Serial Story: मासूम कातिल- भाग 2

लेखक- गजाला जलील

मुझे उतार कर कार आगे बढ़ गई. मेरे लिए अम्मा परेशान बैठी थीं. मैं ने उन्हें दिलासा दिया और बताया रशना के ड्राइवर चाचा मुझे छोड़ने आए थे. ताकि वह किसी शक में न पड़ें. जब मैं बिस्तर पर लेटी तो दिल बुरी तरह धड़क रहा था. आंखों में वही खूबसूरत चेहरा बसा था. उन्हीं के खयालों में खोए पता नहीं कब सो गई.

दूसरे दिन फिर वही औफिस था, वही काम, वही लोग. मेरी निगाहें बारबार बौस के औफिस की तरफ उठ रही थीं, दिल में प्यार का तूफान उमड़ रहा था. आंखों में दीदार की आस थी. लेकिन बौस के रूटीन में कोई फर्क नहीं आया, वह पिछले दरवाजे से ही आतेजाते रहे. मेरा दिल दीदार को तड़पता रहा.

कई बार जी चाहा, उन के औफिस में चली जाऊं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं ने दिल को समझा कर खुद को काम में मसरूफ कर लिया. बारबार सोचती, उस दिन रात को मेरी तारीफ करना, प्यार से बातें करना, वह सब क्या था?

उस दिन मैनेजर अहमद साहब मेरे पास आए और कहने लगे, ‘‘सुहाना, आप टाइपिंग सीख लीजिए. आगे आप के बहुत काम आएगी.’’

मुझे अहमद साहब ने दूसरी टेबल पर बिठा दिया. थोड़ा खुद ने सिखाया फिर साथी की ड्यूटी लगा दी कि मुझे बाकायदा टाइपिंग सिखाए. मैं ने दिल लगा कर सीखना शुरू कर दिया.

करीब 20 दिन के बाद अहमद साहब ने एक टेस्ट लिया. अच्छीखासी स्पीड हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वैरी गुड, अब आप आइए मेरे साथ.’’

मैं उन के अंदाज पर हैरान थी. वह मुझे ले कर इमरान साहब के औफिस में गए. मैं पहली बार वहां आई थी. औफिस की सजावट और खूबसूरती देख कर मैं चकाचौंध हो गई. कमरे में हलका अंधेरा था. एसी की ठंडक, टेबल पर हलकी नीली रोशनी थी. उन की गूंजती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘आइए अहमद साहब, आप कैसी हैं मिस सुहाना.’’

मेरी आवाज मुश्किल से निकली, ‘‘मैं अच्छी हूं सर.’’

इतने दिनों के बाद बौस को देखने से मेरी तड़प और चाहत और बढ़ गई थी. मैं प्यासी निगाहों से उन्हें देखती रही. अहमद साहब बोले, ‘‘सर, मैं ने आप के लिए टाइपिस्ट का बंदोबस्त कर लिया है, ये हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मिस सुहाना क्या आप टाइपिंग जानती हैं?’’

‘‘जी सर, इन्होंने अच्छे से सीख लिया है.’’

‘‘अहमद साहब, आप ने ये बड़ा अच्छा काम किया. एक बड़ा मसला हल हो गया.’’

उन के कमरे में एक तरफ एक छोटी टेबल रखी थी, जिस पर टाइपराइटर रखा था. मुझे वहां बिठा दिया गया. इमरान साहब ने मुझे कुछ कागजात टाइप करने को दिए.

शाम को जब मैं टेबल से उठी तो इमरान साहब ने कहा, ‘‘मिस सुहाना, टाइपिस्ट की हैसियत से आप की तनख्वाह में 300 रुपए का इजाफा कर दिया गया है.’’

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मुझे बड़ी खुशी हुई. मैं ने अम्मा को बताया तो वह खुश नहीं हुईं. कहने लगीं, ‘‘मैं कैसी मजबूर मां हूं कि तुम्हारी कमाई खा रही हूं. मुझे तो तुम्हारी शादी का सोचना चाहिए. तुम्हारी कमाई जमा कर के मुझे शादी की तैयारी करनी होगी.’’

मेरा दिल भी उदास हो गया. मैं ने कहा, ‘‘अम्मा, मैं शादी नहीं करूंगी. आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘नहीं बेटी, ये तो दुनिया का दस्तूर है. हर लड़की को विदा हो कर अपने असली घर जाना पड़ता है.’’ अम्मा ने दुखी मन से कहा.

वक्त गुजरता रहा. मैं इमरान हसन के औफिस में मेहनत और लगन से काम करती रही. वह भी बड़ी मोहब्बत और इज्जत से पेश आते. मेरी नजरों में उन की इज्जत और सम्मान दिनबदिन बढ़ता जा रहा था.

जिंदगी बड़ी अच्छी गुजर रही थी. उस दिन मैं घर पर ही अम्मा के साथ किचन में थी. मैं ने देखा अम्मा टटोलटटोल कर काम कर रही थीं. वह दूध का पतीला ठीक से देख नहीं पाईं. दूध नीचे गिर गया. कुछ गरम दूध पांव पर भी गिरा. उन्हें चक्कर आ गया. मैं उन्हें कमरे में लाई और ग्लूकोज पिलाया. पैर पर दवा लगाई, फिर पूछा, ‘‘अम्मा, ये सब क्या है? आप को क्या कम दिखाई देने लगा है?’’

‘‘कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही जरा चक्कर आ गया था.’’

‘‘नहीं अम्मा, आप सच बताएं, आप को मेरी जान की कसम, आप को मुझे सच बताना होगा.’’

वह फूटफूट कर रोने लगीं फिर बताया, ‘‘बेटी, कुछ दिनों से मुझे चक्कर आ रहे हैं. धीरेधीरे मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी. अब तो बहुत ही कम दिखाई देता है. चक्कर भी आते हैं.’’

‘‘अम्मा, आप ने मुझे बताया क्यों नहीं, हम किसी डाक्टर को दिखाते, यह नौबत यहां तक आती ही नहीं. चलिए, उठिए डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘नहीं सुहाना, तुम मेरी बेटी हो. बेटी की कमाई कर्ज की तरह होती है. तुम्हारी कमाई सिर्फ तुम्हारी शादी पर खर्च होगी, इलाज पर नहीं.’’

‘‘नहीं अम्मा, मैं आप को किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’

मैं ने बहुत कुछ कहा लेकिन अम्मा किसी कीमत पर इलाज के लिए तैयार नहीं हुईं.

दूसरे दिन औफिस में मैं उदास सी थी. इमरान हसन ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘क्या बात है सुहाना, आप उदास लग रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘मिस सुहाना, आप मुझे गैर समझती हैं. आप नहीं जानतीं, मैं आप के बारे में क्या सोचता हूं. मेरा दिल चाहता है सारी दुनिया की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल दूं.’’

फिर वह अचकचा कर चुप हो गए.

‘‘शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गया, मुझे माफ करना सुहाना.’’

‘‘नहीं सर, आप मेरे हमदर्द हैं. दरअसल मेरी अम्मा की आंखों की रोशनी जा रही है. उन्हें बहुत कम दिखाई देने लगा है. मैं क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों सुहाना. मैं आज आप के साथ आप के घर चलूंगा. हम उन्हें अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे. क्या आप की अम्मा मेरी मां जैसी नहीं हैं?’’

‘‘यह बात नहीं है सर, असल में वह इलाज कराने को राजी ही नहीं होतीं.’’

‘‘मैं उन्हें समझा लूंगा, आप फिक्र न करें.’’

शाम को वह मेरे साथ मेरे घर आए. उन्होंने अम्मा से उन की बीमारी के बारे में पूछा, ‘‘इस की शुरुआत करीब 3 महीने पहले हुई थी, पर अम्मा ने मुझ से छिपाया.’’

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इमरान साहब ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप घबराएं नहीं, मैं आप का इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, हम कुदरत से जंग नहीं लड़ सकते. मैं डाक्टरों का सहारा नहीं लेना चाहती. मैं आप का अहसान भी नहीं ले सकूंगी. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’

इमरान साहब भी नाकाम हो कर वापस चले गए. अम्मा ने कहा, ‘‘बड़ा नेक आदमी है. क्या तुम्हारे औफिस में काम करता है. अल्लाह उसे अच्छा रखे. वैसे कितनी उम्र है उस की?’’

मैं ने यहां झूठ बोलना ठीक समझते हुए कहा, ‘‘हां, अम्मा मेरे औफिस में काम करता है. अधेड़ आदमी है. 3 बच्चों का बाप है. भला आदमी है.’’

