Hindi Story : नसीब

Hindi Story : पूरे महल्ले में यही सुगबुगाहट थी कि करीम की बेटी खुशबू का निकाह है, वह भी उस की बाप की उम्र के हमीदुल्ला मास्टर के साथ.

जब खुशबू को यह बात पता चली थी कि उस की शादी एक 50 साल के बूढ़े के साथ तय हो गई है, उस दिन वह पूरी रात रोई थी, लेकिन उस के बाद वह खामोश ही रही. वह सम झ चुकी थी कि बूढ़ा शौहर ही उस का नसीब है.

इस के बाद खुशबू एक जिंदा लाश में बदल गई थी, जो केवल देख और सुन सकती थी, लेकिन बोल नहीं सकती थी.

लेकिन इस रिश्ते का विरोध उस की अम्मी ने उस के अब्बू से किया था, मगर खुशबू ने खुद ही अम्मी को चुप करा दिया था.

खुशबू के अब्बू फलों का ठेला लगाते थे, जिसे बेच कर उन्हें मुश्किल से दो वक्त का खाना मिल पाता था, जिस के चलते खुशबू भी पड़ोस की शाहीन खाला के यहां से कढ़ाई करने के लिए साड़ी वगैरह ले आती थी, जिस से उसे भी कुछ पैसे मिल जाते थे और वह अपनी जरूरतें उन्हीं से पूरी कर लेती थी.

लेकिन इधर कुछ दिनों से खुशबू के अब्बू की तबीयत ठीक नहीं थी. सही से इलाज न होने के चलते वे धीरेधीरे बिस्तर से लग गए और फिर तो भूखों मरने की नौबत आ गई.

यह सब देख कर खुशबू की अम्मी आसपास के घरों में चौकाबरतन करने लगी थीं, जिस से अब्बू की दवा और जैसेतैसे घर का खर्च चलने लगा था.

खुशबू खूबसूरत ही नहीं, जहीन भी थी. उस ने घर पर रह कर ही अपनी सहेली गुलशन की मदद से हिंदी में भी पढ़नालिखना सीख लिया था. सभी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे.

पहले तो खुशबू के अम्मीअब्बू को लगता था कि उन की बेटी को कोई न कोई रिश्तेदार अपना ही लेगा. अम्मी ने खाला के यहां उस के रिश्ते की बात चलाई थी, लेकिन उस की खाला ने अम्मी से साफ इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें ऐसी बहू चाहिए थी, जो ढेर सारा दहेज ले कर आए.

अब्बू ने भी खुशबू के रिश्ते के लिए कई जगह कोशिश की थी, लेकिन उन के हालात को देख कर सब ने इनकार कर दिया था. आसपड़ोस और उस के ददिहाल वाले रमजान में हर रोजाइफ्तारी भिजवा कर सवाब कमाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे.

ऐसे ही एक बार ईद पर जब खुशबू के चाचा और बड़े अब्बू 5,000 रुपए फितरा व जकात निकाल कर उस के घर देने पहुंचे थे, तो अम्मी का गुस्सा फट पड़ा था और अम्मी ने जम कर चाचा और बड़े अब्बू को खरीखोटी सुनाई थी और रुपए भी उन के मुंह पर फेंक दिए थे.

अम्मी का गुस्सा देख कर खुशबू के चाचा और बड़े अब्बू चुपचाप वहां से चले गए थे.

खुशबू ने अम्मी को पहली बार इतने गुस्से में देखा था. लेकिन वह जानती थी कि अम्मी को मेहनतमजदूरी करना मंजूर है, लेकिन ऐसी मदद उन को नागवार थी.

ऐसे ही एक दिन जब अब्बू की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी, तब अम्मी ने सब रिश्तेदारों के पास जा कर 500 रुपए उधार मांगे थे, लेकिन किसी के पास से एक रुपया भी नहीं निकला था, जबकि सभी के अच्छेखासे कारोबार चल रहे थे.

तब खुशबू के अब्बू के एक दोस्त रमेश चाचा ने खुद ही घर पहुंच कर अम्मी को रुपए दिए थे और आगे किसी चीज की जरूरत पड़ने पर बेझिझक कहने के लिए बोल कर गए थे.

खुशबू की अम्मी अकसर कहा करती थीं, ‘‘खुशबू के लिए कोई ऐसा लड़का ही मिल जाए, जो मजदूरी करता हो, कम से कम वह दो वक्त की रोटी तो उसे खिला सकेगा.’’

पिछले दिनों महल्ले में ही शहरुद्दीन के एक रिश्तेदार हमीदुल्ला मास्टर आए हुए थे, जो अच्छेखासे पैसे वाले थे. उन का चूडि़यों का थोक का कारोबार था. एक दिन वे महल्ले के लोगों के साथ बैठ कर बातें कर रहे थे.

‘‘मास्टर साहब, और बताइए कि घर के हालचाल कैसे हैं?’’ मोबिन मियां ने मास्टर साहब से पूछा.

‘‘क्या बताएं मोबिन मियां, औरत के बिना घर कोई घर होता है. जब से रजिया का इंतकाल हुआ है, तब से सबकुछ बदल गया है. घर तो जैसे काटने को दौड़ता है,’’ हमीदुल्ला मास्टर मायूस हो कर बोले.

‘‘मास्टर साहब, आप करीम की लड़की खुशबू से निकाह कर लें,’’ वहां बैठे साजिद ने सलाह दी.

‘‘हां, बेचारा करीम बहुत ही गरीब है और फिर वह आएदिन बीमार ही रहता है. एक ही लड़की है, वह भी जवान हो गई है. उस के पास तो देने के लिए कुछ है भी नहीं और फिर बिना दहेज के उस की शादी होने से रही.

‘‘अगर साबिहा भाभी चौकाबरतन न करने जाएं, तो दो वक्त का खाना भी नसीब न हो,’’ मास्टर साहब कुछ बोलते, इस से पहले ही वहां बैठे नबीरुल ने अपनी बात रखी.

‘‘आप का भी घर बस जाएगा और बेचारे करीम और साबिहा के सिर का बो झ भी हट जाएगा,’’ मोबिन मियां ने भी मास्टर साहब से कहा.

‘‘आप लोगों के भी तो लड़के जवान होंगे, आप लोग करीम की बेटी को बहू बना कर क्यों नहीं ले आते?’’ मास्टर साहब धीरे से बोले.

‘‘आप अगर निकाह कर लेंगे, तो बेचारी खुशबू की जिंदगी सुधर जाएगी. बचपन तो गरीबी में कट गया, कम से कम जवानी में तो अच्छा खा और पहन लेगी,’’ नबीरुल ने मास्टर साहब की बात अनसुनी कर उन पर दबाव डालते हुए कहा.

‘‘अच्छा, ठीक है. लेकिन क्या वह लड़की निकाह के लिए राजी हो जाएगी?’’ मास्टर साहब ने सवाल किया. ‘‘अरे, मास्टर साहब, गरीब की लड़की की जबान कहां होती है. बस, आप हां करें, बाकी हम पर छोड़ दें,’’ मोबिन मियां ने कहा.

‘‘चलिए, तो फिर लड़की भी दिखा दीजिए. आए हैं तो रिश्ते की बात भी कर ली जाए,’’ मास्टर साहब बोले.
इस के बाद वे सभी करीम के घर की ओर चल दिए.

‘‘हमीदुल्ला मास्टर तुम्हारी लड़की से निकाह करना चाहते हैं. उन की बीवी का इंतकाल… और रोटीपानी के लिए भी परेशानी होती है, इसलिए वे दोबारा घर बसाना चाहते हैं,’’ करीम के घर पहुंचते ही मोबिन मियां ने कहा.

‘‘आप को कोई एतराज तो नहीं है?’’ हमीदुल्ला मास्टर ने करीम से पूछा.

‘‘मु झे क्या एतराज हो सकता है. आप चाहें तो आज ही खुशबू से निकाह कर अपने साथ ले जाएं,’’ करीम धीरे से बोला.

‘‘ठीक है, आने वाली 15 तारीख को 8-10 लोगों को ला कर निकाह पढ़वा कर ले जाऊंगा तुम्हारी लड़की को. और हां, इस में जो भी खर्च आएगा, वह मैं आप को घर पहुंचते ही भिजवा दूंगा,’’ हमीदुल्ला मास्टर करीम से बोले.

‘‘मास्टर साहब, आप परेशान न हों. निकाह का सारा इंतजाम मैं करवा दूंगा,’’ मोबिन मियां ने मास्टर साहब से कहा.

‘‘और खाने का इंतजाम मैं कर दूंगा,’’ नबीरुल बोले.

जल्द ही निकाह का दिन भी आ गया. खुशबू अपने अम्मीअब्बू को देख रही थी, जिन के चेहरों पर न खुशी दिखाई दे रही थी और न गम, बस यही लग रहा था कि वे अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे थे.

खुशबू दुलहन बनी बैठी थी, लेकिन शादी जैसा कुछ लग ही नहीं रहा था. सहेलियां भी उस से किसी तरह की छेड़छाड़ या फिर किसी तरह का मजाक करने की हिम्मत नहीं कर रही थीं.

‘‘बरात आ गई,’’ गाडि़यों की आवाज सुन कर खुशबू की एक सहेली नजमा बोली और बाकी सभी सहेलियां बरात देखने के लिए उस के कमरे से बाहर चली गईं.

खुशबू ने एक बार फिर एक नजर आईने पर डाल कर खुद को देखा. वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. लेकिन क्या फायदा ऐसी खूबसूरती का, जो उसे एक अच्छा शौहर न दिला सके.

बाहर 2 गाडि़यां करीम के दरवाजे पर आ कर रुकीं और गाड़ी से शेरवानी पहने हमीदुल्ला मास्टर और 4-5 लोग बाहर आए. उन के साथ मौलाना साहब भी थे, जिन्हें शायद मास्टर साहब निकाह पढ़वाने के लिए लाए थे.

बरात आने की खबर मिलते ही आसपड़ोस की औरतें और बच्चे अपनेअपने घरों से बाहर आ गए. सब को यही उत्सुकता थी कि क्या खुशबू इस निकाह से राजी है भी या नहीं?

‘‘आइए मास्टर साहब, आप लोग उधर चलिए,’’ मोबिन मियां ने सलाम कर मास्टर साहब से एक ओर इशारा करते हुए चलने की गुजारिश की.

‘‘अरे, रुकिए तो मोबिन मियां, अभी दूल्हे मियां और उन के दोस्तों को तो आने दीजिए,’’ मास्टर साहब हंसते हुए बोले.

‘‘मैं कुछ सम झा नहीं,’’ मोबिन मियां ने हैरानी से मास्टर साहब से पूछा.

मास्टर साहब कुछ बोलते, इस से पहले ही एक और कार वहां आ कर रुकी. कार फूलों से सजी हुई थी और उस में से सेहरा पहने हुए एक नौजवान गाड़ी से बाहर आया और उस के साथ 4 दोस्त और बाहर निकले.

‘‘दूल्हे मियां आ गए. चलिए, मोबिन मियां, अब कहां चलना है?’’ मास्टर साहब हंसते हुए बोले.

‘‘यह सब क्या है?’’ मोबिन मियां ने पूछना चाहा. वहां खड़े बाकी लोग भी हैरान थे कि यह क्या माजरा है.

‘‘यह मेरा बेटा समीर है और मैं अपनी शादी की नहीं, बल्कि अपने बेटे की शादी की बात कर रहा था. आप लोगों को क्या लगा कि इस बुढ़ापे में मैं अपनी शादी करता? मु झे बहू चाहिए थी, जो मेरे परिवार को सही से चला सके. दहेज का न मु झे लालच है और न ही मेरे बेटे को,’’ मास्टर साहब बोले.

उधर नौजवान दूल्हे को देख कर चारों ओर हलचल मच गई थी कि खुशबू का दूल्हा कोई बूढ़ा नहीं, बल्कि एक बांका जवान है.

आसपड़ोस के लोग तो खुश हुए, पर बहुत से दुखी नजर आ रहे थे कि इस गरीब की बेटी की तो किस्मत ही खुल गई, क्योंकि लड़का बड़ा ही हैंडसम था.

जब यह बात खुशबू को पता चली, तो खुशी से उस की आंखों में आंसू आ गए. उस ने देखा कि उस की अम्मी और अब्बू के चेहरे भी खुशी से खिल उठे थे.

Hindi Story : प्यासा बदन

Hindi Story : काली घटा छाई हुई थी. बारिश ने अपना कहर ढा रखा था. रिहाना अपने दोनों बच्चों को चादर से ढक चुकी थी, क्योंकि ठंडे मौसम की वजह से वे जल्दी सो गए थे.

रिहाना हाल में बैठी टैलीविजन पर एक हिंदी फिल्म देख रही थी, जिस में एक रोमांटिक सीन ने उस के तनबदन में आग लगा दी थी.

यह मौसम तो शौहर की बांहों में लेट कर फिल्म का मजा लेने का था, पर रिहाना का शौहर फरमान तो सऊदी अरब में था. वह वहां किसी नामी कंपनी में इंजीनियर था.

पहले तो फरमान हर 11 महीने में भारत वापस आ जाता था और एक महीना रिहाना के साथ गुजार कर लौट जाता था. पर जैसेजैसे वक्त बीतता गया, उस ने भी आने में कईकई साल लगा दिए थे.

शादी के 4 साल में ही रिहाना 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, पर उस का बदन आज भी मर्द की प्यास से अधूरा था.

रिहाना ने अपने शौहर फरमान से कई बार कहा भी था कि अब तो काफी पैसा कमा लिया है, यहीं कोई कामधंधा शुरू कर लो… या जल्दीजल्दी घर आ जाया करो, पर फरमान हर बार यही कह कर टाल जाता था कि कुछ समय के बाद वह भारत में ही शिफ्ट हो जाएगा और अपने बीवीबच्चों के पास ही रहेगा, पर ऐसा हो न सका.

अब रिहाना की उम्र 30 साल के पार हो चुकी थी, पर आज भी वह 20 साल के करीब ही लगती थी. गोरा बदन, बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख गाल और गुलाबी होंठ के साथ ऊंचे उठे उभार उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे.

रिहाना जब भी बाजार जाती थी, तो मनचलों की सांसें थम जाती थीं. महल्ले के कई नौजवान उस के पीछे पड़े थे, पर वह किसी को घास नहीं डालती थी. हां, आसपड़ोस के बच्चों को वह बहुत प्यार करती थी.

यही वजह थी कि रिहाना के घर अकसर काफी बच्चे टैलीविजन देखने आ जाते थे, क्योंकि आसपड़ोस में किसी के यहां टैलीविजन नहीं था.

रिहाना उन बच्चों से अकसर घर के साथसाथ बाहर का भी कुछ काम करा लेती थी, जैसे कुछ सामान लाना, रिहाना के छोटे बच्चों को खिलाना. इस से उसे काफी आराम भी मिल जाता था.

बच्चे रिहाना को ‘चाची’ कह कर पुकारते थे और उस के घर हमेशा बच्चों का तांता लगा रहता था.

रिहाना के पड़ोस से असलम अकसर उस के घर टैलीविजन देखने आता था. उस की उम्र 15 साल के आसपास थी. अच्छी कदकाठी के साथसाथ वह देखने में भी हैंडसम था.

तेज आंधी चलने की वजह से बिजली जा चुकी थी. सब बच्चे अपनेअपने घर चले गए थे, पर असलम रिहाना के बच्चों को गोद में ले कर खिला रहा था.

रिहाना रसोईघर में थी कि अचानक तेज हवा के साथ बारिश भी शुरू हो गई.

असलम ने रिहाना के एक बच्चे को गोद में ले रखा था, जिस की उम्र महज 3 साल थी और वह रिहाना को आज कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा था.

कुछ देर तक असलम के साथ खेलतेखेलते दोनों बच्चे सो गए, तो असलम रिहाना से बोला, ‘‘लगता है, आज बारिश नहीं रुकेगी. दोनों बच्चे भी सो गए हैं. मु झे भूख भी लग रही है. मैं अपने घर चला जाता हूं.’’

रिहाना ने कहा, ‘‘तू अभी यहीं रुका रह. बारिश रुकेगी तो चले जाना और खाना यहीं खा ले.’’

असलम ने कहा, ‘‘ठीक है चाची.’’

तभी लाइट आ गई और असलम हाल में जा कर टैलीविजन देखने लगा. अभी भी बारिश नहीं रुकी थी और असलम को तो टैलीविजन देखने का बहुत शौक था. वह कईकई घंटे रिहाना के घर में गुजार देता था.

तभी रिहाना के फोन की घंटी बजी.

उधर से फरमान की आवाज आई, ‘कैसी हो जानू?’

