Satyakatha- जब इश्क बना जुनून: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

शाहिदा इस के लिए तैयार ही थी. उस ने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया तो रईस और शाहिदा के बीच अमित दाखिल हो गया.

इस तरह अमित और शाहिदा के अनैतिक संबंध बन गए. फिर तो अकसर अमित रईस की गैरमौजूदगी में उस के घर जाने लगा. अमित न तो रईस का रिश्तेदार था और न ही दोस्त. वह उस के घर आता भी उस की गैरमौजूदगी में था. इसलिए बिटिया से जब उस के घर आने का पता चला तो उसे शक हुआ. उस ने शाहिदा से उस के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गई. इस से रईस का शक और बढ़ गया.

इस तरह की बातें कहां ज्यादा दिनों तक छिपी रहती हैं. इस की वजह यह थी कि जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों की मिलने की चाह बढ़ती गई और वे लापरवाह होते गए.

जब रईस को पूरा विश्वास हो गया कि उस की बीवी का अमित से गलत संबंध है तो वह शाहिदा को उस से मिलने से रोकने लगा. शाहिदा पहले तो मना करती रही कि उस का अमित से इस तरह का कोई संबंध नहीं है. पर रईस को उस की बात पर जरा भी विश्वास नहीं था. क्योंकि उस के पास पक्का सबूत था कि उस की पत्नी अब उस के प्रति वफादार नहीं रही. वह शाहिदा पर दबाव डालने लगा कि वह अमित से मिलनाजुलना छोड़ दे, वरना ठीक नहीं होगा.

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जब रईस का दबाव बढ़ता गया तो शाहिदा बेचैन हो उठी. इस की वजह यह थी अब तक शाहिदा पूरी तरह से अमित की हो चुकी थी. अब उसे अपने पति रईस से जरा भी लगाव नहीं रह गया था. इसलिए उस ने अमित से साफसाफ कह दिया कि अब वह हमेशाहमेशा के लिए उस की होना चाहती है. इस के लिए जरूरत पड़ेगी तो वह रईस को ठिकाने भी लगा सकती है. क्योंकि रईस जीते जी उन दोनों को एक नहीं होने देगा.

अमित शाहिदा के प्यार में पागल था. उस ने भी हर तरह से शाहिदा का साथ देने के लिए हामी भर दी. इस तरह एक खौफनाक कत्ल की साजिश रची जाने लगी.

अमित और शाहिदा रईस को ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहे थे कि 21 मई, 2021 की शाम ऐसा संयोग बना कि बिना किसी योजना के ही अचानक उन्होंने रईस को ठिकाने लगा दिया.

हुआ यह कि उस दिन रईस समय से काफी पहले घर आ गया. घर पहुंचा तो उसे शाहिदा और अमित आपत्तिजनक स्थिति में मिले. बच्चे बाहर खेल रहे थे. कोई भी गैरतमंद पति अपनी पत्नी को किसी गैर के आगोश में देख लेगा तो उस के शरीर में आग लग ही जाएगी.

शाहिदा को अमित के पहलू में देख कर रईस को भी गुस्सा आ गया. वह शाहिदा और अमित की पिटाई करने लगा.

अमित और शाहिदा ने तो पहले से ही रईस को ठिकाने लगाने की तैयारी कर रखी थी. जब उन दोनों की जान पर बन आई तो शाहिदा दौड़ कर किचन से चाकू उठा लाई, जिस से अमित ने गला काट कर रईस को मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद लाश घर में ही छिपा दी.

पति की लाश घर में पड़ी थी. अगर लाश बरामद हो जाती तो दोनों पकड़े जाते. काफी सोचविचार कर रातोंरात अमित और शाहिदा ने रईस की लाश को उसी घर में गड्ढा खोद कर दफनाने का भयानक निर्णय ले लिया.

कमरे में गड्ढा खोद कर लाश को गाड़ना इसलिए मुश्किल था, क्योंकि कमरे में बच्चे सो रहे थे. लाश को ठिकाने लगाने के लिए शाहिदा ने अपने प्रेमी अमित के साथ किचन में एक गड्ढा खोद डाला.

किचन का वह गड्ढा इतना बड़ा नहीं था कि पूरी की पूरी लाश उस में आ जाती. इसलिए दोनों ने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए पहले लाश के 4 टुकड़े किए, उस के बाद वे टुकड़े बेतरतीब तरीके से एक के ऊपर एक रख कर दफना दिए.

जब यह सब हो रहा था, संयोग से शाहिदा और रईस की 6 साल की मासूम बेटी की आंखें खुल गईं. जब उस ने अपने पापा को 4 टुकड़ों में देखा तो सहम उठी. मारे डर के वह चीख उठी.

उस की चीख सुन कर शाहिदा और अमित घबरा गए. क्योंकि उस बच्ची ने अपनी आंखों से सब कुछ देख लिया था. बच्ची इतनी छोटी नहीं थी कि वह यह न जानती कि यह सब क्या हो रहा है? वह उन दोनों की पोल खोल सकती थी. इसलिए किसी न किसी तरह उस का मुंह बंद कराना था.

पिता की लाश को 4 टुकड़ों में देख कर वह वैसे ही सहमी हुई थी, वह तब और सहम गई जब उस की मां ने कहा कि अगर उस ने किसी को इस बारे में बताया तो वह उसे पानी के ड्रम में डुबो कर मार देगी और उस की लाश को भी उस के पापा की तरह काट कर गाड़ देगी.

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मां की यह धमकी सुन कर वह मासूम बुरी तरह डर गई और जा कर चुपचाप सो गई.

दोनों ने रईस की हत्या की साजिश काफी सोचविचार कर रची थी. तभी तो शाहिदा ने सीमेंट, टाइल्स और घर की मरम्मत का सामान पहले से ही मंगा कर रख लिया था.

रईस को इस सब का बिलकुल पता नहीं था. लेकिन जब उस ने इस सामान को देखा था, तब शाहिदा से पूछा जरूर था. शाहिदा ने कहा था कि वह किचन की मरम्मत कराना चाहती है. रईस को यह तो शक था नहीं कि शाहिदा उस की हत्या भी करवा सकती है, इसलिए उस ने शाहिदा की बात पर विश्वास कर लिया था.

अब रईस ठिकाने लग चुका था. उस की हत्या हो चुकी थी और उसी घर के किचन में दफन है, यह बात शाहिदा, उसकी बेटी और अमित के अलावा किसी और को पता नहीं थी.

लेकिन यह भी सच है कि हत्यारा कोई न कोई सबूत अवश्य छोड़ देता है. ऐसा ही रईस की हत्या के मामले में भी हुआ.

शाहिदा ने अमित के साथ मिल कर जो किया था, उस की मासूम बेटी ने सब देख लिया था, जिस की वजह से केस खुल गया. शातिर खिलाड़ी शाहिदा से पूछताछ के बाद पुलिस ने अमित को भी गिरफ्तार कर लिया.

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थाने में शाहिदा को देख कर अमित ने भी तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस को सारी सच्चाई पता चल चुकी है. इस के बाद सारी काररवाई पूरी कर थाना दहिसर पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

Satyakatha: नफरत की विषबेल- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

हैदराबाद के जुबली हिल्स थाने के इंसपेक्टर राजशेखर रेड्डी अपने औफिस में बैठे आगंतुकों से मुखातिब हो रहे थे. उन के बीच एक 55 वर्षीय व्यक्ति चिंतित और परेशान सा बैठा हुआ था. इंसपेक्टर रेड्डी ने उस से पूछा, ‘‘हां बताइए, यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘सर, मेरा नाम कावला अनाथैया है.’’ उस व्यक्ति ने अपना परिचत देते हुए कहा, ‘‘मैं यूसुफगुड़ा का रहने वाला हूं.’’

‘‘हूं.’’

‘‘सर, मेरी पत्नी कमला बैंकटम्मा 2 दिनों से लापता है. मैं ने उसे अपने स्तर पर हर जगह खोजने की कोशिश की, लेकिन कहीं पता नहीं चला. मैं बहुत परेशान हूं. मेरी पत्नी को ढूंढने में मेरी मदद कीजिए, सर. मैं आप का जीवन भर आभारी रहूंगा.’’

‘‘क्या उम्र होगी आप की पत्नी की?’’ कुछ सोचते हुए इंसपेक्टर रेड्डी ने कावला से सवाल किया.

‘‘यही कोई 50 साल.’’

‘‘50 साल!’’ जबाव सुन कर वह चौंक गए, ‘‘फिर कहां गायब हो सकती हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप दोनों के बीच झगड़ा हुआ हो और वह नाराज हो कर घर छोड़ कर चली गई हों?’’

‘‘नहीं साहब, हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’ कावला अनाथैया दोनों हाथ जोड़ बोला, ‘‘कह रही थी काम से जा रही हूं शाम तक लौट आऊंगी. शाम होने के बाद भी जब घर नहीं लौटी तो चिंता हुई. मैं ने अपनी जानपहचान वालों के वहां फोन कर के पता किया लेकिन वह कहीं नहीं मिली.’’

‘‘ठीक है, एक एप्लीकेशन लिख कर दे दीजिए. उन्हें खोजने की हरसंभव कोशिश करेंगे.’’

‘‘ठीक है, साहब. मैं अभी लिख कर देता हूं.’’ उस के बाद कावला अनाथैया कक्ष से बाहर निकला और एक तहरीर थानाप्रभारी रेड्डी को दे दी.

इंसपेक्टर राजशेखर रेड्डी ने गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जांचपड़ताल शुरू कर दी. यह बात पहली जनवरी, 2021 की थी.

पुलिस बैंकटम्मा की तलाश में जुट गई थी. 3 दिनों की तलाश के बाद भी बैंकटम्मा का कहीं पता नहीं चला तो पुलिस ने जिले के सभी थानों में उस की गुमशुदगी के पोस्टर चस्पा करा दिए और पता बताने वाले को उचित ईनाम देने की घोषणा भी की.

बात 4 जनवरी, 2021 की है. इसी जिले के घाटकेसर थानाक्षेत्र के अंकुशपुर गांव के निकट रेलवे ट्रैक के पास एक 50 वर्षीय महिला की लाश पाई गई. लाश की सूचना पा कर घाटकेसर पुलिस मौके पर पहुंच गई और आवश्यक काररवाई में जुट गई.

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महिला के शरीर पर किसी प्रकार का कोई चोट का निशान नहीं था. लाश की पुलिस ने सूक्ष्मता से पड़ताल की तो उस के गले पर किसी चौड़े चीज से गला घोंट कर हत्या किए जाने का प्रमाण मिला था. यह देख कर पुलिस दंग रह गई थी.

दरअसल, 25 दिन पहले 10 दिसंबर, 2020 को साइबराबाद थानाक्षेत्र के बालानगर के एक कैंपस के पास 40-45 साल की एक महिला की लाश पाई गई थी. हत्यारे ने उस महिला की भी इसी तरह गला घोंट कर हत्या की थी और उस की लाश सुनसान कैंपस में फेंककर फरार हो गया था.

दोनों महिलाओं की हत्या करने का तरीका एक जैसा था. लाश को देख कर यही अनुमान लगाया जा रहा था कि दोनों महिलाओं का हत्यारा एक ही है.

बहरहाल, पुलिस यही मान कर चल रही थी कि हत्यारे ने महिला की हत्या कहीं और कर के लाश छिपाने के लिए यहां फेंक दी होगी. चूंकि जुबली हिल्स पुलिस ने कावला अनाथैया की पत्नी कमला बैंकटम्मा की गुमशुदगी के पोस्टर जिले के सभी थानों में चस्पा कराए थे.

उस पोस्टर वाली महिला की तसवीर से काफी हद तक इस महिला का चेहरा मिल रहा था तो साइबराबाद पुलिस ने जुबली हिल्स पुलिस को फोन कर के मौके पर बुला लिया, ताकि लाश की शिनाख्त आसानी से कराई जा सके.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद जुबली हिल्स पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. लाश की पहचान के लिए पुलिस अपने साथ कावला अनाथैया को भी साथ लेती आई थी.

लाश देखते ही कावला अनाथैया की चीख निकल गई. उन्होंने उस लाश की पहचान अपनी पत्नी कमला बैंकटम्मा के रूप में की.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजवा दिया और गुमशुदगी को हत्या की धारा 302 में तरमीम कर अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया.

कमला बैंकटम्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट अगले दिन यानी 5 जनवरी, 2021 को आ गई थी. रिपोर्ट पढ़ कर इंसपेक्टर राजशेखर रेड्डी चौंक गए थे. रिपोर्ट में बैंकटम्मा की मौत का कारण दम घुटना बताया गया. इस के अलावा उन के साथ दुष्कर्म होने का उल्लेख भी किया गया था.

घटना से 25 दिनों पहले बालानगर क्षेत्र में पाई गई महिला के साथ भी हत्यारे ने दुष्कर्म किया था. दोनों हत्याओं में काफी समानताएं पाई गई थीं. जांचपड़ताल से पुलिस ने पाया कि दोनों हत्याएं एक ही हत्यारे ने की थीं.

इस घटना ने तकरीबन 7-8 साल पुरानी घटना की यादें ताजा कर दी थीं. उस समय हैदराबाद के विभिन्न इलाकों में ऐसी ही महिलाओं की लाशें पाई जा रही थीं, जिस में हत्यारा महिला के साथ दुष्कर्म करने के बाद उस की गला घोंट कर हत्या कर देता था.

काफी खोजबीन के बाद पुलिस ने उस सिरफिरे हत्यारे को ढूंढ निकाला था. उस किलर का नाम माइना रामुलु के रूप में सामने आया था, जो संगारेड्डी जिले के बोरामंडा इलाके के कंडी मंडल का रहने वाला था. कई सालों तक जेल में बंद रहने के बाद वह हैदराबाद हाईकोर्ट से साल 2018 में जमानत पर रिहा हुआ था. उस के बाद वह भूमिगत हो गया था.

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पिछली घटनाओं की कडि़यों को पुलिस ने इन घटनाओं से जोड़ कर देखा तो आईने की तरह तसवीर साफ हो गई. सभी हत्याओं की कडि़यां चीखचीख कर कह रही थीं कि सिरफिरा हत्यारा माइना रामुलु ही इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है.

पुलिस कमिश्नर अंजनी कुमार ने हैदराबाद टास्क फोर्स, जुबली हिल्स पुलिस और घाटकेसर पुलिस को खूंखार किलर माइना रामुलु को गिरफ्तार करने के लिए लगा दिया.

