‘‘बेशक है न,’’ मजाक में पूछे प्रश्न का शीला ने सीधा और सच्चा जवाब दे दिया, ‘‘परिस्थितियों ने साथ दिया तो… तो डाक्टर बनूं.’’
‘‘ऐक्सीलैंट,’’ शीला के उत्तर पर तीनों ने एकदूसरे की ओर देखा. इस देखने में व्यंग्य का पुट घुला था, यह मुंह और मसूर की दाल. फिर तीनों के ठहाके फूट उठे.
फिर कुछ क्षणों का मौन.
तीनों ने देखा, शीला स्मृतियों की धुंध में खोई बाहर के दृश्यों को देख रही है. तीनों की नजरें परस्पर गुंथ गईं. आंखों ही आंखों में मौन संकेत हुए. फिर आननफानन एक मादक गुदगुदा देने वाली योजना की रूपरेखा तीनों के जेहन में आकृति लेने लगी.
‘‘कहां खो गईं आप?’’
‘‘जी?’’ शीला हौले से मुसकरा दी.
‘‘आज पहला दिन था. रैगिंग तो हुई होगी?’’ अतुल ने प्रश्न किया तो शीला एक पल के लिए सकपका गई. दिमाग में आज हुई रैगिंग का एकएक कोलाज मेढक की तरह फुदकने लगा. 3 सीनियरों का उसे घेर कर द्वितीय तल के एक क्लासरूम में ले जाना फिर ऊलजलूल द्विअर्थी यक्ष प्रश्नों का सिलसिला. शीला मन ही मन घबरा रही थी. पर रैगिंग का स्तर खूब नीचे नहीं उतरा था और तीनों छात्र मर्यादा के भीतर ही रहे थे.
‘‘आप न भी बताएंगी तो भी अनुमान लगाना कठिन नहीं कि रैगिंग के नाम पर बेहद घटिया हरकत की गई होगी आप के साथ,’’ अतुल फुफकारा, ‘‘बीसी कालेज के छात्रों को हम अच्छी तरह जानते हैं. इस शहर के सब से ज्यादा बदतमीज और लफंगे छात्र, हंह.’’
शीला मौन रही. क्या कहती भला?
‘‘एकदम ठीक बोल रहा दादा,’’ पिंटू इस बार अपने लहजे में बंगाली टोन का छौंक डालते हुए हिनहिनाया, ‘‘माइरी, अइसा अभद्रो व्यवहार से ही तो हमारा छात्र समुदाय बदनाम हो रहा. इस बदनामी को साफ करने का एक उपाय है, दोस्तो,’’ इसी बीच मादक योजना की रूपरेखा मुकम्मल आकार ले चुकी थी, ‘‘क्यों न हम इस नए दोस्त को नए प्रवेश की मुबारकबाद देने के लिए छोटी सी पार्टी दे दें?’’
‘‘गजब, क्या लाजवाब आइडिया है, अतुल,’’ यादव समर्थन में चहक उठा, ‘‘मुबारकबाद का मुबारकबाद और बदनामी का परिमार्जन भी.’’
‘‘पर बड़े भाई, पार्टी होगी कहां और कब?’’
‘‘पार्टी आज ही होगी यार और अभी कुछ देर बाद,’’ अतुल हंसा. दरअसल, योजना बनी ही इतनी मादक थी कि भीतर का रोमांच लहजे के संग बह कर बाहर टपकना चाह रहा था, ‘‘अगले स्टेशन पर हम उतर जाएंगे. स्टेशन के पास ही बढि़या होटल है, ‘होटल शहनाई.’ वहीं पार्टी दे देंगे. ओके.’’
शीला अतुल के अजूबे और अप्रासंगिक प्रस्ताव पर चकित रह गई. किसी अन्य कालेज के अपरिचित छात्र. अचानक इतनी उदारता.
