‘‘तुम पर अनजाने में हाथ उठाया उस के लिए तुम जो भी सजा दोगी, मैं उसे भुगतने को तैयार हूं. लेकिन ऐसी सजा तो मत दो, समीरा. इस दुनिया में तुम से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है. तुम्हारी खातिर मैं शराब छोड़ दूंगा. प्रामिस, तुम्हारी कसम, लेकिन बगैर तुम्हारे यह जिंदगी कोई जिंदगी थोड़े ही है.’’
दामाद के स्वर में अपनी बेटी के प्रति जो प्रेम, जो अपनापन था, उसे सुन कर पद्मजा मानो पिघल गईं. उन की आंखें भी भर आईं. वह अपने आप को संभाल ही नहीं सकीं. और तुरंत दरवाजे पर दस्तक दी.
‘‘कौन है?’’ समीरा और शेखर एकसाथ ही बेडरूम से बाहर आ गए.
मां को देखते ही भावुक हो समीरा दूर से ही ‘मां’ कहते हुए दौड़ आई और उन से लिपट गई.
‘‘यह क्या किया बेटी तूने? तेरी चिट्ठी देखते ही मेरी छाती फट गई. मेरी कोख में आग लगाने का खयाल तुझे क्यों आया? यह तूने सोचा कैसे कि बगैर तेरे हम जिएंगे?’’
‘‘माफ करो मम्मी, मैं ने जोश में आ कर वह चिट्ठी लिख दी थी. यह नहीं सोचा कि वह तुम्हें इतना सदमा पहुंचाएगी.’’
शेखर एकदम शर्मिंदा हो गया. उसे अब तक यह नहीं पता था कि समीरा ने अपनी मां को चिट्ठी लिखी है. उस की नजरें अपराधबोध से झुक गईं.
समीरा मां का चेहरा देख कर भांप गई कि उस ने चिट्ठी पढ़ने से ले कर यहां पहुंचने तक कुछ भी नहीं खाया है.
समीरा ने पंखा चलाया फिर मां और ड्राइवर को ठंडा पानी पिलाया. थोड़ी देर बाद वह गरमागरम काफी बना कर ले आई. उसे पीने के बाद मानो पद्मजा की जान में जान आ गई.
वहां से जाने से पहले पद्मजा बेटी को समझातेबुझाते दामाद के बारे में पूछ बैठीं, ‘‘समीरा, शेखर घर पर नहीं है क्या?’’
‘‘हां हैं,’’ समीरा ने जवाब दिया.
पद्मजा ने भांप लिया कि समीरा इस बात के लिए पछता रही है कि उस के कारण शेखर की नाक कट गई और अपनी मां के सामने वह शरम महसूस कर रही है.
‘‘जा, उसे मेरे जाने की बात बता दे,’’ पद्मजा ने बड़े संक्षेप में कहा.
समीरा के भीतर जा कर बताते ही शेखर बाहर आया. भले ही वह पद्मजा की तरफ मुंह कर के खड़ा था, नजरें जमीन में गड़ी हुई थीं.
‘‘शेखर, समीरा की तरफ से मैं माफी मांगती हूं. उसे माफ कर दो.’’ शेखर विस्मित रह गया.
पद्मजा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोलीं, ‘‘वह शुरू से ऐसी ही है, एकदम मेरे जैसी. वह बहुत भोली है, बिलकुल बच्चों जैसी. उसे यह भी नहीं पता कि जोश में आ कर जो भी फैसला वह करेगी, उस से सिर्फ उस को ही नहीं बल्कि दूसरों को भी दुख होता है.’’
समीरा और शेखर दोनों पद्मजा की बातें सुन कर चौंक पड़े.
‘‘बेटी, तू पूछती थी न, मेरे शरीर पर ये धब्बे क्या हैं? ये घाव के निशान हैं जो जल जाने के कारण हुए. मैं ने तुझे यह कभी नहीं बताया था, ये हुए कैसे? मैं सोचती थी, अगर बता दूं तो मेरे व्यक्तित्व पर कलंक लग जाएगा और मैं तेरी नजर से गिर भी सकती हूं. इसलिए मैं तुझ से झूठ बोलती आई.