पुलिस की तीनों टीमें दिनरात रामुलु के ठिकानों पर छापा मार रही थीं, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था. आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 22 दिनों बाद यानी 26 जनवरी, 2021 को पुलिस खूंखार सीरियल किलर माइना रामुलु को जुबली हिल्स इलाके से गिरफ्तार करने में कामयाब हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- रामुल की पत्नी ने दिया धोखा

Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

पूजा अस्के अपने घर के रोजमर्रा के काम कर रही थी, तभी किसी ने दरवाजे पर घंटी बजाई. ‘कौन आ गया’ कहते हुए वह दरवाजे

की ओर बढ़ी. जैसे ही उस ने फ्लैट का दरवाजा खोला तो सामने खड़े 2 युवकों को देख कर उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी. क्योंकि दोनों युवक उस के देवर थे. पूजा दरवाजा बंद कर दोनों को अंदर कमरे में ले आई. दोनों युवकों में से एक का नाम राहुल अस्के था, जो उस का सगा देवर था जबकि दूसरे का नाम नवीन अस्के था. नवीन राहुल की मौसी का बेटा था. अकसर दोनों कहीं भी साथ ही आतेजाते थे.

जबलपुर के धार मोहल्ले का रहने वाला राहुल अस्के प्रदेश पुलिस में सबइंसपेक्टर था. जबकि उस का बड़ा भाई जितेंद्र अस्के मध्य प्रदेश पुलिस की एक बटालियन में कंपनी कमांडर था. पूजा जितेंद्र अस्के की ही दूसरी पत्नी थी. जितेंद्र पूजा के साथ इंदौर की मल्हारगंज इलाके में स्थित कमला नेहरू कालोनी के रामदुलारी अपार्टमेंट में रहता था. दोनों अपनी भाभी से मिलने आए थे. पूजा उन्हें कमरे में बिठा कर किचन में चली गई. वह थोड़ी देर में दोनों देवरों और अपने लिए ट्रे में 3 प्याली चाय और नमकीन ले कर लौटी.

तीनों साथ बैठ कर नमकीन के साथ चाय की चुस्की ले रहे थे. चाय खत्म हुई तो पूजा राहुल की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कैसे हो देवरजी.’’

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‘‘ठीक हूं भाभी. आप बताओ, कैसी हो?’’

‘‘एकदम चकाचक, फर्स्टक्लास हूं.’’ चहक कर पूजा बोली, ‘‘मम्मीपापा कैसे हैं? उन की तबीयत कैसी है? घर पर सब खैरियत तो हैं न?’’

‘‘हां…हां, सब ठीक हैं भाभी, और मम्मीपापा भी एकदम ठीकठाक हैं.’’

‘‘और आप..?’’ पूजा ने पूछा.

‘‘एकदम चंगा, शेर की माफिक…’’

राहुल ने इस अंदाज में जवाब दिया था कि सभी अपनी हंसी नहीं रोक पाए और ठहाका लगाने लगे.

कई महीने बाद राहुल अपनी भाभी पूजा से मिलने आया था तो पूजा भी उन के स्वागत में कसर नहीं छोड़ रही

थी. दिल खोल कर उन के आवभगत में लगी रही.

बीचबीच में देवर और भाभी के बीच हंसीमजाक भी होता रहा. 4-5 घंटे का समय कैसे बीत गया, किसी को पता ही नहीं चला. यह बात 24 अप्रैल, 2021 की दोपहर की है.

बात उसी दिन शाम 7 बजे की है. पूजा की पड़ोसन सीमा उस से मिलने उस के कमरे पर पहुंची तो देखा दरवाजे के दोनों पट आपस में भिड़े हुए हैं.

पूजा इतनी देर तक अपना दरवाजा कभी बंद कर के नहीं रखती थी. यह देख कर सीमा को थोड़ा अजीब लगा. फिर बाहर दरवाजे से उस ने कई बार पूजा को आवाज लगाई लेकिन भीतर से कोई हरकत नहीं हुई तो उसे और भी अजीब लगा. सीमा ने दरवाजे को हलका सा धक्का दिया तो किवाड़ अंदर की ओर खुल गए. फिर आवाज लगाती हुई वह उस के कमरे में पहुंच गई, जहां बिस्तर पर पूजा सोती हुई नजर आ रही थी.

सीमा ने फिर से उसे आवाज लगाई लेकिन पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे कुछ शक हुआ. उस ने उसे हिलाडुला कर देखा तो शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी. वह बिस्तर पर अचेत पड़ी थी और उस का शरीर गरम था. यह देख कर सीमा बुरी तरह घबरा गई और वहां से अपने कमरे में वापस लौट आई.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? पूजा के घर पर उस के अलावा कोई नहीं था. उस का पति जितेंद्र अस्के जबलपुर स्थित अपने घर गया था.

सीमा ने पूजा के बेहोश होने की जानकारी उस के पति जितेंद्र अस्के को फोन पर दे दी थी. इस के बाद सीमा ने आसपास के फ्लैटों में रहने वाले अपने जानकारों को पूजा के बेहोश होने की जानकारी दे दी. लोगों ने पूजा की हालत देखते हुए फोन कर सरकारी एंबलेंस बुला कर पूजा को अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने पूजा को मृत घोषित कर दिया.

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उधर पत्नी की बेहोशी की जानकारी पा कर जितेंद्र अस्के घबरा गया और उसी समय प्राइवेट साधन से जबलपुर से इंदौर चल दिया. सुबह होतेहोते वह इंदौर पहुंच गया था.

जैसे ही अस्पताल में उसे पत्नी की मौत की जानकारी मिली तो वह वहां बिलख कर रोने लगा. लोगों ने किसी तरह उसे सांत्वना दे कर चुप कराया तो उस ने पूजा की मौत की सूचना अपनी ससुराल वालों को दी तो सुन कर जैसे उन के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई.

पूजा की मौत पर सहसा उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कल तक तो वह अच्छीभली थी, अचानक उस की मौत कैसे हो सकती है. जरूर दाल में कुछ काला है.

पूजा की छोटी बहन दुर्गा को भी बहन की मौत पर शक हो रहा था. वह घर वालों को साथ ले कर अस्पताल पहुंची, जहां पूजा की बौडी पड़ी थी. बहन की अचानक मौत पर  दुर्गा अपने जीजा जितेंद्र अस्के से भिड़ गई.

वह यह कतई मानने को तैयार नहीं थी कि उस की बहन की मौत अचानक हो सकती है. क्योंकि वह बेहद जिंदादिल इंसान थी. वह भलीचंगी थी. उस की कोख में 8 माह का बच्चा पल रहा था. बच्चे को ले कर वह बेहद संजीदा थी. इस मौत को वह चीखचीख कर हत्या बता रही थी.

अस्पताल में हंगामा खड़ा होता देख प्रशासन ने पुलिस को सूचित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर थोड़ी देर बाद वहां मल्हारगंज थाने की पुलिस आ गई थी. अस्पताल उसी थानाक्षेत्र में आता था. पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले ली. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पूजा के गले पर कुछ निशान नजर आए. इस से पुलिस को भी मामला संदिग्ध लगा तो पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एक दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई. रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या किए जाने का उल्लेख किया गया था. यानी मृतका की बहन दुर्गा का शक सच था. पूजा की हत्या की गई थी.

पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी की हत्या का आरोप जिस व्यक्ति पर लगाया जा रहा था वह उस का पति जितेंद्र अस्के था. जितेंद्र अस्के कोई मामूली व्यक्ति नहीं था. वह मध्य प्रदेश पुलिस की 34वीं बटालियन का कंपनी कमांडर था. एक पुलिस अफसर पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप मढ़ा जा रहा था. फिर क्या था, शक के आधार पर 26 अप्रैल, 2021 को मल्हारगंज के थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर ने पूछताछ के लिए जितेंद्र अस्के को थाने बुला लिया.

उसी समय पूजा की बहन दुर्गा भी थाने पहुंची. उस ने थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर को बताया कि घटना से एक दिन पहले शाम 7 से 8 बजे के बीच में फोन पर उस की पूजा से बात हुई थी. तब पूजा ने बताया था कि जितेंद्र उस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. चरित्र पर लांछन लगा कर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

और तो और जीजा ने अपनी पहली शादी के बारे में दीदी से छिपाया था, उन्हें सच्चाई नहीं बताई थी कि वह पहले से शादीशुदा हैं और 2 बच्चों के पिता भी. दुर्गा के बयान ने थाने में सनसनी फैला दी थी. उस के बयान में कितनी सच्चाई थी, यह जांच का विषय था.

फिलहाल, दुर्गा के बयान ने पूजा हत्याकांड से रहस्य का परदा उठा दिया था. पूजा की हत्या निश्चित ही 2 औरतों के बीच की जंग की उपज थी. दोनों औरतों की लड़ाई ने पूजा को मौत के मुंह में ढकेला था.

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पुलिस हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए जितेंद्र से पूछताछ कर रही थी. कंपनी कमांडर जितेंद्र ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा कि जिस दिन घटना घटी थी उस दिन वह जबलपुर स्थित अपने गांव आया था. पत्नी की हत्या किस ने की, उसे नहीं पता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जितेंद्र को इस हिदायत के साथ छोड़ दिया कि वह शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाए और कहीं जाने से पहले इस की सूचना थाने को देनी होगी.

जितेंद्र को छोड़ने के बाद थानाप्रभारी प्रीतम ठाकुर ने उस की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उस के पीछे पुलिस लगा दी. दुर्गा की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज कर लिया और जांच की काररवाई शुरू कर दी.

इंसपेक्टर प्रीतम सिंह ठाकुर हत्या की जांच करने के लिए अपनी टीम के साथ जितेंद्र के आवास रामदुलारी अपार्टमेंट पहुंचे. पुलिस ने कमरे की गहराई से छानबीन की.

छानबीन के दौरान पुलिस को कोई ऐसा सुराग हाथ नहीं लगा, जिस से वह हत्यारों तक पहुंचती किंतु पड़ोसियों से की गई पूछताछ से इतना जरूर पता चल गया था कि घटना वाले दिन पूजा से मिलने उस के 2 देवर यहां आए थे. कुछ घंटों बाद वे उस के घर से चले गए थे.

देवरों के जाने के बाद से पूजा के कमरे का दरवाजा लगातार बंद आ रहा था. इस का मतलब पूजा की हत्या उस के देवरों ने मिल कर की थी. हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए वे मौके से फरार हो गए. अब तो उन दोनों के गिरफ्तार होने के बाद ही सच का पता चल सकता था.

इस के बाद पुलिस ने अपने मुखबिर तंत्र से पता लगा लिया कि कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के की 2 शादियां हुई थीं. पूजा आस्के उस की दूसरी पत्नी थी और उस ने प्रेम विवाह किया था. धोखे में रखने की वजह से दूसरी पत्नी ने पति जितेंद्र की नाक में दम कर दिया था और पहली पत्नी को छोड़ने के लिए उस पर निरंतर दबाव बनाए हुए थी.

बहरहाल, थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने घटना की सारी सच्चाई एसपी (वेस्ट) महेशचंद जैन और एएसपी (वेस्ट) प्रशांत चौबे को दी तो एसपी महेशचंद ने एएसपी के नेतृत्व में आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एक टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ठाकुर को भी शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने जबलपुर के धार से पूजा के दोनों देवरों राहुल अस्के और नवीन अस्के को हिरासत में ले लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की तो राहुल अस्के ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. हत्या करने में नवीन ने बराबर का सहयोग किया था. उस ने बताया कि हत्या की साजिश बड़े भैया जितेंद्र अस्के के सामने रची गई थी.

अगले भाग में पढ़ें- पूजा के घरवाले उससे खुश क्यों नहीं थे?

Satyakatha- सूदखोरों के जाल में फंसा डॉक्टर: भाग 2

आशीष नेमा अपने साथियों भागचंद यादव, राहुल जैन, धर्मेंद्र जाट, सुनील जाट, अजय जाट के साथ मिल कर सूदखोरी का काम करता था. स्थानीय लोग बताते हैं कि जो भी जरूरतमंद इन के चंगुल में फंस जाता, उसे ये सूदखोर दिन दूना रात चौगुना ब्याज लगा कर तबाह कर देते. पैसे न देने पर घर में घुस कर परिवार की महिलाओं की बेइज्जती करते और जान से मारने की धमकी देते.

नरसिंहपुर और आसपास के इलाके के न जाने कितने लोग इन के कर्ज में दब कर बरबाद हो चुके थे. इन सूदखोरों के पास कर्ज देने का कोई वैधानिक लाइसैंस नहीं था. ये तो केवल अपने रसूख और दबंगई के चलते यह धंधा कर रहे थे.

इन सब बातों से अंजान डा. सिद्धार्थ अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इन सूदखोरों से कर्ज लेने लगे. वे मानते थे कि बैंक से सस्ता लोन मिला है चुक जाएगा. लेकिन वे भूल कर बैठे कि वे उन ठगों के गिरोह की  गिरफ्त में आ गए हैं, जहां कितने ही हाथपैर मारो, दलदल में फंसते जाना है.

सूदखोरों को तो एक दुधारू गाय हाथ आ गई थी. सूदखोरों ने शुरुआत में उन्हें डेढ़दो प्रतिशत के ब्याज पर कर्जा दिया, बाद में यह ब्याज चक्रवृद्धि की तर्ज पर लगने लगा. एक समय ऐसा आया, जब डा. सिद्धार्थ से सूदखोर 120 फीसद तक ब्याज वसूलने लगे. कुछ अवसरों पर तो पैनल्टी की राशि 1 लाख रुपए प्रतिदिन तक हो गई थी.

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सिद्धार्थ को सूदखोरों के चंगुल से बचाने के लिए पूरा परिवार मजबूती के साथ खड़ा तो हुआ लेकिन भ्रष्ट सिस्टम के आगे उन की एक न चली.

एक संभ्रांत परिवार का चिराग डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में ऐसे फंसे कि उन के पास दुनिया छोड़ने का ही इकलौता विकल्प रह गया था. अपनी धनदौलत, मानसम्मान, जीवन सब कुछ गंवाने के बाद भी वह सूदखोरों के कर्जे तले दबते रहे. खास बात यह है कि बरबादी के इस चक्रव्यूह की रचना आशीष नेमा नाम के उस शख्स ने की थी, जिस ने डा. सिद्धार्थ से अपनी जानपहचान को दोस्ती का रूप दिया, फिर उन्हें लुटवाने के लिए घाघ, माफिया सूदखोरों के पास ले गया.

