अलमारी का ताला : आखिर क्या थी मां की इच्छा?

हर मांबाप का सपना होता है कि उन के बच्चे खूब पढ़ेंलिखें, अच्छी नौकरी पाएं. समीर ने बीए पास करने के साथ एक नौकरी भी ढूंढ़ ली ताकि वह अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा खुद उठा सके. उस की बहन रितु ने इस साल इंटर की परीक्षा दी थी. दोनों की आयु में 3 वर्ष का अंतर था. रितु 19 बरस की हुई थी और समीर 22 का हुआ था. मां हमेशा से सोचती आई थीं कि बेटे की शादी से पहले बेटी के हाथ पीले कर दें तो अच्छा है. मां की यह इच्छा जानने पर समीर ने मां को समझाया कि आजकल के समय में लड़की का पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना लड़के का. सच तो यह है कि आजकल लड़के पढ़ीलिखी और नौकरी करती लड़की से शादी करना चाहते हैं. उस ने समझाया, ‘‘मैं अभी जो भी कमाता हूं वह मेरी और रितु की आगे की पढ़ाई के लिए काफी है. आप अभी रितु की शादी की चिंता न करें.’’ समीर ने रितु को कालेज में दाखिला दिलवा दिया और पढ़ाई में भी उस की मदद करता रहता. कठिनाई केवल एक बात की थी और वह थी रितु का जिद्दी स्वभाव. बचपन में तो ठीक था, भाई उस की हर बात मानता था पर अब बड़ी होने पर मां को उस का जिद्दी होना ठीक नहीं लगता क्योंकि वह हर बात, हर काम अपनी मरजी, अपने ढंग से करना चाहती थी.

पढ़ाई और नौकरी के चलते अब समीर ने बहुत अच्छी नौकरी ढूंढ़ ली थी. रितु का कालेज खत्म होते उस ने अपनी जानपहचान से रितु की नौकरी का जुगाड़ कर दिया था. मां ने जब दोबारा रितु की शादी की बात शुरू की तो समीर ने आश्वासन दिया कि अभी उसे नौकरी शुरू करने दें और वह अवश्य रितु के लिए योग्य वर ढूंढ़ने का प्रयास करेगा. इस के साथ ही उस ने मां को बताया कि वह अपने औफिस की एक लड़की को पसंद करता है और उस से जल्दी शादी भी करना चाहता है क्योंकि उस के मातापिता उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. मां यह सब सुन घबरा गईं कि पति को कैसे यह बात बताई जाए. आज तक उन की बिरादरी में विवाह मातापिता द्वारा तय किए जाते रहे थे. समीर ने पिता को सारी बात खुद बताना ठीक समझा. लड़की की पिता को पूरी जानकारी दी. पर यह नहीं बताया कि मां को सारी बात पता है. पिता खुश हुए पर कहा, ‘‘अपना निर्णय वे कल बताएंगे.’’

अगले दिन जब पिता ने अपने कमरे से आवाज दी तो वहां पहुंच समीर ने मां को भी वहीं पाया. हैरानी की बात कि बिना लड़की को देखे, बिना उस के परिवार के बारे में जाने पिता ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम खुश तो हम खुश.’’ यह बात समीर ने बाद में जानी कि पिता के जानपहचान के एक औफिसर, जो उसी के औफिस में ही थे, से वे सब जानकारी ले चुके थे. एक समय इस औफिसर के भाई व समीर के पिता इकट्ठे पढ़े थे. औफिसर ने बहाने से लड़की को बुलाया था कुछ काम समझाने के लिए, कुछ देर काम के विषय में बातचीत चलती रही और समीर के पिता को लड़की का व्यवहार व विनम्रता भा गई थी. ‘उल्टे बांस बरेली को’, लड़की वालों के यहां से कुछ रिश्तेदार समीर के घर में बुलाए गए. उन की आवभगत व चायनाश्ते के साथ रिश्ते की बात पक्की की गई और बहन रितु ने लड्डुओं के साथ सब का मुंह मीठा कराया. हफ्ते के बाद ही छोटे पैमाने पर दोनों का विवाह संपन्न हो गया. जोरदार स्वागत के साथ समीर व पूनम का गृहप्रवेश हुआ. अगले दिन पूनम के मायके से 2 बड़े सूटकेस लिए उस का मौसेरा भाई आया. सूटकेसों में सास, ससुर, ननद व दामाद के लिए कुछ तोहफे, पूनम के लिए कुछ नए व कुछ पहले के पहने हुए कपड़े थे. एक हफ्ते की छुट्टी ले नवदंपती हनीमून के लिए रवाना हुए और वापस आते ही अगले दिन से दोनों काम पर जाने लगे. पूनम को थोड़ा समय तो लगा ससुराल में सब की दिनचर्या व स्वभाव जानने में पर अधिक कठिनाई नहीं हुई. शीघ्र ही उस ने घर के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया. समीर ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी, दोनों काम पर इकट्ठे आतेजाते थे.

समीर ने घर में एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया जो पूनम के आने से आया. उस के पिता, जो स्वभाव से कम बोलने वाले इंसान थे, अपने बच्चों की जानकारी अकसर अपनी पत्नी से लेते रहते थे और कुछ काम हो, कुछ चाहिए हो तो मां का नाम ले आवाज देते थे. अब कभीकभी पूनम को आवाज दे बता देते थे और पूनम भी झट ‘आई पापा’ कह हाजिर हो जाती थी. समीर ने देखा कि पूनम पापा से निसंकोच दफ्तर की बातें करती या उन की सलाह लेती जैसे सदा से वह इस घर में रही हो या उन की बेटी ही हो. समीर पिता के इतने करीब कभी नहीं आ पाया, सब बातें मां के द्वारा ही उन तक पहुंचाई जाती थीं. पूनम की देखादेखी उस ने भी हिम्मत की पापा के नजदीक जाने की, बात करने की और पाया कि वह बहुत ही सरल और प्रिय इंसान हैं. अब अकसर सब का मिलजुल कर बैठना होता था. बस, एक बदलाव भारी पड़ा. एक दिन जब वे दोनों काम से लौटे तो पाया कि पूनम की साडि़यां, कपड़े आदि बिस्तर पर बिखरे पड़े हैं. पूनम कपड़े तह कर वापस अलमारी में रख जब मां का हाथ बटाने रसोई में आई तो पूछा, ‘‘मां, आप कुछ ढूंढ़ रही थीं मेरे कमरे में.’’

‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’

पूनम ने जब बताया तो मां को समझते देर न लगी कि यह रितु का काम है. रितु जब काम से लौटी तो पूनम की साड़ी व ज्यूलरी पहने थी. मां ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो वह साड़ी बदल, ज्यूलरी उतार गुस्से से भाभी के बैड पर पटक आई और कई दिन तक भाईभाभी से अनबोली रही. फिर एक सुबह जब पूनम तैयार हो साड़ी के साथ का मैचिंग नैकलैस ढूंढ़ रही थी तो देर होने के कारण समीर ने शोर मचा दिया और कई बार मोटरसाइकिल का हौर्न बजा दिया. पूनम जल्दी से पहुंची और देर लगने का कारण बताया. शाम को रितु ने नैकलैस उतार कर मां को थमाया पूनम को लौटाने के लिए. ‘हद हो गई, निकाला खुद और लौटाए मां,’ समीर के मुंह से निकला.

ऐसा जब एकदो बार और हुआ तो मां ने पूनम को अलमारी में ताला लगा कर रखने को कहा पर उस ने कहा कि वह ऐसा नहीं करना चाहती. तब मां ने समीर से कहा कि वह चाहती है कि रितु को चीज मांग कर लेने की आदत हो न कि हथियाने की. मां के समझाने पर समीर रोज औफिस जाते समय ताला लगा चाबी मां को थमा जाता. अब तो रितु का अनबोलापन क्रोध में बदल गया. इसी बीच, पूनम ने अपने मायके की रिश्तेदारी में एक अच्छे लड़के का रितु के साथ विवाह का सुझाव दिया. समीर, पूनम लड़के वालों के घर जा सब जानकारी ले आए और बाद में विचार कर उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया ताकि वे सब भी उन का घर, रहनसहन देख लें और लड़कालड़की एकदूसरे से मिल लें. पूनम ने हलके पीले रंग की साड़ी और मैचिंग ज्यूलरी निकाल रितु को उस दिन पहनने को दी जो उस ने गुस्से में लेने से इनकार कर दिया. बाद में समीर के बहुत कहने पर पहन ली. रिश्ते की बात बन गई और शीघ्र शादी की तारीख भी तय हो गई. पूनम व समीर मां और पापा के साथ शादी की तैयारी में जुट गए. सबकुछ बहुत अच्छे से हो गया पर जिद्दी रितु विदाई के समय भाभी के गले नहीं मिली.

रितु के ससुराल में सब बहुत अच्छे थे. घर में सासससुर, रितु का पति विनीत और बहन रिचा, जिस ने इसी वर्ष ड्रैस डिजाइनिंग का कोर्स शुरू किया था, ही थे. रिचा भाभी का बहुत ध्यान रखती थी और मां का काम में हाथ बटाती थी. रितु ने न कोई काम मायके में किया था और न ही ससुराल में करने की सोच रही थी. एक दिन रिचा ने भाभी से कहा कि उस के कालेज में कुछ कार्यक्रम है और वह साड़ी पहन कर जाना चाहती है. उस ने बहुत विनम्र भाव से रितु से कोई भी साड़ी, जो ठीक लगे, मांगी. रितु ने साड़ी तो दे दी पर उसे यह सब अच्छा नहीं लगा. रिचा ने कार्यक्रम से लौट कर ठीक से साड़ी तह लगा भाभी को धन्यवाद सहित लौटा दी और बताया कि उस की सहेलियों को साड़ी बहुत पसंद आई. रितु को एकाएक ध्यान आया कि कैसे वह अपनी भाभी की चीजें इस्तेमाल कर कितनी लापरवाही से लौटाती थी. कहीं ननद फिर कोई चीज न मांग बैठे, इस इरादे से रितु ने अलमारी में ताला लगा दिया और चाबी छिपा कर रख ली.

एक दिन शाम जब रितु पति के साथ घूमने जाने के लिए तैयार होने के लिए अलमारी से साड़ी निकाल, फिर ताला लगाने लगी तो विनीत ने पूछा, ‘‘ताला क्यों?’’ जवाब मिला-वह किसी को अपनी चीजें इस्तेमाल करने के लिए नहीं देना चाहती. विनीत ने समझाया, ‘‘मम्मी उस की चीजें नहीं लेंगी.’’

रितु ने कहा, ‘‘रिचा तो मांग लेगी.’’ अगले हफ्ते रितु को एक सप्ताह के लिए मायके जाना था. उस ने सूटकेस तैयार कर अपनी अलमारी में ताला लगा दिया. सास को ये सब अच्छा नहीं लगा. सब तो घर के ही सदस्य हैं, बाहर का कोई इन के कमरे में जाता नहीं, पर वे चुप ही रहीं. मायके पहुंची तो मां ने ससुराल का हालचाल पूछा. रितु ने जब अलमारी में ताला लगाने वाली बात बताई तो मां ने सिर पकड़ लिया उस की मूर्खता पर. मां ने बताया कि यहां ताला पूनम ने नहीं बल्कि मां के कहने पर उस के भाई समीर ने लगाना शुरू किया था और चाबी हमेशा मां के पास रहती थी. ताला लगाने का कारण रितु का लापरवाही से भाभी की चीजों का बिना पूछे इस्तेमाल करना और फिर बिगाड़ कर लौटाना था. यह सब उस की आदतों को सुधारने के लिए किया गया था. वह तो सुधरी नहीं और फिर कितनी बड़ी नादानी कर आई वह ससुराल में अपनी अलमारी में ताला लगा कर. मां ने समझाया कि चीजों से कहीं ऊपर है एकदूसरे पर विश्वास, प्यार और नम्रता. ससुराल में अपनी जगह बनाने के लिए और प्यार पाने के लिए जरूरी है प्यार व मान देना. रितु की दोपहर तो सोच में डूबी पर शाम को जैसे ही भाईभाभी नौकरी से घर लौटे उस ने भाभी को गले लगाया. भाभी ने सोचा शायद काफी दिनों बाद आई है, इसलिए ऐसा हुआ पर वास्तविकता कुछ और थी.

रितु ने देखा यहां अलमारी में कोई ताला नहीं लगा हुआ, वह भी शीघ्र ससुराल वापस जा ताले को हटा मन का ताला खोलना चाहती है ताकि अपनी भूल को सुधार सके, सब की चहेती बन सके जैसे भाभी हैं यहां. एक हफ्ता मायके में रह उस ने बारीकी से हर बात को देखासमझा और जाना कि शादी के बाद ससुराल में सुख पाने का मूलमंत्र है सब को अपना समझना, बड़ों को आदरमान देना और जिम्मेदारियों को सहर्ष निभाना. इतना कठिन तो नहीं है ये सब. कितनी सहजता है भाभी की अपने ससुराल में, जैसे वह सब की और सब उस के हैं. मां के घुटनों में दर्द रहने लगा था. रितु ने देखा कि भाभी ने सब काम संभाल लिया था और रात को सोने से पहले रोज वे मां के घुटनों की मालिश कर देती थीं ताकि वे आराम से सो सकें. अब वही भाभी, जिस के लिए उस के मन में इतनी कटुता थी, उस की आदर्श बनती जा रही थीं.

एक दिन जब पूनम और समीर को औफिस से आने में देर हो गई तब जल्दी कपड़े बदल पूनम रसोई में पहुंची तो पाया रात का खाना तैयार था. मां से पता चला कि खाना आज रितु ने बनाया है, यह बात दूसरी थी कि सब निर्देश मां देती रही थीं. रितु को अच्छा लगा जब सब ने खाने की तारीफ की. पूनम ने औफिस से देर से आने का कारण बताया. वह और समीर बाजार गए थे. उन्होंने वे सब चीजें सब को दिखाईं जो रितु के ससुराल वालों के लिए खरीदी गई थीं. इस इतवार दामादजी रितु को लिवाने आ रहे थे. खुशी के आंसुओं के साथ रितु ने भाईभाभी को गले लगाया और धन्यवाद दिया. मां भी अपने आंसू रोक न सकीं बेटी में आए बदलाव को देख कर. रितु ससुराल लौटी एक नई उमंग के साथ, एक नए इरादे से जिस से वह सब को खुश रखने का प्रयत्न करेगी और सब का प्यार पाएगी, विशेषकर विनीत का.

रितु ने पाया कि उस की सास हर किसी से उस की तारीफ करती हैं, ननद उस की हर काम में सहायता करती है और कभीकभी प्यार से ‘भाभीजान’ बुलाती है, ससुर फूले नहीं समाते कि घर में अच्छी बहू आई और विनीत तो रितु पर प्यार लुटाता नहीं थकता. रितु बहुत खुश थी कि जैसे उस ने बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो एक छोटे से हथियार से, ‘प्यार का हथियार’.

अधूरी प्रेम कहानी : रजिया किस बात का जिक्र करने पर असहज हो जाती थी

रजिया और आफताब का खातापीता और सुखी परिवार था. आज उन की शादी की 25वीं सालगिरह थी. आफताब और रजिया ने केक काटने के बाद सब से पहले अशोक बाबूजी को खिलाया. अशोक बाबूजी भी इसी परिवार का हिस्सा थे. रजिया और आफताब की 20 साल की बेटी आसमां आज भी अशोक बाबूजी से 5 साल की बच्ची की तरह लाड़ दिखाती है. आफताब के एक स्कूटर हादसे पर अशोक बाबूजी ने किसी फरिश्ते की तरह इस परिवार की मदद की थी. उस हादसे में अपनी टांग गंवाने के बाद आफताब की निर्भरता अशोक बाबूजी पर और ज्यादा बढ़ गई थी. इधर आसमां की शादी की बात चल रही थी. वह बहुत खूबसूरत और पढ़ीलिखी थी. उस के लिए एक से बढ़ कर एक परिवारों के रिश्ते आ रहे थे. आफताब की खाला की सख्त हिदायत थी कि उन के समाज में ज्यादा दूर के लोगों से रिश्ते नहीं किए जाते और उन्हें अपनी बेटी का निकाह अपने ही किसी एक परिचित परिवार में करना चाहिए.

