Family Story : तकरीबन 7-8 घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था. रामलाल ने कमला को भी अपने साथ बस से उतार लिया था.

‘‘देखो कमला, तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है, तो तुम उस के साथ क्यों रहना चाहती हो?’’

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनी रही. उस ने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा.

‘‘पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे, तो क्या कहोगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्दबाजी में ब्याह करना पड़ा.’’

कमला कुछ नहीं बोली. दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गए.

रामलाल के सामने पिछले एक महीने में घटी एकएक बात किसी फिल्म की तरह सामने आ रही थी.

रामलाल शहर में मजदूरी करता था. ब्याह नहीं हुआ था, इसलिए जो मजदूरी मिलती उस में उस का खर्च आराम से चल जाता. थोड़ेबहुत पैसे जोड़ कर वह गांव में अपनी मां को भी भेज देता. गांव में एक बहन और मां ही रहते हैं. एक बीघा जमीन है, पर उस से सभी की गुजरबसर होना मुमकिन नहीं था. गांव में मजदूरी मिलना मुश्किल था, इसलिए उसे शहर आना पड़ा.

‘शहर गांव से तो बहुत दूर था, ऊपर उसे कौन रोजरोज गांव आना है…’ सोच कर रामलाल यहीं काम करने भी लगा था. एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था. एक स्टोव और कुछ बरतन. शाम को जब काम से लौटता तो 2 रोटी बना लेता और खा कर सो जाता. दिनभर का थका होता, इसलिए नींद भी अच्छी आती.

रामलाल ईमानदारी से काम करता था, इस वजह से सेठ भी उस से खुश रहता था. वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता.

सालभर हो गया था रामलाल को शहर में रहते हुए. इस एक साल में वह अपने गांव भी नहीं जा पाया था. उस दिन उस ने देर तक काम किया था. वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था. जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह सेठ से कुछ पैसे ले ले. उस ने अपनी जेब टटोली 10 का सिक्का उस के हाथ में आ गया.

‘चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा, कल सेठ से पैसे मिल ही जाएंगे.’ रामलाल ने गहरी सांस ली. 2 रोटी बनाई और खा कर सो गया.

सुबह जब रामलाल नहा कर काम पर जाने के लिए निकला, तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं. सरकार ने लौकडाउन लगा दिया है. बहुत देर तक तो वह इस का मतलब ही नहीं सम झ पाया. केवल यही सम झ में आया कि वह आज काम पर नहीं जा पाएगा. वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया. मकान मालिक उस के कमरे के सामने ही मिल गया था.

‘देखो रामलाल, महीनेभर का लौकडाउन है. कोई वायरस फैल रहा है. तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो.’

रामलाल वैसे ही लौकडाउन का मतलब नहीं सम झ पाया था, उस पर वायरस की बात तो उसे बिलकुल भी सम झ में नहीं आई.

‘कमरा खाली कर दो… मु झ से कोई गलती हो गई क्या?’

‘नहीं, पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे, तो कमरे का किराया कैसे दोगे?’

‘क्या महीनेभर काम बंद रहेगा?’

‘हां, घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे.’

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा. उस के पास तो केवल 10 का सिक्का ही है. वह कुछ नहीं बोला, उदास कदमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया.

जब रामलाल की नींद खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था. उस ने बाहर निकल कर देखा. बाहर सुनसान था. उसे पैसों की चिंता सता रही थी अगर वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से कम खाने का जुगाड़ तो हो जाता.

अगर वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे जरूर दे सकते हैं. उस ने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका. बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उस की हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई. वह फिर से दरी पर लेट गया. उस की नींद जब खुली, उस समय रात के 2 बज रहे थे. भूख के चलते उस के पेट में दर्द सा हो रहा था.

वह उठा और स्टोव जला लिया, पर आटा रखने वाले डब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह जानता था कि उस में थोड़ा सा ही आटा बचा है. अगर अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा. उस ने निराशा के साथ डब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया. 2 छोटीछोटी रोटियां ही बन पाईं. एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डब्बे में रख दिया.