कोतवाली थाना पुलिस द्वारा इस मामले की विवेचना में यह बात सामने आई कि नरसिंहपुर शहर में लगभग 20 सूदखोरों से संबंध रखने वाला मास्टरमाइंड गुलाब चौराहा निवासी आशीष नेमा था.

डा. सिद्धार्थ को सूदखोरों से मिलवाने का काम आशीष नेमा ने किया था. इस के पहले आशीष ने सिद्धार्थ से जानपहचान बढ़ा कर दोस्ती की. दोस्ती के चलते आशीष ने डा. सिद्धार्थ का दिल जीत लिया था.

दरअसल आशीष को यह बात पता थी कि डा. सिद्धार्थ को पैसों की जरूरत है. इसी बात का फायदा उठा कर उस ने पहले छोटीमोटी रकम दे कर सिद्धार्थ का विश्वास हासिल कर लिया. छोटीमोटी मदद के बाद आशीष और सौरभ रिछारिया ने शहर के नामीगिरामी सूदखोरों से मोटी रकम ब्याज पर उठवा दी.

आशीष और सौरभ रिछारिया ने कर्जा तो दिला दिया, लेकिन ये सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. अकसर दोनों सिद्धार्थ से ब्लैंक चैक साइन करवा के रख लेते थे और फिर उन के खिलाफ चैक बाउंस का मामला दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से अनापशनाप तरीके से वसूली करने लगे.

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डा. सिद्धार्थ ने सेकेंडहैंड कारों को बेचने के लिए महिंद्रा फस्ट चौइस नाम से एक एजेंसी की शुरुआत की. इस के लिए उन्होंने 50 लाख रुपए का कर्जा आशीष के माध्यम से दूसरे सूदखोरों से लिया. इस सूदखोरी से मिलने वाली ब्याज की रकम में आशीष नेमा भी पार्टनर रहता. डा. सिद्धार्थ पर जब कर्जा बढ़ता गया तो आशीष नेमा भी अपने असली रंग में आ गया.

डा. सिद्धार्थ की मजबूरी का फायदा उठा कर आशीष ब्याज पर ब्याज वसूलने का काम करने लगा. डा. सिद्धार्थ अपने क्लीनिक से होने वाली सारी आमदनी इन्ही सूदखोरों को देते रहे, मगर उन का कर्जा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, क्योंकि सूदखोरों ने ब्याज की दर 20 से ले कर 120 फीसद तक कर दी थी. उन की एजेंसी की सभी कारें भी सूदखोरों ने हथिया लीं.

पुलिस घटना के सभी पहलुओं की जांच में लगी थी. पुलिस ने जब अपने थाने के रिकौर्ड की पड़ताल की तो एक अहम जानकारी हाथ लगी. करीब 3 साल पहले डा. तिगनाथ फैमिली द्वारा नरसिंहपुर के कुछ सूदखोरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी.

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6 मई, 2018 को तिगनाथ परिवार के सभी सदस्यों ने तत्कालीन एसपी को एक लिखित शिकायत दे कर बताया था कि नगर के कुछ सूदखोरों ने उन के घर में घुस कर गालीगलौज कर जान से मारने की धमकी दी थी. सबूत के तौर पर तिगनाथ फैमिली ने अपने घर पर लगे सीसीटीवी फुटेज, काल रिकौर्डिंग भी पुलिस को उपलब्ध कराई थी.

इस मामले में 7 मई, 2018 को डा. सिद्धार्थ के अलावा उन के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां और पत्नी ने जबलपुर में तत्कालीन आईजी से मुलाकात कर उन्हें भी सूदखोरों की प्रताड़ना के सबूत दिए थे.

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Manohar Kahaniya- दुलारी की साजिश: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

‘‘तुम बहुत समझदार हो. बहुत जल्द मेरी बात समझ गई. रुपए का इंतजाम कर के रखना, जल्द ही फोन कर के बताऊंगा कि पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं.’’ इस के बाद दूसरी ओर से फोन कट गया.

स्क्रीन पर जिस नंबर को देख कर पिंकी की आंखों में चमक जागी थी, वह नंबर उस के पति का था. बदमाशों ने अनिल के फोन से काल कर के फिरौती की रकम मांगी थी. ताकि पुलिस उन तक पहुंच न सके.

खैर, पति के अपहरण की जानकारी पिंकी ने जैसे ही घर वालों को दी, उस की बातें सुन कर सभी स्तब्ध रह गए. किंतु उन्हें इस बात से थोड़ी तसल्ली हुई थी कि अनिल जिंदा हैं और बदमाशों के कब्जे में हैं. अगर उन्हें फिरौती की रकम दे दी जाए तो उन की सहीसलामत वापसी हो सकती है.

अनिल उरांव की मिली लाश

बदमाशों की धमकी सुन कर पिंकी और उस की ससुराल वालों ने पुलिस को बिना कुछ बताए 10 लाख रुपए का इंतजाम कर लिया और शाम होतेहोते बदमाशों के बताए अड्डे पर फिरौती के 10 लाख रुपए पहुंचा दिए गए.

बदमाशों ने रुपए लेने के बाद देर रात तक अनिल को छोड़ देने का भरोसा दिया था. पूरी रात बीत गई, लेकिन अनिल उरांव लौट कर घर नहीं पहुंचे तो घर वाले परेशान हो गए.

अनिल उरांव के फोन पर घर वालों ने काल की तो वह बंद आ रहा था. जिन दूसरे नंबरों से बदमाशों ने 3 बार काल की थी, वे नंबर भी बंद आ रहे थे. इस का मतलब साफ था कि फिरौती की रकम वसूलने के बाद भी बदमाशों ने अनिल उरांव को छोड़ा नहीं था. बदमाशों ने उन के साथ गद्दारी की थी. यह सोच कर घर वाले परेशान थे.

बात 2 मई, 2021 की सुबह की है. के. नगर थाने के झुन्नी इस्तबरार के डंगराहा गांव की महिलाएं सुबहसुबह गांव के बाहर खेतों में आई थीं. तभी उन्होंने खेत में जो दृश्य देखा, वह दंग रह गईं. किसी आदमी का एक हाथ जमीन के बाहर झांक रहा था. जमीन के बाहर हाथ देख कर महिलाएं उलटे पांव गांव की ओर भागीं और गांव पहुंच कर पूरी बात गांव के लोगों को बताई.

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खेत में लाश गड़ी होने की सूचना मिलते ही गांव वाले मौके पर पहुंच गए और इस की सूचना के. नगर थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी डंगराहा पहुंच गए और गड्ढे से लाश बाहर निकलवाई. शव का निरीक्षण करने पर पता चला कि हत्यारों ने मृतक के साथ मानवता की सारी हदें पार कर दी थीं. उन्होंने किसी नुकीली चीज से मृतक की दोनों आंखें फोड़ दी थीं और शरीर पर चोट के कई जगह निशान थे.

डंगराहा में एक अज्ञात शव मिलने की सूचना जैसे ही अनिल के घर वालों को मिली, वे भी मौके पर जा पहुंचे थे. उन्होंने लाश देखते ही पहचान ली. घर वाले चीखचीख कर प्रियंका उर्फ दुलारी के ऊपर हत्या का आरोप लगा रहे थे.

लोजपा नेता की लाश मिलते ही क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. अपहर्त्ताओं ने धोखा किया था. रुपए लेने के बाद भी उन्होंने हत्या कर दी थी.

जैसे ही नेताजी की हत्या की सूचना लोजपा कार्यकर्ताओं को मिली, वे उग्र हो गए और शहर के हर खास चौराहों को जाम कर आग के हवाले झोंक दिया तथा पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर वह पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

पुलिस ने मृतक के घर वालों के बयान के आधार पर उसी दिन दोपहर के समय मृतक की प्रेमिका प्रियंका उर्फ दुलारी को उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए के. हाट थाने ले आई. प्रियंका ने पहले तो पुलिस को खूब इधरउधर घुमाया, किंतु जब उस की दाल नहीं गली तो उस ने पुलिस के सामने अपने घुटने टेक दिए.

प्रेमिका प्रियंका ने उगला हत्या का राज

अपना जुर्म कबूल करते हुए प्रियंका ने कहा, ‘‘इस कांड को अंजाम देने में मैं अकेली नहीं थी. 4 और लोग शामिल थे. घटना का मास्टरमांइड अंकित यादव है और उसी ने योजना के तहत इस घटना को अंजाम दिया था.’’

प्रियंका के बयान के बाद उस की निशानदेही पर पुलिस ने 2 बदमाशों मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को धर दबोचा और थाने ले आई. घटना का मास्टरमाइंड अंकित यादव और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू फरार थे.

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आरोपी मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा ने भी अपने जुर्म कबूल कर लिए थे. पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के स्थान पर उपर्युक्त सभी को नामजद करते हुए भादंवि की धारा 302, 120बी, 364ए और एससी/एसटी ऐक्ट भी लगाया.

पुलिस ने गिरफ्तार तीनों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया और फरार आरोपियों अंकित यादव और मिट्ठू कुमार यादव की तलाश में सरगर्मी से जुट गई थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में आरोपितों के बयान के आधार पर कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय अनिल उरांव मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले के के. हाट थाना क्षेत्र स्थित जेपी नगर के रहने वाले थे. पिता जयप्रकाश उरांव के 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी सीमा और छोटा बेटा अनिल. जयप्रकाश एक रिहायशी एस्टेट के मालिक थे.

विरासत में मिली अरबों की संपत्ति

पुरखों की जमींदारी थी. उन्हें अरबों रुपए की यह चलअचल संपत्ति विरासत में मिली थी. आगे चल कर यही संपत्ति उन के बेटे अनिल उरांव के नाम हो गई थी. क्योंकि

पिता के बाद वही इस संपत्ति का इकलौता वारिस था.

जयप्रकाश एक बड़ी प्रौपर्टी के मालिक थे. उन का समाज में बड़ा नाम था. उन के घर से कोई गरीब दुखिया कभी खाली हाथ नहीं जाता था. गरीब तबके की बेटियों की शादियों में वह दिल खोल कर दान करते थे.

गरीबों की दुआओं का असर था कि कभी घर में धन की कमी नहीं हुई. अगर यह कहें कि लक्ष्मी घर के कोनेकोने में वास करती थी तो गलत नहीं होगा.

यही नहीं, उन्होंने अपनी बिरादरी के लिए बहुत कुछ किया था, इसलिए लोग उन का सम्मान करते थे. बाद के दिनों में जब जयप्रकाश का स्वर्गवास हुआ तो उन्हीं के नाम पर उस कालोनी का नाम जेपी नगर रख दिया गया था.

बहरहाल, अनिल को यह संपत्ति विरासत में मिली थी, इसलिए उस की कीमत वह नहीं समझ रहे थे. पुरखों की यह दौलत अपने दोनों हाथों से यारदोस्तों पर पानी की तरह बहाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते थे.

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समय के साथ अनिल की पिंकी के साथ शादी हो गई. गृहस्थी बसते ही वह 2 बच्चों प्रांजल और मोनू के पिता बने. अनिल की जिंदगी मजे से कट रही थी. खाने को अच्छा भोजन था, पहनने के लिए महंगे कपड़े थे और सिर ढकने के लिए शानदार और आलीशान मकान था.

कहते हैं, जब इंसान के पास बिना मेहनत किए दौलत आ जाए तो उस के पांव दलदल की ओर बढ़ने में देरी नहीं लगती है. अनिल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

जमींदार घर का वारिस तो थे ही वह. अरबों की अचल संपत्ति तो थी ही उन के पास. धीरेधीरे उन्होंने उन जमीनों को बेचना शुरू किया. बेशकीमती जमीनों के सौदों से उन के पास रुपए आते रहे. जब उन के पास रुपए आए तो राजनीति की चकाचौंध से आंखें चौधियां गई थीं.

अगले भाग में पढ़ें- फिरौती ले कर बदल गई नीयत

Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 9: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

अगले स्टेशन पर उतर कर वह झट से कार से पिछले स्टेशन पर लौट गया. पुलिस ने नासेर को एक टैक्सी में बैठते देखा था. पुलिस चुपचाप एक अन्य कार से उस का पीछा कर रही थी. क्रिस्टी भी कार से उस के पीछे लग गया.

नासेर ने सोचा, कहीं भागने से बेहतर वह वापस दुकान पर ही पहुंच जाए. आखिर उस के खिलाफ पुलिस के पास कोई सुबूत भी नहीं है. अत: वह वापस अपने ठिकाने लौट आया.

करीब आधे घंटे बाद क्रिस्टी सीधा उस की दुकान में दाखिल हो गया और अपना पुलिस बैज दिखा कर बोला, ‘‘अली नासेर, मुझे तुम से एक गुमशुदा लड़की फैमी के बारे में पूछताछ करनी है.’’

‘‘मैं इस नाम की किसी लड़की को नहीं जानता, तुम मेरा पीछा छोड़ दो.’’

‘‘तुम जानते नहीं हो तो लारेन को देख कर घबराए क्यों? तुम्हें उस ने पहचान लिया है, तुम्हारा एक नाम मुहम्मद है.’’

‘‘सब गलत, मुझे तंग मत करो.’’

‘‘ठीक है, तुम यहां नहीं तो पुलिस स्टेशन में अपनी सफाई दे देना, हमें अच्छी तरह पता है कि तुम और भी कई लड़कियों से संबंध रखते हो, इसलिए तुम ने 2-3 रोज पहले एक अंगरेज लड़की को भी फंसाने की कोशिश की थी. हम सब तुम्हारी बीवी साफिया को बताने वाले हैं, क्योंकि हम ने तुम्हारी बातचीत रिकौर्ड कर ली है.’’

अब अली नासेर कुछ ढीला पड़ा, उस ने क्रिस्टी से कहा, ‘‘चलो, ऊपर चल कर इतमीनान से बातें करते हैं.’’

क्रिस्टी उस के साथ ऊपर फ्लैट में अकेला चला गया, मगर अपनी जेब में रखे अलार्म बटन को दबा कर उस ने एंडी और मौयरा को इत्तला दे दी.

‘‘इतनी अच्छी साजसज्जा कितने पैसों में कराई?’’