अम्मा को इत्मीनान हो गया.

दूसरे दिन इमरान साहब ने बड़े जज्बाती ढंग से कहा, ‘‘सुहाना, आज मैं दिल की बात तुम से कहना चाहता हूं. मैं तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. मुझे जवाब दो सुहाना.’’

मेरा दिल जोर से धड़क रहा था. मैं ने शरमा कर कहा, ‘‘सर, पर हमारे हालात में जमीनआसमान का फर्क है. मैं एक गरीब लड़की हूं और आप…’’

‘‘सुहाना, दिल के रिश्तों में ऊंचनीच, गरीब अमीर कुछ नहीं देखते. तुम मेरे लिए क्या हो, यह बस मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या जिंदगी के किसी मोड़ पर आप को यह अहसास नहीं होगा कि आप ने बराबरी में शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, मैं ने बचपन में अपनी अम्मी को खो दिया था. फिर अब्बू चल बसे. मैं प्यार को तरसा हुआ इंसान हूं. तुम मेरे लिए मोहब्बत का समंदर हो. मेरी मंजिल हो. बस तुम राजी हो जाओ.’’

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मैं सोच में थी. मैं ने कहा, ‘‘इमरान साहब, मैं नहीं जानती, यह कैसे मुमकिन होगा?’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं सब देख लूंगा.’’

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.

बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.

शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर  राज करे.

जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.

‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.

‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.

खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.

‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.

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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.

धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.

धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.

‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.

धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.

‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद  कर लिया.

रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?

‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.

पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.

‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से  एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.

धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.

कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.

रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.

धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.

‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.

‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’

‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.

Serial Story: संधि प्रस्ताव- भाग 2

लेखक- अलका प्रमोद

‘‘सुनीता बोलीं, ‘यह किसी ने झूठ लिखा है. अरे, मेरे यथार्थ ने मुझ से फोन पर बात कर के आने को कहा था और अचानक उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली? यह नहीं हो सकता. उस का दीक्षा लेने का मन होता तो कभी तो हम से जिक्र करता. वह तो हम से अपने मन की हर बात कहता है.’

‘‘‘अब तो सच वहां जा कर ही मालूम होग, सुनीता,’ तपन ने चिंतातुर वाणी में कहा.

‘‘आश्रम के द्वार पर ही सुनीता, तपन और उन के साथ आए यथार्थ के मामा राजन और तपन के अभिन्न मित्र विकास को रोक दिया गया. तपन ने वह पत्र दिखाया जिस में लिखा था कि उन के हृदय के टुकड़े ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.

‘‘वहां स्वामीजी के कुछ शिष्य थे. उन्होंने उन के आने का उद्देश्य पूछा. सुनीता ने कहा, ‘हम अपने बेटे को लेने आए हैं.’

‘‘इस पर वहां का मुख्य कार्यकर्ता अखिलानंद बोला, ‘पर उन्होंने दीक्षा ले ली है. अब वे आप के बेटे नहीं हैं, बल्कि यहां के दीक्षित प्रशिक्षु हैं. कुछ समय बाद वे संत की उपाधि पा जाएंगे.’

‘‘यह सुन कर सुनीता व्यग्र हो गईं. उन्होंने कहा, ‘ऐसे कैसे आप मेरे बेटे को मुझ से छीन सकते हैं? आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि वह मेरा बेटा नहीं है?’

‘‘तपन ने कहा, ‘वह एक पढ़ालिखा इंजीनियर है. अभी तो उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी कोई आयु है दीक्षा लेने की?’

‘‘इस पर विकास ने कहा, ‘अरे तपन, इन लोगों से बहस करने से क्या लाभ, पहले यथार्थ से मिलो, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’

‘‘‘आप उन से नहीं मिल सकते,’ अखिलानंद ने कहा.

‘‘‘अरे, मेरा बेटा है और हम ही नहीं मिल सकते, आप कौन होते हैं हमें रोकने वाले?’

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‘‘तभी अखिलानंद के एक साथी ने आ कर उस के कान में कुछ कहा. फिर अखिलानंद ने तपन से कहा, ‘आप लोग खुश हो जाएं स्वामीजी ने आज्ञा दी है कि आप लोगों को विश्वानंदजी से मिलवा दिया जाए.’

‘‘‘ये विश्वानंद कौन हैं, हम उन से मिलना नहीं चाहते. हमें, बस, अपने बेटे से मिलना है.’

‘‘‘जी, आप के जो बेटे थे उन का ही सांसारिक नाम त्याग कर नया नाम विश्वानंद रखा गया है.’

‘‘सुनीता को यह स्वीकार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘आप के कहने से उस का नाम बदल जाएगा क्या? उस का नाम कानूनीरूप से यथार्थ है और वही रहेगा.’

‘‘तपन ने बात को विराम देते हुए कहा, ‘चलिए, पहले आप हमें उस से मिलवाइए.’

‘‘आखिलानंद और उस का वह साथी उन्हें आश्रम के पिछवाड़े एक गर्भकक्ष में ले गए जहां अंधकार पांव पसारे था. बस, एक रोशनदान से प्रकाश की रश्मियां घुसपैठ करने को प्रयासरत थीं वरना दिन या रात का निर्णय कठिन हो जाता.

‘‘अखिलानंद ने आवाज दी, ‘विश्वानंद, देखो कुछ लोग तुम से मिलना चाहते हैं.’

‘‘बैठे हुए व्यक्ति को देख कर आगंतुक कुछ क्षण तो हतप्रभ रह गए. कहां जींस पहने, बालों में जेल लगाए सुंदरस्मार्ट यथार्थ और कहां बाल मुंडाए गेरुए वस्त्र पहने यह युवक. पर मां की दृष्टि तो सात परदों में भी अपने बेटे को पहचान लेती है. उस ने यथार्थ को देख कर कहा, ‘बेटा, इन लोगों ने तुम्हारा यह क्या हाल किया है?’

‘‘‘आप कौन?’ यथार्थ ने सुनीता को देख कर कहा.

‘‘सुनीता को लगा मानो किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो. उस ने कहा, ‘मैं तेरी मम्मा, बेटू.’

‘‘‘मेरी कोई मां नहीं,’ यथार्थ ने कहा. उस की आंखें लाल हो रही थीं. वह आंखें नीची कर के बात कर रहा था.

‘‘तपन ने कहा, ‘बेटा, तुझे क्या हो गया है. मैं तेरा पापा, ये मम्मा, जरा होश में तो आ.’

‘‘पर यथार्थ ने उन की ओर दृष्टि नहीं उठाई. वह नीची दृष्टि किए हुए एक ही बात कह रहा था, ‘मैं किसी को नहीं जानता, मेरी कोई मां नहीं, कोई पिता नहीं.’

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‘‘सुनीता ने उस का हाथ थामा तो उस ने झटक दिया और बोला, ‘मैं एक संत हूं. मैं सांसारिक लोगों से नहीं मिलता. मुझ से दूर रहें.’

‘‘‘बेटा, मैं तेरी मां हूं. इन लोगों ने तुझे बहका दिया है.’

‘‘इस पर वह खोईखोई वाणी में बोला, ‘मेरी मांपिता सब ऊपर वाला है. इस नश्वर संसार में मेरा कोई नहीं.’

‘‘सुनीता रो पड़ीं. वे तपन से बोलीं, ‘देखो, मेरे बेटे को क्या हो गया है. यह मुझे ही नहीं पहचान रहा है. जरूर इस पर किसी ने कोई जादूटोना कर दिया है.’ वे यथार्थ को हिलाने लगीं, अखिलानंद ने उन्हें रोक दिया, ‘आप इन्हें छू नहीं सकतीं. ये पवित्र आत्मा हो गए हैं.’

‘‘सुनीता बिगड़ गईं, ‘मैं, जिस ने उसे जन्म दिया है उस की मां, उसे छू नहीं सकती?’ उन्होंने यथार्थ से कहा, ‘बोल बेटा, बता दे इन्हें कि मैं तेरी मां हूं.’ पर वे लोग उन्हें और तपन वगैरा को जबरदस्ती बाहर ले आए और बोले, ‘बस, इस से ज्यादा आप उन से नहीं मिल सकते.’

‘‘विवशता में उन्हें वहां से आना पड़ा पर अपना बेटा कैसे खो सकते थे वे. दूसरे दिन अपने साथ 15-20 लोगों को ले कर वे फिर आश्रम गए. पर इस बार उन्हें अंदर जाने से ही रोक दिया गया. तपन के साथ यथार्थ के मित्र शिशिर और पवन भी थे. वे दोनों गुस्से में आ गए. उन्होंने जबरदस्ती अंदर जाने का प्रयास किया. उधर, स्वामीजी के शिष्यों का समूह बाहर आ गया. वे लोग इन्हें रोकने लगे जिस में आपस में हाथापाई की स्थिति आ गई. इसी हाथापाई में पवन को चोट लग गई और खून बहने लगा.

