Crime Story: प्यार में मिट गई सिमरन- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

प्यार शब्द में भले ही दुनिया जहान की खुशियां सिमटी हों, लेकिन जब प्रेमीप्रेमिका का प्यार हकीकत के धरातल से टकराता है तो उस का अस्तित्व डगमगाने लगता है. कभीकभी तो शहद सा मीठा यही प्यार जहर बन जाता है. यही सिमरन और आमिर के साथ भी हुआ. सिमरन ने जिस आमिर को अपना…

सिमरन की प्रेम कहानी की शुरुआत ढाई साल पहले हुई थी. दिल्ली के शाहदरा जिले में मंडोली रोड पर हर्ष विहार थाना क्षेत्र में एक कालोनी है बुध विहार. इसी कालोनी की गली नंबर 12 के मकान नंबर 438 में रहता है मोहम्मद शरीफ और शाबरी बेगम का परिवार. शरीफ का कबाड़ खरीदनेबेचने का काम है. काम कबाड़ी का जरूर था, लेकिन आमदनी अच्छी थी. घर में कोई कमी नहीं थी, परिवार दिल खोल करपैसा खर्च करता था.

शरीफ व शाबरी की 5 औलादें थीं, 2 बेटे व 3 बेटियां. तीनों बेटियां बड़ी थीं उन से छोटे 2 बेटे थे. 2 बड़ी बेटियों की दिल्ली में ही अच्छे  परिवारों में शादी हो चुकी थी. सिमरन बेटियों में सब से छोटी थी. उस से छोटे 2 भाई थे बड़ा फिरोज, उस से छोटा अजहर.

12वीं तक पढ़ी सिमरन की ढाई साल पहले कालोनी में हो रहे एक निकाह के वलीमा में जब आमिर से पहली बार आंख लड़ी थी तो वह उम्र का 20वां बसंत पार कर चुकी थी.

वैसे तो उम्र की ये ऐसी दहलीज होती है जिसे लांघ कर लड़की यौवनांगी बनती है,  इस पड़ाव पर पहुंचते ही उसे दुनिया की हर चीज खूबसूरत नजर आने लगती है. देखने का नजरिया बदल जाता है.

निहायत खूबसूरती का खजाना लिए सिमरन की जवानी एक नई अंगडाई ले रही थी. वैसे तो कुदरत ने उसे खूबसूरती की नियामत दिल खोल कर बख्शी थी लेकिन जब वह सजसंवर कर निकलती थी तो उस के तीखे नाकनक्श उस की बेइंतहा खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देते थे.

उस दिन भी सिमरन की खूबसूरती कुछ ऐसी ही बिजलियां गिरा रही थी. वलीमा की उस पार्टी में सिमरन की निगाहें डीजे के फ्लोर पर बेहद आकर्षक ढंग से डांस कर रहे उस युवक पर अटकी थी जो मानों उसी के लिए डांस कर रहा हो.

पहले प्यार की पहली खुशबू

हालांकि सिमरन ने इस से पहले किस्से कहानियों में ही देखा सुना था कि मोहब्बत नाम की कोई चीज होती है. आखिर मोहब्बत है ही ऐसी चीज, जिसे सभी करना चाहते हैं. सिमरन को उस दिन पहली बार मुहब्बत का अहसास आमिर से बात कर के हुआ था. उस वलीमा फंक्शन में मौका मिलते ही आमिर ने उसे एक कोने में रोक कर पूछा, ‘हैलो जी, कैसा लगा हमारा डांस?’

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एक अंजान युवक से इस तरह बात करते हुए सिमरन का दिल पहली बार इतनी तेजी से धड़का. उस की अटकी हुई सांसों को आमिर ने एक ही नजर में पढ़ लिया.

‘‘आप ने बताया नहीं.’’ आमिर ने फिर से वही सवाल किया ‘‘जी बहुत अच्छा… एकदम रितिक रोशन की तरह डांस करते हो आप.’’

सिमरन ने किसी तरह जवाब दिया.

‘‘आप का नाम जान सकता हूं.’’ आमिर ने पूछा.

‘‘सिमरन…’’ ना जाने कैसे और क्यूं  सिमरन के मुंह से अपने आप निकल गया. अगले ही पल उसे अपनी भूल का अहसास हुआ.

‘‘मुझे आमिर कहते हैं, यहीं गली नंबर 9 में रहता हूं मदीना मस्जिद के पास.’’ आमिर जो सिमरन से बातचीत करने के लिए बेताब था ने सिमरन की घबराहट व हिचकिचाहट को देख कर खुद ही बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया. ‘‘आप को पहले इस इलाके में नहीं देखा, आप शायद अपनी रिश्तेदारी में आई हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं मैं भी यहीं की रहने वाली हूं 12 नंबर गली में घर है हमारा, जिन के यहां ये वलीमा है, अब्बू के दोस्त हैं.’’

सिमरन को मानों अपने उपर नियंत्रण ही नहीं था. आमिर जो भी सवाल कर रहा था, उस के मुंह से जवाब खुद निकल रहे थे.

थोड़ीबहुत बातचीत और हुई. अचानक आमिर नाम के उस युवक ने सिमरन के हाथ से उस का मोबाइल ले लिया और उस पर अपना नंबर लगा कर घंटी मार दी. आमिर के मोबाइल पर सिमरन के नंबर की काल आ चुकी थी. ‘‘थैंक यू सिमरन… तुम से मिल कर बहुत अच्छा लगा… पहली बार कोई इतनी प्यारी लड़की मिली है जिस से दोस्ती करने का मन हो रहा है हम लोग फोन पर बात करते रहेंगे.’’

आमिर हवा के तेज झोंके की तरह आया और अपनी बात कह कर सिमरन को हक्काबक्का छोड़ कर चला गया तो सिमरन मानो सोते से जागी.

सिमरन को उस दिन पहली बार लगा कि कहीं ये मुहब्बत तो नहीं है. क्योंकि उस ने सुना था कि मुहब्बत एक भावना है, जिस का एहसास धीरेधीरे होता है, कभी कभी यह मोहब्बत किसी से पहली नजर में भी हो जाती है.

सिमरन को उस दिन लगा कि ये शायद मुहब्बत का तीर था, जो उस के जिगर के पार हो गया था, इसीलिए वह आमिर की किसी बात का विरोध नहीं कर सकी थी.

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उस दिन रात को सिमरन ठीक से सो नहीं सकी. आंखे बंद करती तो बार बार आमिर का चेहरा उस की आंखों के आगे तैरने लगता. उस के डांस का अंदाजे बयां याद कर के वह खुद ही मुसकराने लगती. उसे लगा कि वह प्यार की अंजानी सी डगर पर चल पड़ी है.

लेकिन अभी तक वो ये नहीं जानती थी कि आमिर है कौन, क्या करता है, उस की हैसियत क्या है?

अगले दिन ही आमिर ने वाटसएप पर सिमरन से बातचीत शुरू कर दी.

प्रेम दीवानी सिमरन, प्यासा आमिर

युवाओं के बीच प्यार की शुरूआत में जिस तरह की बातें होती हैं. उस दिन से दोनों के बीच वैसी बातचीत भी शुरू हो गई. दोनों ने एक दूसरे को अपने फोटो भेजने शुरू कर दिए. चंद रोज बाद दोनों के बीच घर से बाहर कहीं मिलने की बात भी तय हो गई.

एक बार मिलना हुआ तो फिर दोनों को मिलनाजुलना आम बात हो गई. कभी इलाके में गली के किसी नुक्कड़ पर तो कभी नजदीक के किसी पार्क में, कभी किसी चाईनीज फूड सेंटर पर तो कभी पिक्चर देखने के लिए दोनों साथ आने जाने लगे.

जैसेजैसे समय बीत रहा था दोनों की मुहब्बत परवान चढ़ती जा रही थी. कभीकभी मौका मिलता तो आमिर सिमरन के अधरों पर अपने प्यार की मुहर भी लगा देता, जिस से सिमरन की तड़प ओर बढ़ जाती थी.

अगले भाग में पढ़ें- सिमरन मिली भावी ससुराल वालों से

Crime Story: प्यार में मिट गई सिमरन- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- सुनील वर्मा

एक तरह से सिमरन आमिर के प्यार में पूरी तरह दीवानी हो चुकी थी. करीब 6 महीने तक दोनों का प्यार इसी तरह चोरीछिपे परवान चढ़ता रहा. प्यार की हर कहानी एकदम सीधी नहीं होती. उस में कई बाधाएं होती हैं और सिमरन का प्यार तो वैसे भी पहली नजर का अंधा प्यार था, जिस में न तो भविष्य की भलाई देखी गई थी न ही भावी जिदंगी की कड़वी सच्चाई को परखा गया था.

