Serial Story: दस्विदानिया भाग 3

नताशा से बात कर दीपक को खुशी हुई. दोनों में प्यारभरी बातें होती रहती थीं. वे बराबर एकदूसरे के संपर्क में रहते. धीरेधीरे समय बीतता जा रहा था. करीब 2 साल बाद एक बार नताशा दीपक से मिलने इंडिया आई थी. दीपक ने महसूस किया उस के चेहरे पर पहले जैसी चमक नहीं थी. स्वास्थ्य भी कुछ गिरा सा लग रहा था.

दीपक के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं है, सफर की थकावट और थोड़ा सिरदर्द है.’’

दोनों में मर्यादित प्रेम संबंध बना हुआ था. एक दिन बाद नताशा ने लौटते समय कहा, ‘‘इंतजार का समय 2 साल कम हो गया.’’

‘‘हां, बाकी भी कट जाएगा.’’

बेलारूस लौटने के बाद से नताशा का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था. कभी जोर से सिरदर्द, कभी बुखार तो कभी नाक से खून बहता. सारे टैस्ट किए गए तो पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है. डाक्टर ने बताया कि फिलहाल दवा लेती रहो, पर 2 साल के अंदर कुछ भी हो सकता है. नताशा अपनी जिंदगी से निराश हो चली थी. एक तरफ अकेलापन तो दूसरी ओर जानलेवा बीमारी. फिर भी उस ने दीपक को कुछ नहीं बताया.

इधर कुछ महीने बाद दीपक को 3-4 दिनों से तेज बुखार था.

वह अपने एअरफोर्स के अस्पताल में दिखाने गया. उस समय फ्लाइट लैफ्टिनैंट डाक्टर ईशा ड्यूटी पर थीं. चैकअप किया तो दीपक को 103 डिग्री से ज्यादा ही फीवर था.

डाक्टर बोली, ‘‘तुम्हें एडमिट होना होगा. आज फीवर का चौथा दिन है…कुछ ब्लड टैस्ट करूंगी.’’

दीपक अस्पताल में भरती था. टैस्ट से पता चला कि उसे टाईफाइड है.

डा. ईशा ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर में और कौनकौन हैं, आई मीन वाइफ, बच्चे?’’

‘‘मैं बैचलर हूं डाक्टर… वैसे भी और कोई नहीं है मेरा.’’

‘‘डौंट वरी, हम लोग हैं न,’’ डाक्टर उस की नब्ज देखते हुए बोलीं.

बीचबीच में कभीकभी दीपक का खुबार 103 से 104 डिग्री तक हो जाता तो वह नताशानताशा पुकारता. डा. ईशा के पूछने पर उस ने नताशा के बारे में बता दिया. डाक्टर ने नताशा का फोन नंबर ले कर उसे फोन कर दिया. 2 दिन बाद नताशा दीपक से मिलने पहुंच गई. उस दिन दीपक का फीवर कम था. नताशा उस के कैबिन में दीपक के बालों को सहला रही थी.

तभी डा. ईशा ने प्रवेश किया. बोलीं, ‘‘आई एम सौरी, मैं बाद में आ जाती हूं. बस रूटीन चैकअप करना है. आज इन्हें कुछ आराम है.’’

दीपक बोला, ‘‘नहीं डाक्टर, आप को जाने की जरूरत नहीं है. आप अपना काम कर लें… अब नताशा आ गई है, तो मैं ठीक हो जाऊंगा.’’

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डा. ईशा ने नताशा से पूछा, ‘‘तुम इंडिया कितने दिनों के लिए आई हो?’’

‘‘ज्यादा से ज्यादा 2 दिन तक रुक सकती हूं.’’

‘‘ठीक है, इन का बुखार उतरना शुरू हो गया है. उम्मीद है कल तक कुछ और आराम मिलेगा.’’

डाक्टर के जाने के बाद दीपक ने नताशा से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है? थकीथकी लग रही हो?’’

‘‘नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूं. तुम आराम करो. मैं अभी चलती हूं. फिर आऊंगी शाम को विजिटिंग आवर्स में.’’

नताशा डा. ईशा से मिलने उन के कैबिन में गई तो डा. ईशा बोलीं, ‘‘आप लंच मेरे साथ लेंगी… मेरे क्वार्टर में आ जाना, मैं वेट करूंगी.’’

लंच के बाद नताशा डा. ईशा से बैठी बातें कर रही थी. डा. ईशा ने कहा, ‘‘क्या बात है, इंडियन खाना पसंद नहीं आया? तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं. तुम्हें तो इंडियन खाने की आदत डालनी होगी.’’

‘‘नहीं, खाना बहुत अच्छा था. मैं ने भरपेट खा लिया है.’’

‘‘दीपक तुम्हें बहुत चाहते हैं… तुम्हारे लिए लंबा इंतजार करने को तैयार हैं.’’

उसी समय नताशा के सिर में जोर का दर्द हुआ और नाक से खून रिसने लगा. डा. ईशा उसे सहारा दे कर वाशबेसिन तक ले गई, फिर बैड पर आराम करने के लिए लिटा दिया और पूछा, ‘‘तुम्हें क्या तकलीफ है और ऐसा कितने दिनों से हो रहा है?’’

नताशा ने अपने बैग से दवा खाई और अपनी पूरी बीमारी विस्तार से बता दी. फिर अपनी फाइल और रिपोर्ट उन्हें दिखा कर कहा, ‘‘अब मेरी जिंदगी कुछ ही महीनों की बची है. डाक्टर ने कहा है कि ज्यादा से ज्यादा 1 साल. मैं चाहती हूं आप दीपक को धीरेधीरे समझाएं… हो सकता है मैं इस के बाद अब उस से मिल न सकूं, क्योंकि लंबी यात्रा के लायक नहीं रहूंगी.’’

अगले दिन दीपक को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. वह अपने क्वार्टर में नताशा के साथ था. नताशा को अगले दिन जाना था. दीपक बोला, ‘‘मैं तो एअरफोर्स में हूं, मेरा विदेश जाना संभव नहीं है. तुम्हीं मिलने आ जाया करो. मुझे बहुत अच्छा लगता है तुम से मिल कर.’’

‘‘अच्छा तो मुझे भी लगता है, पर मुझे लगता है तुम्हारी देखभाल करने वाला कोई यहां होना चाहिए. मेरे इंतजार में कहीं तुम्हारे स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े.’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं वेट कर लूंगा.’’