सुबह हो गई थी. रामलाल ने बाहर झांक कर देखा. पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी. वह कमरे से बाहर निकल आया. उस के कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए.

सेठ का घर बहुत दूर था. छिपतेछिपाते वह उन के घर के सामने पहुंच गया था. दिन पूरा निकल आया था. यह सोच कर कि सेठ जाग गए होंगे, उस के हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे. उन के नौकर ने दरवाजा खोला था.

‘जी मैं रामलाल हूं, सेठजी के यहां ठेके पर काम करता हूं.’

‘हां तो…’

‘मुझे कुछ पैसे चाहिए.’

‘हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे. सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते.’

‘पर, वह लौकडाउन लग गया है, न तो काम तो महीनेभर बंद रहेगा.’

‘तभी आना…’

‘तुम एक बार उन से बोलो तो सही, वे मु झे बहुत चाहते हैं.’

‘अच्छा रुको, मैं पूछता हूं,’ नौकर को शायद दया आ गई थी उस पर.

नौकर के साथ सेठ भी बाहर आ गए थे. उन के चेहरे पर झुं झलाहट के भाव साफ झलक रहे थे, जिन्हें रामलाल नहीं पढ़ पाया.

सेठजी को देखते ही उस ने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे, पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया.

‘अब तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई कि घर चले आए…’

‘सेठजी कल आप से पैसे ले नहीं पाया था. मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लौकडाउन हो गया है. इसलिए आना पड़ा,’ रामलाल ने सकपकाते हुए कहा.

‘चल यहां से… बड़ा पैसे लेने आया है. मैं घर पर लेनदेन नहीं करता.’

सेठ ने उसे गुस्साई निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया. उस ने सेठजी के पैर पकड़ लिए, ‘मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं. थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर.’

सेठ उसे ठोकर मारते हुए अंदर चले गए. हक्काबक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. तभी पुलिस की गाडि़यों के आने की आवाज गूंजने लगी. वह डर गया और भागने लगा. छिपतेछिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया, पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया. वह कुछ बोल पाता, इस के पहले ही उस के ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे.

रामलाल दर्द से कराह उठा. पुलिस वालों ने गंदीगंदी गालियां देनी शुरू कर दी थीं. तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नौजवान आ कर रुक गए. उन्होंने पुलिस वालों से कुछ बात की. पुलिस ने उन्हें जाने दिया. रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया. वह हांफते हुए अपने कमरे
की दरी पर लेट गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें पोंछने वाला कोई नहीं था. उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

मां की याद आते ही उस के आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी. रोतेरोते वह सो गया था. दोपहर का समय ही रहता होगा, जब उस की आंख खुली. उस का सारा बदन दुख रहा था. पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था. वह कराहता हुआ उठा. बहुत जोर की भूख लगी थी. वह जानता था कि डब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है.

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा. वह अब क्या करे? उस के सामने अनेक सवाल थे. मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था, सीधे अंदर घुस आया था, ‘तुम कमरा कब खाली कर रहे हो?
वह सकपका गया.

‘मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रुक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो, ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ़ सकूं.’

रामलाल हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया था.

‘नहीं, माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा. तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो… नहीं तो मु झे जबरदस्ती करनी पड़ेगी,’ कहता हुआ वह चला गया.

रामलाल को सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह चुपचाप बैठा रहा. अभी तो उसे शाम के खाने की भी फिक्र थी.

सूरज ढलने को था. रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था, खामोश. और वह करता भी क्या? उस ने कमरे का दरवाजा जरा सा खोल कर देखा. बाहर पुलिस नहीं थी. वह बाहर निकल आया. थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी.

वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया. कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे. वह भी लाइन में लग गया. हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे, इसलिए समय लग रहा था. उस का नंबर आया. एक आदमी ने उस के हाथ में खाने का पैकेट रखा, साथ में और लोग भी उस के चारों ओर खड़े हो गए. कैमरे का फ्लैश चमकने लगा. फोटो खिंचवा कर वे लोग जा चुके थे.

रामलाल भी अपने कमरे की ओर लौट पड़ा, ‘चलो, आज के खाने का इंतजाम तो हो गया. इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह खा लेंगे.’

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी, इसलिए कमरे में आते ही उस ने पैकेट खोल लिया था. पैकेट में केवल 2 मोटी सी पूरी थी और जरा सी सब्जी. सब्जी बदबू मार रही थी, शायद वह खराब हो गई थी.

हक्काबक्का रामलाल पूरी को कुछ देर तक यों ही देखता रहा, फिर उस ने मोटी पूरी को चबाना शुरू कर दिया. दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा. वह अब क्या करे. कमरा भी खाली करना है.

अपने गांव भी नहीं लौट सकता, क्योंकि ट्रेनें और बसें बंद हो चुकी हैं, पैसे भी नहीं हैं. रामलाल समझ नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करे.

रामलाल ने सुबह ही पता लगा लिया था कि सरकार की ओर से खाने का इंतजाम किया गया है, इसलिए वह ढ़ूंढ़ते हुए यहां आ गया था. उस के जैसे यहां बहुत सारे लोग लाइन में लगे थे. वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे. यहीं उस की मुलाकात मदन से हुई थी, जो उस के पास वाले जिले का था. उस से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपनेअपने गांव लौट रहे हैं. मदन भी उन के साथ जा रहा है.

रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है. उसे भी इन के साथ गांव चले जाना चाहिए. पर क्या इतनी दूर पैदल चल पाएगा? पर, अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं. अगर मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा. गहरी सांस ले कर उस ने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया.

शाम को वह अपना सामान बोरे में भर कर तय जगह पर पहुंच गया, जहां मदन उस का इंतजार कर रहा था. सैकड़ों की तादाद में उस के जैसे लोग थे, जो अपनाअपना सामान सिर पर रख कर पैदल चल रहे थे. इन में बच्चे भी थे और औरतें भी.

रात का अंधकार फैलता जा रहा था, पर चलने वालों के कदम नहीं रुक रहे थे. कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ का फोटो खींच रहे थे. इसी वजह से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था. वे गालियां बक रहे थे और लौट जाने को कह रहे थे. भीड़ उन की बात सुन नहीं रही थी. पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था.

‘आप सभी की जांच की जाएगी और रुकने का इंतजाम किया जाएगा, कोई आगे नहीं बढ़ेगा,’ लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था.

सारे लोग रुक गए थे. एकएक कर सभी की जांच की गई. फिर सभी को इकट्ठा कर आग बु झाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई. दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी. मदन भी आंख बंद किए

कराह रहा था. और भी लोगों को परेशानी हो रही थी, पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था.

दवा छिड़कने वाले कर्मचारी उलटासीधा बोल रहे थे. सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था. सैकड़ों लोग और कमरे कम. बिछाने के लिए केवल दरी थी. पानी के लिए हैंडपंप था. औरतों के लिए ज्यादा परेशानी थी. 2 रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था.

‘हरामखोरों ने परेशान कर दिया,’ बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला, एक औरत ने उसे रोक लिया, ‘क्या बोला… हरामखोर… अरे, हम तो अच्छेभले जा रहे थे, हमें जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं.’

उस औरत की आवाज सुन कर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे.

‘भूखों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए…’ वह फिर बड़बड़या.

‘रोकने का इंतजाम नहीं था तो क्यों रोका… 2 सूखी रोटी दे कर अहसान जता रहे हैं,’ किसी ने जोर से बोला था, ताकि सभी सुन लें. पर, साहब को यह पसंद नहीं आया. उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था, ‘कौन बोला… जरा सामने तो आओ… यहां मेरी बेटी की बरात लग रही है क्या… जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवा कर खिलवाएं.’