‘‘जब इन लोगों का अंदर जाने का प्रयास असफल हो गया, तो ये लोग वहीं धरना दे कर बैठ गए. और नारे लगाने लगे, ‘मेरा बेटा वापस दो, स्वामी जी हायहाय, धर्म के नाम पर धांधली नहीं चलेगी’ आदि.

‘‘इन के चारों ओर लोगों की भीड़ लग गई. जब आश्रम वालों ने देखा कि ये नहीं हट रहे हैं तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.

‘‘पुलिस ने स्वामीजी की शिकायत पर धरने वालों को हटाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने आश्रम के विरुद्ध शिकायत की. इस पर पुलिस ने पूछताछ की. पर जब यथार्थ से पुलिस ने पूछा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अपनी इच्छा से आया है.

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‘‘पुलिस इंस्पैक्टर ने तपन से कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और यदि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रह रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते.’

‘‘‘पर आश्रम वालों ने उस का ब्रेनवाश किया है, उसे बहका कर फंसाया है.’

‘‘‘जी, मैं सब समझ रहा हूं पर इस का कोई साक्ष्य नहीं है.’

‘‘तपन ने कहा, ‘पर आप हमें अपने ढंग से अपने बेटे को वापस लेने दीजिए.’

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘देखिए तपनजी, मैं आप को अपने हाथ में कानून नहीं लेने दे सकता.’

‘‘सुनीता ने कहा, ‘यह कैसी बात है कि आप जानते हैं कि उन्होंने मेरे बेटे को बरगलाया है, वे गलत हैं और हम सही, फिर भी हमें ही रोक रहे हैं?’

नेहरू पैदा कर गए ऑक्सीजन की समस्या

लेखक- सुरेश सौरभ   

हमारे मोदीजी नाली की गैस से खाना बनाने वाली, चाय बनाने वाली गैस तो बना सकते हैं, पर औक्सीजन नहीं बना सकते, क्योंकि औक्सीजन की उन्हें कभी जरूरत ही नहीं पड़ी, न ही बनाने के लिए उन से किसी ने कभी कहा. पर इतना बड़का राम मंदिर बना रहे हैं, जिस के सहारे हमारे मोदीजी सत्ता में आए और बड़काबड़का सब लोगों के लिए काम कर रहे हैं.

दुनिया में सब से बड़ी पटेल की करोड़ों रुपए लगा कर मूर्ति लगवाई. अपने नाम से करोड़ों रुपए का स्टेडियम बनवाया है. नई संसद बनाने का करोड़ों का बजट पास कर दिया है. करोड़ों रुपए की लागत से अपनी पार्टी के दफ्तर बनवा दिए हैं. ये सब क्या कम महान काम हैं.

अब लोग कोरोना मारामारी में, औक्सीजन की कमी से, डाक्टरों की कमी से, दवाओं की कमी से, अस्पतालों की कमी से मर रहे हैं, तो इस में हमारे मोदीजी का क्या कुसूर है. इस में जरूर पाकिस्तान की साजिश है. यह कोरोना बम जमातियों के बाद पाकिस्तानियों ने ही फोड़ा है.

हमारे मोदीजी के तो कुंभ में नहाने वाले भक्त, उन की रैली में आने वाले हजारों समर्थक कोरोना घटाने का लगातार काम किए हैं. वैसे भी अस्पताल हमारे मोदीजी से किसी ने मांगा नहीं था. उन की पार्टी का एजेंडा भी नहीं था, फिर काहे मोदीजी बनवा देते. मोदीजी क्या हमारे फेंकू हैं, जो कहते मंदिर और बनवाते अस्पताल.

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अब पाकिस्तानी लोग कह रहे हैं  कि इमरान खान ने एक साल में अपने अस्पतालों, डाक्टरों की तादाद बढ़ा कर महामारी पर बिना लौकडाउन लगाए काफी हद तक कोरोना पर काबू पा लिया, पर हमारे मोदीजी नाकाम रहे. यह सब पाकिस्तानी व खालिस्तानी सोच वाले बकवास करते हैं. वे यह नहीं देखते कि पाकिस्तान ने अपनी माली तंगी के चलते गधे तक बेच डाले, हमारे मोदीजी ने  कुछ बेचा?

अरे, विनिवेश किए हैं देश की दशा सुधारने के लिए. उस पर भी देशद्रोही लोग कह रहे हैं कि मोदीजी ने देश बेच दिया, बेकारी बढ़ा दी. अब जनता ने औक्सीजन मांगी है, अस्पताल मांगे हैं, तो वह भी मिलेगा, पर पहले चुनाव निबट जाने दो. तब तक रामचरित मानस पढ़ें, कोरोना भगाएं, राजनाथ सिंह के मन की यह बात मानें.

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वेदों का श्रवण कर के हमारे ऋषिमुनि हजारों बरस तक बिना हवापानी के जीते थे, तीरथ की यह नेक सलाह मानें. और जो लोग पीएम केयर फंड का हिसाब मांग रहे हैं, वे यह क्यों भूल जाते हैं कि देशहित में क्या रैली मुफ्त में हो जाती है?

हमारे मोदीजी जब रैली में पैसा लगा कर चुनाव जीतेंगे, तभी तो वे सब की केयर और सब का साथ सब का विकास कर सकेंगे. फिर भी ये पीएम केयर फंड का हिसाब मांगने वाले पता नहीं क्यों हमारे मोदीजी को फालतू में चोर कहने की नाजायज कोशिश कर रहे हैं.

Serial Story: उल्टी पड़ी चाल- भाग 2

लेखक- एडवोकेट अमजद बेग

‘‘आप ने खुद किस्सा कह कर बात साफ कर दी. यह सरासर मनघडंत कहानी है. वह सरासर झूठ बोल रहा है. घर की तलाश में वह मेरे औफिस में आता रहता था. 14 अक्तूबर की शाम भी वह आया था. मैं ने उस से कहा था जल्द ही अच्छा घर बताऊंगा.

‘‘बातोंबातों में मैं ने एक लाख का जिक्र किया था कि पार्टी ने एक लाख रुपए की पेमेंट कर के सेल एग्रीमेंट बनवा लिया है, जिस के अनुसार पार्टी एक माह के अंदर बाकी के 5 लाख रुपए अदा कर के मेरे घर का कब्जा ले लेगी. इस बीच बिक्री के पूरे दस्तावेज तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘यानी आप ने मुल्जिम को यह बता दिया था कि आप के घर में एक लाख की रकम रखी है?’’ वकील इस्तेगासा ने चालाकी से पूछा.

‘‘जी हां, बिलकुल उसे यह बात खबर हो गई थी. अगले दिन ही शैतान ने मेरे घर पर धावा बोल दिया और ऐसा वक्त चुना जब मैं घर पर नहीं था. उसे मालूम था मेरी बीवी रशीदा कमजोर और बीमार है. उस ने इस का फायदा उठाते हुए मेरे घर से एक लाख उड़ा लिए और जब रशीदा ने उस का विरोध किया तो उस का गला घोंट कर मार डाला.

‘‘इत्तफाक से मैं उस दिन जल्दी घर आ गया और मैं ने उसे तेजी से मेरे घर से जाते हुए देख लिया. मैं समझा अपना कोई बचा हुआ सामान लेने आया होगा, पर जब मैं बेडरूम में दाखिल हुआ, मैं ने अपनी बीवी को मुर्दा हालत में पड़े देखा.’’ काजी ने रोनी आवाज में कहा.

वकील इस्तेगासा ने अपनी जिरह खत्म करते हुए कहा, ‘‘योर औनर, यह इंसान नहीं वहशी दरिंदा है. इसे जितनी सख्त सजा दी जाए कम है.’’

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अपनी बारी पर जज से इजाजत ले कर मैं बिटनेस बौक्स के करीब पहुंच गया.

‘‘काजी साहब, मैं आप से सादा सा सवाल पूछूंगा. सच बताइए क्या आप वाकई अपना मकान बेचना चाहते थे?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘आप का क्या मतलब है? अगर मुझे मकान बेचना ना होता तो मैं पार्टी से एक लाख रुपए वसूल कर के सेल एग्रीमेंट पर दस्तखत क्यों करता?’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘इस सेल एग्रीमेंट के अनुसार पार्टी को एक माह के अंदर 5 लाख रुपए अदा कर के मकान का कब्जा ले लेना था. क्या आप ने मकान पार्टी के हवाले कर दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं अभी तक अपने ही मकान में रह रहा हूं.’’