‘‘नहीं, यह सब तो मैं ने खुद किया है.’’

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फ्लैट बहुत शानदार ढंग से सजा था. हलके पीले रंग की दीवारें, सफेद रंग की खिड़कियां, दरवाजे, शानदार सफेद लैदर का सोफा उस पर हरेफीरोजी रंग के खूबसूरत कुशन. वैसे ही हरेफीरोजी परदे, बड़ीबड़ी पेंटिंग, हलके क्रीम रंग का गलीचा. सब बेहद साफसुथरा मगर क्रिस्टी की नजर सिटिंग रूम की बड़ी सी खिड़की पर अटक गई, जिस पर जाली का मेहराबदार परदा पड़ा हुआ था. उस के हरेफीरोजी परदे खुदबखुद मानो रंग बदलने लगे और नीले हो गए. सामने का सफेद सोफा काले रंग में बदल गया, जिस पर बैठी फैमी अपने बच्चे को गालों से सटाए मुसकराने लगी. क्रिस्टी मन ही मन उस तसवीर की असलियत को पहचान गया.

अली नासेर ने पूछताछ में इतना कबूल किया कि एक पेशा करने वाली मोरक्कन लड़की से उस के शारीरिक संबंध थे, क्योंकि उस की पत्नी उस से काफी बड़ी थी और दूसरा पति होने के नाते उस से उस की तृप्ति नहीं होती थी. उस औरत का नाम उसे नहीं मालूम, क्योंकि मोरक्कन होने के कारण वह अपना असली नाम नहीं बताती थी और न ही वह उस की असल जिंदगी के बारे में कुछ जानता था.

‘‘तो फिर तुम उसे कैसे बुलाते थे? अब वह कहां मिलेगी?’’

‘‘फोन नंबर था उस का. मगर वह कुछ महीनों पहले मोरक्को गई थी और अभी तक वापस नहीं आई.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता कि वह अभी तक नहीं आई? तुम ने उसे उस के नंबर पर फोन किया? मुझे वह नंबर दो.’’

‘‘मेरे पास नहीं है. बेकार परेशान मत करो,’’ नासेर उठ कर जाने लगा तो क्रिस्टी ने कड़क कर उसे बैठ जाने को कहा. तभी एंडी भी ऊपर आ गया. नासेर के पास कोई चारा नहीं बचा था.

उस ने नासेर को पुलिस की हिरासत में लेने के लिए एक और सुबूत सामने रखा.

मौयरा स्कूल के हैडमास्टर की इजाजत और असिस्टैंट टीचर की मदद से अब्दुल को ले आई और उस से सब के सामने उस तसवीर के बारे में पूछा, बच्चा फिर रोने लगा और उस ने बताया कि वह आंटी थी. यह सब अली नासेर के सामने किया. बच्चे से पूछा कि क्या तुम्हारे डैड इसे जानते थे? उस ने कहा कि हां वह यहां आती थी और डैड के साथ घूमने जाती थी.

अब अली नासेर के पास कोई जवाब नहीं था. वह मान गया कि अब्दुल फैमी को जानता था. क्रिस्टी ने बच्चे को सुरक्षित घर भिजवा दिया और कड़क कर कहा कि मिस्टर अली नासेर फैमी गायब है. तुम उसे जानते थे और उस के साथ तुम्हारे शारीरिक संबंध थे. उस के गुम हो जाने में तुम्हारा हाथ है. तुम्हें हम गिरफ्तार करते हैं. तुम्हें जो कुछ कहना है अदालत में कहना.

नासेर गिरफ्तार हो गया और थोड़ी सख्ती के बाद उसे सब बताना पड़ा. उस ने फैमी को अपना असली नाम नहीं बताया था और मुहम्मद नाम से उसे फंसा रखा था.

इस देश में वह स्टूडैंट वीजा ले कर मोरक्को से आया था. यहां वह अपने दूर के भाई मुहम्मद जब्बार नासेर का पता ले कर आया था, मगर जब वह उस से मिलने गया तो पता चला कि वह 2-3 साल पहले मर चुका था और उस की विधवा पत्नी साफिया अपनी 3 बेटियों के साथ अकेली गृहस्थी और बिजनैस दोनों चला रही थी.

अली नासेर ने उस से हमदर्दी दिखाई और उस के बिजनैस में हाथ बंटाने का बहाना कर के उस का विश्वास जीत लिया. जल्द ही साफिया ने उसे अपना पेइंग गैस्ट बना लिया. अली हंसमुख जवान लड़का था. साफिया की बेटियां उसे अंकल कहने लगीं और एक दिन साफिया के बूढ़े मांबाप ने उस से पूछा कि वह क्या यहां बस जाना पसंद करेगा?

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अंधे को क्या चाहिए 2 आंखें. अली ने बताया कि वह एक अच्छे खातेपीते परिवार का लड़का है. बाप कपड़े का व्यापारी है. घर में सिलाई की दुकान है. मोरक्को से उस ने स्नातक क्रिमिनल ला में किया है और इधर आगे की पढ़ाई करना चाहता है.

साफिया के बाप ने उसे साफिया से शादी करने के लिए कहा और बताया कि मुहम्मद जब्बार अच्छाखासा पैसा छोड़ कर मरा है, इसलिए उस की बेटियां बेसहारा नहीं रहेंगी और वह शादी कर के यहां की नागरिकता पा जाएगा और घर व बिजनैस भी. अगर वह चारों तरफ से माली सुरक्षा पा जाएगा तो उसे पढ़ाई का खूब वक्त मिलेगा.

हालांकि साफिया उस से उम्र में 5-7 साल बड़ी थी, लेकिन उस ने उस से शादी कर ली. इस शादी से 2 बेटियां और पैदा हो गईं.

इधर अली को कालेज में फहमीदा मिल गई. एक ही देश के होने के कारण दोस्ती और फिर प्रेम होते देर न लगी. साफिया का पैसा तो उसे चाहिए था और उसी शादी की बिना पर उसे यू.के. में रहने का वीजा मिला था. भाई की बीवी से शादी करने पर उसे अपने और जब्बार नासेर दोनों के परिवारों से बहुत मानसम्मान मिला था. सब उसे ऊंचे खयालात का इज्जतदार शरीफ समझते थे. पारिवारिक रूप से जुड़े होने के कारण नासेर अपने भाई के बच्चों की जिम्मेदारी से मुंह नहीं चुरा सकता था.

इसलिए उस ने फैमी को अपना असली नाम व पता नहीं बताया. अपना नाम मुहम्मद अली बताया और अपनी शादी की बात छिपाए रखी. फहमीदा से वह मोरक्को जा कर शादी करने के वादे करता रहा. फिर उसे पता चला कि फैमी गर्भवती है. बस यहीं से उस की सचाई पकड़ी गई. पहले तो बहाने बना कर उस ने गर्भ गिरा देने की मांग की मगर फैमी अड़ी रही. उस की दलील थी कि बच्चे के रहते वह शादी क्यों नहीं कर सकता जबकि वह उन की पाक मुहब्बत का नतीजा था.

तब नासेर झुंझला गया और उस ने साफिया से अपनी शादी की बात बताई.

फैमी का दिल टूट गया. वह चुपचाप नौकरी छोड़ कर कहीं अज्ञात रूप से रहने लगी.  नासेर को इस बात का खौफ था कि कहीं वह उस का राज का परदाफाश न कर दे और पुलिस को न बता दे. वह उसे ढूंढ़ता रहा,

उस की सहेलियों से पूछता रहा फिर जब वह नहीं मिली तो उस के जानने वालों को उस के बारे में अनर्गल बातें बता कर उस का चरित्र हनन किया.

फैमी ने एक बेटे को जन्म दिया और अपनी प्रिय सहेली लारेन को बताया. मगर लारेन ने यह खबर मुहम्मद तक पहुंचा दी और उसे कानून से भी डराया.

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इधर नासेर की अपनी बीवी साफिया से अनबन हो गई. साफिया 5 बेटियों की मां बन चुकी थी मगर अब उसे गर्भधारण करने में कठिनाइयां आने लगी थीं. हालांकि वह भी हर औरत की तरह एक पुत्र चाहती थी. पुत्र होने पर ही उसे अली नासेर का उत्तराधिकार मिल सकता था. नासेर उसे कई बार यह कह चुका था.

जब मुहम्मद को पता चला कि फैमी ने पुत्र को जन्म दिया है तो उस की नीयत डोल गई. यह उस का बच्चा था, कदाचित एकमात्र पुत्र, अत: उस ने फहमीदा को फिर से अपने प्रेमजाल में लपेट लिया. हजारों माफियां मांगी, कसमें खाईं और बच्चे के लिए उपहारों के ढेर लगा दिए. उस ने कसम खाई कि कभी वह अपने बेटे से अलग नहीं रहेगा और साफिया को कुछ भी पता नहीं होने देगा. वह फहमीदा को हर तरह से मदद करने लगा. ताकि वह बेटे की देखभाल ठीक से कर सके और उसे मदद के लिए कहीं भटकना न पड़े.

वह रोज बेटे से मिलने जाने लगा. फहमीदा उस के लाड़प्यार को देख कर आश्वस्त हो गई. कुछ दिन बाद नासेर ने पासा फेंका.

‘‘मुझ जैसा अभागा कौन है दुनिया में जो अपने बेटे को बेटा न कह सके.’’

इधर फहमीदा बदनामी के डर से घुली जा रही थी. वह न तो खुल्लमखुल्ला किसी से मिल सकती थी, न ही नौकरी कर सकती थी. न ही वह अपने देश वापस मां से मिलने जा सकती थी.

एक दिन नासेर ने साफिया को केवल बेटियां पैदा करने के लिए बहुत शर्मिंदा किया. कहा कि उस का पुश्तैनी हक का पैसा तो बिना वारिस के डूब ही जाएगा. साफिया बहुत रोईधोई. साफिया के बूढ़े मांबाप भी बहुत

दुखी हुए.

नासेर ने पासा फेंका, ‘‘मुझे लगता है कि अब बस यही सूरत है कि हम एक मोरक्कन बच्चा गोद ले लें.’’

साफिया डर गई कि कहीं नासेर उसेछोड़ कर दूसरी शादी न कर बैठे. हालांकि उसे पता था कि नासेर जैसा खुदगर्ज कभी भी उसे नहीं छोड़ेगा. वही तो उस की सोने का अंडा देने वाली मुरगी थी. एक तो मांबाप का पैसा, दूसरी अपने पहले पति की कमाई और तीसरी उस की खुद की कमाई. नासेर के पौबारह थे.

साफिया के मांबाप ने भी उसे समझाया कि अगर वह नासेर को रखना चाहती है तो उसे बात माननी पड़ेगी. पहले तो वह घबराई फिर रजामंदी दे दी. उस ने सोचा कौन सा कोई बच्चा हथेली पर उग रहा है. देखी जाएगी जब मिलेगा.

साफिया के हां कहते ही मुहम्मद ने फहमीदा को समझाना शुरू किया. उस ने कहा कि वह ऐसा इंतजाम करेगा कि फहमीदा बच्चे से मिल भी सकेगी और वह बाप के पास भी रह सकेगा.

जानबूझ कर नासेर ने फहमीदा को साफिया से नहीं मिलवाया. फहमीदा ने दूर से साफिया को देखा जरूर था मगर साफिया के तो सपने में भी कोई नासेर की चहेती नहीं थी. अकसर बीवियों से धोखा करने वाले ऊंचेऊंचे वादे करते हैं और अपने झूठे प्यार का इजहार करते हैं.

नासेर ने फहमीदा से भी झूठा नाटक खेला. उसे लालच दिया कि वह उसे

मोरक्को मां से मिलने जाने देगा. बस, वह बच्चा उस के पास छोड़ दे. फहमीदा राजी हो गई. उस का बच्चा अपने बाप के पास पलेगा. वह उस से मिलती रहेगी. उसे कोई कमी नहीं होगी कभी, न ही वह अवैध संतान कहलाएगा. वरना भविष्य में वह अपने ही बेटे को क्या जवाब देगी, अपनी मां को क्या जवाब देगी वगैरहवगैरह…

बच्चा 5-6 महीने का हो चला था. फहमीदा उसे बोतल से दूध पिलाने लगी थी. एक दिन मुहम्मद उसे साफिया को दिखाने ले गया. आंखों से आंसू भर कर फैमी ने उसे ले जाने दिया.

साफिया और उस की बेटियों ने जब गोलमटोल प्यारा सा बच्चा देखा तो वे उस की दीवानी हो गईं. नासेर ने बताया कि उस बच्चे की मां मोरोक्को की है. उस की उम्र अभी 20 वर्ष भी नहीं है, लेकिन उस का आदमी एक मोटरसाइकिल ऐक्सीडैंट में मर गया.

अगर साफिया बच्चा गोद ले लेती है, तो वह बेचारी दूसरी शादी कर लेगी या आगे पढ़ाई कर लेगी.

धोखाधड़ी: न्यूड वीडियो कालिंग से लुटते लोग

मध्य प्रदेश में ग्वालियर की शिंदे की छावनी में रहने वाले 32 साला जयराज सिंह तोमर (बदला हुआ नाम) अपने ह्वाट्सएप पर मैसेज देख रहे थे कि तभी उन के पास एक अनजान फोन नंबर से वीडियो काल आया.

क्या पता किस का होगा, यह सोचते हुए उन्होंने काल रिसीव किया, तो स्क्रीन का नजारा देखते ही उन के एकदम से पसीने छूट गए.

मोबाइल फोन की स्क्रीन पर तकरीबन 20-22 साल की एक खूबसूरत लड़की मदमस्त अंदाज में अपनी दोनों छातियों को मसलते हुए जीभ लपलपा रही थी और उन की तरफ फ्लाइंग किस भी दे रही थी.

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थोड़ी देर के लिए उस लड़की ने उभारों से अपने हाथ हटाए, तो जयराज सिंह तोमर पगला उठे. एक बार तो मन में आया कि हाथ बढ़ा कर स्क्रीन में ही उस सुंदरी को दबोच लें, लेकिन वह जिस अंदाज में आंधी की तरह आई थी, उस से भी बड़ा तूफान उन के दिलोदिमाग में मचा कर छू हो गई यानी उस ने फोन काट दिया.

यह सब कुल 20 सैकंड में हुआ. जयराज सिंह तोमर की कनपटियां तो इतने में ही गरम हो गई थीं और सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी.

