरे घर वालों तक पहुंच जाते थे, उन की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते थे, क्या वह सही था? कोर्ट में भी जिस तरह के आरोप तुम ने मुझ पर लगाए, क्या वे सब सही थे ?”

“सहीगलत सोच कर क्या करना है? बस अपना ख्याल रखो. कहीं न कहीं अभी मैं तुम्हारी खुशियों और सुंदर भविष्य की कामना करता हूं क्यों कि मेरे बच्चों की जिंदगी तुम से जुड़ी हुई है और फिर देखो न तुम से मिले हुए इतने साल हो गए . तलाक के लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में भी हम ने बहुत समय लगाया. मगर आजकल मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी है . तलाक के उन सालों का समय इतना बड़ा नहीं लगा था जितने बड़े लॉकडाउन के ये कुछ दिन लग रहे हैं. दिल कर रहा है कि लौकडाउन के बाद सब से पहले तुम्हें देखूं. पता नहीं क्यों सब कुछ खत्म होने के बाद भी दिल में ऐसी इच्छा क्यों हो रही है.” मैं ने कहा तो प्रिया ने भी अपने दिल का हाल सुनाया.

“कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी है प्रकाश. हम दोनों ने कोर्ट में एकदूसरे के खिलाफ कितने जहर उगले. कितने इल्जाम लगाए. मगर कहीं न कहीं मेरा दिल भी तुम से उसी तरह मिलने की आस लगाए बैठा है जैसा झगड़ों के पहले मिला करते थे.”

“मेरा वश चलता तो अपनी जिंदगी की किताब से पुराने झगड़े वाले, तलाक वाले और नोटिस मिलने से ले कर कोर्ट की चक्करबाजी वाले दिन पूरी तरह मिटा देता. केवल वे ही खूबसूरत दिन हमारी जिंदगी में होते जब दोनों बच्चियों के जन्म के बाद हमारे दामन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट आई थी.”

“प्रकाश मैं कोशिश करूंगी एक बार फिर से तुम्हारा यह सपना पूरा हो जाए और हम एकदूसरे को देख कर मुंह फेरने के बजाए गले लग जाएं. चलो मैं फोन रखती हूं. तब तक तुम अपनी मैगी बना कर खा लो.”

प्रिया की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा था. दिल में आशा की एक नई किरण चमकी थी. फोन रख कर मैं सुकून से प्रिया की मीठी यादों में खो गया.

प्यार की खातिर- भाग -3

वह आज जरा उत्तेजित है, विचलित है, क्योंकि उस की मनमानी नहीं हुई है. कभीकभी उस का पति किसी बात पर अड़ जाता है तो टस से मस नहीं होता और उसे मजबूरन उस के आगे हार माननी पड़ती है. उस की शादी को 4 साल हो गए और अभी तक वह समझ न पाई कि वह अपने पति से कैसे पेश आए.

खयालों में डूबी रोहिणी को समय का भान ही न हुआ. अचानक उस ने चौंक कर देखा कि उस के आसपास की भीड़ अब छंट चुकी थी. खोमचे वाले, आइसक्रीम वाले अपना सामान समेट कर चल दिए थे. हां, ताज होटल के सामने अभी भी काफी रौनक थी. लोग आ जा रहे थे. मुख्यद्वार पर संतरी मुस्तैद था.

एक और बात रोहिणी ने नोट की. समुद्र के किनारे की सड़क पर अब कुछ स्त्रियां भड़कीले व तंग कपड़े पहने चहलकदमी कर रही हैं. उन्हें देख कर साफ लगता है कि वे स्ट्रीट वाकर्स हैं यानी रात की रानियां.

हर थोड़ी देर में लोग गाडि़यों में आते. किसी एक स्त्री के पास गाड़ी रोकते, मोलतोल करते और वह स्त्री गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाती. यह सब देख कर रोहिणी को बड़ी हंसी आई.

सहसा एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. उस में 3-4 युवक सवार थे, जो कालेज के छात्र लग रहे थे.

‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ एक युवक ने कार की खिड़की में से सिर निकाल कर उसे आवाज दी, ‘‘अकेली बैठी क्या कर रही हो? हमारे साथ आओ… कुछ मौजमस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे.’’

रोहिणी दंग रह गई कि क्या ये पाजी लड़के उसे एक वेश्या समझ बैठे हैं? हद हो गई. क्या इन्हें एक भले घर की स्त्री और एक वेश्या में फर्क नहीं दिखाई देता? अब यहां इतनी रात गए यों अकेले बैठे रहना ठीक नहीं. उसे अब घर चल देना चाहिए.

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रोहिणी तेजी से घर का रूख किया. कार उस के पास से सर्र से निकल गई. पर कुछ ही देर बाद वही कार लौट कर फिर उस के पास आ कर रुकी.

‘‘आओ न डियर. होटल में बियर पीएंगे. तुम्हें चाइनीज खाना पसंद है? हम तुम्हें नौनकिंग रेस्तरां में खाना खिलाएंगे. उस के बाद डांस करेंगे. हम तुम्हारा भरपूर मनोरंजन करेंगे,’’ एक लड़के ने खिड़की से सिर निकाल कर कहा.

‘‘आप को गलतफहमी हुई है,’’ वह संयत स्वर में बोली, ‘‘मैं एक हाउसवाइफ हूं. अपने घर जा रही हूं.’’

‘‘तो चलो न हम आप को आप के घर छोड़ देते हैं. कहां रहती हैं आप?’’ वे लड़के कार धीरेधीरे चलाते हुए उस का पीछा करते रहे और लगातार उस से बातें करते रहे. जाहिर था कि वे कंगाल थे. वे बिना पैसा खर्च किए उस की सोहबत का आनंद उठाना चाहते थे.

रोहिणी अपनी राह चलती रही. सहसा गाड़ी उस के पास आ कर झटके से रुकी. एक लड़का गाड़ी से उतरा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘आखिर इतनी जिद क्यों कर रही हो स्वीटी?’’ हम तुम्हें सुपर टाइम देंगे… आई प्रौमिस. चलो गाड़ी में बैठो और वह रोहिणी से हाथापाई करने लगा.

‘‘मुझे हाथ मत लगाना नहीं तो मैं शोर मचा पुलिस बुला लूंगी,’’ उस ने कड़क आवाज में कहा.

अचानक एक और कार उस के पास आ कर रुकी. उस का हौर्न जोर से बज उठा. रोहिणी ने चौंक कर देखा तो कार्तिक अपनी कार में बैठा उसे आवाजें लगा रहा था, ‘‘रोहिणी जल्दी आओ गाड़ी में बैठो.’’

रोहिणी अपना हाथ छुड़ा दौड़ कर गाड़ी में बैठ गई.

‘‘इतनी रात को यह तुम्हें क्या सूझी?’’ कार्तिक ने उसे लताड़ा, ‘‘यह क्या घर से अकेले बाहर निकलने का समय है?’’ रोहिणी तुम्हें कब अक्ल आएगी? देखा नहीं कैसेकैसे गुंडेमवाली रात को सड़कों पर घूमते शिकार की ताक में रहते हैं… मेरी नजर तुम पर पड़ गई वरना जानती हो क्या हो जाता?’’

‘‘क्या हो जाता?’’

‘‘अरे वे लोफर तुम्हें गाड़ी में बैठा कर अगवा कर ले जाते.’’

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‘‘अगवा करना क्या इतना आसान है?’’ हर समय पुलिस की गाड़ी गश्त लगाती रहती है.

‘‘हां, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अगर वे गुंडे तुम्हें ले उड़ते तो तुम समझ सकती हो फिर वे तुम्हारा क्या हश्र करते? तुम्हें रेप कर के अधमरी हालत में कहीं झाडि़यों में फेंक कर चलते बनते. रोहिणी तुम रोज अखबार में इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ती हो, टीवी पर देखती हो. फिर भी तुम ने ऐसा खतरा मोल लिया. तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने चली गई?’’