‘‘एग्रीमेंट के मुताबिक इस शर्त पर आप अमल नहीं करते तो आप को पार्टी को डील कैंसल कर के 2 लाख देने पड़ते क्या आप ने 2 लाख अदा किए?’’

‘‘दुनिया में सब इंसान मुल्जिम की तरह फरेबी और मतलबी नहीं होते. मेरी बीवी के कत्ल और एक लाख की चोरी के बाद पार्टी ने मुझ पर कोई दबाव नहीं डाला और कहा कि अगर मैं घर ना बेचना चाहूं तो उन के एक लाख रुपए सहूलियत से वापस कर दूं. और मैं ने उधार ले कर रकम लौटा दी. इस तरह मामला सेटल हो गया.’’

‘‘इस तरह के मामलात इतनी आसानी से सेटल नहीं होते. सेल एग्रीमेंट की एक नकल जिस में आप ने एक लाख एडवांस लिए थे, अदालत में पेश करते तो यह एक पक्का सबूत होता.’’

‘‘अगर अदालत का हुक्म होगा तो मैं एग्रीमेंट की कौपी ले आऊंगा.’’

‘‘और अगर पार्टी की गवाही की जरूरत पड़ी तो?’’

‘‘तो मैं पार्टी को भी अदालत में ला सकता हूं.’’

‘‘क्या मैं इस पार्टी का नामपता जान सकता हूं?’’

‘‘मैं आप को कोई भी जवाब देने का पाबंद नहीं हूं. अगर अदालत मुझ से कहेगी तो बता दूंगा.’’

‘‘काजी साहब, आप अदालत में ना तो सेल एग्रीमेंट की कौपी पेश कर सकते हैं और ना पार्टी को हाजिर कर सकते हैं. यह बिक्री सिर्फ एक साजिशी ड्रामा था जो आप ने मेरे क्लाइंट को फंसाने के लिए रचा था. हकीकत तो यह है, काजी साहब, आप इस मकान को बेचने का हक ही नहीं रखते. फिर कहां की पार्टी और कहां का सेल एग्रीमेंट?’’

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काजी का चेहरा पीला पड़ गया. वह हकलाया, ‘‘यह…यह… आप क्या कह रहे हैं?’’

‘‘एक लाख दे कर 2 कमरे मिलने पर वह बेहद खुश था, पर काजी ने अपनी मक्कारी और साजिश से उसे कटघरे में खड़ा कर दिया. उस का कसूर बस इतना है कि उस ने काजी की बातों का भरोसा किया. काजी से उसे जज्बात की मार मारी थी, जिस की वजह से वह बिना किसी लिखापढ़ी के इतना बड़ा सौदा कर बैठा.’’

विपक्ष के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मुलजिम पढ़ालिखा समझदार आदमी है. बैंक में काम करता है. वह इतना बेवकूफ हरगिज नहीं हो सकता कि आंख बंद कर के किसी के बहकावे में एक लाख इनवेस्ट कर दे. यह बेहद चालाक आदमी है. अपनी मजबूरी का रोना रो कर काजी का किराएदार बना. फिर बीमार बीवी की खिदमत कर के उन के दिल में जगह बना ली. काफी दिनतक वह उन के घर में रहा, जब उस का मकसद पूरा हो गया तो उस ने काजी वहीद साहब से घर छोड़ कर जाने की बात की और साथ ही एक लाख रुपए की डिमांड भी की.

‘‘जब काजी ने कहा कि घर पर उस का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ है, तब वह गुस्से से पागल हो गया. दोनों के बीच काफी झगड़ा हुआ. तभी मुलजिम ने उन्हें खतरनाक अंजाम भुगतने की धमकी दी और 15 अक्तूबर की शाम को धमकी पूरी कर दिखाई.

‘‘मौका पा कर वह ऐसे वक्त पर मकतूला के घर में घुसा, जब उस का शौहर नहीं था. उस ने अलमारी से एक लाख रुपए चोरी किए. मकतूला के विरोध करने पर उस ने उसे गला घोंट कर मार दिया. जब वह घर से फरार हो रहा था, तभी काजी वहां पहुंच गया.

‘‘उस ने उसे जाते देख लिया, काजी फौरन घर में घुसा. हकीकत किसी बम की तरह उस के सिर पर फटी. उस की बीवी बेडरूम में मुर्दा पड़ी थी. उसे गला घोंट कर मार दिया गया था और खुली अलमारी से एक लाख रुपए गायब थे.’’

मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘योर औनर, विपक्ष के वकील सच्चाई को तोड़मरोड़ कर सामने रख रहे हैं. ना तो मेरे मुवक्किल ने उस की बीवी का कत्ल किया और ना ही उस की अलमारी से एक लाख रुपए चुराए.

आसरा- भाग 2: नासमझ जया को करन से प्यार करने का क्या सिला मिला

लेखक- मीनू सिंह

अगले दिन स्कूल जाते समय जया की नजरें करन को ढूंढ़ती रहीं, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. 3 दिन लगातार जब वह जया को दिखाई नहीं दिया तो उस का मन उदास हो गया. उसे लगा कि करन ने शायद ऐसे ही कह दिया होगा और वह उसे सच मान बैठी, लेकिन चौथे दिन जब करन नियत स्थान पर खड़ा मिला तो उसे देखते ही जया के मन की कली खिल उठी. उस दिन जया के पीछेपीछे चलते हुए करन ने आहिस्ता से पूछा, ‘आप मुझ से नाराज तो नहीं हैं?’

‘नहीं,’ जया ने धड़कते दिल से जवाब दिया, तब करन ने उत्साहित होते हुए बात आगे बढ़ाई, ‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’

‘जया,’ उस का छोटा सा उत्तर था.

‘आप बहुत अच्छी हैं, जयाजी.’

अपनी बात कहने के बाद करन थोड़ी दूर तक जया के साथ चला, फिर उसे ‘बाय’ कर के अपने रास्ते चला गया. उस दिन के बाद वह दोनों एक निश्चित जगह पर मिलते, वहां से करन थोड़ी दूर जया के साथ चलता, दो बातें करता और फिर दूसरे रास्ते पर मुड़ जाता.

इन पल दो पल की मुलाकातों और छोटीछोटी बातों का जया पर ऐसा असर हुआ कि वह हर समय करन के ही खयालों में डूबी रहने लगी. नादान उम्र की स्वप्निल भावनाओं को करन का आधार मिला तो चाहत के फूल खुद ब खुद खिल उठे. यही हाल करन का भी था. एक दिन हिम्मत कर के उस ने अपने मन की बात जया से कह ही दी, ‘आई लव यू जया,’ मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बगैर जिंदगी अधूरीअधूरी सी लगती है.

करन के मन की बात उस के होंठों पर आई तो जया के दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं. उस ने नजर भर करन को देखा और फिर पलकें झुका लीं. उस की उस एक नजर में प्यार का इजहार भी था और स्वीकारोक्ति भी.

एक बार संकोच की सीमाएं टूटीं, तो जया और करन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. ज्योंज्यों दूरियां कम होती गईं, दोनों एकदूसरे के रंग में रंगते गए. फिर उन्होंने सब की नजरों से छिप कर मिलना शुरू कर दिया. जब भी मौका मिलता, दोनों प्रेमी किसी एकांत स्थल पर मिलते और अपने सपनों की दुनिया रचतेगढ़ते.

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उस वक्त जया और करन को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि पागल मन की उड़ान का कोई वजूद नहीं होता. किशोरवय का प्यार एक पागलपन के सिवा और क्या है. बिलकुल उस बरसाती नदी की तरह जो वर्षाकाल में अपने पूरे आवेग पर होती है, लेकिन उस के प्रवाह में गंभीरता और गहराई नहीं रहती. इसीलिए वर्षा समाप्त होते ही उस का अस्तित्व भी मिट जाता है. अब जया की हर सोच करन से शुरू हो कर उसी पर खत्म होने लगी थी. अब उसे न कैरियर की चिंता रह गई थी और न मातापिता के सपनों को पूरा करने की उत्कंठा.

बेटी में आए इस परिवर्तन को आशा की अनुभवी आंखों ने महसूस किया तो एक मां का दायित्व निभाते हुए उन्होंने जया से पूछा, ‘क्या बात है जया, इधर कुछ दिन से मैं महसूस कर रही हूं कि तू कुछ बदलीबदली सी लग रही है? आजकल तेरी सहेलियां भी कुछ ज्यादा ही हो गई हैं. तू उन के घर जाती रहती है, लेकिन उन्हें कभी नहीं बुलाती?’