खाला के सुझाव को दरकिनार कर रात को खाने की टेबल पर आफताब ने अपनी बेटी से कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हारे ऊपर अपनी पसंद नहीं थोपेंगे. तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी कर सकती हो, भले ही वह किसी भी मजहब या जाति का हो, हमें फर्क नहीं पड़ता है.’’ इसी बातचीत के दौरान आफताब ने रजिया की अधूरी लवस्टोरी का जिक्र कर दिया. रजिया बातचीत का मसला बदलने को कह कर बगैर पूरा खाना खाए उठ गई. अपने अधूरे इश्क का जिक्र आते ही रजिया असहज हो जाती थी. वह अपने पुराने प्यार को पूरी तरह भूल चुकी थी और अब उस के लिए टोकना उसे बुरा लगता था. आफताब ने रजिया के कालेज के लड़के के साथ अफेयर की अनदेखी कर उस से शादी की थी. आफताब ने रजिया की प्रेम कहानी को पूरी होने से पहले ही खत्म कर दिया था. आफताब को इस बात का अफसोस था. आफताब रजिया की खूबसूरती और ऊंचे खानदान से होने के चलते इस कदर उतावला था कि उस ने रजिया की प्रेम कहानी को सांप्रदायिक रंग दे कर खत्म करा दिया और खुद उस का शौहर बन बैठा.

आफताब ने रजिया का शरीर और उस का शौहर होने का हक तो हासिल कर लिया था, लेकिन रजिया की रजामंदी हासिल करने में उसे जमाना लग गया. जबरदस्ती रजिया का प्यार हासिल कर लेने के बाद आफताब को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आसमां के जन्म के बाद रजिया ने मन से आफताब को अपना पति मान लिया था और अब जा कर उन के रिश्ते मधुर हुए थे. इस परिवार की हंसीखुशी इसी तरह जारी थी. आज उन के परिवार के दोस्त अशोक बाबूजी का जन्मदिन था. पूरा परिवार इस आयोजन को एकसाथ मनाता था. अशोक बाबू ने पता नहीं किस वजह से शादी नहीं की थी. इलाके में उन की एक छोटी सी कपड़ों की दुकान थी. अशोक बाबूजी से इस परिवार का नाता दिनोंदिन और गहरा हो गया था. आफताब को अशोक बाबूजी ने ही दिया था. आसमां को जन्म के बाद सब से पहले अपनी बांहों में उठाने वाले अशोक बाबूजी ही थे. कहते हैं कि इनसान के कर्म इसी जिंदगी में कभी न कभी उस के आने वाले कल को जरूर चोट पहुंचाते हैं. किसी छोटी सी बात पर नाराज हो कर एक दिन दंगाइयों ने आफताब के घर में आग लगा दी.

रजिया और आसमां तो किसी तरह से परदों और चादरों की रस्सी बना कर बाहर निकल आईं, लेकिन आफताब के साथ उन का खुशियों का आशियाना जल कर खाक हो चुका था. अशोक बाबूजी एक बार फिर इस परिवार के लिए फरिश्ता साबित हुए. भयानक अग्निकांड के बाद जब उन का किसी रिश्तेदार ने सहयोग नहीं दिया, तो अशोक बाबूजी ने ही उन्हें अपने घर में पनाह दी. रजिया के अपने ही सगेसंबंधी और समाज के लोग आफताब की जगह रजिया को सरकारी नौकरी नहीं मिलने दे रहे थे, बीमा की रकम मिलने में भी मुश्किलें डाल रहे थे. पूरा शहर मानो इस परिवार की जान का दुश्मन बना हुआ था. अशोक बाबूजी को इस परिवार के लिए कईकई दिनों तक दुकान बंद रखनी पड़ी, पूरे शहर से लड़ना पड़ा,

लेकिन अब 8 महीने बाद समस्याएं दुरुस्त होने लगी थीं. आसमां का एक कालेज में प्रोफैसर के लिए चयन हो गया था. आज उस का पहला दिन था. आसमां सुबहसुबह अशोक बाबूजी के कमरे में फूलों का गुलदस्ता ले कर गई. पर वहां उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. आसमां की मां रजिया अशोक बाबूजी के साथ उन के बिस्तर में थी. आप समझ सकते हैं कि आसमां के दिल पर क्या गुजरी होगी. आसमां ने फूलों को एक तरफ फेंक कर रोते हुए बेबसी में अशोक बाबूजी से कहा, ‘‘आह, तो यह है आप के एहसानों की वजह.’’ अभी उस के प्यारे अब्बूजान को गुजरे हुए पूरा एक साल भी नहीं हुआ था और उस की मां गिरगिट की तरह रंग बदल लेगी, आसमां ने यह सपने में भी नहीं सोचा था. आज रजिया को अपनी जिंदगी का वह गहरा राज आसमां से साझा करना पड़ गया जिसे वह गलती से भी जबान पर लाना नहीं चाहती थी. अशोक बाबूजी ही रजिया के बचपन का वह प्यार था, जो परवान नहीं चढ़ सका था. आफताब द्वारा रजिया को बेबस कर शादी के बाद, रजिया ने इसे ही जिंदगी मान लिया था.

रजिया ने पूरी वफादारी से आफताब के साथ अपने रिश्ते को निभाया था. अपनी पूरी शादीशुदा जिंदगी में उस ने अशोक बाबूजी की ओर मुड़ कर नहीं देखा था. अशोक बाबूजी का उन के घर आनाजाना था, लेकिन रजिया ने हर समय उन से परदा किया था. यहां तक कि चायपानी के लिए भी वह आसमां से कह कर या परदे की आड़ से पूछती थी. उधर अशोक ने अपने अधूरे प्यार के गम में जिंदगी में कभी शादी न करने का फैसला लिया था. आज जब हालत बदल चुके थे, तो रजिया इनकार नहीं कर सकी. आसमां को यह दलील, यह सफाई पसंद नहीं आई. उस ने अपनी मां के चेहरे पर थूक दिया. आसमां को रजिया और अशोक का रिश्ता किसी कीमत पर मंजूर नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि उस के अब्बा, जिन को खाक में मिलना नसीब नहीं हुआ था, की बेवा किसी दूसरे धर्म के आदमी से जिस्मानी रिश्ता बनाए. अग्निकांड की उस भयानक रात ने आसमां की सोच को कट्टरपंथी बना दिया था. रजिया का जला हुआ मकान फिर से बन चुका था. आसमां को भी तनख्वाह मिलने लगी थी. तुरंत ही वे दोनों अपने नए मकान में शिफ्ट हो गए.

रजिया और अशोक बाबूजी के रिश्ते को जानने के बाद आसमां को अपना जन्म नाजायज लगने लगा था. आसमां ने रजिया को घर में बंदी बना दिया और अशोक बाबूजी से बोलचाल बंद कर दी. रजिया का कोई भी तर्क और कोई भी सुबूत आसमां को संतुष्ट न कर सका. आसमां की खातिर एक बार फिर रजिया और अशोक के मिलने का सपना अधूरा रह गया. आसमां की शादी करने के बाद रजिया ने अपनी सारी जायदाद बेटी और दामाद के नाम कर दी. अगले दिन रजिया बगैर किसी को बताए अशोक बाबूजी के साथ घर से भाग गई. जो काम अशोक और रजिया को आज से 30 साल पहले पूरा कर लेना चाहिए था, 50 साल की उम्र में वही काम कर उन्होंने अपनी अधूरी प्रेम कहानी को पूरा कर लिया था.

हितैषी : कोरियन दंपती का अनोखा वादा

गरमी के दिन थे लेकिन कैलांग में लोग अभी भी गरम कपड़े पहने हुए थे. एसोचेम के अध्यक्ष द्वारा विदेशी प्रतिनिधियों के आग्रह पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन आयोजित किया गया था. इस में विदेशी प्रतिनिधियों के साथ कुछ आप्रवासी भारतीय भी थे. आप्रवासी भारतीयों का विचार यह था कि सम्मेलन किसी बड़े मैट्रो शहर में न करवा कर किसी रोमांचक पर्वतीय क्षेत्र में आयोजित किया जाए. इसी कारण से 40 प्रतिनिधियों का प्रतिनिधिमंडल कैलांग के होटल में ठहरा हुआ था. मुक्त व्यापार, भारत में विदेशी निवेश के लिए नई संभावना, अवसर तलाशने के लिए नई रूपरेखा बनाने के लिए सम्मेलन आयोजित किया गया था. दिनभर वक्ताओं ने अपनेअपने विचार प्रकट किए और अपनेअपने प्रोजैक्ट से अपनी प्रस्तुतियां पेश की. कैलांग की प्रदूषणरहित शीतल जलवायु में रात होते ही प्रवीन जैना और उन की मंडली ने पार्टी आयोजित की. पार्टी में सभी देशीविदेशी प्रतिनिधियों ने जम कर शराब पी. एक कोरियन दंपती ऐसा भी था जो शराब की जगह शरबत पी रहा था. दूसरे लोग उन का उपहास उड़ा रहे थे.

‘‘सब से ज्यादा मैं ने पी है, मेरा कोई भी डेलीगेट मुकाबला नहीं कर सकता मिस्टर जैना,’’ राजेश ढींगरा ने झूमते हुए जोर से कहा.

‘‘आप ने कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है मिस्टर ढींगरा, कल आप का ट्रैकिंग में जाना कैंसिल,’’ जैना ने कहा.

‘‘नो वरी, पूरे 10 हजार रुपए की पी है मैं ने. मैं महंगी से महंगी पीता हूं मिस्टर जैना, यू आर जीरो,’’ राजेश ढींगरा चिल्ला कर बोला और बोतल को जोर से उछाल दिया. नाचरंग में भंग पड़ गया. विदेशी प्रतिनिधि एकदूसरे का मुंह देख रहे थे. आखिरकार, राजेश ढींगरा बेहोश हो कर गिर पड़ा तो होटल के कर्मचारी उसे उठा कर उस के कमरे में लिटा आए.

अगले दिन शैक्षणिक कार्यक्रम के अंतर्गत 5 किलोमीटर की स्थानीय स्तर की ट्रैकिंग का कार्यक्रम रखा गया. इस में कुल 35 सदस्यों को कैलांग परिक्षेत्र में किब्बर नामक क्षेत्र में भेजने का निश्चय हुआ. 35 सदस्यों को 7-7 सदस्यों की

5 टोलियों में बांटा गया. टोली संख्या 5 में 2 भारतीय, 3 जापानी, 2 कोरियन थे. इन में एक कोरियन दंपती जीमारोधम और इमाशुम भी थे. इन के साथ भारवाहक लच्छीराम था. लच्छीराम ने अपनी टोली को सब से आगे ले जाने का निश्चय किया और यह टोली सब से आगे रही. 3 किलोमीटर चलने के बाद अब सीधी चढ़ाई शुरू हुई. टोली के कुछ सदस्य हांफने लगे. 2 भारतीय सदस्यों संतोष और नितीन एक वृक्ष के पास रुक गए.

‘‘हम लोग आगे चलने में असमर्थ हैं, पैरों में दर्द हो रहा है,’’ संतोष बोला.

‘‘वी आर औलसो टायर्ड, वी विल नौट मूव फरदर,’’ जापानियों ने भी आगे जाने में असमर्थता व्यक्त की.

‘‘ठीक है, आप लोग रुक जाएं और दूसरे लोगों के साथ वापस चले जाएं,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘सर, क्या आप लोग जाएंगे?’’ लच्छीराम ने कोरियन दंपती से पूछा.

‘‘हां, हम जाएंगे,’’ कोरियन दंपती बोले. लच्छीराम कोरियन दंपती को ले कर आगे पहाड़ी की ओर चला, सामने एक पहाड़ी नाला था, जिस में पानी कम था.

‘‘साहब, बरसात में इस नाले को कोई भी पार नहीं कर सकता,’’ लच्छीराम ने कहा.

‘‘आप कहां रहते हैं?’’ इमाशुम ने पूछा.

‘‘मेरा घर उस पहाड़ी के पीछे है, अगर हिम्मत करें तो आप वहां चल सकते हैं,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘हम जरूर चलेंगे,’’ जीमारोधम बोला.

‘‘सर, एक बात पूछना चाहता हूं, मुझे बताइए कि आप ने हिंदी कहां से सीखी?’’ लच्छीराम ने पूछा.

‘‘हम दोनों ने बनारस और जयपुर में हिंदी सीखी,’’ जीमारोधम ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मुझे हिंदी भाषा अच्छी लगती है, मैं ने प्रेमचंद की कुछ कहानियों को कोरियन भाषा में अनुवाद किया है,’’ अब की बार इमाशुम बोली. लच्छीराम उन की हिंदी के प्रति रुचि देख कर आश्चर्यचकित था. बातोंबातों में 2 घंटे चलने के बाद वे पहाड़ी के पार लच्छीराम के गांव में पहुंचे. गांव में 10 परिवार थे जो कि भारवाहक का ही कार्य करते थे.

लच्छीराम का घर ऐसा था जैसे बर्फ में रहने वाले इगलू या जंगल में रहने वाले वन गूजर का तबेला हो. इस में लकड़ी का बाड़ा बना हुआ था जो तनिक झुका हुआ था, ऊपर से उसे घासफूस और खपचियों से ढक रखा था. इस झोंपड़ी में पर्याप्त जगह थी. इस में जंगली जानवरों से बचने के लिए पूरी व्यवस्था थी.

झोंपड़ी के अंदर लच्छीराम की पत्नी पारुली भोजन पकाने की व्यवस्था कर रही थी और साथ ही, पशुओं के बाड़े में पशुओं के लिए चारे का इंतजाम भी कर रही थी. झोंपड़ी के अंदर फट्टे बिछा रखे थे जो चारपाई का काम करते थे. लच्छीराम के 3 बच्चों, पत्नी और बूढ़े मांबाप ने जीमारोधम और इमाशुम का सत्कार किया. फट्टे पर ही एक फटी चादर बिछाई गई. पशुओं के बाड़े में बकरियां, भेड़े रहरह कर मिमिया रही थीं.

‘‘बाबाजी नमस्कार, आप कैसे हैं?’’ कोरियन दंपती ने बड़ी विनम्रता से झुकते हुए कोरियन शैली में अभिवादन किया.

‘‘साहब, बस आंखों की समस्या है, नजर कम हो गई है,’’ वृद्घ बोला.

बच्चे उन अजनबी लोगों को देख कर संकोच कर के एक कोने में बैठे थे. लच्छीराम ने फट्टे पर बिछी चादर पर कोरियन दंपती को बिठाया. इमाशुम पारुली से बातें करने लगी और चूल्हे पर उबलते बकरी के दूध को देखने लगी. पारुली देवी ने उबले दूध को गिलास में डाला और काले रंग का चियूरा के गुड़ की डली भी परोसी. 12 हजार फुट से ज्यादा ऊंचाई में उगने वाले पर्वतीय कामधेनु वृक्ष है चियूरा, जिस के फल से शहद, गुड़ और वनस्पति बनाए जाते हैं.

‘‘यह बकरी का दूध है,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘ठीक है, हम पहली बार बकरी का दूध पिएंगे,’’ जीमारोधम बोला.

‘‘बहुत पतला दूध है,’’ इमाशुम ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा. अब लच्छीराम के तीनों बच्चे भी उन के पास आ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, स्कूल जाते हो?’’ जीमारोधम ने पूछा. बच्चों ने सिर हिला कर बतलाया कि वे स्कूल नहीं जाते, बल्कि भेड़बकरियों की देखभाल करते हैं, उन को चराते हैं.

‘‘साहब, यहां गांव में कोई स्कूल नहीं है, यहां से 10 किलोमीटर दूर उस पहाड़ी के पीछे एक कसबा है लेकिन वहां जाने के लिए 10 किलोमीटर घूम कर जाना पड़ता है. बीच में एक पहाड़ी नाला पड़ता है जिस पर पुल नहीं है. अगर पुल बन जाएगा तो दूरी

घट कर 3 किलोमीटर रह जाएगी,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘क्या सरकार की तरफ से पुल नहीं बना?’’ इमाशुम ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आज तक इस गांव में कोई जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचा है. इस गांव में अधिकांश बच्चे भेड़ और बकरी चराते हैं या फिर भारिया बनते हैं, मैं भी भारिया हूं और मेरे बच्चे भी भारिया बनेंगे,’’ लच्छीराम ने उदास श्वास छोड़ते हुए कहा.

‘‘ये भारिया क्या होता है?’’ इमाशुम ने पूछा.