नताशा जा रही थी. दीपक से बिदा लेते समय उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. डाक्टर ने दीपक को एअरपोर्ट जाने से मना कर दिया था.

नताशा बोली, ‘‘दस्विदानिया, दोस्त.’’

डा. ईशा नताशा के साथ एअरपोर्ट आई थीं.

नताशा बोली, ‘‘डाक्टर, अब मैं दीपक से मिलने नहीं आ सकती हूं…आप समझ ही रही हैं न… मैं ने दीपक से कुछ नहीं कहा है. पर आप उसे सच बता दीजिएगा.’’

नताशा चली गई. डा. ईशा ने उस की बीमारी के बारे में दीपक को बता दिया. वह बहुत दुखी हुआ. डा. ईशा दीपक से अकसर मिलने आतीं और उसे समझातीं. लगभग 6 महीने बाद नताशा का आखिरी फोन उसे मिला. वह अस्पताल में अंतिम सांसें गिन रही थी.

नताशा ने कहा, ‘‘सौरी दोस्त, मैं अब और तुम्हारा इंतजार नहीं कर सकती हूं. किसी भी पल आखिरी सांस ले सकती हूं. टेक केयर औफ योरसैल्फ. दस्विदानिया, प्राश्चे नवसेदगा (गुड बाय सदा के लिए).’’

करीब आधे घंटे के बाद नताशा की मृत्यु की खबर दीपक को मिली. वह बहुत दुखी हुआ. उस की आंखों से भी लगातार आंसू बह रहे थे. डा. ईशा दीपक को सांत्वना दे रही थी.

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बीमारी के बाद दीपक और ईशा दोनों अकसर मिलने लगे थे. एक दिन दोनों साथ बैठे थे. दीपक थोड़ा सहज हो चला था. वह बोला, ‘‘अकेलापन काटने को दौड़ता है.’’

‘‘आप देश के बहादुर सैनिक हो. अपना मनोबल बनाए रखो. ड्यूटी के बाद कुछ अन्य कार्यों में अपनेआप को व्यस्त रखो.’’

‘‘मैं नताशा को भुला नहीं पा रहा हूं.’’

‘‘यादें इतनी आसानी से नहीं भूलतीं, पर कभीकभी यादों को हाशिए पर रख कर जिंदगी में आगे बढ़ना होता है. मैं भी उसे कहां भूल सकी हूं.’’

‘‘किसे?’’

‘‘फ्लाइंग अफसर राकेश से मेरी शादी तय हुई थी. हम दोनों एकदूसरे को चाहते भी थे, पर एक टैस्ट फ्लाइट के क्रैश होने से वह नहीं रहा.’’

‘‘उफ , सो सौरी.’’

कुछ दिन बाद क्लब में डा. ईशा और दीपक एक सीनियर अफसर स्क्वाड्रन लीडर उमेश के साथ बैठे थे. उमेश ने कहा, ‘‘तुम दोनों की कहानी मिलतीजुलती है. क्यों न तुम दोनों एक हो कर एकदूसरे के सुखदुख में साथ दो.’’

डा. ईशा और दीपक एकदूसरे को देखने लगे. उमेश ने महसूस किया कि दोनों की आंखों से स्वीकृति का भाव साफ छलक रहा है.

राशनकार्ड: निठल्ले गैंग ने नरेश की बेटियों के साथ किया बलात्कार

राशनकार्ड: पार्ट 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘पापा, सब लोग हम को घर में घुस कर देख क्यों रहे हैं? ऐसा लग रहा है, जैसे वे कोई अजूबा देख रहे हों,’’ नरेश की 22 साला बेटी नेहा बेटी ने पूछा.

‘‘वह… दरअसल, आज हम लोग शहर से आने के बाद क्वारंटीन सैंटर में 14 दिन रहने के बाद अपने घर जा रहे हैं न, इसीलिए सब लोग हमें अजीब नजरों से देख रहे हैं,’’ गांव में नरेश ने अपनी बेटी नेहा को बताया.

नरेश पिछले 20 साल से दिल्ली शहर में रह रहा था. अपनी शादी के कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी के साथ शहर चला गया था.

शहर में कोई काम शुरू करने के लिए नरेश के पास रकम तो थी नहीं, बस थोड़ाबहुत पैसा अपने बड़े भाई से मांग कर ले गया था, जो वहां सामान खरीदने में ही खर्च हो गया.

पर नरेश ने हिम्मत नहीं हारी और महल्ले के लोगों की गाडि़यां साफ करने का काम ले लिया. बस एक बालटी, एक पुराना कपड़ा, कार शैंपू और पानी तो कार वालों के यहां मिल ही जाता था.

जैसेजैसे लोगों के पास गाडि़यां  बढ़ीं, वैसेवैसे नरेश का काम भी बढ़ता चला गया और वह ठीकठाक पैसे कमाने लगा.

शहर में ही नरेश की पत्नी ने 2 बेटियों को जन्म दिया और अब तो बड़ी बेटी नेहा 22 साल की हो चली थी और छोटी बेटी 16 साल की.

नेहा के लिए तो लड़के वालों से बातचीत भी हो गई थी और रिश्ता भी पक्का हो गया था, पर इस लौकडाउन ने तो सभी के सपनों पर पानी ही फेर दिया. बहुत सारे मजदूरों को शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया था.

माना कि यह संकट कुछ महीनों में चला जाएगा, पर तब तक नरेश के पास इतनी जमापूंजी तो थी नहीं कि वह हालात सामान्य होने का इंतजार कर ले और वैसे भी बहुत से कार मालिकों ने अब नरेश को काम से हटा दिया था.

इस कोरोना काल में नरेश और उस का परिवार जितना सामान साथ ले सकते थे उतना ले आए और बाकी का सामान उन्हें मजबूरी के चलते शहर में ही छोड़ना पड़ गया था. पर मरता क्या न करता, जान बचाने के आगे भला सामान की चिंता कौन करता.

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गांव में नरेश के बड़े भाई राजू का परिवार था. जब नरेश का परिवार गांव में अपने घर के दरवाजे पर पहुंचा तो सिर्फ राजू ही दरवाजे पर खड़ा था. उस ने उंगली के इशारे से ही नरेश और उस के परिवार को वहीं बाहर वाले कमरे में रुक जाने को कहा. उस कमरे में बरसात के दिनों में जानवरों को बांधा जाता था.

नरेश को पहले तो बहुत बुरा लगा, पर बाद में मन मार कर उस ने उसी कमरे को अपना घर बना लिया.