‘‘तड़प रही हूं तुम्हारी याद में… कब आओगे तुम इस प्यासे जिस्म की प्यास बु झाने… अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता,’’ रिहाना बोली.

फरमान ने कहा, ‘जानू, मैं जल्दी ही तुम्हारे पास जाऊंगा, फिर कहीं नहीं आऊंगा तुम्हें छोड़ कर.’

रिहाना बोली, ‘‘आऊंगाआऊंगा यही कहतेकहते 3 साल तो हो गए, पर तुम अभी तक नहीं आए.’’

फरमान ने कहा, ‘अब की बार मैं आऊंगा, तो तुम्हारे जिस्म के एकएक अंग को चूमते हुए तुम्हारी सारी प्यास बुझा दूंगा.’

रिहाना ने कहा, ‘क्यों वहां बैठ कर ऐसी बातें कर रहे हो…? क्यों मेरे बदन में शोले भड़का रहे हो…? अभी फोन रखो. तुम तो बातों से ही मेरे प्यासे बदन की प्यास बु झाने का ख्वाब देख रहे हो.’

फरमान ने कहा, ‘ठीक है, तुम सो जाओ. अब मेरा भी दिल तुम से बातें कर के मचल रहा है,’ और उस ने फोन रख दिया.

रिहाना हाल में आ कर सोफे पर बैठ कर बड़े ध्यान टैलीविजन देखने लगी. आज असलम और वह अकेले टैलीविजन देख रहे थे. फिल्म में एक सैक्सी सीन चल रहा था, जिसे देख कर रिहाना के तनबदन में सैक्स की भावना उथलपुथल मचा रही थी.

तभी रिहाना ने असलम से कहा, ‘‘तुम्हें ठंड लग रही होगी. तुम यहां सोफे पर मेरे पास आ कर बैठ जाओ और यह चादर ओढ़ लो.’’

असलम रिहाना के करीब जा कर एक ही चादर में बैठ गया. फिल्म के रोमांटिक सीन ने रिहाना को बेकाबू कर रखा था, तो उस ने अपने बदन को असलम के बदन से सटा दिया और उस का एक हाथ अपने हाथ में पकड़ कर अपने उभारों पर रख दिया.

असलम पहले तो काफी हिचकिचाया, चूंकि वह भी अपनी जवानी की दहलीज पर था, इसलिए उस का बदन भी हरकत करने लगा. उसे शर्म के साथसाथ मजा भी आ रहा था. यही वजह थी कि रिहाना की पहल से उस के अंदर भी हिम्मत आ गई और वह अपना हाथ रिहाना के उभारों पर फेरने लगा.

रिहाना ने फौरन अपनी कमीज उतार दी और असलम के हाथ को अपनी ब्रा के अंदर डाल दिया.

असलम ने हिम्मत कर के रिहाना की ब्रा का हुक खोल दिया. असलम की इस हरकत से रिहाना और मस्त हो उठी. उस ने देखते ही देखते असलम के बदन से उस के कपड़ों को आजाद कर दिया.

असलम अब जोश में आ चुका था. उस ने भी रिहाना के नीचे के हिस्से के कपड़े उतार दिए. अब वे दोनों चादर के अंदर एकदूसरे के बदन को सहलाने लगे.

रिहाना सोफे पर लेट गई, तो असलम ने अपने होंठ उस के होंठों पर रख दिए और चूमने लगा.

रिहाना भी असलम के बदन पर चुम्मों की बौछार करने लगी. वह पूरी तरह मस्त हो उठी थी और असलम को अपने ऊपर खींचने लगी.

कुछ ही देर में रिहाना असलम से बोली, ‘‘अब तुम मु झे वह खुशी भी दे दो, जिस के लिए मैं कई सालों से तड़प रही हूं.’’

असलम रिहाना के बदन पर आ गया और उस पर छाने लगा. बेशक, वह जोश में था, पर उस ने अपना होश नहीं खोया. अब उस ने रिहाना के बेकाबू जिस्म पर कब्जा करना शुरू कर दिया.

रिहाना बोली, ‘‘मैं तो तुम्हें बच्चा सम झ रही थी, पर तुम तो बड़ों के भी बाप निकले.’’

रिहाना असलम से चिपट गई. वह आज भरपूर प्यार पाना चाहती थी. असलम ने उसे निराश नहीं किया. थोड़ी ही देर में रिहाना असलम के सामने ढेर हो गई. उस का बदन अब ढीला पड़ चुका था, पर असलम उसे फिर से जोश में लाना चाहता था.

काफी देर तक असलम रिहाना के बदन को सहलाता रहा. रिहाना फिर से जोश में आ गई.

‘‘अरे बाप रे, जिसे मैं बच्चा सम झ रही थी, उस ने तो मेरे छक्के छुड़ा दिए. कहां से आई तुम्हारे अंदर इतनी ताकत…?’’ हैरानगी से भरी रिहाना ने असलम से पूछा.

असलम ने कहा, ‘‘आप भी बस यों ही घबरा रही हो. मैं कुछ अलग कर रहा हूं क्या…’’

रिहाना बोली, ‘‘तुम ने तो मेरे बदन का जोड़जोड़ ढीला कर दिया है.’’

असलम ने आज पहली बार किसी औरत के साथ सैक्स किया था, जिस का उसे एक नया मजा मिल रहा था.

आज रिहाना के प्यासे बदन की प्यास असलम ने इस शिद्दत से मिटाई कि वह असलम की दीवानी हो गई और बोली, ‘‘तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो, तो मुझे बता देना.’’

अब रिहाना असलम का खास खयाल रखती थी और उस का जब भी मन करता, असलम से अपने प्यासे बदन की प्यास बुझाती थी.

रिहाना तो अब यही सोचती थी कि उस का शौहर फरमान अब सऊदी अरब में ही रहे, ताकि वह असलम से मनमाना प्यार हासिल करती रहे.

Hindi Story : सौतन बनी सहेली

Hindi Story : ‘‘चंदा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं जी नहीं सकूंगा,’’ मनोज ने चंदा से कहा.

‘‘पर, मेरे मांबाबूजी तो कभी इस शादी के लिए राजी नहीं होंगे, क्योंकि उन का कहना है कि तू नशा करता है और पूरे गांव में आवारागर्दी करता है,’’ चंदा बोली.

‘‘मैं नशा करता हूं तो तेरी याद में दुखी हो कर करता हूं. अगर आवारागर्दी करता हूं, तो तेरी याद में पागल बन कर… तू मुझे नहीं मिली तो मैं तो दुनिया ही छोड़ जाऊंगा,’’ मनोज ने आंखों में आंसू लाने का नाटक करते हुए कहा.

कुछ इसी तरह की मीठीमीठी बातें कर के मनोज ने चंदा को अपनी बातों में फंसा लिया था और उसे इस बात का भरोसा दिलाया दिया कि दोनों भाग कर शादी कर लेंगे और जब मांबाबूजी का गुस्सा शांत हो जाएगा, तो वापस आ कर माफी मांग लेंगे.

चंदा भी मनोज की बातों में आ गई और एक रात उन दोनों ने गांव से भाग जाने का फैसला किया.

यह कौन सा शहर था, चंदा को नहीं मालूम था. वह तो बस मनोज पर यकीन कर के ही उस के साथ चली आई थी.

चंदा को ले कर मनोज एक बड़े से मकान में पहुंचा. उस कमरे में जरूरत की सारी चीजें पहले से ही मौजूद थीं.

मनोज ने चंदा को बताया कि उन दोनों को आज ही मंदिर में शादी करनी होगी और इस के लिए उसे बाजार जा कर जरूरी सामान लाना होगा.

मनोज के बाहर जाने के बाद चंदा वहीं पड़े एक बिस्तर पर लेट गई और उस की आंख लग गई.

जब थोड़ी देर बाद चंदा की आंख खुली, तो कमरे में मनोज कहीं नहीं दिखाई दिया. कोने में एक आदमी बैठा हुआ था, जो उसे खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था.

एक अजनबी को इस तरह से घूरता हुआ देख कर चंदा घबरा उठी.

‘‘कौन हो तुम? मनोज कहां है?’’ कहते हुए चंदा हकला रही थी.

‘‘मेरा नाम राज है… उस ने कुछ बताया नहीं तुझे क्या?’’ चालबाजी से मुसकराते हुए राज ने पूछा.

‘‘मुझे मेरे पति के पास जाना है,’’ चंदा की घबराहट अब बढ़ने लगी थी.

‘‘अब उसे भूल जा… वह तो तुझे मेरे हाथों बेच गया है… और बदले में 2 लाख रुपए ले कर गया है,’’ राज ने कहा.

राज की बातें सुन कर चंदा चीखने लगी, ‘‘मेरा मनोज कहां है… मुझे वहीं पहुंचा दो.’’

राज इलाके का एक रसूख वाला आदमी था. चंदा का चीखना और रोना सुन कर उस को गुस्सा आ रहा था. वह उठा और चंदा को मारने की गरज से उस ने हाथ उठाया ही था कि तभी कमरे में एक बूढ़ी औरत आई, वे राज की मां थीं, ‘‘अरे राज, तू इसे छोड़ दे… मैं समझाती हूं इसे.

‘‘देख लड़की… अब मेरा बेटा राज ही तेरा पति है और जिसे तू अपना पति कह रही है न, वह आदमी ही तुझे यहां आ कर बेच गया है.’’

बूढ़ी की बात सुन कर चंदा को भरोसा नहीं हो रहा था. वह सहम रही थी.

‘‘अब डरने से काम नहीं चलेगा लड़की… जैसा मैं कहती हूं वैसा करती चल, रानी बन कर राज करेगी यहां पर.’’

थोड़ा रुक कर फिर उस बूढ़ी मां ने बोलना शुरू किया, ‘‘देख, सचाई यह है कि मेरी बहू बच्चा पैदा नहीं कर पा रही है. वह दुष्ट हमारे घर को जायदाद का वारिस नहीं दे पाई है… इसलिए हमें एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो हमारे ठाकुर खानदान को वारिस दे सके… अब तू आसानी से मान गई तो ठीक… नहीं तो हम मजबूर हो जाएंगे… समझी…

‘‘इस इलाके में औरतों की तादाद मर्दों के मुकाबले वैसे भी बहुत कम है, इसलिए यहां तो केवल मेरा बेटा ही तेरे साथ संबंध बनाएगा और वे सारे सुख देगा, जो ये अपनी असली पत्नी को देता है. तू ने अगर भागने की कोशिश की, तो बाहर कितने लोग तेरा बलात्कार करेंगे… तू गिन भी नहीं पाएगी.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता… तुम लोग झूठ बोल रहे हो. मुझे मनोज के पास जाना है,’’ चंदा चीख रही थी.

‘‘हां… हां… चली जाना अपने मनोज के पास. एक बात कान खोल कर सुन ले… हमें भी तुम्हारी जरूरत नहीं है… हमें एक लड़का दे दे और फिर चली जाना यहां से,’’ राज गुस्से में बोल रहा था.

उस की बातें सुन कर चंदा कमरे में इधरउधर भागने लगी.

‘‘यह ऐसे नहीं मानेगी राज… ऐसा कर इसे रस्सियों में बांध कर डाल दे… कुछ दिनों में ही इस का दिमाग सही हो जाएगा,’’ बूढ़ी ने कहा.

राज ने एक रस्सी मंगवा कर चंदा को बिस्तर के पाए से बांध कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और चंदा को 2 दिन का समय सोचविचार करने के लिए दिया.

चंदा कमरे में बंधी हुई सिसकती रही, उसे क्या पता था कि किसी से प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी, आज उसे पछतावा हो रहा था.

पूरे 24 घंटे हो चुके थे. चंदा ने कुछ भी नहीं खाया था. अचानक कमरे का दरवाजा खुला, चंदा किसी के आने की बात सोच कर अंदर तक दहल गई थी… उस ने अपनेआप को और भी समेट लिया था.

‘‘सुनो… कुछ खा लो… ऐसे कब तक पड़ी रहोगी,’’ यह एक औरत की आवाज थी. आवाज सुन कर चंदा ने आंखें ऊपर की, तो देखा कि एक खूबसूरत औरत सिर पर पल्ला डाले, हाथों में खाने की थाली लिए उस के सामने खड़ी है. चंदा समझ गई कि ये राज की पत्नी है.

‘‘मेरा नाम मंजुला है और तुम्हें मुझ से डरने की जरूरत नहीं है. हालांकि मेरे आदमी को अपने बस में कर के तुम मेरी सौत बन सकती हो, लेकिन फिर भी मैं तुम्हें खाना खिलाने आई हूं.’’

राज की पत्नी ने चंदा के बंधनों को खोला और चंदा के हाथमुंह को साफ किया.

‘‘ये कुछ कपड़े लाई हूं… चाहो तो नहा कर इन्हें पहन सकती हो और फिर खाना खा लो.’’

‘‘आप मुझे इतना बता दीजिए कि अगर मेरी जगह आप होतीं तो क्या आप खानापीना खा सकती थीं? अगर आप ने किसी से प्यार किया होता और वे आप को धोखा दे दे तो आप को कैसा लगता?’’

‘‘देखो, मैं यहां बरसों से हूं और मैं यहीं कहूंगी कि जो तुम से कहा जा रहा है उसे मान लो, क्योंकि तुम्हारे रोने का कोई भी असर इन पर नहीं होने जा रहा है,’’ मंजुला ने चंदा को समझाते हुए कहा.

पर फिर भी चंदा को मंजुला की बातें समझ नहीं आ रही थीं. उसे तो लग रहा था कि एक बार अगर वह यहां से भागने में कामयाब हो गई, तो सीधा अपने गांव जा कर मांबाबूजी से माफी मांग लेगी.

पर शायद यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था, कुछ दिन बीतने के बाद राज की मां फिर से उस कमरे में आईं. उन के साथ में राज भी था.

‘‘सुन लड़की, जा कर नहाधो ले और साजसिंगार भी कर ले. वैसे तू सिंगार नहीं भी करेगी तो भी कोई असर नहीं पड़ने वाला है… और बेटे राज, तू आखिर किस दिन का इंतजार कर रहा है… अब समय आ गया है तुझे अपनी मर्दानगी साबित करनी होगी… दिखा दे दुनिया को, मेरा बेटा राज भी एक बेटा पैदा करने की ताकत रखता है.’’

राज को मानो इसी बात का इंतजार था. चंदा के लाख हाथपैर पटकने के बाद भी राज ने दरवाजा बंद किया और एकएक कर के चंदा के सारे कपड़े उतार फेंके और उस के अनछुए बदन को अपने बदन से रगड़ने लगा और उस का बलात्कार किया.

1-2 बार नहीं, बल्कि पूरे महीने तक, बिना नागा किए हुए राज चंदा के साथ बलात्कार करता रहा.

चंदा रोती रही और बलात्कार का शिकार होती रही, पर उस का रोना सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

एक दिन राज की मां चंदा के कमरे में आईं. उन के साथ एक डाक्टर भी थी.

‘‘इसे चैक कर के बताओ कि यह पेट से हुई भी है कि नहीं.’’

डाक्टर अपने काम में लग गई और चंदा के कुछ सैंपल ले कर उन की जांच की. कुछ देर बाद डाक्टर ने चंदा के पेट से होने की सूचना दी.

राज को यह बात पता चली, तो वह खुशी से फूला न समाया. आज उसे अपनी मर्दानगी पर बड़ा घमंड हो रहा था और उस ने मान लिया था कि औरत बदलने से वह बेटे का बाप बन जाएगा.

चंदा पेट से क्या हुई, उस के कमरे में सूखे मेवे, फल का अंबार लगा दिया गया. किसी चीज की कोई कमी नहीं रहने दी गई चंदा के आसपास.

राज और उस की मां रोज आते और चंदा के पेट पर नजर डालते और इशारोंइशारों में ही खुश होते.

एक दिन सुबह से ही चंदा की खूब आवभगत हो रही थी, क्योंकि राज उसे अपने साथ ले कर पास के अस्पताल में ले जा रहा था.

राज वहां जा कर चंदा के पेट में पल रहे भ्रूण के लिंग की जांच कराता और अगर चंदा के पेट में लड़की पल रही होती तो उस का पेट गिरा देता.

अपनी कार में चंदा को ले कर बहुत खुशी के साथ वह अस्पताल पहुंचा था, पर उस की खुशी तब काफूर हो गई जब उसे पता चला कि चंदा के पेट में लड़की पल रही है.

‘‘मेरे तो सारे पैसे बरबाद हो गए, मां, इस औरत के पेट में लड़की पल रही है… लगता है, मेरी किस्मत में ही एक बेटे का सुख नहीं है,’’ रोने लगा था राज.