‘‘पोरटर, भार ढोने वाला,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘सरकार की तरफ से कोई भी विकास कार्यक्रम यहां नहीं होता क्योंकि यहां कोई आता ही नहीं,’’ इस बार पारुली ने वेदनापूर्ण स्वर में कहा. कुछ देर बैठ कर कोरियन दंपती ने पूरे परिवार, घर और उस स्थान की फोटो खींची और फिर वे लौटने लगे.

‘‘अच्छा, अब हम चलते हैं. हम अगले साल आएंगे और आप के इस गांव में एक पुल, स्कूल और डिस्पैंसरी जरूर खोलेंगे, यह हमारा प्रौमिस है,’’ जीमारोधम बोला और उस की पत्नी इमाशुम ने हां भरी, साथ ही अपने हैंडबैग से 500 रुपए के 4 नोट निकाले और पारुली को देते हुए कहा, ‘‘लो बहन, तुम सब लोग अपने लिए नए कपड़े बनवा लेना.’’

पारुली शर्म एवं संकोच से कुछ नहीं बोल पाई, उस का मन एक बार तो ललचाया लेकिन अंदर के स्वाभिमान की कशमकश ने विवश किया, उस ने नोट पकड़ने से मना कर दिया.

इमाशुम ने अपने हाथ से पारुली की मुट्ठी में नोट ठूंस दिए. पारुली की आंखों से झरझर आंसू टपकने लगे.

इमाशुम ने अपने दोनों हाथों से पारुली के हाथों को कस कर पकड़ लिया. पारुली संकोचवश कुछ नहीं बोल पाई. उस ने जिंदगी में पहली बार 500 रुपए का नोट देखा था.

‘‘साहब, अब आप से कब मुलाकात होगी?’’ अब लच्छीराम के वृद्ध पिता ने पूछा.

‘‘हम अगले साल आएंगे और आप की आंखों का इलाज भी करवाएंगे,’’ जीमारोधम ने कहा.

लच्छीराम कोरियन दंपती को ले कर वापस लौटने लगा. ‘‘सर, आप पहले इंसान हैं जिन्होंने इतनी बड़ी धनराशि हमें दी है,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘कल आप ने देखा होटल में डेलीगेट्स लाखों रुपए की शराब पी गए लेकिन वे चाहते तो किसी पीडि़त को मदद दे सकते थे. हम कभी शराब नहीं पीते, उस पैसे को जरूरतमंद को दान करते हैं,’’ जीमारोधम बोला.

रात देर गए कोरियन दंपती की यह टोली होटल पहुंची और उन्होंने देखा, कई शराबी सदस्य हाथ में खाने की थाली में रखे भोजन को यों ही चखचख कर फेंक रहे थे. कईयों ने अपनी थाली में पूरा भोजन ले रखा था और उस भोजन की थाली को शराब के नशे में नीचे गिरा रहे थे. कई सदस्य अभी भी नाचरंग में मस्त थे. अन्न की बरबादी का नजारा लच्छीराम ने देखा. उस ने देखा कि 10 भोजन की थालियां तो बिलकुल भोजन से लबालब भरी हुई थीं. शराब ज्यादा पीने वाले प्रतिनिधियों ने सिर्फ एक चम्मच खा कर भोजन की थाली एक तरफ लुढ़का दी.

लच्छीराम ने नजर बचा कर उस थाली के भोजन को अपने थैले में जैसे ही डाला, ‘‘डौंट टच दिस प्लेट, यू पिग,’’ एक विदेशी अंगरेज प्रतिनिधि ने चिल्ला कर उसे डांटा. लच्छीराम ने अपना थैला वहीं छोड़ दिया, भय से वह सकपका गया. होटल स्टाफ ने देखा, कोरियन दंपती ने भी देखा. कोरियन दंपती यह देख कर आहत था. उन के चेहरे पर उस अंगरेज प्रतिनिधि के प्रति रोष था, लेकिन वे चुप रह गए. भारी कदमों से लच्छीराम ने कोरियन दंपती से विदा ली और उन्हें अपना पताठिकाना लिखवाया.

सम्मेलन समाप्त हो गया. सभी लोग चले गए. कैलांग की वादियों से लच्छीराम और उस के परिवार की स्मृति लिए कोरियन दंपती भी चले गए. 1 वर्ष बीता. लच्छीराम को पत्र मिला जो कोरियन दंपती ने भेजा था. कोरियन दंपती ने अपने आने के बारे में और परियोजना के बारे में सूचित किया था.

ठीक समय पर कोरियन दंपती अपनी टीम के साथ पहुंचे. उन के साथ तकनीशियनों की टोली भी थी. वे लोग किब्बर में पुल बनाना चाहते थे, स्कूल खोलना चाहते थे, डिस्पैंसरी खोलना चाहते थे. इन लोगों ने सब से पहले नाले पर पुल बनाने की सोची जिस से वहां निर्माण सामग्री लाने में मदद मिलती. वन विभाग ने आपत्ति लगा दी.

‘‘यहां आप पुल नहीं बना सकते विदाउट परमिशन औफ कंजर्वेटर,’’ वन विभाग के अधिकारियों ने सूचित किया. पुल का कार्य रोक दिया गया. कोरियन दंपती तब कंजर्वेटर से मिले.

‘‘देखिए, पर्यावरण का मामला है, जब तक एनओसी पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार से नहीं मिलेगी, तब तक अनुमति नहीं दी जा सकती,’’ कंजरर्वेटर बोला.

‘‘हमें क्या करना चाहिए?’’ जीमारोधम ने बड़े भोलेपन से पूछा.

‘‘यू शुड सबमिट योर ऐप्लीकेशन थ्रू प्रौपर चैनल, फर्स्ट सबमिट ऐप्लीकेशन ऐट योर एंबैसी,’’ कंजर्वेटर बोला.

‘‘सर, आप मेरे से हिंदी में बात कर सकते हैं, हमें हिंदी भाषा आती है,’’ जीमारोधम बोला.

‘‘सौरी, क्या करें अंगरेजी की आदत पड़ गई है,’’ कंजर्वेटर बोला.

‘‘आप अपनी ऐप्लीकेशन में यह भी लिखिए कि आप किस पर्पज से पुल बनाना चाहते हैं? आप के क्या प्रोजैक्ट हैं? आप की सोर्स औफ इनकम क्या है? ये सब डिटेल लिखिए.’’

कोरियन दंपती ने पुल बनाने, स्कूल खोलने, डिस्पैंसरी खोलने संबंधी अपनी परियोजना का खाका तैयार किया और अनुमति हेतु फाइल को अपने दूतावास के माध्यम से पर्यावरण मंत्रालय को भेजा. एक वर्ष के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने टिप्पणी लिख कर सूचित किया, ‘‘एज सून एज द कंपीटैंट अथौरिटी विल ग्रांट परमिशन, यू विल बी इनफौमर्ड थ्रू योर कोरियन एंबैसी.’’ जीमारोधम ने उस पत्र को अपने पुत्र ईमोमांगचूक को देते हुए उसे संभाल कर रखने को कहा.

21 वर्ष बीत गए, इस बीच कोरियन दंपती का निधन हो चुका था. एक दिन कोरियन दंपती के पुत्र ईमोमांगचूक को एक पत्र अपने कोरिया के घर पर मिला. पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार का यह पत्र कोरियन दूतावास के माध्यम से कोरियन दंपती को संबोधित था जो उन के पुत्र ईमोमांगचूक ने प्राप्त किया. उस में लिखा था, ‘‘विद रैफरैंस टू योर ऐप्लीकेशन अबाउट एनओसी, द कंपीटैंट अथौरिटी इज प्लीज्ड टू इनफौर्म यू दैट द परमिशन इज ग्रांटेड विद इफैक्ट फ्रौम सबमिशन औफ योर प्रौजैक्ट ऐप्लीकेशन औन कंस्ट्रकशन वर्क एट किब्बर, कैलांग, हिमाचल प्रदेश, इंडिया.’’

ईमोमांगचूक ने उस सरकारी पत्र को अपने दिवंगत मातापिता की तसवीर के पास रख दिया और अपने पिता की पुरानी फाइलों को तलाशने लगा जिस में उसे लच्छीराम का पुराना बदरंग फोटो मिला.

ईमोमांगचूक असमंजस के सागर में डूबनेउतरने लगा और वह अपने मातापिता की उस परियोजना को यथार्थ में बदलने के बारे में सोचने लगा.

हियरिंग ऐड : क्या सालों बाद भी माया ने किया उसका इंतजार

फूलों सी नाजुक उस लड़की से कोई तो रिश्ता है मेरा वरना उसे देखते ही दिल
इतना बेचैन क्यों होता है? उस की आंखों में मैं अपना अक्स क्यों ढूंढने
लगता हूं ? एक अजनबी लड़की के होठों से अपना नाम क्यों सुनना चाहता हूं ?
मेरा दिल कह रहा था एक बार उस से अपने दिल की बात कह दूं. मैं मौके की
तलाश में था.

उस दिन वह कॉलेज कैंटीन में अकेली बैठी कुछ पढ़ रही थी. कैंटीन उस वक्त
खाली सा था. मैं उस के सामने वाली चेयर पर जा कर बैठ गया और गला साफ करते
हुए कुछ कहने की हिम्मत जुटाने लगा. मगर उस का ध्यान मेरी तरफ नहीं था.
वह नौवल पढ़ने में मशगूल थी.

मैं ने फिर से अपना गला साफ किया और टेबल पर रखे उस के हाथ थाम कर कहना
शुरू किया,” आज तक मैं ने कभी किसी के लिए ऐसा महसूस नहीं किया जैसा आप
के लिए करता हूं. यह प्यारी बोलती सी आंखें, ये घुंघराले बाल, यह मासूम
सा चेहरा मेरी आंखों में बस गया है. सोतेजागते, पढ़तेलिखते हर वक्त आप ही
नजर आती हो. यू आर माय फर्स्ट लव एंड द फर्स्ट लव विल बी द लास्ट लव. डू
यू लाइक मी?”

माया एक हल्की मुस्कान लिए मेरी नजरों में देख रही थी. उस ने कोई जवाब
नहीं दिया तो मैं थोड़ा असहज हो गया,” देखिए मैं दूसरे लड़कों की तरह
नहीं हूं. आई रियली लव यू. रूह की गहराइयों से प्यार करता हूं आप को. ”

वह अब भी मुझे वैसे ही देखती रही. एक बार फिर कोई जवाब न पा कर मैं ने उस
के हाथ छोड़ दिए और आंखें नीची कर ली.

तब जैसे वह होश में आई और तुरंत बोली,” एक्चुअली आई डोंट नो व्हाट डिड यू
से. मैं ने सुना नहीं. मेरे कान खराब हैं न. ”

मैं हतप्रभ रह गया. मेरी इतनी मेहनत बेकार गई थी. इतनी फीलिंग्स के साथ
मैं ने इतना कुछ कहा और वह तो कुछ सुन ही नहीं सकी. बहरी है बेचारी. मन
में अफसोस हुआ. इशारे से कुछ कहती हुई वह बैग खोलने लगी और मैं सॉरी कह
कर वहां से उठ गया.

“अरे सुनो. रुको तो. कहाँ जा रहे हो?” वह पुकार रही थी. मगर मैं अपनी ही
धुन में बाहर निकल आया.

मेरे पहले प्यार का पहला प्रपोजल सुना ही नहीं गया था. पर मैं ने हिम्मत
नहीं आ हारी और वही सब बातें एक कागज पर लिख कर फिर से उस के पास पहुंचा
और उसे कागज थमा दिया. मैं ने यह भी लिख दिया था कि आप बहरी हैं यह जान
कर बहुत दुख हुआ. मगर आप के अंदर इतनी खूबियां हैं कि है एक कमी कोई
मायने नहीं रखती.

कागज पढ़ कर वह मुस्कुरा उठी और सहजता से बोली,” आई रियली लाइक यू. कल
तुम क्या कह रहे थे यह मैं ने कानों से तो नहीं सुना मगर तुम्हारे दिल
में क्या है यह अच्छी तरह महसूस किया था. जब तुम मेरे पास आ कर बैठे थे
उसी पल मैं ने तुम्हें अपना दिल दे दिया था. तुम दूसरे लड़कों से बहुत
अलग हो. जैसा मैं चाहती थी बिल्कुल वैसे हो. तुम्हें यह भी बता दूं कि
मैं बहरी नहीं, बस सुनाई कम देता है. यह हियरिंग ऐड न लगाऊं तो हल्की
आवाज कान तक नहीं पहुंचती. जब कोई चिल्ला कर बोले तभी सुनाई देता है. पर
यह हियरिंग ऐड लगाते ही सब कुछ क्लियर सुन सकती हूं. कल मैं इसे निकालने
के लिए ही बैग खोल रही थी. तब तक तुम चले गए. मुझे लगा बहरी समझ कर तुम
दोबारा नहीं आओगे. मगर आज तुम फिर से वापस आए तो मुझे यकीन हो गया है कि
तुम्हारा प्यार सच्चा है. ”

” प्यार तो रूह से होता है. एक जुड़ाव जो तुम्हारे लिए महसूस किया, कभी
किसी और के लिए नहीं किया, ” मैं ने कहा.

” मेरे आगेपीछे हजारों लड़के घूमते हैं मगर किसी की आंखों में वह प्यार
नहीं था जो प्यार तुम्हारी आंखों में है. कितनी सादगी और सरलता से तुमने
अपने दिल की बात कह दी. सच तुम्हारी ही तलाश थी मुझे, ” वह मुझे चाहत भरी
नजरों से देख रही थी.

इस तरह वह यानी माया मेरी जिंदगी में आ गई. हम साथ हंसते, साथ खातेपीते
और साथ ही पढ़ते. वह ऐसी लड़की थी जो जिंदगी पूरी तरह जीना चाहती थी. खुद
के साथ दूसरों का भी ख्याल रखती. खूब मस्ती करती और पढ़ाई के समय सीरियस
हो कर पढ़ती भी. उसे नोवेल्स पढ़ने का बहुत शौक था. अक्सर नोवेल्स के
किरदारों में गुम रहती.

हम ने बेहद खूबसूरत लम्हे साथ बिताए. वह कभी मुझ से बोर हो जाती या झगड़ा
होता तो वह अपने हियरिंग ऐड कान से निकाल कर पर्स में रख लेती. फिर मैं
कितना भी बोलता रहता उसे फर्क नहीं पड़ता. थोड़ी देर के बाद मुझे याद आता
कि उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा होगा. हम दोनों बाद में इस बात पर बहुत
हंसते.

इसी तरह समय बीत रहा था. हम ने ग्रेजुएशन कर लिया. माया और मैं ने अब
एमबीए का कोर्स ज्वाइन कर लिया था. इधर कुछ दिनों से मां मेरी शादी की
बातें करने लगी थी. मगर मैं अभी माया के मन की थाह लेना चाहता था. हम ने
अब तक शादी को ले कर कोई चर्चा नहीं की थी.

एक दिन माया एक नौवेल पढ़ती हुई उस के किरदारों के बारे में बताने लगी, ”
जानते हो इस नौवेल के दोनों मुख्य किरदारों ने शादी कहां की ?”

“कहां की?”

” उन्होंने पानी के जहाज पर शादी की,” यह बात बताते वक्त उस की आंखों में
एक चमक थी. फिर अचानक गंभीर हो कर बोली,” अच्छा यह बताओ कि हम अपनी शादी
कहां करेंगे?”

मैं मुस्कुरा पड़ा. मेरे दिल को तसल्ली मिली कि माया मेरे साथ पूरी
जिंदगी के सपने देख रही है. उस ने फिर से मुझ से पूछा तो मैं ने उस के
हाथों को चूम कर कहा,” हम आसमान में शादी करेंगे. बादलों के बीच प्लेन
में बैठ कर हमेशा के लिए एकदूसरे के बन जाएंगे. ”

सुन कर वह खिलखिला उठी और मेरे गले लग गई. बिना कुछ कहे ही हम ने एकदूसरे
को शादी के लिए प्रपोज कर लिया था. अगले दिन मैं ने विचार किया कि अब
मुझे मां से शादी की बात कर लेनी चाहिए. आखिर मां मेरी शादी को ले कर
बहुत सपने देख रही है. दरअसल मैं मां का इकलौता बेटा हूं. बड़ी दीदी की
शादी हो चुकी है और पापा 2 साल पहले हमें छोड़ कर जा चुके हैं. सही मायने
में मां के सिवा मेरा कोई नहीं था.