सिमरन बहनों में सब से छोटी थी और मां बाप की लाड़ली भी. मां बाप चाहते थे कि जवानी की दहलीज पर खड़ी सिमरन की शादी भी किसी अच्छे परिवार में कर दी जाए. इसीलिए वे उस के लिए अच्छा वर तलाश रहे थे.

सिमरन के प्यार से अंजान मां ने जब एक दिन सिमरन को रिश्ते के लिए एक लड़के की फोटो दिखाई तो सिमरन को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे हसीन सपना देखते हुए जगा दिया हो.

‘‘अम्मी अभी शादी की क्या जल्दी है.. मुझे घर से निकालना चाहती हो क्या?’’ सिमरन ने बेमन से लड़के की फोटो देखने के बाद कहा.

‘‘नहीं बेटा, लड़की मांबाप के लिए एक जिम्मेदारी होती है जितनी जल्दी ये जिम्मेदारी पूरी हो जाए मांबाप का मन हल्का हो जाता है. और तेरा निकाह हो जाएगा तो उस के बाद फिरोज के लिए भी तो दुल्हन लानी है घर में.’’

शाबरी बेगम ने सिमरन के शादी के ऐतराज को स्वभाविक रूप से लिया. लेकिन वे इस बात से कतई अंजान थी कि बेटी के मन में क्या चल रहा है.

सिमरन जानती थी कि अगर उस ने अपनी अम्मी को अपनी पंसद के बारे में बताया तो वे आमिर से उस की शादी के लिए कतई तैयार नहीं होगी. क्योंकि आमिर का परिवार उस की दूसरी बहनों की ससुराल की तरह समृद्ध नहीं था.

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आमिर के पिता शाहिद मूलरूप से मेरठ के रहने वाले हैं. वे जवानी के दिनों में ही दिल्ली आ गए थे. आजादपुर मंडी में आढ़तियों को लेबर सप्लाई करने वाले शाहिद के परिवार में उन की बीवी आबिदा के अलावा 10 बच्चे थे, 3 बेटियां व 7 बेटे.

परिवार लंबाचौड़ा था और खर्चे अधिक. मंदे समय में उन्होेंने किसी तरह अपने परिवार के लिए मंडोली की गली नंबर 9 में मकान तो बना लिया था, लेकिन 3 बेटियों की शादी करने और 7 बेटों को पालपोस कर जवान करतेकरते वे उम्र से पहले ही बूढे हो कर बीमार रहने लगे थे. उन का कोई भी बच्चा 5वीं जमात से ज्यादा नहीं पढ़ सका था.

मेरठ के सरूरपुर, जैनपुर में पनीर बनाने के कई प्लांट हैं. शाहिद के लगभग सभी बेटे इन्हीं फैक्ट्रियों में काम करते हैं. 2 बड़े बेटे अपने परिवार के साथ जैनपुर में ही किराए का मकान ले कर रहते थे.

आमिर से छोटे भाई की भी शादी हो चुकी थी, लेकिन उस की पत्नी दिल्ली में शाहिद व उन की पत्नी आबिदा के पास ही रहती थी.3 बेटों की अभी शादी नहीं हुई थी.

ढाई साल पहले जिन दिनों सिमरन और आमिर का प्यार परवान चढ़ रहा था उन दिनों आमिर पनीर बनाने का काम सीख रहा था. उस ने अभी नौकरी शुरू नहीं की थी. अलबत्ता 10 हजार रूपए में उस की नौकरी एक प्लांट में पक्की हो गई थी.

इधर जब सिमरन ने आमिर को बताया कि उस के अम्मी अब्बू उस का जल्द से जल्द कहीं दूसरी जगह निकाह कराने की तैयारी कर रहे है तो आमिर सकते में आ गया. क्योंकि वो चाहता था कि सिमरन के साथ अभी एक साल उस के प्रेम संबध यूं ही चलते रहें.

उस ने सोचा था कि नौकरी कर के पहले पैसा कमाएगा फिर सिमरन से शादी करेगा. लेकिन जब अचानक सिमरन ने बताया कि परिवार वाले उस का निकाह कराने की तैयारी कर रहे हैं तो उस के हाथपांव फूल गए.

उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करें. सिमरन ने उसे ये भी बता दिया था कि उस के परिवार की हैसियत देख कर उस के परिवार वाले कभी दोनों की शादी के लिए तैयार नहीं होंगे.

सिमरन दिल्ली में रहने वाली और 12वीं क्लास तक पढ़ी लड़की थी. उसे पता था कि अगर परिवार शादी की इजाजत ना दे तो बालिग प्रेमियों को शादी के लिए क्या करना चाहिए.

सिमरन मिली भावी ससुराल वालों से

इसलिए सिमरन ने आमिर से पूछा कि क्या उस के परिवार वाले उसे अपनाने के लिए तैयार हैं. सिमरन अच्छे संपन्न परिवार की पढ़ीलिखी सुंदर लड़की थी. जब आमिर ने उसे अपने परिवार वालों से मिलाया तो सब ने शादी के लिए हां कर दी.

अब सवाल यह था कि सिमरन के परिवार वाले दोनों का निकाह कराने के लिए तैयार नहीं होंगे. तय हुआ कि सिमरन व आमिर कोर्ट मैरिज कर लें. बाद में सिमरन का परिवार अपने आप मान जाएगा.

सिमरन व आमिर ने शाहदरा मैरिज कोर्ट में शादी के लिए आवेदन कर दिया. चूंकि दोनों ही बालिग थे और परिवार के तौर पर दोनों की तरफ से आमिर के दोस्त गवाह थे, लिहाजा दोनों की कोर्ट मैरिज होने में कोई अड़चन नहीं आई.

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लेकिन जब कोई लड़की निकाह करती है तो भले ही परिवार से कुछ ना बताए लेकिन उस के रहनसहन और पहनावे में इतना परिवर्तन तो आ ही जाता है कि सवालों का पहाड़ अपने आप ही खड़ा हो जाए.

कोर्ट मैरिज के बाद सिमरन जब चूड़ा पहन कर अपने घर गई तो उस की अम्मी को शक हुआ, तो उन्होंने सवालों की बौछार कर दी. सिमरन जानती थी कि एक ना एक दिन सब को सच बताना ही पडे़गा. लिहाजा उस ने अपनी मां को बता दिया कि वह आमिर नाम के एक लड़के से प्यार करती है और उस ने कोर्ट मैरिज कर ली है.

बेटी के लिए अच्छे घर का सपना देखने वाले मातापिता के लिए बेटी के प्रेम विवाह की खबर किसी वज्रपात से कम नहीं होती. उन्होंने जब लड़के व उस के परिवार के बारे में पूछा तो सिमरन ने सब कुछ सचसच बता दिया.

जैसा कि सिमरन को आशंका थी वैसा ही हुआ. मां ने सिमरन को लानतमलानत दी और उस की पिटाई कर दी. अब्बू के घर आने के बाद तो जम कर हंगामा हुआ. पिता ने उसी दिन आमिर को अपने घर बुलाया और उसे धमकी देते हुए अपनी बेटी को भूल जाने के लिए कहा.

आमिर ने सिमरन से सच्ची मोहब्बत की थी. भूल जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था. लिहाजा उस ने साफ कह दिया कि वह दुनिया में सब को छोड़ सकता है लेकिन सिमरन को छोड़ना उस के लिए मुमकिन नहीं.

मोहम्मद शरीफ ने जब उसे अपनी हैसियत देखने के लिए कहा तो आमिर ने साफ कह दिया कि उस ने सिमरन की हैसियत से नहीं, बल्कि दिल से प्यार किया है.

शरीफ ने आमिर को मारपीट कर घर से भगा दिया और उसे चेतावनी दे दी कि भूल कर भी सिमरन से मिलने का प्रयास न करें. आमिर जानता था कि अगर उस ने जरा सी भी देर कर दी तो सिमरन के घर वाले जल्दी ही कहीं उस का निकाह कर देंगे. लिहाजा उस ने अपनी जान पहचान के कुछ लोगों से बात की और हर्ष विहार थाने पहुंच गया.