‘‘मैं ने पहले से ही कुछ दिनों का राशनपानी, एक चूल्हा और ईंधन इसी कमरे में रखवा दिया था, ताकि जब तुम लोग आओ तो दिक्कत का सामना न करना पड़े,’’ राजू ने नरेश से कहा.

‘‘हां भैया, बहुत अच्छा किया आप ने,’’ नरेश ने कहा और मन ही मन सोचने लगा, ‘भैया ने तो पानी भी नहीं पूछा और उलटा हम से अछूतों जैसा बरताव कर रहे हैं.’

नरेश रोज सुबह राजू को बैलों की जोड़ी को हांक कर खेत ले जाते देखता, तो उस का भी मन हो आता कि वह भी इस तरह ही खेती करे.

‘‘हां… तो जाते क्यों नहीं… खेती और मकान में हम लोगों का भी तो हिस्सा होगा न,’’ नरेश की पत्नी संध्या  ने कहा.

‘‘हां… होना तो चाहिए… पर इतने बरसों से इस जमीन की देखभाल भैया ही कर रहे हैं, इसलिए पूछने की हिम्मत नहीं हो रही है,’’ नरेश ने संध्या से कहा.

‘‘पर नहीं पूछोगे, तो यहां गांव में क्या करोगे… किस के सहारे 2 बेटियों को ब्याहोगे… और खुद भी क्या  खाओगे भला,’’ संध्या ने नरेश को समझाते हुए कहा.

जब नरेश को उस कमरे में रहते हुए 15 दिन हो गए, तो एक दिन जब राजू खेत की ओर जा रहा, तो नरेश भी वहां पहुंच गया और बोला. ‘‘भैया वहां गांव के बाहर भी हम सैंटर में 14 दिन रुके थे और अब अपने घर के बाहर भी हम 15 दिन तक पड़े रहे हैं… तो क्या अब हम घर के अंदर आ जाएं?’’

‘‘हां… कोई जरूरत हो तो आ जाना. वैसे, उस कमरे में भी कोई दिक्कत तो होगी नहीं तुम को…’’ राजू ने पूछा.

‘‘नहीं भैया… दिक्कत तो कोई नहीं है… साथ ही, मैं यह बात जानना चाह रहा था कि खेती में हमारा भी तो हिस्सा होगा, तो वह भी बता दीजिए, तो हम

भी अपना धंधापानी शुरू कर दें,’’ नरेश ने कहा.

इतना सुनते ही राजू के तेवर बदल गए. वह घर के अंदर गया. थोड़ी ही देर में वापस आ गया और एक कागज नरेश को दिखाते हुए बोला, ‘‘लो… पहचानो इस कागज को… शहर जाते समय जब तुम्हें पैसे की जरूरत थी, तब तुम्हीं ने तो अपने हिस्से का मकान और खेत सब मेरे नाम कर दिया था. देखो, तुम्हारा ही तो अंगूठा लगा है न?’’

यह सुन कर सन्न रह गया था नरेश… उसे आज भी अच्छी तरह याद था कि शहर जाने के लिए जब उसे कुछ पैसे की जरूरत थी, तब उस ने अपने बड़े भाई से पैसे मांगे थे. तब राजू ने यह कह कर उसे पैसे दिए थे कि वह ये पैसे गांव के चौधरी से ले कर आया है और उसे इस पैसे पर एक निश्चित ब्याज हर महीने देना होगा. इसी बात के इकरारनामे पर अंगूठा लगाया था नरेश ने… अपने ही सगे भाई ने लूट लिया था उसे.

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‘‘अरे, यह तो मैं बड़ा भाई होने का फर्ज निभा रहा हूं जो तुम्हें घर में आने भी दिया है, वरना तो तुम लोग बीमारी फैलाने वाले बम से कम नहीं हो इस समय. देख लो गांव में जा कर, कोई पास भी खड़ा हो जाए तो नाम बदल देना मेरा,’’ राजू बोला.

नरेश चुपचाप वहां से लौट गया. नरेश के पास राशन अब खत्म होने को आया था. पत्नी के साथ बातचीत के बाद उस ने सोचा कि क्यों न गांव में बनी दुकान से कुछ राशन उधार ले आऊं, बाद में कुछ काम जम जाएगा, तो लाला का उधार चुकता कर देगा.

‘‘लालाजी, कुछ राशन चाहिए… पर पैसा अभी नहीं दे पाऊंगा… कुछ दिनों बाद काम जमते ही मैं आप को पूरे पैसे दे दूंगा,’’ नरेश ने लाला के पास जा

कर कहा.

‘‘अरे भैया… खुद हमारे पास ही सामान ज्यादा नहीं बचा है और पीछे से भी आवक बंद है. ऐसे में अगर तुम उधार की बात करोगे, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी… उधार तो नहीं दे पाऊंगा अब. जब तुम्हारे पास पैसे हों… तब गल्ला ले जाना आ कर,’’ लाला की बात सुन कर अपना सा मुंह ले कर रह गया था नरेश.

नरेश अब उलझन में पड़ गया  था. बच्चों का पेट तो भरना ही होगा,  पर कैसे?

राशनकार्ड: पार्ट 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

अब नरेश के पास आखिरी चारा था कि कुछ सामान गिरवी रख दिया जाए, जिस के बदले में जो पैसे मिलें उस से राशन खरीद लिया जाए.

जब नरेश ने यह बात संध्या को बताई, तो वह अपने कान की बालियां ले आई और बोली, ‘‘आप इन्हीं को गिरवी रख दीजिए और जो पैसे मिलें उस से सामान खरीद लाइए.’’

कोई चारा न देख नरेश बालियां ले कर गांव के एक पैसे वाले आदमी के पास पहुंचा, जो गांठगिरवी का काम करता था.

‘‘अरे भैया… ये सारे काम तो हम ने बहुत पहले से ही बंद कर रखे हैं. और अब तो सरकार का भी इतना दबाव है, फिर तुम तो शहर से आए हो… तुम्हारे पास से ली हुई किसी भी चीज से बीमारी लगने का ज्यादा खतरा है…

‘‘भाई, तुम से तो हम चाह कर भी कुछ नहीं ले सकते… हमें माफ करना भाई… हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएंगे,’’ उस आदमी के दोटूक शब्द थे.

इधर नरेश गल्ला और पैसे के लिए परेशान हो रहा था, तो उधर उस की पत्नी संध्या और बेटियां एक दूसरी ही तरह की समस्या से जूझ रही थीं.