मैं ने मां को हर बात सच बताने की ठानी और उन के पास पहुंच गया.

” मां आप काफी समय से पूछ रही थीं न कि मैं शादी कब करूंगा. तो बस आज आप
से यही कहने आया हूं कि मैं अब शादी के लिए तैयार हूं. मैं ने आप के लिए
बहू भी देख रखी है. ”

“अच्छा सच,” मां का चेहरा खुशी से खिल उठा था.

मैं ने मां को माया के बारे में सब कुछ बताते हुए कहा ,” मां वह इतनी
खूबसूरत है जैसे स्वर्ग की अप्सरा हो, सांचे में ढला हुआ उस का बदन और मन
से इतनी भली लड़की है कि क्या बताऊँ. आंखें इतनी प्यारी हैं कि किसी को
देख ले तो वह फिर से जी जाए और बाल तो ऐसे कि आप देखोगे न तो आप को लगेगा
कि उस के अंदर कुदरत ने केवल खूबसूरती ही भर दी है. पर मां उसे नजर न लग
जाए इसलिए कुदरत ने एक छोटी सी कमी भी रख छोड़ी है, ” मेरी आवाज थोड़ी धीमी
हो गई थी.

” कमी? कैसी कमी बेटा ?” मां ने पूछा.

” मां उस के कानों में समस्या है. सुनने की समस्या.”

” यह क्या कह रहा है तू? मेरा इकलौता बेटा एक बहरी लड़की से शादी करेगा?
लोग क्या कहेंगे और भला तुझ में कौन सी कमी है जो तुझे ऐसी लड़की लाने की
सूझी?”मां एकदम से भड़क उठी.

” अरे मां वह बहरी नहीं है बस ऊंचा सुनती है. मगर हियरिंग ऐड लगा कर सब
कुछ सुन सकती है,” मैं ने मां को समझाना चाहा.

मगर मां अड़ गई थीं,” अरे बेटा वह हर समय तो मशीन लगा कर नहीं रहेगी न.
मान ले जब वह सो रही है या आराम कर रही है और उस ने मशीन उठा कर रखी हुई
है उस वक्त अचानक घर में कोई हादसा हो जाए, मैं गिर जाऊं, उस के बच्चे का
पैर फिसल जाए या फिर कुछ और हो जाए. तब हम तो चिल्लाते रह जाएंगे न और
उसे कुछ सुनाई ही नहीं देगा. बेटे आंखों देखी मक्खी नहीं निगली जा सकती.
केवल खूबसूरत होना काफी नहीं. घर भी तो चलाना होगा न. पूरी दुनिया में
तुझे एक बहरी लड़की ही मिली थी? नहीं बेटा मैं इस शादी की अनुमति नहीं दे
सकती.” मां ने अपना फैसला सुना दिया था. इस के बाद मैं ने मां को लाख
समझाना चाहा मगर वह नहीं मानी.

मां ने मुझे साफ शब्दों में कहा,” सुन ले अगर मां के लिए जरा सी भी
मोहब्बत और इज्जत है तो तू उस लड़की से शादी नहीं करेगा. उसे भूल जा या
फिर मुझे भूल जा. ”

मेरे लिए मां से बढ़ कर कोई नहीं था सो मैं ने मां के बजाय माया को भूलना
ही मुनासिब समझा. मैं माया से दूरियां बढ़ाने लगा. वह करीब आने की कोशिश
करती तो मैं बहाने बना कर दूर चला जाता. बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा.

एक दिन उस ने मेरा हाथ पकड़ कर नम आंखों से पूछा,” तुम मुझे अवॉयड क्यों
कर रहे हो मनीष? मुझ से शादी नहीं करोगे?”

” नहीं मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. तुम किसी और को देख लो.,” मैं ने
जानबूझ कर बात इतनी खराब अंदाज में कही ताकि उसे बुरा लगे और वह मुझ से
दूर हो जाए. सचमुच ऐसा ही हुआ.

माया भड़क उठी,” किसी और को देख लो, इस का क्या मतलब होता है मनीष? आज तक
हम ने एकसाथ कितने ही सपने देखे और आज तुम ..”

” हां मैं कह रहा हूं कि किसी से भी कर लो शादी और मेरा पीछा छोड़ो ,” कह
कर मैं उस से हाथ छुड़ा कर घर आ गया और फिर कमरा बंद कर शाम तक रोता रहा.

मैं जानता था अब माया कभी भी मुझ से बात तक नहीं करेगी. ऐसा लग रहा था
जैसे किसी ने मेरे शरीर से रूह निकाल कर अलग कर दिया हो. मेरे होठों की
हंसी छिन गई हो. उस दिन के बाद माया मुझ से बिल्कुल कटीकटी रहने लगी. एक
दो महीने बाद ही फाइनल एग्जाम थे सो हमारे कॉलेज में प्रिपरेशन के लिए
छुट्टी हो गई. फिर एग्जाम हुए और इस बीच मेरा प्लेसमेंट एक मल्टीनेशनल
कंपनी में हो गया. माया ने भी कहीं और ज्वाइन कर लिया था. उस से मेरा कोई
संपर्क नहीं रह गया.

इन दिनों में जी तो रहा था मगर जीने की चाह मिट चुकी थी. मां सब समझ रही
थीं. फिर भी उन्हें लगता था कि कोई और लड़की मेरी जिंदगी में आएगी तो सब
नॉर्मल हो जाएगा. मगर मैं ने दिल के सारे दरवाजे इस कदर बंद कर लिए थे कि
कोई और लड़की दिल में आ ही नहीं सकती थी.

मां ने कई खूबसूरत लड़कियों के रिश्ते मुझे सुझाए. एक से बढ़ कर एक
लड़कियों के फोटो दिखाए मगर मुझे कोई पसंद नहीं आई. एक तो उन की बहन की
रिश्तेदार थी. मां ने उसे घर भी बुला लिया. मगर मुझे कोई रुचि लेते न देख
फिर उसे वापस भेज दिया. इस तरह 5 साल बीत गए. मां बीमार रहने लगी थी. वह
किसी भी तरह मुझे खुश देखना चाहती थीं .

अंत में एक दिन उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा,” बेटा मैं समझ
चुकी हूं कि तू माया के बगैर खुश नहीं रह सकता. देख तो क्या हालत बना ली
है अपनी. जा मैं कहती हूं माया को ही अपना ले. मां हूँ, तेरे चेहरे पर यह
गमी बर्दाश्त नहीं कर सकती. ”

मां की बात सुन कर में फूटफूट कर रो पड़ा.,” मां अब अनुमति देने से क्या
होगा? 5 साल बीत चुके हैं. उस ने कब की शादी कर ली होगी. मेरा कोई
कांटेक्ट भी नहीं है उस से, ” मैं ने बुझे स्वर में कहा..

” बेटा मेरा दिल कहता है, अगर वह भी तुझ से प्यार करती होगी तो उस ने भी
जरूर अब तक शादी नहीं की होगी.”

मैं ने मां की बात का मान रखा और अपनी जिंदगी को ढूंढने निकल पड़ा.बड़ी
मुश्किल से उस की सहेली का पता मालूम किया जो ससुराल में थी. मैं ने उस
से माया का पता पूछा तो उस ने कहा कि उसे भी कुछ नहीं पता. शायद माया ने
उस से कुछ भी न बताने का वादा किया लिया होगा. बाद में मैं ने एक दो
दोस्तों से भी बात की मगर किसी को भी उस के बारे में पता नहीं था.

फिर एक दिन अचानक मेरी मुलाकात कॉलेज के एक लड़के से हुई जो दिल ही दिल
में माया को चाहता था. हालचाल पूछने पर उसी ने माया का जिक्र छेड़ा. उस
ने बताया कि वह एक मीटिंग में के सिलसिले में शिमला गया था. वही माया से
मुलाकात हुई थी. वह अपनी कंपनी को रिप्रेजेंट कर रही थी.

” क्या वह शादीशुदा है ?” मैं ने छूटते ही पूछा तो वह हंस पड़ा.

” उस समय तक मतलब करीब 3 महीने पहले तक तो वह अविवाहिता ही थी.”

मेरे चेहरे पर सुकून की रेखा खिंच गई. मैं ने जल्दी से उस से माया का
एड्रेस लिया और शिमला पहुंच गया. रास्ते भर में यही सोचता रहा कि माया
कैसी होगी? मुझे देख कर उस का रिएक्शन क्या होगा? कहीं वह मुझ से मिलने
से मना तो नहीं कर देगी? मैं दिए गए एड्रेस पर पहुंचा तो मुझे गार्डन में
एक लड़की खुले बालों में पौधों को पानी देती नजर आई. मैं ने एक पल में
पहचान लिया वह माया ही थी. चेहरे पर वही सादगी भरी मुस्कान और ललाट पर
सूर्य की लाली. बेहद हसीन गजल सा उस का व्यक्तित्व. दिल किया उसे बाहों
में समेट लूँ. 5 सालों से दिल में दफन सारे जज्बात उमड़ पड़ने को बेकरार
से थे.

मगर फिर ठहर गया. इन 5 सालों में आई दूरी कहीं उस के लिए मुझे अजनबी तो
नहीं बना गई? मैं उस के सामने जा कर खड़ा हो गया. वह उन्हीं निगाहों से
मुझे देखने लगी जब पहली बार मैं ने उसे प्रपोज किया था मगर उस ने हियरिंग
ऐड न लगा होने की वजह से सुना नहीं था.

मैं ने एक बार फिर अपने दिल की बात उसी अंदाज में कहनी शुरू की ,”माया
इतने सालों में एक भी लम्हा ऐसा नहीं जब मैं ने तुम्हें याद न किया हो.
मैं ने तुम्हारा दिल दुखाया मगर मैं विवश था. मां नहीं चाहती थी कि तुम
उन की बहू बनो पर मैं तुम्हें मां की रजामंदी के बाद ही अपने घर ले जाना
चाहता था. आज वह दिन आ गया है. मैं इसीलिए आया हूं. बताओ माया क्या मुझ
से शादी करोगी?”

माया एकटक मुझे देख रही थी. मेरी बात खत्म होने पर उस ने कान की तरफ
इशारा करते हुए कहा कि उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा. तब मैं ने चिल्ला कर
कहा,” माया मुझ से शादी करोगी?”

माया हंस कर हां कहती हुई मेरे सीने से लग गई. आज हमारी इतने सालों की
तपस्या पूर्ण हो गई थी. हम एकदूसरे की बाहों में थे.

शरणार्थी : मीना ने कैसे लगाया अविनाश को चूना

वह हांफते हुए जैसे ही खुले दरवाजे में घुसी कि तुरंत दरवाजा बंद कर लिया. अपने ड्राइंगरूम में अविनाश और उन का बेटा किशन इस तरह एक अनजान लड़की को देख कर सन्न रह गए.

अविनाश गुस्से से बोले, ‘‘ऐ लड़की, कौन है तू? इस तरह हमारे घर में क्यों घुस आई है?’’

‘‘बताती हूं साहब, सब बताती हूं. अभी मुझे यहां शरण दे दो,’’ वह हांफते हुए बोली, ‘‘वह गुंडा फिर मुझे मेरी सौतेली मां के पास ले जाएगा. मैं वहां नहीं जाना चाहती हूं.’’

‘‘गुंडा… कौन गुंडा…? और तुम सौतेली मां के पास क्यों नहीं जाना चाहती हो?’’ अविनाश ने जब सख्ती से पूछा, तब वह लड़की बोली, ‘‘मेरी सौतेली मां मुझ से देह धंधा कराना चाहती है. उदय प्रकाश एक गुंडे के साथ मुझे कोठे पर बेचने जा रहा था, मगर मैं उस से पीछा छुड़ा कर भाग आई हूं.’’

‘‘तू झूठ तो नहीं बोल रही है?’’

‘‘नहीं साहब, मैं झूठ नहीं बोल रही हूं. सच कह रही हूं,’’ वह लड़की इतना डरी हुई थी कि बारबार बंद दरवाजे की तरफ देख रही थी.

अविनाश ने पूछा, ‘‘ठीक है, पर तेरा नाम क्या है?’’

‘‘मीना है साहब,’’ वह लड़की बोली,

अविनाश ने कहा, ‘‘घबराओ मत मीना. मैं तुम्हें नहीं जानता, फिर भी तुम्हें शरण दे रहा हूं.’’

‘‘शुक्रिया साहब,’’ मीना के मुंह से निकल गया.

‘‘एक बात बताओ…’’ अविनाश कुछ सोच कर बोले, ‘‘तुम्हारी मां तुम से धंधा क्यों कराना चाहती है?’’

मीना ने कहा, ‘‘जन्म देते ही मेरी मां गुजर गई थीं. पिता दूसरी शादी नहीं करना चाहते थे, मगर रिश्तेदारों ने जबरदस्ती उन की शादी करा दी.

‘‘मगर शादी होते ही पिता एक हादसे में गुजर गए. मेरी सौतेली मां विधवा हो गई. तब से ही रिश्तेदार मेरी सौतेली मां पर आरोप लगाने लगे कि वह पिता को खा गई. तब से मेरी सौतेली मां अपना सारा गुस्सा मुझ पर उतारने लगी.

‘‘इस तरह तानेउलाहने सुन कर मैं ने बचपन से कब जवानी में कदम रख दिए, पता ही नहीं चला. मेरी सौतेली मां को चाहने वाले उदय प्रकाश ने उस के कान भर दिए कि मेरी शादी करने के बजाय किसी कोठे पर बिठा दे, क्योंकि उस के लिए वह कमाऊ जो थी.

‘‘मां का चहेता उदय प्रकाश मुझे कोठे पर बिठाने जा रहा था. मैं उस की आंखों में धूल झोंक कर भाग गई और आप का मकान खुला मिला, इसी में घुस गई.’’

अविनाश ने पूछा, ‘‘कहां रहती हो?’’

‘‘शहर की झुग्गी बस्ती में.’’

‘‘तुम अगर मां के पास जाना चाहती हो, तो मैं अभी भिजवा सकता हूं.’’

‘‘मत लो उस का नाम…’’ मीना जरा गुस्से से बोली.

‘‘फिर कहां जाओगी?’’ अविनाश ने पूछा.

‘‘साहब, दुनिया बहुत बड़ी है, मैं कहीं भी चली जाऊंगी?’’

‘‘तुम इस भेडि़ए समाज में जिंदा रह सकोगी.’’

‘‘फिर क्या करूं साहब?’’ पलभर सोच कर मीना बोली, ‘‘साहब, एक बात कहूं?’’

‘‘कहो?’’

‘‘कुछ दिनों तक आप मुझे अपने यहां नहीं रख सकते हैं?’’ मीना ने जब यह सवाल उठाया, तब अविनाश सोचते रहे. वे कोई जवाब नहीं दे पाए.

मीना ही बोली, ‘‘क्या सोच रहे हैं आप? मैं वैसी लड़की नहीं हूं, जैसी आप सोच रहे हैं.’’

‘‘तुम्हारे कहने से मैं कैसे यकीन कर लूं?’’ अविनाश बोले, ‘‘और फिर तुम्हारी मां का वह आदमी ढूंढ़ता हुआ यहां आ जाएगा, तब मैं क्या करूंगा?’’

‘‘आप उसे भगा देना. इतनी ही आप से विनती है,’’ यह कहते समय मीना की सांस फूल गई थी.

मीना आगे कुछ कहती, तभी दरवाजे के जोर से खटखटाने की आवाज आई. कमरे में तीनों ही चुप हो गए. इस वक्त कौन हो सकता है?

मीना डरते हुए बोली, ‘‘बाबूजी, वही गुंडा होगा. मैं नहीं जाऊंगी उस के साथ.’’

‘‘मत जाना. मैं जा कर देखता हूं.’’

‘‘वही होगा बाबूजी. मेरी सौतेली मां का चहेता. आप मत खोलो दरवाजा,’’ डरते हुए मीना बोली.

एक बार फिर जोर से दरवाजा पीटने की आवाज आई.

अविनाश बोले, ‘‘मीना, तुम भीतर जाओ. मैं दरवाजा खोलता हूं.’’

मीना भीतर चली गई. अविनाश ने दरवाजा खोला. एक गुंडेटाइप आदमी ने उसे देख कर रोबीली आवाज में कहा, ‘‘उस मीना को बाहर भेजो.’’