‘‘ये सब वे कैसे कर पाते?’’ रोहिणी ने प्रतिवाद किया, ‘‘मैं जोर से चिल्लाती तो भीड़ इकट्ठी हो जाती, पुलिस पहुंच जाती.’’

‘‘ये सब कहने की बातें हैं. इस सुनसान सड़क पर तुम्हारे शोर मचाने से पहले ही बहुत कुछ घट जाता. वे तुम्हें मिनटों में गायब कर देते और फिर तुम्हारा अतापता भी न मिलता. मत भूलो कि वे 4 थे तुम अकेली. तुम उन से मुकाबला कैसे कर पातीं. इस तरह की हठधर्मिता की वजह से ही आए दिन औरतों के साथ हादसे होते रहते हैं. इतनी रात को अकेले घर से निकलना, अनजान लोगों से लिफ्ट लेना, गैरों के साथ टैक्सी शेयर करना ये सब सरासर नादानी है.’’

रोहिणी ने चुप्पी साध ली. घर पहुंच कर कार्तिक ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘डार्लिंग एक वादा करो कि अब से जब भी तुम मुझ से खफा होगी तो बेशक मुझे जो चाह कर लेना पर इस तरह का पागलपन नहीं करोगी,’’ कह उस ने इटली जाने के लिए होटल की बुकिंग और प्लेन के टिकट रोहिणी को थमा दिए.

‘‘यह क्या? तुम तो कह रहे थे कि इस साल जाना नहीं हो सकता.’’

‘‘हां, कहा तो था, पर मैं अपनी प्रिये का कहना कैसे टाल सकता हूं?’’

‘‘प्रोग्राम कैंसल कर दो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे भाई, शकुंतला दीदी की बेटी की शादी जो हो रही है… हमें वहां जाना पड़ेगा न.’’

‘‘दीदी से शादी में न आने का कोई बहाना बना दूंगा.’’

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‘‘जी हां, और फिर सब से डांट सुनोगे. तुम तो आसानी से छूट जाओगे पर सब मुझे ही परेशान करेंगे कि रोहिणी अपने ससुराल वालों से अलगथलग रहती है और अपने पति को भी अपने चंगुल में कर रखा है. उसे अपने परिवार से दूर कर देना चाहती है.’’

‘‘हद हो गई रोहिणी. चित भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी. तुम से मैं कभी पार नहीं पा सकता.’’

‘‘सो तो है,’’ रोहिणी ने विजयी भाव से कहा.

प्यार की खातिर- भाग -2

मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’

‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन हैतो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’

‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते नदीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’

 ‘‘डार्लिंगइतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’

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‘‘जी हांबड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’

‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’

‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’

‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा हैहमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता हैबशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’

‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.

‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’

‘‘रोहिणीयह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’

‘‘अच्छावे ऐसा क्यों कहते हैं भलाजब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हांअगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’

कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’

‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’

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‘‘जी नहींमुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’

‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’

‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’

‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’

‘‘हांमैं तो हूं ही बेवकूफसिरफिरीअदूरदर्शी…  सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’

‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल

सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.

मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.

रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.

कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगाअपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.

यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.

समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर हैउस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.

उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रियेमैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.

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पर नहींवह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा हैजो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.

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प्यार की खातिर- भाग -1

Ramni Motana

हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुईतो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाबटैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहींमैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थेपर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

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रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होतीतो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का ताराउन का बेहद दुलारा. उस की बड़ी बहनें थींजो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थीपर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता हैतो इस में एहसान की बात कहां से आ गईपर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमनतुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओजिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखोउन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थेतो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थेतो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरेयह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिकतुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जातातो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहेजिस पर चाहेखर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

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अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थेवे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगेखूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटीमहंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरतीहाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

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शैतान : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

शैतान भाग 1 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

8 महीने पहले रानिया जब उस शानदार कोठी में नौकरी के लिए आई थी, तब उस ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि वह उस कोठी की मालकिन भी बन सकती है. दरअसल अखबार में 3 साल की एक बच्ची की देखभाल के लिए आया के लिए एक विज्ञापन छपा था. रानिया को काम की जरूरत थी, इसलिए वह आया की नौकरी के लिए उस कोठी पर पहुंच गई थी, जिस का पता अखबार में छपे विज्ञापन में दिया था. कोठी के गेट के पास बने केबिन में बैठे गार्ड ने रानिया को रोक कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने की खबर मेमसाहब को दे आता हूं, जब वह बुलाएंगी, तब तुम अंदर चली जाना.’’