‘‘अरे, तू चिंता क्यों करता है… इस बार पेट में लड़की आ गई तो क्या… तू फिर से कोशिश कर, थोड़ा और बादाम खिला… और मुझे पोते का मुंह दिखवा दे… अभी भी रास्ता बंद नहीं हुआ है. इसे अस्पताल ले जा और बच्चा गिरवा दे.’’

राज की बीवी मंजुला ने मांबेटे में होने वाली बातें चुपके से सुन ली थीं. उस के कदम चंदा के कमरे की तरफ बढ़ चले.

चंदा कमरे में अपने सिर को पैरों में डाल कर बैठी थी. उस की सूनी आंखों में जीवन खत्म होता हुआ सा दिख रहा था.

मंजुला चंदा के करीब जा कर उसे पुचकारने लगी.

‘‘मुझे इस दर्द में देख कर तुम्हें तो बहुत ही अच्छा लग रहा होगा न, तुम तो ठहरी ठकुराइन, भला तुम मेरे दर्द को क्या समझोगी, आखिरकार तुम कैसी औरत हो?’’ चंदा का दुख अंदर से उमड़ पड़ा रहा था.

‘‘नहीं, मुझे तुम गलत मत समझो… जब भी मैं पेट से होती हूं, ये लोग मैडिकल जांच करा कर पेट में लड़का या लड़की होने का पता लगा लेते हैं. अगर लड़की होती है, तो मेरा बच्चा गिरवा देते हैं. मेरी सास और मेरे पति ने मिल कर मेरा 2 बार बच्चा गिरवाया है. बेटा न पैदा कर पाने के लिए मुझ पर कितना जुल्म ढाया है, इन लोगों ने वह मैं जानती हूं… मैं तो खुद ही अभागी हूं,’’ मंजुला की आंखों में भी नमी थी.

‘‘तो फिर तुम ने आवाज क्यों नहीं उठाई… या फिर तुम ने भागने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ चंदा ने पूछा.

‘‘यहां से तो भागना मुमकिन नहीं है, क्योंकि आसपास के इलाके में राज के आदमी फैले हुए हैं, जो उस के इशारे पर कुछ भी कर सकते हैं.

‘‘मैं ने आवाज उठाई, तो मुझ पर कई तरह के जुल्म किए गए… और जब ये लोग मुझे शहर के एक अस्पताल में मेरा पेट गिरवाने ले गए, तब मैं बहाने से वहां के टौयलेट में गई… और मैं भागने की जगह तलाशने लगी… वहां खिड़की में लगे शीशे को सावधानी से हटा कर बाहर का रास्ता मिल सकता था और मैं ने वही किया, पर जैसे ही मैं पास ही बने एक पुलिस चौकी में पहुंचने वाली थी कि मेरे पति राज ने मुझे पकड़ लिया और मारते हुए घर ले आए… तब से ले कर आज तक मैं यहीं कैद हो कर रह गई हूं,’’

सिसकियों में टूट गई थी मंजुला.

चंदा ने उसे पानी पीने को दिया. मंजुला कुछ देर चुप रहने के बाद बोली, ‘‘ये लोग तुम्हें भी अस्पताल ले जा कर तुम्हारा बच्चा गिरवाने की कोशिश करेंगे… मुमकिन है कि यह वही अस्पताल हो, जहां मुझे ले जाया गया था. तुम टौयलेट में जा कर खिड़की के शीशे देखना. अगर तुम्हें लगे कि इन्हें हटा कर भागने में मदद मिल सकती है, तो तुम वहां से भाग जाना… पर मेरी तरह टौयलेट जाने का बहाना मत बनाना नहीं, तो इन्हें शक हो सकता है.

‘‘बेहतर होगा कि तुम किसी और बहाने से ऐसी जगह पहुंचो, जहां से बाहर भाग सको. बस तुम्हारी रिहाई का यही रास्ता है,’’ मंजुला ने चंदा को बताया.

मंजुला गलत नहीं थी. कुछ देर बाद ही राज चंदा को ले कर अस्पताल जाने के लिए रवाना हो गया.

अस्पताल में चंदा का बच्चा गिरवाया जाना था, पर चंदा सावधान थी. उस ने नर्स से उलटी आने की बात कही. नर्स ने उसे बाथरूम दिखा दिया. यह वही अस्पताल था, जहां मंजुला को पहले लाया गया था.

अंदर जा कर चंदा ने देखा कि खिड़की के शीशे को हटा कर भागा जा सकता है, पर ऐसा करने में बेहद सावधानी की जरूरत थी. कांच के टूटने की आवाज सुन कर बाहर बैठे राज को किसी भी तरह का शक हो सकता था, पर अपने ऊपर तरहतरह के जुल्मों की शिकार चंदा कोई भी रिस्क उठाने को तैयार थी.

उस ने शीशे हटा कर खिड़की में इतनी जगह बना ली थी, जिस में से वह बाहर निकल सकती थी. आखिरकार उस की कोशिश कामयाब हुई और खिड़की से बाहर आ कर उस को एक नई ताजगी का अहसास हुआ.

बाहर निकल कर चंदा सीधे पुलिस चौकी पहुंची और राज और उस की मां के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई.

पुलिस राज के घर पहुंची और राज और उस की मां को गिरफ्तार कर लिया.

‘‘पर इंस्पैक्टर साहेब… इस बात का क्या सुबूत है कि मैं ने इस लड़की पर जुल्म किए हैं. इस के पेट में पल रहा मेरा बच्चा ही है,’’ राज तेज आवाज में बोल रहा था.

‘‘मैं देती हूं सुबूत आप को इंस्पैक्टर साहब,’’ मंजुला सामने से आती दिखाई दी. उसे इस रूप में इस तरह से बात करते हुए देख कर राज का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां… मैं हूं गवाह… चंदा पर हुए हर जुल्म और सितम का… और न केवल चंदा पर, बल्कि मुझ पर भी इन लोगों ने एक लड़के की चाहत में अनगिनत जुल्म किए हैं… गिरफ्तार कर लीजिए इन को.’’

पुलिस ने राज और उस की मां को गुनाह साबित होने के बाद जेल भेज दिया.

उस के बाद पुलिस ने मनोज की खोज शुरू की और जल्द ही पुलिस ने पाया कि मनोज लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर भगा कर कहीं और ले जाता और बाद में उन्हें बेचने का काम बड़े पेशेवर ढंग से करता था.

पुलिस ने मनोज को पकड़ कर जेल भेज दिया.

प्यार में एक बार धोखा खाने के बाद चंदा ने फिर कभी किसी दूसरे मर्द पर भरोसा नहीं किया…

हां… मंजुला ने उस की सौतन से उस की सहेली बन कर उस का यकीन जिंदगीभर के लिए हासिल कर लिया था.

Hindi Story : शगुन का नारियल

Hindi Story : ‘‘दिमाग फिर गया है इस लड़की का. अंधी हो रही है उम्र के जोश में. बापदादा की मर्यादा भूल गई. इश्क का भूत न उतार दिया सिर से तो मैं भी बाप नहीं इस का,’’ कहते हुए पंडित जुगलकिशोर के मुंह से थूक उछल रहा था. होंठ गुस्से के मारे सूखे पत्ते से कांप रहे थे.

‘‘उम्र का उफान है. हर दौर में आता है. समय के साथसाथ धीमा पड़ जाएगा. शोर करोगे तो गांव जानेगा. अपनी जांघ उघाड़ने में कोई समझदारी नहीं. मैं समझाऊंगी महिमा को,’’ पंडिताइन बोली.

‘‘तू ने समझाया होता, तो आज यों नाक कटने का दिन न देखना पड़ता. पतंग सी ढीली छोड़ दी लड़की.

अरे, प्यार करना ही था, तो कम से कम जातबिरादरी तो देखी होती. चल पड़ी उस के पीछे जिस की परछाईं भी पड़ जाए तो नहाना पड़े. उस घर में देने से तो अच्छा है कि लड़की को शगुन के नारियल के साथ जमीन में गाड़ दूं,’’ पंडित जुगलकिशोर ने इतना कह कर जमीन पर थूक दिया.

बाप के गुस्से से घबराई महिमा सहमी कबूतरी सी गुदड़ों में दुबकी बैठी थी. आज अपना ही घर उसे लोहे के जाल सा महसूस हो रहा था, जिस में से सिर्फ सांस लेने के लिए हवा आ सकती है.

शगुन के नारियल के साथ जमीन में गाड़ देने की बात सुनते ही महिमा को ‘औनर किलिंग’ के नाम पर कई खबरें याद आने लगीं. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

21 साल की उम्र. 5 फुट 7 इंच का निकलता कद. धूप में संवलाया रंग और तेज धार कटार सी मूंछ. पहली बार महिमा ने किशोर को तब देखा था, जब गांव के स्कूल से 12वीं जमात पास कर वह अपना टीसी लेने आया था.

महिमा भी वहां खड़ी अपनी 10वीं जमात की मार्कशीट ले रही थी. आंखें मिलीं और दोनों मुसकरा दिए थे. किशोर झेंप गया, महिमा शरमा गई. तब वह कहां जातपांत के फर्क को समझती थी.

धीरेधीरे बातचीत मुलाकातों में बदलने लगी और आंखों के इशारे शब्दों में ढलने लगे. महक की तरह इश्क भी फिजाओं में घुलने लगा और जबानजबान चर्चा होने लगी.

इस से पहले कि चिनगारी शोला बन कर घर जलाती, किशोर आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला गया, इसलिए उन की मुलाकातें कम हो गईं.

इधर महिमा ने 12वीं जमात पास करने के बाद कालेज जाने की जिद की. उधर, किशोर की कालेज की पढ़ाई पूरी होने वाली थी. महिमा होस्टल में रह कर कालेज की पढ़ाई करने लगी और किशोर ग्रेजुएट होने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया.

सही खादपानी मिलते ही दम तोड़ती प्यार की दूब फिर से हरी हो गई. मुलाकातें परवान चढ़ने लगीं. एक दिन गांव के किसी भले आदमी ने दोनों को साथसाथ देख लिया. बस, फिर क्या था तिल का ताड़ बनते कहां देर लगती है.

नमकमिर्च लगी खिचड़ी पंडित जुगलकिशोर के घर तक पहुंचने की ही देर थी कि पंडितजी राशनपानी ले कर किशोर के बाप मदना के दरवाजे पर जा धमके.

‘‘सरकार ने ऊपर चढ़ने की सीढ़ी क्या दे दी, अपनी औकात ही भूल बैठे. आसमान में बसोगे क्या? अरे, चार अक्षर पढ़ने से जाति नहीं बदल जाती. नींव के पत्थर कंगूरे में नहीं लगा करते,’’ और भी न जाने क्याक्या वे मदना को सुनाते, अगर बड़ा बेटा महेश उन्हें जबरदस्ती घसीट कर न ले जाता.

‘‘कमाल करते हो बापू. अरे, यह समय उबलने का नहीं है. जरा सोचो, अगर जातिसूचक गालियां निकालने के केस में अंदर करवा दिया, तो बिना गवाह ही जेल जाओगे. जमानत भी नहीं मिलेगी,’’ महेश ने अपने पिता को समझाया.

पंडित जुगलकिशोर को भी अपनी जल्दबाजी पर पछतावा तो हुआ, लेकिन गुस्सा अभी भी जस का तस बना हुआ था.

‘‘पंचायत बुला कर गांव बदर न करवा दिया तो नाम नहीं,’’ पंडितजी ने बेटे की आड़ में मदना को सुनाया.

पंडित जुगलकिशोर का गांव में बड़ा रुतबा था. मंदिर के पुजारी जो ठहरे. हालांकि अब पुरोहिताई में वह पहले वाली सी बात नहीं रही थी. बस, किसी तरह से दालरोटी चल जाती है, लेकिन कहते हैं न कि शेर भूखा मर जाएगा, लेकिन घास नहीं खाएगा. वही तेवर पंडितजी के भी हैं. चाहे आटे का कनस्तर रोज पैंदा दिखाता हो, लेकिन मजाल है, जो चंदन के टीके में कभी कोई कमी रह जाए.

वह तो पंडिताइन के मायके वाले जरा ठीकठाक कमानेखाने और दानदहेज में भरोसा करने वाले हैं, इसलिए समाज में पंडित जुगलकिशोर की पंडिताई की साख बची हुई है, वरना कभी की पोल चौड़े आ जाती. महिमा की पढ़ाईलिखाई का खर्चा भी उस के मामा यानी पंडिताइन के भाई सालग्राम ही उठा रहे हैं.

कुम्हार का कुम्हारी पर जोर न चले, तो गधे के कान उमेठता है. पंडित जुगलकिशोर ने भी महेश को भेज कर महिमा को शहर से बुलवा कर घर में नजरबंद कर दिया. पति का बिगड़ा मिजाज देख कर पंडिताइन ने अपने भाई को तुरंत आने को कह दिया.

50 साल का सालग्राम कसबे में क्लर्की करता था. सरकारी नौकरी में रहने के चलते राजकाज के तौरतरीके और सरकार की पहुंच समझता था. वह जानता था कि भले ही सरकारी काम सरकसरक कर होते हैं, लेकिन यह सरकार अगर गौर करने लगे तो फिर ऐक्शन लेने में मिनट लगाती है.

गांव से पहले घर में पंचायत बैठी. मामा को देख महिमा के जी को शांति मिली. प्यार मिले न मिले, किस्मत की बात… जान की सलामती तो रहेगी.

एक तरफ पंडित जुगलकिशोर थे, तो वहीं दूसरी तरफ पूरा परिवार, लेकिन अकेले पंडितजी सब पर भारी पड़ रहे थे. रहरह कर दबी हुई स्प्रिंग से उछल रहे थे.

‘‘चौराहे पर बैठा समझ लिया क्या ससुरों ने? अरे, शासन की सीढि़यां चढ़ लीं तो क्या गढ़ जीत लिया? चले हैं हम से रिश्ता जोड़ने… दो निवाले दोनों बखत मिलने क्या लगे तो औकात भूल गए…’’ पंडितजी ने अपने साले को सुनाया.

‘‘समय को समझने की कोशिश करो जीजाजी. अब रजवाड़ों का समय नहीं है. यह लोकतंत्र है. यहां भेड़बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं,’’ सालग्राम ने पंडित जुगलकिशोर को समझाया.

‘‘मामा सही कह रहे हैं बापू. जातपांत आजकल पिछड़ी सोच वाली बात हो गई. आप कभी गांव से बाहर गए नहीं न इसलिए आप को अटपटा लग रहा है. शहरों में आजकल दो ही जात होती हैं, अमीर और गरीब,’’ मामा की शह पा कर महेश के मुंह से भी बोल फूटे.

पंडितजी ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा. महेश सिर नीचा कर के खड़ा हो गया.

‘‘इस बच्चे को क्या आंखें दिखाते हो. सब सही ही तो कह रहे हैं. आप तो रामायण पढ़े हो न… भगवान राम ने केवट और शबरी को कैसा मान दिया था, याद नहीं…?’’ पंडिताइन बातचीत के बीच में कूदीं.

‘‘हां, रामायण पढ़ी है. माना कि समाज में सब का अपना महत्व है, लेकिन पैर की जूती को सिर पर पगड़ी की जगह नहीं पहना जाता,’’ पंडितजी ने पत्नी को घुड़क दिया.

‘‘चलो छोड़ो इस बहस को. बाहर चल कर चाय पी कर आते हैं,’’ सालग्राम ने एक बार के लिए घर की पंचायत बरखास्त कर दी. महिमा की उम्मीदों की कडि़यां जुड़तीजुड़ती बिखर गईं.

‘‘जीजाजी, मैं मानता हूं कि जो संस्कार हमें घुट्टी में पिलाए गए हैं, उन के खिलाफ जाना आसान नहीं है, लेकिन मैं तो सरकारी नौकर हूं और मेरे अफसर यही लोग हैं. हमें तो इन के बुलावे पर जाना भी पड़ता है और इन का परोसा खाना भी पड़ता है. इन्हें भी अपने यहां न्योतना पड़ता है और इन के जूठे कपगिलास भी उठवाने पड़ते हैं.

‘‘अब इस बात को ले कर आप मुझे जात बाहर करो तो बेशक करो,’’ सालग्राम के हरेक शब्द के साथ पंडित जुगलकिशोर की आंखें हैरानी से फैलती जा रही थीं.

‘‘आप छोरी की पढ़ाईलिखाई मत छुड़वाओ. उसे पढ़ने दो. हो सकता है कि वह खुद ही आप के कहे मुताबिक चलने लगे या फिर समय का इंतजार करो. ज्यादा जोरजबरदस्ती से तो गाय भी खूंटा तोड़ कर भाग जाती है,’’ सालग्राम ने कहा.