‘‘कौन मीना?’’ गुस्से से अविनाश बोले.

‘‘जो तुम्हारे घर में घुसी है, मैं उस मीना की बात कर रहा हूं…’’ वह आदमी आंखें दिखाते हुए बोला, ‘‘निकालते हो कि नहीं… वरना मैं अंदर जा कर उसे ले आऊंगा.’’

‘‘बिना वजह गले क्यों पड़ रहे हो भाई? जब मैं कह रहा हूं कि मेरे यहां कोई लड़की नहीं आई है,’’ अविनाश तैश में बोले.

‘‘झूठ मत बोलो साहब. मैं ने अपनी आंखों से देखा है उसे आप के घर में घुसते हुए. आप मुझ से झूठ बोल रहे हैं. मेरे हवाले करो उसे.’’

‘‘अजीब आदमी हो… जब मैं ने कह दिया कि कोई लड़की नहीं आई है, तब भी मुझ पर इलजाम लगा रहे हो? जाते हो कि पुलिस को बुलाऊं.’’

‘‘मेरी आंखें कभी धोखा नहीं खा सकतीं. मैं ने मीना को इस घर में घुसते हुए देखा है. मैं उसे लिए बिना नहीं जाऊंगा…’’ अपनी बात पर कायम रहते हुए उस आदमी ने कहा.

अविनाश बोले, ‘‘मेरे घर में आ कर मुझ पर ही तुम आधी रात को दादागीरी कर रहे हो?’’

‘‘साहब, मैं आप का लिहाज कर रहा हूं और आप से सीधी तरह से कह रहा हूं, फिर भी आप समझ नहीं रहे हैं,’’ एक बार फिर वह आदमी बोला.

‘‘कोई भी लड़की मेरे घर में नहीं घुसी है,’’ एक बार फिर इनकार करते हुए अविनाश उस आदमी से बोले.

‘‘लगता है, अब तो मुझे भीतर ही घुसना पड़ेगा,’’ उस आदमी ने खुली चुनौती देते हुए कहा.

तब एक पल के लिए अविनाश ने सोचा कि मीना कौन है, वे नहीं जानते हैं, मगर उस की बात सुन कर उन्हें उस पर दया आ गई. फिर ऐसी खूबसूरत लड़की को वे कोठे पर भिजवाना भी नहीं चाहते थे.

वह आदमी गुस्से से बोला, ‘‘आखिरी बार कह रहा हूं कि मीना को मेरे हवाले कर दो या मैं भीतर जाऊं?’’

‘‘भाई, तुम्हें यकीन न हो, तो भीतर जा कर देख लो,’’ कह कर अविनाश ने भीतर जाने की इजाजत दे दी. वह आदमी तुरंत भीतर चला गया.

किशन पास आ कर अविनाश से बोला, ‘‘यह क्या किया बाबूजी, एक अनजान आदमी को घर के भीतर क्यों घुसने दिया?’’

‘‘ताकि वह मीना को ले जाए,’’ छोटा सा जवाब दे कर अविनाश बोले, ‘‘और यह बला टल जाए.’’

‘‘तो फिर इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी. उसे सीधेसीधे ही सौंप देते,’’ किशन ने कहा, ‘‘आप ने झूठ बोला, यह उसे पता चल जाएगा.’’

‘‘मगर, मुझे मीना को बचाना था. मैं उसे कोठे पर नहीं भेजना चाहता था, इसलिए मैं इनकार करता रहा.’’

‘‘अगर मीना खुद जाना चाहेगी, तब आप उसे कैसे रोक सकेंगे?’’ अभी किशन यह बात कह रहा था कि तभी वह आदमी आ कर बोला, ‘‘आप सही कहते हैं. मीना मुझे अंदर नहीं मिली.’’

‘‘अब तो हो गई तसल्ली तुम्हें?’’ अविनाश खुश हो कर बोले.

वह आदमी बिना कुछ बोले बाहर निकल गया.

अविनाश ने दरवाजा बंद कर लिया और हैरान हो कर किशन से बोले, ‘‘इस आदमी को मीना क्यों नहीं मिली, जबकि वह अंदर ही छिपी थी?’’

‘‘हां बाबूजी, मैं अगर अलमारी में नहीं छिपती, तो यह गुंडा मुझे कोठे पर ले जाता. आप ने मुझे बचा लिया. आप का यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी,’’ बाहर निकलते हुए मीना बोली.

‘‘हां बेटी, चाहता तो मैं भी उस को पुलिस के हवाले करा सकता था, मगर तुम्हारे लिए मैं ने पुलिस को नहीं बुलाया,’’ समझाते हुए अविनाश बोले, ‘‘अब तुम्हारा इरादा क्या है?’’

‘‘किस बारे में बाबूजी?’’

‘‘अब इतनी रात को तुम कहां जाओगी?’’

‘‘आप मुझे कुछ दिनों तक अपने यहां शरणार्थी बन कर रहने दो.’’

‘‘मैं तुम को नहीं रख सकता मीना.’’

‘‘क्यों बाबूजी, अभी तो आप ने कहा था.’’

‘‘वह मेरी भूल थी.’’

‘‘तो मुझे आप एक रात के लिए अपने यहां रख लीजिए. सुबह मैं खुद चली जाऊंगी,’’ मीना बोली.

‘‘मगर, कहां जाओगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘नहीं बाबूजी, इसे अभी निकाल दो,’’ किशन विरोध जताते हुए बोला.

‘‘किशन, मजबूर लड़की की मदद करना हमारा फर्ज है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर कहीं इसी इनसानियत में हैवानियत न छिपी हो बाबूजी.’’

‘‘आप आपस में लड़ो मत. मैं तो एक रात के लिए शरणार्थी बन कर रहना चाहती थी. मगर आप लोगों की इच्छा नहीं है, तो…’’ कह कर मीना चलने लगी.

‘‘रुको मीना,’’ अविनाश ने उसे रोकते हुए कहा. मीना वहीं रुक गई.

अविनाश बोले, ‘‘तुम कौन हो, मैं नहीं जानता, मगर एक अनजान लड़की को घर में रखना खतरे से खाली नहीं है. और यह खतरा मैं मोल नहीं ले सकता. तुम जो कह रही हो, उस पर मैं कैसे यकीन कर लूं?’’

‘‘आप को कैसे यकीन दिलाऊं,’’ निराश हो कर मीना बोली, ‘‘मैं उस सौतेली मां के पास भी नहीं जाना चाहती.’’

‘‘जब तुम सौतेली मां के पास नहीं जाना चाहती हो, तो फिर कहां जाओगी?’’

‘‘नहीं जानती. मैं रहने के लिए एक रात मांग रही थी, मगर आप को एतराज है. आप का एतराज भी जायज है. आप मुझे जानते नहीं. ठीक है, मैं चलती हूं.’’

अविनाश उसे रोकते हुए बोले, ‘‘रुको, तुम कोई भी हो, मगर एक पीडि़त लड़की हो. मैं तुम्हारे लिए जुआ खेल रहा हूं. तुम यहां रह सकती हो, मगर कल सुबह चली जाना.’’

‘‘ठीक है बाबूजी,’’ कहते हुए मीना के चेहरे पर मुसकान फैल गई… ‘‘आप ने डूबते को तिनके का सहारा दिया है.’’

‘‘मगर, सुबह तुम कहां जाओगी?’’ अविनाश ने फिर पूछा.

‘‘सुबह मौसी के यहां उज्जैन चली जाऊंगी?’’

अविनाश ने यकीन कर लिया और बोले, ‘‘तुम मेरे कमरे में सो जाना.’’

‘‘आप कहां साएंगे बाबूजी?’’ मीना ने पूछा.

‘‘मैं यहां सोफे पर सो जाऊंगा,’’ अविनाश ने अपना फैसला सुना दिया और आगे बोले, ‘‘जाओ किशन, इसे मेरे कमरे में छोड़ आओ.’’

काफी रात हो गई थी. अविनाश और किशन को जल्दी नींद आ गई. सुबह जब देर से नींद खुली. मीना नहीं थी. सामान बिखरा हुआ था. अलमारियां खुली हुई थीं. उन में रखे गहनेनकदी सब साफ हो चुके थे.

अविनाश और किशन यह देख कर हैरान रह गए. उम्रभर की कमाई मीना ले गई. उन का अनजान लड़की पर किया गया भरोसा उन्हें बरबाद कर गया. जो आदमी रात को आया था, वह उसी गैंग का एक सदस्य था, तभी तो वह मीना को नहीं ले गया. चोरी करने का जो तरीका उन्होंने अपनाया, उस तरीके पर कोई यकीन नहीं करेगा.

मीना ने जोकुछ कहा था, वह झूठ था. वह चोर गैंग की सदस्य थी. शरणार्थी बन कर अच्छा चूना लगा गई.

खाउड्या : घूसखोर सिपाही सीतू

सीतू झोंपड़पट्टी वाले थाने में नयानया सिपाही भरती हुआ था. एक दिन थानेदार ने उसे रामू बनिए को बुला लाने के लिए भेजा.

रामू बनिया तो घर पर नहीं मिला, पर उस के मुनीम ने सीतू को 50 रुपए का नोट पकड़ा कर कहा, ‘‘थानेदार से कह देना कि सेठजी आते ही थाने में हाजिर हो जाएंगे.’’

लौट कर सीतू ने 50 रुपए का नोट थानेदार की मेज पर रख दिया और साथ ही मुनीम का पैगाम भी कह सुनाया.

जब वह जाने लगा तो थानेदार ने 50 रुपए का नोट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसे रख लो, यह तुम्हारा इनाम है.’’

बाद में थाने के सिपाहियों ने सीतू का काफी मजाक उड़ाया और बताया कि मुनीम ने 50 रुपए उसे दिए थे, न कि थानेदार को. थानेदार तो 100 रुपए से कम को हाथ तक नहीं लगाता.

सीतू 50 रुपए ले कर खुश हो गया. यह उस की पहली ऊपर की कमाई थी. थानेदार उस की ईमानदारी का कायल हो गया. इस के बाद से थानेदार को जहां से भी पैसा ऐंठना होता, तो वह सीतू को भेज देता या अपने साथ ले जाता.

सीतू जो भी पैसा ऐंठ कर लाता था, उस में से उसे भी हिस्सा मिलता था. धीरेधीरे उस के पास काफी पैसा जमा हो गया. पर मन के किसी कोने में उसे अपनी इस ऊपर की कमाई से एक तरह के जुर्म का अहसास होता, मगर जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता तो यह अहसास कहीं गायब हो जाता.

सीतू को एक बात अकसर चुभती थी कि कसबे के लोग बाकी सिपाहियों को तो पूरी इज्जत देते और सलाम करते थे, मगर उसे केवल मजबूरी में ही सलाम करते थे. वह चाहता था कि उसे भी दूसरे सिपाहियों के बराबर समझा जाए, मगर वह इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था.

वैसे, अब सीतू काफी सुखी था.

उस के पास सरकारी मकान था. एक साइकिल भी उस ने खरीद ली थी. वह शान से साफसुथरे कपड़ों में रहता था. कम से कम झोंपड़पट्टी के लोग तो उस की कद्र करते ही थे.

सीतू अपने साथी सिपाहियों के मुकाबले खुद को बेहतर समझता था. उस के सभी साथी शादीशुदा थे, मगर वह इस झंझट से अभी तक आजाद था. मांबाप की याद भी उसे ज्यादा नहीं आती थी, क्योंकि उसे उन से ज्यादा लगाव कभी रहा ही नहीं था.

एक दिन सीतू अपनी साइकिल पर सवार हो कर बाजार से गुजर रहा था कि एक जगह भीड़ लगी देख कर वह रुक गया. उस ने देखा कि झोंपड़पट्टी में रहने वाली एक लड़की भीड़ से घिरी खड़ी थी और रोते हुए गालियां बक रही थी. वह कभीकभार भीड़ पर पत्थर भी फेंक रही थी.

भीड़ में शामिल लोग लड़की के पत्थर फेंकने पर इधरउधर भागते हुए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहे थे.

सीतू ने देखा कि कुछ लफंगे से दिखाई देने वाले लड़के उस लड़की को घेरने की कोशिश कर रहे थे. सीतू ने पास खड़े झोंपड़पट्टी में रहने वाले एक बूढ़े आदमी से पूछा, ‘‘बाबा, आखिर माजरा क्या है?’’

बूढ़े ने सीतू को पुलिस की वरदी में देख कर पहले तो मुंह बिचकाया, फिर बोला, ‘‘यह लड़की यहां बैठ कर लकड़ी के खिलौने बेच रही थी. जब सब खिलौने बिक गए, तो उस ने पैसे रख लिए और थैले में से रोटी निकाल कर खाने लगी.

‘‘तभी ये 3 बदमाश लड़के यहां आ धमके. एक ने उसे 50 का नोट दिखा कर पूछा कि ‘चलती है क्या मेरे साथ?’ तो लड़की ने उस के मुंह पर थूक दिया.

‘‘बस फिर क्या था, तीनों लड़के उस पर टूट पड़े. लड़की की चीखपुकार सुन कर भीड़ जमा हो गई तो लड़कों ने शोर मचा दिया कि इस लड़की ने चोरी की है. बस, तभी से यह नाटक चल रहा है.’’

इतना बता कर वह बूढ़ा सीतू को इस तरह घूर कर देखने लगा मानो कह रहा हो, ‘है हिम्मत इस लड़की को इंसाफ दिलाने की?’

इतना सुनते ही सीतू साइकिल की घंटी बजाते हुए भीड़ में जा घुसा. उस ने कड़क लहजे में लड़की से पूछा, ‘‘ऐ लड़की, यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘साहब, ये तीनों मुझ से बदतमीजी कर रहे हैं. मैं ने रोका तो जबरदस्ती करने लगे. मैं ने शोर मचाया तो बोले कि मैं चोर हूं, पर मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘साहब, यह झूठी है. यह तो पक्की चोर है. इस ने पहले भी कई चोरियां की हैं. जो घड़ी इस के हाथ में बंधी है वह मेरी है,’’ एक लड़के ने कहा.

‘‘इस ने मेरा 50 का नोट चुराया है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘ये लड़के झूठ बोलते हैं साहब. मैं ने चोरी नहीं की है,’’ लड़की ने सीतू के आगे हाथ जोड़ कर कहा.

लड़की के मुंह से ‘साहब’ सुन कर सीतू की छाती चौड़ी हो गई. उस ने एक लड़के से पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि यह घड़ी तेरी है?’’

इस से पहले कि वह लड़का कुछ कह पाता, भीड़ में से किसी की आवाज आई, ‘‘इस लड़की के पास क्या सुबूत है कि यह घड़ी इसी की है?’’

यह सुन कर सीतू भड़क उठा. साइकिल स्टैंड पर लगा कर उस ने अपना डंडा निकाल लिया. फिर वह भीड़ की तरफ मुड़ गया और हवा में डंडा लहराते हुए बोला, ‘‘किसे चाहिए सुबूत? इस लड़की के पास यह सुबूत है कि घड़ी इस के कब्जे में है… और किसी को कुछ पूछना है? चलो, भागो यहां से. क्या यहां जादूगर का तमाशा हो रहा है?’’

सीतू की फटकार सुन कर वहां जमा हुए लोग धीरेधीरे खिसकने लगे.

‘‘देखो साहब, वे तीनों भी भाग रहे हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘तुम तीनों यहीं रुको और बाकी सब लोग जाएं,’’ सीतू ने उन लफंगों को रोकते हुए कहा.

जब भीड़ छंट गई, तो सीतू उन लड़कों से बोला, ‘‘चलो, थाने चलो.’’

थाने का नाम सुन कर उन तीनों लड़कों के साथसाथ वह लड़की भी घबरा गई. वह बोली, ‘‘देखो साहब, ये तो बदमाश हैं, मगर मैं थाने नहीं जाना चाहती.’’

‘‘अरी, तुझे कोई खा जाएगा क्या वहां? मैं हूं न तेरे साथ,’’ सीतू उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘साहब, घड़ी इसी के पास रहने दीजिए. कहां थाने के चक्कर में फंसाते हैं,’’ एक लड़का बोला.

‘‘साला… फिर कहता है कि मैं चोर हूं. चलो साहब, थाने ही चलो,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘गाली नहीं देते लड़की,’’ सीतू ने लड़की से कहा और फिर लड़कों से बोला, ‘‘मैं तुम लोगों को तब से देख रहा हूं, जब तुम ने इस लड़की को 50 का नोट दिखाया था.’’