‘‘नो, नो, थैंक्स मित्रो, मेरे सीनियर्स ने वैसा कुछ भी नहीं किया है अभद्र, जैसा आप सब समझ रहे हैं.’’
‘‘चलिए ठीक है. माना कि आप के सीनियर्स शरीफ हैं पर पार्टी तो हमारी ओर से तोहफा होगी आप को. परिचय और अंतरंगता इसी तरह तो बनती है. हम छात्र किसी भी कालेज के हों, हैं तो एक ही बिरादरी के.’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं. अब तो मिलना होता ही रहेगा न. पार्टी फिर कभी,’’ शीला ने दृढ़ता से इनकार कर दिया.
‘‘उफ, 12 बजे हैं अभी. 3:25 बजे की लोकल पकड़वा देंगे. देर नहीं होगी.’’
‘‘सौरी…मैं ने कहा न, मैं पार्टी स्वीकार नहीं कर सकती,’’ शीला ने चेहरा खिड़की की ओर फेर लिया.
कुछ क्षणों का बेचैनी भरा मौन.
‘‘इधर देखिए दोस्त,’’ अतुल की तर्जनी शीला की ठोढ़ी तक जा पहुंची, ‘‘जब मैं ने कह दिया कि पार्टी होगी, तो फिर पार्टी होगी ही. हम अगले स्टेशन पर उतर रहे हैं.’’
अतुल के लहजे में छिपी धमकी की तासीर से शीला भीतर तक कांप उठी.
‘‘आखिर हम भी तो आप के सीनियर्स ही हुए न,’’ तीनों बोले.
शीला ने डब्बे में बैठे यात्रियों का सिंहावलोकन किया. लगभग सभी यात्री अवाक् और हतप्रभ थे. किसी ने सोचा भी न था कि ऊंट इस तरह करवट ले बैठेगा.
‘‘अरे भैया, लड़की का पार्टी के लिए मन नहीं है तो काहे जबरदस्ती कर रहे ससुर?’’ नेताजी ने बीचबचाव की पहल की तो पिंटू तुनक कर खड़ा हो गया, ‘‘ओ बादशाहो, तुसी वड्डे मजाकिया हो जी. त्वाडे दिल विच्च इस कुड़ी के लिए एन्नी हमदर्दी क्यों फड़फड़ा रेहंदी है, अयं?’’
नेताजी की ओर कड़ी दृष्टि से देखते हुए अतुल शीला से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आइए, गेट के पास चलते हैं.’’
‘‘नहींनहीं, मैं नहीं जाऊंगी,’’ शीला की आंखों में भय उतर आया, ‘‘प्लीज…’’
‘‘अब नखरे मत दिखा,’’ यादव और अतुल भी खडे़ हो गए. यादव ने शीला की कलाई थाम ली तो शीला ने झटके से छुड़ाते हुए विनम्र भाव से कहा, ‘‘प्लीज, छोड़ दें मुझे. पार्टी फिर कभी,’’ फिर सहायता के लिए प्रोफैसर से गुहार लगाते हुए चीख पड़ी, ‘‘देखिए न, सर…’’
‘‘आप लोग छात्र हैं या आतंकवादी, अयं? इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते,’’ प्रतिरोध करने की उत्तेजना में प्रोफैसर सीट से खड़े हो गए.
‘‘शटअप,’’ यादव ने चीखते हुए प्रोफैसर को इतनी जोर से धक्का दिया कि वे लड़खड़ाते हुए धप्प से सीट पर लुढ़क गए.
तभी जीआरपी के 2 जवान गश्त लगाते हुए उधर से गुजरे. शीला को जैसे नई जान मिल गई हो, वह चीख पड़ी, ‘जीआरपी अंकल.’
शिवानंद के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए. पीछे मुड़ कर बर्थ के भीतर तक झांका तो दृष्टि सब से पहले अतुल से टकराई. वे खिल उठे, ‘‘अरे, अतुल बाबू, आप? नत्थूराम, ई अतुल बाबू हैं, आईजी रेल, तिवाड़ी साहब के सुपुत्र.’’