वे दोनों गांव के बीचोंबीच बनी चाय की थड़ी पर आ कर बैठ गए. लड़का 2 कप चाय रख गया. तभी शोर ने उन का ध्यान खींचा. देखा तो पुलिस की गाड़ी सरपंचजी के घर के सामने आ कर रुकी थी.

2 सिपाही उतर कर हवेली में गए और वापसी में सरपंचजी हाथ जोड़े उन के साथ आते दिखे.

‘‘देखें, क्या मामला है…’’ सालग्राम ने कहा और दोनों जीजासाला तमाशबीन भीड़ का हिस्सा बन गए.

सालग्राम ने पुलिस अफसर की वरदी पर लगी नाम की पट्टी को देखा और जीजा को कुहनी से ठेला मार कर उन का ध्यान उधर दिलाया. नाम पढ़ कर पंडितजी सोच में पड़ गए.

‘‘इन का यह रुतबा है. सरपंच भी हाथ जोड़े खड़ा है,’’ सालग्राम ने कहा, तो पंडित जुगलकिशोर समझने की कोशिश कर रहे थे.

तभी हवेली के भीतर से चायपानी आया और सरपंचजी मनुहार करकर के अफसर को खिलानेपिलाने लगे.

‘रामराम… धर्म भ्रष्ट हो गया…’ पंडितजी कहना चाह कर भी नहीं कह सके. वे साले के साथ चुपचाप वापस लौट आए.

रात को घर की पंचायत में फैसला हुआ कि महिमा की पढ़ाई जारी रखी जाएगी. उसे ऊंचनीच समझ कर मामा के साथ वापस शहर भेज दिया गया.

जब पंडित जुगलकिशोर के घर से इस चर्चा पर विराम लग गया, तो फिर किसी और की हिम्मत भी नहीं हुई बात का बतंगड़ बनाने की.

साल बीततेबीतते महिमा ग्रेजुएट हो गई और अब शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई.

महेश ने भी शहर के कालेज में भरती ले ली थी. इस बीच न तो महिमा की जबान पर कभी किशोर का नाम आया और न ही बेटे ने कोई चोट देती खबर दी तो पंडितजी ने राहत की सांस ली. उन्हें लगा मानो यह दूध का उफान था, जो अब रूक गया है. लड़की अपना भलाबुरा समझ गई है.

‘‘जीजाजी, सुना आप ने… प्रशासनिक सेवाओं का नतीजा आ गया है. आप के गांव के किशोर का चयन हुआ है,’’ सालग्राम ने घर में घुसते ही कहा.

यह सुनते ही पंडिताइन खिल गईं. पंडितजी के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘हुआ होगा.. हमें क्या? बहुत से लोगों के हुए हैं,’’ पंडित जुगलकिशोर ने लापरवाही से कहा.

‘‘बावली बातें मत करो जीजाजी. समय को समझो. जून सुधर जाएगी कुनबे की. अरे, छोरी तो राज करेगी ही, आगे की पीढि़यां भी तर जाएंगी. बच्चों के साथ तो बाप का नाम ही जुड़ेगा न,’’ सालग्राम ने जीजा को समझाया.

‘‘मामा सही कह रहे हैं बापू. जिस की लाठी हो भैंस उस की ही हुआ करे. राज में भागीदारी न हो तो जात का लट्ठ बगल में दबाए घूमते रहना. कोई घास न डालने का,’’ महेश भी मामा के समर्थन में उतर आया था.

‘‘अरे, ये तो छोराछोरी के भले संस्कार हैं जो इज्जत ढकी हुई है, वरना शहर में कोर्टकचहरी कर लेते तो क्या कर लेता कोई? कानून भी उन्हीं का साथ देता,’’ पंडिताइन कहां पीछे रहने वाली थीं.

‘‘लगता है, पूरा कुनबा ही ज्ञानी हो गया, एक मैं ही बोड़म बचा,’’ पंडितजी से कुछ बोलते नहीं बना, तो उन्होंने सब को झिड़क दिया, लेकिन इस झिड़क में उन की झोंप और कुछकुछ सहमति भी झलक रही थी.

मामला पक्ष में जाते देख पंडिताइन झट भीतर से नारियल निकाल कर लाईं और जबरदस्ती पति के हाथ में थमा दिया.

‘‘छोरा गांव आया हुआ है, आज ही रोक लो, वरना गुड़ की खुली भेली पर मक्खियां आते कितनी देर लगती है,’’ पंडिताइन ने सफेद कुरताधोती भी ला कर पलंग पर रख दिए.

पंडितजी कभी अपने कपड़ों को तो कभी सामने रखे मोली बंधे शगुन के नारियल को देख रहे थे. उन्होंने कुरता पहन कर धोती की लांग संवारी और नारियल को लाल गमछे में लपेट कर मदना के घर चल दिए बधाई देने.

Social Story : गांव की गोरियां

Social Story : सोशल मीडिया भी गजब ही है भैया. यहां कबाड़ भरा है तो जुगाड़ भी भरा है. अब टिक टौक और लाइक को ही ले लो. एक अलग ही दुनिया. कुछ सैकंड का धमाल, दुनिया में कर दो कमाल. अब तो बड़ेबड़े नामचीन भी इस के असर से अछूते नहीं हैं. शहर की गोरीचिट्टी छोरियां इंगलिश में गिटपिट बोलें, लड़कों के मजे लें और अपने हुस्न के जलवे बिखेर कर खूब लाइक बटोरें.

पर गांवदेहात की लड़कियों को भी कम मत सम?ाना. टिक टौक और लाइक पर छाई हुई हैं ये कसे बदन की तितलियां. कभी गौर किया है इन बिजली सी चमकती ठेठ गोरियों पर. सपना चौधरी के ‘तेरी आंख्यां का यू काजल…’ गीत पर ठुमके लगा कर सपना चौधरी को ही पानी भरवा दें. सब से बड़ी बात तो यह कि ऐसी लड़कियां ज्यादा अमीर घरों की नहीं होती हैं. उन के कच्चेपक्के घरों, बिना ओट की छतों से अंदाजा लगा सकते हैं कि वे किसी अगड़े समाज से नहीं आती हैं, पर उन में अपना हुनर दिखाने की ललक होती है.

हां, एक बात जरूर है कि कैमरे के सामने आने से पहले वे अपना होमवर्क बड़े अच्छे ढंग से करती हैं. कैसे अपनी फिगर का इस्तेमाल करना है, कैसे कपड़े पहनने हैं कि बदन उतना ही दिखे कि आह निकल जाए. वे मेकअप पर भी खूब ध्यान देती हैं और जो भी पेश करती हैं, उस में उन की मेहनत दिखाई देती है.

इस सब में फिल्मी गानों, संवादों और चुटकुलों का भी बड़ा अहम रोल होता है. देशी बोली के तड़कतेभड़कते गाने और लड़कियों का कूल्हे मटकाना जबरदस्त जुगलबंदी बन जाता है. इस में बहुत सी लड़कियां अपने डांस को और मस्त बनाने के लिए कपड़े भी इतने बदनदिखाऊ पहन लेती हैं कि मनचलों की आहें निकल जाती हैं. फिर कुछ लड़कियां तो एडल्ट चुटकुले भी अपने दिलकश अंदाज में सुना देती हैं.इस से उन के चाहने वालों की लिस्ट लंबी हो जाती है.

सपना चौधरी के गाने पहले सस्ते वीडियो कैसेट पर बजते थे, फिर जब उन की देखादेखी बहुत सी लड़कियों ने ऐसे छोटेछोटे वीडियो बना कर टिक टौक वगैरह पर डालने शुरू कर दिए तो उन के भी फैन बनते चले गए.

हरियाणा की सोनाली फोगाट तो इतनी मशहूर हो गईं कि उन को हरियाणा विधानसभा की टिकट तक मिल गई. उन के वीडियो भी कम दिलचस्प नहीं हैं. पूजा जैन से ढिंचक पूजा बन चुकी यह लड़की अब इंटरनैट की सनसनी है.

Family Story : रामलाल की घर वापसी

Family Story : तकरीबन 7-8 घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था. रामलाल ने कमला को भी अपने साथ बस से उतार लिया था.

‘‘देखो कमला, तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है, तो तुम उस के साथ क्यों रहना चाहती हो?’’

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनी रही. उस ने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा.

‘‘पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे, तो क्या कहोगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्दबाजी में ब्याह करना पड़ा.’’

कमला कुछ नहीं बोली. दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गए.

रामलाल के सामने पिछले एक महीने में घटी एकएक बात किसी फिल्म की तरह सामने आ रही थी.

रामलाल शहर में मजदूरी करता था. ब्याह नहीं हुआ था, इसलिए जो मजदूरी मिलती उस में उस का खर्च आराम से चल जाता. थोड़ेबहुत पैसे जोड़ कर वह गांव में अपनी मां को भी भेज देता. गांव में एक बहन और मां ही रहते हैं. एक बीघा जमीन है, पर उस से सभी की गुजरबसर होना मुमकिन नहीं था. गांव में मजदूरी मिलना मुश्किल था, इसलिए उसे शहर आना पड़ा.

‘शहर गांव से तो बहुत दूर था, ऊपर उसे कौन रोजरोज गांव आना है…’ सोच कर रामलाल यहीं काम करने भी लगा था. एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था. एक स्टोव और कुछ बरतन. शाम को जब काम से लौटता तो 2 रोटी बना लेता और खा कर सो जाता. दिनभर का थका होता, इसलिए नींद भी अच्छी आती.

रामलाल ईमानदारी से काम करता था, इस वजह से सेठ भी उस से खुश रहता था. वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता.

सालभर हो गया था रामलाल को शहर में रहते हुए. इस एक साल में वह अपने गांव भी नहीं जा पाया था. उस दिन उस ने देर तक काम किया था. वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था. जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह सेठ से कुछ पैसे ले ले. उस ने अपनी जेब टटोली 10 का सिक्का उस के हाथ में आ गया.

‘चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा, कल सेठ से पैसे मिल ही जाएंगे.’ रामलाल ने गहरी सांस ली. 2 रोटी बनाई और खा कर सो गया.

सुबह जब रामलाल नहा कर काम पर जाने के लिए निकला, तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं. सरकार ने लौकडाउन लगा दिया है. बहुत देर तक तो वह इस का मतलब ही नहीं सम झ पाया. केवल यही सम झ में आया कि वह आज काम पर नहीं जा पाएगा. वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया. मकान मालिक उस के कमरे के सामने ही मिल गया था.

‘देखो रामलाल, महीनेभर का लौकडाउन है. कोई वायरस फैल रहा है. तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो.’

रामलाल वैसे ही लौकडाउन का मतलब नहीं सम झ पाया था, उस पर वायरस की बात तो उसे बिलकुल भी सम झ में नहीं आई.

‘कमरा खाली कर दो… मु झ से कोई गलती हो गई क्या?’

‘नहीं, पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे, तो कमरे का किराया कैसे दोगे?’

‘क्या महीनेभर काम बंद रहेगा?’

‘हां, घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे.’

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा. उस के पास तो केवल 10 का सिक्का ही है. वह कुछ नहीं बोला, उदास कदमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया.

जब रामलाल की नींद खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था. उस ने बाहर निकल कर देखा. बाहर सुनसान था. उसे पैसों की चिंता सता रही थी अगर वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से कम खाने का जुगाड़ तो हो जाता.

अगर वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे जरूर दे सकते हैं. उस ने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका. बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उस की हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई. वह फिर से दरी पर लेट गया. उस की नींद जब खुली, उस समय रात के 2 बज रहे थे. भूख के चलते उस के पेट में दर्द सा हो रहा था.

वह उठा और स्टोव जला लिया, पर आटा रखने वाले डब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह जानता था कि उस में थोड़ा सा ही आटा बचा है. अगर अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा. उस ने निराशा के साथ डब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया. 2 छोटीछोटी रोटियां ही बन पाईं. एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डब्बे में रख दिया.

सुबह हो गई थी. रामलाल ने बाहर झांक कर देखा. पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी. वह कमरे से बाहर निकल आया. उस के कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए.

सेठ का घर बहुत दूर था. छिपतेछिपाते वह उन के घर के सामने पहुंच गया था. दिन पूरा निकल आया था. यह सोच कर कि सेठ जाग गए होंगे, उस के हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे. उन के नौकर ने दरवाजा खोला था.

‘जी मैं रामलाल हूं, सेठजी के यहां ठेके पर काम करता हूं.’

‘हां तो…’

‘मुझे कुछ पैसे चाहिए.’

‘हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे. सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते.’

‘पर, वह लौकडाउन लग गया है, न तो काम तो महीनेभर बंद रहेगा.’

‘तभी आना…’

‘तुम एक बार उन से बोलो तो सही, वे मु झे बहुत चाहते हैं.’

‘अच्छा रुको, मैं पूछता हूं,’ नौकर को शायद दया आ गई थी उस पर.

नौकर के साथ सेठ भी बाहर आ गए थे. उन के चेहरे पर झुं झलाहट के भाव साफ झलक रहे थे, जिन्हें रामलाल नहीं पढ़ पाया.

सेठजी को देखते ही उस ने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे, पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया.

‘अब तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई कि घर चले आए…’

‘सेठजी कल आप से पैसे ले नहीं पाया था. मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लौकडाउन हो गया है. इसलिए आना पड़ा,’ रामलाल ने सकपकाते हुए कहा.

‘चल यहां से… बड़ा पैसे लेने आया है. मैं घर पर लेनदेन नहीं करता.’

सेठ ने उसे गुस्साई निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया. उस ने सेठजी के पैर पकड़ लिए, ‘मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं. थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर.’

सेठ उसे ठोकर मारते हुए अंदर चले गए. हक्काबक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. तभी पुलिस की गाडि़यों के आने की आवाज गूंजने लगी. वह डर गया और भागने लगा. छिपतेछिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया, पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया. वह कुछ बोल पाता, इस के पहले ही उस के ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे.

रामलाल दर्द से कराह उठा. पुलिस वालों ने गंदीगंदी गालियां देनी शुरू कर दी थीं. तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नौजवान आ कर रुक गए. उन्होंने पुलिस वालों से कुछ बात की. पुलिस ने उन्हें जाने दिया. रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया. वह हांफते हुए अपने कमरे
की दरी पर लेट गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें पोंछने वाला कोई नहीं था. उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

मां की याद आते ही उस के आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी. रोतेरोते वह सो गया था. दोपहर का समय ही रहता होगा, जब उस की आंख खुली. उस का सारा बदन दुख रहा था. पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था. वह कराहता हुआ उठा. बहुत जोर की भूख लगी थी. वह जानता था कि डब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है.

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा. वह अब क्या करे? उस के सामने अनेक सवाल थे. मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था, सीधे अंदर घुस आया था, ‘तुम कमरा कब खाली कर रहे हो?
वह सकपका गया.

‘मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रुक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो, ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ़ सकूं.’

रामलाल हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया था.

‘नहीं, माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा. तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो… नहीं तो मु झे जबरदस्ती करनी पड़ेगी,’ कहता हुआ वह चला गया.

रामलाल को सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह चुपचाप बैठा रहा. अभी तो उसे शाम के खाने की भी फिक्र थी.

सूरज ढलने को था. रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था, खामोश. और वह करता भी क्या? उस ने कमरे का दरवाजा जरा सा खोल कर देखा. बाहर पुलिस नहीं थी. वह बाहर निकल आया. थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी.

वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया. कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे. वह भी लाइन में लग गया. हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे, इसलिए समय लग रहा था. उस का नंबर आया. एक आदमी ने उस के हाथ में खाने का पैकेट रखा, साथ में और लोग भी उस के चारों ओर खड़े हो गए. कैमरे का फ्लैश चमकने लगा. फोटो खिंचवा कर वे लोग जा चुके थे.

रामलाल भी अपने कमरे की ओर लौट पड़ा, ‘चलो, आज के खाने का इंतजाम तो हो गया. इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह खा लेंगे.’

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी, इसलिए कमरे में आते ही उस ने पैकेट खोल लिया था. पैकेट में केवल 2 मोटी सी पूरी थी और जरा सी सब्जी. सब्जी बदबू मार रही थी, शायद वह खराब हो गई थी.

हक्काबक्का रामलाल पूरी को कुछ देर तक यों ही देखता रहा, फिर उस ने मोटी पूरी को चबाना शुरू कर दिया. दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा. वह अब क्या करे. कमरा भी खाली करना है.

अपने गांव भी नहीं लौट सकता, क्योंकि ट्रेनें और बसें बंद हो चुकी हैं, पैसे भी नहीं हैं. रामलाल समझ नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करे.