रानिया केबिन में पड़े स्टूल पर बैठ गई थी. गार्ड खबर देने कोठी के अंदर चला गया था. रानिया को बच्चों की देखभाल करने का कोई तजुर्बा नहीं था. और तो और, घर में भाई का जो बच्चा था, उसे भी वह कम ही लेती थी.

कुछ देर बाद कोठी से एक दूसरा गार्ड आया और उस ने रानिया को अपने साथ मेमसाहब के कमरे तक पहुंचा दिया. रानिया कमरे में दाखिल हुई तो वहां बैठी महिला ने उस का मुसकरा कर स्वागत किया. वह देखने में बीमार लग रही थी.

दुबलीपतली उस महिला के चेहरे की पीली रंगत, अंदर धंसी बेनूर आंखें और पास की टेबल पर रखी दवाएं इस बात का सबूत थीं.

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उस महिला ने रानिया से सर्टिफिकेट मांगे. सर्टिफिकेट देखने के बाद उस ने कहा, ‘‘मिस रानिया फारुखी, आप को बच्ची की देखरेख करने का तो कोई तुजर्बा है नहीं, इस समय आप जहां काम कर रही हैं, वह कंपनी बहुत अच्छी है. नौकरी भी आप की योग्यता के मुताबिक है. इस के बावजूद आप आया की नौकरी क्यों करना चाहती हैं?’’

रानिया कुछ देर उसे खामोशी से देखती रही. उस के बाद सकुचाते हुए बोली, ‘‘दरअसल मैडम, रिहाइश का मसला है. मेरे भाई मुल्क से बाहर हैं, भाभी भी उन के पास जाना चाहती हैं, पर वह मुझे अकेली छोड़ना नहीं चाहतीं. मेरी वजह से वह भाई के पास नहीं जा पा रही हैं. मैं उन के रास्ते की रुकावट बन रही हूं. अगर मुझे रहने की यहां मुनासिब जगह मिल गई तो भाभी भाई के पास चली जाएंगी. अगर मैं आप के पास रहूंगी तो उन दोनों को मेरी तरफ से कोई चिंता नहीं रहेगी.’’

महिला कुछ सोच कर बोली, ‘‘मेरा नाम सोनिया है, मेरे शौहर का नाम अरसलान है. हमारी 3 साल की बच्ची फिजा है. तुम कितने भाईबहन हो?’’

‘‘हम 3 भाईबहन हैं. सब से बड़ी बहन की शादी अम्मा अपनी मौत से पहले कर गई थीं. उन से 2 साल छोटे अजहर भाई हैं, जो बाहर हैं. उन से 5 साल छोटी मैं हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी मजबूरी को देखते हुए तुम्हें नौकरी दे सकती हूं, पर मेरी एक शर्त है…’’

‘‘कैसी शर्त मैडम?’’ रानिया जल्दी से बोली.

‘‘रानिया, तुम्हें एक बांड भरना होगा, जिस के अनुसार एक साल से पहले तुम नौकरी नहीं छोड़ सकोगी. अगर उस से पहले नौकरी छोड़ोगी तो तुम्हें 5 लाख रुपए भरने होंगे. तुम इस बारे में अच्छे से सोच कर कल मुझे जवाब देना.’’

इस बीच चायनाश्ता आ गया. सोनिया ने उसे चायनाश्ता करने को कहा. चायनाश्ता कर के रानिया खड़ी हो कर बोली, ‘‘मैडम, कल मैं अपने सामान के साथ हाजिर हो जाऊंगी. अब मैं चलती हूं, वरना देर होने पर भाभी शक करेंगी.’’