लौकडाउन यानी फुरसत के दिन थे. उन की हार्डवेयर की दुकान बंद थी, लिहाजा दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. खाली समय में वे या तो यूट्यूब पर पोर्न साइटें खोज कर ब्लू फिल्में देख रहे थे या फिर नजदीकी दोस्तों की भेजी गई पोर्न फिल्मों के टुकड़े देख कर समय गुजार रहे थे.

कभीकभार तो अपने जोश में जयराज सिंह तोमर पत्नी के साथ हमबिस्तरी कर शांत हो लेते थे, लेकिन जाने क्यों ये फिल्में देख कर उन्हें सैक्स के नएनए तरीके आजमाने का मन करने लगा था, जिन में पत्नी को दिलचस्पी नहीं थी.

आज इस जवान और हसीन लड़की की मस्त अदाओं ने तो जयराज सिंह तोमर के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं. बारबार वे अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन और वह नंबर देख रहे थे मानो उस लड़की का वीडियो काल दोबारा आएगा और वह फिर से उन्हें जन्नत की मुफ्त सैर करवाएगी.

कौन हो सकती है वह लड़की और क्यों उस ने उन्हें काल किया? इन सवालों के जवाब खोजतेखोजते कुछ देर बाद उन्होंने कांपते हाथों से वह नंबर डायल किया और एक घंटी दे कर काट दिया.

कुछ सैकंड बाद ही उसी नंबर से मैसेज आया, जिस में लिखा था, ‘और देखोगे बाबू?’

‘हां…’ जयराज सिंह तोमर ने बिना देरी किए जवाब भेज दिया.

‘तो बाथरूम में जाओ और अपना अंग दिखाओ,’ वहां से दोबारा मैसेज आया.

जयराज सिंह तोमर चाबी भरे खिलौने की तरह बाथरूम में तो चले गए, लेकिन अपने कपड़े उन्होंने नहीं उतारे. बाथरूम जाने की एक वजह यह भी थी कि वहां किसी के आ जाने का डर नहीं था.

फिर वीडियो काल आया और वही लड़की अपने उभारों को पहले की तरह ही मसलते, उछालते और दबाते दिखी, तो वे तो पगला उठे. लड़की कुछ बोल नहीं रही थी. एक बार वह अपना हाथ इस अंदाज में अंडरवियर तक ले गई मानो उसे भी उतार फेंकेगी.

दुनियाजहान भूलभाल कर जयराज सिंह तोमर नजरें गड़ाए उस के संगमरमरी बदन और अदाओं में खोए हुए थे कि फिर मैसेज आया, ‘अपना दिखाओ…’

अब तक जयराज सिंह तोमर इतने जोश में आ चुके थे कि मैसेज न भी आता तो खुद कपड़े उतारने वाले थे, पर अब तो उन्हें यह ज्ञान भी हासिल हो

गया था कि अगर लड़की से उस का अंडरवियर उतरवाना  है, तो पहले खुद का उतारना पड़ेगा.

एक हाथ में मोबाइल फोन पकड़े जयराज सिंह तोमर ने गजब की फुरती  से दूसरे हाथ से लुंगी की गांठ खोली और फिर अंडरवियर भी निकाल दिया. उधर लड़की ने भी मानो उन की नकल की, फिर तो जयराज सिंह तोमर बेकाबू  हो गए.

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उस लड़की के बदन पर एक भी बाल नहीं था और वह तरहतरह से ऐसी अदाएं दिखा रही थी कि जयराज सिंह तोमर को होश नहीं रहा और वे हस्तमैथुन करने लगे.

जब होश आया तो…

कोई 4 मिनट बाद काल बंद हो गया, तो जयराज सिंह तोमर भी कपड़े पहन कर बाहर आ गए. बिस्तर पर आ कर ऐसे गिरे जैसे मीलों दौड़ कर आए हों. कितना अच्छा हो अगर वह लड़की रोजरोज ऐसा ही करे, यह सोच ही रहे थे कि उसी नंबर से एक वीडियो आया.

उन्हें लगा कि उस लड़की ने एक और खास वीडियो उन के लिए भेजा है. लेकिन जैसे ही वीडियो चलाया तो उन के हाथों के तोते उड़ गए, क्योंकि वीडियो लड़की का नहीं, बल्कि उन्हीं का था जिस में वे बेकाबू होते अपने बाथरूम में हस्तमैथुन करते नजर आ रहे थे.

चंद सैकंड में ही दिमाग की बत्तियां जलीं, तो जयराज सिंह तोमर के हाथपैर कांपने लगे. लड़की की मंशा उन्हें सम झ आ गई थी. आगे कुछ और सोचसम झ पाते, इस के पहले ही मैसेज आया, ‘2 घंटे के अंदर 5,000 रुपए हमारे खाते में डाल दो, नहीं तो यह वीडियो तुम्हारी पत्नी और तमाम रिश्तेदारों को भेज दिया जाएगा.’

मैसेज में ही बैंक एकाउंट के डिटेल्स दिए हुए थे. जयराज सिंह तोमर ने खूब सोचा और फिर भलाई इसी में सम झी कि बदनामी और जगहंसाई से बचना है, तो बिना किसी चूंचपड़ के पैसे दे दिए जाएं यानी ब्लैकमेल हो जाया जाए.

पैसे ट्रांसफर करने से पहले हिम्मत जुटाते हुए उन्होंने लड़की के नंबर पर काल किया तो घंटी जाती रही. मैसेज किया तो वह डिलीवर ही नहीं हुआ. थकहार कर उन्होंने वौइस काल किया तो नंबर नौट रीचेबल आने लगा. ट्रूकौलर पर चैक किया, तो किसी पूनम रानी का नाम आया.

सोचनेसम झने के लिए अब कुछ खास नहीं बचा था सिवा इस के कि 5,000 रुपए खाते में डाल दिए जाएं, नहीं तो इज्जत का पंचनामा बन जाएगा.

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हालांकि मन में खटका यह भी आया कि अब तो वह लड़की कभी भी ब्लैकमेल करेगी, लेकिन हालफिलहाल 2 घंटे की मीआद से बचना जरूरी था, सो उन्होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए और लुटेपिटे से बैठे अपनी बाथरूम वाली बेवकूफी को कोसते रहे, जो बहुत ज्यादा महंगी पड़ी थी.

एक ढूंढ़ो मिलते हैं हजार

अच्छा तो यह रहा कि दोबारा उस कमबख्त पूनम रानी का मैसेज नहीं आया, जिस के बाबत जयराज सिंह तोमर सरीखे लोग हलकान हैं, क्योंकि उन से भी  झांसे या सैक्सी नजारे देखने के लालच में वही गलती की थी, जो जयराज सिंह तोमर से हुई थी.

ऐसे लोगों की ठीकठाक तादाद तो शायद ही कोई बता पाए, लेकिन एक अंदाजे के मुताबिक यह हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में हो सकती है. इस का अंदाजा अभी तक पकड़े गए ब्लैकमेलर्स के बयानों से भी लगता है, जो बाकायदा गिरोह बना कर काम करते हैं.

ऐसा ही एक गिरोह बीते दिनों भोपाल में पकड़ा गया था, जिस के सरगना थे पेशे से ठेकेदार यादराम और एमए में पढ़ रहा पुरुषोत्तम मीणा, जिन्हें यह काम वसीम नाम के एक दोस्त ने सिखाया था. इन दोनों ने सैकड़ों लोगों से लाखों रुपए की रकम उन के न्यूड वीडियो बना कर ऐंठी थी.

इन लोगों ने बताया था कि वे हर महीने साढ़े 5 लाख रुपए तक इस अनूठे धंधे से कमा रहे थे. ये लोग एक शिकार से 20,000 रुपए से ले कर 60,000 रुपए तक वसूलते थे. दिलचस्प बात यह कि एक बार जिस से पैसे ले लेते थे, उसे दोबारा तंग नहीं करते थे, जिस से कि  वह शिकायत ले कर पुलिस में रिपोर्ट  न लिखवाए.

वसीम को फिरोजपुर के  िझरका से और पुरुषोत्तम और यादराम को राजस्थान के अलवर से गिरफ्तार किया था.

मई और जून के महीने में अकेले मुरैना में 72 लोगों को एक और गिरोह ने चूना लगाया था. आम तो आम खास लोग भी इन से या सैक्सी लड़कियों के नंगे बदन और अदाएं देखने की हसरत  से खुद को बचा नहीं सके थे. इन के शिकारों में मुरैना का एक नामी नेता और कई बड़े बिजनैस में भी शामिल हैं.

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के कांग्रेसी विधायक नीरज दीक्षित को भी एक गिरोह ने ब्लैकमेल किया था.

ऐसे कितने गिरोह देशभर में ब्लैकमेलिंग की वारदात को अंजाम दे रहे हैं, इस की गिनती भी कोई नहीं कर सकता, क्योंकि बैठेबिठाए मुफ्त के इस धंधे से इन दिनों हर कोई चांदी काट रहा है.

ग्वालियर में ही एक कृषि अधिकारी और एक बड़े व्यापारी से ऐसे गिरोह ने लाखों रुपए  झटके थे. पिछले साल सितंबर महीने में रायपुर में भी एक ऐसे गिरोह की शिकायत भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन यानी एनएसयूआई के छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष आकाश शर्मा ने की थी.

आकाश शर्मा ने इन के  झांसे में न आ कर पुलिस में शिकायत कर दी थी. यह गिरोह उत्तर प्रदेश के नोएडा का था, जिस में किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. हां, ठगने की कोशिश जयराज सिंह तोमर की तर्ज पर की गई थी.

पुलिस की जांच में यह खुलासा हुआ था कि यह गिरोह सैकड़ों लोगों से लाखों रुपए वसूल चुका है, क्योंकि ज्यादातर लोग डर और बदनामी के चलते रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते. पुलिस को शक है कि कुछ लोगों ने घबरा कर खुदकुशी भी कर ली.

उत्तर प्रदेश के ही  झांसी से साइबर क्राइम पुलिस ने 14 जून को इंजीनियरिंग के 3 छात्रों अशफाक खान, जावेद खान और मोहम्मद शोएब को गिरफ्तार किया था.

इन की शिकायत अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के एक सीनियर और इज्जतदार प्रोफैसर ने की थी, जिन से ये तीनों 3 लाख रुपए  झटक चुके थे और फिर पैसों की मांग कर रहे थे. तंग आ कर प्रोफैसर साहब ने इन की शिकायत अलीगढ़ पुलिस को की थी.

पूछताछ में इन तीनों ने माना था कि वे उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश में कई लोगों को ब्लैकमेल कर चुके हैं.

ऐसे फंसते हैं लोग

जैसे ग्वालियर के जयराज सिंह तोमर और अलीगढ़ के प्रोफैसर साहब फंसे, वैसे ही लड़कियों की न्यूड वीडियो देखने के तमाम शौकीन फंसते हैं. जान कर हैरानी होती है कि इन गिरोहों  में लड़कियां न के बराबर होती हैं.

दरअसल, गिरोह वाले मोबाइल फोन चालू होते ही पहले से रिकौर्ड वीडियो की क्लिप चला देते हैं. देखने वाले को लगता है कि वे लड़की को लाइव देख रहे हैं, इस से उन का जोश और बढ़ जाता है.

शिकार फांसने के लिए ये गिरोह सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं, खासतौर से फेसबुक का जिस पर किसी खूबसूरत लड़की की फर्जी प्रोफाइल बना कर ये शिकार को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजते हैं और धीरेधीरे सैक्सी बातें करना शुरू कर देते हैं.

सामने लड़का है या लड़की, यह शिकार को तब पता चलता है, जब वह पूरी तरह इन के जाल में फंस जाता है. फेसबुक पर ही ये शिकार का ह्वाट्सएप नंबर लेते हैं और फिर न्यूड वीडियो दिखा कर बाथरूम या अकेले में जाने के लिए उकसाते हैं. इस के बाद ये मैसेज के जरीए जैसा करने के लिए कहते हैं, शिकार वैसा ही करने लगता है, जिस की ये लोग रिकौर्डिंग कर लेते हैं.

नया हथकंडा है सैक्स्टौर्शन

जब लोग फंसने लगे, तो इन ब्लैकमेलर्स ने सैक्स्टौर्शन का हथकंडा भी अपनाना शुरू कर दिया. जैसा कि रायपुर के आकाश शर्मा के साथ करने की कोशिश की थी.

सैक्स्टौर्शन को आसान जबान में सम झें, तो इस में वीडियो कालिंग के दौरान काल करने वाला काल उठाने वाले की रिकौर्डिंग कर लेता है. इस के बाद उस का चेहरा किसी मिलतीजुलती कदकाठी वाले शख्स के नंगे वीडियो में जोड़ दिया जाता है.

यह काम इतनी सफाई से किया जाता है कि शिकार खुद चकरा उठता है कि वीडियो में दिख रहा शख्स वही है. फिर यह वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर उसे निचोड़ा जाता है. बदनामी के डर से शिकार इन्हें पैसे दे देता है.

सैक्स्टौर्शन का मकसद नंगे वीडियो दिखाना कम शिकार की रिकौर्डिंग करना ज्यादा होता है, जिस से बाद में इतमीनान से उस में हेरफेर और ऐडिटिंग कर पोर्न वीडियो की शक्ल में उसे तबदील कर लिया जाए.

इस टैक्निक को अमल में लाने वाले ज्यादातर गांवदेहात के तेज दिमाग वाले नौजवान होते हैं. इन्हीं लोगों ने हकीकत में कोरोना के लौकडाउन की आपदा को अवसर में बदलते खूब मौज की और धड़ल्ले से अभी भी कर रहे हैं.

ऐसे बचें इन चालबाजों से

यह तो बिना सम झाए सम झने वाली बात है कि न्यूड वीडियो कालिंग और सैक्स्टौर्शन से बचने का बड़ा कारगर तरीका अनजान नंबर से आए वीडियो काल को रिसीव नहीं करना चाहिए, जिस से न रहेगा बांस और न बजेगा आप का बैंड, लेकिन इस के अलावा  भी ये एहतियात हमेशा बरतनी चाहिए, जिस से आप इन ब्लैकमेलर्स का शिकार न बनें :

* अपने फेसबुक एकाउंट पर किसी भी अनजान को न जोड़ें. उस की फ्रैंड रिक्वैस्ट रिजैक्ट कर दें.