दरअसल, गांव की लड़कियों के पहनावे और शहर की लड़कियों के पहनावे में बहुत फर्क होता है. शहरों में किसी भी तबके की लड़की के लिए लोअर, टीशर्ट और जींस पहनना आम बात है, पर गांवों में अभी भी लड़कियां सलवारसूट पहनती हैं और ऊपर से दुपट्टा भी डालती हैं. यही फर्क नरेश की बेटियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा था. गांव के लड़के तो लड़के, बड़ी उम्र के लोग भी उन्हें अजीब ललचाई नजरों से देखते थे.

एक दिन की बात है. गांव के नजदीक बहने वाली नदी के पानी में एक निठल्ले गैंग के 5 लड़के पैर डाल कर बैठे हुए थे.

‘‘यार, वह जो परिवार दिल्ली से आया है, उस में माल बहुत मस्त है…’’ पहले लड़के ने कहा.

‘‘लड़कियां तो लड़कियां… उन की मां भी बहुत मस्त है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘अरे यार, उन लड़कियों से दोस्ती करवा दो मेरी… मैं हमेशा से ही जींस वाली लड़कियों से दोस्ती करना चाहता था…’’ तीसरा लड़का बोला.

‘‘ठीक है भाई… तू उन लड़कियों  से दोस्ती करना और हम लोग… तो करेंगे प्रोग्राम…’’

‘‘नहींनहीं… भाई ऐसी बात भी मन में मत लाना… वे लोग शहर से आए हैं और अगर उन लड़कियों के साथ प्रोग्राम किया, तो हम लोगों को भी कोरोना हो जाएगा,’’ थोड़ी समझदारी दिखाते हुए एक लड़का बोला, जो मोबाइल और इंटरनैट की कुछ जानकारी रखता था.

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‘‘वह तो सब हो जाएगा… सरकार का कहना है कि अगर हम रबड़ के दस्ताने इस्तेमाल करेंगे, तो इंफैक्शन  का खतरा नहीं होगा,’’ पहले वाले ने ज्ञान बघारा.

‘‘अबे तो फिर क्या तू पूरे शरीर में रबड़ पहनेगा?’’ ठहाका मारते हुए एक लड़का बोला.

उस के बाद सब आपस में प्लान बनाने में बिजी हो गए.

नरेश अपनी उधेड़बुन में परेशान चला आ रहा था… उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब शहर से गांव आ कर कैसे गुजारा करेगा, शहर में होता तो कुछ भी काम कर लेता, पर यहां गांव में न तो काम है और न ही कोई किसी भी तरह से मदद करने को तैयार है.

‘‘चाचाजी, नमस्ते.’’

नरेश ने आवाज की दिशा में सिर घुमाया, तो सामने निठल्ले गैंग का हैड खड़ा था.

नरेश जब से गांव में आया था, तब से सब लोगों की अनदेखी ही झेल रहा था, ऐसे में अपने लिए चाचाजी के संबोधन ने उसे बड़ा अच्छा महसूस कराया.

नरेश के होंठों पर एक मुसकराहट दौड़ गई, ‘‘भैया नमस्ते.’’

‘‘अरे चाचा… क्यों परेशान दिख  रहे हैं… कोई समस्या है क्या?’’ वह लड़का बोला.

‘‘भैया… अब क्या बताऊं… वहां की सारी समस्याएं झेल कर परिवार के साथ अपने गांव में पहुंचा हूं, पर यहां भी राशन खत्म हो गया है. न ही कोई पैसे उधार दे रहा है और न ही कोई गल्ला देने को तैयार है,’’ नरेश ने अपनी लाचारी दिखाते हुए कहा.

‘‘अरे तो इस में क्या दिक्कत है चाचा… सरकार की तरफ से सब लोगों को मुफ्त राशन दिया तो जा रहा है,’’ वह लड़का बोला.

‘‘पर भैया… उस के लिए तो राशनकार्ड होना चाहिए… और हमारे पास राशनकार्ड तो है नहीं,’’ नरेश  ने कहा.

‘‘अरे चाचा तो इस में कौन सी बड़ी बात है… रोज दोपहर यहां स्कूल में राशनकार्ड वाले बाबूजी बैठते हैं, जो गांव आए हुए लोगों का राशनकार्ड बनाते हैं… बस, आप को इतना करना है कि पूरे परिवार समेत कल दोपहर स्कूल पर पहुंच जाना. मेरी बाबूजी से अच्छी पहचान है… मैं उन से कह कर आप का कार्ड बनवा दूंगा, और फिर जितना चाहो उतना राशन भी दिलवा दूंगा आप को,’’ निठल्ले गैंग के हैड ने कहा.

अचानक से अपनी समस्याओं का अंत होते देख कर नरेश बहुत खुश हो गया और घर आ कर कल दोपहर होने का इंतजार करने लगा. वह सोचने लगा, ‘एक बार पेट भरने की समस्या का अंत हो जाए, फिर यही गांव के बाजार में कुछ कामधंधा जमाऊंगा. कुछ पैसा बैंक से लोन ले कर, शहर से सामान ले कर बाजार में बेचा करूंगा और फिर भैया का यह कमरा भी छोड़ दूंगा. फिर आराम से अपनी बेटियों का ब्याह करूंगा,’ बस इसी तरह के भविष्य के सपनों में नरेश की आंख लग गई.

अगले दिन 12 बजने से पहले ही नरेश अपनी दोनों बेटियों और पत्नी  को ले कर स्कूल में बाबू से मिलने चलने लगा.

अचानक से रास्ते में निठल्ले गैंग का हैड नरेश के सामने आ गया और नरेश की पत्नी और लड़कियों को घूरते हुए बोला, ‘‘अरे चाचा, वे राशनकार्ड वाले बाबूजी कह रहे थे कि आप सब लोगों का एक पहचानपत्र भी जरूरी है. क्या उस की कौपी लाए हैं आप लोग?’’

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‘‘नहीं भैया… आप ने तो कल ऐसा कुछ बताया ही नहीं था…’’ अपनी नासमझी पर परेशान हो उठा था नरेश.

राशनकार्ड: पार्ट 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे चाचा… आप परेशान हो रहे हो… वे देखो सामने मेरी झोंपड़ी है. उस में इन बच्चों को आराम से बिठा देते हैं. और हम और आप चल कर पहचानपत्र ले आते हैं,’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, ठीक?है… ऐसा है संध्या… जब तक हम लोग अपना पहचानपत्र नहीं ले कर आते, तुम वहीं झोंपड़ी में बैठ जाओ,’’ नरेश ने अपनी पत्नी से कहा.