रानिया खड़ी ही हुई थी कि एक बेहद खूबसूरत मर्द एक बच्ची के साथ उस कमरे में दाखिल हुआ. रानिया ने एक नजर प्यारी सी बच्ची पर डाली, उस के बाद उस की आंखें उस खूबसूरत मर्द पर जम गईं. सोनिया ने उस आदमी का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रानिया, यह मेरे शौहर अरसलान हैं, और यह मेरी बच्ची फिजा. अरसलान, मैं ने रानिया को अपनी बेटी की देखभाल के लिए रख लिया है.’’

अरसलान ने उचटती सी नजर रानिया पर डाली. उस के बाद सोनिया से बोला, ‘‘जैसा आप का दिल चाहे.’’

सोनिया ने बच्ची से कहा, ‘‘बेटा, यह आप की आंटी हैं. अब यह आप के साथ रहेंगी.’’ खुश हो कर बच्ची ने रानिया का हाथ पकड़ लिया, ‘‘आंटी, आप मेरे साथ रहेंगी न?’’

‘‘हां बेटा, अब मैं आप के ही साथ रहूंगी.’’ कह कर रानिया ने उसे गोद में उठा लिया.

सोनिया ने पति से कहा, ‘‘अगर तुम गुलशन इकबाल की तरफ जा रहे हो तो रानिया को चौरंगी पर छोड़ देना.’’

‘‘कोई बात नहीं. 2 मिनट लगेंगे, बस.’’ अरसलान ने अनमने ढंग से कहा.

रानिया ने जल्दी से कहा, ‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

सोनिया ने कहा, ‘‘नहीं, देर हो गई है. तुम्हें अरसलान छोड़ देंगे. फिर कल सवेरे तुम्हें आना भी तो है.’’

अरसलान ने फटाफट गैरेज से गाड़ी निकाली और रानिया को बैठाया. जैसे ही कार गेट से बाहर निकली, अरसलान का मूड ठीक हो गया. वह रानिया को देखते हुए बोला, ‘‘पता नहीं सोनिया ने तुम्हें काम पर कैसे रख लिया? वह तो खूबसूरत लड़कियों से चिढ़ती है. उसे तो बूढ़ी औरतें ही पसंद आती हैं. पता नहीं तुम पर वह  मेहरबान है, बहुत शक्की है वह.’’

रानिया के दिमाग में एक सवाल आया. उस ने पूछा, ‘‘वैसे मेमसाहब को हुआ क्या है. वह बीमार सी लगती हैं?’’

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अरसलान ने रानिया को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘शादी के बाद डाक्टरों ने मना किया था कि वह मां न बने, लेकिन उस ने किसी की बात नहीं मानी. नतीजा यह निकला कि उस की यह हालत हो गई. अब उस की बीमारियों से लड़ने की ताकत खत्म हो गई है.’’

‘‘आखिर, ऐसा क्या हुआ है?’’ रानिया ने पूछा.

‘‘देखा जाए तो सोनिया अपने किए का फल भोग रही है. उस ने रूही के साथ जो किया, वही उस के साथ हो रहा है.’’

‘‘यह रूही कौन है, उस के साथ क्या किया था उन्होंने?’’ रानिया ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘रूही मेरी मंगेतर थी. हम एकदूसरे को बहुत चाहते थे, पर बीच में सोनिया आ टपकी. एक दिन रूही और उस के भाई का किडनैप हो गया. फिरौती की रकम 50 लाख मांगी गई. हम इतने पैसे नहीं दे सकते थे. हम ने सोनिया से मदद मांगी. उस ने हमारी मदद तो की, पर रूही लुटपिट कर घर वापस आई. उस ने उसी रात खुदकुशी कर ली.’’ अरसलान ने दुखी मन से कहा.

‘‘यह किडनैप किस ने किया था?’’ रानिया ने पूछा.

‘‘सोनिया के पिता ने और किस ने.’’ उस ने कहा, ‘‘बाप ने अगवा करवाया और बेटी पैसे ले कर मदद को आ गई. देखो रानिया, इंसान की करनी का फल यहीं मिल जाता है. सोनिया की बीमारी की खबर जब उस के पिता को मिली तो वह हार्टअटैक से मर गया.’’