रामलाल ने सुबह ही पता लगा लिया था कि सरकार की ओर से खाने का इंतजाम किया गया है, इसलिए वह ढ़ूंढ़ते हुए यहां आ गया था. उस के जैसे यहां बहुत सारे लोग लाइन में लगे थे. वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे. यहीं उस की मुलाकात मदन से हुई थी, जो उस के पास वाले जिले का था. उस से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपनेअपने गांव लौट रहे हैं. मदन भी उन के साथ जा रहा है.

रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है. उसे भी इन के साथ गांव चले जाना चाहिए. पर क्या इतनी दूर पैदल चल पाएगा? पर, अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं. अगर मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा. गहरी सांस ले कर उस ने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया.

शाम को वह अपना सामान बोरे में भर कर तय जगह पर पहुंच गया, जहां मदन उस का इंतजार कर रहा था. सैकड़ों की तादाद में उस के जैसे लोग थे, जो अपनाअपना सामान सिर पर रख कर पैदल चल रहे थे. इन में बच्चे भी थे और औरतें भी.

रात का अंधकार फैलता जा रहा था, पर चलने वालों के कदम नहीं रुक रहे थे. कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ का फोटो खींच रहे थे. इसी वजह से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था. वे गालियां बक रहे थे और लौट जाने को कह रहे थे. भीड़ उन की बात सुन नहीं रही थी. पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था.

‘आप सभी की जांच की जाएगी और रुकने का इंतजाम किया जाएगा, कोई आगे नहीं बढ़ेगा,’ लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था.

सारे लोग रुक गए थे. एकएक कर सभी की जांच की गई. फिर सभी को इकट्ठा कर आग बु झाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई. दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी. मदन भी आंख बंद किए

कराह रहा था. और भी लोगों को परेशानी हो रही थी, पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था.

दवा छिड़कने वाले कर्मचारी उलटासीधा बोल रहे थे. सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था. सैकड़ों लोग और कमरे कम. बिछाने के लिए केवल दरी थी. पानी के लिए हैंडपंप था. औरतों के लिए ज्यादा परेशानी थी. 2 रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था.

‘हरामखोरों ने परेशान कर दिया,’ बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला, एक औरत ने उसे रोक लिया, ‘क्या बोला… हरामखोर… अरे, हम तो अच्छेभले जा रहे थे, हमें जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं.’

उस औरत की आवाज सुन कर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे.

‘भूखों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए…’ वह फिर बड़बड़या.

‘रोकने का इंतजाम नहीं था तो क्यों रोका… 2 सूखी रोटी दे कर अहसान जता रहे हैं,’ किसी ने जोर से बोला था, ताकि सभी सुन लें. पर, साहब को यह पसंद नहीं आया. उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था, ‘कौन बोला… जरा सामने तो आओ… यहां मेरी बेटी की बरात लग रही है क्या… जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवा कर खिलवाएं.’

सारे सकपका गए. वे सम झ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटने पड़ेंगे. छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसेतैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते. बाथरूम तक का इंतजाम नहीं था. औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं.

कोई नेताजी आए थे उन से मिलने. वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से शिकायत नहीं करेगा, इसलिए बाकी सारे लोग तो खामोश रहे, पर एक बूढ़ी औरत खामोश नहीं रह पाई.

जैसे ही नेताजी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘कैसे हो आप लोग… हम ने आप के लिए बहुत सारा इंतजाम किया है उम्मीद है कि आप अच्छे से होंगे.’

बुजुर्ग औरत यह सुन कर भड़क गई, ‘दो सूखी रोटी और सड़ी दाल दे कर अहसान जता रहे हो.’

किसी को उम्मीद नहीं थी. सभी लोग सकपका गए. एक कर्मचारी उस औरत की ओर दौड़ा, पर वह खामोश नहीं हुई, ‘हुजूर, यहां कोई इंतजाम नहीं है. हम लोग एक कमरे में भेड़बकरियों की तरह रह रहे हैं.’

नेताजी कुछ नहीं बोले. वे लौट चुके थे. उन के जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था.

फिर सरकार ने बस भिजवाई थी, ताकि सभी लोग अपनेअपने गांव लौट सकें. मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे, तभी किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई दी थी.

रामलाल उधर पहुंच गया था. एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ कर पीठ पर मुक्के मार रहा था. वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी.

‘इसे क्यों मार रहे हो भाई?’ रामलाल से सहन नहीं हो रहा था.

‘तू बीच में मत पड़. यह मेरी घरवाली है. सम झ गया तू,’ उस ने अकड़ कर कहा.

‘घरवाली है तो ऐसे मारोगे.’

‘तुझे क्या, जा अपना काम कर.’

रामलाल का खून खौलने लगा था, ‘पर बता तो सही, इस ने किया क्या है?’

‘यह औरत मनहूस है. इस के चलते ही मैं परेशान हो रहा हूं,’ कहते हुए उस ने जोर से औरत के बाल खींचे. वह दर्द से रो पड़ी. रामलाल सहन नहीं कर सका. उस ने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया.

‘तुम मेरे साथ बैठो. देखता हूं, कौन माई का लाल है, जो तुम्हें हाथ लगाएगा?’

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी. उस ने अपना नाम कमला बताया था. उस ने तो केवल यह सोचा था कि उस के आदमी का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तो वह ही उसे ले जाएगा. पर, वह उसे लेने नहीं आया.

‘अच्छा ही हुआ. उस ने इस की जिंदगी खराब कर रखी थी, पर अब यह जाएगी कहां?’ सवाल तो रामलाल के मन में था, पर जवाब उस के पास नहीं था. बस से उतर कर उस ने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था.

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी. उसे नहीं मालूम था कि उस का भविष्य क्या है, पर रामलाल उसे अच्छा लगा था. वह जिन यातनाओं से हो कर गुजरी है, शायद उसे उन से छुटकारा मिल जाए.

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थीं.

रामलाल उन से लिपट पड़ा, ‘‘मां…’’ उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. रो तो मां भी रही थी, जब से लौकडाउन लगा था, तब से ही मां उस के लिए बेचैन थीं. उन्होंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था. दोनों रो रहे थे, कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी.

अपने आंसू पोछ कर उस ने कमला की ओर इशारा किया. ‘‘मां, आप की बहू…’’

यह सुन कर चौंक गईं मां, ‘‘बहू… तू ने बगैर मु झ से पूछे ब्याह रचा लिया…?’’

‘‘मां, मजबूरी थी, लौकडाउन के चलते… गांव आना था इसे कहां छोड़ता… बेसहारा है न मां.’’

मां ने नजर भर कर कमला को देखा.

‘‘चल, अच्छा किया.’’ कह कर मां ने कमला का माथा चूम लिया.

Family Story : रफूचक्कर

Family Story : ईशा बिजनौर जिले के नगीना इलाके में अपने अम्मीअब्बा के साथ रहती थी. उस से बड़ी दो बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी, बाकी के 2 भाई मुंबई में स्टोर चलाते थे.

घर पर केवल ईशा और उस के अम्मीअब्बा ही रहते थे. उन का घर मेन रोड पर था. जब ईशा छत पर कपड़े फैलाने जाती थी, तो अकसर आनेजाने वाले लड़के उसे हसरतभरी निगाहों से देखते थे.

ईशा की उम्र अभी 17 साल थी, पर वह थी बड़ी गजब की खूबसूरत. सुनहरे बाल, गोरा चमकता चेहरा, छोटीछोटी कत्थई आंखें, सुर्ख होंठ, पतली कमर, उभरी हुई छाती. ऐसा लगता था जैसे सारा रस छाती में भर गया हो, जिसे पीने के लिए हर कोई बेताब रहता था और उसे अपना बनाने की तरकीब सोचता रहता था.

उन्हीं में से एक लड़का था इमरान. ईशा जब भी छत पर जाती थी, तब इमरान हमेशा उसे हसरतभरी निगाहों से देखता रहता था और वह ईशा का ऐसा दीवाना बना हुआ था कि दोपहर की भरी गरमी हो या तूफानी बारिश या फिर कड़ाके की ठंड… ईशा की एक झलक पाने के लिए वह बेकरार रहता था. इन सब मौसम की परवाह न करते हुए उस के घर के पास खड़ा रहता था.

ईशा समझ गई थी कि इमरान उसे दिलोजान से चाहता है. ईशा के दिल में भी इमरान के लिए प्यार के बीज फूटने लगे थे और अब वह भी कोई न कोई बहाना बना कर छत पर आ जाती और इमरान को अपनी एक कातिल मुसकान से घायल कर जाती.

कई दिनों तक यों ही आंखोंआंखों में वे दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार करते रहे, फिर उन की जिंदगी में आखिरकार वह दिन भी आ ही गया, जब दोनों ने एकदूसरे से मिल कर अपने प्यार का इजहार किया.

ईशा के अम्मीअब्बू पास के एक गांव में अपने किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे. बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश हो रही थी.

इमरान इस तेज बारिश में ईशा के दीदार के लिए पागलों की तरह बारिश में खड़ा था. उस का पूरा बदन पानी में भीग चुका था.

ईशा अपने घर मे अकेली थी. तभी उस ने इमरान की झलक पाने के लिए छत पर जा कर नजर दौड़ाई, तो देखा इमरान बारिश में खड़ा हुआ भीग रहा था. दूरदूर तक इमरान के सिवा कोई नजर नहीं आ रहा था. सब लोग तेज आंधी और बारिश की वजह से अपनेअपने घरों में कैद थे.

ईशा भी छत पर गई, तो पलभर में ही बुरी तरह भीग गई. उस ने जल्दी से इमरान को अपने घर में आने का इशारा किया और नीचे चली आई.

दरवाजा खुला था. इमरान फौरन मौका देख कर घर के अंदर दाखिल हो गया. ईशा बरामदे में ही खड़ी थी और इमरान को तौलिया दे कर बोली, ‘‘सिर पोंछ लो, नहीं तो सर्दी लग जाएगी.’’

इमरान की नजर जब ईशा के भीगे हुए बदन पर पड़ी, तो वह मदहोश हो गया. ईशा की उठी हुई छाती उस के कपड़े से चिपकी हुई अलग ही नजर आ रही थी.

ईशा के भीगे हुए बदन से कपड़े ऐसे चिपके हुए थे कि बदन का एकएक अंग साफ नजर आ रहा था. उस की पतली कमर देख कर इमरान का मन ललचाने लगा था.

इमरान ने आगे बढ़ कर ईशा को अपने आगोश में भर लिया और उस पर चुम्मों की बौछार कर दी. वह उस की उभरी हुई छाती को अपने सख्त हाथों से मसलने लगा.

इमरान की इन हरकतों से ईशा को एक अजब ही मजा आने लगा था. वह धीरेधीरे अपने बदन को इमरान को सौंपने लगी.

इमरान ने पलभर में ही बारिश से भीगे ठंडे बदन को अपने बदन की गरमी से गरम कर दिया था. ईशा ने पूरी तरह अपना कमसिन बदन इमरान को सौंप दिया था.

इमरान ने ईशा को अपनी गोद में उठा कर वहीं पड़े पलंग पर लिटा दिया. पलभर में ही वे दोनों पसीने से सराबोर हो गए.

ईशा के बदन से कपड़े हटते ही उस का गोरा और कमसिन बदन संगमरमर की तरह चमकने लगा. ईशा दर्द से तड़पने लगी. उस का कुंआरा बदन आज इमरान के आगोश में आ कर एक अजीब और मीठा दर्द महसूस कर रहा था.

कुछ देर दोनों ऐसे ही एकदूसरे का साथ देते रहे, फिर ठंडे पड़ कर एकदूसरे से अलग हो गए.

वे दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए थे और साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे.

ईशा बोली, ‘‘इमरान, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. चलो, हम कहीं भाग चलें.’’

इमरान ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी में गलत कदम नहीं उठाना. ऐसा करने से घर वालों की बेइज्जती होगी. हम दोनों एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. पहले हम कोशिश करेंगे कि हमारे घर वाले हमारी शादी के लिए राजी हो जाएं. अगर उन्होंने हमारी बात नहीं मानी, तो हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’

ईशा बोली, ‘‘ठीक है, मैं अपने घर वालों को मनाने की पूरी कोशिश करूंगी. अगर वे नहीं माने तो तुम्हें मेरा साथ देना होगा, क्योंकि मेरे घर वाले ऊंचनीच का भेदभाव करते हैं. वे अपनेआप को ऊंची जाति का समझते हैं.’’

‘‘वे क्या जानें दो दिलों की मुहब्बत के बारे में. उन्हें तो बस अपनी जात प्यारी है,’’ इमरान बोला.

‘‘इमरान, तुम कोशिश तो करो. क्या पता कि वे हमारी मुहब्बत को समझे… हमारे प्यार को कबूल कर लें और हमारा निकाह करा दें,’’ ईशा की यह बात सुन कर इमरान ने उस से रुखसती ली और अपने घर चला गया.

इमरान पिछड़ी मुसलिम जाति की सलमानी बिरादरी से ताल्लुक रखता था, जबकि ईशा मुसलिम समुदाय की खान बिरादरी से ताल्लुक रखती थी.

उत्तर प्रदेश में बिरादरीवाद कुछ ज्यादा ही रहता है. वहां कोई भी अपनी बिरादरी की लड़की या लड़के की शादी किसी गैरबिरादरी में नहीं करता है. अगर करता है तो उन के समुदाय के लोग उन से बातचीत तो बंद करते ही हैं, साथ ही उन्हें यह भी ताना मारते हैं कि इसे अपनी बिरादरी में लड़का या लड़की नहीं मिली, जो दूसरों के यहां रिश्ता कर दिया.

इमरान ने जब अपने अब्बा से खान बिरादरी की ईशा से शादी करने की बात कही, तो पहले तो उस के अब्बा ने नानुकर की, पर जब इमरान अपनी जिद पर अड़ा रहा, तो उन्हें इमरान के आगे झुकना पड़ा और वे इस शादी के लिए राजी हो गए.

ईशा ने जब अपने अब्बा से इमरान से शादी करने की बात कही, तो वे यह सुनते ही आगबबूला हो गए और गुस्से में कहने लगे, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती एक गैरबिरादरी के लड़के से शादी करने की सोच रखते हुए. हम किसी भी कीमत पर उस लड़के से तेरी शादी नहीं करेंगे.

‘‘अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो तेरे ऊपर इश्क का भूत सवार हो गया. यह सब हमारी आजादी का नतीजा है,’’ कहते हुए उन्होंने ईशा पर कड़ी नजर रखने की हिदायत दी.

ईशा रोतीबिलखती रही और अपनी मुहब्बत की भीख मांगती रही, पर उस के अम्मीअब्बा इमरान से उस की शादी के लिए राजी न हुए.

ईशा की उम्र 18 साल होने में अभी एक महीना बाकी था. वह अपनी मरजी से इमरान से शादी करने के लिए अभी मजबूर थी और उस एक महीने का इंतजार कर रही थी कि कब उस की उम्र 18 साल हो और वह इमरान के साथ रफूचक्कर हो जाए.

ईशा ने इमरान को अपने अम्मीअब्बा की सारी बातें अपनी एक सहेली के जरीए बता दीं, जो उस की खास
सहेली थी.

अब इमरान और ईशा की प्रेमकहानी प्रेमपत्र के जरीए चलने लगी, जिस को ईशा की एक सहेली अच्छी तरह से अंजाम दे रही थी.

दोनों तरफ एकदूसरे को पाने की आग लगी थी. उन का एकदूसरे से मिलनाजुलना मुश्किल हो रहा था. बस, प्रेमपत्र के जरीए ही वे अपने अपने प्यार का इजहार करते और अपने दिल की बात एकदूसरे से शेयर करते.

एक महीने तक वे दोनों अपनेअपने दिल पर पत्थर रख कर बिना एकदूसरे से मिले अपनी बात प्रेमपत्र के द्वारा ही बताते रहे.

फिर आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब ईशा 18 साल की हो गई. वह आज बहुत खुश थी. उस के सपनों का राजकुमार अब उसे मिलने वाला था.

ईशा उस की बांहों में अपनेआप को सौंप कर उस से जीभर कर प्यार करने के लिए बेचैन थी, इसलिए आज उस के चेहरे पर अजीब सी खुशी दिखाई दे रही थी.

ईशा ने अपनी सहेली के जरीए प्रेमपत्र भेज दिया, जिस में उस ने लिखा था, ‘आज रात को 4 बजे जब सब गहरी नींद में सो रहे होंगे, तब तुम मुझे लेने आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’

काली घनी रात थी. सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे. ईशा के अम्मीअब्बा भी गहरी नींद मे सो चुके थे. ईशा का रास्ता साफ हो चुका था. रात के 4 बजने में अभी भी थोड़ा समय बाकी था.