यह सुन कर तीनों लड़कों के चेहरे फीके पड़ गए. सीतू ने लड़की को बूढ़े के पास रुकने को कहा और तीनों लड़कों को ले कर थाने की ओर बढ़ चला. लड़कों ने आपस में कानाफूसी की और एक लड़के ने सौ का नोट सीतू की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अब तो जाने दो साहब. कभीकभी गलती हो जाती है.’’

सीतू ने एक नजर नोट पर डाली और फिर इधरउधर देखा, कुछ लोग उन्हें देख रहे थे.

‘‘रिश्वत देता है. इस जुर्म की दफा और लगेगी,’’ कहते हुए सीतू उन्हें धकेलता हुआ सड़क के मोड़ पर ले गया.

‘‘साहब, इस समय तो हमारे पास इतने ही पैसे हैं,’’ कहते हुए लड़के ने 50 का नोट और बढ़ा दिया.

सीतू ने इधरउधर देखा, वहां उन्हें कोई नहीं देख रहा था. वह बोला, ‘‘ठीक है, अब आगे ऐसी घटिया हरकत मत करना.’’

‘अरे साहब, कसम पैदा करने वाले की, अब ऐसा कभी नहीं करेंगे,’ तीनों ने एकसाथ कहा.

‘‘अच्छा जाओ, मगर दोबारा अगर पकड़ लिया तो सीधा सलाखों के पीछे डाल दूंगा,’’ सीतू ने नोट जेब में रखते हुए कहा.

सीतू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर धीरेधीरे साइकिल धकेलता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां बूढ़े के पास लड़की को छोड़ कर गया था. लड़की तो वहां नहीं थी, पर बूढ़ा वहीं बैठा हुआ था. बूढ़ा सीतू को सिर से पैर तक घूर रहा था.

‘‘ऐ बूढ़े, वह लड़की कहां गई?’’ सीतू ने पूछा.

बूढ़े ने सीतू को घूरते हुए कहा, ‘‘पुलिस में भरती हो गए तो क्या यह तमीज भी भूल गए कि बड़ेबूढ़ों से किस तरह बात करते हैं. वह लड़की चली गई, पर इस से तुम्हें क्या मतलब? तुम्हारी जेब तो गरम हो गई न, जाओ ऐश करो.’’

‘‘क्या बकता है? किस की जेब की बात करता है? तुम ने उस लड़की को क्यों जाने दिया?’’ सीतू भड़क उठा.

‘‘इस इलाके में कोई भी तुम पुलिस वालों पर यकीन नहीं करता. ऐसे में वह लड़की क्या करती? सोचा था कि अपनी बिरादरी का एक आदमी पुलिस में आया है तो वह कुछ ठीक करेगा, मगर वाह री पुलिस की नौकरी, बेच दी अपनी ईमानदारी शैतान के हाथों और बन गया खाउड्या… जा खाउड्या अपना काम कर.’’

‘‘क्या बकता है? थाने में बंद कर दूंगा,’’ कहने को तो सीतू कह गया, मगर न जाने क्यों वह बूढ़े से नजरें नहीं मिला पाया.

सीतू इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि रिश्वत लेना जुर्म है, मगर आज तक किसी पुलिस वाले ने उसे यह बात नहीं बताई थी. हां, साथियों ने यह जरूर समझाया था कि रिश्वत लेते समय पूरी तरह से चौकस रहना बहुत ही जरूरी होता है.

दिल का राज: क्या सरना ने पूरी की चौधराइन की इच्छा

जानवरों का चारादाना निबटाते हुए सरना को काफी देर हो गई थी. उस ने भल्लू चौधरी की गौशाला में ताला ठोंक कर झटका दिया और मुट्ठियां बगलों में दबा लीं. एक पल को उसे बड़ा अच्छा लगा. सोचने लगा कि अब रात अपनी है. पुआल के बिछावन में पुरानी रजाई ओढ़ कर लेटेगा, तो छमिया की याद थोड़ी गरमी दे जाएगी और वह मीठी नींद सो जाएगा.सरना को छमिया के गदराए बदन की याद आती थी, पर हर समय तो छमिया उस की बांहों में हो नहीं सकती. चौधराइन ने सरना को बाहर की कोठरी की चाबी देते वक्त लकड़ी निकालने को कहा था और कहा था कि अगले दिन बेचेंगे. अच्छा यह रहा कि घर पर चौधरी नहीं थे.

चौधराइन ने दोपहर को पेट भर बढि़या खाना करा दिया था. वह भी दोनों वक्त का एक ही बार में खा गया था. खाता न तो करता भी क्या? छमिया खाना तो ठीक बनाती थी, पर बढि़या कचौड़ी, रायता, 2-2 सब्जियां और खीर उसे कहां बनानी आती थी? चौधरी ने 2 दिन पहले रतजगा किया था. उस के लिए कई दिन खाने लायक खाना बचा था. चौधरी किसी स्वामी को छोड़ने उन के आश्रम 250 किलोमीटर दूर अपनी गाड़ी में गए हुए थे. चौधरी घर में होते तो चाहे कुछ भी बनता, सरना को सूखी रोटियां और बासी साग ही मिलता. वह मन ही मन सोच रहा था कि अच्छा होता, अगर चौधरी 5-7 दिन बाहर ही रहते. सरना ने दरवाजे की कुंडी खटकाई. चौधराइन ने दरवाजा खोला. सरना को लग रहा था कि चौधराइन कुंडी खोलते वक्त गुनगुना रही थीं. चौधराइन ने उस समय टाइट ब्लाउज पहन रखा था.

सरना कुछ सोचता सा खड़ा था कि सामने खड़ी चौधराइन ने कहा, ‘‘लाओ चाबी. और हां, कुछ लकडि़यां यहां भी डाल दो. बड़ी ठंड है. मैं भी जला लूंगी. हीटर से कहां काम चलता है.’’ हमेशा स्वैटर, शौल वगैरह से लदीफदी गुडि़या को उस समय इतने कम कपड़ों में देखने की बात सरना सपने में भी नहीं सोच सकता था.

‘इन्हें इतने कपड़े पहनने के बाद भी ठंड क्यों नहीं लग रही है?’ वह सोचने लगा, ‘पर बेचारी बूढ़े साहूकार के फंदे में फंस गई. यह किसी और गरमी की तलाश में है.’

जब तक सरना लकड़ी लाया, तो पानी की बूंदाबांदी बौछार में बदल गई थी. भीगने से बचने के लिए उसे तकरीबन दौड़ना पड़ा. शुक्र था कि चौधराइन किवाड़ खोले ही खड़ी थीं.

बरामदे में लकडि़यां रख कर उस ने चेहरे और नाक का पानी पोंछते हुए हाथ एक ओर झटका. चौधराइन ने उस की ओर देखा तो हंस पड़ीं, ‘‘अरे, तुम तो अच्छेखासे भीग गए.’’‘‘पानी में जो जाएगा, वह भीगेगा ही,’’ कहते हुए सरना कुढ़ सा गया. वह सोचने लगा, ‘पैसे वालों को गरीबी का मजाक उड़ाने में शायद कुछ खास मजा आता है.’ ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन अब तुम रात कैसे काटोगे?’’ चौधराइन ने खूंटी पर टंगे पति के एक पुराने कुरते की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो तुम्हारे बहुत ढीला होगा पर पहन लो. और वह रही लुंगी.’’ सरना को यह बात कुछ जंची नहीं. पर ठिठुरने के बजाय यही ठीक रहेगा, यही सोच कर उस ने कुरता उतार लिया. अब चौधराइन अंदर की ओर चली गई थीं.

लुंगी और ढीलाढाला कुरता पहनते हुए सरना को लगा कि चौधराइन उसे देख रही हैं. सरना को अजीब लग रहा था. वह सोचने लगा कि इन कपड़ों में तो वह जोकर लग रहा होगा. खैर, कौन इतनी रात में देखेगा. सरना ने आवाज दी, ‘‘किवाड़ बंद कर लीजिए, मैं जा रहा हूं. मैं ने बरामदे में लकडि़यां जला दी हैं. आप यहां बैठ कर आग सेंक सकती हैं.’’

तभी खाने की थाली लिए आती चौधराइन ने कहा, ‘‘अजीब बात है. पानी बरस रहा है, फिर भीगना है क्या? खाना खा लो, शायद तब तक पानी रुक जाए. घर में छाता भी नहीं है. चौधरी साहब छाते को अपने साथ ले गए हैं.’’ यह तो मुंहमांगी मुराद थी सरना के लिए. वह खाता जाता था और चौधराइन की खूबसूरती की दिल ही दिल में तारीफ भी करता जा रहा था. तब तक बरामदे की लकडि़यां जलने लगी थीं. उसे भी गरमी महसूस हो रही थी.

सरना को लग रहा था कि यह वाकई बड़ी नेक औरत है. इसे बूढ़े चौधरी के पल्ले बांध कर कुदरत ने इस के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है. अब तक औलाद का मुंह तक नहीं देखा बेचारी ने… जबकि ब्याह हुए 7-8 बरस गुजर गए हैं. चौधरी ने इसीलिए किसी पोंगापंथी स्वामी को बुला कर बच्चे देने की मन्नत मांगी थी और भंडारा किया था. सरना खाना खा कर हाथमुंह धो चुका था. पर पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था. उलटे बारिश तेज होती जा रही थी. आग के पास हाथपैर सेंक कर सरना ने कहा, ‘‘अब मैं चलूंगा मालकिन.?’’

इतनी रात को अकेली चौधराइन के पास सूने घर में रुकने का सरना का मन था, पर जानता था कि पकड़ा गया तो उस का घरबार सब जला दिया जाएगा, इसीलिए उसे वहां से जाने की उतावली हो रही थी. चौधराइन ने नीचे से ऊपर तक उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘बहुत अच्छे… पानी में भीग कर बीमार पड़ने का इरादा है क्या? ठीक है, जाओ, जरूर जाओ, तुम्हारे घर में दवादारू के लिए भी बहुतेरे लोग बैठे हैं…’’ ‘‘न जाऊं तो करूं भी क्या? यहां बैठने से तो रात कटनी नहीं. कोई देखेगा तो क्या कहेगा,’’ अपने दिल की बात झिझक के साथ सरना ने कह दी.

‘‘यह घर छोटा है न… यहां ओढ़नेबिछाने को कुछ नहीं है न? अरे सरना, यह घर तो रहने वालों के लिए तरसता है. यहां कमी भी किस बात की है. दुनिया के कहनेसुनने की चिंता है? क्या मैं तुझे वैसी लगती हूं, सच कहना?’’

‘‘नहीं, आप तो बड़ी नेक और रहमदिल हैं. मैं औरतों के मामले में आप की मिसाल देता हूं. आप का अंगअंग संगमरमर का सा सफेद है, छूने पर मखमली होगा. सुंदरता की खान.

‘‘चौधरी के बुढ़ापे का जब आप से मेल करता हूं तो मन करता है कि आप के कदमों पर माथा झुका दूं. ‘‘मालकिन, छोटी सी उम्र में मैं ने भी काफी दुनिया देखी है. पहले मैं लुधियाना गया था. वहां मेरे बूढ़े लालाजी की जवान बीवी मेरे देखतेदेखते ही अपने यार के साथ चंपत हो गई थी…’’ लगता था जैसे सरना की बात बांध तोड़ कर नदी की तरह बह निकली थी. चौधराइन ने आग और तेज करते हुए सिसक कर सरना की ओर आते हुए कहा, ‘‘और क्या देखा?’’

सरना को लगा, जैसे उन के चेहरे पर कुछ और लाली आ गई है और आंखों में नशा सा छा गया है. वे बात करने में कुछकुछ अटकने सी लगी हैं. उस ने लाला और यार की कहानी 2-4 बातों में बता दी कि कैसे उस ने ही उन्हें कमरे में साथ सोते देखा था. बात करतेकरते चौधराइन इधरउधर चौकन्नी निगाहों से देखती भी जा रही थीं, मानो दीवारों के कान होने पर उन्हें यकीन होता जा रहा हो.

सरना को ऐसा लगा, जैसे उस के शरीर की उठी मछलियों पर चौधराइन की नजरें गड़ी हैं. वे बोलीं, ‘‘सरना, यही तो वहम है… दुनिया भी यही जानती है. पर, तुम सब अपने को मेरी जगह रख कर सोचो. क्या धनदौलत से जवानी के जोश को दबाया जा सकता है? सच तो यह है कि ये सब देह की भूख को और बढ़ाने वाले हैं.

‘‘कई बार सोचती हूं कि मैं एक गरीब घर में होती. शाम को मेरा आदमी काम कर के पसीने से लथपथ आता. मैं पंखे से उस को हवा करती और वह सिर्फ मेरा होता, इन बहीखातों का नहीं. घर में नन्हेमुन्ने किलकते, मैं निहाल हो जाती. ये सोनेचांदी के गहने मेरे पैरोें में बड़ी माया की जंजीरें हैं. इन से मेरा दुख बढ़ता है,’’ कह कर उन्होंने सरना पर एक निगाह डाली.

सरना चौधराइन की तेज निगाहों से सिटपिटा गया. उस ने कहा, ‘‘मालकिन, कुदरत ने ही आप को इतना दयावान बनाया है. सुख दिया है और सब से ऊपर ‘सत’ दिया है. आज के जमाने में ऐसे लोग मिलते कहां हैं?’’ ‘‘सरना, तू क्या कभी जान सकेगा मेरे मन की पीर? बचपन गरीबी में बीता. तब मैं पैसे को दुनिया का सब से बड़ा सुख समझती थी, लेकिन फिर भी उस गरीबी में कहीं न कहीं कोई मजा भी था. जो जीने की तमन्ना पैदा करता था, जिस की बदौलत होंठों पर मुसकान रहती थी. मेरी समझ में अब बीता समय ही अच्छा जान पड़ता है. ‘‘लेकिन तब तो मुझे क्या, मेरे मांबाप को भी यही वहम था कि दुनिया का सारा सुख पैसे से खरीदा जा सकता है. तभी तो मुझे चौधरी के पल्ले बांध दिया गया.

‘‘अब मैं सोचती हूं कि चौधरी ने तो पैसे से सुख जरूर खरीदा, पर मेरी खुशियां पैसे के बदले बिक गईं. क्या यह सारा पैसा गरीब से गरीब औरत को वह सुख मुझे दे सकता है, जो पति की बांह का सिरहाना लगा कर सोई जवान औरत को मिलता है? ‘‘प्यारमुहब्बत का झरना बराबर उम्र वालों में भी फूट सकता है. चौधरी तो बिस्तर पर आने से पहले ही निढाल हो जाते हैं.’’ फिर चौधराइन खुल कर बोलीं, ‘‘सरना, सच मान मेरा रोमरोम उस सुख के लिए जब पागल होता है, तो चौधरी के पैसे के हिसाब में डूब कर पता नहीं किस दुनिया में चले जाते हैं. क्या पैसे की इस प्यास का कहीं अंत भी है?

‘‘तू जो समझता है, मैं अपने ‘सत’ पर मजबूत हूं, यह तेरा भोलापन है. दरअसल, मैं अंदर से इतनी नंगी हूं कि तुझे क्या बताऊं.’’ सरना को चौधराइन की बात का कोई जवाब नहीं सूझ रहा था, तभी उसे खांसी आ गई, जिस से वह जवाबदेही से बच गया. चौधराइन इस समय उसे पैसे के जोर से खरीदी गई एक कमजोर औरत लगी, जिस के जिस्म में एक नाजुक दिल धड़क रहा है और वे पैसे के सुख के बदले अनजाने ही जिंदगी की खुशियां हार चुकी हैं. सरना को लगा कि उसे जरूर चौधराइन के काम आना चाहिए.

सरना को चुप देख कर चौधराइन बोलीं, ‘‘तुझे मैं दूध धोई लगती हूं. मेरे तन पर कोई शक नहीं कर सकता, पर दिल को तो मैं ही जानती हूं. कभीकभी दिल की प्यास आंखों में भर आती है. लेकिन इसे पढ़ने वाला कम से कम वहां तो कोई नहीं मिला.’’