अगले भाग में पढ़ें- क्या मांबाप का दिल तोड़ कर खुश थी सिमरन

Crime Story: जंगल में चोरी के लिए

Crime Story: जंगल में चोरी के लिए- पार्ट 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शैलेंद्र कुमार ‘शैल’ 

अनरजीत और उस की दूसरी पत्नी रीमा की हत्या पुलिस के लिए एक पहेली बन गई थी. 2 महीने तक पुलिस ने सभी पहलुओं पर जांच की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. बाद में हत्याकांड का परदाफाश हुआ तो ऐसी वजह सामने आई, जिस की किसी ने…

रीमा गौड़ गोरखपुर जिले के गुलरिहा क्षेत्र के शंकर टोला गांव में पति अनरजीत गुप्ता के साथ रहती थी.

रीमा का मायका इसी गांव में था, लेकिन वह अपने मांबाप के घर से दूर गांव के बाहर बने टिनशेड वाले मकान में रहती थी. यह मकान उस के पति अनरजीत ने बनवाया था. बात 6 अगस्त, 2020 की है. सुबहसुबह रीमा के चाचा बैजनाथ गौड़ घूमते हुए उस के घर पहुंचे तो उन्हें रीमा के घर का मुख्य दरवाजा  खुला मिला.

बैजनाथ ने दरवाजे से ही 2 बार ‘रीमा…रीमा…’ नाम से आवाज लगाई. आवाज देने के बावजूद अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो बैजनाथ खुद अंदर कमरे में दाखिल हो गए.

जैसे ही वह कमरे में पहुंचे, तो वहां की दिल दहला देने वाला हाल देख कर उलटे पांव लौट आए. कमरे के अंदर तख्त पर रीमा और जमीन पर औंधे मुंह उस के पति अनरजीत की रक्तरंजित लाश पड़ी थीं. अनरजीत के सिर पर और रीमा की गरदन पर फावड़े से वार किए गए थे. बगल में खून से सना फावड़ा भी पड़ा था.

बेटी और दामाद की खून में डूबी लाशें देख बैजनाथ के हाथपांव फूल गए और वह घबराहट में वहां से वापस लौट आए.

रीमा पति अनरजीत के साथ गांव में रहती थी. उस की अपनी कोई औलाद नहीं थी. अनरजीत रीमा का तीसरा पति था, जबकि रीमा, अनरजीत की दूसरी पत्नी थी. अनरजीत की पहली पत्नी संगीता से 14 और 10 साल के 2 बेटे थे.

उस की पत्नी संगीता गुलरिहा थाना क्षेत्र के गांव जैनपुर के टोला मोहम्मद बरवा में दोनों बच्चों के साथ अलग रहती थी. अनरजीत ने संगीता और बच्चों को छोड़ा नहीं था, बल्कि स्वेच्छा से पत्नी और बच्चों का भरणपोषण होता था. वह परिवार से मिलने जैनपुर आता था लेकिन ज्यादातर समय दूसरी पत्नी रीमा के साथ ही बिताता था.

बहरहाल, बैजनाथ गौड़ दौड़ेभागे घर पहुंचे और सारी बात बड़े भाई रामरक्षा और भतीजे अखिलेश को बताई. छोटे भाई के मुंह से बेटी और दामाद की हत्या की खबर सुनते ही उन के हाथपांव कांपने लगे और वह धम्म से गिर पड़े. यही नहीं, बेटी और दामाद की हत्या की खबर सुन घर में भी कोहराम मच गया.

बैजनाथ ने फोन द्वारा यह सूचना बेटी की ससुराल में भी दे दी. थोड़ी देर में अनरजीत और रीमा की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह पूरे गांव में फैल गई. खबर मिलते ही गांव वाले मौके पर जुट गए. भीड़ में से किसी ने घटना की सूचना गुलरिहा थाने को दे दी.

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दोहरे हत्याकांड की सूचना मिलते ही थानेदार अनिल पांडेय पुलिस टीम के साथ शंकर टोला पहुंच गए और घटना की सूचना तत्कालीन एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ (चौरीचौरा) रचना मिश्रा को दे दी. इस के बाद जांच में जुट गए.

सूचना मिलने के कुछ देर बाद सभी पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल की बारीकी से जांच की गई. जांच के दौरान अनरजीत के सिर के पीछे और रीमा की गरदन पर गहरे घाव के निशान पाए गए. तख्त के बगल में खून से सना फावड़ा पड़ा था.

पुलिस जुटी जांच में

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने फावड़े से वार किया होगा. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर फावड़ा अपने कब्जे में ले लिया. जांचपड़ताल के दौरान कमरे में 4 जूठी थालियां भी मिलीं.

घर में तो 2 ही सदस्य थे तो थालियां भी 2 होनी चाहिए, लेकिन वहां 4 थालियां थीं. इस का मतलब रात में वहां 2 अन्य लोग रुके थे, जो अनरजीत या रीमा दोनों में से किसी के जानने वाले रहे होंगे और दोनों की हत्या कर के अलमारी से गहने लूट कर फरार हो गए होंगे. क्योंकि जांचपड़ताल के दौरान अलमारी खुली हुई मिली थी. जेवर का डिब्बा खुला हुआ था.

स्थिति को देख कर पुलिस पता लगा रही थी कि हत्या लूट के चलते की गई थी या लूट दोनों की हत्या के बाद हुई थी. कहीं ऐसा तो नहीं, पुलिस को गुमराह करने के लिए हत्यारों ने घटना को लूट का रंग देने की कोशिश की हो. लेकिन यह बात कातिलों के पकड़े जाने के बाद ही पता चल सकता है.

बहरहाल, काररवाई करतेकरते दोपहर के 12 बज गए. पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघव दास मैडिकल कालेज, गोरखपुर भिजवा दीं और थाने लौट आई.

थाने पहुंच कर थानाप्रभारी ने दोनों मृतकों के पिता की संयुक्त तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ धारा 302 आईपीसी का मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.

जैसेजैसे जांच की काररवाई आगे बढ़ी, अनरजीत और रीमा की जिंदगी से जुड़ी हैरान करने वाली त्रिकोणीय कहानी सामने आई, जिस में रीमा की जिंदगी से जुड़ी भूतकाल की कहानी भी थी. अनरजीत के जीवन से जुड़ी कहानी भी कम हैरतअंगेज नहीं थी.

पता चला कि छोटी बहन राजमती के बहकते कदम रोकने के लिए अनरजीत ने उस के प्रेमी प्रदीप यादव पर बहन के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा कर उसे जेल भिजवाया था. 3 माह जेल में रहने के बाद जब प्रदीप जमानत पर बाहर आया तो राजमती और प्रदीप का प्यार फिर से जवां हो गया. नतीजा यह हुआ कि राजमती दूसरी बार प्रेमी के साथ घर छोड़ कर भाग गई.

राजमती के इस कदम से अनरजीत और उस के घर वालों की खूब जगहंसाई हुई. अनरजीत और उस के घर वाले बहुत दुखी थे. बहन के चालचलन से दुखी अनरजीत ने राजमती को उस के हाल पर छोड़ दिया था. अलबत्ता बहन से नाराज हो कर उस ने उस के कुछ कीमती जेवरात अपने पास रख लिए थे.

अनरजीत का तर्क था कि राजमती जब पहली बार प्रदीप के साथ भागी थी उस ने उस की तलाश में हजारों रुपए पानी की तरह बहाए थे. उधर भाई द्वारा जेवर रखने की बात राजमती ने अपने प्रेमी प्रदीप को बता दी थी.

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तब जेवरों को ले कर अनरजीत और प्रदीप के बीच विवाद भी हुआ था. पुलिस ने अपनी जांच में इसे भी शामिल कर लिया कि कहीं इस कांड के पीछे प्रदीप ही तो नहीं  है.

जैसेजैसे जांच आगे बढ़ी पुलिस के सामने रीमा और अनरजीत की उलझी हुई जिंदगी की चौंकाने वाली कहानी सामने आई. पता चला कि अनरजीत से प्रेम विवाह करने से पहले रीमा के कई युवकों से मधुर संबंध थे. तब वह दारू बेचने का धंधा करती थी. उस के दारू के ठीहे पर कई दिलफेंक आशिक दारू पीने आते थे और उन की नजरें रीमा के जवान शरीर पर जमी रहती थीं.