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‘‘बेटी, अब मैं पछता रही हूं कि मैं ने यह पहले ही तुझ से क्यों नहीं कहा? लेकिन मुझे यह देर से पता चला कि बड़ों के अनुभव छोटों को पाठ पढ़ाते हैं. शुरू में मेरे भीतर भी आत्महत्या की भावना रहती थी. हर छोटीबड़ी बात के लिए मैं आत्महत्या कर लेने का निर्णय लेती थी. ऐसा सोचने के पीछे मुझे वेदना या विपत्तियों से मुक्ति पा लेने के विचार की तुलना में किसी से बदला लेने या किसी को दुख पहुंचाने की बात ही ज्यादा रहती थी. कालक्रम में मेरा यह भ्रम दूर होता गया और यह पता चला कि जिंदगी कितनी अनमोल है.
शेखर, जो पहली बार अपनी सासूमां की जीवन संबंधी नई बात सुन रहा था विस्मित हो गया. समीरा की भी लगभग यही हालत थी.
पद्मजा आगे बताने लगी.
‘‘दरअसल, मौत किसी भी समस्या का समाधान नहीं. मौत से मतलब, जिंदगी से डर कर भाग जाना, समस्याओं और चुनौतियों से मुंह मोड़ लेना है. यह तो कायरों के लक्षण हैं. कमजोर दिल वाले ही खुदकुशी की बात सोचते हैं. बेटी, बहादुर लोग जीवन में एक ही बार मरते हैं लेकिन बुजदिल आदमी हर दिन, हर पल मरता रहता है. जिंदगी जीने के लिए है, बेटी, मरने के लिए नहीं. सुखदुख दोनों जीवन के अनिवार्य अंश हैं. जो दोनों को समान मानेगा वही जीवन का आनंद लूट सकेगा. समीरा, यह सब मैं तुझे इसलिए बता रही हूं कि अपनी समस्याओं का समाधान मर कर नहीं जीवित रह कर ढूंढ़ो. जीवन में समस्याओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक है. दोनों ठंडे दिमाग से सोच कर समस्या का समाधान ढूंढ़ो.
‘‘मैं भी जोश में आ कर आत्महत्या कर लेने का प्रयास कई बार कर चुकी हूं. उन में से अगर एक भी प्रयत्न सफल हो जाता तो आज न मुझे इतनी अच्छी जिंदगी मिलती, न इतना योग्य पति मिलता, न हीरेमोती जैसी संतानें मिलतीं. और न इतना अच्छा घर. अपने अनुभव के बल पर कहती हूं बेटी, मेरी बातें समझने की कोशिश करो. मुश्किलें कितनी ही कठिन हों, चुनौतियां कितनी ही गंभीर हों, आप अपने सुनहरे भविष्य को मत भूलें. आश्चर्य की बात यह है कि कभी जो उस समय कष्ट पहुंचाते हैं, वे ही भविष्य में हमारे लिए फायदेमंद होते हैं.’’
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‘‘चलिए, अगर मैं ऐसा ही बोलती रहूंगी तो इस का कोई अंत नहीं होगा. जिंदगी, जिंदगी ही होती है,’’ बेटीदामाद से अलविदा कह कर वह जाने को तैयार हो गई.
पद्मजा के ओझल हो जाने तक वे दोनों उन्हें वहीं खड़ेखडे़ देखते रहे. उन के चले जाने के बाद जिंदगी के बारे में उन्होंने जो कहा, उस का सार उन दोनों के दिलोदिमाग में भर गया.
जैसे हर यात्रा की एक मंजिल होती है उसी तरह हर जिंदगी का भी एक मकसद होता है, एक लक्ष्य रहता है. यात्रा में थोड़ी सी थकावट महसूस होने पर जहां चाहे वहां नहीं उतर जाना चाहिए. मंजिल को पाने तक हमारी जिंदगी का सफर चलता रहता है.
इस प्रकार समीरा के विचार नया मोड़ लेने लगे. अब तक की मां की वेदना उस की समझ में आ गई जिस ने चारों ओर नया आलोक फैला दिया. अब वह पहले वाली समीरा नहीं. इस समीरा को तो जीवन के मूल्यों का पता चल गया.