ईशा बड़ी बेसब्री से सुबह के 4 बजने का इंतजार कर रही थी. पर आज उसे ऐसा लग रहा था कि घड़ी जहां की तहां रुकी हुई है और वक्त आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.

ईशा कभी घर के अंदर तो कभी छत पर जा कर इमरान के आने का इंतजार कर रही थी, पर दूरदूर तक इमरान दिखाई नहीं दे रहा था.

ईशा बेचैन हो रही थी और सोच रही थी कि कब इमरान आएगा और उसे अपने साथ ले जाएगा, पर आज वक्त कुछ धीमा हो गया था. ईशा को आज की रात का 1-1 मिनट घंटों के बराबर लग रहा था.

काफी देर तक यों ही तड़पने के बाद आखिरकार 4 बजे ईशा छत पर गई और उसे दूर कहीं इमरान के आने की आहट सुनाई दी.

ईशा ने फौरन छत से उतर कर अपना सामान उठाया और हलके से घर का दरवाजा खोला, तो उसे बाहर इमरान दिखाई दिया. दोनों ने फौरन तेज कदमों के साथ वह जगह छोड़ दी और रफूचक्कर हो गए.

अगले दिन जब सुबह को ईशा घर में कहीं नजर नहीं आई और घर का दरवाजा भी खुला देखा, तो उस के अम्मीअब्बा समझ गए कि ईशा इमरान के साथ घर छोड़ कर रफूचक्कर हो गई है.

ईशा के अम्मीअब्बू को ईशा की इस हरकत पर बड़ा गुस्सा आया और ईशा को कोसने लगे कि ऐसी नालायक बेटी किसी को न दे, जिस ने जीतेजी उन की नाक कटवा दी और उन्हें बेइज्जत कर दिया.

इमरान और ईशा ने भाग कर शादी कर ली और अपनी जिंदगी जीने लगे. लोग कुछ दिन तक दोनों को बुराभला कहते रहे, फिर इस मामले को धीरेधीरे भूल गए.

अगर ईशा के अम्मीअब्बा पहले ही उस की बात मान लेते तो आज उन्हें यह दिन न देखना पड़ता और न यों रुसवा होना पड़ता. उन की बेटी भी उन के पास होती और इज्जत भी बनी रहती.

तकरीबन एक साल के बाद ईशा इमरान के साथ एक बेटा गोद में ले कर आई, जो उन दोनों का था. वे दोनों पहले इमरान के घर गए. इमरान के अम्मीअब्बू ने अपनी बहू को प्यार से अपने घर में रख लिया.

कुछ दिनों के बाद ईशा भी इमरान और अपने बेटे को ले कर अपने अम्मीअब्बा से मिलने गई, तो उन्होंने भी ईशा की हरकत को नजरअंदाज कर गले से लगा लिया और इमरान को भी अपना दामाद मान लिया.

फिर वे सब हंसीखुशी रहने लगे.

Short Story : हमसफर

Short Story : साजिद की एक साल पहले रेशमा से शादी हुई थी. रेशमा जैसी खूबसूरत और गदराए बदन की बीवी पा कर साजिद बहुत खुश था और बड़े मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

रेशमा को पा कर तो साजिद ने अपने भाईबहनों और करीबी रिश्तेदारों से भी मिलनाजुलना छोड़ दिया था और दिनरात उस की बांहों में पड़ा रहता था.

साजिद की इस हरकत से जहां एक तरफ उस के परिवार वालों के साथ खटास पैदा हुई, वहीं उस की माली हालत भी बद से बदतर होने लगी, क्योंकि अब वह काम से भी जी चुराने लगा था.

साजिद का भले ही छोटा सा घर था, पर रेशमा उस के साथ खुश थी, लेकिन जब से साजिद आएदिन काम से छुट्टी करने लगा, तब से घर का खर्चा उठाना मुश्किल हो गया था.

एक दिन रेशमा ने इस की शिकायत साजिद से की, ‘‘तुम दिनरात यहीं पड़े रहोगे, तो घर का खर्चा कैसे चलेगा?’’

साजिद भले ही रेशमा को दिलोजान से चाहता था, पर वह था बड़े गुस्सैल स्वभाव का. अपने मर्द होने के घमंड में वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘तू अपनी औकात में रह. अब तू मुझे बताएगी कि मैं क्या करूं और क्या न करूं? औरत है तो औरत बन कर रह, मर्द बनने की कोशिश मत कर.’’

साजिद का यह रूप देख कर रेशमा के होश ही उड़ गए. उस ने साजिद को समझते हुए कहा, ‘‘आप तो नाराज हो गए. मैं ने ऐसी कौन सी गलत बात कह दी, जो आप इतना भड़क रहे हो?’’

साजिद ने झट से रेशमा को एक तमाचा रसीद कर दिया और बोला, ‘‘मुझ से जबान लड़ाती है… जा, मैं तुझे तलाक देता हूं, तलाक… तलाक… तलाक…’’

रेशमा की जिंदगी पलभर में बरबाद हो गई और वह अपने मायके चली गई.

5-6 महीने में तलाक का मामला निबट गया, पर मेहर के पैसे देने में साजिद की काफी जमापूंजी खत्म हो गई. साजिद ने दूसरी शादी करने का इरादा किया और नई बीवी की तलाश में लग गया.

साजिद ने कई लोगों से अपने रिश्ते की बात की, लेकिन कई महीने गुजर गए, पर उसे कोई कुंआरी लड़की नहीं मिली.

नए हमसफर की तलाश में साजिद वक्त से पहले बूढ़ा होने लगा था. वह समझ चुका था कि उसे अब मनमुताबिक रिश्ता नहीं मिल पाएगा.

एक दिन एक पड़ोसी ने साजिद को बताया, ‘‘हमारी नजर में एक औरत है, जिस के शौहर का इंतकाल हो गया है और वह अपने यतीम बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही है.’’

साजिद ने पड़ोसी से मिन्नतें करते हुए कहा, ‘‘आप जल्द से जल्द मेरा निकाह करा दो. मैं आप का यह अहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगा.’’

पड़ोसी ने उस औरत के परिवार वालों से साजिद के साथ निकाह का जिक्र किया. कुछ दिन बाद वे लोग साजिद के घर आए और उस की कमाई के बारे में पूछा.

पर जब साजिद ने उन्हें अपनी साधारण सी कमाई के बारे में बताया, तो उन्होंने इस निकाह से साफ मना
कर दिया.

उस औरत के भाई ने साफसाफ कह दिया, ‘‘इतनी साधारण कमाई से आप अपना खर्च तो उठा नहीं सकते, अपनी बीवी और उस के बच्चों का खर्चा कहां से उठा पाओगे?’’

यह सुन कर साजिद पूरी तरह टूट गया. वह समझ गया कि अब उस की शादी होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. अब उसे उस का हमसफर कभी नहीं मिल पाएगा.

साजिद की जिंदगी का खालीपन अब उसे काटने को दौड़ने लगा. तनहाई उसे अंदर ही अंदर तोड़ने लगी. उस की रातें उसे काटने को दौड़तीं. वह रातभर करवटें बदलता रहता और अपने हमसफर की याद में तड़प कर रह जाता.

साजिद की आंखों में अपने हमसफर की तलाश की बेचैनी साफ दिखाई देती थी. जब कभी कोई दोस्त साजिद से उस की शादी की बात करता, तो वह तड़प उठता और उस की आंखों से आंसू छलक पड़ते.

एक दिन की बात है. अपने एक दोस्त से बात करते हुए साजिद का गला रुंध गया. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्या करूं यार… कितने सालों से अपने हमसफर की तलाश कर रहा हूं, पर मुझे मेरा हमसफर मिल ही नहीं पा रहा है. कितने लोगों से मिन्नतें कीं, पर अभी तक मुझे मेरा हमसफर मिल नहीं पाया.

‘‘कभी कोई छोटा घर कह कर मुझे दुत्कार देता है, तो कभी कोई मेरी साधारण कमाई को ले कर सवाल उठाता है और कहता है कि तुम इतनी कमाई में बीवीबच्चों का खर्च कैसे उठाओगे?

‘‘अब तो ऐसा लगता है कि शायद मुझे मेरा हमसफर कभी मिल ही नहीं पाएगा. घर में खानेपीने की अलग परेशानी है. वक्त पर खाना न मिलने से मेरा शरीर कमजोर होता जा रहा है. अब तो मेरा काम करने में भी मन नहीं लगता है. कभीकभी सोचता हूं कि मैं खुदकुशी कर लूं.’’

साजिद की ऐसी मायूसी भरी बातें सुन कर उस के दोस्त की आंखों मे आंसू आ गए. वह अच्छी तरह समझ गया कि साजिद कितनी परेशानी में जिंदगी जीने को मजबूर है.

काफी अरसा इसी तरह गुजर गया, पर साजिद को उस का हमसफर न मिला. कई सालों के बाद उस ने परेशान हो कर एक बूढ़ी औरत को अपने घर में रख लिया, जिस का इस दुनिया में कोई नहीं था. उस औरत की उम्र तकरीबन 60 साल थी, जबकि साजिद की उम्र अभी 40 साल के आसपास थी.

साजिद ने उस बूढ़ी औरत पर अपने घर की जिम्मेदारी सौंप दी, ताकि उसे खानापीना तो वक्त पर मिल सके, क्योंकि जिंदगी तो उसे किसी तरह गुजारनी ही थी.

भले ही साजिद को हमसफर न मिला, पर जिंदगी तो अब उस बूढ़ी औरत के साथ गुजर ही रही थी. घर
में कुछ रौनक तो आ ही गई थी. घर का सूनापन अब खत्म हो चुका था, पर अकेलापन अभी भी था.

साजिद को हमेशा यह मलाल रहता था कि उस ने अच्छीभली रेशमा को क्यों तलाक दे दिया. उसे कभीकभार रेशमा दिखाई देती थी, जो अपने नए शौहर के साथ मजे से रह रही थी. वह कमाई भी अच्छी करता था और रेशमा से प्यार भी बहुत करता था. उस ने तो रेशमा को मेहंदी लगाने का काम भी शुरू करा दिया था, ताकि रेशमा के हाथों में कभी पैसे की कमी न रहे.

Love Story : फिर कब आओगे

Love Story : जमीला फूटे हुए अंडे को देख रही थी. कुछ कबूतर लड़भिड़ रहे थे, इसी से एक अंडा गिर कर फूट गया था. लड़कपन में वह झब्बू साह के घर खेलने जाया करती थी. उन के यहां ढेरों कबूतर थे. एक जोड़ी कबूतर वहीं से वह ले आई थी. हालांकि, अब्बा नाराज हुए थे, पर खाला जुबैदा खातून ने उन को चुप करा दिया था.

धीरेधीरे जमीला बड़ी हुई. कबूतर कभी उस के कंधों पर आ बैठते, तो कभी हाथों पर आ जाते और कभी उस के दुपट्टे में छिप कर आंखमिचौली करते. तब वह अजीब गुदगुदी से सिहर जाती.

जल्दी ही जमीला का निकाह हो गया. पर कुदरत को यह सब मंजूर न था. शहर में दंगा हुआ और उस का शौहर हमेशा के लिए उसे छोड़ कर चला गया. तब से जमीला के भीतर और बाहर धुआं ही धुआं भर गया. 2 सालों से वह इसी तरह घुटघुट कर जी रही थी.

अचानक ही दरवाजे पर बड़ी जोर से दस्तक हुई.

‘इस वक्त दोपहर में कौन हो सकता है?’ जमीला सोचने लगी, ‘बिना नामपता जाने कैसे दरवाजा खोलूं. अभीअभी तो पुलिस की गाड़ी इधर से गुजरी है.’

शहर में फिर दंगा भड़क उठा था. कई धमाको हो चुके थे. दर्जनभर लाशें बिछ चुकी थीं. जमीला चंद कदम आगे बढ़ कर ठिठक गई.

कोई दरवाजे को बारबार थपथपा रहा था. एकाध बार ‘बचा लो’ की हलकी आवाज भी उभरी थी.

‘जरूर फिर कहीं कुछ हुआ है,’ डर जमीला के पैर जकड़ रहा था और इनसानियत आगे धकेल रही थी.

आखिरकार इनसानियत की जीत हुई. जमीला ने दरवाजा खोल दिया. सामने डरा हुआ एक नौजवान हाथ जोड़े खड़ा था. जमीला की खामोश मंजूरी पा कर वह भीतर चला आया. लेकिन यह क्या, घबरा कर वह जमीला को गौर से देख कर वापस जाने लगा.

तब तक जमीला सबकुछ समझ गई थी. वह झट से बोली, ‘‘इस तरह घबरा कर क्यों जाने लगे, क्या तुम…?’’

वह नौजवान रुक कर बोला, ‘‘तुम तो मुसलमान हो, यहां मेरी जान को खतरा है…’’

‘‘इस तरह क्यों कहते हो? क्या सभी मुसलमान एकजैसे होते हैं? क्या सभी हिंदू दयावान ही होते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो तुम्हें मुझ से खौफ नहीं खाना चाहिए. वैसे, तुम कहां से आ रहे हो? क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘मेरा नाम अमर है. मैं अपने गांव जा रहा था… रास्ते में कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया… किसी तरह खुद को छुड़ा कर भागा हूं. आगे जाने की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि सड़कों पर लोगों का हुजूम है.’’

जमीला ने दरवाजा बंद कर दिया और अमर को भीतर आने का इशारा किया. फिर कोठरी में चौकी पर बैठते हुए वह बोली, ‘‘सामने खाट पर बैठ जाओ. वैसे, किसी ने देखा तो नहीं न तुम्हें यहां आते हुए?’’

‘‘नहीं,’’ अमर ने भी हौले से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें अब भी डर लग रहा है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘भूख लगी है?’’

अमर कुछ बोला नहीं. वह चुपचाप जमीला की ओर देखता रहा.

‘‘प्यास तो लगी होगी?’’

अमर फिर भी चुप रहा.

‘‘तो फिर चले जाओ यहां से… न खाओगे, न बोलोगे, तो क्या भूखेप्यासे और गूंगे बन कर यहां रुकोगे?’’ जमीला मीठा गुस्सा बरसाते हुए रसोईघर में चली गई.

फिर एक थाली में खाना परोस कर जमीला खाला जुबैदा खातून के कमरे में दे आई.

घर में ये ही 2 जने थे. जुबैदा खातून ज्यादातर खाट पर ही पड़ी रहती थीं. हां, लाठी के सहारे वे कभीकभार आंगन में टहलने लगती थीं.

उन्होंने पूछा, ‘‘बेटी, किस से बातें कर रही थी?’’

जमीला पहले तो हंसी, फिर बोली, ‘‘एक बुद्धू है खाला. पास ही के गांव का है… भटका हुआ यहां आया है.’’

‘‘उसे खाना नहीं खिलाया?’’

जमीला फिर हंसी और बोली, ‘‘यही तो मुसीबत है. वह ठहरा हिंदू और हम…’’

‘‘तो देखो, वह न खाए तो जबरदस्ती मत खिलाना. उस से कहना कि जब बाहर कहर बरपना बंद हो जाए, तभी यहां से बाहर निकले. बेटी, इनसानियत से बढ़ कर कोई मजहब नहीं है. तू ने अभी तक खाना खाया कि नहीं?’’

‘‘नहीं खाला, घर में आया मेहमान भूखा हो तो मैं कैसे खा लूं?’’

अमर उन दोनों की बातें सुन रहा था. उस के दिल में हिंदूमुसलमान का कोई फर्क न था, पर वह डरा हुआ जरूर था.

जमीला फिर आ कर अमर के सामने चौकी पर बैठ गई. उस ने एक नजर अमर पर डाली. वह भी उसे ही देख रहा था. ज्यों ही जमीला की नजर उस पर पड़ी, वह सहम गया. जमीला उस के डर और भोलेपन को देख भीतर से मुसकरा उठी, पर चेहरे को जरा सख्त बनाए रखा.

जमीला अमर के बारे में सोच रही थी कि अचानक उस की आवाज ने चौंका दिया, ‘‘जमीला, क्या तुम खाना नहीं खाओगी?’’ अमर की आवाज में अपनापन था.

‘न जाने यह कमल किस तरह खिल गया?’ जमीला ने अमर को देख कर सोचा, तो अमर एक बार फिर झेंप गया. लेकिन फिर वह उस की हिरनी जैसी काली, चंचल गहरी आंखों में डूब गया.

अमर ने देखा कि इन आंखों से खूबसूरत कोई और जगह नहीं, फूलों का कोई बगीचा भी नहीं. सागर जैसी इस गहराई में प्यार की लहरें हैं, जो उस की तरफ बढ़ रही हैं.

अचानक जमीला की आवाज ने अमर को चौंका दिया, ‘‘अगर तुम खाना नहीं खाओगे, तो मैं भी नहीं खाऊंगी.’’