अगले भाग में पढ़ें-  पुलिस उलझी अंधविश्वास में

Crime Story: जंगल में चोरी के लिए- पार्ट 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शैलेंद्र कुमार ‘शैल’ 

खूबसूरत और जवान युवती दारू के ठीहे पर हो और बवाल न हो, ऐसा संभव नहीं. दिलफेंक युवक दारू पीने कम, रीमा के गदराए बदन को घूरने ज्यादा आते थे. रीमा को ले कर वहां अकसर मारपीट होती थी. पुलिस को शक था कि कहीं इन्हीं में से उस का कोई पुराना आशिक तो नहीं, जिस ने इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया हो. पुलिस ने इस दृष्टिकोण को भी जांच में शामिल कर लिया था.

उलझी जिंदगी की चौंकाने वाली कहानी

इस के साथ ही पुलिस को जांच में रीमा से जुड़ी एक और चौंकाने वाली बात पता चली. रीमा की 3 शादियां हुई थीं. पहली शादी के 15 दिनों बाद ही रीमा विधवा हो गई थी. उस के पति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. उस के बाद रीमा मायके आ गई और वहीं रहने लगी थी. सफेद साड़ी में लिपटी जवान बेटी को देख कर पिता रामरक्षा परेशान रहते थे. वह सोचते थे कि इतना लंबा जीवन बेटी कैसे काटेगी. ठीकठाक वरघर देख कर उस की गृहस्थी फिर से बस जाए तो अच्छा है.

रिश्तेदारों के माध्यम से रामरक्षा ने महराजगंज के बेलवा काजी के रहने वाले रविंद्र गौड़ से बेटी का दूसरा ब्याह कर दिया. विवाह से पहले उन्होंने बेटी की पिछली जिंदगी के बारे में सब कुछ साफसाफ बता दिया था, ताकि पिछली जिंदगी नासूर न बने.

लेकिन होनी को भला कौन टाल सकता है, शादी के कुछ महीनों बाद रीमा फिर ससुराल से हमेशा के लिए मायके लौट आई. पता चला कि दूसरा पति रविंद्र गौड़ अव्वल दर्जे का दारूबाज था. दारू हलक से नीचे उतरने के बाद नशे में धुत हो कर वह रीमा को बिना वजह बुरी तरह मारतापीटता था.

पति के अत्याचारों से तंग आ कर वह पति का घर हमेशा के लिए छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी थी.

पत्नी के इस कदम से रविंद्र परेशान था. वह नहीं चाहता था रीमा मायके में जा कर रहे, वह चाहता था कि जो हुआ उसे भुला कर रीमा घर लौट आए. लेकिन रीमा पति की बात मानने के लिए कतई तैयार नहीं थी, वह ससुराल आने के लिए तैयार नहीं हुई.

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इस बात को ले कर शंकर टोला गांव में पंचायत बुलाई गई. पंचायत में गांव वालों के साथसाथ रीमा, रीमा के घर वाले, बगल के गांव जैनपुर टोला मोहम्मद बरवा का अनरजीत और पति रविंद्र मौजूद था. पंचायत के सामने रविंद्र ने पत्नी रीमा के सामने घर वापस आने का प्रस्ताव रखा. लेकिन रीमा ने पति का प्रस्ताव नामंजूर कर दिया.

रीमा की बातों से हमदर्दी दिखाते अनरजीत बीचबीच में उछल कर बोलता रहा. अनरजीत की बातों से नाराज रविंद्र ने उसे ललकारा कि बहुत हमदर्द बनते हो तो क्यों नहीं उस से ब्याह कर लेते?

रविंद्र की बातों को अनरजीत ने दिल पर ले लिया और भरी पंचायत में रविंद्र की ललकार चुनौती के रूप में ले ली. उस ने पंचायत के बीच कह दिया कि यदि रीमा राजी हो तो वह उस से ब्याह करने के लिए तैयार है. रीमा ने हामी भर दी. पंचायत वहीं खत्म हो गई. उस दिन के बाद से रीमा और अनरजीत लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे.

बाद में दोनों ने दुर्गा मंदिर बांसस्थान में गंधर्व विवाह कर लिया. इस बिंदु को भी पुलिस ने अपनी जांच में शामिल कर लिया.

पुलिस ने रविंद्र गौड़ से पूछताछ की. लेकिन इस हत्याकांड में उस का कोई हाथ नजर नहीं आया. डेढ़ महीना बीत जाने के बावजूद भी पुलिस जहां से चली थी, फिर वहीं आ कर खड़ी हो गई थी. त्रिकोण कहानी में उल्लिखित बातों का कोई सूत्र नहीं मिला था.

मतलब साफ था अनरजीत और रीमा हत्याकांड में उन की जिंदगी से जुड़ी घटना का कहीं इन्वौल्वमेंट नहीं था. पुलिस यह सोचसोच कर परेशान थी कि आखिर दोहरे हत्याकांड को किस ने और क्यों अंजाम दिया था? पुलिस अभी तक हत्या का मोटिव भी पता नहीं लगा सकी थी.

पुलिस उलझी अंधविश्वास में

इस बीच कहानी में उस समय एक नया मोड़ आ गया, जब मृतका की चाची सीमा के शरीर पर तथाकथित अदृश्य शक्ति ने सवारी कर सभी को चौंका देने वाली बात कही. सीमा बोली, ‘‘मैं रीमा की आत्मा हूं. मुझे पता है कि मेरी और अनरजीत की हत्या किस ने की है?’’

फिर उस ने गांव के 5 लोगों के नाम बताए. सीमा के बताए नामों के आधार पर पुलिस ने पांचों लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. ऐसा करना पुलिस की मजबूरी थी. हत्यारों का अभी तक पता नहीं चला था. पुलिस का तर्क था कि हो सकता है कातिल इन्हीं में से कोई हो.

पुलिस पांचों लोगों से पूरी रात सख्ती से पूछताछ करती रही. लेकिन यहां भी नतीजा शून्य रहा, पूछताछ बेनतीजा निकली.

पांचों आरोपियों का हत्या में कहीं हाथ नहीं मिला तो उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया. पुलिस घटना की तह में जाने के लिए सर्विलांस की मदद ले रही थी. पुलिस मृतकों के फोन की काल डिटेल्स भी निकाल कर कई बार अध्ययन कर चुकी थी. साथ ही मुखबिरों की भी मदद ले रही थी.

पहली अक्तूबर, 2020 को एक मुखबिर ने पुलिस को ऐसी सूचना दी, जिसे सुन कर पुलिस चौंक गई. मुखबिर ने पुलिस को बताया कि घटना से कुछ दिनों पहले लकड़ी तस्कर रहमुद्दीन उर्फ रामदीन का अनरजीत से रुपयों को ले कर विवाद हुआ था. रामदीन उसे देख लेने की धमकी दे कर चला गया था.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने अपनी जांच लकड़ी तस्कर रामदीन उर्फ रहमुद्दीन की ओर मोड़ दी. छानबीन के दौरान पता चला कि घटना से महीने भर पहले चोरी से जंगल से सागौन की कीमती लकडि़यां कटवा कर रात के समय ले जाते हुए रामदीन को पुलिस ने धर दबोचा था और गाड़ी सहित लकडि़यां जब्त कर ली थीं.

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रामदीन गाड़ी छुड़ाने के लिए अनरजीत के पास कर्ज मांगने आया था. वह उस के सामने गिड़गिड़ाया भी था, लेकिन अनरजीत ने रुपए देने से इंकार कर दिया था.

महत्त्वपूर्ण सुराग

अनरजीत और रामदीन दोनों पुराने दोस्त थे. वह जानता था कि अनरजीत के पास लाखों रुपए की रकम जमा रहती है. यह रकम वह अपने घर पर ही रखता है. फिर भी मदद करने से इंकार कर रहा है. यह बात रामदीन को चुभ गई थी. छानबीन में पाया गया अनरजीत और रामदीन के बीच वाकई में विवाद हुआ था. इस से शक की सुई रामदीन की ओर घूम गई थी. शक के आधार पर पुलिस ने 5 अक्तूबर, 2020 को रामदीन उर्फ रहमुद्दीन को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में रामदीन ने अपना जुर्म कबूल लिया. पता चला कि रुपयों के लिए उसी ने अनरजीत और उस की पत्नी रीमा की हत्या की थी.