‘‘अंकल, आप इस टे्रन में?’’ अतुल शिवानंद से हाथ मिलाते हुए मुसकराया.
‘‘जनता को भी न सरकार और पुलिस विभाग को बदनाम करने में बड़ा मजा मिलता है एकरा माय के. शिकायत किहिस है जे टे्रन में लूटडकैती, छेड़छाड़, किडनैपिंग बढ़ रहा है. बस… आ गया ऊपर से और्डर लोकलवा सब में गश्त लगाने का, हंह. लेकिन अभी तक एक्को केस ऐसा नय मिल सका है.’’
‘‘जनता की बात छोडि़ए,’’ अतुल ने लापरवाही से कंधे झटके. शिवानंद ने युवती की ओर देख कर संकेत से पूछा, ‘‘ई आप के साथ हैं?’’
‘‘जी हां, क्लासफ्रैंड हैं हमारी,’’ अतुल मुसकराया तो शीला का मन हुआ, सारी बात बता दे पर जबान से बोल नहीं फूटे.
‘‘मैडम, अतुल बाबू बड़े सज्जन और सुशील नौजवान हैं. इन की दोस्ती से आप फायदे में ही रहेंगी. अच्छा, अतुल बाबू, सर को हमारा परनाम कहिएगा.’’
शीला की आंखों के आगे सारी स्थिति आईने की तरह साफ हो गई. अतुल आईजी रेल का लड़का है. पावर और पैसा, जब दोनों ही चीजें हों जेब में तो यादव और पिंटू जैसे वफादार चमचे वैसे ही दौड़े आएंगे जैसे गुड़ को देख कर चींटियां. सिपाहियों के जाते ही तीनों एक बार फिर जोरों से हंस पड़े. पिंटू ने आगे बढ़ कर शीला की कलाई थाम ली और खींच कर उसे उठाने का प्रयास करने लगा. शीला की इच्छा हुई, एक झन्नाटेदार तमाचा उस के गाल पर जड़ दे. बड़ी मुश्किल से ही उस ने क्रोध को जज्ब किया. इस तरह रिऐक्ट करने से बात ज्यादा बिगड़ सकती है.
तभी न जाने किस जेब से निकल कर अतुल की हथेली में छोटा सा रिवौल्वर चमक उठा.
‘‘किसी ने भी चूंचपड़ की तो…’’ रिवौल्वर यात्रियों की ओर तानते हुए वह गुर्रा उठा, ‘‘मनीष मिश्रा केस के बारे में तो सुना होगा न?’’
मनीष मिश्रा, वही जिस के तार स्वयं पीएम साहब से जुड़े हुए थे. बदमाशों ने चलती टे्रन से बाहर फेंक दिया था उसे. अपराध? सफर कर रही एक लड़की से छेड़खानी का मुखर विरोध. यात्रियों के बदन भय से कंपकंपाने लगे और रोंगटे खड़े हो गए.
सब से पहले नेताजी उठे, ‘‘थानापुलिस में तो एतना पहचान है कि का कहें ससुर. पर ई छात्र लोग का आपसी मामला न है. पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती.’’
फिर प्रोफैसर साहब भी अटैची संभालते हुए उठ खड़े हुए, ‘‘जब इतने प्यार से पार्टी दे रहे हैं ये लोग तो क्या हर्ज है स्वीकारने में? पर घर लौट कर मेरा आलेख पढि़एगा जरूर.’’
धीरेधीरे शकीला के अलावा सभी यात्री डब्बे के दूसरे हिस्सों में चले गए. शकीला वहीं बैठी रही. हिजड़ा होते हुए भी इतना तो समझ चुकी थी कि अकेली लड़की मुसीबत में पड़ गई है. ये लोग इसे जबरदस्ती अगवा करने पर उतारू हैं. पर इस हाल में वह करे भी तो क्या?