मां द्वारा अचानक की गई पूछताछ से जया एकदम घबरा गई. जल्दी में उसे कुछ सुझाई नहीं दिया, तो उस ने बात खत्म करने के लिए कह दिया, ‘ठीक है मम्मी, आप मिलना चाहती हैं तो मैं उन्हें बुला लूंगी.’

कई दिन इंतजार करने के बाद भी जब जया की कोई सहेली नहीं आई और उस ने भी जाना बंद नहीं किया तो मजबूरी में आशा ने जया को चेतावनी देते हुए कहा, ‘अब तू कहीं नहीं जाएगी. जिस से मिलना हो घर बुला कर मिल.’

घर से निकलने पर पाबंदी लगी तो जया करन से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी. आशा ने भी उस की व्याकुलता को महसूस किया, लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. धीरेधीरे 4-5 दिन सरक गए तो एक दिन जया ने आशा को अच्छे मूड में देख कर उन से थोड़ी देर के लिए बाहर जाने की इजाजत चाही, जया की बात सुनते ही आशा का पारा चढ़ गया. उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में जया को जोर से डांटते हुए कहा, ‘इतनी बार मना किया, समझ में नहीं आया?’

‘‘इतनी बार मना कर चुका हूं, सुनाई नहीं देता क्या?’’ नारी निकेतन के केयरटेकर का कर्कश स्वर गूंजा तो जया की विचारधारा में व्यवधान पड़ा. उस ने चौंक कर इधरउधर देखा, लेकिन वहां पसरे सन्नाटे के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. जया को मां की याद आई तो वह फूटफूट कर रो पड़ी.

जया अपनी नादानी पर पश्चाताप करती रही और बिलखबिलख कर रोती रही. इन आंसुओं का सौदा उस ने स्वयं ही तो किया था, तो यही उस के हिस्से में आने थे. इस मारक यंत्रणा के बीच वह अपने अतीत की यादों से ही चंद कतरे सुख पाना चाहती थी, तो वहां भी उस के जख्मों पर नमक छिड़कता करन आ खड़ा होता था.

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उस दिन मां के डांटने के बाद जया समझ गई कि अब उस का घर से निकल पाना किसी कीमत पर संभव नहीं है. बस, यही एक गनीमत थी कि उसे स्कूल जाने से नहीं रोका गया था और स्कूल के रास्ते में उसे करन से मुलाकात के दोचार मिनट मिल जाते थे. आशा ने बेटी के गुमराह होते पैरों को रोकने का भरसक प्रयास किया, लेकिन जया ने उन की एक नहीं मानी.

एक दिन आशा को अचानक किसी रिश्तेदारी में जाना पड़ा. जाना भी बहुत जरूरी था, क्योंकि वहां किसी की मृत्यु हो गई थी. जल्दबाजी में आशा छोटे बेटे सोमू को साथ ले कर चली गई. जया पर प्यार का नशा ऐसा चढ़ा था कि ऐसे अवसर का लाभ उठाने से भी वह नहीं चूकी. उस ने छोटी बहन अनुपमा को चाकलेट का लालच दिया और करन से मिलने चली गई.

जया ने फोन कर के करन को बुलाया और उस के सामने अपनी मजबूरी जाहिर की. जब करन कोई रास्ता नहीं निकाल पाया तो जया ने बेबाक हो कर कहा, ‘अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती, करन. हमारे सामने मिलने का कोई रास्ता नहीं बचा है.’

जया की बात सुनने के बाद करन ने उस से पूछा, ‘मेरे साथ चल सकती हो जया?’

‘कहां?’ जया ने रोंआसी आवाज में कहा, तो करन बेताबी से बोला, ‘कहीं भी. इतनी बड़ी दुनिया है, कहीं तो पनाह मिलेगी.’

…और उसी पल जया ने एक ऐसा निर्णय कर डाला जिस ने उस के जीवन की दिशा ही पलट कर रख दी.

इस के ठीक 5-6 दिन बाद जया ने सब अपनों को अलविदा कह कर एक अपरिचित राह पर कदम रख दिया. उस वक्त उस ने कुछ नहीं सोचा. अपने इस विद्रोही कदम पर वह खूब खुश थी क्योंकि करन उस के साथ था. करन जया को ले कर नैनीताल चला गया और वहां गेस्टहाउस में एक कमरा ले कर ठहर गया.

करन का दिनरात का संगसाथ पा कर जया इतनी खुश थी कि उस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि उस के इस तरह बिना बताए घर से चले जाने पर उस के मातापिता पर क्या गुजर रही होगी. काश, उसे इस बात का तनिक भी आभास हो पाता.

जया दोपहर को उस वक्त घर से निकली थी जब आशा रसोई में काम कर रही थीं. काम कर के बाहर आने के बाद जब उन्हें जया दिखाई नहीं दी तो उन्होंने अनुपमा से उस के बारे में पूछा. उस ने बताया कि दीदी बाहर गई हैं. यह जान कर आशा को जया पर बहुत गुस्सा आया. वह बेताबी से उस के लौटने की प्रतीक्षा करती रहीं. जब शाम ढलने तक जया घर नहीं लौटी तो उन का गुस्सा चिंता और परेशानी में बदल गया.

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8 बजतेबजते किशन भी घर आ गए थे, लेकिन जया का कुछ पता नहीं था. बात हद से गुजरती देख आशा ने किशन को जया के बारे में बताया तो वह भी घबरा गए. उन दोनों ने जया को लगभग 3-4 घंटे पागलों की तरह ढूंढ़ा और फिर थकहार कर बैठ गए. वह पूरी रात उन्होंने जागते और रोते ही गुजारी. सुबह होने तक भी जया घर नहीं लौटी तो मजबूरी में किशन ने थाने जा कर उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

बेटी के इस तरह गायब हो जाने से किशन का दुख और चिंता से बुरा हाल था. उधर आशा की स्थिति तो और भी दयनीय थी. उन्हें रहरह कर इस बात का पछतावा हो रहा था कि उन्होंने जया के घर से बाहर जाने वाले मामले की खोजबीन उतनी गहराई से नहीं की, जितनी उन्हें करनी चाहिए थी. इस की वजह यही थी कि उन्हें अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था.

Serial Story: बीवी का आशिक- भाग 2

लेखक- एम. अशफाक

डीआईजी साहब ने उन की बात ध्यान से सुनी, एसपी से सलाह भी ली, उन्हें रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने के लिए कहा, लेकिन बेकार. एसपी साहब टस से मस नहीं हुए.

एसपी ने कहा, ‘‘आप को हत्यारा चाहिए, आप अकबर शाह और तलजा राम को गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दीजिए, हत्यारा स्वयं चल कर आ जाएगा.’’ लेकिन डीआईजी साहब तैयार नहीं हुए.

मैं उन दिनों सिंध क्राइम ब्रांच में एसपी था. मेरे पास ऐसे बहुत से केस आते रहते थे. एक दिन मेरी मेज पर रेलवे एसपी साहब की तफ्तीश की फाइल भी आ पहुंची. डीआईजी ने मुझे उस की तफ्तीश के लिए कहा था. साथ ही अकबर शाह और तलजा राम को मीरपुर खास से दूसरे शहर में तैनात कर दिया, जिस से तफ्तीश में कोई बाधा न पडे़े.

रेलवे के एसपी साहब मेरे सीनियर भी थे और अच्छे दोस्त भी. तफ्तीश में हिचकिचाहट तो हो रही थी लेकिन हुक्म तो हुक्म था, इसलिए मैं ने काम शुरू कर दिया.

सब से पहले मैं एसपी साहब से मिला और उन से तफ्तीश के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि वे दोनों कैसे आदमी हैं. उन दोनों की प्रसिद्धि आप ने भी सुन रखी होगी. अपने अपमान का बदला कैसे लेते हैं, यह भी आप जानते होंगे. उन के लिए हत्या करवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मृतक कोई आम आदमी नहीं, रेलवे का उच्च अधिकारी था. उस की हत्या करने की हिम्मत उन के अलावा किसी में नहीं हो सकती.’’

‘‘यह बात तो ठीक है, लेकिन किसी की इतनी जल्दी हत्या करवाना भी तो संभव नहीं है. पथोरो से गाड़ी रात के 8 बजे चली, शादीपुर स्टेशन वहां से 14 मील दूर है. गाड़ी वहां करीब 9 बजे पहुंची होगी, 4 मिनट वहां ठहरी भी होगी. अकबर और तलजा राम वहां नहीं उतरे, बल्कि हैदराबाद गए थे. उन्होंने 2-4 मिनट में हत्यारा कैसे तलाश कर लिया, जो वहां से गाड़ी में सवार हो कर पथोरो जा पहुंचा.’’