2 महीने से रहस्य बने दोहरे हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया. उसी दिन शाम को सीओ कपिलदेव मिश्र ने गुलरिहा थाने में प्रैसवार्ता बुला कर आरोपी रामदीन उर्फ रहमुद्दीन को पेश किया. पत्रकारों के सामने आरोपी रामदीन ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर अनरजीत और रीमा की हत्या की कहानी ऐसे सामने आई—

अगले भाग में पढ़ें- अनरजीत का हमप्याला था रामदीन

Crime Story: जंगल में चोरी के लिए- पार्ट 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शैलेंद्र कुमार ‘शैल’ 

40 वर्षीय अनरजीत मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा थानाक्षेत्र के जैनपुर टोला मोहम्मद बरवा का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप के अलावा पत्नी संगीता और 2 बेटे थे. अनरजीत ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन मेहनती बहुत था. एक साथ वह कई काम करता था. उस का मुख्य काम रसोई गैस सप्लाई का था. वह गुलरिहा स्थित एक गैस एजेंसी का सब से विश्वासपात्र डिलिवरीमैन था.

वह दिन भर में करीब 10-12 गाड़ी यानी करीब 450 सिलेंडर डिलीवर कर लेता था. शाम तक उस के पास करीब 3 लाख रुपए से ज्यादा की रकम जमा हो जाती थी. यह अनरजीत का रोज का काम था.

इस के साथ ही उस ने अपने घर पर किराने की दुकान भी खोल रखी थी. दुकान उस की पत्नी संगीता चलाती थी. इसी आमदनी से उस ने काफी रुपए बैंक बैलेंस कर लिए थे. वह दोनों बेटों की अच्छी शिक्षा पर पैसे खर्च करता था. बाद के दिनों में उस ने किराए पर चलाने के लिए एक सवारी गाड़ी खरीद ली थी. उस से भी उसे अच्छा मुनाफा हो जाया करता था. कुल मिला कर अनरजीत के घर में रुपयों की कोई कमी नहीं थी. उस का एक ही सपना था कि दोनों बेटे पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो जाएं.

पता नहीं उस की गृहस्थी को किस की बुरी नजर लगी कि सब कुछ चिंदीचिंदी बिखर गया. एक पत्नी के जीवित रहते हुए उस ने शान में आ कर दूसरी शादी कर ली. दूसरी शादी करते ही पहली पत्नी संगीता और अनरजीत के बीच में झगड़ा शुरू हो गया.

संगीता अपनी सौतन रीमा को साथ रखने के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने पति से साफ कह दिया था कि इसे जहां मन हो, ले जा कर रखो. लेकिन मैं इसे अपने घर में नहीं रहने दूंगी. हार मान कर अनरजीत ने रीमा के मायके शंकर टोला गांव के बाहर जमीन खरीद कर 2 कमरों वाला टिन का मकान बनवा कर रीमा के साथ रहना शुरू कर दिया.

अनरजीत ने भले ही रीमा से गंधर्व विवाह कर लिया था, लेकिन उस ने पहली पत्नी संगीता और बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा था. इस में रीमा की भी रजामंदी थी. पति के इस निर्णय से वह बेहद खुश थी. बल्कि वह तो यहां तक चाहती थी कि वह संगीता के साथ उसी घर में जा कर रहे, जबकि संगीता को यह मंजूर नहीं था. घर में शांति बनी रहे, इसीलिए अनरजीत ने ऐसा किया था.

अनरजीत का हमप्याला था रामदीन

खैर, अनरजीत के शंकर टोला में रहते हुए उस के कई दोस्त बन गए थे, जिस में जंगल डुमरी नंबर- 2, टोला सकलदीपपुर का रहने वाला रामदीन उर्फ रहमुद्दीन उस का हमप्याला था. रामदीन की पैठ अनरजीत के घर के अंदर तक थी. इसलिए वह उस के हर राज को जानता था.

रामदीन लकड़ी का कारोबारी था. जंगल से चोरी से सागौन और अन्य कीमती लकडि़यां काट कर बेचना उस का मुख्य धंधा था.

ऐसा नहीं था कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम देता था. इस काम को वह जंगल के अधिकारियों की मिलीभगत से अंजाम देता था. बदले में वह उन्हें मोटी रकम खिलाता था. इसीलिए उस का धंधा रात के अंधेरे में चलता था.

3 अगस्त, 2020 को रामदीन रात के अंधेरे में जंगल से सागौन की बेशकीमती लकडि़यां काट कर चोरी से अपनी गाड़ी पर लाद कर ले जा रहा था. तभी पुलिस ने पकड़ कर उस की गाड़ी सीज कर दी. गाड़ी सीज करने से रामदीन बुरी तरह परेशान हो गया. उस का धंधा बंद हो गया. वह जल्द से जल्द अपनी गाड़ी छुड़ाना चाहता था लेकिन पैसे नहीं होने से वह गाड़ी नहीं छुड़ा पाया.

ऐसे में उसे दोस्त अनरजीत की याद आई. वह उस के पास पहुंचा और अपनी समस्या बता कर उस से एक लाख रुपए कर्ज मांगा. अनरजीत ने रुपए देने से मना किया तो वह दोनों हाथ जोड़ कर उस के सामने गिड़गिड़ाया, मिन्नतें कीं, लेकिन अनरजीत ने रुपए देने से मना कर दिया.

रामदीन जान रहा था कि अनरजीत झूठ बोल रहा है. पैसे होते हुए भी वह देने से मना कर रहा है. उसे अनरजीत का यह व्यवहार काफी नागवार लगा. उसी पल उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म लिया.

रामदीन जानता था कि रात के समय अनरजीत के पास लाखों रुपए जमा रहते हैं. क्यों न उस रकम को ही हासिल कर लिया जाए. लेकिन रुपए हासिल करना आसान नहीं था. रुपए कैसे हासिल करने हैं, उस ने यह योजना भी बना ली.

योजना के मुताबिक 5 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे रामदीन अनरजीत के घर पहुंचा. उस समय अनरजीत और उस की पत्नी रीमा गहरी नींद में सो रहे थे. दरवाजा भिड़ा हुआ था. जैसे ही उस ने हाथ लगाया दरवाजा भीतर की ओर खुल गया. कमरे में घुसने से पहले उस ने बाहर की ओर देखा. दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं दिया तो वह दबे पांव कमरे में घुस गया.

अनरजीत और रीमा दोनों तख्त पर सो रहे थे. अनरजीत को देखते ही रामदीन को गुस्सा आ गया. गुस्से में रामदीन ने अपने पास लाई नुकीली हथौड़ी से नींद में सो रहे अनरजीत के सिर पर जोरदार वार किया. फिर उस पर चाकू से वार किया. अनरजीत नीचे फर्श पर गिर कर मौत के आगोश में समा गया. फिर उस ने रीमा की गरदन पर पास में रखे फावड़े से वार किया, जिस से उस की भी मौत हो गई.

दोनों को मौत के घाट उतारने के बाद रामदीन ने घर की अलमारी को खंगाला.  लेकिन अलमारी से उसे 30 हजार रुपए ही मिले. उस ने सोचा था कि घर में रखे लाखों रुपए हाथ लगेंगे तो सब काम बन जाएगा. लेकिन सब उल्टा हो गया. रुपयों के चक्कर में उस ने 2 जान ले ली थी. फिर जो उस के हाथ आया, उसे ले कर वहां से फरार हो गया.

आखिरकार मुखबिर की सूचना पर 2 महीने बाद पुलिस को घटना का परदाफाश करने में कामयाबी मिल गई. पुलिस ने आरोपी रामदीन से कत्ल में प्रयुक्त नुकीली हथौड़ी और धारदार चाकू बरामद कर लिया. विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रामदीन उर्फ रहमुद्दीन को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे मंडलीय कारागार गोरखपुर भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. आरोपी रामदीन उर्फ रहमुद्दीन अपने किए का नतीजा सलाखों के पीछे भुगत रहा है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: अतीक अहमद खूंखार डौन की बेबसी

अतीक अहमद खूंखार डौन की बेबसी: भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अतीक अहमद सपा के मुलायम सिंह जैसे बड़े नेताओं की शह पर बारबार विधायक बना और मनमाने अपराध करता, कराता रहा. जिस के बल पर उस ने अरबों की संपत्ति बनाई. लेकिन योगी सरकार ने उस के पर कतर दिए हैं. उत्तर प्रदेश सरकार उसे रखने के लिए भले ही साबरमती जेल को हर तीसरे महीने 3 लाख रुपए दे रही है, लेकिन अब वह शायद ही…

उत्तर प्रदेश के माफिया डौन अतीक अहमद की 300 करोड़ की 27 से अधिक संपत्तियों पर योगी सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया है. जबकि अतीक अहमद इस समय गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.

 यह माफिया डौन 5-5 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा का इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव जीत कर विधायक, तो एक बार इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सांसद रह चुका है. अतीक अहमद पर इस समय हत्या, अपहरण, वसूली, मारपीट सहित 188 मुकदमे दर्ज हैं. जून, 2019 से अतीक अहमद गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में हाई सिक्युरिटी जोन में बंद है.