नरेश उस लड़के के साथ वापस हो लिया, जबकि उस की पत्नी संध्या अपनी दोनों बेटियों के साथ झोंपड़ी में चारपाई पर जा बैठीं.

रास्ते में जब नरेश उस लड़के के साथ आ रहा था, तब एक जगह वह लड़का रुका और बोला, ‘‘चाचा, बड़ी गरमी है. सामने ही मेरे दोस्त का घर है. पहले एक गिलास पानी पी लें, फिर चलते हैं.’’

दोनों के सामने बिसकुट और शरबत आया. शरबत पीते ही नरेश का अपने शरीर पर कोई जोर नहीं रहा और उसे बेहोशी आने लगी. वह वहीं गिर गया.

उधर जिस झोंपड़ी में नरेश अपने परिवार को छोड़ कर आया था, वहां पर 3-4 लड़के एकसाथ आ गए.

‘‘वाह भाई… आज तो हम शहरी माल के साथ सटासट करेंगे… चलो पहले कौन है लाइन में,’’ बेशर्मी से निठल्ले गैंग का एक लड़का बोल रहा था.

संध्या को उन लड़कों की नीयत पर शक हो गया और वह बचाव का रास्ता खोजने लगी.

अचानक एक लड़के ने संध्या के सीने को हाथों से भींच लिया, जिसे देख कर दूसरा लड़का हंसने लगा.

‘‘अरे, जब बछिया पास में हो तो… गाय को काहे को परेशान करना…’’

‘‘अरे, तुझे बछिया के साथ मजे लेने हैं, तो उस के साथ ले… मुझे तो यह गाय ही पसंद आ गई है.’’

दूसरे लड़के ने संध्या को चारपाई पर बांध दिया और इसी तरह जबरदस्ती  उस की दोनों बेटियों के भी हाथमुंह बांध दिए गए.

पूरा निठल्ला गैंग इस परिवार पर टूट पड़ा और लड़के बलात्कार करने में जुट गए, इतने में वहां गैंग का हैड भी आ गया.

‘‘अरे, अकेले ही सब माल मत खा जाना… मेरे लिए भी छोड़ देना.’’

‘‘अरे, लो यार… आज तो 3-3 हैं. जिस के साथ चाहो, उस के साथ  मजे करो.’’

और उस निठल्ले गैंग के पांचों लड़कों ने बारीबारी से और बारबार संध्या और उस की बेटियों का बलात्कार किया और इतना ही नहीं, बल्कि जो लड़का इंटरनैट की जानकारी रखता था, उस ने अपने मोबाइल से अश्लील वीडियो भी शूट किया और जी भर जाने के बाद वहां से भाग गए.

कुछ ही देर में संध्या का सबकुछ लुट चुका था. आज उस के ही सामने उस की बेटियों और उस का बलात्कार हो गया. उसे और कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह पागल सी हो रही थी. अचानक उस ने अपनी दोनों बेटियों को साथ लिया और गांव के नजदीक बहने वाली नदी में छलांग लगा दी.

इधर जब नरेश होश में आया, तो दौड़ कर उस झोंपड़ी में पहुंचा. पर, वहां के हालात तो कुछ और ही बयान कर रहे थे. अब भी उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक उस का परिवार कहां चला गया.

तभी नरेश की नजर अंदर बैठे हुए निठल्ले गैंग के लड़कों पर पड़ी, जिन पर मस्ती का नशा अब भी चढ़ा हुआ था. वह उन की ओर लपका.

‘‘ऐ भैया… हम अपनी पत्नी और बेटियों को यहीं छोड़ कर गए थे… अब कहां हैं वे सब… कुछ समझ नहीं आ रहा है हम को.’’

‘‘ओह… तो तू होश में आ गया… ले यह मोबाइल में देख ले और समझ ले कि तेरे बच्चे कहां हैं,’’ उस मोबाइल वाले लड़के ने मोबाइल पर बलात्कार का वीडियो नरेश की आंखों के सामने कर दिया.

अपनी बेटियों और पत्नी का एकसाथ बलात्कार होते देख नरेश का खून खौल गया. उस ने कोने में रखी लाठी उठाई और उन लड़कों पर हमला कर दिया. एक तो नरेश पर नशे का असर अब भी था, ऊपर से वे जवान  5 लड़के.

उन लड़कों ने नरेश के हाथों से लाठी छीन ली और तब तक मारा जब तक वह मर नहीं गया.

इस कोरोना संकट और गांव पलायन ने नरेश की मेहनत से बनाए हुए सपनों के छोटेमोटे घोंसले को बरबाद कर दिया था.

नरेश और उस का पूरा परिवार अब खत्म हो चुका था. अब उसे न तो घर की जरूरत थी, न पैसे की, न नौकरी की, न ही राशन की और न ही राशनकार्ड की…

मूंछ: दारा और रिनी की शादी के बदले मिली मौत

Serial Story: मूंछ पार्ट 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

दारा नाम था उस का. लंबा शरीर और चौड़ा सीना. देखने में ऐसा लगता था मानो अभी अखाड़े से आ रहा हो. चेहरे पर हमेशा एक मुसकराहट बनी रहती थी.

दारा की मां बचपन में मर गई थीं. गांव में बाबूजी ही बचे थे. वे ग्राम प्रधान का ट्रैक्टर चलाते थे, पर हमेशा यही चाहते थे कि उन का लड़का दारा पुलिस में सिपाही हो जाए, तो सारे गांव का ही नाम रोशन हो जाए और… फिर तो प्रधान भी उन्हें घुड़की नहीं दे पाएगा और उन का जितना भी पैसा दबा कर रखा है, वह सब सूद समेत वापस कर देगा.

पर बेटा गांव में रह जाता तो वह भी मजदूर बन कर ही रह जाता, इसलिए दारा जैसे ही 10 साल का हुआ, वैसे ही उस के बाबूजी ने उसे शहर में उस के मामा के पास भेज दिया और उन से ताकीद की कि हर महीने खर्चापानी उन के पास आता रहेगा. वे बस इतना करें कि दारा को पढ़ालिखा कर किसी तरह पुलिस में भरती करा दें.