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‘‘यह सब तो ठीक है लेकिन सवाल यह है कि फिर हत्या किस ने की? वह तो पथोरो पहली बार आया था. वह सीधासादा इंसान था. उस का न किसी से लेना था न देना. न झगड़ा न फसाद, उस का अचानक दुश्मन कैसे पैदा हो गया? जाइए इन सूबेदारों के अलावा कोई और हत्यारा ढूंढि़ए.’’

मैं पथोरो जाने के लिए तैयार हुआ, मेरे साथ मेरा अर्दली था. हैदराबाद से पथोरो 105 मील था. मुझे वहां पहुंचने में 5 घंटे लगे. पथोरो स्टेशन दूसरे कस्बों के स्टेशनों जैसा छोटा सा था और वीरान पड़ा था.

वहां पहुंच कर स्टेशन के वेटिंग रूम में अपना सामान रख कर मैं स्टेशन मास्टर से मिला. घटनास्थल का निरीक्षण किया, रेलवे एसपी साहब की रिपोर्ट को दोबारा पढ़ा. अपना काम शुरू करने से पहले मैं ने एसपी साहब की रिपोर्ट में लिखी खास बातों को देखा और उन पर आगे की काररवाई करने का निश्चय किया.

उस दिन जिस ट्रेन में मृतक और सूबेदार यात्रा कर रहे थे, वह जोधपुर से हैदराबाद जा रही थी. मृतक पहले से ही उस में सवार था. पथोरो पहुंच कर जब वह गाड़ी से उतरा, तभी अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार होने लगे. उन्हें फर्स्ट क्लास में सवार होते देख कर मृतक को संदेह हुआ, उस ने टीटी से कह कर उन के टिकट चैक करवाए. उन के टिकट फर्स्ट क्लास के नहीं थे इस पर उस ने उन्हें फर्स्ट क्लास से निकलवा दिया. फिर गाड़ी आगे के लिए रवाना हुई.

उस समय रात के 8 बजे थे. दोनों सूबेदार जब अगले स्टेशन शादीपुर पहुंचे तब रात के 9 बजे थे. उस समय वहां एक माल गाड़ी पथोरो जाने के लिए तैयार हो रही थी. दोनों सूबेदारों के चोरों के साथ संबंध थे. उन्होंने उस रेलवे अफसर को ठिकाने लगाने के लिए वहां एक बदमाश को ढूंढ निकाला. वह हत्या करने के लिए तुरंत तैयार हो गया और उसी माल गाड़ी में बैठ कर पथोरो पहुंच गया.

दोनों सूबेदार हैदराबाद चले गए. उस हत्यारे ने प्लेटफार्म पर सोेते हुए रेलवे अफसर की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी. कहानी अच्छी थी, लेकिन किसी भी तरह मुझे सच नहीं लग रही थी. वे दोनों सूबेदार बदमाश होंगे, हत्या भी करवा सकते थे लेकिन इतनी जल्दी यह काम नहीं हो सकता था. मुझे इस पूरी कहानी पर यकीन नहीं आया.

मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट निकाल कर पढ़ी. उस में लिखा था कि हत्या एक तेज धारदार हथियार से सिर की बाईं ओर वार कर के की गई थी. इस के अलावा पूरे शरीर पर कोई घाव नहीं था. इस से यह पता लगा कि जब मृतक की हत्या हुई तब वह बाईं ओर करवट ले कर सो रहा था.

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मैं ने स्टेशन मास्टर को बुलाया और उस के साथ उस जगह गया, जहां मृतक सोया हुआ था. वहीं खड़ेखड़े मैं ने उस से कुछ प्रश्न किए. उस ने बताया कि गाड़ी जाने के बाद मृतक मेरे कमरे में आया था. वह कुछ देर बैठा, अगले दिन के निरीक्षण के बारे में कुछ निर्देश दिए और वेटिंग रूम चला गया.

स्टेशन मास्टर ने उस से खाने को पूछा तो उस ने कहा कि वह खाना साथ लाया है. मैं ने एएसएम से कहा तो उस ने प्लेट फार्म के अंतिम सिरे पर उस के लिए एक पलंग लगवा दिया ताकि आनेवाली गाडि़यों से उस के आराम में खलल न पडे़. मृतक ने अपना बिस्तर खुद बिछाया और मुंह ढक कर सो गया.

उस के बाद सब लोग वहां से चले आए. बाकी स्टाफ तो अपने क्वार्टरों पर चला गया, लेकिन एएसएम अपने दफ्तर की एक बेंच पर सो गया. स्टेशन मास्टर तो बूढ़ा और वहां नया था, लेकिन एएसएम पुराना था और वहां के सब लोगों को जानता था. मैं ने उसे बुलवा कर उस से पूछा, ‘‘उस रात तुम कहां सोए थे?’’

‘‘जी, मैं स्टेशन मास्टर के दफ्तर के बाहर एक बेंच पर लेटा था.’’

‘‘वैसे तुम हर रात कहां सोते हो?’’

Serial Story: अस्मत का सौदा- भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

जब रात में आहट हुई, तो रणबीर का मन बल्लियों उछल गया. सामने मुमताज खड़ी थी. उसे देख कर रणबीर अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रख सका और जा कर मुमताज से लिपट गया और बेतहाशा चूमने लगा. मुमताज ने कोई विरोध नहीं किया.

कुछ देर बाद रणबीर को अपने से अलग करते हुए मुमताज बोली, ‘‘अब यहीं शुरू रहोगे या अंदर भी चलने दोगे.‘‘

दोनों बेडरूम में आ गए थे. रणबीर पर नशा हावी हो रहा था और अपने सामने एक जवान और खूबसूरत लड़की को देख कर उस से रहा नहीं जा रहा था, पर मुमताज तो कुछ और ही सोच कर आई थी.

‘‘तुम नेताजी से इतना डरते क्यों हो… मैं ने अकसर देखा है कि वे तुम्हें डांटते रहते हैं,‘‘ रणबीर सिंह के बालों में उंगली घुमाते हुए मुमताज ने कहा.

‘‘अरे, वो साला दो कौड़ी का आदमी मुझे क्या डांटेगा… मेरे पास उस की एक दूसरी पार्टी की महिला नेता के साथ सैक्स सीडी भी है, जिसे मैं जब चाहूं तब मीडिया में जा कर सरेआम कर सकता हूं… बस कुछ ऐसे कारण हैं, जिन की वजह से मैं रुका हुआ हूं,‘‘ रणबीर ने बताया.

‘‘तो फिर तुम ऐसे ही डांट कब तक खाते रहोगे और फिर नेताजी की ऐसी कौन सी राज की बात है, जिसे तुम मुझे भी नहीं बता रहे हो…‘‘ मुमताज ने दांव खेला.

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रणबीर ने मुमताज के होंठों को चूमा और बोला, ‘‘मेरी जान, तुम से क्या छिपाना… दरअसल, ये नेता एक नंबर का औरतखोर और भ्रष्ट है. इस ने तुम्हारी बहन रजिया पर भी बुरी नजर डालनी चाही थी, पर मैं ने रजिया को बचा लिया. समय आने पर मैं इस की सब पोलपट्टी खोल दूंगा, तब तक मैं इस के पैसों पर ऐश करना चाहता हूं… और… और इस की एक लड़की भी है, जो विदेश में पढ़ाई कर रही है… बला की खूबसूरत है… मेरा अंतिम लक्ष्य है उसे अपने जाल में फंसा कर उस से शादी करना और इस नेता की जायदाद का वारिस बनना. अगर उस लड़की ने मुझ से शादी करने में जरा भी नानुकुर की, तो उस के जिस्म को रौंद डालूंगा मैं…‘‘ रणबीर ने अपना सारा राज उगल दिया था. अभी वह आगे कुछ और बोलता, इस से पहले एक और जाम मुमताज ने उस के होंठों से लगा दिया, जिसे पीने के बाद रणबीर को तेजी से नींद आ गई. उस के बाद रणबीर कितने घंटे सोया, उसे कुछ पता नहीं चला.

अगले दिन जब रणबीर को होश आया, तब उस का मोबाइल बज रहा था. देखा तो नेताजी का फोन था.

‘‘जी सर,‘‘ हकलाते हुए रणबीर सिंह बोला.