 माफिया डौन अतीक अहमद का इतना आतंक है कि उत्तर प्रदेश की 4-4 जेलें उसे संभाल नहीं सकीं. इन जेलों के जेलरों ने स्वयं सरकार से कहा कि हम इस डौन को नहीं संभाल सकते.

 इस का कारण यह था कि अतीक जब उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की जेल में बंद था, तब उस ने अपने गुंडों से लखनऊ के एक बिल्डर मोहित जायसवाल को जेल में बुला कर बहुत मारापीटा था और उस से उस की प्रौपर्टी के कागजों पर दस्तखत करा लिए थे.

 अतीक अहमद ने अपना आतंक फैलाने के लिए इस मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिस से लोगों में उस की दहशत बनी रहे. इस वीडियो को देखने के बाद राज्य में हड़कंप मचा तो अतीक अहमद को देवरिया की जेल से बरेली जेल भेजा गया. पर बरेली जेल के जेलर ने स्पष्ट कह दिया कि इस आदमी को वह नहीं संभाल सकते.

 लोकसभा के चुनाव सामने थे. अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखना जरूरी था. इसलिए इस के बाद उसे इलाहाबाद की नैनी जेल में शिफ्ट किया गया. उधर देवरिया जेल कांड का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. कोर्ट ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए.

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 सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद, उस के बेटे के अलावा 4 सहयोगियों सहित 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ. जब अतीक के सारे कारनामों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2019 को यूपी सरकार को अतीक अहमद को राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य की जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया.

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भेजा गुजरात

 सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 3 जून, 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार ने गुजरात सरकार के नाम 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट जमा करा कर अतीक को फ्लाइट से अहमदाबाद भेजा. फिलहाल वह गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.

 यह 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट अतीक अहमद को जेल में रखने का मात्र 3 महीने का खर्च था. उस के बाद हर 3 महीने पर अतीक अहमद को अहमदाबाद की जेल में रखने का खर्च उत्तर प्रदेश का कारागार विभाग गुजरात सरकार को भेजता है.

 पिछले 40 सालों में अतीक अहमद ने अपनी धाक राजनीतिक पहुंच के बल पर ऐसी बनाई है कि उस के सामने कोई आंख मिला कर बात करने का साहस नहीं कर सकता. 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई और जबरदस्त शरीर वाले अतीक अहमद की आंखें ही इतनी खूंखार हैं कि किसी को उस के सामने देख कर बात करने का साहस ही नहीं होता.

अतीक अहमद के सामने जो भी सीना तान कर आया, उस की हत्या करा दी गई. उस पर 6 से अधिक हत्या के मामले चल रहे हैं. इस डौन के गैंग में 120 से भी अधिक शूटर हैं. पुलिस ने अतीक अहमद के गैंग का नाम आईएस (इंटर स्टेट) 227 रखा है. इस के गैंग का मुख्य कारोबार इलाहाबाद और आसपास के इलाके में फैला है. अतीक अहमद ने साबित कर दिया है कि पुलिस गुलाम है और सरकार के नेता वोट के लालच में कुछ भी कर सकते हैं. किसी भी डौन को नेता बना सकते हैं. अतीक अहमद की कहानी में मोड़ 1979 से आया.

10 अगस्त, 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद के पिता इलाहाबाद में तांगा चलाते थे. इलाहाबाद के मोहल्ला चकिया के रहने वाले फारुक तांगे वाले के रूप में मशहूर पिता के संघर्ष को अतीक ने करीब से देखा था. हाईस्कूल में फेल हो जाने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी थी. 17 साल की उम्र में उस पर कत्ल का पहला इल्जाम लगा था. उस के बाद वह अपराध की दुनिया में कूद पड़ा.

 यह तब की बात है, जब इलाहाबाद में नए कालेज बन रहे थे, उद्योग लग रहे थे. जिस की वजह से खूब ठेके बंट रहे थे. तभी कुछ नए लड़कों में अमीर बनने का ऐसा चस्का लगा कि वे अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. कुछ भी यानी हत्या, अपहरण और रंगदारी की वसूली.

 अमीर बनने का चस्का अतीक को भी लग चुका था. 17 साल की उम्र में ही उस पर एक कत्ल का इल्जाम लग चुका था, जिस की वजह से लोगों में उस की दहशत बैठ गई थी. उस का भी धंधा चल निकला. वह ठेके लेने लगा, रंगदारी वसूली जाने लगी.

 उस समय इलाहाबाद का डौन चांदबाबा था. पुराने शहर में उस का ऐसा खौफ था कि उस के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. चौक और रानीमंडी के उस के इलाके में पुलिस भी जाने से डरती थी. कहा जाता है कि उस के इलाके में अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला जाता था तो बिना पिटे नहीं आता था.

 तब तक अतीक 20-22 साल का ठीकठाक गुंडा माना जाने लगा था. चांदबाबा का खौफ खत्म करने के लिए नेता और पुलिस एक खौफ को खत्म करने के लिए दूसरे खौफ को शह दे रहे थे. इसी का नतीजा था कि अतीक बड़े गुंडे के रूप में उभरने लगा. परिणाम यह निकला कि वह चांदबाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरा बनता गया.

अतीक ने बना लिया अपना गैंग

 अतीक अहमद ने इलाहाबाद में अपना गैंग बना लिया था. अपने इसी गैंग की मदद से वह इलाहाबाद के लिए ही नहीं, अगलबगल के कस्बों के लिए भी आतंक का पर्याय बन गया था. केवल गैंग बना लेना ही बहादुरी नहीं होती, गैंग का खर्च, उन के मुकदमों का खर्च, हथियार खरीदने के लिए पैसे आदि की भी व्यवस्था करनी होती है. इस के लिए अतीक गैंग की मदद से इलाहाबाद के व्यापारियों का अपहरण कर फिरौती तो वसूलता ही था, शहर में रंगदारी भी वसूली जाने लगी थी.

 इस तरह अतीक अहमद पुलिस के लिए चांदबाबा से भी ज्यादा खतरनाक बन गया था. पुलिस उसे और उस के गैंग के लड़कों को गलीगली खोज रही थी.

 आखिर एक दिन पुलिस बिना लिखापढ़ी के अतीक को उठा ले गई. उसे कहां ले जाया गया, कुछ पता नहीं था. यह सन 1986 की बात है.

उस समय राज्य में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी तो केंद्र में राजीव गांधी की. अतीक को पुलिस कहां ले गई, इस की किसी को खबर नहीं थी. सभी को लगा कि अब उस का खेल खत्म हो चुका है.

काफी खोजबीन की गई. जब कहीं उस का कुछ पता नहीं चला तो इलाहाबाद के ही एक कांग्रेसी सांसद को सूचना दी गई. कहा जाता है कि वह सांसद राजीव गांधी के बहुत करीबी थे. उन्होंने राजीव गांधी से बात की. दिल्ली से लखनऊ फोन आया और लखनऊ से इलाहाबाद.

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उस के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. लेकिन ऐसे ही नहीं. अतीक भेष बदल कर अपने एक साथी के साथ बुलेट से कचहरी पहुंचा. उस ने एक पुराने मामले की जमानत तुड़वा कर आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चला गया. उस के जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उस पर एनएसए लगा दिया. इस से लोगों को लगा कि अतीक बरबाद हो गया है.

एक साल बाद वह जेल से बाहर आ गया. उसे कांग्रेसी सांसद का साथ मिल ही रहा था, जिस की वजह से वह जिंदा बचा था. इस बात से अतीक को पता चल गया था कि उसे अब राजनीति ही बचा सकती है. फिर उस ने किया भी यही.

1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना था. अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया. सामने उम्मीदवार के रूप में था चांदबाबा. चांदबाबा और अतीक में अब तक कई बार गैंगवार हो चुकी थी.

अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांदबाबा को खल रही थी. चांदबाबा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए आम लोगोें ने ही नहीं, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों ने भी अतीक अहमद का समर्थन किया. परिणामस्वरूप चांदबाबा चुनाव हार गया. इस तरह अतीक अहमद पहली बार विधायक बन गया.

विधायक चुने जाने के कुछ ही महीनों बाद अतीक अहमद ने चांदबाबा की भरे बाजार हत्या करा दी. इस के बाद चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया हो गया. कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए. जो बचे वे अतीक के साथ मिल गए.