* अपनी फेसबुक प्रोफाइल लौक कर के रखें. यह सहूलियत सैटिंग्स में जा कर आसानी से मिल जाती है.

* मोबाइल फोन पर कोई भी अनजान वीडियो काल अटैंड करते समय फ्रंट कैमरा बंद कर दें या अंधेरे में जा कर उठाएं.

* अपने जज्बातों और मुफ्त की नग्न होती लड़की को देखने की ख्वाहिश को काबू में रखते हुए बाद के नतीजों पर गौर कर लें.

* अपने घरपरिवार की जानकारी सोशल मीडिया पर सा झा न करें.

* इस के बाद भी फंस ही जाएं, तो ब्लैकमेल होने के बजाय पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएं. इस से ब्लैकमेलर्स के हौसले पस्त पड़ते हैं.

एक अंदाजे के मुताबिक, लौकडाउन के दौरान यह धंधा 500 फीसदी तक बढ़ा है और अभी भी लगातार बढ़ ही रहा है. इस की एक बड़ी वजह वे लोग भी हैं, जिन्होंने बजाय पुलिस में जाने के ब्लैकमेल होने का रास्ता चुना.

Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज इलाके में कुछ ही समय में आधा दर्जन ऐसी घटनाएं घटीं, जिन से करीबी रिश्तों में बढ़ रहे अपराध का पता चलता है.

वैसे, यह बात केवल एक जगह की नहीं है. समाज में हर जगह एक सा हाल है. अपराध की घटनाओं की पड़ताल करने पर यह सच उजागर हो जाता है.

प्रेमी संग मंगेतर की हत्या

शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशा के साथ तय हुई थी. निशा लखनऊ पीजीआई अस्पताल के पास ही एकता नगर में रहती थी. वह अपने 2 भाइयों में सब से छोटी और लाड़ली भी थी.

शहाबुद्दीन भी अपने घर में सब से छोटा था. वह बंथरा में रहता था. दोनों के घर के बीच 35 किलोमीटर की दूरी थी. शहाबुद्दीन ट्रासपोर्ट नगर में दुकान पर नौकरी करता था, जो दोनों के घरों के बीच थी.

हसमतुल निशा ने अपने घर वालों के कहने पर शहाबुद्दीन के साथ शादी के लिए हामी तो भर दी थी, पर वह अपने प्रेमी शाने अली को भूलने के लिए भी तैयार नहीं थी. ऐसे में जैसेजैसे शहाबुद्दीन के साथ शादी का दिन करीब आ रहा था, दोनों के बीच तनाव बढ़ रहा था.

हसमतुल निशा को लगता था कि वह शादी का दिखावा ही करेगी. बाकी वह मन से अपने प्रेमी शाने अली के साथ रहना चाहती थी.

शहाबुद्दीन के साथ हसमतुल निशा की सगाई होने के बाद उन दोनों के बीच बातचीत होने लगी. शहाबुद्दीन अकसर उसे फोन करने लगा और मिलने के लिए भी दबाव बनाने लगा.

यह बात हसमतुल निशा को अच्छी नहीं लग रही थी. शाने अली भी चाहता था कि हसमतुल निशा अपने होने वाले पति शहाबुद्दीन से मिलने न जाए. जब भी उसे यह पता चलता था कि दोनों की फोन पर बातचीत होती है और वह आपस में मिलते भी हैं, इस बात को ले कर हसमतुल निशा और शाने अली के बीच  झगड़ा होता था.

उन दोनों के बीच लड़ाई झगड़े के बाद यह तय हुआ कि अब शहाबुद्दीन को रास्ते से हटाना ही होगा.

शहाबुद्दीन को अपनी होने वाली पत्नी और उस के प्रेमी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह उन दोनों को आपस में रिश्तेदार सम झता था और उन पर भरोसा भी करता था.

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अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशा को शादी के पहले वह अच्छी तरह से जाननेसम झने के लिए करीब आने की कोशिश कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि उस की यह कोशिश उसे मौत की तरफ ले जा सकती थी.

शहाबुद्दीन अपनी होने वाली पत्नी के साथ संबंधों को मधुर बनाने का काम कर रहा था, पर प्रेमी के मायाजाल में फंसी हसमतुल निशा खुद को उस से दूर करना चाहती थी. परिवार के दबाव में वह खुल कर बोल नहीं पा रही थी.

हसमतुल निशा ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर योजना बनाई. हसमतुल निशा चाहती थी कि शाने अली उस के मंगेतर शहाबुद्दीन को रास्ते से हटा दे. योजना को सही आकार देने के लिए शाने अली ने अपने जन्मदिन पर  11 मार्च, 2021 को शहाबुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया.

गुरुवार की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे शाने अली और उस के दोस्त बाराबंकी निवासी अरकान, मोहनलालगंज निवासी संजू गौतम, अमन कश्यप और पीजीआई निवासी समीर मोहम्मद बाबूखेड़ा में जमा हुए. जैसे ही शहाबुद्दीन वहां पहुंचा, शाने अली और उन के दोस्तों ने उस पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

कई वार होने के बाद भी शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और अपनी जान बचाने के लिए वह हमलावरों से भिड़ गया.

शाने अली और उस के हमलावर दोस्तों को जब लगा कि शहाबुद्दीन बच निकलेगा तो उन लोगों ने कुत्ते को बांधी जाने वाली जंजीर से शहाबुद्दीन का गला घोंट दिया, जिस से वह अपना बचाव नहीं कर पाया और मर गया.

बाद में हसमतुल निशा ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर मंगेतर शहाबुद्दीन की हत्या कर दी.

चौथे पति का बेरहमी से कत्ल

लखनऊ के नगराम थाने के महगुआ गांव की रहने वाली ज्ञानवती ने अवधेश के साथ चौथी शादी की थी.

ज्ञानवती की पहली शादी 20 साल की उम्र में नगराम के रहने वाले दिलीप से हुई थी. शादी के कुछ दिन बाद ही उन दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई.

दिलीप को केवल ज्ञानवती की याद तब ही आती थी, जब उसे उस का जिस्म चाहिए होता था. पतिपत्नी के रिश्ते में जिस्मानी संबंधों के साथ जिम्मेदारी भरा अहसास भी होता है. ज्ञानवती को कभी यह नहीं लगा कि दिलीप उस के साथ ऐसे संबंधों को निभा पाएगा.

अच्छी बात यह थी कि ज्ञानवती के समाज में तलाक लेने में कोई दिक्कत नहीं आती थी. पंचायत के फैसलों पर ही तलाक हो जाता था. शादी के कुछ साल बाद ज्ञानवती और दिलीप अलग हो गए.

ज्ञानवती की दूसरी शादी चौराहपुर के श्यामलाल के साथ हुई. श्यामलाल से उस के एक बच्चा भी हो गया, जिस का नाम सूरज रखा गया था.

सूरज के आने के बाद भी ज्ञानवती की जिंदगी में बहुत दिनों तक उजाला नहीं रह सका. जिस तरह से दिलीप के साथ ज्ञानवती का मनमुटाव शुरू हुआ था, उसी तरह से श्यामलाल के साथ भी होने लगा.

मनमुटाव  झगड़े में बदला और ज्ञानवती ने अलग रहने का फैसला कर लिया. श्यामलाल ने भी कह दिया कि बेटा सूरज उस के साथ ही रहेगा.

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इस के बाद भी ज्ञानवती ने अपना फैसला नहीं बदला. अब वह फिर से अपनी शादीशुदा जिंदगी बसाने के लिए कोशिश करने लगी.

इस बार ज्ञानवती ने सुखलाल खेड़ा नवी नगर निवासी सुनील रावत के साथ तीसरी शादी कर ली.

ज्ञानवती ने अब सोच लिया था कि सुनील ही उस की जिंदगी को सुखमय बनाएगा. पहले की दोनों शादियों के मुकाबले ज्ञानवती की तीसरी शादी उसे अच्छी लग रही थी.

सुनील का स्वभाव भी बहुत अच्छा था. ज्ञानवती के साथ उस का समय अच्छा गुजर रहा था. दोनों के 2 बच्चे राम और नरेश पैदा हुए. बच्चों के होने के बाद सुनील और ज्ञानवती के बीच संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रहे थे. अब दोनों के बीच टकराव होने लगा था.

ज्ञानवती ने  झुकना नहीं सीखा था और सुनील से अलग रास्ता उस ने बना लिया. अब उस ने मंहगुआ गांव के रहने वाले अवधेश से अपनी चौथी शादी कर ली. 14 साल में चौथी शादी करने के बाद भी ज्ञानवती को संतोष नहीं हो रहा था.

ज्ञानवती का स्वभाव विद्रोही होने लगता था. अवधेश जब भी नशा कर के आता था. इस वजह से ज्ञानवती की उस से लड़ाई होने लगती थी. ज्ञानवती और अवधेश के बीच संबंध एक साल के अंदर फिर से हाशिए पर पहुंच गए थे.

पहले 3 पतियों को छोड़ कर शादी करने वाली ज्ञानवती ने चौथे पति को रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या ही कर दी.

ज्ञानवती ने पुलिस को बताया, ‘‘अवधेश मेरे चौथे पति थे. मैं ने सोचा था कि चौथी शादी के बाद मैं सुकून और शांति के साथ रह सकूंगी. अवधेश ने भी मु झ से यही वादा किया था.

‘‘पर शादी के कुछ ही दिनों के बाद हमारे बीच लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया. तब मैं इस रिश्ते से भी छुटकारा पाने की सोचने लगी. 24 मई को इच्छाखेड़ा में मेरे रिश्तेदार के यहां शादी थी. वहीं मेरे दोनों लड़के गए थे. घर में मैं और अवधेश ही थे.

‘‘अवधेश कहीं गए थे. वहां से नशा कर के जब वे वापस घर आए तो पीने के लिए पानी मांगा. मु झे लगा कि यही सही मौका है. मैं ने सिंघाड़ा बोने में काम आने वाली कीटनाशक दवा पानी में मिला दी. इस के बाद मु झे डर लगने लगा कि वे यहीं मर जाएंगे तो मैं फंस जाऊंगी.

‘‘इस के बाद डंडे से सिर पर वार  कर दिया और लकड़ी की 2 फट्टी गले के दोनों तरफ रख कर दबा दिया.  जब वे बेहोश हो गए, तो खींच कर चारपाई से नीचे गिरा दिया.

‘‘ब्लेड से शरीर के कई हिस्सों हाथ और सीने पर पचासों निशान बना दिए. आंख की पलक भी काट दी और पूरे शरीर पर मिट्टी लगा दी, जिस से यह लगे कि कहीं और से मारपीट कर के यहां डाल दिया गया है.’’

प्रेमी से कराई अपने घर चोरी

रसूलपुर आशिक अली थाना गोसाईंगंज जिला लखनऊ के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमारी का पुरवा मलौली थाना गोसाईंगंज के रहने वाले विनय यादव के साथ प्रेम हो गया. विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था. दोनों के बीच जातपांत की गहरी खाई थी.

दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू अपनी दोस्ती को छोड़ना नहीं चाहते थे. लेकिन परेशानी यह थी कि उन को साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था.

अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक तालमेल बना हुआ था. दोनों ही अपने विचारों का आदानप्रदान कर लेते थे. दोनों ने सोचा था कि विनय नौकरी करेगा, तो फिर वे दोनों शहर में अपना अलग घर ले कर रहेंगे.

कोरोना काल में लौकडाउन के चलते जिस तरह से कामधंधों पर रोक लगी, उस से विनय और खुशबू जैसे नौजवानों के सामने भी अपने भविष्य को ले कर सवालिया निशान लगा दिया. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए. यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा, तो सबकुछ वापस पटरी पर आ जाएगा. इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा.

मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा, तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया. ऐसे में खुशबू ने योजना बनाई कि विनय उस के घर में रखे रुपए चोरी कर ले.

खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर नहीं हुआ.

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इधर विनय ने अपने साथी अपने ही गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में जोड़ लिया. खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसे नींद की 8 गोली दी और कहा कि  4-4 गोली काढ़े में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना, जिस से वे रातभर आराम से सोते रहेंगे.

खुशबू ने 28 मई की रात ऐसा ही किया. जब मांबाप दोनों गहरी नींद में सो गए, तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख रुपए के जेवर चोरी कर लिए.

खुशबू के पिता मनोज कुमार ने थाना गोसाईंगंज में चोरी का मुकदमा लिखाया. पुलिस ने खुशबू, विनय और उस के दोस्तों को जेल भेज दिया.

अशिक्षा और गरीबी

निगोहां गांव के रहने वाले राधेश्याम  के बेटे संदीप की दिमागी हालत खराब हो गई थी. तंग आ कर राधेश्याम ने उसे घर के पास के बिजली के खंभे से जंजीर से जकड़ कर बांध दिया.

जब यह बात समाजसेवियों को पता चली, तो उन्होंने विरोध किया और तब निगोहां इंस्पैक्टर नंदकिशोर ने जंजीर में जकड़े संदीप को खुलवा कर चचेरे भाई संजय को देखभाल के लिए सौंप दिया.

मोहनलालगंज थाना क्षेत्र में ही एक बेटे ने 3 बिस्वा जमीन के लिए अपनी मां की हत्या कर दी और लाश को मोहनलालगंज तहसील के पीछे फेंक दिया. ऐसी घटनाओं के पीछे मूल वजह अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी है.

पुलिस अफसर पूर्णेंदु सिंह कहते हैं, ‘‘गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी के साथसाथ लोगों में सहनशीलता और संस्कार खत्म हो गए हैं. इस की वजह से बेटा अपनी बूढ़ी मां की हत्या कर दे रहा है.

‘‘हत्याओं के पीछे निजी संबंधों का हाथ सब से ज्यादा पाया जा रहा है. चाहे वह करीबी संबंधी हो या करीबी दोस्त हो. पैसों का लालच इस कदर है कि लोग अपराध में हिस्सा ले लेते हैं. उस समय वे उस के अंजाम की बात भी नहीं सोचते हैं.’’

नशे और संगत का असर

लंबे समय से पत्रकारिता और समाजसेवा में लगे अखिलेश द्विवेदी कहते हैं, ‘‘बड़ी घटनाएं तो प्रकाश में आ जाती हैं, पर छोटीछोटी घटनाओं पर चर्चा कम होती है. अगर सभी आपराधिक घटनाओं को मिला कर देखें, तो पता चलता है कि अपराध करने वाले नशे का शिकार होते हैं, जिस की वजह से वे सहीगलत का फैसला नहीं कर पाते हैं और आपराधिक घटनाओं में शामिल हो जाते हैं.