‘‘मुझे तो जोरों की भूख लगी है, इसीलिए कह रहा हूं,’’ कह कर अमर हंस दिया.

‘‘कहीं तुम्हारा धर्म तो नहीं बिगड़ जाएगा न?’’

‘‘कैसा धर्म? इनसानियत से बढ़ कर भी कोई धर्म है क्या? जल्दी से दो न मुझे खाना.’’

‘‘अभी देती हूं,’’ कहते हुए जमीला उठ गई.

शाम को जमीला चाय बना कर लाई. एक प्याला अमर के हाथों में थमाया, दूसरा खुद ले कर पीने बैठ गई.

‘‘चाय कैसी लगी?’’ थोड़ी देर बाद जमीला ने पूछा.

‘‘बहुत अच्छी.’’

‘‘और मैं?’’

‘‘तुम… तुम…’’

‘‘हांहां… मैं… बुद्धू…’’ खिलखिला कर हंसते हुए जमीला खड़ी हो गई.

अमर ने देखा, छिपकली की तरह दीवार से लग कर जमीला ने अपने बदन को ऐंठा और हौलेहौले रसोईघर की तरफ चल दी.

जमीला इस वक्त खिली हुई थी. उस का चेहरा सुर्ख हो उठा था. अमर उसे अपने दिल में जगह देने के लिए बेताब सा हो गया.

दूसरे दिन रात के 11 बजे बिलकुल नजदीक ही बम फटने की आवाज आई. धमाका इतना जोरदार था कि बरामदे में खाट पर सोई जमीला हड़बड़ा कर उठ बैठी. उसे लगा, जैसे धरती हिल गई हो.

अमर तो सोया ही नहीं था. कमरे से बाहर आ कर चारदीवारी से उचक कर बाहर देखने की कोशिश करने लगा, पर जमीला ने उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, ‘‘बुद्धू, तुम्हारी यह बचकानी हरकत हम सब को ले डूबेगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें इतनी चिंता क्यों होने लगी है? कहीं मुझे पनाह देने की वजह से तो तुम नहीं डर रहीं? आखिर मैं शरणार्थी ही तो हूं.’’

‘‘क्या कहा? तुम शरणार्थी हो?’’ जमीला झुंझला उठी, ‘‘क्या तुम खुद को शरणार्थी महसूस कर रहे हो? पर शरणार्थी के साथ धोखा भी हो सकता है अमर. तुम्हें काफिर समझ कर उन लोगों के हाथों सौंप भी सकती हूं. बोलो, ऐसा कर सकती हूं कि नहीं?’’

अमर जल्दी से बोल पड़ा, ‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकती…’’

‘‘क्यों नहीं कर सकती… आखिर क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम मुझे चाहती हो…’’ अमर ने कहा.

‘‘तुम झूठ बोलते हो.’’

‘‘यह सच है. मैं नहीं जानता था… मुहब्बत भी कभीकभी इतनी जल्दी हो जाती है. तुम मुझ से प्यार करने लगी हो… और मैं भी…’’

इतना सुनते ही जमीला अमर के सीने से चिपक गई. पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह नदी बन कर किसी सागर में उतरती जा रही है. सारे बांधों को तोड़ते हुए, जैसे उस में समाती जा रही है.

सुबह जमीला रोटियां सेंकसेंक कर अमर की थाली में रखती जा रही थी और वह वहीं पीढ़े पर बैठा खा रहा था. अचानक वह बोल बैठा, ‘‘तुम मुझे इस तरह अपने करीब बिठा कर खाना खिला रही हो, जैसे हम दोनों के बीच मियांबीवी का रिश्ता हो.’’

जमीला ने तवे को चूल्हे से उतार दिया, फिर दुपट्टे से माथे पर आए पसीने को पोंछा और अमर की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘अगर मैं कहूं कि रिश्ता बना लो… यही, जो तुम ने अभी कहा है, तो क्या तुम तैयार हो जाओगे?’’

‘‘मैं तैयार हूं… पर, क्या तुम्हारे धर्म के लोग अड़चन नहीं डालेंगे?’’

‘‘अड़चन तो डालेंगे… और लड़ भी लूंगी मैं उन से, लेकिन मुश्किल है कि तुम अपनों से नहीं लड़ पाओगे अमर. लड़ने की ताकत तुम में है ही नहीं. अगर होती तो तुम मेरे घर छिप कर न बैठते?’’

अमर को लगा, सचमुच वह जमीला से बहस नहीं कर पाएगा. फिर भी उस ने छेड़ा, ‘‘यह जानते हुए भी तुम ने मुझे अपने यहां छिपा कर रखा और प्यार दिया.’’

‘‘इसलिए कि तुम भोले हो… तुम्हारी इसी नादानी और भोलेपन ने ही मुझे खींच लिया.’’

‘‘जमीला, तुम ठीक कहती हो. तुम सचमुच बहुत हिम्मत वाली हो. तुम ने बता दिया कि मुहब्बत ही असली धर्म है. मैं कोशिश करूंगा कि खुद को तुम्हारे जैसा बनाऊं.’’

‘‘लेकिन अमर, याद रहे… मुझे पाने के लिए वह सब तुम नहीं करोेगे, जो आशिक अकसर कर दिया करते हैं. प्यार से लोगों को समझा सको, तभी मुझे भी पा सकते हो.’’

‘‘पर, दुनिया वाले इतनी आसानी से नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों नहीं मानेंगे? अगर नहीं मानेंगे तो पछताना भी उन्हीं को पड़ेगा न…’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘क्योंकि प्यार नहीं पछताता. मौका पड़ने पर अपनी जिद पर अड़ जाता है. चलो, अब चाय पी लो.’’

‘‘तो अब तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे लिए सब सह लूंगा.’’

जमीला एकटक अमर को देखने लगी और अमर जमीला को.

शौहर की मौत के बाद से जमीला की हंसी ही जैसे छिन गई थी. बाद में निकाह के कई रिश्ते भी आए, पर उस ने कोई दिलचस्पी न दिखाई. कुम्हार के चाक पर गढ़ी हुई यह हसीना जब कभी बाहर कदम रखती तो शोहदों का कलेजा बाहर निकल आता. हालांकि, उस के चेहरे पर संजीदगी छाई रहती, पर आंखों से मस्ती और देह से खूशबू छलकती थी.

इन 3 दिनों में ही वे दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे. जमीला ने इतनी खुशी पाई, इतना प्यार पाया, जो सालों में उसे न मिला था. अमर ने जब अपने हाथों से उसे खाना खिलाया, तो वह मजहब की दीवार को भूल गई.

अपने शौहर नसीम के साथ कुछ वक्त उस ने गुजारा था, पर उस ने कभी ढंग से चंद बातें भी न की थीं. वह तो नशे में सिर्फ कड़वी बातें ही कहता था.

कुदरत का खेल भी निराला होता है. एक उस की जिंदगी में आया, पर जल्दी ही चला गया. जमीला उसे हमेशा के लिए भूल गई. पर, दूसरा जो आया, उसे वह अब कहां भूल सकती थी…

यही सोचतेसोचते आधी रात बीत गई. जमीला को नींद न आई, क्योंकि अमर को भोर में ही अपने गांव चले जाना था. फिर कब आएगा, यह तो वही जाने.

जमीला यह कहां जानती थी कि इतनी जल्दी वह एक अजनबी से इस तरह घुलमिल जाएगी… उस की आंखें भर आईं. वह भीतर से आ कर आंगन में बैठ गई.

अमर के दिल में भी यही तूफान चल रहा था. उसे चारों तरफ जमीला ही जमीला दिखाई दे रही थी. एक पल के लिए भी जब बिस्तर पर लेटे रहना उस के लिए मुश्किल हो गया, तो वह भी कमरे से निकल पड़ा.

सामने देखा कि जमीला बैठी हुई है. वह भी उस के नजदीक आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘जमीला, तुम कब से यहां बैठी हो?’’

पर जमीला कुछ न बोली. अमर ने उस का चेहरा ऊपर उठाते हुए वही सवाल दोहराया, तो जमीला हिचकियां लेने लगी. चांद की रोशनी में आंसुओं से लबालब उस की आंखें एकटक अमर को देखने लगीं.

यह देख कर अमर का दिल डूबने लगा. पौ फटने में अभी देर थी. अमर जाने के लिए खड़ा हो गया, तो जमीला ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘फिर कब आओगे?’’

अमर ने भरे गले से कुछ बोलना चाहा, पर होंठों ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

लेखक – डा. महेश चंद

Family Story : पागल आदमी

Family Story : कुदरत ने बहुत सारे हक अपने पास रखे हुए हैं, इसीलिए इनसान जैसा चाहता है, वैसा होता नहीं है. वह सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है.

प्रोफैसर मुकेश बालियान अपने रूम में अकेले बैठे थे. अनमने मन से आज दिन में ही वे शराब पीने बैठ गए थे. अभी उन्होंने एक पैग खाली किया था, लेकिन पता नहीं क्यों अभी दूसरा पैग लगाने को मन नहीं हो रहा था. वे अपनी जिंदगी में बिलकुल अकेला महसूस कर रहे थे. बेवजह ही वे मुसकरा रहे थे और उस मुसकराहट के साथ अचानक से रो भी पड़े थे.

औरतों की तरह मर्द दूसरों के सामने मुश्किल से ही रोता है, लेकिन अकेले में वह अपने दुख में फूटफूट कर रोता है और अपनी बुजदिली को छिपाता है.

जब भावनाओं का जोर कुछ कम हुआ, तो प्रोफैसर मुकेश बालियान ने आंखों में आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने के बाद मन को हलका करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली.

सिगरेट से उड़ते धुएं के छल्ले उन्हें अपनी जिंदगी के छल्लों की तरह एकदम खोखले लग रहे थे. वे सोचने लगे कि आज डायरैक्टर को इस्तीफा सौंपने के बाद उन का और यवनिका का साथ हमेशाहमेशा के लिए छूट जाएगा.

यह प्यार भी अजीब चीज है, साथी का साथ छूटने से ऐसा लगता है जैसे जिंदगी खत्म हो गई हो. जीतेजी मौत का सा अहसास होने लगता है. जिस ने कभी टूट कर प्यार किया हो, वही तो इस को महसूस कर सकता है. उन पत्थरदिलों का क्या, जिन्होंने प्यार को हवस या खिलौना समझा?

प्रोफैसर मुकेश बालियान ने सिगरेट का आखिरी छल्ला हवा में उड़ाया और फिर अपना इस्तीफा लिखना शुरू किया.

लिखने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था. बस, वे तो अपना एक वादा पूरा कर रहे थे, जिस के पूरा होने से किसी की जिंदगी खुशियों से लबरेज हो जानी थी. जैसा उन के साथ हुआ किसी और के साथ न हो, इसीलिए वे इस्तीफा दे रहे थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान की ट्रेन मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन से शाम 5 बज कर 15 मिनट पर छूटनी थी. अपने जरूरी सामान का सूटकेस और एक बैग उन्होंने पहले ही तैयार कर लिया था.

एसी 2 में टिकट का जुगाड़ भी जैसेतैसे हो ही गया था. वे अपना इस्तीफा डायरैक्टर को सौंप कर मुंबई छोड़ने की पूरी तैयारी में थे. मुंबई छोड़ने की वे किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होने देना चाहते थे.

इस्तीफा लिखने के बाद प्रोफैसर मुकेश बालियान ने डायरैक्टर कुलदीप खंडेलवाल से मिलने के लिए समय मांगा. डायरैक्टर अभी औफिस में ही थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान के इस्तीफे को अचानक अपने सामने देख कर उन का चौंक जाना लाजिमी था. ऐसे हालात में जो बातचीत हो सकती थी, वह हुई, लेकिन जब कोई अपनी जिद पर अड़ा हो, तो उसे कौन रोक सकता है?

आखिरकार प्रो. मुकेश बालियान का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. सारी औपचारिकताएं पूरी करवा ली गईं.

प्रो. मुकेश बालियान टैक्सी पकड़ कर मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन पहुंच गए. उन की ट्रेन ‘तेजस राजधानी ऐक्सप्रैस’ मुंबई छोड़ने के लिए तैयार थी.

प्रोफैसर मुकेश बालियान ट्रेन में अपनी सीट पर लेट गए और पुरानी यादों में खो गए. उन की कहानी का कथानक कुछ ऐसा था…

आज से तकरीबन 30 साल पहले प्रोफैसर मुकेश बालियान इसी ट्रेन से पहली बार मुंबई आए थे. उन्होंने सांख्यिकी की एक नैशनल लैवल की प्रतियोगिता पास की थी और उन का एडमिशन मुंबई के एक नामचीन जैव सांख्यिकी संस्थान में हो गया था.

उन्हें खुशी थी कि पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठा रही थी. उन्हें तो बस मेहनत कर के एमएससी बायो स्टैट की डिगरी अच्छे अंकों से हासिल करनी थी.

पहले ही दिन मुकेश बालियान की मुलाकात अजनबी यवनिका से हुई थी. मुलाकात क्या, यह तो पहली नजर का प्यार था.

‘‘मुकेश, किस जगह से हो तुम?’’ यवनिका ने सवाल पूछा था.

‘‘मैं उत्तर प्रदेश से,’’ मुकेश ने छोटा सा जवाब दिया था.

‘‘अरे, उत्तर प्रदेश तो बहुत बड़ा है. उत्तर प्रदेश में कहां से हैं?’’ यवनिका सही जगह जान लेना चाहती थी.

‘‘बिजनौर जिले से.’’

‘‘अरे, यह बिजनौर कहां है? यह नाम तो मैं पहली बार सुन रही हूं.’’

‘‘यवनिका, चाय तो लो. चाय ठंडी हो रही है. मेरठ का नाम तो सुना होगा तुम ने, बस उसी से 100 किलोमीटर उत्तर दिशा में उत्तराखंड के बौर्डर पर बिजनौर जिला है.’’

‘‘मतलब, हरिद्वार के आसपास.’’

‘‘बिलकुल सही यवनिका.’’

मुकेश सोचने लगा था कि यवनिका बहुतकुछ पूछने वाली है, लेकिन मुकेश के मन में भी जिज्ञासा जगी. उस ने पूछा, ‘‘यवनिका, तुम कहां से हो?’’

‘‘मैं तो महाराष्ट्र की हूं, नागपुर से,’’ यवनिका ने बताया.

इस से पहले कि यवनिका कुछ और पूछती, मुकेश ने उठते हुए कहा, ‘‘ठीक है यवनिका, कल मिलते हैं.’’
यवनिका ने अनमने मन से कहा, ‘‘ठीक है.’’

लेकिन यवनिका के मन में मुकेश को ले कर अभी भी कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह तो सारे सवाल आज ही पूछ लेना चाहती थी. वह वहां से प्यासे पपीहे की तरह उठी.

जल्दी ही मुकेश और यवनिका में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन दोनों की अच्छी जोड़ी बन गई थी. संस्थान में यह कोई अचंभे की बात नहीं थी. वहां तो कई प्रेमी जोड़े थे. ऐसे कई छात्र जोड़े थे, जो पहले एमएससी करते, फिर यहीं से पीएचडी करते और यहीं प्रोफैसर बन जाते थे.

मुकेश और यवनिका के परिवार वाले भी उन के प्रेम संबंधों के बारे में जान गए थे, लेकिन उन्हें भी कोई एतराज नहीं था. उन दोनों के परिवार सुलझे हुए और समझदार थे.

एक बार संस्थान की ओर से हिमाचल प्रदेश के कुल्लूमनाली, शिमला और धर्मशाला के लिए 10 दिन का टूर गया था. यवनिका और मुकेश वहां रूमानी दुनिया में खो गए थे.

जवानी के जोश में मुकेश सबकुछ कर लेना चाहता था, लेकिन यवनिका ने कहा था, ‘‘मुकेश, हम कोई नादान बच्चे नहीं हैं, जो ऐसी गलती करें. हम जानवर नहीं हैं कि अपनी हवस पर कंट्रोल न रख सकें. हम इनसान हैं. यह सब काम शादी के बाद.’’

उस दिन से मुकेश की नजरों में यवनिका की इज्जत कई गुना बढ़ गई थी. वह देखता था कि हवस के मारे प्रेमी जोड़े कितने मौजमस्ती में डूबे रहते हैं और फिर आएदिन जानवरों की तरह आपस में ऐसे लड़ते हैं, जैसे उन में कोई शर्महया बची ही न हो.

मुकेश सोचने लगा कि यवनिका कितनी समझदार है. वह चाहती तो मौजमस्ती के लिए कुछ भी कर सकती थी, लेकिन हर चीज का एक दायरा और समय होता है. सच्चा प्यार हवस का गुलाम नहीं होता. प्यार तो जिंदगी में कुरबानी मांगता है.