 अब इलाहाबाद पर एकलौते डौन अतीक अहमद का राज हो गया. अतीक अहमद ने अपना एक पूरा गैंग बना लिया. उसे राजनीतिक सपोर्ट भी मिल रहा था. विधायक बनने के बाद तो व्यापारियों का अपहरण, रंगदारी की वसूली, सरकारी ठेके लेना अतीक अहमद का धंधा बन गया.

 अतीक अहमद का इलाहाबाद में ऐसा आतंक छा गया था कि इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लोग चुनाव में विधायकी का टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे.

राजनीति में आने के बाद ज्यादातर अपराधी धीरेधीरे अपराध करना छोड़ देते हैं, पर अतीक के मामले में इस का उल्टा था. अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन उस ने अपनी माफिया वाली छवि नहीं बदली.

सफेदपोश बनने के बाद उस के द्वारा किए जाने वाले अपराध और बढ़ गए थे. राजनीति की आड़ में वह अपना आपराधिक साम्राज्य और मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उस पर दर्ज होने वाले ज्यादातर आपराधिक मुकदमे विधायक, सांसद रहते हुए ही दर्ज हुए.

वह अपने विरोधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता था. कोई एक अपराध नहीं था उस का. 1999 में चांदबाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या उस के खाते में दर्ज हुईं.

जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाता था, वह मारा जाता था. इलाहाबाद के कसारी मसारी, बेली गांव, चकिया, मरियाडीह और धूमनगंज इलाके में उस की अक्सर गैंगवार होती रहती थी.

 विधायक बनने के बाद अतीक ने अपराध करना और बढ़ा दिया था. 1991 और 1993 के विधानसभा के चुनाव में भी अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुना गया.

1996 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह ने अतीक अहमद को अपनी समाजवादी पार्टी से टिकट दिया. इस तरह चौथी बार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से फिर विधायक चुना गया.

बाद में किसी वजह से अतीक अहमद के समाजवादी पार्टी से संबंध बिगड़ गए तो 1999 में अतीक अहमद अपना दल में शामिल हो गया. सोनेलाल पटेल द्वारा बनाई गई पार्टी अपना दल में अतीक अहमद 1999 से 2003 तक इलाहाबाद का पार्टी का जिला अध्यक्ष रहा. 1999 में उस ने अपना दल से चुनाव लड़ा, परंतु हार गया. उस के बाद 2003 में फिर एक बार अपना दल के टिकट से अतीक अहमद पांचवीं बार विधायक बना.

विदेशी गाडि़यों और हथियारों का शौक

जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वह इलाहाबाद के बड़े कारोबारी थे. कहते हैं कि उस समय शहर में सिर्फ उन्हीं के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाडि़यां थीं. लेकिन जल्दी ही अतीक को भी इस का चस्का लग गया. विधायक बनने के कुछ ही दिनों बाद उस ने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. जल्दी ही उस का नाम सांसद से भी बड़ा हो गया.

सांसद को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने विदेशी गाडि़यां रखनी ही छोड़ दीं. गाडि़यों के बाद नंबर था हथियारों का. इस तरह के आदमी को तो वैसे भी हथियारों की जरूरत होती है. उस ने विदेशी हथियार खरीदने शुरू किए. उस ने विदेशी गाडि़यों का तो पूरा काफिला ही खड़ा कर दिया था.  अतीक किया तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. इसलिए वह विरोधियों को खत्म कर देता था.

अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है. वह चुनाव के दौरान चंदा किसी को फोन कर के या डराधमका कर नहीं मांगता था. वह शहर के पौश इलाके में बैनर लगवा देता था कि आप का प्रतिनिधि आप से सहयोग की अपेक्षा रखता है. इस के बाद लोग खुद ही अतीक के औफिस में चंदा पहुंचा देते थे.

अगर अतीक को अपने गुर्गों को कोई संदेश देना होता तो वह बाकायदा अखबारों में विज्ञापन निकलवा देता कि क्या करना है और क्या नहीं करना.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 2004 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. मुलायम सिंह को बाहुबली नेताओं की जरूरत थी. मुलायम सिंह के कहने पर अतीक अहमद फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया तो इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सपा ने अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया. अतीक अहमद चुनाव जीत गया और सांसद बन गया.

अगले भाग में पढ़ें-  अतीक अहमद एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

अतीक अहमद खूंखार डौन की बेबसी: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अतीक अहमद के सांसद बन जाने पर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा की सीट खाली हो गई. इस पर अतीक अहमद ने अपने भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया. अशरफ के सामने एक समय अतीक अहमद का ही दाहिना हाथ रहे राजू पाल को बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार बनाया. उस समय राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे. इस चुनाव में अतीक का भाई अशरफ 4 हजार वोटों से चुनाव हार गया और राजू पाल चुनाव जीत गया.

राजू पाल की यह जीत अतीक अहमद से हजम नहीं हुई और परिणाम आने के महीने भर बाद यानी नवंबर, 2004 में राजू पाल के औफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. दिसंबर में उस की गाड़ी पर फायरिंग हुई. पर इन दोनों हमलों मे वह बच गया.

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल की कार पर एक बार फिर हमला हुआ. इस में राजू पाल को कई गोलियां लगीं. हमलावर फरार हो गए. गोलीबारी में घायल राजू पाल के साथी उसे टैंपो से अस्पताल ले जा रहे थे तो हमलावरों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उस पर दोबारा हमला किया गया. इस बार उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं. जब तक राजू जीवनज्योति अस्पताल पहुंचता, उस की मौत हो चुकी थी. उसे 19 गोलियां लगी थीं.

इस हत्या का एक कारुणिक पहलू यह था कि हत्या के 9 दिन पहले ही राजू पाल की शादी हुई थी. उस की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, उस के भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद हत्या का मुकदमा दर्ज कराया.

एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहा. इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की.

2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिस में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया. इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था. उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी.

कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई.

अतीक का टूटा किला

इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया. ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था. इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई. वह खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था. उसी समय उस पर सब से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए.

अतीक अहमद पर 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे. परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्तार करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी.

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2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा. इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था. इस बार पहली दफा इलाहाबाद पश्चिमी  का अतीक अहमद का किला टूटा. पूजा पाल चुनाव जीत गई.

उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया. मायावती के जहन में गेस्टहाउस कांड के जख्म हरे थे. इस मामले में बसपा सरकार के रहते मुलायम सिंह के इशारे पर अतीक ने गेस्टहाउस में ठहरी मायावती को बेइज्जत किया था.

एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर औपरेशन अतीक शुरू कर दिया. अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया.

देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित हो गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था. इस से पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था. उस के घर, औफिस सहित 5 संपत्ति को कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया.

माफिया से माननीय बनने का खूनी सफर: भाग 5

जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उस की नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह 5 बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, उसे इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर भागना पड़ा.

अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस के सामने योजना के तहत आत्मसमर्पण कर दिया. अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से इलाहाबाद ले आई. अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक की ड्रीम निर्माण परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया.

औपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया.

इस के बाद 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए. 2 महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमे दर्ज हो गए. पर सपा की सरकार बनते ही उस के दिन बहुरने लगे.

2012 का साल था. अतीक अहमद जेल में था और विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी. उस ने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की. चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. उसे जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया.

बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया. संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया. वह चुनाव भले ही हार गया, पर उस का अपराध का कारखाना बंद नहीं हुआ.

मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया. इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया गया. इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया.

2016 में फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाडि़यों का काफिला ले कर कानपुर पहुंचा. जबकि वह खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था.

पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था. मीडिया में उस के खिलाफ खूब लिखा गया. तब तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे. उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया. उस के बाद से वह जेल में ही है. अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में जिन्हें हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो गया था.

अतीक भले ही आतंक का पर्याय है, वह नेकदिल भी है. उस के पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.

उस पर 35 मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. इन में कुछ अदालत में पैंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है. मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है. यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है.

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2017 में उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के तमाम डौनों पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उस की संपत्ति के पीछे पड़ गई है. रोज उस की कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है.

 ढह गया अतीक अहमद का किला

कभी प्रयागराज में अतीक के नाम की तूती बोतली थी. लोग उस का नाम सुन कर कांपने लगते थे. पर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आते ही प्रदेश के माफिया डौनों की तो जैसे शामत आ गई है.