सारे सकपका गए. वे सम झ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटने पड़ेंगे. छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसेतैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते. बाथरूम तक का इंतजाम नहीं था. औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं.

कोई नेताजी आए थे उन से मिलने. वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से शिकायत नहीं करेगा, इसलिए बाकी सारे लोग तो खामोश रहे, पर एक बूढ़ी औरत खामोश नहीं रह पाई.

जैसे ही नेताजी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘कैसे हो आप लोग… हम ने आप के लिए बहुत सारा इंतजाम किया है उम्मीद है कि आप अच्छे से होंगे.’

बुजुर्ग औरत यह सुन कर भड़क गई, ‘दो सूखी रोटी और सड़ी दाल दे कर अहसान जता रहे हो.’

किसी को उम्मीद नहीं थी. सभी लोग सकपका गए. एक कर्मचारी उस औरत की ओर दौड़ा, पर वह खामोश नहीं हुई, ‘हुजूर, यहां कोई इंतजाम नहीं है. हम लोग एक कमरे में भेड़बकरियों की तरह रह रहे हैं.’

नेताजी कुछ नहीं बोले. वे लौट चुके थे. उन के जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था.

फिर सरकार ने बस भिजवाई थी, ताकि सभी लोग अपनेअपने गांव लौट सकें. मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे, तभी किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई दी थी.

रामलाल उधर पहुंच गया था. एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ कर पीठ पर मुक्के मार रहा था. वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी.

‘इसे क्यों मार रहे हो भाई?’ रामलाल से सहन नहीं हो रहा था.

‘तू बीच में मत पड़. यह मेरी घरवाली है. सम झ गया तू,’ उस ने अकड़ कर कहा.

‘घरवाली है तो ऐसे मारोगे.’

‘तुझे क्या, जा अपना काम कर.’

रामलाल का खून खौलने लगा था, ‘पर बता तो सही, इस ने किया क्या है?’

‘यह औरत मनहूस है. इस के चलते ही मैं परेशान हो रहा हूं,’ कहते हुए उस ने जोर से औरत के बाल खींचे. वह दर्द से रो पड़ी. रामलाल सहन नहीं कर सका. उस ने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया.

‘तुम मेरे साथ बैठो. देखता हूं, कौन माई का लाल है, जो तुम्हें हाथ लगाएगा?’

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी. उस ने अपना नाम कमला बताया था. उस ने तो केवल यह सोचा था कि उस के आदमी का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तो वह ही उसे ले जाएगा. पर, वह उसे लेने नहीं आया.

‘अच्छा ही हुआ. उस ने इस की जिंदगी खराब कर रखी थी, पर अब यह जाएगी कहां?’ सवाल तो रामलाल के मन में था, पर जवाब उस के पास नहीं था. बस से उतर कर उस ने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था.

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी. उसे नहीं मालूम था कि उस का भविष्य क्या है, पर रामलाल उसे अच्छा लगा था. वह जिन यातनाओं से हो कर गुजरी है, शायद उसे उन से छुटकारा मिल जाए.

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थीं.

रामलाल उन से लिपट पड़ा, ‘‘मां…’’ उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. रो तो मां भी रही थी, जब से लौकडाउन लगा था, तब से ही मां उस के लिए बेचैन थीं. उन्होंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था. दोनों रो रहे थे, कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी.

अपने आंसू पोछ कर उस ने कमला की ओर इशारा किया. ‘‘मां, आप की बहू…’’

यह सुन कर चौंक गईं मां, ‘‘बहू… तू ने बगैर मु झ से पूछे ब्याह रचा लिया…?’’

‘‘मां, मजबूरी थी, लौकडाउन के चलते… गांव आना था इसे कहां छोड़ता… बेसहारा है न मां.’’

मां ने नजर भर कर कमला को देखा.

‘‘चल, अच्छा किया.’’ कह कर मां ने कमला का माथा चूम लिया.

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