‘‘वे एक बार छोटे अपराध करते हैं, फिर बड़ेबड़े अपराध करने से भी पीछे नहीं हटते. नौजवान तबका ऐसे लोगों के निशाने पर होता है, जो अपने गलत कामों के लिए उस का इस्तेमाल करने की कोशिश में रहते हैं.’’

इस सिलसिले में पत्रकार अनुपम मिश्र कहते हैं, ‘‘नौजवान तबके में संबंधों के प्रति सहनशीलता खत्म हो रही है. इस वजह से वे अपराध करने के पहले किसी भी तरह से सोचविचार नहीं कर रहे. सब से खतरनाक बात यह है कि महिलाएं भी अपराध करने से पीछे नहीं रह रही हैं. ये घटनाएं समाज के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं.

‘‘अब समाज को इस से बचने का उपाय देखना होगा. कानून की भूमिका भी अहम है. अपराधों में जल्दी सुनवाई और सजा का मिलना शुरू हो जाए, तो अपराध करने से लोग डरेंगे. साथ ही साथ समाज में इस के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी होगी.’’

Manohar Kahaniya: शैली का बिगड़ैल राजकुमार- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

राज स्मार्ट था और बातों का धनी था. शैली भी उस से प्रभावित हो कर उस से खुलने लगी. शैली ने राज को अपने बारे में सब बता दिया था. उस के बावजूद राज उसे पटाने में लगा था.

राज युवा था और अविवाहित था. उसे कोई भी खूबसूरत युवती मिल जाती और शादी करने को तैयार हो जाती. लेकिन राज को शैली में न जाने क्या दिखा, जो वह अपने से 14 साल बड़ी विधवा औरत, जिस के एक जवान बेटी भी थी, उस के प्यार में पड़ने को आतुर था.

यह प्यार था या एक जाल, जिस में वह शैली को फांसने की तैयारी कर रहा था. यह तो वक्त के गर्त में छिपा था. लेकिन इतना सब शैली ने नहीं सोचा. वह तो राज जैसे युवा को अपनी तरफ आकर्षित देख कर फूली नहीं समा रही थी.

शादी तक पहुंचा प्यार

दोस्ती की अगली सीढ़ी प्यार होता है. दोनों प्यार की सीढ़ी पर चढ़ने को आतुर थे. उन के बीच वीडियो काल पर बातें होने लगीं. ऐसी ही एक वीडियो काल के दौरान राज ने शैली से कहा, ‘‘हम दोनों को फेसबुक पर जुड़े काफी समय हो गया. लेकिन मैं इधर काफी दिनों से महसूस करने लगा हूं कि हमारा रिश्ता दोस्ती के रिश्ते से भी आगे बढ़ गया है.

‘‘जिस रिश्ते की दहलीज पर हम ने कदम रखा है वह रिश्ता है प्यार का रिश्ता. मुझे तुम से प्यार हो गया है शैली. यह कब हुआ कैसे हुआ, इस बात का मुझे भी पता न चला. जब इस को मैं ने महसूस किया तो दिल की खुशी का ठिकाना न रहा. मुझे लगता है कि तुम भी मुझ से प्यार करती हो. एम आई राइट शैली?’’

शैली यह सुन कर मन ही मन खुश हो रही थी, उस ने अपनी यह खुशी राज पर जाहिर नहीं होने दी और बोली, ‘‘राज, हम दोस्त ही रहें तो अच्छा है, प्यार के चक्कर से दूर रहें, वही ठीक है.’’

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शैली के गोलमोल जवाब से राज जान गया कि शैली के दिल में भी वही है, जो वह चाहता है. वह भी उसे प्यार करती है लेकिन कहने से कतरा रही है. हो सकता है इस के पीछे बड़ा कारण हो. लेकिन उस ने भी ठान लिया कि वह शैली को मना कर ही रहेगा.

‘‘शैली, ऐसा क्यों कह रही हो. जब प्यार करती हो तो उसे स्वीकार भी करो. दिल में छिपा कर मत रखो.’’ राज ने बेचैन हो कर शैली से कहा.

‘‘राज हम दोनों में उम्र का बहुत बड़ा फासला है. तुम से कुछ साल छोटी मेरी एक बेटी है. ऐसे में हम प्यार के रिश्ते में नहीं पड़ सकते, दोस्ती का रिश्ता ही ठीक है. वैसे भी हमारे समाज में यह स्वीकार्य नहीं है.’’

‘‘तुम मुझ से बड़ी हो फिर भी नासमझी वाली बातें कर रही हो. प्यार कभी उम्र नहीं देखता, कभी जातपात, ऊंचनीच नहीं देखता और न किसी की परवाह करता है. जिस से होता है तो बस हो जाता है. हमारी जिंदगी है तो जिंदगी के फैसले हम ही लेंगे, खासतौर पर उन फैसलों को जिन पर हमारी जिंदगी की खुशियां टिकी हैं.

‘‘वैसे भी समाज में कई उदाहरण हैं जिस में महिला पुरुष से बड़ी थी, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और एक बंधन में बंध कर खुशहाल जिंदगी गुजार रहे हैं. जब वे एक साथ अच्छी जिंदगी गुजार सकते हैं तो हम क्यों नहीं.’’ राज ने समझाया.

कुछ सोच कर शैली बोली, ‘‘बात तो तुम्हारी सही है, हमें अपनी जिंदगी के फैसले लेने का खुद हक है. किसी को परेशानी हो तो उस से हमें क्या करना. मैं भी तुम्हें बहुत दिनों से चाह रही थी. लेकिन दुविधा में पड़ी थी. तुम ने आज मुझे निश्चिंत कर दिया कि तुम मेरे जीवनसाथी बनने के लिए ही बने हो. लव यू राज.’’

‘‘लव यू टू शैली.’’ राज ने भी शैली के प्यार का जवाब प्यार से दिया. इस के बाद उन के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं. राज शैली को मनाने में सफल हो गया.

उन में प्यार हो गया वह भी बिना एकदूसरे से मिले. अब दोनों ने एकदूसरे से मिलने का फैसला किया.

निश्चित तिथि पर पार्क में दोनों मिले. एकदूसरे को सामने देख कर दोनों खुश हुए. पार्क में बात करने में दिक्कत हुई तो वे सुरक्षित और शांत ठिकाने पर बातें करने चले गए. इस के बाद उन के बीच मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता ही गया. बाद में दोनों ने शादी करने का फैसला लिया तो अपने घर वालों को बताया.

शैली ने अपनी छोटी बहन मोनिका को इस बारे में बताया तो मोनिका ने अपनी बड़ी बहन से कहा कि उन्होंने राज के बारे में सब पता कर लिया है कि नहीं. इस पर शैली ने उसे आश्वस्त किया कि उस ने राज के बारे में सब पता कर लिया है. जबकि शैली को उतना ही पता था, जितना राज ने उसे बताया था.

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ससुराल में होने लगी अनबन

वर्ष 2017 में शैली ने राज से विवाह कर लिया. विवाह के बाद बेटी तान्या के साथ ससुराल गांव निगदू आ गई. कुछ समय तक सब ठीकठाक चलता रहा. उस के बाद शैली की राज के घर वालों से तकरार होने लगी. उस की वजह यह थी कि वे सब शैली और उस की बेटी तान्या को परेशान करते थे. राज या तो चुप रहता या अपने घर वालों का ही पक्ष लेता. जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो शैली ने अलग रहने का इरादा कर लिया.

शैली ने करनाल शहर के न्यू प्रेमनगर मोहल्ले में मकान किराए पर ले लिया. शैली ने जहां मकान किराए पर लिया था, वहीं 2 गली छोड़ कर उस की छोटी बहन मोनिका किराए पर रहती थी.

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Satyakatha: प्यार की ये कैसी डोर

सौजन्य- सत्यकथा

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला आदिवासी बाहुल्य है. यहां का लैलूंगा शहर जिला मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लैलूंगा घोर जनजातीय आदिवासी बाहुल्य विकास खंड है. धीरेधीरे यहां का मिश्रित माहौल अपने आप में एक आकर्षण का माहौल पैदा करने लगा है, क्योंकि यहां पर अब भले ही बहुतेरे मारवाड़ी, ब्राह्मण, कायस्थ समाज के लोग आ कर रचबस रहे हैं, लेकिन आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की महक यहां आज भी स्वाभाविक रूप से महसूस की जा सकती है.

लैलूंगा थाना अंतर्गत एक छोटे से गांव कमरगा में शदाराम सिदार एक सामान्य काश्तकार हैं. वह 2 बेटे और एक बेटी वाले छोटे से परिवार का बमुश्किल पालनपोषण कर रहे  थे. शदाराम का बड़ा बेटा जय कुमार सिदार प्राइमरी तक पढ़ने के बाद पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटा रहा था.

गरीबी और परिवार की दयनीय हालत देख कर के एक दिन 21 वर्ष की उम्र में वह अपने एक दोस्त रमेश के साथ छत्तीसगढ़ से सटे झारखंड राज्य के बोकारो शहर में रोजगार  के लिए चला गया.

जल्द ही जय कुमार को स्थानीय राजू टिंबर ट्यूनिंग प्लांट में क्लीनर मशीन चलाने का काम मिल गया और जय का मित्र रमेश भी वहीं काम करने लगा. फिर उन्होंने बोकारो के एक मोहल्ले में कमरा किराए पर ले लिया.

समय अपनी गति से बीत रहा था कि एक दिन जय और रमेश सुबह घर से अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे कि जय को साइकिल के साथ खड़ी एक परेशान सी लड़की दिख गई. जय कुमार और रमेश थोड़ा आगे बढ़े तो जय ने रुक कर कहा, ‘‘यार, लगता है इस लड़की को कुछ मदद की जरूरत है.’’

दोनों  मुड़ कर वापस आए. तब युवती की ओर मुखातिब हो कर जय  ने कहा, ‘‘क्या बात है, आप क्यों परेशान खड़ी हो?’’

युवती थोड़ा सकुचाई  फिर बोली, ‘‘देखो न, साइकिल में पता नहीं क्या हो गया है, आगे ही नहीं बढ़ रही.’’

जय ने कहा, ‘‘लगता है साइकिल की चैन फंस गई है, किसी मिस्त्री को दिखानी होगी.’’

और नीचे बैठ कर वह साइकिल को ठीक करने की असफल कोशिश करने लगा. मगर चैन बुरी तरह फंस गई थी. थोड़ी देर तक प्रयास करने के बाद जय ने रमेश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, इस की थोड़ी मदद कर देते हैं.’’

इस पर रमेश ने कहा, ‘‘यार, देर हो जाएगी, काम पर न पहुंचे तो प्रसादजी नाराज हो जाते हैं, तुम को तो पता ही है कि काम पर समय पर पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

इस पर सहज रूप से जय सिदार ने कहा, ‘‘बात तो सही है, ऐसा करते हैं, तुम काम पर चले जाओ और उन से बता देना कि आज मैं छुट्टी पर रहूंगा… मैं इन की साइकिल ठीक करा देता हूं.’’

जय को रमेश आश्चर्य से देखता हुआ ड्यूटी पर चला गया. इधर जय ने युवती की मदद के लिए साइकिल अपने कंधे पर उठा ली और धीरेधीरे साइकिल मिस्त्री के पास पहुंचा. थोड़ी ही देर में मिस्त्री ने साइकिल ठीक कर दी.

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युवती जय के व्यवहार और हमदर्दी को देख कर बहुत प्रभावित हुई. फिर दोनों ने बातचीत में एकदूसरे का नाम और परिचय पूछा. युवती ने अपना नाम सरस्वती मरांडी बताया. जब जय वहां से जाने लगा तो सरस्वती ने उसे अचानक रोक कर कहा, ‘‘आप ने मेरे कारण आज अपना बहुत नुकसान कर लिया है बुरा न मानें तो क्या आप मेरे साथ एक कप चाय पी सकते हैं?’’

जय सिदार 19 वर्षीय सरस्वती की बातें सुन कर हंसता हुआ राजी हो गया. अब वह उसे अच्छी लगने लगी थी. मंत्रमुग्ध सा जय उस के साथ एक रेस्टोरेंट में चला गया.

बातोंबातों में सरस्वती ने उसे बताया कि वह अपने गांव ढांगी करतस, जिला धनबाद की रहने वाली है और यहां स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में शिक्षिका है. इस बीच जय ने सरस्वती का मोबाइल नंबर ले लिया और अपने बारे में सब कुछ बताता चला गया.

अब अकसर जय सिदार सरस्वती से बातें करता. सरस्वती भी उसे पसंद करती और दोनों के बीच प्रेम की बेलें फूट पड़ीं. जल्द ही एक दिन जय कुमार ने सरस्वती से झिझकते हुए कहा, ‘‘सरस्वती, मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. तुम प्लीज मना मत करना, नहीं तो मैं मर ही जाऊंगा.’’

इस पर सरस्वती मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, बताओ तो इस का तुम्हारे पास क्या सबूत है.’’

‘‘सरस्वती, तुम्हारे लिए मैं सब कुछ करने को तैयार हूं. बताओ, मुझे क्या करना है.’’ जय सिदार ने हिचकते हुए कहा.

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी, मैं जानती हूं कि तुम मुझे बहुत पसंद करते हो.’’ सरस्वती बोली.

यह सुन कर जय की हिम्मत बढ़ गई. वह बोला, ‘‘…और मैं.’’

सरस्वती ने धीरे से  कहा, ‘‘लगता है तुम तो प्यार के खेल में अनाड़ी हो. अरे बुद्धू, अगर कोई लड़की मुसकराए, बात करे, इस का मतलब तुम नहीं समझते…’’

यह सुन कर जय खुशी से उछल पड़ा. इस के बाद उन का प्यार परवान चढ़ता गया. फिर एक दिन सरस्वती और जय ने एक मंदिर में विवाह कर लिया.

सन 2017 से ले कर मार्च, 2020 अर्थात कोरोना काल से पहले तक दोनों ही प्रेमपूर्वक झारखंड में एक छत के नीचे रह रहे थे. इस बीच दोनों ने मंदिर में विवाह कर लिया और पतिपत्नी के रूप में आनंदपूर्वक रहने लगे.