समय गुजरता गया और उसी संस्थान से मुकेश और यवनिका ने पीएचडी भी कर ली. इस के बाद यवनिका और मुकेश अपने अपनेअपने घर चले गए. दोनों पढ़लिख कर भी अभी बेरोजगार थे और नौकरी की तलाश में थे.

यवनिका के पापा को उस की शादी करने की जल्दी थी. वह 28 साल पार कर चुकी थी.

एक दिन यवनिका के पापा नितिन साल्वे ने उस से कहा, ‘‘यवनिका, मुझे तुम्हारी शादी की बड़ी चिंता है. मैं बूढ़ा तो हो ही रहा हूं, मेरा लिवर भी जवाब दे रहा है. मुकेश अच्छा लड़का है, लेकिन वह अभी बेरोजगार है और नौकरी तलाश रहा है. मैं उस के हाथ में तुम्हारा हाथ कैसे दे दूं, आखिर बेटी का बाप हूं? बेटी के सुख में ही तो बाप का सुख बसता है,’’ कह कर यवनिका के पापा कुछ मायूस से हो गए थे.

तब यवनिका बोली, ‘‘पापा, कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं. मुकेश नौकरी की तलाश तो कर ही रहा है.’’

‘‘यवनिका, मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह कहने की हिम्मत की है. बेरोजगारी के जमाने में नौकरी का क्या भरोसा? मेरी चिंता कड़वी हकीकत है. आज अगर भावनाओं में बह कर मैं तुम्हारा हाथ एक बेरोजगार के हाथ में दे दूं, तो कल तुम्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, तुम्हें इस का अंदाजा भी नहीं है.’’

यवनिका जानती थी कि उस के पापा सही बोल रहे हैं. इतने नामचीन संस्थान से पीएचडी करने के बाद भी लोग उस की बेरोजगारी पर तंज कसने से नहीं चूकते थे.

यवनिका ने कहा, ‘‘पापा, बस कुछ दिन का समय और दे दो. किसी न किसी संस्थान में हम दोनों की नौकरी लग ही जाएगी.’’

‘‘यवनिका, मैं 2 साल से इंतजार ही तो कर रहा हूं, नहीं तो कब का तुम्हारे हाथ पीले कर देता. अब एक अच्छा सा लड़का निगाह में आया है, तो तुम से यह सब कह रहा हूं.

‘‘अपनी ही बिरादरी का एक लड़का मुंबई में इनकम टैक्स महकमे में अफसर लगा है. वह हैंडसम है और अच्छी पगार वाला है. और सब से बड़ी बात है कि अपने हाथ में है.

‘‘वह जिन का लड़का है, वे हमें अच्छे से जानते हैं. मैं चाहता हूं बेटी कि इस मौके को हाथ से न जाने दूं और अपने प्राण निकलने से पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं.’’

उस रात यवनिका ने मुकेश से फोन पर लंबी बातचीत की. मुकेश ने कहा, ‘यवनिका, ऐसा लगता है कि यह पीएचडी ही बोझ बन गई है. किसी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई करता हूं, तो कंपनी वाले यह कह कर टरका देते हैं कि कल तुम्हारी सरकारी नौकरी लग गई, तो हमारी नौकरी छोड़ कर भाग जाओगे.’

‘‘तो मुकेश अब क्या करना है? मैं तो बहुत परेशानी में हूं. पापा मेरी शादी करने की जिद पर अड़े हुए हैं.’’

‘यवनिका, जब इतना अच्छा लड़का मिल रहा है, तो शादी कर लो न. पापा की बात मान लो. मेरी नौकरी के इंतजार में तो तुम बुढि़या हो जाओगी. मेरी तो अपने मांबाप से भी खटपट हो गई है. मैं अलग रह रहा हूं. एडहौक पर एक डिगरी कालेज में नौकरी कर के किसी तरह अपना खर्चा चला रहा हूं.’

‘‘तो क्या हुआ मुकेश, मैं भी ऐसी ही कोई प्राइवेट नौकरी कर लूंगी. आखिर मैं ने भी तो पीएचडी की हुई है. रहेंगे तो दोनों साथ.’’

‘नहीं यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि अपने चलते तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूं.’

‘‘तुम पागलों जैसी बातें क्यों कर रहे हो मुकेश? हम ने प्यार किया है. मैं तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में सोच भी कैसे सकती हूं?’’ यवनिका ने गुस्सा जताते हुए कहा.

लेकिन मुकेश तो जैसे आज ज्ञान का पितामह बना बैठा था. वह फिर से ज्ञान बखारने लगा, ‘यवनिका, हालात को समझो. आदमी तो अकेले भी जिंदगी काट लेता है, लेकिन औरत के लिए अकेले जिंदगी काटना इस दुनिया में मुहाल हो जाता है. और ध्यान रखो तुम…’

‘‘मुकेश, यह क्या पागलपन लगा रखा है? कहीं भांग तो खाना नहीं शुरू कर दिए हो? क्या बेवकूफों वाले उपदेश दिए जा रहे हो? कहीं मुझ से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते हो? कहीं अपने गांव में जा कर किसी दूसरी लड़की से तो चक्कर नहीं चला बैठे?’’

‘बस, इन औरतों के साथ यही परेशानी होती है. जरा सी बात हुई नहीं कि दूसरी औरत का शक दिमाग में बैठ जाता है. मैं तुम्हारा भला चाह रहा हूं और तुम बेबुनियाद आरोप लगाए जा रही हो. अगर ऐसा है तो ऐसा ही सही.’

‘‘मुकेश, जब किसी मर्द को किसी औरत से छुटकारा पाना होता है, तो वह ऐसी ही पागलों जैसी बातें करने लगता है. जाओ मरो तुम उस चुड़ैल के साथ… और आज के बाद फिर कभी मुझे फोन करने की कोशिश भी मत कर लेना,’’ यवनिका ने गुस्से में फोन काट दिया और फफकफफक कर रोने लगी.

मुकेश भी अपनी बेबसी पर रो रहा था. उसे लगा कि अगर उस के पास अच्छा रोजगार होता, तो यवनिका उस की होती. वह शान से उसे दुलहन बना कर अपने घर लाता. वह अब किस मुंह से यवनिका के पापा से यवनिका का हाथ मांगने जाए? प्यार में मजबूर कर के यवनिका को लाना उस की जिंदगी को बरबाद करने के सिवा क्या होगा? क्या प्यार का मतलब यही है? नहींनहीं… किसी की जिंदगी को बरबाद करना प्यार नहीं है.

कुछ दिनों के बाद यवनिका की इनकम टैक्स अफसर दौलत साल्वे के साथ धूमधाम से शादी हो गई. वह अपने पति के साथ मुंबई में रहने लगी. सभी सुख और आराम उस की जिंदगी में थे. उसे मुकेश की याद अभी भी आती थी, लेकिन सिर्फ चिढ़ और नफरत के साथ. उस ने तो मुकेश को अपनी जिंदगी से निकाल ही फेंका था.

यवनिका की किस्मत देखिए कि शादी के कुछ ही महीनों बाद वह उसी संस्थान में असिस्टैंट प्रोफैसर बन गई, जहां से उस ने पीएचडी की थी. वहां पहुंच कर यवनिका को मुकेश के साथ बिताए पुराने दिन याद आए, लेकिन उन में अब सिर्फ नफरत का धुआं था. वे दिन अब उसे काटने को दौड़ते थे.

यवनिका की जिंदगी खुशियों से लबालब भरी थी. पति दौलत साल्वे उसे बहुत प्यार करता था और उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए उतावला रहता था. यवनिका की शानदार नौकरी लगने से उस की खुशियां आसमान छू रही थीं.

खुशियों से भरी जिंदगी के इसी मुहाने पर तकरीबन एक साल के बाद एक दिन… मुकेश यवनिका के सामने आ गया. उसे सामने देख कर पहले तो वह हैरान रह गई और फिर बिना सोचेसमझे नफरत की आग के साथ तिड़क कर बोली, ‘‘तुम और यहां…?’’

‘‘हां, मैं यवनिका, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना चौंक क्यों गई हो?’’

‘‘अब क्या लेने आए हो यहां? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है. मैं अब शादीशुदा हूं.’’

‘‘यवनिका, तुम्हें तुम्हारी शादी की बधाई. बस, मैं तो तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि मेरी भी यहां असिस्टैंट प्रोफैसर के पद पर नौकरी लग गई है.’’

‘‘क्या? क्या कहा… तुम यहां असिस्टैंट प्रोफैसर बन गए हो? और वह चुड़ैल, डायन कहां है, जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा?’’

‘‘यवनिका, फिर वही पागलपन. मेरी जिंदगी में तुम्हारे सिवा कोई दूसरी थी ही नहीं. तुम ने बेवजह ही मुझ पर शक किया है.’’

‘‘तुम मर्द सफेद झूठ बोलने में माहिर होते हो और औरतों को निहायत ही बेवकूफ समझते हो, नहीं तो दुनिया का कोई भी प्रेमी अपनी प्रेमिका की शादी होते हुए नहीं देख सकता.

‘‘तुम उस डायन को कहीं भी छिपा लो, जिस ने तुम्हें मुझ से छीना है, लेकिन एक दिन तो वह सामने आएगी ही. मैं भी देखती हूं कि वह कितनी हुस्न की परी है.’’

अभी यवनिका और मुकेश की बात चल ही रही थी कि तभी उधर से प्रोफैसर राजीव खंडेलवाल आ गए और उन्हें अपनी बातें बंद करनी पड़ीं.

कुछ ही दिनों में यवनिका को यकीन हो गया कि मुकेश की जिंदगी में कोई दूसरी नहीं है. तब एक दिन यवनिका ने मुकेश से अपने दिल की बात कही, ‘‘मुकेश, भले ही मेरा पति मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आने के लिए तैयार हूं, बस अपने प्यार की खातिर.’’

यह सुन कर मुकेश हंसा और फिर बोला, ‘‘यवनिका, मैं ने अभी तक किताबों में ही पढ़ा था कि औरत प्यार में पागल हो जाती है और आज देख भी रहा हूं.’’

‘‘मुकेश, तुम मर्द क्या समझोगे औरत के दिल को? ये पत्थरदिल मर्दों की दुनिया औरत के कोमल दिल को समझ पाती, तो यह दुनिया ही अलग होती. छोड़ो इन सब बातों को, अब इन में क्या रखा है. मुकेश, तुम अपना फैसला सुनाओ.’’

‘‘यवनिका, यह सही है कि तुम्हारा फैसला बहुत बड़ा है. एक औरत के लिए प्यार सब से कीमती चीज है. इस के लिए वह अपनी इज्जत और समाज की भी परवाह नहीं करती है, लेकिन जिस मर्द को तुम इतनी आसानी से पत्थरदिल कह देती हो, वह ऐसा होता नहीं है. वह कम जज्बाती होता है और दुनियादारी की परवाह करने वाला ज्यादा होता है. मैं चाहूं तो जज्बातों में बह कर तुम्हें भगा ले जाऊं, लेकिन इस के बाद जो होगा, उस की तुम ने कल्पना भी नहीं की है.’’

‘‘क्या होगा, जरा मैं भी तो सुनूं?’’

‘‘सब से पहले तो यह समाज तुम्हें कलंकिनी कहेगा. तुम्हारा पति अंदर तक टूट जाएगा और तुम्हारे मांबाप कभी तुम्हें माफ नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘मुकेश, तुम डरपोक हो. इन बातों से मुझे डराओ मत. अपना फैसला सुनाओ. हां या न?’’

‘‘यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि तुम्हारी जिंदगी में भूचाल पैदा कर दूं और दुनिया हम पर थूके. मर्द जिंदगी में एक ही बार प्यार करता है, चाहे शादी वह हजार कर ले. औरत भी एक मर्द के दिल को नहीं समझ सकती. तुम मेरा फैसला सुनना चाहती हो तो सुनो… मैं ने तो जिंदगीभर कुंआरा रहने का फैसला किया है.’’

यह सुन कर यवनिका अपना सिर पकड़ कर बैठ गई, फिर अचानक से बोली, ‘‘इसीलिए… इसीलिए, मुझे तुम से नफरत हो गई है… जिद्दी आदमी. न तुम ने तब मेरी बात मानी और न अब मान रहे हो. आखिर क्यों रहोगे तुम सारी जिंदगी कुंआरे, बस मुझ पर अहसान चढ़ाने के लिए? लेकिन, मैं तो कह रही हूं कि अब भी मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘देखो यवनिका, मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं ने तुम से प्यार किया था और अब किसी और से नहीं कर सकता. एक मर्द यह काम कर ही नहीं सकता कि वह एक बार में 2 औरतों से प्यार करे.

‘‘हां, औरतों को कुदरत ने यह ताकत बख्शी है कि वह एक बार में एक से ज्यादा मर्दों से प्यार कर सकती है और जब मैं यह बात कह रहा हूं, तो मैं प्यार की बात कर रहा हूं, हवस की नहीं.’’

‘‘तुम से बातों में मैं नहीं जीत सकती मुकेश.’’

‘‘यवनिका, आखिरी बात… प्यार का मतलब सिर्फ शादी करना नहीं होता है. मैं तुम्हारे शरीर को छुए बगैर भी तुम से प्यार कर सकता हूं और जिंदगीभर कर सकता हूं,’’ कह कर मुकेश वहां से उठ कर चला गया.

यवनिका के मन में कई सवाल उठे और खत्म भी हो गए. लेकिन यह सुन कर उसे संतुष्टि हुई कि मुकेश उसे जिंदगीभर प्यार करता रहेगा. बाकी सब बातें यवनिका के लिए छोटी हो गई थीं. वह होंठों पर मुसकान लिए अपनी कार की ओर बढ़ गई.

सच में मुकेश उसी संस्थान में रहा. 26 साल गुजर गए थे, लेकिन न तो उस ने शादी की और न ही उस का किसी लड़की या औरत से कोई अफेयर सुना गया. ऐसा लगता था मानो यवनिका से उस ने अपने प्यार को शिद्दत से निभाया था.

यवनिका ने एक दिन मुकेश को बताया, ‘‘मुकेश, अब हम बुढ़ापे की दहलीज पर हैं और मै इतिहास को दोहराते देख रही हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं यवनिका…’’

‘‘मेरे बेटे दुष्यंत की गर्लफ्रैंड ने बोल दिया है कि अगर दुष्यंत की नौकरी नहीं लगी, तो उस के पापा उस की शादी कहीं और कर देंगे. तुम तो जानते ही हो कि दुष्यंत ने अपनी गर्लफैं्रड सोफिया के साथ यहीं से पीएचडी की है. अब तुम्हें तो सब पता ही है कि यहां नौकरी एकदम से तो मिलती नहीं है. कोई वैकेंसी ही नहीं है.’’

मुकेश ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, ‘‘अगर मान लो कि वैकेंसी क्रिएट हो जाए, तब…?’’

‘‘मैं ने डायरैक्टर से बात की है. वे दुष्यंत को इसी कंडीशन पर यहीं लगवाने को तैयार हैं.’’

‘‘तो यवनिका, तुम बिलकुल चिंता मत करो. कल ही यहां एक वैकेंसी क्रिएट होगी.’’

यह सुन कर यवनिका बड़ी जोर से हंसी और बोली, ‘‘मुकेश, या तो तुम बुढ़ापे में सठिया गए हो या फिर तुम ने कोई जादूवादू सीख लिया है. भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कल ही यहां वैकेंसी क्रिएट हो जाएगी?’’

‘‘मैं कह रहा हूं न, इसलिए ऐसा होगा.’’

‘‘अच्छा जादूगर साहब, आप की बात मान लेते हैं.’’

अगले दिन जैसे ही यवनिका को पता चला कि मुकेश इस्तीफा दे कर अपने गांव चला गया है, तो वह दौड़ते हुए डायरैक्टर के कमरे में पहुंच गई. आज उस ने डायरैक्टर से अंदर आने की इजाजत भी नहीं मांगी.

वह हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘सर, क्या सचमुच मुकेश सर इस्तीफा दे कर अपने गांव चले गए हैं?’’

डायरैक्टर यवनिका की भावनाओं को समझेते थे. उन के ‘हां’ में जवाब देते ही यवनिका ऐसे बिलख कर रो पड़ी, जैसा उस का अपना कोई सगा मर गया हो.

मुकेश का जाना यवनिका के लिए किसी हादसे से कम नहीं था. तन भले ही यवनिका ने अपने पति के नाम कर दिया था, लेकिन मन तो उस का मुकेश में ही रमा था.

यवनिका के होंठों पर बस 2 ही शब्द थरथराए, ‘‘पागल आदमी.’’

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