‘‘सर के बच्चे… तुरंत ही मेरे पास आओ… कुछ जरूरी बात करनी है तुम से,‘‘ नेताजी का स्वर कुछ कड़क था.

रणबीर सिंह का सिर बहुत भारी हो रहा था. जैसेतैसे वह नेताजी के पास पंहुचा. नौकरों ने बताया कि वह अपने बेडरूम में आराम कर रहे हैं. बेडरूम के बाहर पहुंच कर रणबीर ने दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘अंदर आ जाओ,‘‘ नेताजी बोले.

बेडरूम का दरवाजा खोल कर जैसे ही रणबीर ने नजर उठाई, तो सामने का नजारा देख कर उस के पैरों तले जमीन ही खिसक गई. सामने नेताजी के बिस्तर पर मुमताज लेटी हुई थी. उस के नंगे बदन पर सिर्फ चादर थी. अभी वह भौंचक्का सा खड़ा ही था कि नेताजी ने उसे बैठने का इशारा किया. रणबीर सोफे पर बैठ गया.

मुमताज अब भी मुसकराए जा रही थी.

नेताजी ने अपने पास रखे हुए रिमोट से दीवार पर लगा हुआ एलईडी टीवी चला दिया. उस टीवी पर कल रात का रणबीर वाला वीडियो चल रहा था, जिस में उस ने नेताजी के बारे में सबकुछ बोला था और नेताजी की लड़की के बारे में भी अपनी मंशा जाहिर की थी.

रणबीर को समझते देर नहीं लगी कि मुमताज ने उस के खिलाफ साजिश रची है. उस ने रणबीर को शराब पिला कर उसी के द्वारा दिलाए मोबाइल से उस का चुपके से वीडियो बनाया और अपने मनचाहे सवालों के जवाब रणबीर के मुंह से उगलवा लिए और अब नेताजी की हमराज बन गई और उन के ही साथ हमबिस्तर भी हो गई है.

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‘‘तो तेरी नजर हमारे पैसे और हमारी लड़की पर है… साल्ले… आस्तीन के सांप,‘‘ नेताजी गुर्रा रहे थे.

उन्होंने मोबाइल पर किसी लल्लन को बुलाया. कुछ ही देर में एक लंबा, तगड़ा सा आदमी अपने गुरगों के साथ आया और नेताजी को प्रणाम कर के खड़ा हो गया.

‘‘इस हराम के पिल्ले को ले जाओ… और शहर के बाहर ले जा कर छोड़ दो… और इतना मारो… इतना मारो कि फिर ये किसी लड़की के साथ गलत काम करने लायक ही न रह जाए.‘‘

कुछ घंटों बाद ही रणबीर का शरीर शहर से बाहर जाती रोड पर लहूलुहान पड़ा था… आतेजाते लोग अपने मोबाइल से उस का वीडियो बना रहे थे.

मुमताज ने भले ही अपने शरीर को इतने दिनों तक शरणार्थी कैंपों में बचा कर रखा, पर भला वह ऐसा कब तक कर पाती, आज भी उस की अस्मत का सौदा एक नेता के हाथों हो ही गया था, पर मुमताज को सुकून इस बात का था कि उस ने रणबीर सिंह से अपनी बहन रजिया का बदला तो ले ही लिया था और न जाने कितनी और रजियाओं की अस्मत लुटने से बचा ली थी.

आंखें- भाग 2: ट्रायल रूम में ड्रेस बदलती श्वेता की तस्वीरें क्या हो गईं वायरल

‘‘कैसी तबीयत है?’’ प्यार से माथे पर हाथ फिराते हुए प्रशांत ने पूछा.

‘‘आई एम फाइन,’’ मुसकराते हुए श्वेता ने कहा.

‘‘खाना तैयार है.’’

‘‘अच्छा, क्याक्या बनाया है?’’

‘‘जो हमारी होममिनिस्टर को पसंद है.’’

हंसती हुई वह किचन में गई. कैसरोल में उस के पसंदीदा पनीर के परांठे थे और चिकनकरी और मिक्स्ड सब्जी थी. सलाद भी कटा हुआ प्लेट में लगा था.

प्रशांत नए जमाने के उन पतियों जैसे थे, जो पत्नी पर रोब न जमा हर काम में हाथ बंटाते हैं. श्वेता का तनाव काफी कम हो चला था.

अगले दिन सुबह वह किचन में थी कि प्रशांत तैयार हो कर आ गए.

‘‘श्वेता डार्लिंग, मुझे कंपनी के काम से हैदराबाद जाना है. 1 घंटे बाद की फ्लाइट है. शाम को थोड़ा लेट आऊंगा,’’ कहते हुए प्रशांत बाहर निकल गए.

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उन के जाने के बाद उसे मोबाइल फोन का ध्यान आया. वह लपक कर बैडरूम में गई और मोबाइल का स्विच औन किया. चंद क्षणों के बाद कल शाम वाला नंबर फिर स्क्रीन पर उभरा. सुनूं या न सुनूं सोचते हुए उस ने मोबाइल को बजने दिया. थोड़ी देर बाद तो उस ने फोटो निकाल कर देखे पर ड्रैस कौन सी थी स्पष्ट नहीं था. कैबिन भी जानापहचाना नहीं था. ऐसी कैबिन लगभग हर शोरूम में होती है. यह ड्रैस कौन सी है यह समझ में आता तो पता चल जाता कि यह कब और कहां से खरीदी थी. तभी मोबाइल की घंटी फिर से बजी. वही नंबर फिर उभरा. उस ने इस बार मोबाइल औन कर मोबाइल कान से लगा लिया मगर बोली कुछ नहीं.

‘‘हैलो, हैलो,’’ दूसरी तरफ से कोई बोला लेकिन वह खामोश रही.

‘‘जानबूझ कर नहीं बोल रही,’’ किसी ने किसी दूसरे से कहा.

‘‘हम से चालाकी महंगी पड़ेगी. हम ये फोटो इंटरनैट पर जारी कर देंगे,’’ उन में से कोई एक बोला.

श्वेता ने औफ का बटन दबा दिया. थोड़ी देर बाद फिर मोबाइल की घंटी बजी. इस बार स्क्रीन पर वही बात मैसेज के रूप में उभरी, जो फोन पर बोली गई थी. उस ने फिर औफ का बटन दबा दिया. उस के बाद मोबाइल की घंटी कई बार बजी लेकिन उस ने ध्यान नहीं दिया. अब क्या करें? आज काम पर जाएं? मगर काम कैसे हो सकेगा? सोचते हुए उस ने थोड़ी देर बाद कंपनी में फोन कर दिया.

फिर उस ने फोटो के लिफाफे को गौर से देखा, तो जाना कि फोटो मलाड के एक फोटो स्टूडियो में बने थे. स्टूडियो के पते के नीचे 2 फोन नंबर भी थे. अपने मोबाइल से उस ने दोनों नंबर पर फोन किया मगर दोनों के स्विच औफ थे. अब यह देखना था कि मलाड वाला पता भी असली है या नहीं. उस के लिए मलाड जाना पड़ेगा, उस ने सोचा. उस ने फोटो फिर ध्यान से देखे. ड्रैस कौन सी है यही पता चल जाए तब याद आ जाएगा कि ड्रैस कहां से खरीदी थी. फोटो के इनलार्ज प्रिंट द्वारा शायद पता लग सके कि ड्रैस कौन सी है.

उस के घर में नई तकनीक का डिजिटल कैमरा था. उस ने उस से हाथ में पकड़ी ड्रैस का नजदीक से एक फोटो खींचा. अब इस का बड़ा प्रिंट निकलवाना था.

वह कार से मलाड के लिए चल दी. अभी तक उस ने कई थ्रिलर और जासूसी नौवल पढ़े थे. जासूरी फिल्में और सीरियल भी देखे थे. मगर आज एक जासूस बन कर अश्लील फोटो खींचने वाले का पता लगाना था.

पौन घंटे बाद वह मलाड में थी. जैसी उस को उम्मीद थी, लिफाफे पर लिखे पते वाला फोटो स्टूडियो कहीं नहीं था. कूरियर सर्विस से पता करना बेकार था. हजारों लिफाफे रोजाना बुक करने वाले को कहां याद होगा कि यह लिफाफा कौन बुक करवा गया था.

अब क्या करें? सोचती हुई वह वापस अपनी कालोनी में पहुंची और एक परिचित फोटोग्राफर की दुकान में जा कर फोटो का डिजिटल प्रिंट निकालने के लिए कहा.