दारा के मामा एक ईंटभट्ठे पर काम करते थे. उन्होंने दारा से खूब मेहनत भी कराई थी और उसे यह भी अहसास करा दिया था कि अगर वह दौड़ में आगे रहेगा, तो पुलिस में भरती हो पाएगा, क्योंकि पुलिस में भरती होने के लिए दौड़ पक्की होनी चाहिए, इसलिए दारा खूब दौड़ लगाता, जिम में जा कर पसीना भी बहाता. भरती की प्रक्रिया में भाग भी लिया, पर इस बेरोजगारी के दौर में सरकारी नौकरी पाना इतना आसान नहीं था.

दारा 20 साल को हो चुका था. वह पुलिस में भरती नहीं हो सका, तो अपनी जीविका चलाने के लिए उस ने एक मौल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली.

यह नौकरी भी दारा को इसलिए मिल पाई थी, क्योंकि उस का शरीर लंबाचौड़ा तो था ही, साथ ही उस की लंबीलंबी तलवारकट मूछें उसे और भी रोबीला बनाती थीं.

वैसे तो आजकल शहरों में सभी नौजवानों में दाढ़ीमूंछ बढ़ाने का शौक चला हुआ था, पर दारा को तो मूंछें बड़ी रखने का शौक था और इस के लिए वह बहुत मेहनत भी करता था. बड़ी मूंछों को शैंपू करना और तेलक्रीम लगा कर उन्हें चमकीली बनाए रखना और अपनी मूंछों को सही रखने के लिए पूरे 5 किलोमीटर दूर एक खास सैलून में  जाया करता था.

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मौल में नौकरी मिलना भी खुशी की बात थी. 12 घंटे काम करना था. काम क्या था, बस मौल के अंदरबाहर आतेजाते लोगों पर नजर रखो और साफसुथरी वरदी पहन कर खड़े रहो. 2 बार चाय भी मिलती थी मुफ्त में.

दारा मौल के बाहर खड़ा हो कर पूरी निगरानी रखता और मौल के काउंटर पर रहने वाली एक लड़की रिनी को अपनी प्यारभरी नजरों से घूरा करता.

अगर गोरा होना ही खूबसूरती है, तो वह लड़की बहुत खूबसूरत थी, लंबा शरीर, पतली कमर और कंधे तक झूलते हुए बाल. रिनी डियो का इस्तेमाल खूब करती थी और अपने पीछे खुशबू का एक झोंका छोड़ जाती.

रिनी जब भी मौल में घुसती, तो दारा उस के बदन की खुशबू लेने के लिए बेताब रहता और उस के आटोरिकशा से उतरते ही उसे देख कर तन कर खड़ा हो जाता और रिनी भी उसे देख कर मुसकरा देती.

मौल के गेट पर खड़े दारा के 2 ही पसंदीदा काम थे, एक तो रिनी को ताकते रहना और दूसरा अपनी तलवारकट बड़ी और घनी मूंछों पर ताव देते रहना. दारा की ये बड़ी मूंछें उसे लोगों में एक अलग ही पहचान दिलाती थीं.

‘मौल में रिनी हर आने वाले ग्राहक का बिल काटते हुए मुसकराते हुए बात करती?है, जैसे वह उस का सगा वाला ही हो. शायद यह उस के काम की मजबूरी भी हो सकती है… जैसे मेरा मन भी बैठने को करता है, पर एक सिक्योरिटी गार्ड को तो तन कर खड़ा रहना पड़ता है… घंटों तक… अरे, यह नौकरी तो पुलिस की नौकरी से भी मुश्किल है.’

‘अकसर खड़ेखड़े अपनेआप से बातें किया करता था दारा.

‘वह तो भला हो मौल में आने वाले परिवारों और उन के साथ आए छोटे बच्चों का… कितनी खुशी से आ कर पूरे मौल में घूमतेफिरते हैं… और पूरा मौल ही खरीद डालने की कोशिश में रहते हैं… मेरी शादी होगी तो मैं भी कम से कम 5 बच्चे पैदा करूंगा और उन के लिए खूब सामान खरीदा करूंगा…’

‘‘शादी हो गई है क्या तुम्हारी?’’ चाय देने आए लड़के ने दारा की तंद्रा तोड़ते  हुए पूछा.

‘‘शादी… अभी तो नहीं.’’

‘‘अरे, फिर इतना काहे खोएखोए हो… खुश भी रहो… मजा लो  जिंदगी का.’’

और उस दिन वास्तव में दारा को जिंदगी का मजा मिल ही गया, जब मौल बंद होने के बाद रिनी ने दारा से उसे उस के घर तक छोड़ आने को कहा.

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‘‘दरअसल… दारा, जब मैं अपने महल्ले में पहुंचती हूं, तब वहां नुक्कड़ पर कुछ आवारा लड़के खड़े रहते हैं जो  मुझे छेड़ते हैं, इसलिए मैं चाहती हूं  कि तुम मेरे साथ चलो तो मैं महफूज महसूस करूंगी.’’

रिनी की इस गुजारिश को दारा नहीं टाल सका, क्योंकि जहां किसी लड़की की हिफाजत होती, वहां दारा किसी बौडीगार्ड की तरह अपना किरदार निभाने से पीछे नहीं हटता था.

एक आटोरिकशा को रोक कर दोनों उस में सवार हो गए. दारा रिनी की खुशबू को अपने जेहन में महसूस कर सकता था, कनखियों से रिनी को देख रहा था.

शहर के कई इलाकों से गुजरता हुआ आटोरिकशा रिनी के घर की तरफ जा रहा था, रिनी जाति से ईसाई थी और उस के पापा ने मां से तलाक ले लिया था. उस की मां ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया है. घर में वह एकलौती कमाने वाली है और अब मां बीमार रहती हैं, इसलिए मां की सारी जिम्मेदारी उसी पर है. यह सारी जानकारी रिनी ने दारा को रास्ते में दी.

दारा ने भी उसे अपने बारे में बताया कि उस की मां तो इस दुनिया में नहीं हैं, गांव में सिर्फ उस के बाबूजी ही रहते हैं.

‘‘अरे वाह, आज तुम से बातों में पता ही नहीं चला कि रास्ता कब खत्म हो गया और अब आ गए हो तो चाय पी कर ही जाना,’’ रिनी ने कहा.

Serial Story: मूंछ पार्ट 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

रिनी की इस बात को दारा टाल नहीं सका और वह उस के साथ उस के घर चला गया.

रिनी के घर में एक ही छोटा सा कमरा था. एक कोने में रिनी की बीमार मां लेटी हुई थीं. दारा ने उन्हें नमस्ते किया और उन का हालचाल पूछा.