सरना सन्न रह गया. जिसे वह इतना ‘साफ’ समझे बैठा है, उस के दिल में ऐसी बात होगी, उस ने ऐसा कब सोचा था? उसे बड़ा दुख हुआ. उसे लगा जैसे चौधराइन की आवाज का काम उन की आंखों ने अपने जिम्मे ले लिया है. वे आंखें एक भूचाल के आने की खबर दे रही थीं.

सरना चौधराइन के सुंदर मुखड़े को देखता रह गया, तभी बिजली जोर से चमकी और चौधराइन डर के मारे उस के बदन से चिपक गईं. सरना की आंखों में भी अनजाने ही एक चमक सी आ गई. उस ने महसूस किया, जैसे चौधराइन के जिस्म के जरीए एक आग उस के तनमन में समाती चली जा रही हो. वे दोनों घंटाभर एकदूसरे की बांहों में बरामदे में ही खोए रहे.

दरवाजे पर खटका सा हुआ. चौधराइन ने कपड़े पहन कर किवाड़ खोल दिए. चौधरी सामने खड़े थे. बदन का पानी पोंछते हुए वे बोले, ‘‘रास्ता बारिश की वजह से खराब हो गया था, इसलिए एक गाड़ी को स्वामीजी के साथ छोड़ कर आ गया हूं…

‘‘यहां तुम अकेली जो थी. मन ने कहा कि लौट चलो, सो लौट आया. तुम्हें हैरानी तो नहीं हुई इस तरह मेरे लौटने पर? यह अच्छा किया कि सरना को रोक लिया था. यह बड़ा अच्छा लड़का है. ऐसी सुनसान रात में अकेले रहना भी तो ठीक नहीं था…’’

चौधराइन अपने आदमी के इस यकीन पर हैरान रह गईं. अगर वह थोड़ी देर और कर देते तो जवानी का तूफान दोनों को पता नहीं कहां ले जाता. चौधराइन मुसकरा कर बोली, ‘‘हैरानी, वह भी आप के आने की? हैरानी तो तब होती, जब आप न आते. सरना भी रुक नहीं रहा था. कह रहा था कि चौधरी आते ही होंगे… थोड़ी देर की तो बात है. आप अकेले ही वक्त काट लीजिए. पर सच मानिए, आप के बिना सब सूनासूना लगता है.’’

घर जाते समय सरना सोच रहा था, चौधराइन के दिल का सारा बोझ जैसे उस के दिल पर आ गया है. अब उसे इस बात की चिंता थी कि अगर फिर किसी दिन चौधरी रात को घर नहीं लौटे, तो उस वक्त क्या होगा?उधर चौधराइन खुश थीं कि दिल के अंदर उठता जोशीला तूफान कम गया था. चौधरी भी खुश हुआ, जब 2 महीने बाद पता चला कि चौधराइन पेट से है. उस ने स्वामीजी को पूरे 2 लाख रुपए का चढ़ावा दिया.सरना को भी चौधराइन ने बहुतकुछ दिया, पर वह बताने की बात नहीं है. राज को राज ही रहने दें.

फर्क: रवीना की एक गलती ने तबाह कर दी उसकी जिंदगी

18 साल की रवीना के हाथों में जैसे ही वोटर आईडी कार्ड आया, उसे लगा जैसे सारी दुनिया उस की मुट्ठी में समा गई हो. यह सिर्फ एक दस्तावेज मात्र नहीं था बल्कि उस की आजादी का सर्टिफिकेट था।

‘अब मैं कानूनी रूप से बालिग हूं और अपनी मरजी की मालिक, अपनी जिंदगी की सर्वेसर्वा. निर्णय लेने को स्वतंत्र. जो चाहे करूं, जहां चाहे जाऊं. जिस के साथ मरजी रहूं. कोई बंधन, कोई रोकटोक नहीं. बस, खुला आसमान और ऊंची उड़ान…’ मन ही मन खुश होती हुई रवीना पल्लव के साथ अपनी आजादी का जश्न मनाने का नायाब तरीका सोचने लगी.

ग्रैजुऐशन के आखिरी साल की स्टूडैंट रवीना मातापिता की इकलौती बेटी थी. फैशन और हाई प्रोफाइल लाइफ की दीवानी रवीना नाजों पली होने के कारण जिद्दी और मनमौजी थी. पढ़ाईलिखाई में तो वह एक औसत छात्रा ही थी इसलिए पास होने के लिए हर साल उसे ट्यूशन और कोचिंग का सहारा लेना पड़ता था.

पल्लव भी पिछले दिनों ही इस कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाने लगा है. पहली नजर में ही रवीना उस की तरफ झुकने लगी थी. लंबा और ऊंचा कद, गहरीगंभीर आंखें और लापरवाही से पहने कस्बाई फैशन के हिसाब से आधुनिक लिबास. बाकी लड़कियों की निगाहों में पल्लव कुछ भी खास नहीं था मगर उस का बेपरवाह अंदाज अतिआधुनिक शहरी रवीना के दिलोदिमाग में खलबली मचाए हुए था.

पल्लव कहने को तो कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाता था लेकिन असल में तो वह खुद भी एक स्टूडैंट ही था. उस ने इसी साल अपना ग्रैजुऐशन पूरा किया था और अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए शहर में रुका था. कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाने के पीछे उस का यह मकसद भी था कि इस तरीके से वह किताबों के संपर्क में रहेगा, साथ ही जेबखर्च के लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हो जाएगी.

पल्लव के पिता उस के इस फैसले से सहमत नहीं थे. वे चाहते थे कि पल्लव पूरी तरह से समर्पित हो कर अपना ध्यान केवल अपने भविष्य की तैयारी पर लगाए लेकिन पल्लव से पूरा दिन एक ही जगह बंद कमरे में बैठ कर पढ़ाई नहीं होती थी, इसलिए उस ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ पढ़ने के साथसाथ पढ़ाने का विकल्प चुना और इस तरह से रवीना के संपर्क में आया.

‘2 विपरीत ध्रुव एकदूसरे को आकर्षित करते हैं’, इस सर्वमान्य नियम से भला पल्लव कैसे अछूता रह सकता था. धीरेधीरे वह भी खुद के प्रति रवीना के आकर्षण को महसूस करने लगा था। मगर एक तो उस का संकोची स्वभाव, दूसरे सामाजिक स्तर पर कमतरी का एहसास उसे दोस्ती के लिए आमंत्रित करती रवीना की मुसकान के निमंत्रण को स्वीकार नहीं करने दे रहा था.

आखिर विज्ञान की जीत हुई और शुरुआती औपचारिकता के बाद अब दोनों के बीच अच्छीखासी ट्यूनिंग बनने लगी थी. फोन पर बातों का सिलसिला भी शुरू हो चुका था.

“लीजिए जनाब, सरकार ने हमें कानूनन बालिग घोषित कर दिया है,” पल्लव के चेहरे के सामने अपना वोटर कार्ड हवा में लहराते हुए रवीना खिलखिलाई.

“तो जश्न मनाएं…” पल्लव ने भी उसी गरमजोशी से जवाब दिया.

“चलो, आज तुम्हें पिज्जा खिलाने ले चलती हूं.”

“न… न… तुम अपने खुबसूरत हाथों से 1 कप चाय बना कर पिला दो. मैं तो इसी में खुश हो जाउंगा,” पल्लव ने रवीना के चेहरे पर शरारत करते बालों की लट को उस के कानों के पीछे ले जाते हुए कहा. रवीना उस का प्रस्ताव सुन कर हैरान थी.

“चाय? मगर कैसे? कहां?” रवीना ने पूछा.

“मेरे रूम पर और कहां?” पल्लव ने उसे आश्चर्य से बाहर निकाला. रवीना राजी हो गई.

रवीना ने मुसकरा कर स्कूटर स्टार्ट करते हुए पल्लव को पीछे बैठने के लिए आमंत्रित किया. यह पहला मौका था जब पल्लव उस से इतना सट कर बैठा था. कुछ ही मिनटों के बाद दोनों पल्लव के कमरे पर थे. जैसाकि आम पढ़ने वाले युवाओं का होता है, पल्लव के कमरे में भी सामान के नाम पर एक पलंग, टेबलकुरसी और रसोई का सामान था. रवीना अपने बैठने के लिए जगह तलाश कर ही रही थी कि पल्लव ने उसे पलंग पर बैठने का इशारा किया. रवीना सकुचाते हुए बैठ गई. पल्लव भी वहीं उस के पास आ बैठा.

एकांत में 2 युवा दिल एकदूसरे की धड़कनें महसूस करने लगे और कुछ ही पलों में दोनों के रिश्ते ने एक लंबा फासला तय कर लिया. दोनों के बीच बहुत सी औपचारिकताओं के किले ढह गए. एक बार ढहे तो फिर बारबार ये वर्जनाएं टूटने लगीं.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. दोनों की नजदीकियों की भनक जब रवीना के घर वालों को लगी तो उसे लाइन हाजिर किया गया.

“मैं पल्लव से प्यार करती हूं,” रवीना ने बेझिझक स्वीकार किया. बेटी की मुंहजोरी पर पिता आगबबूला हो गए.
यह उम्र कैरियर बनाने की है, रिश्ते नहीं. समझीं तुम…” पापा ने उसे लताड़ दिया.

“मैं बालिग हूं. अपने फैसले खुद लेने का अधिकार है मुझे,” रवीना बगावत पर उतर आई थी. इसी दौरान बीचबचाव करने के लिए मां उन के बीच आ खड़ी हुईं.

“कल से इस का कालेज और इंस्टिट्यूट दोनों जगह जाना बंद,” पिता ने उस की मां की तरफ मुखातिब होते हुए कहा तो रवीना पांव पटकते हुए अपने कमरे की तरफ चल दी. थोड़ी ही देर में कपड़ों से भरा सूटकेस हाथ में लिए वह खड़ी थी.

“मैं पल्लव के साथ रहने जा रही हूं,” रवीना के इस ऐलान ने घर में सब के होश उड़ा दिए.

“तुम बिना शादी किए एक पराए मर्द के साथ रहोगी? क्यों समाज में हमारी नाक कटवाने पर तुली हो?” इस बार मां उस के खिलाफ हो गई.

“हम दोनों बालिग हैं. अब तो कोर्ट ने भी इस बात की इजाजत दे दी है कि 2 बालिग लिव इन में रह सकते हैं, उम्र चाहे जो भी हो,” रवीना ने मां के विरोध को चुनौती दी.

“कोर्ट अपने फैसले नियमकानून और सुबूतों के आधार पर देता है. सामाजिक व्यवस्थाएं इन सब से बिलकुल अलग होती हैं. कानून और समाज के नियम सर्वथा भिन्न होते हैं,” पापा ने उसे समझाने की कोशिश की मगर रवीना के कान तो पल्लव के नाम के अलावा कुछ और सुनने को तैयार ही नहीं थे.

उसे अब अपने और पल्लव के बीच कोई बाधा स्वीकार नहीं थी. वह बिना पीछे मुड़ कर देखे अपने घर की दहलीज लांघ गई. यों अचानक रवीना को सामान सहित अपने सामने देख कर पल्लव अचकचा गया. रवीना ने एक ही सांस में उसे पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा दे दिया.

“कोई बात नहीं, अब तुम मेरे पास आ गई हो न. पुराना सब बातें भूल जाओ और मिलन का जश्न मनाओ,” कमरा बंद कर के पल्लव ने उसे अपने पास खींच लिया और कुछ ही देर में हमेशा की तरह उन के बीच रहीसही सारी दूरियां भी मिट गईं. रवीना ने एक बार फिर अपना सबकुछ पल्लव को समर्पित कर दिया.

2-4 दिन में ही पल्लव के मकानमालिक को भी सारी हकीकत पता चल गई कि पल्लव अपने साथ किसी लड़की को रखे हुए है. उस ने पल्लव को धमकाते हुए कमरा खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया. समाज की तरफ से उन पर यह पहला प्रहार था मगर उन्होंने हार नहीं मानी. कमरा खाली कर के दोनों एक सस्ते होटल में आ गए.

कुछ दिन तो सोने से दिन और चांदी सी रातें गुजरीं मगर साल बीततेबीतते ही उन के इश्क का इंद्रधनुष फीका पड़ने लगा. ‘प्यार से पेट नहीं भरता’ इस कहावत का मतलब पल्लव अच्छी तरह समझने लगा था.
समाज में बदनामी होने के कारण पल्लव की कोचिंग छूट गई और अब आमदनी का कोई दूसरा जरीया भी उन के पास नहीं था. पल्लव के पास प्रतियोगी परीक्षाओं का शुल्क भरने तक के पैसे नहीं बच पा रहे थे. उस ने वह होटल भी छोड़ दिया और अब रवीना को ले कर बहुत ही निम्न स्तर के मोहल्ले में रहने आ गया.

एक तरफ जहां पल्लव को रवीना के साथ अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था, तो वहीं दूसरी तरफ रवीना तो अब पल्लव में ही अपना भविष्य तलाशने लगी थी. वह इस लिव इन को स्थाई संबंध में परिवर्तित करना चाहती थी और पल्लव से शादी करना चाहती थी. रवीना को भरोसा था कि जल्दी ही अंधेरी गलियां खत्म हो जाएंगी और उन्हें अपनी मंजिल के रास्ते मिल जाएंगे. बस, किसी तरह पल्लव कहीं सैट हो जाए.

एक बार फिर विज्ञान का यह आकर्षण का नियम पल्लव पर लागू हो रहा था,’2 विपरीत ध्रुव जब एक निश्चित सीमा तक नजदीक आ जाते हैं तो उन में विकर्षण पैदा होने लगता है।’ पल्लव भी इसी विकर्षण का शिकार होने लगा था. हालातों के सामने घुटने टेकता वह अपने पिता के सामने रो पड़ा तो उन्होंने रवीना से अलग होने की शर्त पर उस की मदद करना स्वीकार कर लिया. मरता क्या नहीं करता, पिता की शर्त के अनुसार उस ने फिर से कोचिंग जाना शुरू कर दिया और वहीं होस्टल में रहने लगा, मगर इस बार कोचिंग में पढ़ाने नहीं बल्कि स्वयं पढ़ने के लिए. रवीना के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं था. वह अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगी. मगर दोष दे भी तो किसे? यह तो उस का अपना फैसला था.

पल्लव के जाने के बाद वह अकेली ही उस मोहल्ले में रहने लगी. इतना सब होने के बाद भी उसे पल्लव का इंतजार था. वह भी उस के बैंक परीक्षा के रिजल्ट का इंतजार कर रही थी,’एक बार पल्लव का सिलैक्शन हो जाए तो फिर सब ठीक हो जाएगा. हमारा दम तोड़ता रिश्ता फिर से जी उठेगा,’ इसी उम्मीद पर वह हर चोट सहती जा रही थी.

आखिर रिजल्ट भी आ गया. पल्लव की मेहनत रंग लाई और उस का बैंक परीक्षा में में चयन हो गया. रवीना यह खुशी उत्सव की तरह मनाना चाहती थी. वह दिनभर तैयार हो कर उस का इंतजार करती रही मगर वह नहीं आया. रवीना पल्लव को फोन पर फोन लगाती रही मगर उस ने फोन भी नहीं उठाया.

आखिर रवीना उस के होस्टल जा पहुंची. वहां जा कर पता चला कि पल्लव तो सुबह रिजल्ट आते ही अपने घर चला गया. रवीना बिलकुल निराश हो गई. क्या करे? कहां जाए? वर्तमान तो खराब हुआ ही, भविष्य भी अंधकारमय हो गया. आसमान तो हासिल नहीं हुआ, पांवों के नीचे की जमीन भी अपनी नहीं रही. पल्लव का प्रेम तो मिला नहीं, मातापिता का स्नेह भी वह छोड़ आई. काश, उस ने अपनेआप को कुछ समय सोचने के लिए दिया होता. मगर अब क्या हो सकता है? पीछे लौटने के सारे रास्ते तो वह खुद ही बंद कर आई थी. रवीना बुरी तरह से हताश हो गई. वह कुछ भी सोच नहीं पा रही थी. कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी.

आखिर उस ने एक खतरनाक निर्णय ले ही लिया,”तुम्हें तुम्हारा रास्ता मुबारक हो. मैं अपने रास्ते जा रही हूं. खुश रहो,” रवीना ने एक मैसेज पल्लव को भेजा और अपना मोबाइल स्विच औफ कर लिया. संदेश पढ़ते ही पल्लव के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई.