‘‘क्या सोनिया मैम की बीमारी का कोई इलाज नहीं है?’’

‘‘डाक्टर उम्मीद तो दिलाते हैं, पर सब बेकार है. मैं सोनिया को यकीन तो दिलाता हूं कि उस के सिवा मेरी जिंदगी में कोई नहीं है, पर वह पूरे वक्त शक करती है, अपने मुखबिर मेरे पीछे लगाए रखती है.’’ अरसलान इतना ही कह पाया था कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से सोनिया की आवाज आई. वह पूछ रही थी, ‘‘रानिया को छोड़ दिया क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे चौरंगी पर उतार दिया.’’ फोन बंद कर के उस ने कहा, ‘‘देखो, उसे तुम पर भी यकीन नहीं है. मैं ने कह दिया, उसे चौरंगी उतार दिया है. उसे पता नहीं है कि मैं तुम्हें तुम्हारे घर के पास ही उतारूंगा.’’

‘‘अरे नहीं, आप मेरी वजह से परेशान न हों. मैं चौरंगी से चली जाऊंगी.’’ रानिया ने कहा.

‘‘इस में परेशानी वाली कोई बात नहीं है. अब यहां से तुम्हारा घर रह ही कितनी दूर गया है.’’ अरसलान ने कहा.

कुछ देर में कार रानिया के घर के पास पहुंच गई तो वह उस का शुक्रिया अदा कर के कार से उतर कर अपने घर चली गई. रानिया ने उस से भी अपने घर चलने को कहा था, पर वह फिर कभी आने की बात कह कर चला गया था.

रानिया चहकती हुई अपने घर पहुंची तो भाभी का मूड ठीक नहीं था. वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘इतनी देर क्यों हुई?’’

रानिया जल्दी से बोली, ‘‘भाभी, मैं एक नई नौकरी के इंटरव्यू के लिए गई थी. बहुत अच्छी जौब है. सैलरी भी अच्छी है. मेरे वहां नौकरी करने से आप की एक बड़ी समस्या हल हो जाएगी.’’

भाभी ने उसे हैरानी से देखा तो वह जल्दी से बोली, ‘‘हां भाभी, मुझे मिसेज सोनिया ने अपनी 3 साल की बच्ची की देखरेख के लिए रख लिया है. अच्छी सैलरी के साथ रिहाइश, खानापीना सब फ्री है. वह 30-35 साल की बहुत अच्छी महिला हैं, बच्ची की देखरेख के लिए मुझे रखा है.’’

‘‘लेकिन तुम्हें यह काम करने का कोई अनुभव नहीं है.’’

‘‘भाभी, बच्चे प्यार व खिदमत के भूखे होते हैं. मैं यह कर लूंगी. मुझे कल 10 बजे अपना सामान ले कर जाना है. मैं आप को वहां का पता वगैरह दे दूंगी.’’

भाभी के रजामंद होने पर रानिया बेहद खुश हुई.

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अरसलान के साथ रहने के बारे में सोच कर ही रानिया का दिल धड़कने लगा. अरसलान की बातों से उसे लगा था कि अब सोनिया ज्यादा नहीं जिएगी. उस ने बीमार सोनिया की तो देखभाल की ही, साथ ही उस की बेटी फिजा को भी बहुत प्यार दिया. करीब 8 महीने बाद सोनिया की मौत हो गई. इन 8 महीनों में सोनिया ने अरसलान की हर बात उसे बता दी थी.

उस की मौत से 3 दिन पहले की बात थी. उस दिन सोनिया की तबीयत ज्यादा खराब थी. रानिया सोनिया के पास ही थी. तभी एक नौकरानी ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘रानिया बीबी, आप को साहब ड्राइंगरूम में बुला रहे हैं.’’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 2

उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.

दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.

अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.

आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.

अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’

शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’

‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’

शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’

‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.

2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.

आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.

अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’

‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’

शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.

शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’

‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.

पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.

खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.

अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.

अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.

इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.

जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.

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