इन्हीं माफिया डौनों में प्रदेश के सब से कुख्यात माफिया डौन अतीक अहमद की अरबों की संपत्ति कुर्क कर के ढहा दी गई है या फिर सील कर दी गई है.

अगले भाग में पढ़ें- अतीक का बेटा उमर रेंज का सब से बड़ा इनामी अपराधी बना

अतीक अहमद खूंखार डौन की बेबसी: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

जिलाधिकारी के आदेश पर पहले प्रशासन ने प्रयागराज स्थित अतीक अहमद की अरबों की कीमत की कुल 37 संपत्तियां कुर्क कीं. उस के बाद प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने इन संपत्तियों को गिराना शुरू किया.

सब से पहले 5 सितंबर को सिविल लाइंस स्थित अतीक के साढ़ू इमरान का मद्रास होटल गिराया गया. इस के बाद 7 सितंबर को नवाब यूसुफ रोड पर अतीक का गोदाम, 9 सितंबर को झूंसी स्थित कटका गांव में बने कोल्डस्टोरेज को गिराया गया.

इसे गिराने में 2 दिन लगे. करीब 10 हजार वर्गमीटर में बने इस कोल्डस्टोरेज का निर्माण अवैध रूप से कराया गया था. प्राधिकरण से इस का नक्शा भी पास नहीं कराया गया था. यह कोल्डस्टोरेज अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन के नाम था, जिस की कीमत करीब 30 करोड़ रुपए थी.

10 सितंबर को अतीक के करीबी असद की करेली के बाजूपुर गांव में की गई प्लौटिंग को जमींदोज किया गया. इस के बाद 11 सितंबर को मेहंदौरी में अतीक के चचेरे भाई हमजा की संपत्तियों पर बुलडोजर चला.

12 सितंबर को सिविल लाइंस में हाईकोर्ट हनुमान मंदिर के पास स्थित अतीक के दोमंजिला व्यावसायिक भवन को ध्वस्त किया गया. 13 सितंबर को लूकरगंज में अतीक द्वारा कराए गए अवैध निर्माण को हटाया गया.

20 सितंबर को करबला स्थित कार्यालय के एक हिस्से से अतिक्रमण हटाया गया. थाना खुल्दाबाद क्षेत्र के करबला स्थित अतीक का यह औफिस पुलिस द्वारा कुछ दिनों पहले ही गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कुर्क किया गया था. पीडीए ने कार्यालय का जो हिस्सा तोड़ा था, वह बिना नक्शा पास कराए ही बनवाया गया था.

22 सितंबर को अब तक की सब से बड़ी काररवाई करते हुए चकिया स्थित अतीक के आलीशान आशियाने को गिराया गया. करीब 3 हजार वर्गमीटर में बने इस आवास को गिराने के लिए 4 जेसीबी लगाई गई थीं. करीब साढ़े 5 घंटे में अतीक का किले जैसा मकान गिरा दिया गया. प्रशासन वहां इतना पुलिस बल ले कर आया था कि किसी की विरोध करने की हिम्मत नहीं हुई.

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इस के अलावा प्रयागराज से सटे कौशांबी जिले के पिपरी थाना क्षेत्र के रहीमाबाद में अतीक अहमद ने करोड़ों रुपए के खेत खरीदे थे. पास ही एयरपोर्ट और कई बड़े शैक्षणिक संस्थान होने की वजह से अतीक की यह जमीन काफी महंगी है.

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इस जमीन को खेती वाली दर्शाया गया था. जिलाधिकारी के आदेश पर इस जमीन को भी कुर्क करने की तैयारी चल रही है. इस के अलावा अतीक का एक मकान प्रयागराज के नीमसराय की आवासीय योजना में भी है. यह मकान अतीक अहमद के ही नाम है.

इस मकान को भी कुर्क किया जा चुका है. यह सारी काररवाई इसलिए की जा रही है, क्योंकि अतीक ने यह सारी संपत्ति आपराधिक और समाज विरोधी कृत्यों के जरिए अर्जित की थी.

इतना ही नहीं, अतीक अहमद के ड्रीम प्रोजेक्ट अलीना सिटी पर भी 10 सालों बाद एक बार फिर प्रशासन की बड़ी काररवाई हुई है. अलीना सिटी में बने दरजनों अर्धनिर्मित मकानोें को गिरा दिया गया है. प्रयागराज शहर के करेली स्थित अतीक अहमद और उस के करीबियों के हजारों बीघे जमीन पर फैले अलीना सिटी प्रोजेक्ट पर प्रशासन ने कड़ी काररवाई की है.

10 साल पहले शुरू हुई अलीना सिटी के पूरे निर्माण को मायावती सरकार में ध्वस्त कर दिया गया था. सपा सरकार में एक बार फिर अतीक ने अपनी जमीनों पर कब्जा कर के निर्माण कार्य शुरू किया. योगी सरकार बनने के बाद एक बार फिर अलीना सिटी पर जांच शुरू हुई. जांच में अलीना सिटी विवादित पाई गई तो इसे गिरा दिया गया.

यह सारी काररवाई केवल अतीक अहमद पर ही नहीं हो रही है. उस के गुर्गों की सपत्तियों को भी कुर्क कर के गिराया जा रहा है. प्रशासन की काररवाई से अतीक ही नहीं उस के गैंग के तमाम अपराधी परेशान हैं.

मजे की बात यह है कि पीडीए ने अतीक और उस के गुर्गों के खिलाफ जो काररवाई की है, प्रशासन उस में आए खर्च को अतीक एंड कंपनी से वसूलने की तैयारी कर रहा है.

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अब तक की सारी काररवाइयों का हिसाब तैयार किया जा रह है. एक मजदूर की एक दिन की मजदूरी लगभग 5 सौ रुपए है. जेसीबी का प्रति घंटे का किराया एक हजार रुपए है. हिसाब बन जाने के बाद अतीक अहमद और उस के गुर्गों को रकम जमा कराने का नोटिस भेजा जाएगा.

अतीक का बेटा और भाई

अतीक अहमद के बड़े बेटे मोहम्मद उमर जो कानून की पढ़ाई कर रहा है, पर सीबीआई ने 2 लाख रुपए का इनाम घोषित किया है. इस तरह अतीक का बेटा उमर रेंज का सब से बड़ा इनामी अपराधी बन गया है. साबीआई द्वारा 2 लाख का इनाम घोषित करने से अतीक सहित उस का पूरा परिवार परेशान है. घर में एक साथ दोदो इनामी होने की वजह से आए दिन एसटीएफ और क्राइम ब्रांच का छापा पड़ता रहता है, जिस से परिवार को काफी परेशानी होती है.

पूर्व सांसद अतीक अहमद के भाई अशरफ और बेटे उमर तक पहुंचने के लिए एसटीएफ और क्राइम ब्रांच जगहजगह छापेमारी करती रहती है.

अतीक के भाई अशरफ पर पुलिस ने एक लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा है. अतीक अहमद के बेटे उमर पर आरोप है कि देवरिया जेल में बंद अतीक ने जब लखनऊ के प्रौपर्टी डीलर मोहित अग्रवाल की पिटाई कर के जबरन प्रौपर्टी के पेपर साइन कराए थे और धाक जमाने के लिए इस पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था.  इस मामले में उस का बेटा भी शामिल था. उमर अतीक अहमद के सांसद का चुनाव लड़ते समय चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार सब के सामने आया था. उस पर मोहित अग्रवाल से करोड़ों रुपए की जमीन और कंपनियों को जबरदस्ती अपने नाम कराने का आरोप है. काफी दिनों तक वह मेरठ के नौचंदी इलाके के भवानीनगर में रहने वाली अपनी बुआ के यहां छिपा रहा. एसटीएफ को जब इस की जानकारी हुई तो वहां छापा मारा गया. पर उमर को इस बात की भनक लग चुकी थी, जिस से वह फरार हो गया था.  एक लाख के इनामी अतीक के भाई पूर्व विधायक अशरफ की किसान नेता की हत्या, झलवा में एक सीमेंट व्यवसाई के साथ बेरहमी से मारपीट, अल्कमा हत्याकांड, विधायक राजू पाल हत्याकांड, रंगदारी के लिए धमकी समेत अन्य कई मुकदमों में पुलिस को तलाश है. अशरफ के घर की 4 बार कुर्की हो चुकी है. अशरफ की गिरफ्तारी पर अगस्त, 2017 को पहली बार 5 हजार, फिर 15 हजार, उस के बाद 50 हजार और अब एक लाख रुपए का इनाम घोषित किया गया है.

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