जब प्रिंट तैयार हो रहा था वह दुकान के सोफे पर बैठ कर दुकान में रखी फ्रेमों में जड़ी तसवीरें देख रही थी. तभी मोबाइल फिर बजा. वही नंबर था. सुनूं या न सुनूं सोचते हुए उस ने रिसीविंग बटन पुश किया तो ‘‘हैलो… हैलो,’’ दूसरी तरफ से आवाज आई पर वह खामोश रही.

‘‘वह चालाकी कर रही है. हम इस के फोटो इंटरनैट पर जारी कर देते हैं और

इस के औफिस में भेज देते हैं, तब इस को पता चलेगा.’’

श्वेता ने आवाजें सुन कर पहचान लिया कि कल वाले ही थे. उस ने फोन काट दिया और सोचने लगी कि इन के पास उस का मोबाइल नंबर तो है ही, यह भी जानते हैं कि कौन है और कहां काम करती है. इस का मतलब यही था कि वे या तो कोई परिचित हैं या किसी ने उस के पीछे लग उस का पता लगाया होगा और बाद में उस को फोटो भेज ब्लैकमेलिंग का इरादा बनाया होगा.

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फोटोग्राफर फोटो का बड़ा प्रिंट निकाल कर लाया तो वह पेमैंट कर प्रिंट ले कर घर चली आई. घर आ कर आंखों पर जोर डाल कर उस ने फोटो देखा तो उसे समझ में आया कि वह फोटो मोंटे कार्लो के स्कर्ट टौप का था. उस की आंखों ने उन्हें पहचान लिया था. फिर वह याद करने लगी कि इन की शौपिंग कहां से की थी. दिमाग पर जोर देतेदेते उसे याद आ ही गया कि बड़ा नाम है उस शोरूम का. हां शायद पारसनाथ है, जो जुहू के पास है. फिर उसे सब याद आ गया.

अब उस शोरूम में जा कर उस के फोटो वगैरह भेजने का काम करने वालों का पता लगाना था. कैसे जाए? अकेली? मगर साथी हो भी तो कौन? कोई भी सहेली आजकल खाली नहीं थी. रिश्तेदार? न बाबा न.

उस ने यही निश्चय किया कि अकेली ही जाएगी. कैसे जाए, इसी तरह? इस से तो अपराधी सावधान हो जाएंगे, तो क्या भेस बदल कर जाए? लेकिन क्या भेस बदले? तभी उसे प्यास लगी. पानी पीते रिमोट दबा उस ने टीवी औन कर दिया. वही घिसापिटा सासबहू का रोनेधोने वाला सीरियल आ रहा था. उस के मन में विचार आया कि अगर वह प्रौढ उम्र की सास के समान बन जाए तो…

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Serial Story: अनजानी डगर से मंजिल- भाग 3

लेखक- संदीप पांडे

अभिजीत को आज तेज जुकाम लग गया था. बड़ी मुश्किल से काम हो पा रहा था. दिन में काम से जल्दी थक कर बैठ गया. लेबर में से एक कड़वा उस के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप बोलो तो इस जुकाम से आप को अभी मुक्ति दिला दूं? बस, आप को मैं जो खिलाऊं उसे हिम्मत कर के खा लेना,’’ तैयार हो रहे खाने में आज मटन पक रहा था. कड़वा दोने में उस के लिए मटन को अलग से पका कर लाया और हाथ में थमा दिया. एक टुकड़ा चबाते ही उस की आह निकल गई. मुंह जैसे जल कर आग बन गया. पानी का लोटा पूरा गटकने के बाद कुछ सांस आई.

‘‘यह क्या बना लाया?’’ अपनी आंखनाक से बहते पानी को पोंछते व हकलाते हुए अभिजीत बोला.

‘‘धीरेधीरे यह पूरा खा जाओ. अभी एक घंटे में जुकाम का नामोनिशान न रहेगा,’’  कड़वा ने अटकते हुए कहा. उसे डर था कहीं साहब के कोप का भाजन न बनना पड़े. पर साहब भी हिम्मत वाले निकले. सिसकियां भरते दोना पूरा खाली कर दिया. और उस का परिणाम भी मिला. पेट, आंख, मुंह में जलन तो थी पर नाक एक घंटे में पूरी साफ हो गई.

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15 दिनों में आधे से ज्यादा काम हंसतेखेलते निबट गया था. दिनभर सब जम के हंसीठिठोली करते, काम निबटाते और शाम को मदिरा के साथ मांसाहार पकाते, खाते और थक के चूर हो कर गहरी नींद का आनंद लेते. ऊंचेनीचे, पथरीले रास्तों पर रोज 10-12 किलोमीटर पैदल चलते शरीर हलका हो गया था. अभिजीत और कुनाल को अपना वजन दोतीन किलो कम हुआ प्रतीत हो रहा था.

एक शाम बसेसर बोला, ‘‘साहब, कल खरगोश पकड़ते हैं. सब मिल कर शिकार करेंगे और शाम को पकाएंगे.’’

सोजी बोला, ‘‘हां साहब, बसेसर का निशाना पक्का है. गुलेल से यह एक बार में ही खरगोश को चित्त कर देता है.’’

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‘‘ठीक है, सुबह 2 घंटे काम निबटा कर हम भी शिकार करना सीखते हैं,’’ कुनाल बोले.

अगली सुबह 11 बजे शिकार की टोली अपने शिकार पर निकल चली. 2 जने टीन बजाते आगे बढ़े. बसेसर को छोड़ बाकी सभी जोर से हल्ला करने लगे. बसेसर एक ऊंची चट्टान पर चढ़ अपनी गुलेल ले कर खड़ा हो गया. 2 खरगोश शोर सुन तेजी से भागे. ‘‘और एकदोतीन और भक्क.’’ बसेसर की गुलेल से गोली की तरह पत्थर एक खरगोश के सिर पर लगा और फिर सब शांत. 10 मिनट में ही एक शिकार हो चुका था. बसेसर के इशारा करते ही एक बार फिर एक दिशा से वातावरण में शोर गूंजने लगा. बसेसर की तेज नजर दूसरे शिकार को ढूंढ़ रही थी. 3 मिनट बाद ही उस की नजर पड़ते ही गुलेल के अचूक निशाने ने दूसरा भी धराशाई कर दिया.

अभिजीत और कुनाल की अचंभित आंखें बसेसर की काबिलीयत की प्रशंसा कर रही थीं. अभिजीत ने खुशी के मारे 20 रुपए का नोट निकाल कर इनाम में दे डाला.

‘‘साहब, हम ने भी तो मेहनत की है,’’ बिदाम ने हंसते हुए ठिठोली की.

‘‘अरे, तू काहे जी खराब करती है,’’ 5 रुपए का नोट उस की तरफ बढ़ाते कुनाल ने भी अपना दिल खोल दिया. इठलातीबलखाती नदी की तरह बिदाम खुशी  झलकाते चरी उठा कर  झरने की तरफ पानी लेने चल दी.

25 दिन बीत गए. अब काम समाप्त होने को था. अभिजीत अब एक सिद्धहस्त की तरह रोज की रीडिंग को मैप पर प्लौट कर देता था. रोज सुबह 5 से शाम के 5 बजे तक की उन की मेहनत का नतीजा था कि एक महीने से पहले ही वह अपना काम पूरा कर पहली कमाई पाने के लिए एक्सईएन औफिस की ओर बढ़ चले थे.

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नक्शे जमा करने के बाद अफसर ने उन के काम की खूब प्रशंसा की और अकाउंटैंट को उन का भुगतान तुरंत करने के निर्देश दिए. कुनाल के नाम का एक लाख रुपए चैक उन को 2 घंटे बाद ही मिल गया. दोनों बेरोजगार अपनी पहली कमाई की इतनी बड़ी राशि देख खुशी की अश्रुधारा को बहने से रोक न पाए. एक महीने के अनुभव ने उन्हें परिपक्वता और आत्मविश्वास से लबरेज कर दिया था.

50 हजार रुपए कमाई पूंजी से अभिजीत ने अब ठेकेदारी शुरू कर दी थी. बराबर की हिस्सेदारी में एक मित्र नवीन के साथ शुरू की गई फर्म अभिनव कंस्ट्रक्शन अब एक ए क्लास कौन्ट्रैक्टर फर्म है जो प्रदेश में काम के साथ देश के अन्य हिस्सों में बड़े ठेके लेने लगी है. इस फर्म में 10 अभियंताओं सहित 50 व्यक्ति मासिक वेतन पाते हैं और साथ ही, हजारों श्रमिक रोजगार. एक समय रोजगार को भटकने वाला इंसान अब खुद रोजगार प्रदान करने वाली फर्म का मालिक बन गया है.

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