पहले तो रिनी की मां की आंखों में दारा की तलवारकट मूंछों को देख कर कई सवाल आए, पर जब रिनी ने बताया कि दारा भी उस के साथ ही काम करता है, तो उन की आंखों में निश्चिंतता के भाव आए.

दारा एक बार रिनी के घर क्या गया, फिर तो दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं. रिनी दारा के लिए अच्छा खाना बना कर लाती, तो कभी दारा अपना लंच भी रिनी के साथ शेयर करता.

एक दिन दारा रिनी के लिए बाटीचोखा बना कर लाया, जो उस ने अपने मामा से बनाना सीखा था.रिनी अपनी उंगलियां चाटती रह  गई थी.

‘‘अरे, कैसे बना लिया तुम ने इतना टेस्टी खाना… मुझे भी इस की रेसिपी जाननी है,’’ रिनी ने चहकते हुए कहा.

‘‘क्या है मैडम कि इस को बनाने में कई छोटीछोटी चीजों की जरूरत पड़ती है और अगर आप को सच में ही इसे बनाना सीखना है, तो आप को इसे बनता

हुआ देखना होगा और उस के लिए आप को हमारे घर चलना होगा और तब ही आप इस को बनाना सीख पाएंगी.’’

दारा पहले से ही रिनी का यकीन जीत चुका था, इसलिए रिनी को उस के साथ जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई.

एक दिन काम के बाद दोनों आटोरिकशा में बैठ कर दारा के घर की तरफ निकल लिए, पर रास्ते में तेज बारिश शुरू हो गई और पूरे रास्ते बारिश होती रही.

दारा के घर की गली के अंदर आटोरिकशा का जाना मुमकिन नहीं था, इसलिए दोनों वहीं उतर गए. कुछ दूरी पर ही दारा का कमरा था. चूंकि बारिश अभी तेज थी और रुकने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे थे, इसलिए दारा और रिनी ने पैदल चलना जारी रखा और भीगते हुए वे दोनों दारा के कमरे पर पहुंच गए.

कमरे पर पहुंचने के बाद दारा ने रिनी को सिर पोंछने के लिए तौलिया दिया. रिनी अपने बालों को झटक कर पोंछने लगी, उस का गोरा बदन पानी में भीगने के बाद और भी चमक उठा था. रिनी जब तौलिए को अपने बदन पर रगड़ती, तो जवान दारा का मन मचल उठता.

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दारा ने उपलों की आग जलाई और हाथ सेंकने लगा. रिनी भी उस के पास आ कर बैठ गई. उस की खुशबू दारा को मदहोश कर रही थी, फिर भी उस ने बाटी बनाने की तैयारी शुरू कर दी. इतने में रिनी को पता नहीं क्या सूझा कि उस ने दारा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘पता है दारा… मुझे तुम्हारे जैसे मर्द की तलाश थी, जो शरीर से मजबूत होने के साथसाथ मेरा ध्यान रखने वाला भी हो,’’ रिनी एक ही सांस में मन की बात कह गई थी.

रिनी की छुअन ने दारा के जवान जिस्म में आग लगा दी. उस ने रिनी को बांहों में भर लिया और उस के होंठों को चूमने लगा. दोनों अमरबेल की लता की तरह एकदूसरे से लिपट गए. बाहर उपलों की आग तेजी से जल रही थी और 2 जवान दिल अपने दिलों की आग को बुझाने में लगे हुए थे.

एक बार दोनों के बीच शर्म की दीवार गिरी, फिर तो दोनों के बीच कई बार शारीरिक संबंध बने, जिस का नतीजा यह हुआ कि रिनी पेट से हो गई.

‘‘सुनो दारा… अब हमें शादी कर लेनी चाहिए, क्योंकि मैं पेट से हो गई हूं.’’

उस की ये बात सुन कर दारा थोड़ा चौंक गया, क्योंकि अभी तक तो उस ने शादी के बारे में सोचा नहीं था और फिर गांव में बाबूजी दूसरे धर्म की लड़की से शादी की इजाजत तो कभी नहीं देंगे और दारा का घूमनाफिरना भले ही रिनी जैसे मौडर्न लड़की के साथ हो, पर अपने जीवनसाथी के तौर पर तो दारा ने गांव की सीधीसादी लड़की के बारे में ही सोचा था.

‘‘पर, मैं तुम से शादी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं दूसरी जाति का हूं और मेरे गांव में तुम से शादी की इजाजत कभी नहीं मिलेगी,’’ दारा ने कहा.

उस की यह बात सुन कर रिनी को बहुत दुख हुआ. वह परेशान हो उठी.

‘‘तो यह तुम ने मेरे शरीर को छूने से पहले क्यों नहीं सोचा था. तुम्हारी वे जातिवादी बातें तब कहां चली गई थीं, जब मेरे होेंठों से अपने होंठों को जोड़ते थे तुम… मैं तुम्हारे बच्चे को ले कर कहां जाऊं?’’ गुस्से में थी रिनी.

ऐसा नहीं था कि दारा रिनी को प्यार नहीं करता था, पर दूसरे धर्म की रिनी से शादी करने की बात बाबूजी को बता कर वह उन के मन पर कुठाराघात नहीं करना चाहता था.

रिनी ने तो दारा से प्यार किया था और उस के प्यार की निशानी उस के पेट में बच्चे के रूप में पल रही थी, आजकल शहर में महिला सशक्तीकरण पर बहुत जोर दिया जा रहा था, जिसे देख और सुन कर रिनी ने भी अपने साथ हुए सुलूक को ले कर आवाज उठानी चाही और वह ‘करीम भाई’ नाम के एक आदमी से जा कर मिली.

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ऐसे तो करीम भाई एक छोटेमोटे नेता थे, पर उन पर कई मर्डर के भी आरोप थे और उन की इमेज एक आपराधिक रिकौर्ड वाले दबंग नेता की भी थी, जो गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटता था.

करीम भाई ने रिनी को पूरी मदद करने का भरोसा दिया और दारा को अपने ठिकाने पर बुलाया और समझाया. पहले तो दारा की लंबी तलवारकट मूंछों की बहुत तारीफ की और फिर बाद में उसे समझाया कि किसी लड़की को प्यार में धोखा देना अच्छी बात नहीं है, इसलिए वह चुपचाप रिनी से शादी कर ले, नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा.