‘अगर इस लड़की ने कुछ उलटासीधा कर लिया तो मेरा कैरियर चौपट हो जाएगा,’ यह सोचते हुए उस ने 1-2 बार रवीना को फोन लगाने की कोशिश की मगर नाकाम होने पर तुरंत दोस्त के साथ बाइक ले कर उस के पास पहुंच गया. जैसाकि उसे अंदेशा था, रवीना नींद की गोलियां खा कर बेसुध पड़ी थी. पल्लव दोस्त की मदद से उसे हौस्पिटल ले कर आया और उस के घर पर भी खबर कर दी. डाक्टरों के इलाज शुरू करते ही दवा लेने के बहाने पल्लव वहां से खिसक गया.

बेशक रवीना अपने घर वालों से सारे रिश्ते खत्म कर आई थी मगर खून के रिश्ते भी कहीं टूटे हैं भला? खबर पाते ही मातापिता बदहवास से बेटी के पास पहुंच गए. समय पर चिकित्सा सहायता मिलने से रवीना अब खतरे से बाहर थी. मांपापा को सामने देख वह फफक पड़ी,”मां, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. सिर्फ आज के लिए ही नहीं बल्कि उस दिन के अपने फैसले के लिए भी, जब मैं आप सब को छोड़ आई थी,” रवीना ने कहा तो मां ने कस कर उस का हाथ थाम लिया.

“यदि मैं ने उस दिन घर न छोड़ा होता तो आज कहीं बेहतर जिंदगी जी रही होती. मेरा वर्तमान और भविष्य, दोनों ही सुनहरे होते. मैं ने स्वतंत्र होने में बहुत जल्दबाजी की. मैं तो आप लोगों से माफी मांगने के लायक भी नहीं हूं…” रवीना फफक पङी.

“तुम घर लौट चलो. अपनेआप को वक्त दो और फिर से अपने फैसले का मूल्यांकन करो. जिंदगी किसी एक मोड़ पर रुकने का नाम नहीं बल्कि यह तो एक सतत प्रवाह है. इस के साथ बहने वाले ही अपनी मंजिल को पाते हैं,” पापा ने उसे समझाया.

“हां, किसी एक जगह अटके रहने का नाम जिंदगी नहीं है. यह तो अनवरत बहती रहने वाली नदी है. तुम भी इस के बाहव में खुद को छोड़ दो और एक बार फिर से मुकाम बनाने की कोशिश करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं,” मां ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

मन ही मन अपने फैसले से सबक लेने का दृढ संकल्प करते हुए रवीना मुसकरा दी. अब उसे स्वतंत्रता और स्वछंदता में फर्क साफसाफ नजर आ रहा था.

चोट: कैसे पूरी की उसने पत्नी की जिस्मानी जरूरत

आखिर कब तक सहन करती? कब तक बेइज्जती, जोरजुल्म सहती? इस आदमी ने, जब से मैं इस घर में शादी कर के आई हूं, डांटफटकार, उलाहनोंतानों के अलावा कुछ नहीं दिया.

शादी के शुरुआती कुछ दिन… कुछ महीने… ज्यादा हुआ, तो एक साल तक प्यार से बात की. घुमानेफिराने ले जाते. सिनेमा दिखाते, मेला, प्रदर्शनी ले जाते. मीठीमीठी प्यारभरी बातें करते. यहां तक कि अपनी मां से भी बहस कर लेते.

अगर मेरी सास मुझे छोटीछोटी बातों पर टोकतीं, तो पतिदेव अपनी मां से कह देते, ‘‘क्यों छोटीछोटी बातों पर घर की शांति भंग कर रही हो? आप की लड़की के साथ ससुराल में यही सब हो तो क्या बीतेगी आप पर? यह इस घर की बहू है, नौकरानी नहीं.

‘‘यह तो कुछ नहीं कहती, लेकिन मैं ही इसे घुमाने ले जाता हूं. पढ़ीलिखी औरत है. बदलते समय के साथ आप नहीं बदल सकतीं, तो छोटीछोटी बातों पर टोकाटाकी कर के घर में अशांति तो न फैलाएं.’’

सास को लगता होगा कि जोरू का गुलाम है बेटा. वे गुस्से में कुछ दिन तक बात न करतीं. बात करतीं तो भी इस तरह, जैसे धीरेधीरे बातों से अपना गुस्सा निकाल रही हों.

‘‘मुझे क्या करना है? तुम खूब घूमोफिरो, लेकिन हद में. आसपड़ोस के घर में भी बहुएं हैं. यह क्या बात हुई कि जब जी आया मुंह उठा कर चल दिए.

न किसी से कुछ पूछना, न बता कर जाना. आखिर घर में बड़ेबुजुर्ग भी हैं. उन के मानसम्मान का भी ध्यान रखो.’’

एक साल बाद ही पति के बरताव में बदलाव आने लगा. शायद शादी की  खुमारी अब तक उतर चुकी थी. पहले ये बहुत ही कम टोकाटाकी करते, बाद में बातबात पर टोकने लगे. मेरी कोई बात इन्हें अच्छी ही नहीं लगती. हर बात में अपनी मां की तरफदारी करते. चाहे वह बात गलत हो या सही, मैं सुनती रही.

इस बीच 2 बच्चे भी हो गए. कहने को घरगृहस्थी तो ठीकठाक चल रही थी, लेकिन जिन पति से मैं प्यार करती थी, उन के बातबात पर डांटनेटोकने से मन उदास रहने लगा.

मैं अपनी तरफ से पति का, सास का, बच्चों का, घर का पूरा खयाल रखती, फिर भी इन की बातबात पर टोकने, डांटने की आदत नहीं जाती.

एक बार मैं ने गुस्से में जरा जोर से कहा भी था, ‘‘आखिर बात क्या है? आप मुझे इस तरह से बेइज्जत क्यों करते रहते हैं?’’

इन्होंने भी झुंझला कर जवाब दिया, ‘‘मैं मर्द हूं. घर का मुखिया हूं. गलत बात पर टोकूंगा नहीं, तो क्या लाड़ करूंगा? तुम 2 बच्चों की मां बन गई हो. तुम्हें घर की जिम्मेदारी समझनी चाहिए. गलती पर डांटता हूं, तो गलती को सुधारना चाहिए. इस में बुरा मानने वाली क्या बात है?’’

‘‘मैं ऐसी कौन सी गलती करती हूं? क्या मन भर गया है मुझ से?’’

‘‘मुझे तो सब को साथ ले कर चलना है. तुम्हारा भी अब तक मन भर जाना चाहिए. प्यारमुहब्बत की उम्र बीत चुकी. अब अपने फर्ज पर ध्यान दो.’’

‘‘आखिर मैं ने फर्ज निभाने में कौन सी कमी रखी है?’’

‘‘तुम फिर बहस करने लगीं. मुझे तुम्हारी यही बात अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘आप को मेरी कौन सी बात अच्छी लगती है आजकल?’’

‘‘औरत हो, औरत की तरह रहना सीखो. घर के कामकाज देखो. अम्मां की तबीयत ठीक नहीं रहती आजकल. उन की देखभाल करो.’’

‘‘करती तो हूं.’’

‘‘करती, तो अम्मां शिकायत नहीं करतीं.’’

‘‘अम्मां की तो आदत है मेरी शिकायत करने की. एक की चार लगा कर भड़काती हैं.’’

‘‘खबरदार, जो मेरी अम्मां के बारे में कुछ कहा,’’ इन्होंने इतनी जोर से डांटा कि मैं गुस्से में अपने कमरे में आ कर रोने लगी.

बैडरूम में तो ये बड़े प्यार से बात करते हैं. हालांकि अब यह होता है कि बैडरूम में मेरे आने तक ये सो जाते हैं. मुझे घर के काम निबटातेनिबटाते ही रात के 11-12 बज जाते हैं.

अब हमारे बीच संबंध बनने में भी काफी समय होने लगा था. मसरूफियत, जिम्मेदारी, बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता है. इस की कोई शिकायत नहीं. लेकिन आदमी दो बातें प्यार से कर ले, तो क्या बिगड़ जाएगा? लेकिन पता नहीं क्यों आजकल मुझे देख कर इन का पारा चढ़ जाता है, खासकर दूसरों के सामने.

ये दूसरों से तो अच्छी तरह बात करेंगे. अपनी अम्मां से, बच्चों से, पासपड़ोस के लोगों से, घर आए रिश्तेदारों से. दोस्तों से तो इस कदर प्यार से बातें करेंगे कि जैसे इन्हें गुस्सा आता ही न हो, मानो जबान पर चाशनी चिपक जाती हो.

लेकिन सुबह मैं थोड़ी देर से उठूं, तो चिल्लाते हैं, ‘‘तुम जल्दी नहीं उठ सकतीं. यह कोई समय है उठने का? अभी तक चाय नहीं बनी. चाय में चीनी कम है. कभी ज्यादा है. खाने में नमक नहीं है. यह सब्जी क्यों बनाई है? वही काम करती हो, जो मुझे पसंद नहीं आता. न घर में साफसफाई है, न बच्चों की तरफ ढंग से ध्यान देती हो.

‘‘अम्मां अब कितने दिनों की मेहमान हैं. कम से कम उन की देखभाल ही ठीक से कर लिया करो. तुम्हें कपड़े पहनने का सलीका नहीं आता है. तुम्हें मेहमानों से बात करने का ढंग नहीं है. तुम यह नहीं करती, तुम वह नहीं करती. तुम ऐसी हो, तुम वैसी हो. तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता.’’

मैं ने तो अब बहस करना, इन की बातों पर ध्यान देना ही छोड़ दिया. जो कहना है, कहते रहो. मेरा काम सुनना है, सुनती रहती हूं. लेकिन आखिर कब तक? अकेले में कह दें तो सुन भी लूं. चार लोगों के बीच टोकना, डांटना घोर बेइज्जती है मेरी. मेरे औरत होने की. पत्नी हूं, नौकरानी नहीं.

एक दिन इन के 2-3 दोस्त खाने पर आए. इन के कहे मुताबिक ही खाना बनाया. मैं ने अच्छे से परोसा. लेकिन दोस्तों के सामने ही इन का चिल्लाना शुरू हो गया, ‘‘जरा अपने हाथपैर तेजी से चलाओ. यह जैट युग है, बैलगाड़ी की तरह काम मत करो…’’

फिर इन्होंने चीख कर कहा, ‘‘दही कहां है?’’

‘‘अभी लाई,’’ मैं ने अपनी रुलाई रोकते हुए कहा.

इन के एक दोस्त ने कहा, ‘‘क्या दबदबा बना कर रखा है यार? मैं अगर अपनी पत्नी से इतना कह दूं, तो घर में मुसीबत खड़ी हो जाए.’’

दूसरे दोस्त ने इन की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वाकई सही माने में तुम हो असली मर्द. औरतों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए.’’

मैं अंदर रसोई में से सब सुन रही थी. जी तो चाहता था कि सारा सामान उठा कर फेंक दूं. इन्हें और इन के दोस्तों को जम कर लताड़ लगाऊं, लेकिन चुप ही रही. पर मैं ने भी मन ही मन तय कर लिया था कि अपनी बेइज्जती का बदला तो ले कर रहूंगी. लेकिन बहस से, चीखचिल्ला कर घर का माहौल बिगाड़ कर नहीं. इन्हें बताऊंगी कि औरत कैसे शर्मिंदा कर सकती है. कैसे हरा सकती है. कैसे तुम्हारे मर्द होने का अहंकार तोड़ सकती है.

खाना खा रहे दोस्तों के बीच मैं दही रखने गई, तभी दोनों बच्चे वहां आ गए खेलते हुए.

‘‘बाहर निकालो इन्हें कमरे से. तुम बच्चों का ध्यान नहीं रख सकतीं…’’ वे जोर से चिल्लाए.

मैं दोनों बच्चों को जबरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई. इन के किसी दोस्त की आवाज कानों में आई, ‘‘खाना तो लजीज बना है.’’

इन्होंने मुंह बिचकाते हुए जवाब दिया, ‘‘खाना तो सुमन बनाती थी. पहले मेरी उसी से शादी होने वाली थी. सगाई तक हो गई थी उस से. कई बार मैं सुमन के घर भी गया. ऐसा स्वादिष्ठ खाना मुझे आज तक नसीब नहीं हुआ.’’

इन की सगाई टूटने की बात मुझे पता थी, लेकिन सुमन के खाने की तारीफ और मेरे खाने को सुमन के मुकाबले कमतर बताना मुझे अखर गया.

ये मर्द थे, तो मैं औरत थी. इन्हें अपने मर्द होने का घमंड था, तो मुझे क्यों न हो अपने औरत होने पर गर्व? अब इन्हें बताना जरूरी था कि औरत क्या होती है.

मर्द की सौ सुनार की और औरत की एक लुहार की कहावत को सच साबित करने का समय आ गया था. इन का यह जुमला कि मर्द बने रहने के लिए औरत को दुत्कारते रहना जरूरी है, तभी घर भी घर बना रहता है. तभी सब ठीक रहते हैं.

अम्मांजी ने इन से एक बार कहा भी था, ‘‘बेटा, मर्द को मर्द की तरह रहना चाहिए. औरत को हमेशा सिर पर चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए. उसे डांटडपट, फटकार लगाना जरूरी है.’’

इन्होंने अम्मांजी की बातों को इस तरह स्वीकार किया कि मेरा पूरा वजूद ही बिखरने लगा.

दोनों बच्चे अकसर दादी के पास ही सोया करते थे. वे आज भी वहीं सो रहे थे. ये भी बिस्तर पर लेटेलेटे किताब पढ़ रहे थे.

आज मैं जरा जल्दी ही कमरे में पहुंच गई थी. मैं गाउन पहन कर सोती थी और कपड़े बाथरूम में ही बदलती थी. लेकिन आज मैं ने कमरे में जा कर साड़ी उतारी.

मैं ने तिरछी नजरों से इन की तरफ देखा. साड़ी बदलते ही इन का ध्यान मेरी तरफ गया. नहीं… नहीं, मेरे बदन की तरफ. पहले तो इन्होंने आदत के मुताबिक मुझे टोका, ‘‘यह जगह है क्या कपड़े बदलने की?’’

मैं ने भी कह दिया, ‘‘यहां पर आप के अलावा और कौन हैं? आप से कैसी परदादारी?’’

ये कुछ कहते, इस से पहले ही मैं ने अपने बाकी कपड़े भी उतार दिए. अब मैं छोटे कपड़ों में थी, टूपीस भी कह सकते हैं.

मैं ने पहनने के लिए गाउन उठाया. लेकिन इन के सब्र का पैमाना छलक चुका था. इन्होंने प्यार से मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘बहुत दिन हो गए तुम्हें प्यार किए हुए. आज इस रूप में देख कर सब्र नहीं होता.’’

इस के बाद कमरे में हम दोनों एक हो गए. अलग होते ही मैं मुंह बिचका कर एक तरफ मुंह फेर कर लेट गई. मैं ने कहा, ‘‘किसी वैद्यहकीम को दिखाओ. इतने सारे तो इश्तिहार आते हैं, कोई गोली ले लिया करो.’’

ये दुम दबाते पालतू कुत्ते की तरह आ र कूंकूं की आवाज में बोले, ‘‘क्यों, खुश नहीं हुईं क्या तुम? कुछ कमी रह गई क्या?’’

इन की हालत देख कर बड़ी मुश्किल से मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा, ‘‘नहीं, कोई ऐसी बात नहीं है. कभीकभी होता है ऐसा.’’

इन का उदास, हताश, हारा हुआ चेहरा देख कर मुझे अपनी जीत का एहसास हुआ. एक ही वार से इन के अंदर की मर्दानगी और बाहर का मर्द दोनों मुरदा पड़े हुए थे, जैसे दुनिया के सब से तुच्छ, कमजोर इनसान हों.

उस के बाद इन की टोकाटाकी, डांटफटकार तो बंद हुई ही, साथ ही साथ मेरी तरफ जब भी ये देखते, तो ऐसा लगता कि इन के देखने में डर और शर्मिंदा का भाव हो. अकसर चोरीछिपे जिस्मानी ताकत बढ़ाने के इश्तिहार पढ़ते भी नजर आते.

खूबसूरत : जब असलम को अच्छी लगने लगी मुमताज

असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था. असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी. असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा.

‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी.

‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई. इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो.

दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी. एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी.

असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया.

असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया.

मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

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