मार्च 2020 में जब कोविड 19 का संक्रमण फैलने लगा तो जय का काम छूट गया. घर में खाली बैठेबैठे जय को अपने गांव और मातापिता की याद आने लगी. एक दिन जय ने सरस्वती से कहा, ‘‘चलो, हम गांव चलते हैं, वहां इस समय रहना ठीक रहेगा, पता नहीं ये हालात कब तक सुधरेंगे. और जहां तक रोजीरोटी का सवाल है तो हम गांव में ही कमा लेंगे. फिर आज सवाल तो जान बचाने का है.’’

सरस्वती को बात पसंद आ गई. उस समय गांव जाने के लिए कोई साधन नहीं था. तब जय कुमार पत्नी सरस्वती को अपनी साइकिल पर बैठा कर जिला रायगढ़ के गांव कामरगा में स्थित अपने घर की ओर चल दिया. लगभग 300 किलोमीटर की दूरी तय कर के जय कुमार अपने घर पहुंच गया.

घर में पिता शदाराम और परिजनों ने जब जय को देखा, सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. साथ में सरस्वती को देखा तो पिता शदाराम ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

जय ने सकुचाते हुए सरस्वती का परिचय पत्नी के रूप में परिजनों को करा दिया. उस समय किसी ने भी कुछ नहीं कहा.

लौकडाउन का यह समय सभी को चिंतित किए हुए था. मगर स्थितियां सुधरने लगीं तो जय कुमार से सवालजवाब होने लगा. एक दिन पिता शदाराम ने कहा, ‘‘बेटा जय, गांव के लोग पूछ रहे हैं कि तुम्हारी बहू कहां की है किस जाति की है? जब मैं ने बताया तो समाज के लोगों ने नाराजगी प्रकट की है. इस से शादी कर के तुम ने बहुत बड़ी भूल की है बेटा.’’

‘‘पिताजी, अब मैं क्या करूं, जो होना था, वह तो हो चुका है.’’ यह सुन कर जय बोला.

‘‘बेटा, हम को भी समाज में रहना है, यहीं जीना है. यह हाल रहेगा तो हम, हमारा परिवार भारी मुसीबत में पड़ जाएगा. कोई हम से रोटीबेटी का रिश्ता तक नहीं रखेगा. ऐसे में हो सके तो तुम लोग कहीं और जा कर के जीवन बसर करो, ताकि समाज के लोग अंगुली न उठा सकें.’’

जय ने कहा, ‘‘पिताजी, अब क्या हो सकता है, मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा.’’

एक दिन एक निकट के परिजन ने जय से कहा, ‘‘अब देख लो, सोचसमझ के कुछ निर्णय लो. वैसे, पास के गांव के हमारे परिचित रामसाय ने अपनी बेटी के साथ तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव भेजा था. वह पैसे वाले लोग भी हैं और हमारे समाज के भी हैं. ऐसा करो, सरस्वती को तुम छोड़ दो. फिर हम बात आगे बढ़ाते हैं.’’

यह सुन कर जय का मन भी बदल गया. क्योंकि सुमन को वह बचपन में पसंद करता था.

वह सोचने लगा कि काश! वह सरस्वती के चक्कर में नहीं पड़ता तो आज सुमन उस की होती.

इसी दरमियान जय गांव में ही तेजराम के यहां ट्रैक्टर चलाने लगा था. नौसिखिए जय सिदार से एक दिन अचानक दुर्घटना हो गई तो तेजराम ने उस की पिटाई कर दी और उस से नुकसान की भरपाई मांगने लगा.

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परिस्थितियों को देख कर जय पत्नी सरस्वती को ले कर पास के दूसरे गांव सरकेदा में अपने जीजा रवि के यहां गुजरबसर करने आ गया. जय का रवि के साथ अच्छा याराना था. बातोंबातों में एक दिन रवि ने कहा, ‘‘भैया, यह तुम्हारे गले कैसे पड़ गई, इस से कितनी सुंदर लड़कियां हमारे समाज में हैं.’’

यह सुन कर के जय मानो फट पड़ा. बोला, ‘‘भाटो (जीजा), बस यह भूल मुझ से हो गई है, अब मैं क्या करूं, मुझे तो लगता है कि सरस्वती से शादी कर के मैं फंस गया हूं.’’

रवि ने जय कुमार को बताया कि परिवार में चर्चा हुई थी कि सुमन के पिता तुम्हारे लिए 2-3 बार आ चुके हैं. अब क्या हो.’’

‘‘क्या करूं, क्या इसे बोकारो छोड़ आऊं?’’ विवशता जताता जय कुमार बोला.

‘‘…और अगर कहीं फिर वापस आ गई तो..?’’  रवि कुमार ने चिंता जताई.

जय कुमार असहाय भाव से जीजा रवि की ओर देखने लगा.

रवि मुसकराते हुए बोला, ‘‘एक रास्ता है…’’

और दोनों ने बातचीत कर के एक ऐसी योजना बनाई, जिस ने आगे चल कर दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

वह 7 जनवरी, 2021 का दिन था. एक दिन पहले ही जय और रवि ने सरस्वती से बात कर के पिकनिक के लिए झरन डैम चलने की योजना बना ली थी. एक बाइक पर तीनों सुबहसुबह पिकनिक के लिए निकल गए. लैलूंगा शहर घूमने, खरीदारी के बाद 7 किलोमीटर आगे खम्हार जंगल के पास झरन डैम में पहुंच कर तीनों ने खूब मस्ती की. मोबाइल से फोटो खींचे और खायापीया.

इस बीच सरस्वती ने एक दफा सहजता से कहा, ‘‘कितना अच्छा होता, आज सारे परिवार वाले भी हमारे साथ होते तो पिकनिक यादगार हो जाती.’’

इस पर रवि ने बात बनाते हुए कहा, ‘‘भाभी, आएंगे आगे सब को ले कर के आएंगे. आज तो हम लोगों ने सोचा कि चलो देखें, यहां का कैसा माहौल है अगली बार  सब को ले कर के पिकनिक मनाएंगे.’’

आज जय सिदार कुछ उखड़ाउखड़ा भी दिखाई दे रहा था. इस पर सरस्वती ने कहा था, ‘‘पिकनिक मनाने आए हो या फिर किसी और काम से…’’

यह सुन कर अचकचाए जय कुमार ने मुसकरा कर कहा, ‘‘ऐसीवैसी कोई बात होती तो मैं भला क्यों आता. तुम गलत समझ रही हो. क्या है सारे कामधंधे रुके पड़े हैं. पैसा कहीं से तो आ नहीं पा रहा है, बस इसी बात की टेंशन है सरस्वती.’’

सरस्वती को लगा कि जय जायज बात कर रहा है. थोड़ी देर बाद जब वापस चलने का समय हुआ तो एक जगह रवि कुमार रुक गया और छोटी अंगुली दिखा कर बोला, ‘‘मैं अभी फारिग हो कर आता हूं.’’

रवि झाडि़यों के अंदर चला गया. सही मौका देख कर के जय ने अचानक सरस्वती पर हमला कर दिया और उस के बाल पकड़ कर उसे मारने लगा और एक रस्सी निकाल कर के गला घोंटने लगा. वह वहीं गिर पड़ी और फटी आंखों से उसे देखती रह गई.

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जय आखिरी तक सरस्वती पर प्राणघातक हमला भी करता रहा. इतनी देर में रवि भी दौड़ कर आ गया और जय का साथ देने लगा.  देखते ही देखते सरस्वती के प्राणपखेरू उड़ गए. सरस्वती की मौत के बाद रवि ने उस के गले में एक नीली रस्सी बांधी और झाडि़यों में घसीट कर सरस्वती की लाश छिपा दी.

12 जनवरी, मंगलवार को शाम लगभग 5 बजे थाना लैलूंगा मैं अपने कक्ष में थानाप्रभारी एल.पी. पटेल रोजमर्रा के कामों को निपटा रहे थे कि दरवाजे पर आहट सुनाई दी. उन्होंने देखा 3-4 ग्रामीणों के साथ खम्हार गांव के सरपंच शिवप्रसाद खड़े हैं. थानाप्रभारी ने उन सभी को अंदर बुला लिया. तभी सरपंच ने उन से कहा, ‘‘सर, जंगल में एक महिला की लाश मिली है. कुछ लोगों ने देखा तो मैं सूचना देने के लिए आया हूं.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसआई व 2 कांस्टेबलों को थानाप्रभारी पटेल ने घटनास्थल की ओर रवाना किया और अपने काम में लग गए. लगभग एक घंटे बाद उन्हें सूचना मिली कि लाश किसी महिला की है. उन्होंने एसआई को स्थिति को देखते हुए सारे सबूतों को इकट्ठा करने और फोटोग्राफ लेने के निर्देश दिए और कहा कि वह स्वयं घटनास्थल पर आ रहे हैं.

थाने से निकलने से पहले एल.पी. पटेल ने एसपी (रायगढ़) संतोष सिंह और एएसपी अभिषेक वर्मा को महिला की लाश मिलने की जानकारी दी और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

जब वह वहां पहुंचे तो थोड़ी देर में ही जिला मुख्यालय से डौग स्क्वायड टीम भी आ गई  और महिला की लाश को देख कर के उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि यह सीधेसीधे एक ब्लाइंड मर्डर का मामला है.

पुलिस विवेचना में जांच अधिकारी एल. पी. पटेल के सामने शुरुआती परेशानी मृतका की पहचान की थी, जिस के लिए मशक्कत शुरू कर दी गई. इस कड़ी में रायगढ़ जिले के सभी थानों के गुम इंसानों के हुलिया से मृतका का मिलान किया गया. जब सफलता नहीं मिली तो छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस पोर्टल पर राज्य के लगभग सभी जिलों के गुम इंसानों से हुलिया का मिलान कराया गया. सभी सोशल मीडिया ग्रुप में मृतका के फोटो वायरल किया जाने लगा. मगर सुराग नहीं मिल रहा था.

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आखिरकार एक दिन पुलिस को अच्छे नतीजे मिले. सोशल मीडिया में वायरल की गई तसवीर के जरिए मृतका की शिनाख्त सरस्वती मरांडी, पुत्री सुजीत मरांडी, उम्र 23 वर्ष निवासी ढांगी करतस, जिला धनबाद (झारखंड) के रूप में हुई.

मृतका की शिनाख्त के बाद मामले में नया पहलू सामने आया, जिस से अनसुलझे हत्याकांड की गुत्थी सुलझती चली गई. लैलूंगा पुलिस को हत्याकांड में कमरगा गांव, थाना लैलूंगा के जयकुमार सिदार के मृतका का कथित पति होने की जानकारी भी मिली.

लैलूंगा पुलिस द्वारा गोपनीय तरीके से जयकुमार सिदार का उस के गांव में पता लगाया गया तो जानकारी मिली कि वह तथा उस का जीजा रवि कुमार सिदार दोनों ही अपनेअपने गांव से गायब हैं.

हत्या के इस गंभीर मामले में एसपी संतोष सिंह द्वारा अज्ञात महिला के वारिसों और संदिग्धों की तलाश के लिए थाना लैलूंगा, धरमजयगढ़, चौकी बकारूमा की 3 अलगअलग टीमें बनाई गईं. एक टीम में एसडीपीओ सुशील नायक, एसआई प्रवीण मिंज, हैडकांस्टेबल सोमेश गोस्वामी, कांस्टेबल प्रदीप जौन, राजेंद्र राठिया, दूसरी टीम में थानाप्रभारी लैलूंगा इंसपेक्टर लक्ष्मण प्रसाद पटेल, कांस्टेबल मायाराम राठिया, धनुर्जय बेहरा, जुगित राठिया, अमरदीप एक्का और तीसरी टीम में एसआई बी.एस. पैकरा, एएसआई माधवराम साहू, हैडकांस्टेबल संजय यादव, कांस्टेबल इलियास केरकेट्टा को शामिल किया गया.

पहली टीम को किलकिला, फरसाबहार, बागबाहर और तपकरा तथा दूसरी टीम को पत्थलगांव, घरघोड़ा, लारीपानी, चिमटीपानी एवं टीम नंबर 3 को बागबाहर, कांसाबेल, कापू, दरिमा, अंबिकापुर की ओर जांच के लिए लगाया गया था.

तीनों टीमों के अथक प्रयास पर आरोपियों को जिला जशपुर के गांव रजौरी से 20 जनवरी को हिरासत में ले कर थाने लाया गया. दोनों आरोपी पुलिस से लुकछिप कर रजौरी के जंगल में लकड़ी काटने का काम कर रहे थे.

दोनों ने कड़ी पूछताछ में अंतत: सरस्वती मरांडी की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार लिया.

रोजगार के सिलसिले में वह बोकारो, झारखंड गया था. वहां राजू टिंबर ट्यूनिंग प्लांट में क्लीनर मशीन चलाता था और किराए के मकान में रहा करता था. वहीं सरस्वती मरांडी से उस की जानपहचान हुई.

जय कुमार परेशान था और उस ने अपने जीजा रवि के साथ सरस्वती की हत्या का प्लान बनाया और उसी प्लान के तहत 7 जनवरी, 2021 को पिकनिक का बहाना कर सरस्वती को मोटरसाइकिल पर बिठा कर लैलूंगा ले कर आए.

लैलूंगा बसस्टैंड पर खानेपीने के सामान व सरस्वती ने कपड़े खरीदे. तीनों फिर खम्हार के झरन डैम गए, जहां सरस्वती ने वही पीले रंग की सलवारकुरती पहनी, जो उस ने गांव कमरगा की सुनीता सिदार (टेलर) से बनवाई थी. वहां उन्होंने मोबाइल पर खूब सेल्फी ली.

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शाम करीब 5 बजे भेलवाटोली एवं खम्हार के बीच पगडंडी के रास्ते में रवि सिदार पेशाब करने का बहाना कर रुका. उसी समय जयकुमार सिदार ने सरस्वती के बाल पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद रवि और जयकुमार सिदार ने सरस्वती के गले में चुनरी से गांठ बांध कर खींचा और लाश सरई झाडि़यों के बीच छिपा दी. दोनों आरोपी भागने की हड़बड़ी में अपनी चप्पलें, गमछा भी घटनास्थल के पास छोड़ आए.

लैलूंगा पुलिस ने आरोपी जय कुमार सिदार (25 साल) और रवि सिदार (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर घरघोड़ा की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

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