करीम भाई की छिपी हुई धमकी को दारा अच्छी तरह समझ गया था. वह शादी करने को राजी तो हुआ, पर उस नेअपने बाबूजी को इस शादी की सूचना नहीं देने का फैसला किया और दोनों ने चर्च में जा कर शादी कर ली.

Serial Story: मूंछ पार्ट 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

शादी के बाद दारा और रिनी खुश थे, रिनी ने मौल की जौब छोड़ दी और घर में ही रहने लगी. एक बेहतर भविष्य के सपने उस की आंखों में तैर रहे थे.

अभी उन की शादी हुए 15 दिन ही हुए थे कि दारा के पास उस के गांव के प्रधान का फोन आया. उन्होंने बताया कि दारा के बाबूजी की मौत हो गई है.

दारा यह खबर सुन कर परेशान हो उठा. गांव जा कर उसे बाबूजी की अंत्येष्टि करनी होगी और उस के बाद पता नहीं वहां कितना समय लग जाए, यह सोच कर आननफानन में वह रिनी को अपने साथ ले कर गांव की तरफ रवाना हो गया.

दारा का गांव शहर से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर था. वह शाम को चला था, तो गांव पहुंचते उसे अगला दिन हो गया.

बस से उतर कर रिनी और दारा गांव तक पहुंचाने वाली सड़क पर तेजी से बढ़ने लगे. गांव के कुछ निठल्ले लड़के, जो अपनेआप को पूरे गांव का ठेकेदार समझते थे, उन्होंने जब एक नई शहरी लड़की को गांव में देखा. तो उस पर फिकरे कसने लगे. उन में से एक, जो सब का मुखिया लग रहा था, वह बोला, ‘‘दोस्तो, यह रसभरी तो अभी पूरी तरह पकी नहीं है… बड़ी गदर है… इस का रस चूसने में बड़ा मजा आएगा.’’

रिनी सन्न रह गई थी. दारा ने यह सुना, तो उस का माथा ठनक गया था. उस की मुट्ठियां भिंच गईं, पर रिनी ने मौके की नजाकत देख कर दारा को अपनी तरफ खींचा और आगे की ओर चलने लगी.

रिनी उन लोगों के भद्दे कमैंट्स पर ध्यान न कर के सिर झुकाए दारा का हाथ पकड़ कर चलती रही.

‘‘अरे, बड़ी जल्दी है तुम लोगों को गांव में जाने की… अरे ओए… तुम्हीं लोगों से कह रहे हैं… ओ तलवारकट मूंछ वाले… जरा बताते तो जाओ… कहां जा रहे हो? किस के यहां जा रहे हो?’’ एक निठल्ले ने पूछा.

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‘‘जी, हमारे पिता का नाम पूरनलाल है और उन का स्वर्गवास हो गया है… हम उन की क्रिया के लिए गांव में आए हैं,’’ दुखी मन से सीधा जवाब दिया दारा ने. इतना कह कर दारा और रिनी वहां से चल दिए.

‘‘अरे… यह पूरनवा का लौंडा है… शहर जा कर कैसा गबरू हो गया है. साला मूंछ तो हम ठाकुरों जैसी रखा है… शहर में नौकरी कर के अपनी औकात भूल गया है… कोई बात नहीं… हम इस को इस की असली औकात बताते हैं,’’ बलवंत नाम का वह लड़का अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर इधरउधर फोन मिलाने लगा.

दारा के घर पर गांव वाले इकट्ठा थे, कुछेक रिश्तेदार भी थे, जो लोग दारा को पहचान पाए, वे उस से लिपट कर रोने लगे.

पिता की मृत देह देख कर दारा का सब्र जवाब दे गया. वह पिता की देह से लिपट कर रोने लगा. रिश्तेदारों ने हिम्मत दी, पर आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

‘‘अब कुछ नहीं बचा है बेटा… जितनी देर ये देह पड़ी रहेगी, उतनी देर पूरन की आत्मा फड़फड़ाएगी… इसलिए अब इसे जल्दी से जल्दी फूंकने का इंतजाम करो.’’

गांव वालों ने पहले से ही तैयारी कर रखी थी. मृत देह को श्मशान ले चलने की तैयारी होने लगी.

बाप की अर्थी को जैसे ही दारा ने कंधा लगाया, बलवंत गांव के लड़कों के साथ वहां आ गया और दारा को देख कर कहने लगा, ‘‘क्या रे… शहर जा कर तू औकात भूल गया… हम ठाकुरों जैसी मूंछें रखता है. तू क्या समझता है कि लंबाचौड़ा शरीर पा कर तू भी ठाकुर हो जाएगा… और ये तलवार जैसी मूंछें रख लेगा, तो हम लोग डर जाएंगे…’’

‘‘बाबूजी… हमें पिता की क्रिया कर लेने दो, फिर आप जो कहोगे हम मान लेंगे,’’ दारा ने कहा.

‘‘वह तो हम अपनेआप मनवा ही लेंगे…’’ एक मुस्टंडे ने पीछे खड़ी रिनी की ओर देख कर कहा.

‘‘पर, तेरी मूंछ तो छोटी और नीचे की ओर होनी चाहिए… तू ने ये तलवारकट मूंछें रख कर हम लोगों की बेइज्जती की है. उस की सजा तो तुझे भुगतनी होगी,’’ इतना कह कर उस लड़के ने दारा के सिर पर एक डंडा मारा, दूसरा डंडा और फिर तीसरा चौथा… 5वां…

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दारा ने बहुत प्रयास किया कि वह पिता की अर्थी को अपने कंधे से न गिरने दे, पर वह नाकाम रहा और दारा के कंधे से उस के बाप की अर्थी एक ओर गिर गई और दूसरी ओर दारा का शरीर निढाल हो कर गिरने लगा.

‘‘अरे ओ बिरजू… जरा अपना उस्तरा निकाल और काट ले इस की ये तलवारकट मूंछें,’’ वह लड़का चीख रहा था.

दारा के सिर से तेजी से खून निकल रहा था. उस की मुंदती हुई आंखें देख पा रही थीं कि बिरजू नाम का वह आदमी उस्तरा ले कर उस की ओर बढ़ रहा है और कुछ लोग रिनी को अपने कंधे पर उठा कर ले जा रहे हैं.

घर के बाहर अब 2 लाशें पड़ी हुई थीं, एक ओर दारा के पिता की लाश, तो दूसरी ओर दारा की लाश… जिस पर अब मूंछ का कोई नामोनिशान नहीं था…

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